शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

चीन का कबूलनामा हमारे लिए सबक

अवधेश कुमार

तो चीन ने भी सार्वजनिक तौर पर यह कबूल कर लिया है कि पिछले साल 15-16 जून को पूर्वी लद्दाख के गलवान में हुए संघर्ष में उसके जवानों की भी मौत हुई थी।  न केवल वहां के सरकारी समाचार पत्रों बल्कि चीनी सेना के पत्र में भी इसका जिक्र किया गया है। पीपुल्स डेली और ग्लोबल टाइम्स में इसकी चर्चा करते हुए इन जवानों को मरणोपरांत पदक देने की खबर छपी है । इनके अनुसार केंद्रीय सैन्य आयोग ने काराकोरम पर्वत पर तैनात रहे पांच चीनी सैनिकों के बलिदान को याद किया है और सम्मानित भी किया है। मारे गए चीनी सैनिकों का नामा भी सार्वजनिक किया गया है। ये हैं-  पीएलए शिनजियांग मिलिट्री कमांड के रेजीमेंटल कमांडर क्यूई फबाओ, चेन होंगुन, जियानगॉन्ग, जिओ सियुआन और वांग ज़ुओरन। ग्लोबल टाइम्स ने पीएलए यानी सेना की डेली रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि गलवान खूनी संघर्ष में उसके चार सैनिक मारे गए थे, जबकि एक की मौत गलवान के खूनी झड़प में बचाव कार्रवाई के समय नदी में बहने से हुई थी।

उस संघर्ष में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत 20 जवान शहीद हो गए। भारत ने इसे स्वीकार करने में कभी हिचक नहीं दिखाई। चीन ने देर से अपने सैनिकों के मारे जाने की बात कबूल की लेकिन अब भी वह सच बोलने के लिए तैयार नहीं है। केवल भारत नहीं, दूसरे देशों से आई रिपोर्टों में भी चीनी सैनिकों के ज्यादा संख्या में हताहत होने की बात थी। भारत ने अपनी सेना से प्राप्त जानकारी के आधार पर माना था कि चीन के 40 से अधिक सैनिक गलवान संघर्ष में मारे गए थे।  हाल ही में रूसी सामाचार एजेंसी तास ने भी बताया कि गलवान घाटी झड़प में कम से कम 45 चीनी सैनिक मारे गए थे। तब अमेरिका ने भी अपनी जानकारी के आधार पर यह कहा था  कि भारतीय सैनिकों के साथ झड़प में चीन के भी 40 से ज्यादा जवान मारे गए। और भी कई रिपोर्ट में इसी के आसपास संख्या दी गई थी। जो लोग भारत के लिए एकतरफ़ा जन क्षति की बात कर रहे थे वे अब इतना अवश्य मानेंगे कि हमारे निहत्थे जवानों ने अदम्य वीरता और शौर्य का परिचय दिया। अपनी जानें दी, पर चीनियों को भी छोड़ा नहीं।

