गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

समस्त कनेक्ट फाउंडेशन द्वारा जरूरतमंदों के बीच बांटी गई आवश्यक सामग्री

संवाददाता
 
नई दिल्ली। शिक्षा और राहत कार्यों के क्षेत्र में कार्यरत दिल्ली स्थित सामाजिक संगठन, समस्त कनेक्ट फाउंडेशन ने आज शहर के भजनपुरा और सीलमपुर क्षेत्रों में covid-19 और लॉक डाउन के मद्देनजर गरीब बेसहारा परिवारों के बीच खाने पीने और रोज़मर्रा की ज़रूरी वस्तुएं  वितरित किया। 
इस अभियान के अन्तर्गत बुलंद मस्जिद कालोनी में विशेष रूप से 55 परिवारों में ज़रूरी वस्तुएं, क्षेत्रीय लोगों की उपस्थिति में और सुरक्षा और स्वास्थ्य के सभी नियमों को क्रियान्वित करते हुए वितरित हुई।
संस्था के निदेशकों श्री ज़फ़र इमाम खान, श्रीमति विनीता सूद और श्री जितेन्द्र प्रसाद केशरी, समाजसेवी श्री मुदस्सिर खान, श्री मोहम्मद रियाज़, श्री आज़ाद, श्री अब्दुल रज़्ज़ाक़, श्री मोहम्मद एजाज,  समाज सेविका श्रीमति शकीला उर्फ रिहाना दाई आदि ने क्षेत्रीय लोगों का कार्य के सफलतापूर्वक निष्पादन के लिए आभार प्रकट किया।
संस्था पहले भी लॉकडाउन में जरूरतमंदों को  कई जगहों पर खाद्य सामग्री बांट चुकी है। इस बार संस्था द्वारा प्रत्येक राशन किट में 5 किलो आटा, 5 किलो चावल, 2 किलो चीनी, 1 किलो मसूर की दाल, 1 किलो चने की दाल, 2 किलो आलू, 2 किलो प्याज, आधा किलो बेसन, आधा किलो काले चना, आधा किलो कचरी, 1 किलो नमक, 1 किलो सरसो के तेल की शीशी, 100 ग्राम मिर्च, 100 ग्राम हल्दी, 100 ग्राम धनिया, 100 ग्राम चाय पत्ती, 250 ग्राम सेवई, 2 नहाने वाले साबुन, 2 कपड़े धोने वाले साबुन इत्यादि चीजें दी गईं।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

संतों की हत्या पर राष्ट्रीय आक्रोश स्वाभाविक

अवधेश कुमार

महाराष्ट्र के पालघर में दो निर्दोष, निरपराध संतों की भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या का दृश्य देखकर पूरे देश में आक्रोश व्याप्त है। सच यही है कि अगर लॉकडाउन नहीं होता तो अभी तक साधू-संत, उनके समर्थक और देश के आम लोग भारी संख्या में सड़कांें पर होते। इस तरह किसी निरपराध, निर्दोष संन्यासी की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाए और देश में आक्रोश नहीं हो तो फिर यह मरा हुआ समाज ही कहलाएगा। महाराष्ट्र सरकार कह रही है कि उसने काफी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया है और भी गिरफ्तारियां होंगी तथा किसी भी दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा। सच है कि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 100 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। जिस तरह के वीडियो सामने आए हैं उन्हें देखकर तो विश्वास ही नहीं होता कि किसी कानून के राज में ऐसा भी हो सकता है। हालांकि हमने भीड़ की हिंसा के भयावह और दिल दहला देने वाले दृश्य पहले भी देखें और हर बात वेदना और क्षोभ पैदा हुआ है। उसका असर भी हुआ है। दोषी पकड़े गए हैं। उनको सजाए भी हुईं हैं। किंतु इस एक घटना ने फिर से कई प्रश्न उभार दिए हैं जिनका उत्तर हमें तलाशना ही होगा। 

