मंगलवार, 12 नवंबर 2013

उत्तर प्रदेश का प्रत्येक नगर व कस्बा में अतिक्रमण-त्रासदी

श्याम कुमार

उत्तर प्रदेश का प्रत्येक नगर व कस्बा अतिक्रमणों एवं अवैध कब्जों से जिस प्रकार बुरी तरह ग्रस्त है, उसके परिणामस्वरूप सर्वत्र सड़क-दुर्घटनाओं की भरमार हो गई है। प्रदेश में नित्य सैकड़ों जानें जा रही हैं। आश्चर्य नहीं कि अतिक्रमणों एवं अवैध कब्जों के कारण प्रदेश को किसी दिन उत्तराखण्ड-जैसी त्रासदी का सामना करना पड़े।

मैं विगत लगभग 50 वर्षों से इस समस्या की ओर प्रदेश के शासन व प्रशासन का ध्यान बार-बार आकृष्ट कर रहा हूं। न्यायालय भी काफी समय से अतिक्रमणों के उन्मूलन का निरन्तर आदेश दे रहे हैं। लेकिन प्रशासन ने भैंस के आगे बीन बजाने वाली कहावत चरितार्थ करने की ठान रखी है। वह केवल दिखावे की कार्रवाई करता है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारी लाइलाज होती जा रही है। अदालती चाबुक पड़ने पर किसी दिन कहीं पर अतिक्रमण हटाया भी जाता है तो भ्रष्टाचार में डूबे प्रशासन की कृपा से वहां अगले दिन पुनः पहले-जैसी स्थिति हो जाती है।

भ्रष्टाचार का वरदहस्त पाकर अतिक्रमणों व अवैध कब्जों ने अब कैंसर का रूप धारण कर लिया है। भ्रष्टाचारियों को तो अब अदालतों का भी भय नहीं रह गया है। हाल में एक अधिकारी ने, जो कभी जिला-प्रशासन में रह चुके थे, मुझे लखनऊ के एक थाने के बारे में बताया कि अतिक्रमणों, ठेलों, अवैध कब्जों आदि से उस थाने की नित्य कम से कम एक लाख रुपए की आमदनी है। उन्होंने कहा कि इसी के इर्द-गिर्द आय वाले कुछ और भी थाने हैं।

एक बड़ी समस्या यह है कि नगर निगम व विकास प्राधिकरण अतिक्रमण व अवैध कब्जे हटाने की जिम्मेदारी पुलिस पर डालते हैं और पुलिस इन दोनों विभागों पर। मेरा स्वयं का अनुभव है कि पुलिस महानिदेशक से दरोगा स्तर तक बस यही उत्तर मिलता है। जबकि स्पष्ट अदालती आदेश है कि जहां कहीं भी अतिक्रमण या अवैध कब्जा हटाया जाय, वहां उसके दुबारा न होने की जिम्मेदारी पुलिस की है, विशेश रूप से उस क्षेत्र के थाने की। लेकिन दुबारा अतिक्रमण होने पर अब तक किसी भी पुलिस अधिकारी को नहीं दण्डित किया गया है। नगर निगम व विकास प्राधिकरण की आम शिकायत रहती है कि उनके अभियान में समय पर पुलिस बल नहीं उपलब्ध कराया जाता है।

कुछ समय से यह नई बात देखने में आ रही है कि जब कहीं अतिक्रमण या अवैध कब्जा हटाया जाता है तो अतिक्रमण व अवैध कब्जा करने वाले यह चिल्लाने लगते हैं कि उन्हें हटाने की पहले सूचना क्यों नहीं दी गई? यह विचित्र तर्क है। यदि इस तर्क को मान लिया जाय तो कल चोर-डाकू भी यह आवाज बुलन्द कर सकते हैं कि उन्हें पकड़ने से पहले नोटिस क्यों नहीं दी गई? इसी प्रकार ‘पटरी दुकानदार संघ’ बनाया गया है। पटरियां (फुटपाथ) राहगीरों के चलने के लिए होती हैं, न कि दुकानदारी के लिए। यदि वेश्यावृत्ति के लिए कोई यूनियन बना ली जाय तो क्या वेश्यावृत्ति वैैध हो जाएगी ?

शासन को चाहिए कि प्रदेश के सभी समाचारपत्रों में एक बार बड़े-बड़े अक्षरों में यह विज्ञापन प्रकाशित करा दे कि सभी अतिक्रमणकारी व अवैध कब्जाधारी अपने अतिक्रमण एवं अवैध कब्जे तुरन्त हटा लें तथा इस विज्ञापन में दी गई सूचना को ही स्थाई रूप से नोटिस मान लें। इसकेे बाद कभी भी कहीं भी अतिक्रमण व अवैध कब्जे पूरी तरह हटा दिए जाएंगे तथा उनका सामान भी जब्त कर लिया जाएगा। तय है कि अतिक्रमणों एवं अवैध कब्जों के विरुद्ध वोटों का लालच छोड़कर जब तक कठोरतम कदम नहीं उठाया जाएगा, तब तक इस कैंसर का इलाज नहीं हो सकेगा। साथ ही, यदि कोई व्यक्ति पुनः अतिक्रमण या अवैध कब्जा करे तो उसके विरुद्ध भी अत्यंत कड़ी दण्डात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

(श्याम कुमार)

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