हमारे देश में गलवान की खूनी झड़प के बाद से ही एक बड़ा तबका  भारत की रक्षा नीति और चीन से निपटने के तौर तरीकों पर सवाल उठाता रहा है। इनमें चीन का विरोध करने की जगह भारत सरकार की आलोचना ज्यादा है। यह बात अलग है कि परोक्ष रूप से यह आलोचना सरकार की बजाय सेना की हो जाती है। आखिर सेना ही तो सीमा पर मुकाबला  करती है। चीन ने अपने सैनिकों की लड़ाई की चर्चा करते हुए जो कुछ कहा है उन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसमें चीन के केंद्रीय सैन्य आयोग ने अपने अनुसार गलवान झड़प की कहानी बताई है। आयोग ने सभी दिवंगतों को हीरो का दर्जा दिया है। इनमें शिनजियांग मिलिट्री कमांड के रेजिमेंटल कमांडर क्यूई फेबाओ को हीरो रेजिमेंटल कमांडर फॉर डिफेंडिंग द बॉर्डर, चेन होंगजुन को हीरो टु डिफेंड द बॉर्डर, तथा चेन जियानग्रॉन्ग, जियाओ सियुआन और वांग जुओरन को फर्स्ट क्लास मेरिट का दर्जा दिया गया है। इनको पुरस्कृत करते हुए गलवान की कहानी में कहा गया कि नियंत्रण रेखा पर भारत ने ही बड़ी संख्या में जवानों को तैनात किया था। यह भी कहा गया कि भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों को पीछे हटाने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान चीनी सैनिकों ने स्टील ट्यूब, लाठियों और पत्थरों के हमलों के बीच देश की संप्रभुता की रक्षा की। तो चीनी सेना उस खूनी झड़प के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहा है। उसने कहा कि अप्रैल 2020 के बाद से विदेशी सेना यानी भारतीय सेना ने पिछले समझौते का उल्लंघन किया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लघंन कर सड़क और पुलों का निर्माण किया। जानबूझकर सीमा पर अपनी स्थिति को बदलते हुए संवाद के लिए भेजे गए चीनी सैनिकों पर हिंसक हमला किया। उसे अपनी सेना का महिमामंडन करना है। तो उसने कहा कि मई 2020 में भारतीय सेना के उकसावे का सामना करते हुए चेन जियानग्रॉन्ग और दूसरे चीनी सैनिकों ने संघर्ष किया और उन्हें लौटने के लिए मजबूर किया। इसमें चेन डायरी का एक अंश भी उद्धृत किया गया है। इसके अनुसार जब दुश्मनों ने हमारा सामना किया, तो हममें से कोई भी नहीं भागा। उनके पत्थर के हमलों के बीच, हमने उन्हें दूर तक धका दिया।


हालांकि यह सफेद झूठ है। जैसा हम जानते हैं गलवन घाटी में झड़प उस वक्त हुई थी जब नियंत्रण रेखा पर उपस्थिति की निर्धारित, मान्य और परंपरागत जगह से चीनी सेना के आगे आ जाने के बाद भारतीय सेना उनको पीछे हटने के लिए कहने गई थी। इसी दौरान चीनी सैनिकों ने कंटीले तार लगी हुई लोहे की रॉड, पत्थरों आदि से भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया था। यह आमने-सामने की अत्यंत ही भयानक लड़ाई थी। इसमें हमारे कर्नल संतोष बाबू सहित 20 जवान शहीद हो गए थे। वहां से जीवित वापस लौटे जवानों ने इसकी पूरी कहानी बयान की।  कैसे चीनी सैनिकों ने धोखा देकर बर्बर और वहशी तरीके से उन पर हमला किया.... इन लोगों ने किस तरह से उसका जवाब दिया... कैसे उनको पीछे हटने को भागने को मजबूर किया और कैसे उनके सैनिक भी हताहत हुए इनकी सारी कहानी जवानों ने बताई। इनका महत्व होते हुए भी भारतीय के नाते मुख्य बात दूसरी भी है। हम अपने ही देश पर आरोप लगा रहे थे कि चीन दुस्साहस करके अपने क्षेत्र से आगे बढ़ता रहा, समझौते का उल्लंघन करता रहा और हमने उसको रोकने और पीछे धकेलने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। चीनी सेना द्वारा अपने सैनिकों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में जो विवरण दिया गया है वह ठीक दूसरी बात करता है। वह कहता है कि भारत ने ही ऐसा किया। यही महत्वपूर्ण बात है। चीन पहले यह मानने को ही तैयार नहीं था कि उसके सैनिक भी मारे गए हैं। इसके आधार पूरी तस्वीर ऐसी बनाई गई मानो चीन बेरोकटोक हमारी सीमा में घुस गया, हमारे सैनिकों पर हमला कर दिया, उनको मारा और उसे जवाब नहीं मिला। अब जब समझौते के साथ चीन की सेना और लाव लश्कर मई 2020 की स्थिति में जा रही है तथा प्रक्रिया जारी रहने के बीच जो कुछ सच आ गया है उनसे साफ है कि भारत ने हर स्तर पर चीन को कई बार आगे बढ़ कर करारा जवाब दिया। इन जवाबों का ही परिणाम है कि योजनाबध्द धोखेबाजी की रणनीति की विफलता के बाद चीन पीछे हटने को मजबूर हुआ है।