इस पूरे प्रकरण को देखने के बाद पुलिस की विफलता और उसकी ओर से कोताही साफ झलकती है। इसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। 14 अप्रैल की रात नौ बजे के आसपास की घटना है। आखिर उस समय इतना विलंब नहीं हुआ था कि इसकी सूचना जिला, प्रमंडल और उससे उपर पहुंचाई न जा सके। अगर यह सूचना पहुंची तो जिला प्रशासन, जिला पुलिस प्रशासन तथा उसके उपर के अधिकारियों ने क्या किया यह प्रश्न पूरा देश पूछ रहा है। क्या मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे एवं गृह मंत्री देशमुख तक यह सूचना पहुंची ही नहींअगर पहुंची तो उनको भी स्पष्ट करना चाहिए कि तत्काल उन्होंने क्या कदम उठाए या क्या निर्देश दिए। ध्यान रखिए, पुलिस की दैनिक विज्ञप्ति में यह घटना 17 अप्रैल को भी शामिल नहीं था। क्यों? 18 तारीख को यह विज्ञप्ति में शामिल हुई और उसमें भी यह जितनी बड़ी घटना है उतनी बड़ी नहीं बताई गई। इसका अर्थ क्या है? क्या जिला प्रशासन इसे मामूली घटना मानकर इतिश्री करने की राह पर था? इसी रुप में उपर के अधिकारियों एवं राजनीतिक नेतृत्व को सूचित किया गया? लगता तो ऐसा ही है। सारे बयान वीडियो वायरल होने के बाद आ रहे हैं। इसका तो अर्थ हुआ कि वीडियो अगर वायरल नहीं होता तो इसे मामूली भीड़ की हिंसा या सामान्य दंगा आदि का स्वरुप देकर फाइलों में बंद कर दिया जाता। 

पुलिस और प्रशासन के इस रवैये से गुस्सा ज्यादा पैदा होता है। पालघर के जिस क्षेत्र में यह घटना हुई वहां से चिंतित करने वाली खबरें बीच-बीच में आतीं रहीं हैं। वहां माओवादियों की गतिविधियों की भी सूचनाएं रहीं हैं। धर्मांतरण पर भी विवाद हुआ है। उस क्षेत्र में कम्युनिस्टों का प्रभाव भी है तभी तो स्थानीय विधानसभा से माकपा के उम्मीदवार लगातार विजयी होते रहे हैं। ध्यान रखने की बात है कि 14 अप्रैल को कोरोना पर काम के लिए गई डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की टीम पर भी भीड़ ने वहां हमला किया था। उस टीम में शामिल डॉक्टर का कहना है कि किसी तरह वे जान बचाने में सफल हो गए अन्यथा हमला पूरा जानलेवा था। निश्चित ही इसकी सूचना पुलिस एवं प्रशासन को थी। इसका जवाब तो उसे देना ही होगा कि इसके बाद उसने वहां सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करने के लिए क्या कदम उठाए? किंतु यहा राजनीतिक नेतृत्व का दायित्व था कि विस्तार से पता लगाए कि क्या और कैसे हुआ? उसके साथ त्वरित कदम उठाए एवं देश को आश्वस्त करे। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित हैं। कोरोना से मृतकों की संख्या में वह पहले स्थान पर है। ऐसे राज्य मे ंतो कोरोना मामलों का पता लगाने, उससे बचाव के लिए कोरंटाइन करने तथा उपचार में लगे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की टीम की सुरक्षा की ज्यादा पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए। साफ है कि प्रशासन और पुलिस ने स्थिति की गंभीरता को भांपकर वहां सुरक्षा व्यवस्था नहीं की, अन्यथा ये दो निर्दोष संतोें और उनके चालक की जान नहीं जाती। 

दुख इस बात का भी है कि कुछ स्वनामधन्य बुद्धिजीवी और पत्रकार यही सवाल उठा रहे हैं कि वो साधू लौकडाउन में निकले ही क्यों? यह तथ्य सामने है कि सूरत में जूना अखाड़ा के उनके एक साधू की मृत्यु हो गई थी जिनको समाधी देने जाना था। हालांकि रास्ते में इन्होंने पुलिस को अवश्य बताया होगा तभी तो उतना आगे निकल गए थे। हालांकि हम इस मीन-मेख में नहीं जाएंगे क्योंकि यह पहलू यहां किसी दृष्टि से प्रासंगिक नहीं हैं। वे दुख में अपने साथी साधू की अंतिम क्रिया के लिए जा रहे थे। किंतु यह तो नहीं हो सकता कि लौकडाउन में कोई कहीं जाए तो दूसरों को उन्हें पीट-पीट कर मार डालने का अधिकार मिल जाता है? सबसे महत्वपूर्ण बात कि प्रश्न यह क्यों नहीं उठ रहा कि आखिर उतनी संख्या में लौकडाउन तोड़कर लोग सड़कों पर क्यों थे? वे कैसे आ गए? असल लॉकडाउन तो वे लोग तोड़ रहे थे जो सड़कों पर थे। डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों का बयान यह साबित करता है कि वहां भीड़ कई दिनों से एकत्रित हो रही थी। पुलिस की संख्या चाहे तीन हो लेकिन घटना के समय वह उपस्थित तो है। वह भीड़ को हटाने के लिए कुछ नहीं कर रही थी। प्रश्न तो उठेगा कि पुलिस ने भीड़ को भगाने का प्रयत्न क्यों नहीं किया? पूरे वीडियो में पुलिस न तो इन निरपराध साधुओं को बचाने का प्रयास करती है और न ही लोगों को सड़कों से हटने के लिए कहती है। महाराष्ट्र जैसे सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित प्रदेश मे ंतो लौकडाउन अन्य राज्यों से भी ज्यादा सख्त होना चाहिए। 

