शनिवार, 12 अप्रैल 2014

अनुचित अहितकर बहस

अवधेश कुमार

राजनीति में प्रतिस्पर्धियों की आलोचना, उनकी कमजोरियों पर हमला, उनके गलत आचरण को उजागर करना......आदि सामान्य स्थितियां हैं। अगर विपक्षियों की आलोचना निंदा न हो तो फिर राजनीति में दलीय भेद तो खत्म होगा ही, जनता को भी सही गलत का फैसला करने में कठिनाइयां आएंगी.....यानी कुल मिलाकर सही जनमत निर्माण नहीं हो सकेगा। लेकिन राजनीति की एक मर्यादा भी है। हम आलोचना या आचरण के किन पहलुओं को निशाना बनाएं। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के वैवाहिक जीवन को जिस तरह राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाया गया है, विरोधियों ने उसकी जिस तरह निंदा की है ....और चुनावी मुददा बनाने की कोशिश की है ...उसे किसी दृष्टि से राजनीति की मर्यादा के अंदर नहीं माना जा सकता है। मोदी ने पहली बार अपने नामांकन पत्र में पत्नी का नाम लिखा है। यह प्रश्न उठाया गया है कि आखिर विधानसभा चुनावों में उनने इसका जिक्र क्यों नहीं किया? हालांकि हर चुनाव में मोदी के विवाह को लेकर प्रश्न उठाया जाता रहा है और मोदी ने कभी इसका जवाब नहीं दिया, पर पूरे देश को मीडिया के माध्यम से यह सच पता चल चुका था कि उनके माता पिता ने कम उम्र में शादी कर दी, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया और फिर संघ के प्रचारक बन गए। उसके बाद से उनका पत्नी से कोई संबंध नहीं रहा। 

इस आधार पर कहा जा सकता है कि भले मोदी ने औपचारिक तौर पर पहली बार इसे स्वीकार किया है लेकिन यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं है। विपक्षियों का यह तर्क कि, जो एक पत्नी की जिम्मेवारी नहीं उठा सकता वह देश की जिम्मेवारी क्या उठाएगा अनर्गल प्रलाप के अलावा कुछ नहीं है। मोदी की क्षमता पर प्रश्न उठाना, उनकी नीतियों को कठघरे में खड़ा करना ......उनकी विचारधारा का विरोध करना एक बात है लेकिन वैवाहिक जीवन से दूर हो जाने को अक्षमता का आधार बनाना तो हमारी राजनीति के गिरते मानसिक स्तर को ही प्रमाणित करता है। उनके भाई ने यह बयान जारी कर दिया है कि हमारे माता-पिता अनपढ़ और गरीब थे, जिनने बचपन में ही मोदी का विवाह कर दिया। मोदी के अंदर देशभक्ति की भावना वे समझ नहीं सके....। जो जानकारी हमार पास है उसके अनुसार 6 वर्ष की उम्र में उनका लग्न हुआ और उनकी शादी तब हुई जब बड़े भाई की शादी हो रही थी। उनके पिता कहते थे कि यह संन्यासी बन जाएगा, इसलिए शादी करके सामाजिक बंधन में डालने की कोशिश की। मोदी की पत्नी कहतीं हैं कि उनने मुझे समझाया कि वे पारिवारिक जीवन में नहीं पड़ सकते, देश का काम करना है, तुम भी पढ़ो और कुछ करो। संघ की विचारधारा से असहमति हो सकती है, लेकिन वहां भी जो प्रचारक बनते हैं वे देशभक्ति की भावना से ही। उस भावना की उत्पेरणा में न जाने कितने लोनों ने अपने पारिवारिक जीवन का परित्याग कर दिया। दूसरे विचारधारा और संगठनों में भी ऐसे लोगों की कम संख्या नहीं है जो कि देश और समाज की सेवा की भावना पर अपने निजी पारिवारिक जीवन की बलि चढ़ा देते हैं। इनमें ऐसे लोग हैं जो कानूनी तलाक नहीं देते....लेकिन उनका संबंध शत-प्रतिशत विलगाव की ही होता है। इसके पीछे कई बार परिवार से विद्रोह की भावना होती है। यानी परिवार ने आपकी इच्छा के विरुद्ध शादी कर दी, जिसे उस समय आपने मजबूरी में मान लिया लेकिन कुछ समय बाद आप उनसे नकार देते हैं। 

मोदी या कोई और यदि उसके बाद बिना तलाक लिए दूसरी शादी करके पारिवारिक जीवन जिए या बिना शादी के किसी महिला के साथ अंतरंग संबंध बनाए तो उसकी जितनी निंदा हो सकती है की जानी चाहिए। हालांकि आजकल वैसे लोगों को भी समाज स्वीकार रहा है। मोदी के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। वे प्रचारक रहे और फिर उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि यह सवाल एक दिन उनके सामने इतना बड़ा विवाद बनकर खड़ा हो जाएगा। वास्तव में विवाद से तथा विरोधियों द्वारा नामांकन को कानूनी प्रक्रिया में घसीटने से बचने के लिए ही मोदी ने ऐसा लिखा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी यह विवाद उच्चतम न्यायालय में गया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मामला चुनाव आयोग का है, इसलिए उसके पास ही ले जाया जाए। आयोग ने तब एक आदेश दिया कि उम्मीदवार कोई भी काॅलम खाली नहीं छोड़ सकता। इसके बाद ऐसा करना मोदी की मजबूरी हो गई। 

