शुक्रवार, 1 मार्च 2024

भाजपा के 100 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट फाइनल!

 ·     भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर की जगह शिवराज को उम्मीदवार बनाकर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश में है भाजपा

·         शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ भोजपुरी स्टार पवन सिंह

·         इनमें पीएम मोदी और अमित शाह की सीट भी शामिल है।

·         पीएम मोदी वाराणसी, अमित शाह गांधीनगर से लड़ेंगे चुनाव

·       दिल्ली भाजपा सांसदों का भविष्य खतरे में है क्योंकि पार्टी कम से कम तीन मौजूदा सांसदों को बदलने की तैयारी में है। 

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा ने अपने 100 उम्मीदवारों के नाम लगभग

फाइनल कर दिए हैं। देर रात तक भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई जिसमें पीएम मोदी भी शरीक हुए। पीएम मोदी रात 11 बजे केंद्रीय कार्यालय पर आए थे और सुबह 3:30 के करीब निकले। बैठक में पहली सूची पर मंथन हुआ। सूत्रों का कहना है एक-दो दिन में पहली लिस्ट आ सकती है।

इस लिस्ट में पीएम नरेंद्र मोदी (वाराणसी), गृह मंत्री अमित शाह (गांधीनगर), राजनाथ सिंह (लखनऊ) सहित हाई प्रोफाइल उम्मीदवारों के नाम फाइनल किए गए हैं और 'कमजोर' सीटें जो भाजपा 2019 में हारी या कम अंतर से जीतीं उन पर फोकस किया गया है।

देर रात सीईसी की बैठक में जिन राज्यों पर चर्चा हुई उनमें यूपी, एमपी, उत्तराखंड, गुजरात, असम, तेलंगाना, केरल समेत अन्य शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री जो राज्यसभा सांसद हैं उनके आगामी चुनाव लड़ने की संभावना है, उनमें भूपेन्द्र यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया, निर्मला सीतारमण, धर्मेन्द्र प्रधान, सर्बानंद सोनोवाल, वी मुरलीधरन शामिल हैं। भाजपा कई महिला चेहरों सहित नए चेहरों पर ध्यान केंद्रित करेगी।

इसके अलावा भाजपा बंगाल के आसनसोल में टीएमसी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा को टक्कर देने के लिए भाजपा भोजपुरी स्टार पवन सिंह सहित अन्य जगहों पर भी कुछ सेलिब्रिटी चेहरों को ला सकती है। दिल्ली भाजपा सांसदों का भविष्य खतरे में है क्योंकि पार्टी कम से कम तीन मौजूदा सांसदों को बदलने की तैयारी में है।

तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई को भी मैदान में उतारे जाने की संभावना है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को भोपाल से मैदान में उतारा जा सकता है। भोपाल से इस समय भाजपा की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर हैं जो अक्सर विवादों में रही है। इसके अलावा तेलंगाना में भाजपा मौजूदा सांसदों बांदी संजय, जी किशन रेड्डी और अरविंद धर्मपुरी को फिर से चुनावी मैदान में उतारा जाएगा।

अलग अलग राज्यों को लेकर भी इस बैठक में चर्चा हुई। बैठक में राजस्थान को लेकर भी चर्चा हुई और इस दौरान सीएम भजनलाल, वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया भी मौजूद रहे। असम को लेकर यह तय हुआ कि 3 सीटें भाजपा सहयोगियों को देगी जबकि 2 सीटें असम गण परिषद और 1 सीट एपीपीएल को मिलेगी।

 

मछलीशहर लोकसभा सीट से भाजपा के प्रबल दावेदार हैं बसंत कुमार

·     पत्रकारिता जगत से भी सम्बन्ध रखते हैं बसंत कुमार

·      भारत सरकार के उप सचिव पद से ली है स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति

जौनपुर। आगामी लोकसभा चुनाव की घोषणा होने वाली है जिसको लेकर सभी पार्टियां अपने प्रत्याशियों की घोषणा में जातीय गुणा-भाग में व्यस्त हैं लेकिन इस विषय में सबसे महत्वपूर्ण सीट मछलीशहर (सु.) बनी हुई है। इस सीट पर भाजपा की ओर से जनपद जौनपुर के ग्राम पिपरा के निवासी व भारत सरकार के पूर्व उप सचिव व एनडीए-1 सरकार में एमएसएमई मंत्रालय में सलाहकार रहे बसंत कुमार सबसे प्रबल दावेदार के रूप में सामने नजर आ रहे हैं।

वे शिक्षित हैं तथा उनके पास लगभग 3 दशक का प्रशासनिक अनुभव है। वे एक अच्छे लेखक हैं जिन्होंने राष्ट्रवादी कर्म योगी, हिन्दुत्व एक जीवनशैली, युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद, एकात्मवाद भाजपा का संकल्प, भारत में उद्यमिता, आंबेडकर और राष्ट्रवाद जैसी किताबें लिखी हैं। इन पुस्तकों का लोकार्पण भाजपा के शिखर पुरूष लाल कृष्ण आडवाडी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, डॉ. सत्य नारायण जटिया, योगी आदित्यनाथ आदि महानुभवों द्वारा किया गया है। इतना ही नहीं, देशभर से खासकर नई दिल्ली से प्रकाशित वीर अर्जुन, अमर भारती जैसे दैनिक समाचार पत्रों व पत्र-पत्रिकाओं में प्रत्येक सप्ताह श्री कुमार के स्तम्भ भी प्रकाशित होते हैं, जिनमें वह बड़ी बेबाकी से अपने विचार रखते हैं। उल्लेखनीय है कि वीर अर्जुन के सम्पादक के रूप में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी व लाल कृष्ण आडवाणी भी काम कर चुके हैं।

इतना सब होने के बावजूद बसंत कुमार भाजपा से लगातार इसलिए वंचित किए जाते रहे हैं क्योंकि वे जिस बिरादरी से संबंध रखते हैं उसे बसपा का पारंपरिक वोट माना जाता रहा है पर अपनी राष्ट्रवादी सोच के कारण उन्होंने बसपा की ओर से पार्टी जॉइन करने के ऑफर को ठुकरा दिया और एक दशक से अधिक समय से भाजपा में एक कार्यकर्ता के रूप में लगे हुए हैं। उन्होंने सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के पश्चात् वर्ष 2011 में भाजपा सदस्यता ग्रहण की तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र के सानिध्य में हिंदुत्व व राष्ट्रवाद के विषय को गहराई से जाना और भाजपा के नीतियों और कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार में कड़ी मेहनत की और 2011 में लालकृष्ण अडवाणी और कलराज मिश्र के नेतृत्व में जन स्वाभिमान यात्रा में पूरे प्रदेश का भ्रमण किया।

वर्ष 2014 में जब कलराज मिश्र देवरिया से चुनाव लड़ रहे थे तो बसंत कुमार ने कड़ी मेहनत की और पूरे क्षेत्र में अपनी मौजूदगी का एहसास कराया जिसकी वजह से पूरे क्षेत्र में उन्हें कलराज मिश्र का हनुमान कहा जाता था और जब नरेंद्र मोदीजी के मंत्रिमंडल में कलराज मिश्र एमएसएमई मंत्री बनाए गए तो बसंत कुमार को इस मंत्रालय में सलाहकार बनाया गया।