साफ है कि वहां पहले से लौकडाउन की धज्ज्यिां अफवाहों के कारण उड़ाई जा रहीं थीं। अब आइए घटना पर। वन विभाग के नाके में दोनों साधू एवं चालक हैं। भीड़ की ऐसी अवस्था में सामान्य समझ की बात है कि जो लोग उनके निशाने पर हैं उनको पहले भवन से निकाला नहीं जाता। पहले भीड़ को शांत किया जाता है। पुलिस वाले ने साधुओं और चालक को बाहर क्यों निकाला? वह दृश्य किसी को भी हिला देता है कि 70 वर्ष के साधू कल्पवृक्षगिरि महाराज पुलिस के पास जान बचाने के लिए छिपते हैं और पुलिस वाला उनको भीड़ के बीच छोड़ देता है। उनको बचाने की कोशिश तक नहीं करता, एक बार फायर भी नहीं करता। अगर पुलिस कोशिश करती फिर विफल हो जाती तो उसे क्षमा किया जा सकता था। उसने कोशिश ही नहीं की। इसे आप क्या कहेंगे? इसकी तो गहराई से जांच होनी चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया? पुलिस वालों का निलंबन पर्याप्त नहीं है। उन पर तो मुकदमा दर्ज होना चाहिए था। पालघर के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का यह कहना कि पुलिस ने कोशिश की लेकिन भीड़ ज्यादा होने से सफल नहीं हुई वास्तव में अपने बचाव में दिया गया बयान ही माना जाएगा। जो कुछ वीडियो में दिख रहा है उसे कौन झुठला सकता है? क्या वीडियो में किसी को कहीं भी पुलिस साधुओं का बचाव करते हुए या भीड़ को समझाते-चेतावनी देते हुई सुनाई देती है या दिखती है

चूंकि पुलिस और प्रशासन अपना दोष स्वीकारने की जगह बचाव में लगा हुआ है इसलिए संदेह ज्यादा गहरा होता है। ये हत्यायें पहली नजर में त्वरित गुस्सा का परिणाम नहीं लगती। चोरी, बच्चा चोरी, डकैती आदि की बातें तो मनगढंत ही हैं। यह भी अब साफ हो रहा है कि उस क्षेत्र में काफी दिनों से कई प्रकार की अफवाहें फैलाई जा रहीं थी। लोगों को उकसाया जा रहा था। मोबाइल पर मेसेज आ रहे थे। जाहिर है, कुछ शक्तियां किसी न किसी तरह की हिंसा कराने की साजिश रच रहीं थीं। यह प्रशासन का दायित्व था कि उसका संज्ञान लेकर सुरक्षोपाय तथा लोगों का भ्रम दूर करने की कोशिश करता। ऐसे किसी प्रयास की कोई सूचना नहीं है। ऐसा लगता है कि जानबूझकर साजिश रची गई थी। संभव है साधुओं की हत्या से साजिश में लगे असामाजिक तत्व प्रदेश व देश में सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति पैदा करना चाहते हों। लौकडाउन को ध्वस्त करने की कोशिश बार-बार सामने आ रहीं हैं। इसलिए इसकी गहराई से जांच हो एवं केवल सामने दिखने वाले चेहरे नहीं, वास्तविक दोषियों को कानून के कठघरे में खड़ा किया जाए। इसके लिए मकोका सबसे उपयुक्त कानून होगा। महाराष्ट्र सरकार को ध्यान रखना होगा कि नगा साधुआंे ने ही नहीं, अनेक अखाड़ों, संत-संगठनों, शंकराचार्य सहित काफी सम्मानित संतों ने लौकडाउन के बाद महाराष्ट्र कूच का ऐलान कर दिया है। स्थिति को संभालने के लिए जरुरी है कि दोषियों को पकड़ने के साथ पुलिस-प्रशासन के जिम्मेवार तत्वों पर भी कड़ी कार्रवाई हो। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडवव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208 