चीन चाहे आर्थिक और सैन्य स्तर पर जितना शक्तिशाली हो जाए विश्व में उसकी साख और विश्वसनीयता भारत के समक्ष अत्यंत निचले पायदान पर है। भले चीन के विरुद्ध कोई देश खुलकर भारत के साथ खड़ा न हो  विश्व के अधिकतर देशों ने भारत की बातों पर विश्वास किया। जब चीन आज पांच सैनिकों के मारे जाने की बात कर रहा है तब भी विश्व समुदाय का प्रश्न यही है कि आपने इतनी देर क्यों की? चीन के इस खुलासे को संपूर्ण सच मानने के लिए दुनिया तैयार नहीं है। हम भारत के लोगों के लिए यह एक सबक है। यानी अपने देश, अपनी सेना की ताकत पर विश्वास करें... आत्महीनता से ग्रसित नहीं हो । चीन जैसे देशों से हमारा टकराव आज का नहीं है और ना यह आसानी से खत्म होने वाला है। उससे निपटने के लिए जिस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है वह है अपने देश पर विश्वास और आपसी एकजुटता। हम तात्कालिक घटनाओं के एकपक्षीय आकलन पर विश्वास कर अपने देश, अपनी सरकार अपनी सेना को कटघरे में खड़ा करने की होड़ मचाने से बचें। अगर थोड़ा धैर्य रखें तो परिणाम वैसा ही आएगा जैसा हम चाहते हैं। आज चीनी सैनिक ज्यादातर स्थानों से अपने पूर्व स्थान तक वापस जा चुके हैं, जहां हैं वहां से वापस जा रहे हैं और यह मान रहे हैं कि उनके सैनिक भी मारे गए। भले ही कम संख्या बताकर इसे उन्होंने कबूल कर लिया है। भारत की सही रणनीति की सफलता का इससे बेहतर प्रमाण और कुछ नहीं हो सकता है।

अवधेश कुमार, ईरू30, गणेश नगर, पांडव नगर कौम्प्लेक्स, दिल्लीरू110092, मोबाइलरू9811027208, 8178547992


शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

दिशा रवि की गिरफ्तारी पर बावेला दुर्भाग्यपूर्ण

अवधेश कुमार 

दिशा रवि की गिरफ्तारी क्या हुई हमारे नेताओं को जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया। जरा नजर उठा कर देख लीजिए। ट्वीट दर ट्वीट गिरफ्तारी के विरोध और दिशा रवि के समर्थन में आ गया। पी चिदंबरम देश के गृह मंत्री रहे है। उनके कार्यकाल के दौरान देश में अनेक गिरफ्तारियां आतंकवाद के संदेह में हुईं। इस तरह कितने नेताओं ने सवाल उठाया कि फलां उम्र के या फलां स्तर के किसी व्यक्ति से देश को खतरा कैसे हो सकता है? अगर पूर्व गृह मंत्री कह रहे हैं कि एक कॉलेज की छात्रा से देश को खतरा है तो देश कमजोर आधार पर खड़ा है तो मान लीजिए हमारी पूरी राजनीतिक व्यवस्था उससे कहीं ज्यादा दूषित और भ्रमित है जितनी हम कल्पना करते हैं। लेकिन इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। पिछले डेढ़ दो दशकों से जिस भारत को हम देख रहे हैं उसमें हमेशा आतंकवादियों, देशद्रोहियों, हिंसक समूहों से जुड़े लोगों, माओवादियों, अलगाववादियों आदि के समर्थन में हर स्तर पर बड़ा समूह खड़ा होता रहा है। अगर. ऐसा ना हो तो जरुर आश्चर्य व्यक्त करना चाहिए। इसलिए दिशा रवि की गिरफ्तारी एवं कुछ अन्य सोदिग्धों के खिलाफ कार्रवाई पर हो रही विरोधी प्रतिक्रियाओं को भारत की स्वाभाविक प्रकृति मानकर चलना होगा। 

