शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

ट्रंप की यात्रा से भारत अमेरिका संबंधों को नया आयाम

 

अवधेश कुमार

अगर दिल्ली की भयानक हिंसा नहीं होती तो कुछ समय तक अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दो दिवसीय यात्रा इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में होती। यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण दौरा था जिसे अमेरिका की तरह विदेशी मीडिया में पूरा कवरेज मिला। भारत से लौटकर अमेरिका की धरती पर कदम रखते ही ट्रंप ने ट्वीट किया कि उनकी यात्रा बेहद सफल रही। भारत एक महान देश है। वास्तव में यह केवल ट्रंप की दृष्टि से ही नहीं भारत की दृष्टि से भी शत-प्रतिशत सफल यात्रा रही। इसके आलोचक कह सकते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो हथियार बेचने आए थे तथा तीन अरब डॉलर से ज्यादा यानी करीब 21.5 हजार करोड़ रुपए का रक्षा सौदा करके तथा भविष्य के सौदों की नींच डालकर चले गए। इस तरह के एकपक्षीय आकलन पर टिप्पणी करने की आश्यकता नहीं। जो लोग भारत अमेरिका संबंधों पर नजर रख रहे हैं वे जानते हैं कि अमेरिका से सी-हॉक हेलिकॉप्टरों को खरीदने की चर्चा लंबे समय से जारी थी। इन सौदे में अमेरिका से 2.6 अरब डॉलर की 24 एमएच 60 रोमियो हेलिकॉप्टर तथा 80 करोड़ डॉलर का छह एएच 64 ई अपाचे हेलिकॉप्टर शामिल है। यदि ट्रपं भारत नहीं आते तब भी यह सौदा होना ही था। यह भी न भूलें कि अमेरिका भारत को मिसाइल डिफेंस शील्ड भी बेचने की कोशिश कर रहा है, ताकि वह रूस की एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली को भारत में आने से रोक सके। भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया है। भारत रुस से खरीदे जाने के निर्णय पर कायम है। 

वास्तव में ट्रंप की यात्रा में अमेरिका भारत रक्षा साझेदारी महत्वपूर्ण पहलू जरुर था, लेकिन इसका आयाम काफी विस्तृत था। आप साझा घोषणा पत्र तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी साझा पत्रकार वार्ता तथा उसके बाद मौर्या होटल में ट्रंप की अकेली पत्रकार वार्ता को याद करिए, आपको आभास हो जाएगा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते कितने विश्वसनीय और सहज धरातल पर आ गए हैं। उनकी उपस्थिति में दिल्ली हिंसा आरंभ हो चुकी थी। पत्रकार वार्ता में उनसे यह सवाल भी पूछा गया लेकिन उन्होंने बिना हिचक इसे भारत का आंतरिक मामला बता दिया। नागरिकता संशोधन कानून पर भी उनसे सवाल किए गए। उन्होंने उसका जवाब भी यही दिया और कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रधानमंत्री से हमारी बात हुई है। भारत में 20 करोड़ मुसलमान रहते हैं जिनको पूरी धार्मिक स्वतंत्रता है। मोदी स्वयं धार्मिक व्यक्ति हैं और धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है। ट्रंप ने कहा कि मैं कहना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी मजबूती से काम कर रहे हैं। अगर आप पीछे मुड़कर देखें तो भारत ने धार्मिक स्वतंत्रता के लिए कड़ी मेहनत की है। उनके भारत आने के पूर्व जिस तरह की टिप्पणियां आ रहीं थीं उनसे यह निष्कर्ष निकाला जाने लगा था कि वे नागरिकता कानून से लेकर उसके विरोध में हो रहे धरने तथा धार्मिक स्वतंत्रता पर मोदी से खरी-खरी बात करेंगे। ऐसी अपेक्षा करने वाले भारत निंदकों को ट्रपं ने पूरा निराश किया। तभी तो डेमोक्रेट की ओर से राष्ट्रपति के उम्मीदवार बर्नी सेंडर्स सहित कई सीनेटरें ने ट्रंप की आलोचना की है। आखिर वहां भी भारत सरकार विरोधी लौबी काम कर रही है। 

सबसे निराशा तो पाकिस्तान को हुई होगी जो नजर लगाए हुए था कि जम्मू कश्मीर पर ट्रंप कुछ बोल दें। जैसा विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने बताया ट्रंप-मोदी वार्ता के दौरान जम्मू कश्मीर को लेकर चर्चा इस क्षेत्र के सकारात्मक घटनाक्रमों पर केंद्रीत रही। हमने बताया कि वहां चीजें सही दिशा की ओर बढ़ रही हैं। हाल ही में, राजनयिकों के दो समूह जम्मू और कश्मीर की स्थिति देखने के लिए पहुंचे, इनमें भारत में अमेरिका के राजदूत केनेथ जस्टर भी शामिल थे। ट्रम्प ने अपनी पत्रकार वार्ता में स्पष्ट किया कि मैंने कश्मीर मामले पर मध्यस्थता को लेकर कुछ नहीं कहा। कश्मीर निश्चित ही भारत और पाकिस्तान के बीच बड़ा मसला है। वे इस पर लंबे समय से काम कर रहे हैं। ट्रपं ने सीमा पार आतंकवाद पर भारत की भावना को समझने की बात की। हालांकि उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ वैसा कड़ा वक्तव्य नहीं दिया जो आम भारतीय चाहते थे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से भी उनके अच्छे संबंध हैं और वे सकारात्मक तरीके से आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। आतंकवाद पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे भारत के साथ हैं। बेशक, अमेरिका तालिबान समझौता में पाकिस्तान का साथ अमेरिका को मिल रहा है, इसलिए ट्रंप उसके खिलाफ ज्यादा कड़ा वक्तवय नहीं दे सकते थे। यह समझौता तथा अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी हमारे लिए चिंताजनक है और यह मुद्दा बातचीत में उठा। हमने अपनी चिंता से ट्रंप को अवगत कराया है और आने वाले समय में पता चलेगा कि उसका परिणाम क्या आया।  