हालांकि जो लोग इसे मुद्दा बना रहे हैं उनमें से कोई यशोदा बेन से मिलकर उनकी भावना जानने की भी कोशिश नहीं की। बिना उनकी भावना जाने उनके अधिकारों के प्रति इनकी प्रदर्शित संवेदना राजनीति के अलावा और कुछ नहीं। अभी तक कुछ पत्रकारों ने यशोदा बेन से मुलाकात की जो पहले शिक्षिका थीं और अब सेवानिवृत्त हो चुकी हैं। उनने कभी मोदी से नाराजगी की बात नहीं कही, कभी यह नहीं कहा कि उनके साथ अन्याय हुआ, बल्कि हमेशा उनके लिए शुभकामनाएं दीं। हां, यह अवश्य स्वीकार किया कि उनका पिछले करीब 50 वर्षों से कोई संपर्क नहीं है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में ऐसे असंख्या वाकये हैं। आज तो इसे शहरी भारतीय समाज में सहज मान लिया गया है कि अगर पति पत्नी के संबंध सामान्य नहीं रह सकते तो फिर अलग हो जाना चाहिए। तलाक की संख्या भारत में लगातार बढ़ रहीं है। जब मोदी की शादी हुई उस समय तलाक के बारे में आम समाज को पता भी नहीं था। बहुत सारे लोग पत्नियों को छोड़कर दूसरी शादी भी कर लेते थे और मामला न्यायालय तक नहीं जाता था। महिला पूरा जीवन कष्ट में गुजारती थी। ऐसे अन्याय के प्रति समाज भी केवल सहानुभूति प्रकट करता था या मध्यस्थता करके रास्ता निकालने की कोशिश करता था। आज भी ऐसी स्थिति पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। 

हम सब जानते हैं कि मोदी का मामला इन सबसे अलग है। इसे वैसे ही कहना चाहिए कि जबसे भाजपा का उभार हुआ हर चुनाव के पूर्व अटलबिहारी वाजपेयी पर यह आरोप लगता था कि उनने अंग्रेजों की मुखबिरी की और स्वतंत्रता सेनानियों को पकड़वाया तथा चुनाव संपन्न होते ही आरोप खत्म हो जाता था। उसका असर कभी वाजपेयी समर्थकों या मतदाताओं पर पड़ा हो, इसका कोई प्रमाण नहीं मिला। इस पृष्ठभूमि में विचार करें तो यह मानना कठिन है कि विरोधियों को इसका चुनाव लाभ मिलेगा या मोदी या भाजपा की चुनावी संभावना इससे प्रभावित होगी। जाहिर है, जो लोग इसे उठा रहे हैं वे अपना समय नष्ट कर रहे हैं। यह राजनीति में चरित्र हनन भी माना जाएगा। आश्चर्य की बात देखिए कि इसमें ऐसे लोग भी हैं जो यह तर्क देते हैं कि किसी की निजी जिन्दगी में तांक झांक नहीं करनी चाहिए। स्वयं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, जो इस मामले पर मुखर रहे हैं, वे भी न जाने कितनी बार कह चुके हैं कि निजी जीवन को हम मुद्दा नहीं बनाते। इस मामले में उनका और ऐसे लोगों का सिद्धांत कहां गया?

वस्तुतः हमारी राजनीति के लिए और सम्पूर्ण सार्वजनिक जीवन के लिए यही उचित होगा कि ऐसे मामले को कतई तूल न दिया जाए। लोगों के निजी जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग होते हैं, जिनके पीछे कई प्रकार की विवशताएं, भावनाएं होतीं हैं उनको मुद्दा बनाने से असली मुद्दे नेपथ्य में चले जाते हैं और माहौल अशोभनीय अश्लील बनने लगता है। जिनने दुष्टता से पत्नी का त्याग किया, उसे उत्पीड़ित किया उनके खिलाफ अवश्य आवाज उठे। इसके लिए महिलाओं की सुरक्षा में कानूनांे के भी सख्त हथियार खड़े कर दिए गए हैं। वैसे महिलाओं द्वारा भी पुरुषों के साथ अन्याय व उत्पीड़न के सच्चे मामले काफी हैं किंतु यह अलग से विचार का विषय है। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह कि राजनीति मंे ऐसे लोगों के आने का रास्ता खुला रहना चाहिए जिन्होंने सेवा की भावना से परिवार का परित्याग किया हो। इनमें महिला और पुरुष दोनों शामिल हैं। मोदी के वैवाहिक जीवन को लेकर उठाया गया विवाद इन सभी दृष्टियों से अनुचित और अहितकर है। 

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर काॅम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208 


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