जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने साक्षी महाराज को नोटिस थमा दिया तो उन्हें दोषी मान लेने में दूसरों को क्या समस्या हो सकती है। नोटिस थमाने का अर्थ ही है कि आप उन्हें दोषी मानते हैं। बेचारे साक्षी महाराज पता नहीं चार बच्चे पैदा करने की सलाह वाले भाषण पर पश्चाताप कर रहे होंगे या अंदर से गुस्से में होंगे। निस्संदेह, कुछ लोगों को यह कदम अच्छा लग सकता है तो कुछ कह सकते हैं कि भाजपा केवल दिखावे के लिए ऐसा कर रही है। पता नहीं भाजपा अध्यक्ष ने यह कदम दिल से उठाया है या फिर मीडिया एवं विपक्ष के हल्लबोल दबाव के कारण। पार्टी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसदों और नेताओं से संभल कर बोलने, अपनी वाणी पर संयम रखने की अपील की है और अगर कोईइसका अनुसरण नहीं करेंगे तो पार्टी उनके खिलाफ कदम उठाएगी।
चलिए, यहां तक मान लेते हैं कि मोदी एवं अमित शाह नेताओं को वाणी संयम बरतने के निर्देश के प्रति सख्ती का संदेश देना चाहते है। किंतु जरा इसे दूसरे नजरिये से समझने की भी कोंिशश करिए। इसके कई पहलू हैं। कई बार मीडिया में कोई बयान जितना सनसनीखेज दिखाई या सुनाई देता और वह हमारे आपके मस्तिष्क पर तत्काल जैसा असर डालता है केवल वही सच नहीं होता। यहां विषय साक्षी महाराज नहीं है। जिस तरह उन्होंने नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया उसे कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता। पर क्या लोकतंत्र में एक व्यक्ति को इतना भी कहने का अधिकार नहीं है कि उसकी चाहत है प्रत्येक दंपत्ति चार बच्चे पैदा करें? यह कौन सा अपराध हो गया? यह इसका पहला पहलू है। आखिर इसंमें ऐसा क्या है जिससे भाजपा की छवि खराब हो जाएगी? इसे वाणी संयम के विपरीत वक्तव्य किस आधार पर कहा जा सकता है? कोई भी व्यक्ति साक्षी महाराज या साध्वी प्राची के कहने से तो चार बच्चे पैदा करने नहीं लगेगा।
तत्काल साक्षी महाराज को कुछ समय के लिए अलग कर दीजिए और फिर इसके एक और महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान दीजिए। एक समय था जब जनसंख्या नियंत्रण पूरी दुनिया की प्राथमिकता थी। पर धीरे-धीरे समाजशास्त्रियों एवं अर्थशास्त्रियों के वर्ग ने ही इसे नकारना आरंभ कर दिया। माल्थस की आबादी विस्फोट के सिद्धांत नकार दिए गए हैं। जनसंख्या नियंत्रण की बाध्यकारी नीति दुनिया में गलत साबित हो रही है। इसी कारण विकसित माने जाने वाले देश बुढ़ों के देश हो गए, उन्हें आर्थिक विकास के काम भारत चीन जैसे देशों के युवाओं से करवाना पड़ रहा है। अब कई देशों में दंपत्तियों को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। आज भारत और चीन जैसे देशों को भविष्य की महाशक्ति कहा जा रहा है तो उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि हमारे पास युवा आबादी विश्व में सबसे ज्यादा है। युवा आबादी का अर्थ उत्साह से काम करने वाला समुदाय। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में चीन की युवा आबादी हमसे कम हो जाएगी और 2035 के बाद भारत सर्वोपरि होगा। यदि परिवार नियंत्रण की बाध्यकारी नीति हमारे पूर्वजों ने स्वीकार की होती तो यह स्थिति होती? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार कहते हैं कि हम 125 करोड़ के देश हैं, यह हमारी सबसे बड़ी ताकत है, इतनी आबादी वाले देश को दुनिया में सिर उठाकर जीना चाहिए, आंख में आंख मिलाकर बातें करनी चाहिए। अगर आबादी इतनी नहीं होती तो वे क्या बोलते? यह प्रश्न भाजपा नेतृत्व से पूछा जाना चाहिए।
जिस बढ़ती आबादी को एक समय भार माना जाता था वह संसाधन है जिसे अब विश्व स्वीकार कर रहा है। समस्या हमारी है कि हमने प्रकृति का अनावश्यक दोहन करके उसे बरबाद किया है, जीवन शैली ऐसी अपना ली है जिसमें प्राथमिकतायें बदल र्गइं हैं, इसलिए भय लगता है कि पता नहीं एक दो से ज्यादा बच्चे होंगे तो उनका लालन पालन कैसे करेंगे। इससे पश्चिम देशों के लिए सामाजिक सांस्कृतिक समस्यायं बढ़ीं। उनके यहां परिवार प्रथा का, समाज की सामूहिकता का लगभग अंत हो गया। यह ऐसा संकट है जिससे उबरने के लिए सारे विकसित देश छटपटा रहे हैं। यही स्थिति हमारे यहां भी हो रही है। आज एक बच्चे को भी क्रेच में डालना पड़ रहा है, क्योंकि माता-पिता के पास उसे देने के लिए समय ही नहीं है। तो यह वर्तमान जीवन प्रणाली का दोष है। हमारा देश भी उन्हीं सामाजिक-सांस्कृतिक विघटन का शिकार हो रहा है जिसने पश्चिम को गिरफ्त में काफी पहले ले लिया। इससे बचने का रास्ता एक ही है कि परिवार नियंत्रण की बाध्यकारी सोच से बाहर आएं।