जैसा विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने बताया वार्ता के दौरान मूलतः पांच मुद्दों सुरक्षा, रक्षा, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और दोनों देशों की जनता के स्तर पर संपर्क पर बातचीत हुई। इसमे वैश्विक परिप्रेक्ष्य और खास कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संपर्क का विषय भी सामने आया और पाकिस्तान की भी चर्चा हुई। भारत-अमेरिका ने नारकोटिक्स पर कार्य समूह बनाने का फैसला किया। एच1बी वीजा का मुद्दा उठाया गया। भारत की दृष्टि से ऐसा कोई मुद्दा नहीे था जो बातचीत में सामने नहीं आया। प्रधानमंत्री मोदी ने पत्रकार वार्ता में कहा भी कि हम दोनों देश कनेक्टिविटी इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर सहमत हैं। यह एक-दूसरे के ही नहीं, बल्कि दुनिया के हित में है। रक्षा, तकनीक, ग्लोबल कनेक्टिविटी, ट्रेड और पीपुल टू पीपुल टाईअप पर दोनों देशों के बीच सकारात्मक चर्चा हुई। होमलैंड में हुए समझौते से इसे बल मिलेगा। हमने आतंकवाद के खिलाफ प्रयासों को और बढ़ाने का भी फैसला किया है। तेल और गैस के लिए भारत के लिए अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। फ्यूल हो या न्यूक्लियर एनर्जी, हमें नई ऊर्जा मिल रही है। भारत-अमेरिका के बीच हुए 6 समझौतों में भारत-अमेरिका के बीच नाभिकीय रिएक्टर से जुड़ा समझौता भी अहम है। इसके तहत अमेरिका भारत को 6 रिएक्टरों की आपूर्ति करेगा। अमेरिका की शिकायत रही है कि नाभिकीय सहयोग समझौता करके उसने भारत को बंदिशों से बाहर निकाला और इसका ज्यादा लाभ दूसरे देश उठा रहे हैं। इसके बाद उसकी शिकायत कम होगी।  

साझा बयान में अमेरिका की ओर से स्पष्ट कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वह भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करेगा। न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में भी भारत के बिना देरी प्रवेश के लिए अमेरिका सहयोग करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साझा बयान में यह कहना काफी महत्वपूर्ण है कि मैंने और राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रंप ने यह फैसला किया है कि साझेदारी को समग्र वैश्विक रणनीतिक साझेदारी में तब्दील किया जाएगा। इस तरह भारत अमेरिका की रणनीति साझेदारी अब वैश्विक स्तर पर रणनीतिक साझेदारी में परिणत हो गई। यह यात्रा की एक महत्वपूर्ण उपलब्धी है। भारत के साथ व्यापार का मामला वाकई पेचीदा हैअमेरिका के साथ व्यापार में भारत 25 अरब से ज्यादा डॉलर का लाभ है। ट्रंप उन सारे देशों के साथ नए सिरे से व्यापार समझौता करना चाहते है जिनसे उनको घाटा हो रहा है। भारत उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा है कि हम जो रक्षा सामग्री आपसे खरीद रहे हैं, नाभिकीय रिएक्टर ले रहे हैं, तेल और गैस ले रहे हैं उन सबको मिलाकर तथा हमारी रणनीतिक साझेदारी का ध्यान रखते हुए द्विपक्षीय व्यापार को देखा जाए। उम्मीद करनी चाहिए कि रास्ता निकलेगा। वैसे भी भारत अमेरिका के संबंध काफी आगे निकल गए हैं। नाटो देश के समान दर्जा हमंें हासिल है, रक्षा व्यापार एवं तकनीकी सहयोग के साथ अब संवेदनशील तकनीकों के हस्तांतरण तथा भारत के निजी क्षेत्र के साथ रक्षा उत्पादन का रास्ता प्रशस्त करने तक मामला बढ़ चुका है। 