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

जमात को कानूनी शिकंजे में कसना जरुरी

अवधेश कुमार

इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय एशिया के सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती मुंबई के धारावी में कोरोना वायरस के कई नए मरीज सामने आए हैं। इनमें से कुछ मरीज ऐसे हैं, जो दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में आयोजित तबलीगी जमात के कार्यक्रम में हिस्सा लेकर लौटे थे। हजारों झुग्गी झोपड़ियों की घनी बस्ती वाले धारावी क्षेत्र में कोरोना संक्रमित लोगों की कुल संख्या दो दर्जन से ज्यादा हो गई है। इनमें से सात की मौत हो चुकी है। इसमें नौ अप्रैल को 70 साल की एक महिला ने दम तोड़ दिया। उससे पहले एक अप्रैल को 56 वर्षीय व्यक्ति की मौत हुई थी। यह व्यक्ति तबलीगी जमात के कार्यक्रम से लौटे लोगों के संपर्क में आया था। जमात से लौटे महिलाओं के साथी पुरुष धारावी के शाहू नगर जामा मस्जिद में रुके थे। महिलाएं बलिगा नगर में जिस फ्लैट में रुकी थीं, मृतक व्यक्ति उसी का मालिक था। ऐसी जानकारी है कि जमात से लौटे इन सभी लोगों के साथ 24 मार्च को केरल के कोझिकोड निकलने से पहले मृतक ने समय गुजारा था। वस्तुतः जमात में शामिल होकर 22 मार्च को मुंबई लौटी पांच महिलाएं मृतक के ही एक अन्य फ्लैट में रुकी थीं। एक अप्रैल को पहली मौत के बाद ही बीएमसी ने उसके संपर्क में आए लोगों की तलाश शुरू कर दी थी। चूंकि मृतक के परिवार की तरफ से इस मामले में पूरा सहयोग नहीं मिला, इसलिए पुलिस उसके कॉल रेकॉर्ड्स  के आधार पर पता कर रही है कि वह किसके-किसके संपर्क में आया था। इस बीच, धारावी में काम करने वाले एक सफाईकर्मी और एक डॉक्टर के कोरोना पॉजिटिव होने का मामला सामने आया है। 

धारावी से शुरुआत करने का उद्देश्य यह बताना था कि किस तरह तबलीगी जमात ने पूरे देश की जान को भयावह जोखिम में डाल दिया है। दिल्ली से केरल और महाराष्ट्र तक के सूत्र को जोड़िए तो तस्वीर साफ हो जाएगी। अगर धारावी के जमातियों का संपर्क इतना व्यापक था तो अन्यों का भी ऐसा ही होगा और उन्होंने भी अपने साथ कोरोना की आग को उन सारे जगहों पर फैलाने में भूमिका निभाई जहां-जहां से ये गुजरे और ठहरे। इसके दूसरे पहलू को देखिए। धारावी में लाखों की संख्या में लोग रहते हैं। गलियां काफी संकरी हैं। आते-जाते वक्त भी आपका शरीर एक दूसरे को छूता रहता है। इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन संभव ही नहीं। जिस क्षेत्र को सील किया गया है या जो लोग क्वारंटीन किए गए हैं, वे भी नियमों का पालन नहीं कर पा रहे हैं। अगर धारावी में कोरोना फैल गया तो क्या स्थिति होगी इसकी कल्पना मात्र से ही रांेगटे खड़े हो जाते हैं। अगर जमाती न होते तो यहां संक्रमण होता ही नहीं। वास्तव में महाराष्ट्र आज अगर संक्रमण एवं मौत के मामले में सभी राज्यों में सबसे उपर है तो इसका मुख्य कारण जमातियों का गैर जिम्मेवार आपराधिक व्यवहार ही है। 