श्री बसंत कुमार के के पिता श्री गुरु प्रसाद (बड़े बाबू) प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने अपनी कालेज शिक्षा वर्ष 1941 में कठिन परिष्तिथियो में पूरी की, क्योंकि उस समय कालेज में शिक्षा प्राप्त करना सिर्फ सवर्ण जमीदारों का एकाधिकार होता था। शिक्षा प्राप्ति के बाद 1946 में भारत सरकार में डाक तार विभाग में बिना आरक्षण के नौकरी प्राप्त की। उनके देहांत के वर्षों बाद भी क्षेत्र के लोग गुरु प्रसाद (बड़े बाबू) का नाम बड़ी श्रद्धा से लेते हैं। अपने पिता की भांति बसंत कुमार ने भी शिक्षा में टापर रहे हैं। वह मड़ियाहु महाविद्यालय में वर्ष 1977-78 में टापर होने के कारण कालेज छात्र यूनियन में प्रतिनिधि के नाम से मनोनीत किये गए।

वे हमेशा इस बात के पक्षधर रहे हैं कि आरक्षण का लाभ वंचित समाज के निर्धन व्यक्तियों को ही मिले और जो लोग एक बार आरक्षण का लाभ लेकर संपन्न हो चुके हैं उन्हें अपने बच्चो के लिए आरक्षण का लाभ स्वत: छोड़ देना चाहिए जिससे उसका लाभ वंचित समाज के दूसरे निर्धनों को मिल सके। अपनी इसी सोच के कारण उन्होंने अपने दोनों बेटों को दिल्ली के टॉप की शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा दिलाई और आरक्षण का लाभ लेकर उन्हे आईएएस या आईपीएस बनाने के बजाय ऐसी फील्ड चुनी जहां आरक्षण का ठप्पा न हो, उनका बड़ा बेटा अजीत रंजन दिल्ली क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व करने के बाद इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेल रहा है जबकि छोटा बेटा विनीत रंजन सर्वोच्च न्यायालय में एडवोकेट है।

बसंत कुमार एक पहल नामक एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव हैं और अपनी संस्था के माध्यम से वंचितों और निर्धनों की शिक्षा और रोजगार में मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं। वे विधायक या सांसद न होते हुए भी मछलीशहर (जौनपुर) के लोगों की मदद हर समय करते हैं चाहे वह दिल्ली में काम हो या मछलीशहर में। बसंत कुमार की विशेषता जो उन्हें अन्य लोगों से अलग रखती हैं कि वे अपने प्रतिद्वंदियों को भी दिल्ली में बड़े राष्ट्रीय नेताओं से मिलाने में कोताही नहीं करते।

ऐसे सरल स्वभाव के बहुमुखी प्रतिभा के धनी व विद्वान लेखक बसंत कुमार को यहां की जनता चाहती है कि भाजपा अपना प्रत्याशी बनती है तो भाजपा की यहां से भारी मतों से जीत होगी और क्षेत्र में चहुंमुखी विकास होगा।

अब अगर यहां के पूरे समीकरण को समझने की कोशिश करें तो इनके उम्मीदवार बनाए जाने से भाजपा के साथ-साथ मछलीशहर के लोगों को भी फायदा होगा।

मछलीशहर को तहसील का दर्जा प्राप्त - जौनपुर जिले में शामिल मछलीशहर भी उत्तर प्रदेश के 80 संसदीय क्षेत्रों में से एक संसदीय क्षेत्र (74वीं संख्या) है और यह शहर व्यापार के लिहाज से प्रदेश का अहम नगर है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में शामिल मछलीशहर को तहसील का दर्जा प्राप्त है। पश्चिम में प्रतापगढ़, रायबरेली और लखनऊ को मछलीशहर से जोड़ता है जबकि मछलीशहर पूर्वी तरफ से जौनपुर और वाराणसी से जुड़ा हुआ है।

महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक-2011 की जनगणना के आधार पर मछलीशहर तहसील की आबादी 7 लाख से ज्यादा (7,36,209) है, जिसमें महिलाओं (3,75,252) की संख्या पुरुषों (7,36,209) से ज्यादा है। इस संसदीय क्षेत्र का लिंगानुपात प्रदेश के उन चंद संसदीय क्षेत्रों में शामिल है जहां महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। एक हजार पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 1,040 है। यहां की साक्षरता दर 70.81% है।