ट्रंप ने भारत को कितना महत्व दिया इसका पता इसी से चलता है कि वे अपनी पत्नी के अलावा अपनी बेटी और दामाद के साथ यहां आए जो उनके सलाहकार हैं। ऐसी यात्रा उन्होेंने इसके पहले कहीं की नहीं की। नमस्ते कार्यक्रम द्वारा नरेन्द्र मोदी ने भारत की संास्कृति विविधता का प्रदर्शन कराते हुए अहमदाबाद हवाई अड्डे से जो रोड शो कराया तथा मोटेरा स्टेडियम में सवा लाख लोगों के बीच उनका भाषण हुआ उसका मनोवैज्ञानिक असर व्यापक है। वैसे ही स्वागत आगरा यात्रा के दौरान भी हुआ। इस तरह की कूटनीति का प्रयोग पहले ज्यादा नहीं हुआ है। इसका असर ट्रंप एवं उनके प्रशासन पर हुआ है। ट्रंप ने कहा भी कि भारत की यह यात्रा एवं इस दौरान हुए स्वागत को वे कभी नहीं भूल पाएंगे। कम से कम इस स्वागत के बाद ट्रंप एवं उनका प्रशासन भारत के खिलाफ आक्रामक होने से बचेगा। ट्रम्प ने कहा कि भारतीयों की मेहमानवाजी याद रहेगी। किसी अमेरिका राष्ट्रपति को अपने जीवन में कहीं भी ऐसा स्वागत तथा इतने लोगों के बीच सीधे भाषण करने का मौका इसके पहले नहीं मिला था। तो ऐसे कार्यक्रम का असर तो होगा ही। इस तरह ट्रंप की यात्रा से भारत अमेरिका संबंधों में कई नए आयाम जुड़े हैं जिनको हम आने वाले समय में सम्पूर्ण रुप से फलीभूत होते हुए देखेंगे। 

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

(12.42) 25-02-2020 To 02-03-2020

इस अंक में क्या है
-6 अमेरिकी राष्ट्राध्यक्षों के 7 भारत दौरे तो 9 भारतीय प्रधानमंत्रियों की 30 यात्राएं
-विदेश की इस इस्लामिक यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जाएगा भाजपा का इतिहास
-भारत धर्मनिरपेक्ष था, है और रहेगा
-राममंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन अक्षय तृतीया पर संभव
-कसाब, कलावा और हिन्दू आतंकवाद, 26/11 हमले का पूरा सच
-केजरीवाल ने एलजी और गृह मंत्री से की कानून-व्यवस्था बहाल करने का अनुरोध
-मेलानिया का स्वागत करके खुशी होतीः सिसोदिया
-हिंसक प्रदर्शन के कारण नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के सभी स्कूल बंद
-दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता होंगे रामवीर सिंह बिधूड़ी
-कोरोना वायरस के डर से दो हफ्ते में 2770 रु. चढ़ गया सोना
-आप की लोकप्रियता बढ़ी, 12 दिनों में जुड़े 16 लाख लोग
-बिहार ही नहीं यूपी में भी चुनाव लड़ेगी आप
-नेहरू युवा केन्द्र ने महात्मा गांधी युवा स्वच्छता महाभियान एवं श्रमदान कार्यक्रम का आयोजन किया
-जल रही है दिल्ली, अधिकारों से वंचित हैं कश्मीरी और सरकार ट्रंप की यात्रा में व्यस्तः इल्तिजा
-मुरथल में बिना मंजूरी के चल रहे हैं रेस्तरां, ढाबेः सीपीसीबी
-भाजपा ने मरांडी के रूप में श्रेष्ठ कार्यकर्ता को नेता बनाया: ओम माथुर
-अकाली दल ने जंतर मंतर पर निकाला मार्च
-वो अमेरिकी राष्ट्रपति जो 1962 के युद्ध में खड़ा था भारत के साथ, लेकिन नहीं पूरा हो पाया दिल्ली दौरा
-बोर्ड परीक्षा में पूछे गए नेहरू के इस सवाल पर मचा बवाल, भाजपा ने दी सफाई
-मलेशिया के पीएम महातिर मोहम्मद ने अपना त्याग पत्र देश के राजा को सौंपा
-कोरोना वायरस का कहर जारी, डब्ल्यूएचओ की टीम पहुंची वुहान के अस्पताल
-खत्म होगा तालिबान से अमेरिका का बरसों पुराना युद्द, भारत दौरे से पहले ट्रंप का बड़ा बयान
-पाक ने चीन के लिए 15 मार्च तक रोकी उड़ानें
-नहीं रहे Ctrl+C व Ctrl+V की इजाद करने वाले लॉरी टेस्लर
-मोदी का विकल्प नहीं बन सकते, यह बात केजरीवाल समझ चुके हैं
-बच्चों के लिए बनाएं जायकेदार आलू के चिप्स
-काजल लगाने के अलग-अलग तरीके, जो आंखों को बनाएंगे आकर्षक
-दिल को रखना है पूरी तरह स्वस्थ तो पिएं अनार का जूस
-वजन कम करने में सहायक है नारियल
-कश्मीर के प्राचीन शिवखोड़ी मंदिर जहां हैं स्वर्ग लोक जाने वाली सीढ़ियां
-आईपीएल ने भारतीय क्रिकेट को बदल दियाः अफरीदी
-सिंधू लगातार तीसरे साल ईएसपीएन की वर्ष की सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी
-डैरेन सैमी को मिलेगा पाक का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
-आईसीसी ने युसुफ अब्दुलरहीम को मैच फिक्सिंग के आरोप में लगाया सात साल का बैन
-तीनों प्रारूपों में 100 मैच खेलने वाले दुनिया के पहले क्रिकेटर बने रॉस टेलर
-रिलीज हुआ फिल्म ‘थलाइवी’ से कंगना रनौत का दूसरा लुक
-कभी स्टेशन तो कभी रोड पर करते थे जूते पॉलिश, अब बने इंडियन आइडल के ‘हीरो’
-400 धमाकों के बीच टाइगर श्राॅफ ने किया लाइव एक्शन










सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए हिंसक प्रदर्शन के विरोध में लोगों ने कैंडल जलाकर अपना विरोध जताया

