मंगलवार, 2 मई 2023

तारिक फतेह आदर्श मुसलमान थे

श्याम कुमार

इस्लाम का जब भारत में आगमन हुआ तो वह दो धाराओं में अग्रसर हुआ। पहली धारा उन कट्टरपंथी मुसलिम आक्रांताओं की थी, जो आए तो थे भारत की समृद्धि की चर्चा सुनकर यहां की सम्पदा लूट ले जाने के उद्देश्य से, किन्तु यहां का वैभव देख उनकी आंखें चकाचौंध हो गईं तथा धीरे-धीरे वे यहीं रहकर उस सम्पदा का उपभोग करने लगे। चूंकि वे इसलाम के कट्टर रूप के अनुयायी थे, इसलिए उन्होंने तलवार के बल पर यहां के लोगों को मुसलमान बनाना शुरू किया और हिंदुओं पर भीषण अत्याचार किए। औरंगजेब उसी कट्टरपंथी धारा का प्रतिरूप था। 

दूसरी उदारपंथी धारा उन मुस्लिमों की थी, जिन्होंने दिल से भारत और भारतीय संस्कृति को अपना समझा तथा उसे आत्मसात किया। इस धारा का पुरोधा औरंगजेब का ही बड़ा भाई दाराशिकोह था, जिसकी निर्मम हत्या कर औरंगजेब ने राजगद्दी हथिया ली थी। दारा षिकोह की उदारपंथी एवं भारतीय संस्कृति को अपना समझने वाली परम्परा में मलिक मुहम्मद जायसी, डॉ. अब्दुल कलाम आदि हुए। डॉ. अब्दुल कलाम ऐसे उदारवादी मुसलमान थे, जो शाकाहारी थे तथा गीता पाठ करते थे।  

तारिक मुहम्मद डॉ. अब्दुल कलाम की ही अनुकृति थे। वह जाने-माने स्तम्भकार एवं लेखक थे। तारिक मुहम्मद का जन्म 20 नवम्बर, 1949 को कराची में हुआ था तथा 73 वर्श की आयु में गत 24 अप्रैल, 2023 को उनका कनाडा में निधन हो गया। वह लम्बे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उन्हें भारत से इतना प्रेम था कि कहा करते थे कि वह ऐसे हिन्दुस्तानी हैं, जिसका जन्म पाकिस्तान में हुआ था। वह पाकिस्तान के कटु आलोचक थे तथा भारत का जो विभाजन हुआ, उसकी निंदा करते थे। अपने विचारों के कारण जब पाकिस्तान में उनकी जान को खतरा उत्पन्न हो गया था तो वर्ष 1987 में वह कनाडा चले गए थे और वहां की नागरिकता ले ली थी। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं। मूलतः पाकिस्तानी होने के बावजूद वह अपने को पूरी तरह भारतीय कहा करते थे। वह कहते थे कि कट्टरपंथियों ने इसलाम को भीषण क्षति पहुंचाई है तथा ‘मुल्ला के इस्लाम’ के बजाय ‘अल्ला के इस्लाम’ का अनुसरण किया जाना उचित है।

डॉ. अब्दुल कलाम चूंकि महान वैज्ञानिक थे तथा भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए थे, इसलिए कट्टरपंथी मुसलमान उनका उस प्रकार खुलकर विरोध करने का साहस नहीं कर सके, जैसा उन्होंने तारिक फतेह के खिलाफ अपनी भड़ास निकालकर किया। कट्टरपंथियों ने बंगलादेश की प्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन के खिलाफ भी इसी प्रकार मोर्चा खोला था। तसलीमा नसरीन से कट्टरपंथी मुसलमानों की नाराजगी इस बात से थी कि उन्होंने अपने ‘लज्जा’ उपन्यास में बंगलादेश के कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा वहां हिंदुओं पर किए गए रोंगटे खड़े कर देने वाले अत्याचारों की सच्ची घटनाओं का चित्रण किया था। उन ह्रदयविदारक घटनाओं में एक घटना यह थी कि कट्टरपंथी मुसलिम एक परिचित हिंदू परिवार के घर में घुसकर मां के सामने उसकी बच्ची से सामूहिक बलात्कार करने लगते हैं। लाचार मां सामूहिक बलात्कार कर रहे उन परिचित मुसलमानों से बच्ची की जान की भीख मांगते हुए कहती है कि वे धीरे-धीरे बलात्कार करें, अन्यथा बच्ची मर जाएगी। चूंकि हमारे देश में सत्ता पर काबिज नेहरू वंष हमेषा कट्टरपंथी मुसलिमों का सरपरस्त रहा, इसलिए उसने तसलीमा नसरीन को भारत में षरण व संरक्षण देने के बजाय कट्टरपंथी मुसलिमों के पक्ष में काम किया। 

