रविवार, 19 जून 2022

नई पीढ़ी-नई सोच संस्था ने 195 बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई

नई दिल्ली। नई पीढ़ी-नई सोच संस्था की ओर से 195 बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई गई। संस्था की ओर से हर बार की तरह इस बार भी पल्स पोलियो टीकाकरण कैम्प लगाया गया जिसमें 195 बच्चों ने पोलियो की दवा पी।   यह कैम्प संस्था के कोषाध्यक्ष डॉ. आर. अंसारी की जनता क्लीनिक बुलंद मस्जिद, शास्त्री पार्क में लगाया गया। कैम्प में बच्चों को पोलियो की ड्राप्स सुबह 9 बजे से ही पिलाई जाने लगी थी और शाम 4 बजे तक 195 बच्चों को पोलियो की ड्राप्स पिलाई गई। संस्था के पदाधिकारियों और सदस्यों ने घर-घर जाकर लोगों को पोलियो ड्राप्स पिलाने के लिए प्राोरित किया और पोलियो की ड्राप्स न पिलाने के नुकसान बताए। संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष साबिर हुसैन ने कहा कि संस्था हमेशा हर तरह के राष्ट्रीय प्रोग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती है और बीच-बीच में जनता को भी इन प्रोग्रामों के प्रति जागरूक करती है। संस्था के सदस्यों ने आज पूरी दिन लोगों के घर-घर जाकर बच्चों को पोलियो केंद्र पर 0-5 वर्ष के बच्चों को पोलियो की ड्राप्स पिलाने के लिए कहा। संस्था के उपाध्यक्ष मो. रियाज ने कहा कि सरकार द्वारा चलाई जा रही मुहिम को हम जनता तक पहुंचा रहे हैं। आज पोलियो जड़ से खात्मे की ओर जा चुका है दूसरी बीमारियों पर भी सरकार जल्द कामयाबी हासिल कर लेगी और कुछ बीमारियों पर कामयाबी हासिल कर चुकी है। संस्था के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष डॉ. आर. अंसारी ने कहा कि हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हम लोगों की मदद करते रहें क्योंकि दूसरों की मदद करने में जो सुकून मिलता है वह और किसी दूसरे काम में नहीं मिलता।  समाजसेवी अब्दुल खालिक ने कहा कि लोगों को अपने बच्चों को हमेशा सरकार के कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए चाहे वह कोई भी हो और यह तो बच्चों के जीवन से जुड़ा है। उन्होंने आगे कहा कि लोग आज भी बच्चों को पोलियो की दवा नहीं पिलाते हैं जो कि गलत है। इस अवसर पर संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष साबिर हुसैन, संस्था के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मौ. रियाज, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष डॉ. आर. अंसारी, सदरे आलम, आजाद, मौ. सज्जाद, शान बाबू, इरफान आलम, यामीन, मो. मुन्ना अंसारी, अब्दुल रज्जाक, मो. सलीम आदि मौजूद थे।


इस मुल्क में हर शख़्स परेशान सा क्यों है?

तनवीर जाफ़री

सरकार की विवादित सैन्य भर्ती योजना 'अग्निपथ' के विरोध में देश के 15 राज्यों के युवा सड़कों पर उतर आये हैं। इनमें पंजाब,हरियाणा,उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश,बिहार से लेकर तेलंगाना तक के राज्य शामिल हैं। आंदोलनकारियों द्वारा दुर्भाग्यवश पूरे देश में अब तक 11 ट्रेन्स जलाई जा चुकी हैं। इस आंदोलन से अब तक 370 से अधिक ट्रेन प्रभावित हुई हैं जबकि 369 ट्रेन्स रद्द किये जाने की ख़बर है। एक ट्रेन का औसतन मूल्य 68 करोड़ रूपये आता है इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सरकार की अग्नि पथ योजना की घोषणा देश को कितना मंहगी साबित हो रही है। बिहार में कई ज़िलों में इंटरनेट बंद किये जाने की भी ख़बर है। कई विद्यार्थी जिन्हें इस विवादित योजना के चलते अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था दुर्भाग्यवश वे आत्म हत्या तक कर चुके हैं। गोया देश का वह किसान पुत्र युवा जो सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा करने से लेकर अपने व अपने परिवार के उज्जवल भविष्य के सपने संजोय रहता था उसे इस योजना के कारण अपना भविष्य अंधकारमय नज़र आने लगा है। केवल विपक्षी दल ही नहीं बल्कि देश के अनेक पूर्व सैन्य अधिकारी व सैन्य विशेषज्ञ भी इस विवादित योजना की आलोचना कर रहे हैं।