नई दिल्ली। शास्त्री पार्क में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए हिंसक प्रदर्शन के विरोध में लोगों ने कैंडल जलाकर अपना विरोध जताया और इस हिंसक प्रदर्शन में मरने वालों की आत्मा की शांति के साथ-साथ दिल्ली में अमन-चैन बना रहे उसके लिए दुआ मांगी।




 



शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

एक नए केजरीवाल का दर्शन


अवधेश कुमार

अरविन्द केजरीवाल के शपथग्रहण समारोह ने ज्यादातर विपक्षी दलों को धक्का पहुंचाया होगा। इस विजय के बाद विपक्ष ने जिस तरह का उत्साह दिखाया था उससे ऐसा लग रहा था कि वर्तमान माहौल में राजधानी दिल्ली का रामलीला मैदान भाजपा विरोधी विपक्षी जमावड़े का मंच बनेगा। निश्चय ही ज्यादातर नेता शपथग्रहण के निमंत्रण का इंतजार कर रहे होंगे। केजरीवाल ने किसी विपक्षी नेता को निमंत्रण नहीं दिया। इस समय नागरिकता संशोधन कानून, एनपीआर एवं एनआरसी को लेकर विपक्ष ने जिस तरह भाजपा विरोध माहौल बनाया हुआ है उसे देखें तो यह असामान्य राजनीतिक घटना लगेगी। जाहिर है, इसका भविष्य की राजनीति के लिए गंभीर मायने हैं। इस पर विचार करना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को शपथग्रहण में आने का निमंत्रण दिया था। यह बात अलग है कि वाराणसी में निर्धारित कार्यक्रम होने के कारण उन्होंने विनम्रतापूर्वक अपनी कठिनाई से अवगत कराई। वास्तव में शपथग्रहण समारोह का पूरा माहौल, विपक्ष की अनुपस्थिति तथा केजरीवाल द्वारा दिए गए भाषण ने मोदी सरकार के विरोधियों की कल्पनाओं और उम्मीदों से बिल्कुल अलग संकेत दिए हैं। तो क्या हैं वे संकेत? क्या हैं उनके मायने? क्या हो सकता है राजनीति पर इसका असर?

इन प्रश्नों पर इसलिए भी विचार करना जरुरी है क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद ही कुछ लोग केजरीवाल को मोदी विरोधी विपक्षी एकता का चेहरा बनाने की बात करने लगे थे तो कुछ कहने लगे थे कि यह विपक्षी एकता की गंगोत्री साबित होगी जो मोदी और शाह को बहा ले जाएगी। पूरे देश ने रामलीला मैदान से एक ऐसे केजरीवाल का चेहरा देखा जो टकराव की जगह केन्द्र के साथ समन्वय व सहयोग की नीति अपनाने की बात कर रहा था। उनके पूरे भाषण में एक शब्द केन्द्र सरकार ही नहीं, दिल्ली में भाजपा शासित नगर ईकाइयों के खिलाफ भी नहीं थी। बल्कि उन्होंने अपने भाषण मेें यह कहा कि प्रधानमंत्री आज किसी और कार्यक्रम में व्यस्त हैं हमें उनके साथ सभी मंत्रियों को आशीर्वाद चाहिए। शायद ही कोई केजरीवाल से ऐसी बातों की उम्मीद कर रहा था। उन्होंने दो करोड़ दिल्लवासियों की बात की तो देश की भी। ऐसा लग रहा था जैसे एक नेता दिल्ली और देश के विकास के लिए मिल जुलकर काम करने का आह्वान कर रहा हो। उन्होंने भारत के दुनिया की एक बड़ी शक्ति होने का विश्वास भी प्रकट किया। कोई विपक्षी नेता देश के महाशक्ति होने के विश्वास का भाषण नहीे करता। इसके उलट मोदी सरकार की आलोचना में कई नेता सीमा का अतिक्रमण कर देश को ही छोटा दिखा देते हैं। गहराई से विचार करेंगे तो केजरीवाल ने स्वयं के बारे में दिल्ली के विकास पर काम करने के साथ देश को भी आगे बढ़ाने में योगदान करने के लिए तैयार नेता होने का संदेश दिया। 

इसे अगर बोले गए शब्दों के अनुसार विचार करें तो भारतीय राजनीति के लिए इसके अर्थ काफी गहरे हैं। नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो छः करोड़ गुजरातियों की बात हमेशा करते थे। उसके साथ वे यह भी कहते थे कि हम गुजरात का विकास कर देश के विकास में योगदान करते हैं। यह राष्ट्रवाद उन्मुख क्षेत्रीयता थी। ठीक यही रास्ता केजरीवाल अपनाते दिख रहे हैं। दूसरे, उन्होंने एक शब्द टकराव का नहीं बोला। इसकी जगह कहा कि चुनाव में एक दूसरे पर हमला होता है लेकिन यह चुनाव खत्म होने के साथ ही खत्म हो जाना चाहिए। किसी ने किसी को भी वोट किया हो मैं सभी का मुख्यमंत्री हूं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यही आदर्श स्थिति होनी चाहिए। राजनीति का मूल उद्देश्य जनता की सेवा है। इसमें चुनाव एक प्रतिस्पर्धा है जिसमें जो सत्ता तक पहुंचा उसे सब कुछ भुलाकर सेवा के काम में लग जाना चाहिए और विपक्ष को भी सकारात्मक व्यवहार करना चाहिए। चुनाव की कटुता आगे बिल्कुल न दिखे। विपक्ष अपनी भूमिका निभाए लेकिन अवरोधक बनकर नहीं। वहां विरोध करे जहां सरकार जनहित के विपरीत काम कर रही हो। प्रदेश की सरकारें केन्द्र से अनावश्यक राजनीतिक टकराव की जगह मिलकर जनहित और देशहित में काम करे तो भारत कम समय में ही न केवल अपनी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान कर लेगा बल्कि अपनी विशेष सांस्कृतिक पहचान के साथ विश्व की पहली कतार का देश भी बन जाएगा। हर भारतीय का यही तो सपना है। अगर अरविंद केजरीवाल एक प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में ऐसा सोचते हैं तो पहली नजर में इसका स्वागत होना ही चाहिए। 