यह केवल महाराष्ट्र की बात नहीं है। 10 अप्रैल को असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जो पहली मौत हुई वह निजामुद्दीन के तबलीगी जमात कार्यक्रम शामिल हुआ था। भारत में कोराना वायरस के बढ़ते मरीजों की केस हिस्ट्री पर नजर डालने से ये दो तथ्य बिल्कुल साफ होते हैं-या तो वह जमाती है, उसके संपर्क में आया है या फिर वह सउदी अरब या वहां मक्का या कुछ खाड़ी देश से लौटा है। बिहार में सीवान कोरोना का सबसे बड़ा केन्द्र बना है तो इसका कारण यही है। वहां ओमान से लौटे एक युवक के गैर जिम्मेवार आचरण ने कोहराम मचा दिया। वहां संक्रमितों की संख्या बढ़ने से बिहार की मीडिया उसे सीवान की जगह प्रदेश का वुहान कहने लगा है। देश भर में कुल संक्रमितों की संख्या के अनुसार विचार करें तो 35 प्रतिशत सीधे तबलीगी जमात के हैं। शेष में ज्यादातर इनके संपर्क में आए या फिर जिस दूसरी श्रेणी की हमने बात की वे हैं। तमिलनाडु के कुल मरीजों में 90 प्रतिशत से ज्यादा सीधे जमात से जुड़े हैं तो राजधानी दिल्ली के करीब 65 प्रतिशत। सच यह है कि अगर तबलीगी जमात के लोगों ने अपना, परिवार एवं देश के लोगोें के जीवन का ध्यान रखते हुए जिम्मेवार रवैया अपनाया होता तो भारत इस समय कोरोना पर लॉकडाउन एवं सोशल डिस्टेंसिंग द्वारा काबू करने वाले देशों की श्रेणी में होता। मजहबी कट्टरता, जाहिलपन में जमाती तथा दूसरी श्रेणी के लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया। इस कारण स्वयं एवं पूरे देश को संकट में डाल दिया है। 

किंतु दुर्भाग्य देखिए कि इस सच को सामने रखने को मुसलमान विरोधी या उनको बदनाम करने की साजिश बताया जा रहा है। सबसे चिंता का विषय है कि अभी तक मुसलमानों के बड़े संस्थानों एवं नामी मजहबी नेताओं में से किसी ने जमात के रवैये की आलोचना नहीं की है। इसके उलट सब उनके बचाव में लगे हैं। कुछ लोग उच्चतम न्यायालय तक चले गए इस अपील के साथ कि तबलीगी जमात को बदनाम करने का अभियान बंद कर दिया जाए। कौन बदनाम कर रहा है?  पूरे देश में लगातार जमातियों से अपील की जाती रही कि आप बाहर आइए ताकि आपके लक्षणों के अनुसार कोरंटाइन करने या संक्रमित होने पर उपचार किया जाए। ज्यादातर को तलाश कर जबरन निकालना पड़ा है। कई जगह कुछ लोग तब सामने आए जब यह घोषित कर दिया गया कि नहीं आने पर मुकदमा किया जाएगा। उसके बाद कुछ निकलकर सामने आए। दूसरे, उनकी जान बचाने के लिए तलाशने पहुंचे स्वास्थ्यकर्मियों एवं पुलिस को इनकी हिंसा का शिकार होना पड़ा है। किसी तरह लाया गया तो कोरंटाइन सेंटरों एवं अस्पतालों में वे अनुशासन मानने को तैयार नहीं। उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज करने पड़े हैं। इसके बावजूद काफी लोग निकलकर नहीं आए हैं। केवल महाराष्ट्र में 162 जमातियों पर प्राथमिकी दर्ज हुई है। यह बात सामान्य सोच में नहीं आ सकती कि किसी को यह पता चल गया हो कि कोरोना से उसकी जान खतरे है, जहां वह है वहां लोगांे को खतरे में डाल रहा है लेकिन अपील पर अपना चेक कराने या इलाज कराने सामने नहीं आए, जब उसे पकड़ा जाए तो वह हिंसा करे और अस्पताल में भर्ती कराने पर डॉक्टर से लेकर अन्य स्वास्थ्यकर्मियों का जीना मुहाल कर दे। इससे पता चलता है कि इनको मानसिक रुप से कितना खतरनाक बना दिया गया है। इस तरह कोरोना संकट के तो ये कारण बने ही हैं, भविष्य में देश के लिए खतरे का साफ संकेत दे रहे हैं। इस तरह की मानसिकता वाले अपने साथ समाज के दुश्मन हैं। इनका खुलेआम समर्थन भी कट्टर मानसिकता और व्यवहार का ही पर्याय है। 