परन्तु ठीक किसान आंदोलन की ही तरह सरकार ने अपने मंत्रियों,मुख्यमंत्रियों व पार्टी नेताओं की पूरी फ़ौज 'अग्निपथ योजना ' के समर्थन में  योजना का गुणगान करने के लिये उतार दी है। गृह मंत्री जहां युवाओं को यह कहकर आश्वस्त कर रहे हैं कि सेना में चार वर्ष सेवा दे चुके अग्निवीरों को अर्ध सैनिक बलों में प्राथमिकता के आधार पर भर्ती किया जायेगा। गृह मंत्रालय के अनुसार अग्निवीरों को सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स अर्थात सीएपीएफ व असम राइफल्स में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा। वहीं उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,असम, हिमाचल प्रदेश  हरियाणा व उत्तराखंड समेत कई भाजपा शासित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री भी आंदोलन कारी छात्रों को यह आश्वासन दे रहे हैं कि 'अग्निवीरों ' को राज्य पुलिस व अन्य विभागों में भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी। परन्तु अग्निपथ योजना के विरोध में उपजे इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आख़िर क्या वजह है कि भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में बनीं कई ऐसी योजनाएं जिनका राष्ट्रीय स्तर पर विरोध हुआ देश के लोगों में बेचैनी पैदा हुई,भारी सरकारी नुक़सान हुआ,परन्तु सरकारी पक्ष उन विवादित योजनाओं की पैरवी व उनका गुणगान करता रहा ?

मिसाल के तौर पर नोटबंदी की योजना जिसने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी। देश के बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों ने इसका विरोध किया था। उस समय भी सरकार के सिपहसालार नोटबंदी के फ़ायदे बताते फिर रहे थे।जैसे कश्मीर में आतंकवाद काम होगा,नक्सलवाद नियंत्रित होगा,काला धन बाहर आयेगा आदि। परन्तु आज देश की अर्थ व्यवस्था का बुरा हाल है। कैशलेस इकोनॉमी जिसका ढिंढोरा पीटा जा रहा था न जाने कहाँ चली गयी। उल्टे स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा 50 प्रतिशत बढ़कर 14 वर्षों के उच्तम स्तर पर पहुँच गया। हाँ इस नोटबंदी ने सरकार के कुछ अघोषित व गुप्त एजेंडे ज़रूर पूरे किये जिससे सत्ता समर्थकों को भारी लाभ व विपक्षियों को नुक़सान हुआ। देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करने की शर्त पर इस तरह की योजना आख़िर कैसे सही कही जा सकती है? इसी प्रकार सरकार की सी ए ए और एन आर सी नीति को लेकर दिल्ली से आसाम तक आंदोलन हुये। लाखों लोगों द्वारा इसका विरोध लंबे समय तक किया जाता रहा। इसके बाद सरकार तीन विवादित कृषि क़ानून लेकर आ गयी। हज़ारों करोड़ रूपये सरकार ने इन कृषि क़ानूनों का 'क़सीदा ' पढ़ने के लिये जारी विज्ञापनों में ख़र्च कर दिए।सरकार कहती रही कि यह तीनों कृषि क़ानून किसानों के लिये हितकारी हैं। जबकि किसानों का कहना था कि यह क़ानून किसानों के हित के लिये नहीं बल्कि चंद सत्ता शुभचिंतक उद्योगपतियों को फ़ायदा पहुँचाने के लिये हैं। लगभग 700 किसानों की क़ुर्बानी देकर तेज़ धूप,मूसलाधार बारिश और हांड कंपकंपाने वाली ठण्ड में भी किसान, सरकार के इन क़ानूनों के विरुद्ध दिल्ली की सीमाओं पर डटा रहा। और आख़िरकार सरकार को 13 महीने चले किसान आंदोलन के सामने घुटने टेकने ही पड़े। सरकार के इन विवादित क़ानूनों के चलते भी देश को हज़ारों करोड़ का नुक़सान उठाना पड़ा।