समस्या यह है कि केजरीवाल ने 2011 से 2020 तक इतनी बार अपनी ही घोषणाओं और वक्तव्यों के विपरीत काम किया है तथा उसे सही भी ठहराया है कि सहसा विश्वास नहीं होता कि उनका ह्रदय परिवर्तन हो गया होगा। जो व्यक्ति  हर बात में मोदी को खलनायक बता रहा हो वह आशीर्वाद मांगने लगे, तिरंगा को सिरमौर बनाने तथा देश को उच्च शिखर पर ले जाने की बात करने लगे तो अचरज होगा ही। मुख्यमंत्री के लिए धूर्त शब्द का प्रयोग करना उचित नहीं है इसलिए उन्हें चतुर नेता कहूंगा। उनके अभिनय की कला उन्हें सर्वाधिक चतुर नेता की श्रेणी में लाकर खड़ा करती है। जब तक हम उनके कहे हुए को आगे लंबे समय तक आचरण में बदलता न देख लें, यही मानेंगे कि ये सब उनके चतुर अभिनय का ही भाग होगा। हालांकि कामना यही होगी कि वाकई अपने अनुभवों से उन्होंने सीखा हो और केवल राजनीतिक लाभ के लिए बोलने और कदम उठाने के लिए देश और दिल्ली के हित में ईमानदारी से केन्द्र के साथ एक टीम के रुप में काम करें। 

वैसे कुछ बातें चुनाव के समय से ही दिख रही थी। वे मोदी का नाम तक लेने से बच रहे थे। भाजपा के हिन्दुत्व और राष्ट्रीयता की काट के लिए उन्होंने रणनीतिक हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद को अपनाया। इसका चुनावी लाभ उनको मिला है। उन्हें पता है कि दिल्ली में अब उनके सामने केवल भाजपा ही है जिसकी ताकत मोदी सरकार की जन कल्याणकारी योजनाएं, विदेश स्तर पर भारत का बढ़ा हुआ सम्मान और बदली छवि तथा वैचारिक स्तर पर हिन्दुत्व एवं राष्ट्रवाद है। तो राजनीति में चुनावी लाभ लेने तक विदेश को छोड़कर अन्य पहलू  अपनाने में हर्ज नहीं है। 14 फरबरी 2015 को जब वे रामलीला मैदान में शपथ ले रहे थे तो उनके सिर पर टोपी थी। इस बार कपाल पर बड़ा सा चंदन था। श्रवण कुमार द्वारा माता-पिता की तीर्थ यात्रा कराने की चर्चा उन्होंने की। यह निष्ठावान हिन्दू होने का ही तो संकेत था। तो मोदी की गुजरात राजनीतिक मॉडल के अनुरुप दिल्ली की क्षेत्रीय राजनीति पर कायम रहते हुए उसे राष्ट्रवाद से जोड़ना तथा भाजपा की ओर मतदाताओं को जाने से रोकने के लिए हिन्दुत्व का छौंक देते रहना। साथ ही मोदी की जन लोकप्रियता का ध्यान रखते हुए उनकी आलोचना स्वयं न करना। इसमें विपक्षी गोलबंदी के लिए जगह तत्काल तो नहीं है। अगर राजनीतिक परिस्थितियां नहीं बदली तो कम से कम अगले कुछ समय तक उनकी राजनीतिक धारा यही बनी रहेगी। यह वर्तमान समय के आम विपक्षी पार्टी का रवैया नहीं है। ध्यान रखिए, चुनाव में भी उन्होंने किसी विपक्षी नेता को अपने पक्ष में भाषण देने के लिए नहीं बुलाया, जबकि वो स्वयं चन्द्रबाबू नायडू के लिए प्रचार करने गए थे। इसका एक संकेत यही है कि वे मोदी विरोधी विपक्ष की राजनीति का भाग बनने से बचेंगे। आगे का नहीं कह सकते लेकिन विपक्ष के लिए तत्काल यह निराशाजनक है। पंजाब में भी वे अकेले ही चलने की कोशिश करेंगे। वे केन्द्र के साथ कुछ समय तक अवश्य सहयोग करके चलेंगे। उनके सहयोगी बताते हैं कि मोदी एवं उनकी टीम के कुछ सदस्यों ने पिछले कुछ समय में विकास से लेकर, पर्यावरण, यातयात, यमुना सफाई.... आदि पर जिस तरह खुलकर सहयोग किया है उससे वे अपना विचार बदलने को बाध्य हुए हैं। सहयोग का उत्तर आप असहयोग और निंदा से तो नहीं दे सकते। उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इसी नीति पर चले रहे हैं और उनके साथ केन्द्र की ओर से कोई समस्या नहीं। हालांकि नवीन पटनायक केजरीवाल की तरह अभिनय और अति लोकप्रियतावादी कदमों से बचते हैं। 