आप कहीं भी देख लीजिए, एक बच्चा या एक बेटा बेटी पैदा करने वाले परिवार कई प्रकार के संकट का सामना करते हैं। बेटी शादी के बाद ससुराल चली गई, बेटा परिवार लेकर बाहर चला गया, मां बाप अकेले जीवन काटने को विवश। अगर बेटा संवेदनशील है तो उन्हें साथ रखा पर इससे उनका अपना समाज छूट गया। परिवार और समाज दोनों का विघटन सामान्य सांस्कृतिक-सामाजिक संकट नहीं है। मेरे सामने ऐसे लोग आते हैं जो बताते हैं कि ऐसा करके मैने गलती की, क्योंकि मेरे पास कोई विकल्प ही नहीं रह गया है। किसी का बेटा विदेश चला गया और वे अकेले। शहरों में अपराधी तत्व ऐसे परिवारों को निशाना बनाते हैं। बुजूर्गों की हत्यायें हो रहीं हैं। गांवों में ऐसे लोग स्वार्थी तत्वों के निशाने पर होते हैं। उन्हें किसी का सहयोग चाहिए होता है और सहयोग के नाम पर उनका दोहन आम बात है। यदि कोई अकेले भाई है और उसे कुछ हो गया तो उसका परिवार निराश्रित। यदि उसकी पत्नी मर गई तो अकेले उसका जीवन अवसादग्रस्त। अगर दो तीन भाई बहन हैं तो पत्नी चल बसी तो भी बच्चों को बहुत समस्या नहीं। स्वयं उनको भी अनेक मायनों मेें अकेलापन नहीं। अगर वह स्वयं गुजर गया, या उसे कुछ हो गया और परिवार संयुक्त है तो भी उसके बच्चों के लिए ज्यादा समस्या नहीं। वह परिवार का सदस्य है और उसी अनुसार उसका पालन पोषण होता है।
ऐसे और भी पहलू हैं जिनके आधार पर यह साबित होता है कि एक या दो बच्चों की परिवार सीमित रखने की सोच ज्यादातर मायनों में घातक हैं। हम यह नहंीं कहना चाहते कि आप बच्चा पैदा करने की होड़ में पड़ जाइए। लेकिन नियंत्रण की अतिवादी सोच आत्मघाती है। साक्षी महाराज, साध्वी प्राची या संघ परिवार के दूसरे नेताओं के ऐसे वक्तव्यों में सांप्रदायिकता का एक दृष्टिकोण हो सकता है। वे मानते हैं कि मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है और हमारी घट रही है तो एक दिन हम अल्पसंख्यक हो जाएंगे। हालांकि यह सच है कि 1991 से 2011 तक हिन्दुओं की आबादी लगभग 20 प्रतिशत बढ़ी है जबकि मुसलमानों की आबादी 36 प्रतिशत। यह एक सच है। लेकिन इसके आधार पर आबादी बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा भी घातक साबित होगी। दुनिया जिस तरह जाने-अनजाने सांस्कृतिक या धर्मयुद्ध की ओर बढ़ा रही है और हम उसे सारी जुग्गत लगाकर रोकने में सफल नहीं हो रहे हैं उसमें अनेक विचारकों का मानना है कि आबादी की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है।
बहरहाल, ये सारे पहलू हैं और यह मानने का भी कोई कारण नहीं है कि साक्षी महाराज या साध्वी प्राची ने स्वयं ऐसा बोलते समय इतनी गहराई तक सोचा होगा। पर उस वक्तव्य को गलत नहीं कहा जा सकता। साक्षी ने यही कहा कि एक बच्चा हम संतों को दे दो ताकि वह धर्म की, समाज की, देश की सेवा करे, एक बच्चा सीमा की रक्षा में लगे और दो तुम्हारे पास रहे। सेना में जाना अपने वश में नहीं, लेकिन विचार प्रकट करने में क्या समस्या है? यह भी न भूलिए कि यदि आपका एक बच्चा है तो कतई आप उसे समाजसेवी, संस्ंकृतिकर्मी, संन्यासी नहीं बनने देना चाहेंगे। तो देश चलेगा कैसे? गृहस्थ या परिवार जीवन के साथ समाजसेवी, संन्यासी ....सभी समाज के संतुलन और नैतिक मार्गदर्शन के लिए चाहिएं।
भाजपा की दृष्टि से विचार करिए तो वह यह समझ नहीं पा रही कि जो लोग विरोध कर रहे हैं वे केवल विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं, उनके पीछे भी कोई गंभीरता नहीं है। भाजपा ने चाहे जिस मानसिकता से नोटिस जारी किया है, संकेत उसके खिलाफ जाएगा। उसके भारी समर्थकों में साधु संत आदि शामिल है और जिनकी भूमिका उनकी विजय में रही है। वे जिस विश्वास से उसकी ओर लौटे हैं वे उससे फिर से विमुख होना आरंभ करेंगे। यानी यह राजनीतिक दृष्टि से भी उसके लिए आत्मक्षति का कारण बन सकता है।
अवधेश कुमार, ई: 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर. : 01122483408, 09811027208