अब एक बार फिर सरकार एक और विवादित अग्निपथ सैन्य भर्ती योजना लेकर आयी है। सरकार जहाँ इस योजना के और भी कई लाभ गिना रही है वहीं एक फ़ायदा यह भी बता रही है कि अग्निपथ योजना से सेना में बढ़ते हुए वेतन और पेंशन पर होने वाले भारी भरकम ख़र्च में कमी आएगी। ज़ाहिर है जब सैनिक अपनी निर्धारित सैन्य सेवा पूरी नहीं करेगा तो सरकार द्वारा उसे पेंशन देने,अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ देने या उसका वेतन बढ़ाने का ज़िम्मा भी सरकार का नहीं होगा। पेंशन न देने और सैलरी न बढ़ने पर पैसे की काफ़ी बचत होगी जो सैन्य आधुनिकीकरण पर ख़र्च होगी । जबकि आंदोलनकारी छात्र सरकार के इस तर्क को ख़ारिज करते हुए कह रहे हैं कि जो सरकार नेताओं की पेंशन बंद नहीं करती,जो सरकार उद्योगपतियों के हित के फ़ैसले लेती रहती है। भारत ही नहीं विदेशों में भी उनके हित में सिफ़ारिशें करती फिरती है। उसे अपने ही देश का भविष्य समझे जाने वाले युवाओं को स्थायी नौकरी देने में किस बात की हिचकिचाहट है। जो सरकार नया संसद भवन बनवा रही हो,सरदार पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा बनवाती हो,प्रधानमंत्री के लिये अत्याधुनिक विशेष विमान ख़रीद सकती हो क्या उसके पास अपने ही देश के उन युवाओं को तनख़्वाह व पेंशन देने के लिये पैसे नहीं जो अपनी जान को हथेली पर रखकर देश की सीमाओं के प्रहरी बनकर देश की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं ?

सरकार को चाहिये कि वह अपने अघोषित एजेंडे लागू करने की ख़ातिर देश के युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करना बंद करे। जो सरकार देश के युवाओं और किसानों के उज्जवल भविष्य के बारे में नहीं सोच सकती उसे जनहितकारी सरकार कैसे कहा जा सकता है। सरकार का फ़र्ज़ तो यह है कि वह अपने शुभचिंतक उद्योगपतियों के हित से पहले देश के युवाओं की समृद्धि व उनके उज्जवल भविष्य के बारे में सोचे व उसके अनुरूप नीतियां बनाये। देश के युवाओं व किसानों का मनोबल टूटने का मतलब है देश का मनोबल टूटना। डॉलर के सामने भारतीय मुद्रा की ऐतिहासिक गिरावट,कमर तोड़ मंहगाई,पेट्रोल डीज़ल गैस के बढ़ते मूल्य,बेरोज़गारी की इन्तहा,आये दिन बेरोज़गारों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं,देश में फैलता जा रहा सांप्रदायिक व जातिवादी वैमनस्य जैसी अनेक बातें पहले ही सरकार की नीयत,नीति व कार्यक्षमता की पोल खोल चुकी हैं। ऐसे में युवाओं की बेचैनी सरकार की एक और बड़ी नाकामी उजागर कर रही है। सरकार की इसतरह की 'कारगुज़ारियों' से एक बार फिर यही सवाल उठता है कि  आख़िर 'इस मुल्क में हर शख़्स परेशान सा क्यों है' ?

                                                                            तनवीर जाफ़री 

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