बहरहाल, जब तक इसके अतिरिक्त कुछ सामने नहीं आता हमें मानकर चलना होगा कि 16 फरबरी 2020 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले केजरीवाल काफी हद तक एक बदले हुए नेता नजर आए हैं। किसी की एक शब्द आलोचना नहीं, आमूल-चूल बदलाव की कोई अव्यावहारिक क्रांतिकारी वायदा नहीं, लोगों के अंदर उत्तेजना पैदा करने का भी कोई वक्तव्य नहीं। केवल मिलजुलकर का करने की चाहत। प्रधानमंत्री का सम्मान से नाम। देश की राजनीति पर भी उन्होंने कुछ नहीं बोला। केवल अपनी योजनाओं की अन्य राज्यों द्वारा अपनाने की बात की। नागरिकता संशोधन कानून से लेकर एनपीआर एवं एनसीआर पर पूरे चुनाव प्रचार से लेकर शपथग्रहण तक की उनकी चुप्पी भी बहुत कुछ कहती है। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208


मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

(12.41) 18-02-2020 To 24-02-2020

इस अंक में क्या है

-दीनदयाल जी होते तो दिल्ली चुनावों के नतीजों पर क्या कहते?
-राज्यसभा में खाली हो रही है 68 सीटें, विपक्षी ताकत होगी कम
-क्या दिल्ली में स्टार प्रचारकों के प्रचार न करने की वजह से हारी कांग्रेस
-क्या दिल्ली के जनादेश का असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ेगा
-सितारों जैसी चमक वाली कांग्रेस इन कारणों से शून्य में विलीन हो गई
-दिल्ली में करारी हार के बाद भाजपा में बैठकों का दौर, भविष्य की रणनीति पर विचार
-केजरीवाल कैबिनेट में किसको क्या मिला
-होली के बाद अपना बजट पेश करेगी दिल्ली सरकारः सिसोदिया
-जनता के भरोसे को टूटने नहीं दूंगाः अनिल कुमार वाजपेयी
-केंद्र सरकार 2025 तक तपेदिक खत्म करने पर काम कर रही हैः हर्षवर्धन
-तलाक पर भागवत का बयान संस्कारी नहीं, अहंकारी हैः कांग्रेस
-ट्रंप के रोडशो के दौरान तैनात रहेंगे 10 हजार से अधिक पुलिसकर्मी
-तेजस्वी की हाईटेक लग्जरी बस गरीब बीपीएल कार्ड धारक के नाम पर हैः मंत्री
-शून्य तक पहुंचने के लिए बहुत तेजी दिखा रही है कांग्रेस पार्टी
-फेसबुक रैंकिंग पर डोनाल्ड ट्रम्प रहे नंबर वन
-1 महीने के राष्ट्रव्यापी अभियान में आप 1 करोड़ लोगों को जोड़ेगा
-इस देश में भारी मात्रा में बिक रहे हैं चमगादड़, कोरोना वायरस का नहीं किसी को डर!
-भारतीयों का जलवा, नारायण मूर्ति के दामाद ऋषि सुनक बने ब्रिटेन के नए वित्त मंत्री
-कोरोना वायरसः मास्क की किल्लत की वजह से डॉक्टरों को दिए गए डायपर पहनने के निर्देश
-गांधी जी स्वयं को कट्टर सनातनी हिंदू मानते थेः मोहन भागवत
-कर्मचारियों की तलाशी लेने वाली कम्पनी एप्पल पर लगा भारी जुर्माना
-उस जगह जरूर जाइए जहां नल-नील ने बनाया था श्रीराम के लिए सेतु
-सर्दियों में ऐसे करें बालों की देखभाल, बाल रहेंगे मुलायम और चमकदार
-ऐसा मंदिर जहां चूहों को भोग लगाने से प्रसन्न होती है माता
-लड़कों के लुक को खास बनाते हैं यह हेयर स्टाइल
-पेस अभी एक साल और खेल सकते हैः भूपति
-2009 के आतंकी हमले के बाद कुमार संगकारा फिर करेंगे पाकिस्तान दौरा
-न्यूजीलैंड के खिलाड़ियों को बेहतर बनाने में आईपीएल का है बहुत बड़ा योगदानः गाविन लार्सन
-धोनी में अभी बहुत क्रिकेट बाकी है,  अपने संन्यास का समय वो खुद तय करेंगे: शुक्ला
-मैंने केवल दो फिल्मों में ‘मोनोलॉग’ कहे हैंः कार्तिक आर्यन
-बिग बोस 13 के विजेता बनें सिद्धार्थ शुक्ला, असीम रियाज ने दी कांटे की टक्कर
-जब उर्वशी रौतेला करने लगी आई लव यू बोलने की जिद्द
-क्या सच में  वरुण धवन का नताशा के साथ हो गया है रोका?








शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

चौंकाने वाला नहीं है परिणाम

 

अवधेश कुमार

दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम ने शायद ही किसी को चौंकाया होगा। हां, इसके विश्लेषण को लेकर अवश्य कई राय हो सकते हैं। आरंभ से ही पूरा चुनाव आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल की ओर एकपक्षीय लग रहा था। सारे मतदान पूर्व सर्वेक्षणों ने इसका संकेत भी दे दिया था। कुछ विश्लेषकों ने तो यहां तक टिप्पणी कर दी थी कि आप 2015 के अपने पुराने अंकगणित के आसपास पहुंच सकती है। भाजपा को भी इसका अहसास निश्चित रुप से रहा होगा। लेकिन भाजपा नेतृत्व केजरीवाल के पक्ष में सहानुभूति और समर्थन की लहर की काट करने में सफल नहीं हो पा रहा था। अमित शाह को स्वयं कूदना पड़ा। उनके आक्रामक अभियान तथा चुनाव प्रबंधन की कुशलता ने असर डालना आरंभ किया। भाजपा के निरुत्साहित पड़े कार्यकर्ता सक्रिय हुए। इसका असर हम उसके मतों में करीब सात प्रतिशत की वृद्धि के रुप में देख रहे हैं। कंतु कुल मिलाकर यह कहने में हर्ज नहीं है कि वह केजरीवाल की काट तलाश नहीं कर पाई। तो क्यों हुआ ऐसा?

अपने-अपने नजरिए से इसका उत्तर दिया जा रहा है। इस परिणाम को किसी तरह नागरिकता संशोधन कानून, धारा 370 हटाने, शाहीन बाग धरने के आक्रामक विरोध से जोड़कर देखना गलत विश्लेषण होगा। सारे सर्वेक्षणों का निष्कर्ष यही था कि इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को भारी बहुमत का समर्थन प्राप्त है। जनता कह रही थी कि हम दिल्ली में वोट केजरीवाल को दंेेगे लेकिन धारा 370 हटाने और नागरिकता कानून पर केन्द्र सरकार का समर्थन करते हैं। लोगों ने ज्यादातर सर्वेक्षणों में प्रधानमंत्री के रुप में नरेन्द्र मोदी को पसंद किया तो बतौर मुख्यमंत्री केजरीवाल को। इस सच को नकारकर आप कोई भी निष्कर्ष दे देंगे तो वह सच नहीं होगा। सच तो यह है कि केजरीवाल पिछले एक वर्ष से चुनाव के मोड में आ गए थे। आप उनके वक्तव्यों, तेवर तथा कार्यप्रणाली में आए परिवर्तनों को साफ-साफ देख सकते थे। छः महीना पहले से तो वे केवल चुनावी केन्द्रित वक्तव्य एवं फैसले कर रहे थे। सच कहें तो महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा, चुनाव के पूर्व महीने में ज्यादातर लोगों के बिजली बिल को माफ कर देना तथा पानी के बिल में भारी माफी ने इस चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह ऐसा लोकप्रियतावादी कदम था जिसकी काट किसी पार्टी के पास नहीं थी। भारत का आम मानस इस तरह के लोकप्रियतावादी कदमों की ओर तात्कालिक रुप से आकर्षित होता है। हालांकि भाजपा ने भी अपने संकल्प पत्र में स्पष्ट किया कि वे सत्ता में आए तो बिजली, पानी के दर में कटौती जारी रहेगा। उन्होंने भी केजरीवाल की तरह कुछ लोकप्रियतावादी घोषणाएं की। मसलन, दो रुपए किलो आटा, छात्रों को साईकिल एवं इलेक्ट्कि स्कूटर आदि। इसका कुछ असर भी हुआ लेकिन असर इतना नहीं थी कि भाजपा आप की विजय को रोक दे। 

भाजपा का प्रदेश नेतृत्व इस मुगालते में था कि केजरीवाल ने 2015 के अपने चुनावी वायदों को पूरा नहीं किया है तथा अब उनकी छवि पुराने आंदोलनकारी भी नहीं है, इसलिए उनको जनता के बीच कठघरे में खड़ा कर पराजित करना कठिन नहीं होगा। वे भूल गए कि केजरीवाल परंपरागत राजनेता नहीं हैं। अपने कार्यकाल के अंतिम समय में उन्होंने घोषणा पत्र के कुछ अंशों को क्रियान्वित करना आरंभ कर दिया और इसका भी असर हुआ।  केजरीवाल की रणनीति है कि दिल्ली में जो अच्छा हुआ, विकास हुआ उसका श्रेय लो तथा जो नहीं हुआ उसके लिए यह बताओ कि केन्द्र करने नहीं दे रहा, उप राज्यपाल बाधा बने हुए हैं या फिर भाजपा की बहुमत वाली नगर ईकाइयां काम नहीं कर रहीं हैं। जिस शैली में वे बोलते हैं उनका जवाब उसी शैली में प्रभावी तरीके से देने वाला भाजपा के पास प्रदेश में कोई नेता नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को काफी लंबा समय मिला लेकिन वे केजरीवाल के समानांतर न अपना कद बना सके और न विपक्ष के नाते उनको कभी दबाव में लाने में कामयाब हो सके। हालांकि वे परिश्रम तो करते रहे, लेकिन उसमें केजरीवाल के तौर-तरीकों का सूक्ष्मता से विश्लेषण कर उसके अनुरुप सुनियोजित रणनीति का अभाव हमेशा बना रहा। केजरीवाल ऐसे नेता हैं जिन्हें केन्द्र द्वारा किए गए कामों का भी श्रेय लेने तथा उसके लिए पोस्टर जारी कर दिल्लीवासियों को बधाई देने में तनिक भी हिचक नहीं। यह भाजपा को परेशान तो करती थी, वे खंडन भी कर रहे थे, पर उस रुप में नहीं जिससे बहुमत मतदाताओं को विश्वास हो जाए कि वे सच बोले रहे हैं एवं केजरीवाल का दावा झूठ है। 

