शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

भाजपा बनाम राहुल गांधी

 

अवधेश कुमार

इन दिनों राजनीति के क्षितिज पर सतही नजर भी दौड़ा लीजिए तो आपको धीरे-धीरे राहुल गांधी बनाम नरेन्द्र मोदी की एक तस्वीर निर्मित होती दिख रही है। यह अपने आप नहीं हुई। कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति में राहुल गांधी द्वारा मोदी पर हमले को प्राथमिकता दिया है। राहुल गांधी लगातार गुजरात से लेकर हिमाचल प्रदेश और इसके अलावा जहां जा रहे हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही कठघरे में खड़ा करते हैं। यहां तक कि एक वेबसाइट द्वारा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पुत्र जय शाह के व्यवसाय और धन से संबंधी खबर के मामले में भी वे मोदी को ही निशाने पर ले रहे हैं। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि भाजपा पर यदि हमला करना है, जनता की नजर में उसकी छवि गिरानी है तो नरेन्द्र मोदी की छवि को ही कमजोर करना होगा। इस समय भाजपा और नरेन्द्र मोदी एक दूसरे के पर्याय हैं। भाजपा को जो भी जनसमर्थन मिल रहा है उसका मूल नरेन्द्र मोदी में ही निहित है। तो राहुल गांधी और कांग्रेस की इस रणनीति को एकबारगी गलत नहीं कहा जा सकता है। यह बात अलग है कि इस रणनीति से कांग्रेस को तत्काल या निकट भविष्य में कोई चुनावी फायदा होगा ऐसा मानना जरा कठिन है। वस्तुतः भारत की राजनीति इतनी जटिल है और इसमंे 2014 में राष्ट्रीय परिदृश्य पर नरेन्द्र मोदी के आविर्भाव के बाद से इस तरह का परिवर्तन आ गया है कि बड़े-बड़े विश्लेषकों के लिए चुनाव पूर्व वास्तविक आकलन कठिन हो रहा है। जिस तरह 2014 में किसी ने नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा की इतनी बड़ी विजय की कल्पना नहीं की थी उसी तरह 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी।

इसलिए जो लोग राहुल गांधी के नरेन्द्र मोदी पर हमला करने तथा लगातार प्रचार से उत्साहित हैं उनको अपने उत्साह पर थोड़ा संयम बरतने की आवश्यकता है। भाजपा का मनोविज्ञान इस समय कुछ अलग है। भाजपा के आम नेता भी यह मानते हैं कि राहुल गांधी उनके लिए कभी चुनौती नहीं हो सकते। वो कहते भी हैं कि राहुल गांधी को उनकी पार्टी कभी गंभीरता से नहीं लेती। यह बात अलग है कि भाजपा के नेता सबसे ज्यादा हमला भी राहुल गांधी पर ही करते हैं। कांग्रेसी कहते है कि भाजपा नेताआंे का राहुल गांधी पर हमला करना बताता है कि वे उन्हें गंभीरता से लेते हैं। आखिर नरेन्द्र मोदी तक भी यदा-कदा बिना नाम लिए उनके बारे में व्यंग्यात्मक टिप्पणियां करते ही हैं। अमित शाह के भाषणों में राहुल गांधी हमेशा छाए रहते हैं। यह बात अलग है कि वे उनके लिए शहजादे और राहुल बाबा जैसे शब्द प्रयोग करते हैं। इसके द्वारा जनता को यह संदेश देने की कोशिश होती है कि राहुल गांधी अभी तक इतने वयस्क और परिपक्व नहीं हुए हैं कि उनके कंधों पर देश की जनता कोई महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दे। यह सवाल हम सबके मन में स्वाभाविक रुप से उठता है कि जब आप राहुल गांधी को गंभीरता से लेते ही नहीं, उन्हें परिपक्व भी नहीं मानते हैं, इस बात को लेकर आप निश्चिंत हैं कि जब तक राष्ट्रीय फलक पर राहुल गांधी हैं भाजपा के लिए मैदान साफ है तो फिर उन पर हमला या उनकी इतनी चर्चा क्यों?

हमने राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में एक साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी को मंच पर राहुल गांधी एवं उनके पूरे खानदान पर आक्रामक होते हुए देखा है। स्मृति ईरानी तो पराजित होने के बावजूद अमेठी जाती रहतीं हैं। उसमें उनका एक ही एजेंडा होता है, राहुल गांधी को एक विफल सांसद साबित करना। यही काम इन तीनों नेताओं ने एक साथ किया। राहुल गांधी गुजरात में भाजपा पर हमला कर रहे थे, 23 वर्ष की भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे थे, नरेन्द्र मोदी को सपना बेचने वाला साबित कर रहे थे तो उनके खिलाफ एक साथ तीन नेता उनके संसदीय क्षेत्र में हुंकार भर रहे थे। यह अकारण तो नहीं हो सकता। यदि आप किसी को गंभीरता से नहीं लेते हैं तो उसकी बातों का जवाब नहीं देते। यदि आप किसी को वजनदार नहीं मानते तो उस पर इतना तगड़ा हमला नहीं करते। यहां स्थिति उलट है। भाजपा गंभीरता से न लेने तथा राहुल गांधी को अवयस्क साबित करते हुए भी उनको निशाना बना रही है। तो इसके कुछ कारण अवश्य होने चाहिए। राजनीति में जो कुछ दिखता है उसके पीछे के कारकों की जरा ठीक प्रकार से तलाश करनी पड़ती है।