मानसिक रुप से कट्टर बनाए जा चुके ऐसे लोग अपने आका के अलावा किसी की बात आसानी से नहीं मानते। वे स्वयं भी मरेंगे और दूसरों को भी मारेंगे। आतंकवादी आत्मघाती दस्ता किस मानसिकता में बनते हैं? इतना भयानक अपराध करके देश को संकट में डालने के बाद यदि कुछ अपनी जान बचाने के लिए अच्छा व्यवहार करने भी लगे तो इससे इनके मूल चरित्र को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। काफी संख्या में अभी भी ये छिपे हैंं और बाहर नहीं आ रहे। किंतु इसमें आश्चर्य जैसा कुछ नहीं है। जिस संगठन का प्रमुख ही छिप जाए उसके सदस्यांें का आचरण इसके उलट नहीं हो सकता। मौलाना साद को पुलिस ने नोटिस भेजा। उनसे26 सवाल पूछे गए। उन्होंने इनका जवाब देने की बजाय अपने को कोरंटाइन में होने का एक संदेश जारी कर दिया। कोरंटाइन में होने से पुलिस और स्वास्थ्यकर्मी के सामने आने में क्या बाधा हो सकती है? यह केवल मानसिकता का प्रश्न है। एक मानसिकता तो यह रही है कि कानून और सरकारों की एडवायजरी हमारे ठेंगे पर। भले मृत्यु हो जाए लेकिन पुलिस-प्रशासन की बात मानकर समर्पण करने की सोच ही नहीं है। इसका निष्कर्ष तो यही निकलता है कि जैसे ये मान चुके हैं कि अल्लाह के अलावा उन पर किसी का कानून और एडवायजरी लागू नहीं होता। मौलाना साद ने भले अपनी तकरीरों में सीधे यह पंक्ति नहीं बोला लेकिन उनके कहने का सीधा अर्थ यही था। इसके आधार पर पैदा हुई लाखों जमातियों की मानसिकता कोरोना संकट के भयावह प्रसार का कारण बन रहा है। 

इस समय कोरोना है तो इसमें इनका दोष दिख रहा है लेकिन इनकी खतरनाक मानसिकता एवं व्यवहार का मामला काफी विस्तृत है। इस संगठन की गहराई से जांच कर कार्रवाई होनी चाहिए ताकि इस वृक्ष से निकलते विष को रोका जा सके। ऐसा नहीं करने का परिणाम देश को भुगतना पड़ेगा। सबसे बढ़कर मानसिकता के उपचार को लेकर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। मुस्लिम समाज के जो लोग या संगठन इसमें साथ देने को तैयार नहीं, या सरेआम जमात के बचाव में लगे हैं ....उनको भी चिन्हित कर कानून की सीमाओं में लाया जाए। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208



शनिवार, 4 अप्रैल 2020

तबलीगी जमात का कृत्य कोरोना से संघर्ष के सारे कदमों पर पानी फेरने वाला

 

अवधेश कुमार

तबलीगी जमात के प्रति सहानुभूति दिखाने वाले सबसे पहले कुछ खबरों पर नजर डाल लें। राजधानी दिल्ली में कई जगहों पर तबलीगी जमात के कोरोना के संदिग्ध मरीजों द्वारा अस्पताल में स्वास्स्थ्यकर्मी के साथ बदतमीजी का मामला सामने आने के बाद अस्पतालों और क्वारंटाइन सेंटरों पर पुलिस बल तैनात करने करना पड़ा है। दिल्ली सरकार और अस्पतालों के अधिकारी शिकायतें कर रहे हैं कि ये लोग क्वारैंटाइन सेंटरों, असपतालों में मेडिकल स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं, गालियां दे रहे हैं, उनके ऊपर थूक फेंक रहे हैं। दक्षिण-पूर्वी दिल्ली में रेलवे के पृथक केंद्रों में रखे गए, तबलीगी जमात के कार्यक्रम से जुड़े करीब 160 लोगों ने उनकी जांच कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ दुर्व्यवहार किया और उनपर थूका। निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों में से 167 को तुगलकाबाद में रेलवे के पृथक केंद्रों में लाया गया था। उत्तर रेलवे के प्रवक्ता दीपक कुमार ने कहा कि पृथक केंद्रों में उन्होंने स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार किया और खुद को दिए जा रहे भोजन को लेकर आपत्ति जताई...यहां तक कि उन्होंने उन्हें देख रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर थूक तक दिया। तबलीगी जमात में शामिल एक सदस्य ने बुधवार राजीव गांधी सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल की छठी मंजिल पर स्थित आइसोलेशन वार्ड के कमरे में भर्ती इस कोरोना संदिग्ध ने दस मिनट तक कूदने का नाटक किया। गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल प्रशासन की शिकायत पर तो तबलीगी जमातियों के खिलाफ अश्लील हरकत करने, स्वास्थ्यकर्मियों को धमकियां देने, हंगामा करने आदि के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करानी पड़ी है। 