कायदे से देखा जाए तो चुनाव मंे सबसे बड़ा मुद्दा एक आंदोलनकारी और नायक के रुप में उभरे केजरीवाल का वैचारिक एवं व्यवहारिक बदलाव या पतन होना चाहिए। 2011 से 2013 के केजरीवाल के कार्यों एवं वक्तव्यों की उनमें अब झलक तक नहीं मिलती। अपने अधिनायकवादी चरित्र के कारण उन्होंने उन सारे साथियों को अलग होने के लिए विवश कर दिया जो अन्ना अभियान से लेकर पार्टी के निर्माण एवं 2015 के चुनाव में विजय तक उनके साथ थे। भाजपा इसे मुद्दा बनाने में सफल नहीं रही। कहा गया है कि आक्रमण सबसे बड़ा बचाव है। किसी तरह के संघर्ष में विजय का यह सबसे बड़ा सूत्र है। भाजपा इस रणनीति में माहिर मानी जाती है, पर विपक्ष में रहते हुए वह ऐसी स्थिति कायम नही ंकर सकी जिसमें केजरीवाल एवं उनके साथियों को बचाव के लिए विवश होना पड़ता। केजरीवाल ने पूरे चुनाव अभियान के बीच अत्यंत ही सधी हुई राजनीति की तथा उनका संयत रुख लगातार बना रहा। एक समय नरेन्द्र मोदी के लिए निंदा के शब्दों का प्रयोग करने वाले तथा हर बात में सीधे उनको निशाना बनाने वाले केजरीवाल ने अचानक अपना रुख बदल दिया। उन्होंने मोदी पर हमला या उनकी सीधी आलोचना बिल्कुल बंद कर दी। 2019 के लोकसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर पहुंचने के पीछे एक विश्लेषण यह था कि मोदी पर ज्यादा हमला जनता ने पसंद नहीं किया। दूसरे, हिन्दुत्व, सांपद्रयाकिता एवं सेक्यूलरवाद पर भी उन्होंने कुछ बोलने से परहेज किया। मोदी से लेकर इन मुद्दों पर वे जैसे ही आक्रामक होते भाजपा को उनको कठघरे में खड़ा करने का मौका मिल जाता। यहां तक कि जब अयोध्या में मंदिर निर्माण पर प्रधानमंत्री ने लोकसभा में ट्रस्ट की घोषणा की तो सारी पार्टियों ने उसकी आलोचना की, चुनाव को लेकर समय पर सवाल उठाया लेकिन केजरीवाल ने समर्थन कर दिया। उन्होंने कहा कि मंदिर बनना चाहिए, ट्रस्ट का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। उनहोंने अपने को हार्ड राष्ट्रवादी बताया। इस तरह भाजपा को कोई अवसर उन्होने नहीं दिया। उल्टे एक चैनल पर उन्होंने हनुमान चालिसा गाया, हनुमान मंदिर जाकर ट्विट किया और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने उनकी आलोचना कर दी तो इसका उन्होंने अपनी शैली में पूरा उपयोग किया कि हनुमान चलीसा पढ़ने और हनुमान जाने पर भाजपा मुझे गालियां दे रही हैै, वह हनुमान जी की आलोचना कर रही है, कह रही है कि मुझे भगवान की पूजा-पाठ का अधिकार नहीं है। इसका जवाब भाजपा के पास हो ही नहीं सकता था। 

 केजरीवाल को आभास था कि मुसलमानों का एकमुश्त वोट उनकी पार्टी को मिलेगा, क्योंकि कांग्रेस मुख्य लड़ाई में है नहीं। इस विश्वास के कारण उन्होंने शाहीनबाग पर स्वयं चुप्पी धारण कर ली। मनीष सिसोदिया ने एक बार अवश्य कह दिया कि हम शाहीनबाग के साथ है लेकिन बाद में वे भी शांत हो गए। भाजपा ने अपनी रणनीति से शाहीनबाग के बारे में केजरीवाल को कोई बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया। चुनाव मंे यह मुद्दा था। जिन लोगों को धरना के कारण आने-आने में परेशानी हो रह थी वे सब उसके खिलाफ थे, स्वयं प्रधानमंत्री ने इसे संयोग नहीं प्रयोग तथा एक डिजायन बताकर अपने मूल समर्थकों को सीधा संदेश दिया। इन सबका असर हुआ लेकिन भाजपा इसे दिल्ली में इतना बड़ा मामला नहीं बन सकी जिससे कि मतों का एकत्रीकरण इसके पक्ष में हो सके। एक महत्वपूर्ण भूमिका कांग्रेस के प्रदर्शन ने निभाई। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 22 प्रतिशत से ज्यादा मत काट लिया तो आप तीसरे स्थान पर सिमट गई। शीला दीक्षित के देहांत के बाद लोकसभा चुनाव में लड़ाई में आने का संकेत दे चुकी कांग्रेस फिर हाशिए पर चली गई। 67 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई। वैसे कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व की रणनीति भी थी कि किसी तरह दिल्ली में भाजपा को रोकना है, इसलिए उन्होंने कुछ प्रमुख नेताओं की सीटों को छोड़कर परिश्रम ही नहीं किया। अगर कांग्रेस पर्याप्त मात्रा में वोट काट लेती और संघर्ष त्रिकोणीय होता तो भाजपा को लाभ मिल जाता। ऐसा नहीं हो सका। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208


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