जिस प्रकार उदारवादी इसलाम को दारा षिकोह की हत्या से भारी क्षति पहुंची थी, तारिक फतेह के निधन से वैसी ही भारी क्षति उदारवादी इसलाम को पहुंची है। तारिक फतेह कट्टरपंथी मुसलिमों की बातों का तर्कपूर्ण उत्तर दिया करते थे। लेकिन अधिकतर मुसलिमों के दिमाग में बचपन से ही मजहबी कट्टरता इतनी कूट-कूटकर भर दी जाती है कि वे तारिक फतेह की बातों को तर्क की कसौटी पर समझने के बजाय उनसे घृणा करते थे और उन्हें अपना बहुत बड़ा दुश्मन मानते थे। टीवी की परिचर्चाओं में ऐसे उदाहरण कई बार देखने को मिले। एक बार तो एक मुस्लिम महाशय तारिक फतेह को अपशब्द कहते हुए परिचर्चा से उठकर चले गए थे। 

जब योगी सरकार ने इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया था तो टीवी पर एक मुस्लिम महिला ने आलोचनात्मक स्वर में इसका उल्लेख करते हुए तारिक फतेह से सवाल किया था। उत्तर में तारिक फतेह ने कहा था कि इलाहाबाद का मूल नाम प्रयागराज ही था, जिसे अकबर ने जानबूझकर बदलकर इलाहाबाद कर दिया था। इसलिए विरोध तो अकबर के उस कृत्य का किया जाना चाहिए, जिसने प्रयागराज को उसके असली नाम से वंचित कर दिया था।  
एक बार रजत शर्मा के प्रसिद्ध टीवी कार्यक्रम ‘आप की अदालत’ में तारिक फतेह पेष हुए थे। उस प्रसारण में जज की कुरसी पर षायर मुनव्वर राना बैठा हुआ था। उसे उस कुरसी पर बैठे देखकर प्रसारण देखने वालों ने माथा पीट लिया था कि रजत षर्मा ने ‘अवार्ड वापसी गिरोह’ के इस कम्युनल सदस्य को अपने कार्यक्रम में जज क्यों बना दिया! लोगों की आषंका सही निकली और तारिक फतेह की उचित बातों की मुनव्वर राना ने जिस घटिया रूप में भर्त्सना की थी, उसे सुनकर मुनव्वर राना के प्रति जनमानस का विरोध-भाव घृणा-भाव में बदल गया था। 

हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमारे यहां आजादी से पहले तो इसलाम का कट्टरपंथी रूप प्रभावी रहा ही, आजादी के बाद भी जिन लोगों के हाथ में सत्ता आई, वे कट्टरपंथी इसलाम का पोषण करने में लगे रहे। मोदी एवं योगी सरकारों के आगमन से पूर्व हमारे देश के सत्ताधारियों द्वारा कट्टरपंथी मुसलमानों को हमेशा जमकर संरक्षण व बढ़ावा दिया गया। जिन्ना तथा उसके अनुयायियों की यह मांग थी कि हिंदू व मुसलमान दो अलग कौमें हैं, जो एक साथ नहीं रह सकतीं और इसलिए मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान का निर्माण किया जाय। मुसलमानों की वह मांग मानकर मजहब के आधार पर देश का बंटवारा कर दिया गया, जिसके बाद भारत स्वाभाविक रूप से अपनेआप हिंदू राष्ट्र हो गया। लेकिन टांग अड़ाकर जवाहरलाल नेहरू ने भारत को ‘सेकुलर’ घोषित करा दिया। परिणाम यह हुआ कि बंटवारे के बाद बड़ी संख्या में कट्टरपंथी मुसलमान हमारे यहां बने रह गए, जो अभी भी देश के लिए भारी सिरदर्द बने हुए हैं। इसी कट्टरता के कारण तारिक फतेह के निधन पर हमारे यहां कुछ लोगों ने जश्न मनाया। सच्चाई तो यह है कि तारिक फतेह के निधन से वस्तुतः इसलाम का ही नुकसान हुआ है, क्योंकि इसलाम का कल्याण उसके उदारवादी रूप में ही होगा, न कि कट्टरतावादी रूप में। 

श्याम कुमार, सम्पादक, समाचारवार्ता, ईडी-33 वीरसावरकर नगर (डायमन्डडेरी), उदयगंज, लखनऊ, मोबाइल-09415002458, 7905405266     ईमेलःkshyam.journalist@gmail.com दिनांकः 3 मई, 2023  



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