हालांकि राहुल गांधी, प्रियंका बाड्रा, जयराम रमेश, पी चिदंबरम, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव, शशि थरूर, ममता बनर्जी आदि नेताओं को इस बात का जवाब भी देना चाहिए कि दिल्ली पुलिस द्वारा छानबीन के आधार पर सामने लाए जा रहे तथ्य सही हैं या नहीं? दिशा ने इतना तो न्यायालय में भी स्वीकार किया है कि उसने टूलकिट में हल्का संपादन किया था। निकिता ने भी कई बातें स्वीकार की है। विडम्बना देखिए कि इमरान खान की ओर से आया ट्वीट भी दिशा रवि का समर्थन करता है। खालिस्तान की विचारधारा और हिंसक गतिविधियों में पाकिस्तान की सर्वप्रमुख भूमिका रही है। उसे तो समर्थन करना ही है। इस मामले में तो उसकी संलिप्तता की गंध भी मिल रही है। यह सामान्य सिद्धांत है कि न्यायालय जब तक किसी को दोषी करार न दे हम उसको दोषी नहीं मानते। लेकिन जो कुछ प्रत्यक्ष दिख रहा है और पुलिस छानबीन से भी जैसे तथ्य सामने आ रहे हैं उनकी निष्पक्ष विवेचना तो की ही जाएगी। दिल्ली पुलिस ने पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को ग्रेटा थनबर्ग द्वारा किसान आंदोलन को लेकर शेयर की गई टूल किट के मामले में मुख्य भूमिका निभाने वालों में से एक मानकर गिरफ्तार किया। निकिता जैकब और शांतनु जैसे कई लोगों की संलिप्तता सामने आ चुकी है। इन दोनों को न्यायालय ने तत्काल गिरफ्तारी से राहत दे दी है, लेकिन यह अंतिम नहीं है। अभी पूरे मामले में अनेक गिरफ्तारियां होंगी। जैसे-जैसे परतें खुलेंगी अनेक छिपे हुए चेहरे सामने आएंगे और इसी के साथ विरोधी प्रतिक्रियाएं भी हमको सुनने को मिलेगी। 


दिल्ली पुलिस का कहना है कि दिशा रवि, निकिता और शांतनु ने ही स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग को टूल किट मुहैया कराई थी। दिशा रवि ने एक वॉट्सएप ग्रुप शुरू किया था जिसमें टूलकिट डॉक्युमेंट तैयार करने के लिए कई लोगों के साथ समन्वय किया गया था। पुलिस ने जो तथ्य सामने लाए हैं उनके अनुसार टूलकिट को निकिता जैकब, शांतनु और दिशा रवि ने साथ मिलकर तैयार किया था। इस गूगल डॉक्युमेंट को शांतनु की ओर से बनाई गई ईमेल आईडी के जरिए तैयार किया गया था। 26 जनवरी को लाल किला की हिंसा सबको नागवार गुजरा। हिंसा न रोक पाने के लिए सरकार को आप जिम्मेदार बता सकते हैं लेकिन हिंसा की साजिश के पीछे के संदिग्ध चेहरे, जिनकी संलिप्तता और सक्रियता के कुछ स्पष्ट सबूत मिले हैं, अगर गिरफ्तार होते हैं तो आपको समस्या है। इनसे पूछा जाना चाहिए कि खालिस्तान का झंडा उठाने वाला भारत विरोधी पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के साथ काम करना या सक्रिय संपर्क रखना देश के विरुद्ध अपराध माना जाएगा या नहीं? अगर माना जाएगा तो फिर दिशा रवि, निकिता और शांतनु का उसके साथ संपर्क सामने है। पोएटिक फाउंडेशन का सह संस्थापक खालिस्तान की विचारधारा फैलाने का काम करने वाले भारत विरोधी मो धालीवाल के साथ निकिता, दिशा और शांतनु की जूम मीटिंग भारत में सकारात्मक योगदान के लिए तो नहीं हुआ होगा। इसमें 70 लोग शामिल थे। धालीवाल खुलेआम कहता है कि मैं खालिस्तानी हूँ और खालिस्तान आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। यह प्रश्न तो उठेगा कि पर्यावरण एक्टिविस्ट खालिस्तान समर्थक के साथ मीटिंग में क्या रहे थे ? इसका एजेंडा 26 जनवरी के विरोध को वैश्विक करना था। 