वस्तुतः इसके पीछे भाजपा की अपनी सोची-समझी रणनीति है। राहुल गांधी यदि नरेन्द्र मोदी पर हमला करते हैं तो वह इसे अपने लिए अनुकूल मान रही है। उसकी कोशिश है कि राहुल पर प्रतिहमला करो ताकि वह मोदी पर और हमला करें और इस समय से लेकर सारे विधानसभा चुनावों एवं फिर 2019 के लोकसभा चुनाव तक पूरी राजनीति नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी का बना रहे। इसमें भाजपा को लाभ नजर आता है। उसे साफ लगता है कि लोग यदि मोदी एवं राहुल में तुलना करेंगे तो मोदी का पलड़ा अपने-आप भारी हो जाएगा। लोगों को मोदी एवं राहुल मंे से चुनने का विकल्प होगा तो ज्यादातर मोदी का ही चयन करेंगे। इस वातावरण को बनाए रखने के लिए जरुरी है कि राहुल गांधी को पूरी तरह चर्चा में बनाए रखा जाए। इसलिए आने वाले समय में भी भाजपा राहुल गांधी और उनके खानदान को निशाना बनाती रहेगी। यह उसकी वर्तमान एवं भविष्य की राजनीतिक रणनीति का इस समय सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।

उसकी दूसरी रणनीति है, राहुल की उनके घर यानी संसदीय क्षेत्र में ऐसी घेरेबंदी करना कि वो किसी तरह अगला लोकसभा चुनाव हार जाएं। राहुल गांधी किसी समय कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए भविष्य की उम्मीद अभी भी वहीं हैं। यदि उनको ही पराजित कर दिया गया तो फिर वर्तमान कांग्रेस को खत्म करने का जो राजनीतिक लक्ष्य नरेन्द्र मोदी ने घोषित किया है उसे पाना आसान हो जाएगा। कल्पना करिए यदि राहुल गांधी अमेठी से हार जाते हैं तो फिर कांग्रेस में कैसा हाहाकार मचेगा। सोनिया गांधी का स्वास्थ्य अब बड़ी और सतत सक्रिय भूमिका की इजाजत नहीं दे रहा। प्रियंका बाड्रा का राजनीति में आना अभी अनिश्चित है। उसमें सारा दारोमदार राहुल गांधी पर ही है। जाहिर है, उनकी पराजय का कांग्रेस के लिए संघातक परिणाम होगा। बड़े नेता भले इसे चुनाव में सामान्य जीत-हार का मामला बताएंगे, पर आम नेता एवं कार्यकर्ताओं में और हताशा पैदा होगी तथा कांग्रेस का जगह-जगह विखंडन हो सकता है। तो यही सोच है जिसके तहत भाजपा अमेठी को केन्द्र मे रखकर राजनीति कर रही है। अपनी रणनीति की सफलता के लिए अमेठी की घेरेबंदी में जितनी शक्ति, संसाधन की आवश्यकता है भाजपा लगाएगी। वहां के लिए जैसी रणनीति की जरुरत होगी भाजपा उसे भी अपनाएगी। बस, अमेठी का किला ध्वस्त हो जाए। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के उम्मीदवार के न रहने के बावजूद केवल एक लाख सात हजार मतों से उनकी विजय को भाजपा अपनी भावी विजय की उम्मीद के तौर पर देख रही है। विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस अमेठी की सभी विधानसभा सीट हार गई।

जाहिर है, कांग्रेस के रणनीतिकारों को भाजपा की इस सोच एवं रणनीति को समझना होगा। यदि उनको भाजपा से मुकाबला करना है तथा अमेठी का गढ़ बचाना है तो वर्तमान रवैये से यह संभव नहीं है। कांग्रेस के नेताओं को विचार-विमर्श की थोड़ी लंबी कवायद करनी होगी। अगर वे नहीं करते तथा वर्तमान रणनीति पर चलते रहे तो फिर भाजपा की रणनीति को सफल बनाने की भूमिका निभाएंगे। अभी तक कांग्रेस इसे समझने के लिए तैयार नहीं है। वह मानकर चल रही है कि गुजरात की सरकार आलोकप्रिय हो रही है जिसका लाभ उसे मिल सकता है। वह यह भी मान रही है कि आने वाले समय में नरेन्द्र मोदी सरकार भी अलोकप्रिय होगी और उसे इसका लाभ मिल जाएगा। यह तत्काल संभव नहीं दिखता।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

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