ये कुछ उदाहरण पर्याप्त हैं यह साबित करने के लिए स्वयं को धर्म प्रचार समूह बताने वाले तबलीगी जमात के लोगों का चरित्र और आचरण कैसा है। बहरहाल, आज का सच यही है कि निजामुद्दीन मरकज में आयोजित तबलीगी जमात सम्मेलन में भाग लेने वाले भारत में कोरोना कोविड 19 का सक्रमण के सबसे बड़े समूह बन गए हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 2300 पॉजिटिव मामलों में से 645 से ज्यादा निजामुद्दीन मरकज से जुड़े हुए हैं। देश भर में तबलीगी जमात के जो 9000 लोगों की पहचान की गई है, उनमें से 1300 लोग विदेशी हैं। इन्हें कोरंटाइन में रखा गया है। इस तरह भारत के कुल मरीजों में 27 प्रतिशत से ज्यादा तथा मृतकों में करीब 33 प्रतिशत अभी तक तबलीगी जमात के लोग ही हैं। राजधानी में तो कुल 350 संक्रमितों में से 290 निजामुद्दीन मरकज से ही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने साफ कहा है कि मरकज के कारण कोविड-19 के मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है। जिन 22 राज्यों से आए लोगों का पता चला है वो सब खतरे के दायरे में आ गए हैं। ये कोरोना के चलते-फिरते टाइम टिक-टिक करते टाइम बम हैं। आशंका यह बढ़ रही है केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने अपने परिश्रम तथा प्रबंधन से एवं आम भारतीयों ने अपने संयम, संतुलन से इच्छाओं का दमन कर, घरों में बंद रहकर दुनिया के प्रमुख देशों की तुलना में कोरोना के प्रसार को काबू में रखने में जो सफलताएं पाईं हैं वो इनकी करस्तानियों से नष्ट हो सकता है। 

ये कैसे रंग बदलते हैं इसका उदाहरण देखिए। तब्लीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद ने 2 अप्रैल को अपने समर्थकों के लिए एक मिनट 15 सेकंड का ऑडियो जारी किया है जिसमें वो अपने बारे में दावा कर रहे हैं कि मैं दिल्ली में ही सेल्फ क्वारैंटाइन में हूं। वो जमात के सदस्यों से अपने घरों में रहने, सरकार के निर्देशों का पालन करने और कहीं पर एकसाथ एकत्रित ना होने की अपील कर रहे हैं। क्या मासूमियत है! इन्हीं मौलाना साद का ऑडियो-वीडियो यू ट्यूब पर था जिसे हटा दिया गया। कोरोना संकट आरंभ होने से लेकर लौकडाउन तक वे लगातार अपनी तकरीरे देते रहे। उसमें वे कोरोना को खड़ा किया गया झूठा हौव्वा, जानबूझकर मुसलमानों के खिलाफ साजिश करार देते हैं। वे कहते हैं कि इसे मुसलमानों को मुसलमानों से अलग करने के लिए लाया गया है ताकि वो एक दूसरे से मिलें-जुलें नहीं। मस्जिद में रहो, यदि तुम्हारी मौत हो जाती है तो इससे अच्छी मौत हो ही नहीं सकती है। ..ऐेेसी उनकी कई तकरीरें हैं। इन्हें हजारों लोगों ने सुना। कोरोना को लेकर उनकी क्या मानसिकता होगी इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। जिस तरह से मरकज के लोगों की तलाश में या विदेश से आए लोगों को पता चलने पर उनको बचाने गई डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की टीम पर जगह-जगह हमले हुए वे इस बात के प्रमाण हैं कि इनके दिमाग में मजहबी कट्टरता या इस्लाम के नाम पर कितना जहर भर दिया गया है। दिल्ली के निजामुद्दीन स्थिति मरकज से लोगों को निकालने में पुलिस-प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी। 36 घंटे तक चलाए गए ऑपरेशन के बाद एक अप्रैल सुबह 4 बजे मरकज खाली कराया गया था। मरकज से 2,361 लोग निकाले गए।  