 टूलकिट भेजने वालों की सूची में भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी और पीटर फ्रेडरिक का नाम भी है। भिंडर खुलेआम खालिस्तान की बात ही नहीं करता, उसके लिए हिंसा की भी बात और प्रयास करता है। ये दोनों आईएसआई के मोहरे हैं और हर सरकार में इनसे सचेत रहने की खुफिया रिपोर्ट रहीं हैं। पीटर को भी यूपीए सरकार ने ही रडार पर रखा और भिंडर को भी। क्या यह सब गहरी साजिश की ओर संकेत नहीं करता? दिशा ने ही ग्रेटा थनबर्ग को बताया कि उनका टूलकिट सार्वजनिक हो गया है। इसके बाद ग्रेटा में उस टूलकिट को डिलीट किया था। दिशा ग्रेटा बातचीत सामने आया है। दिशा ग्रेटा को कह रही है कि मुझे आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी निरोधक कानून या यूपीए का सामना करना होगा। दिशा ने ह्वाट्सऐप ग्रूप भी डिलीट कर दिया। जिस टूल किट में किसान विरोध प्रदर्शन का लाभ उठाकर उसको किस ढंग से प्रचारित करने, आक्रामक बना देने की पूरी कार्ययोजना हो उसके निर्माता, उसका संपादन करने वाले, फॉरवर्ड कर संबंधित लोगों तक पहुंचाने वाले तथा जारी होने के बाद उस पर नजर रखने वाले दोषी नहीं हो सकते ऐसी धारणा भारत में ही संभव है। देश विरोधी संगठन भी तात्कालिक रूप से अपना निशाना सरकारों को ही बनाती हैं। पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन, आस्क इंडिया ह्वाई डॉट कॉम जैसे वेबसाइट भले सतही तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार विरोधी अभियान चलाते दिखते हों, आप गहराई से इनका स्वर देखेंगे तो यह भारत विरोध में परिणत हो जाता है। आंतरिक राजनीति में सरकार से मतभेद, उसका विरोध स्वाभाविक है। सीमा के बाहर सरकार ही देश की प्रतिनिधि है। 

कोई भी देश अगर अंदर बाहरी शक्तियों या देश विरोधी शक्तियों के विरुद्ध एकजुट रहे तो उसका बाल बांका असंभव है। देश विरोधी, हिंसक अलगाववादी समूह या व्यक्ति तभी सफल होते हैं जब देश के अंदर से साथ मिलता है। कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा आंदोलन हमारा अपना मामला है। हम उसके समर्थक और विरोधी हो सकते हैं। भारत विरोधी शक्तियां उसका लाभ उठाएं, विदेशों के ऐसे संगठनों से उनका संपर्क रहे, उनके लिए काम करें, उनकी तैयारी में योगदान करें तो फिर यह नहीं देखा जाएगा कि ऐसा करने वाले की उम्र, जाति, लिंग क्या है? विश्व भर में ना जाने 18 वर्ष से कम उम्र के कितने आतंकवादी भीषण आतंकवादी घटनाओं में संलिप्त पाए गए हैं। जम्मू कश्मीर में ही पाकिस्तान से घुसपैठ कराए गए कई आतंकवादी किशोर उम्र के मिले हैं। तो क्या उनको आतंकवादी नहीं माना जाएगा? क्या उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी? दिशा तो वैसे भी 22 वर्ष की हैं। वो ग्रेटा थनबर्ग द्वारा स्थापित संगठन  फ्राईडेज फॉर फ्यूचर  की भारत प्रमुख हैं। पर्यावरण के झंडाबरदार के रूप में उनके लेख प्रकाशित होते हैं, बयान सामने आते हैं। देश - विदेश में व्यापक संपर्क रखने वाली, सक्रिय रहने वाली एक युवा लड़की देश विरोधी अपराध कर ही नहीं सकती ऐसे मानने वालों की सोच पर तरस आता है। कभी नहीं भूलना चाहिए कि न्यायालय ने इनको पुलिस रिमांड दिया है। अगर केस कमजोर होता है तो न्यायालय सामान्यता न्यायिक हिरासत में संदिग्ध को भेजती है। इनसे पूछताछ के बाद आंदोलन का आड़ लेकर की जा रही साजिशों के और तथ्य सामने आ सकते हैं। 