अनुसूचित जाति की आबादी 22 फीसदी - जातिगत आधार पर यहां की आबादी पर नजर डाली जाए तो मछलीशहर संसदीय क्षेत्र में 22.7% आबादी (166,766) अनुसूचित जाति की है, जबकि अनुसूचित जनजाति यहां की कुल आबादी का 0.1 फीसदी (625) ही है। धार्मिक आधार पर 90.61 फीसदी आबादी हिंदुओं की है, जबकि मुस्लिम समाज के 8.9% लोग ही यहां रहते हैं।

युवाओं को बर्बाद करती शराब और नशीली दवाओं की लत

बसंत कुमार

पिछले सप्ताह कांग्रेस की न्याय यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में कहा कि यहां के युवा आधी रात को सड़कों पर शराब के नशे में धुत्त दंगा करते हैं। राहुल गांधी के इस बयान पर उन्हें आड़े हाथों लेते हुए प्रधानमंत्री जी ने इसे बनारस के युवाओं का अपमान कहा। हो सकता है कि राहुल गांधी ने यह बात राजनैतिक लाभ लेने के लिए कही हो और यह बात कुछ लोगों को अच्छी न लगी हो पर प्रधानमंत्री साहित अनेक बुद्धिजीवी लोग इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि विगत कुछ वर्षो में शराब और नशे की लत ने हमारी युवा पीढ़ी को तहस नहस कर दिया है।

हमारे समाज में शराब और अन्य नशीली दवाइयों के सेवन का रोग इतना अधिक बढ़ गया है कि इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। दिल्ली सरकार के दो मंत्री और एक वरिष्ठ सांसद शराब बिक्री के घोटाले में वर्ष भर से जेल में हैं और सर्वोच्च न्यायालय से भी इनको जमानत नहीं मिल पा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि दिल्ली में उस दल की सरकार है जिसका जन्म अन्ना हज़ारे की भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ था पर इस दल की सरकार के शराब घोटाले ने पिछली सरकार के सभी घोटालों को पीछे छोड़ दिया है।

दिल्ली के नागरिकों को शराब की एक बोतल के साथ एक फ्री का ऑफर देकर गरीब लोगों को अपने घर की दाल रोटी की जरूरतों को भूल कर शराब की दुकानों के आगे लंबी लाइनों में खड़ा होने के लिए बाध्य कर दिया। हमने डिपार्टमेंटल स्टोर्स पर बिक्री को प्रमोट करने के लिए एक के साथ एक फ्री की स्कीम सुनी थी पर शराब की बिक्री में एक के साथ एक फ्री नहीं सुना था पर केजरीवाल सरकार ने यह भी कारनामा करके दिखा दिया। वैसे देश में चुनावों के समय इतनी शराब की खपत होती हैं और नेताओं के मुख से शराब का सेवन करने वाले युवाओं को कोसना कुछ ठीक नहीं लगता।

वर्ष 2019 में कोरोना महामारी के दौरान जब सारी दुनिया लॉकडाउन के कारण अपने घरों में सिमट गई थी और जीने के लिए आवश्यक वस्तुओं का मिलना मुश्किल हो गया था, दुकाने भी कुछ सीमित समय के लिए खुला करती थी। लोग कोरोना काल के प्रतिबंधों का पालन करते हुए ही अपने जीने की अवश्यक वस्तुए ले पा रहे थे, बीमार लोगों को बमुश्किल अस्पतालों में एडमिशन मिलता था, लोग सोशल डिस्टेंसिग का पालन करते हुए अपने जरूरी काम निपटा रहे थे। शादी ब्याह में भी बमुश्किल 10-15 लोग ही शामिल हो सकते थे, यहां तक की लोगों की मैय्यत (शव यात्रा) में भी कुछ गिने-चुने लोग ही शामिल हो सकते थे। ऐसे नाजुक समय में केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने दिल्ली में शराब की दुकाने खोल दी और आलम यह हो गया कि कोरोना की परवाह किए बिना ही लोगों ने शराब की दुकानों के सामने एक-एक किलोमीटर लम्बी लाइन लगा दी थी और सोशल डिस्टेंसिंग की बात कौन कहे लोग शराब लेने के लिए एक-दूसरे के ऊपर चढ़ रहे थे अर्थात शराब के लिए लोग जीने-मरने की परवाह नहीं कर रहे थे।