मरकज में आने वाले लोगों का संबंध जिन 22 राज्यों से जुड़ रहा है उनमें तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, उत्तरप्रदेश, तेलंगाना, पुडुचेरी, कर्नाटक, अंडमान निकोबार, आंध्रप्रदेश, श्रीनगर, दिल्ली, ओडिशा, प.बंगाल, हिमाचल, राजस्थान, गुजरात, मेघालय, मणिपुर, बिहार, केरल और छत्तीसगढ़ शामिल है। गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को इन्हें ढूंढकर तुरंत कोरंटाइन करने जांच करने तथा विदेशियों को देश से बाहर निकालने का आदेश दिया है। गृह मंत्रालय ने 960 विदेशी नागरिकों को ब्लैकलिस्ट में डालते हुए जमात से संबंधित गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर उनका पर्यटन वीजा रद्द करन का फैसला किया है। सरकार ने विदेशियों की वीजा को देखा तो पता चला कि इनमें से अधिकतर पर्टयन वीजा पर भारत आए हैं। इसमें सरकार का कहना है कि ये किसी धार्मिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकते। पर्यटन वीजा पर आकर मजहब का प्रचार करने, मजहबी जलसों में तकरीरें करने की तो शायद ही किसी देश में अनुमति हो। 

तबलीगी जमात के इस अपराधिक कृत्य के बावजूद प्रमुख मुस्लिम संगठनों और नेताओं द्वारा इनकी मुखर आलोचना न करना इसका ऐसा पहलू है जो हैरान करता है। उल्टे जो नेता और संगठन तबलीगी जमात से असहमति रखते थे, वे  भी समर्थन में आ गए हैं। ये क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि जमात के लोगों ने अपने प्रति, मुस्लिम समुदाय के प्रति तथा देश के प्रति भयानक अपराध किया है। यह मुस्लिम समाज के ही खिलाफ है। जमात के 20 लोग मर चुके हैं। इतनी सख्ंया में संक्रमितों तथा मृतकों का अपराधी कौन माना जाएगा? जब मार्च के आरंभ से ही एडवायजरी जारी की जा रही थी कि बड़ी संख्या में न जुटें,  मेलजोल से अलग रहें, बहुत आवश्यक न हो तो यात्रा न करंें, तो इसका पालन जमात को क्यों नहीं करना चाहिए था? दूसरे, 12 मार्च को दिल्ली सरकार ने 200 से ज्यादा लोगों के एकत्रित होने को प्रतिबंधित कर दिया था। इसके बावजूद उनका सम्मेलन आयोजित हुआ, क्योंकि जमात के अमीर मौलाना साद एवं उनके समर्थकों के लिए इन एडवाजरियों तथा दिल्ली सरकार का आदेश इस्लाम के प्रतिकूल था। यह कट्टर मानसिकता ही समस्या है। 

अगर इनने अनजाने में किया होता तो इन्हें क्षमा भी किया जा सकता था। लेकिन इन्होंने सब कुछ जानते हुए घोषित करके दिशा-निर्देशों, आदेशों और एडवायजरी का उल्लंघन किया। जमात का यह कैसा इस्लाम है? दूसरे धर्मों के सारे केन्द्र आम लोगों के लिए बंद किए जा चुके थे। तबलीगी जमात के लोगों का इससे कोई लेना-देना ही नहीं था। अगर यह संगठन मजहब का प्रचार करता है तो फिर ऐसा कृत्य कैसे कर सकता है जिससे इनके लोगों की जान तो जाए ही दूसरे भी चपेट में आकर जीवन गंवा दें? यह ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब देश को तो तलाशना ही है, स्वयं मुस्लिम समुदाय को इसकी ज्यादा जरुरत है। निजामुद्दीन मरकज जलसे से निकलने के बाद लोग जिन क्षेत्रों से और जिन साधनों से गुजरे और उस बीच उनके साथ जितने लोग संपर्क में आए उन सबका पता करना मुश्किल है। समस्या यह भी है कि इनमें से अनेक यह स्वीकारते ही नहीं कि वो निजामुद्दीन मरकज के कार्यक्रम में गए थे, जबकि उनका नाम सूची में है। इस कारण पुलिस को इनके साथ सख्ती बरतनी पड़ रही है। एक मजहबी संगठन के लोग इस तरह झूठ बोलें तो उससे ही पता चल जाता है कि इसमें कैसी मानसिकता पैदा की जाती है। सवाल यह भी है कि आखिर ये लगातार अपील के बाद स्वयं सामने क्यों नहीं आए हैं? पुलिस को क्यों जगह-जगह इनको ढूंढकर लाना पड़ रहा है? क्या ये चाहते हैं उनके कारण कोरोना का प्रकोप बढ़े? यह कितना बड़ा अपराध है इस पर जरा विचार करिए। ये जगह-जगह और डॉक्टरों पर थूकते क्यों हैं, जबकि इन्हें मालूम है कि थूकने से संक्रमण फैलता है? तो क्या ये जानबूझकर संक्रमण फैलाना चाहते हैं? यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर इनके व्यवहार को देखते हुए न में देना जरा कठिन है। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208 





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