वास्तव में अब जब यह साफ हो गया है कि किसान आंदोलन की आड़ में देश विरोधी शक्तियां भारत में हिंसा और अराजकता अलगाववाद पैदा करने का षड्यंत्र कर रहीं हैं तो फिर उनके भारतीय हाथों का पकड़ा जाना अपरिहार्य हो चुका है। यह राजनीतिक नहीं, देश की सुरक्षा, एकता अखंडता और संप्रभुता से जुड़ा मामला है। इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए थी। तो राजनीति को नजरअंदाज करते हुए पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को कार्रवाई जारी रखनी चाहिए। उन लोगों का चेहरा सामने आना जरूरी है जो ऐसी साजिशों में संलिप्त हैं। कठोर कार्रवाई से ही ऐसी शक्तियां हतोत्साहित होंगी और भारत के विरोध में सिर उठाने वाले कुछ करने के पहले सौ बार विचार करेंगे। 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कौम्प्लेक्स, दिल्ली रू110092, मोबाइल रू9811027208, 8178547992


शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

खोया तो चीन ने है हमने नहीं

अवधेश कुमार

चीनी सैनिकों का पूर्वी लद्दाख के इलाके में अपने पूर्व निर्धारित एवं मान्य स्थानों की ओर लौटने की सूचना निस्संदेह, तत्काल राहत देने वाली है। पिछले साल जून में गलवान घाटी में भारत के 20 जवानों की शहादत को कौन भारतीय भूल सकता है? उसके बाद पूरे देश में चीन के विरुद्ध आक्रोश का बना माहौल पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। यह ऐसी टीस है जो लंबे समय तक सालेगी और इसके गंभीर मायने हैं। हालांकि धोखे से किए गए बर्बर हमलों का भारतीय जवानों ने भी  मुंहतोड़ जवाब दिया था और सूचना यही है कि उनकी क्षति ज्यादा हुई। यह बात अलग है कि चीन जैसे बंद देश से वहां के मरने वालों जवानों के बारे में कोई खबर बाहर नहीं आ पाई। तनाव इतना बढ़ गया था कि अगस्त-सितंबर में 45 साल बाद भारत-चीन सीमा पर गोलियां चलीं। हालांकि इसकी पहली सूचना 10 फरबरी को चीन की ओर से ही आई। वहां के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव खत्म होने तथा सेना वापसी की औपचारिक जानकारी दी। किंतु भारत के लोगों के लिए इस पर विश्वास करना कठिन था क्योंकि इसके पहले कई बार सहमति होने के बावजूद चीन ने उसका पालन नहीं किया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में सेनाओं के झड़प से पूर्व की स्थिति में जाने के समझौता होने की पुष्टि कर दी। 

बहरहाल, रक्षा मंत्री का यह कहना सही है कि इस समझौते से भारत ने कुछ नहीं खोया है। हालांकि भारत में अब रक्षा-सीमा सुरक्षा सहित विदेश नीति को लेकर भी राजनीतिक दल अपने बयानों और प्रतिक्रियाओं में संयम नहीं बरतते। यही कारण है कि रक्षा मंत्री द्वारा संसद में यह कहने के बावजूद कि हम किसी भी देश को अपनी एक इंच जमीन नहीं लेने देंगे सरकार के इरादे पर प्रश्न उठाया जा रहा है। समझौता के बाद दोनों देशों की जो टुकड़ियां एक-दूसरे के एकदम करीब तैनात थीं वहां से पीछे हटते हुए पूर्व स्थिति में जाएंगी। पैंगोग झील इलाके में चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को उत्तरी किनारे में फिंगर 8 के पूरब की दिशा की तरफ रखेगा। मई के पूर्व वर्षों से यही स्थिति थी। भारतीय सेना फिंगर 3 के पास स्थित स्थायी धन सिंह थापा पोस्ट पर आ जाएगी। पेंगोंग झील के दक्षिण किनारे से भी दोनों सेनाएं इसी तरह की कार्रवाई करेंगी। हां, इसके समय का खुलासा अभी नहीं हुआ है। इसी तरह चीन ने 2020 में दक्षिण किनारे पर जो भी निर्माण किए हैं उन्हें हटाया जाएगा और पुरानी स्थिति कायम की जाएगी। दोनों देश पेंगोंग के उत्तरी इलाके पर पेट्रोलिंग को फिलहाल रोक देंगे। पेट्रोलिंग जैसी सैन्य गतिविधियां तभी शुरू होंगी जब राजनीतिक स्तर समझौता हो जाएगा। सीमा की गहरी समझ तथा चीन एवं भारत की सेनाओं की तैनात स्थिति को समझने वाले जानते हैं कि तत्काल इससे बेहरत समझौता नहीं हो सकता। 