कहने के लिए देश के कई प्रदेशों विशेषकर गुजरात और बिहार में शराब की बिक्री पूरी तरह से प्रतिबंधित है परंतु दोनों प्रदेशों में किसी भी समय किसी भी ब्रांड की शराब मिल जाती है। बस फर्क यह होता है कि 500 वाली 2000 रूपए में मिलती है, जो लोग महंगी शराब खरीदने की क्षमता वे सस्ती के नाम पर जहरीली शराब पीते है जिसका परिणाम यह होता है कि हर साल जहरीली शराब पीने से हजारों लोग मर जाते है और इतने ही परिवार तबाह हो जाते है।

आज शराब हमारे अंदर इतनी समा गई है कि आज लोग श्मशान में भी जाते समय शवदाह करने के पश्चात शराब पीने लगे हैं, पहले शादी से संबंधित तिलक व सगाई की रश्मों में शराब का बिल्कुल सेवन नहीं होता था पर आज शराब के बिना ये रश्मे पूरी ही नहीं होती, पुरानी प्रथा के अनुसार कन्या का पिता अपनी बेटी के ससुराल का पानी भी नहीं पीता था पर आज हमारी संस्कृति पर पश्चिम का असर इतना अधिक हो गया है कि कन्या के पिता सहित सभी लोग जब तक शराब का सेवन न कर लें तब तक रस्म पूरी ही नहीं होती। आज हर रस्म और समारोह में जब तक शराब न परोसी जाए तब तक समारोह का आनंद नहीं आता या यूं कहे लें ये सब स्टेट्स सिम्बल बन गया है जो भारतीय संस्कृति पर सबसे बड़ा अभिशाप हो गया है। हिंदू धर्म के तीज त्योहारों में शराब का बढ़ता सेवन हिंदू संस्कृति को तबाह कर रहा है, विशेषकर दुर्गा या गणपति विसर्जन के समय जुलूस में जाते समय युवा डीजे पर शराब के नशे में नाचते हुए अश्लील गाने बजाते हुए जाते हैं तो हर व्यक्ति यह समझ सकता है कि हम अपने धर्म के प्रति कितने आस्थावान रह गए हैं।

अयोध्या में भगवन राम के मन्दिर की स्थापना के बाद पूरे देश का वातावरण पूरा राममय हो गया है और हर व्यक्ति रामराज्य की स्थापना की आश लगाए बैठा है पर जिस प्रकार से शराब में धुत युवा धार्मिक कार्यक्रम को कर रहे हैं उससे रामराज्य की स्थापना कहीं भी संभव नहीं लगती। शराब के अतिरिक्त कुछ और नशीली दवाओं ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया है। यह लत इतनी खतरनाक हो गई है कि युवा इसके न मिलने से आत्महत्या कर लेते हैं। नशे के कारण होने वाली मौतों की गंभीरता को समझते हुए केंद्र सरकार ने 1995 से इस संबंध में आंकड़े जारी करने शुरू कर दिये हैं। बीते कुछ वर्षो में शराब और नशे के कारण होने वाली मौतों में चिंताजनक वृद्धि हुई है, इसको रोकने के सरकारी प्रयासों के बावजूद ये घटनाएं घटने के बजाय बढ़ रही है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ सामाजिक प्रयासों की अवश्यकता है।

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