ठीक है कि चीन ने समझौते में जो कहा वह करेगा ही यह निश्चयात्मकता के साथ कोई नहीं कह सकता। राजनाथ सिंह ने भी यही कहा कि उम्मीद है कि गतिरोध से पहले वाली स्थिति बहाल हो जाएगी। कोई नहीं कहता कि चीन के साथ सीमा तो छोड़िए वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी विवाद खत्म हो गया है। उस दिशा में यह पहला कदम है। रक्षा मंत्री ने भी अपने बयान में कहा कि एलएसी पर कुछ पुराने मसले बचे हुए हैं। आगे इस पर बात होगी। लेकिन अभी तो पूरा फोकस पूर्वी लद्दाख में चीन की धृष्टतापूर्ण कार्रवाइयों को खत्म कराने पर था और वही हुआ है। अगर चीनी सैनिक झील के उत्तरी तट पर फिंगर 8 के पूरब की तरफ लौट जाएंगे तथा अप्रैल 2020 के बाद झील के उत्तरी और दक्षिणी तटों पर बनाए गए किसी भी संरचना को नष्ट कर देगा तो फिर इसमें बचा क्या है? सच तो यह है कि चीन ने उत्तरी तट पर जो अग्रिम स्थिति यानी ऐडवांस पोजिशन हासिल किया था उसे छोड़ेगा। तो फिर खोया किसने इसका उत्तर आप आसानी से दे सकते हैं। वास्तव में गलवान की झड़प के बाद चीन ने बड़ी तादाद में इन इलाकों में जवानों को तैनात कर दिया था।  जवाब में हमने भी जबरदस्त तैनाती की और उसी का परिणाम है कि चीन को अपनी पूरी योजना बदलनी पड़ी है। सच तो यही है कि चीन कसमसाकर पीछे हटने को मजबूर हुआ है। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों की पहचान कर हमारी सेनाएं तैनात हैं और इसी कारण भारत की बढ़त है।   

3,488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा अधिकतर जगह जमीन से गुजरती है, मगर पूर्वी लद्दाख में आने वाली करीब 826 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा के लगभग बीच में पैंगोंग झील पड़ती है। यह एक लंबी, गहरी और लैंडलॉक्ड (जमीन से घिरी हुई) झील है। 14 हजार 270 फीट की ऊंचाई पर स्थित 134 किलोमीटर पेंगोंग झील लद्दाख से लेकर तिब्बत तक फैला हुआ है। 604 किलोमीटर क्षेत्र में फैली यह झील कहीं-कहीं 6 किलोमीटर तक चौड़ी भी है। इसमें सम्पूर्ण रेखांकन संभव नहीं नहीं। झील के दो-तिहाई हिस्से पर चीन का नियंत्रण है और शेष भारत के हिस्से आता है।  यहां दोनों देश नावों से पेट्रोलिंग करते हैं। यह एक वीरान दुर्गम पहाड़ियों वाला इलाका है जिनके स्कंध निकले हुए हैं। इन्हें ही फिंगर एरिया कहा जाता है। ऐसे 8 फिंगर एरिया हैं, जहां भारत-चीन सेना की तैनाती है। भारत की नियंत्रण रेखा फिंगर 8 तक है लेकिन नियंत्रण फिंगर 4 तक ही रहा है। भारत की एक स्थायी चौकी फिंगर 3 के पास है। चीन की सीमा चौकी फिंगर 8 पर हैं लेकिन नियंत्रण रेखा के फिंगर 2 तक उनका दावा है। फिंगर 4 में एक समय उसने स्थायी सरंचना बनाने की कोशिश की थी जिसे जिसे भारत की कड़ी आपत्ति के बाद हटा लिया गया। भारत फिंगर 8 तक पैट्रोलिंग करता रहा है मगर यह पैट्रोलिंग पैदल होती है। पिछले साल मई में फिंगर 5 एरिया में दोनों सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। चीन ने अप्रैल-मई से ही फिंगर 4 तक अपनी सेना को तैनात कर रखा था। कहने की आवश्यकता नहीं कि चीन के जवाब में भारत ने भी चोटियों पर भारी संख्या में जवान तैनात कर दिए। 

जिस तरह के प्रश्न भारत में उठ रहे हैं वैसा चीन में नहीं उठ सकता। मूल बात है अपने देश की क्षमता को पहचानना और विश्वास करना। प्रमुख देशों ने भी पूर्वी लद्दाख से लगी नियंत्रण रेखा पर चीन से निपटने में भारत की दृढ़ता का लोहा माना है। चीन ने भी कल्पना नहीं की थी कि काफी विचार-विमर्श, योजना और सैन्य तैयारी से दिए गए धोखे के खिलाफ  भारत इस तरह डटकर मरने-मारने की अंतिम सीमा तक चला जाएगा। भारत ने जिस तरह सेना के सभी अंगों को सक्रिय किया, आकाश से लेकर धरती और पानी में जैसी जबरदस्त मोर्चाबंदी की उसकी उम्मीद दुनिया में किसी देश को नहीं थी। आज चीन की पूरी योजना जिसे हम साजिश मानते हैं, विफल हो चुकी है। भारत तो जवाब देने के लिए मजबूर था। उनको सबक देने के लिए जवाबी कार्रवाई में अपनी तैनाती की। वे हट जाएं तो हमें वापस पूर्व स्थिति में जाना ही है। वे बात चाहते थे लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि पूर्व स्थिति बहाल होने के 48 घंटे के अंदर फिर बातचीत शुरु होगी और उन्हें मानना पड़ा। बतचीत में भी भारत ने स्पष्ट किया कि समस्याओं का समाधान तीन आधारों पर हो सकता है।  एक, दोनों देश नियंत्रण रेखा को मानें और उसका आदर करें। यानी गलवान का अपराध और विश्वासघात दोबारा न हो। दो, कोई भी देश वर्तमान स्थिति बदलने की एकतरफा कोशिश न करे। तथा तीन, दोनों देश सभी समझौतों को पूरी तरह मानें और पालन करें। 

वास्तव में भारत ने चीन के साथ सीमा व्यवहार में डोकलाम के समय से गलवान तक जिस तरह का कूटनीतिक, सैन्य और राजनीतिक आत्मविश्वासपूर्ण व्यवहार किया है उसने विश्व के बड़े-बड़े रक्षा विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया। चीन को भी भारत के साथ सीमा और सैन्य व्यवहार पर अपनी पूरी रणनीति नए सिरे से बनाने को विवश होना पड़ रहा है। वर्तमान समझौता उसी की परिणति है। इसमें खोने के लिए केवल चीन के पास ही कुछ था। चीन के साथ सीमा विवाद इतिहास की भूलों की देन है। चीन जैसा दुष्ट राष्ट्र कभी इसे सुलझाना नहीं चाहता, क्योंकि वह लाभ की स्थिति में है। 1962 के युद्ध का एकतरफा अंत उसने अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद कर दी। उसका राष्ट्रीय लक्ष्य हर मायने में विश्व का सर्वशक्तिमान और सर्वाधिक प्रभाव विस्तार वाला देश बनना है। वह जो कुछ कर रहा है उसी लक्ष्य के अनुरुप। भारत के लिए आवश्यक है कि हम राजनीतिक मतभेद को परे रखकर उसके लक्ष्य को समझते हुए अपनी रक्षानीति के साथ कूटनीति की जवाबी तैयारियों और कार्रवाइयों के प्रति एकजुटता दिखाएं। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइल-9811027208, 8178547992


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