शनिवार, 20 जुलाई 2024

व्यवस्था को विकृत करती कांवड़ राजनीति

भविष्य की आहट

डा. रवीन्द्र अरजरिया

देश की संवैधानिक व्यवस्था के तहत समय-समय पर समसामयिक परिस्थितियों के अनुरूप कानून बनाने का प्राविधान रखा गया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा सहित अनेक सरकारी अधिनियमों में सेवारत जनसेवक को नेम प्लेट लगाना आवश्यक किया गया है जिसमें जनसेवक का नाम, पद एवं पदस्थापना का स्थान अंकित होना चाहिए। इस कानून का अनुपालन अतिविशिष्ट व्यक्ति के आगमन के दौरान देखने को मिलता है। बाकी सामान्य कार्यकाल के दौरान इस दिशा में अनुशासनहीनता ही दिखती है। इसी तरह खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत होटल, रेस्टोरेन्ट, ढाबों और ठेलों सहित भोजनालयों के मालिकों आदि को अपना नाम, फर्म का नाम, पंजीकृत पता, लाइसेन्स नम्बर आदि लिखना अनिवार्य है। 
जागो ग्राहक जागो, योजना के अन्तर्गत नोटिस बोर्ड पर सामग्री की मूल्य सूची लगाना भी जरूरी है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कांवड यात्रा के दौरान मार्ग की दुकानों पर इसे कडाई से लागू करने की पहल होते ही अनेक राजनैतिक दलों ने हास्यास्पद दलीलों के आधार पर विरोध करना शुरू कर दिया। व्यवस्था को विकृत करती कांवड राजनीति। सरकार की प्रत्येक पहल पर विरोध करने की मानसिकता से ग्रसित हो चुके विपक्ष का लक्ष्य अब केवल और केवल नकारात्मकता फैलाकर एक पक्ष को प्रसन्न करना रह गया है ताकि वोट बैंक में इजाफा हो सके, समर्थकों की भीड बढ सके और निर्मित की जा सके एक इशारे पर आन्तरिक युध्द का वातावरण। राज्यों की पुलिस तथा भारतीय रेल के कर्मचारियों के अलावा शायद ही किसी अन्य महकमे के सेवाकर्मी अपने परिधान पर नेम प्लेट लगाते हों। वरिष्ठ अधिकारियों से तो यदि नाम-पद पूछ लिया जाये तो फिर उनके प्रतिशोध का शिकार होने से बचना ही मुश्किल हो जाता है। बडे साहब की कौन कहे उनके अधीनस्थ भी यही रवैया अपनाते हैं। गुड खाने वाला व्यक्ति गुड न खाने की सीख कैसे दे सकता है। 
सरकारी तंत्र की मनमानियों पर चलते हुए अनेक संगठनों ने तो खुल्लम खुल्ला लोक स्वीकृति के नाम पर असंवैधानिक कृत्यों को सही ठहराने की बेशर्मी भी दिखाना शुरू कर दी है। विगत दिनों चिकित्सकों के डाक्टर लिखने का मुद्दा गर्माया। नियमत: चिकित्सक अपने नाम के आगे डाक्टर नहीं लिख सकता है। वह नाम के बाद अपनी योग्यता लिखने के लिए अधिकृत है। इस मुद्दे पर आईएमए ने अपने इस मनमानी को लोक स्वीकृति का नाम देकर संवैधानिक व्यवस्था को सरेआम मुखौल उडा। स्वयं-भू कानून निर्माताओं की बाढ नेे देश की संवैधानिक व्यवस्था को तार-तार करना शुरू कर दिया है। दुकानों पर नाम, पता, संपर्क नम्बर, मूल्य सूची आदि लिखने की व्यवस्था को तोडने के पीछे छदम्म भेष में धोखाधडी करने की मंशा स्पष्ट रूप से दिखती है। कानून के तहत यह एक दण्डनीय अपराध है। व्यक्ति की नियत ही महात्वपूर्ण होती है। आत्मरक्षा में चलाई गई गोली या हत्या के लिए चलाई गई गोली में बहुत अन्तर होता है। पहचान छुपाने के पीछे जालसाजी, धोखाधडी, सोची समझी साजिश, क्षति पहुंचाने की मंशा, धार्मिक भावनाओं पर आघात, सामाजिक वैमनुष्यता के लिये वातावरण निर्मित करके दंगा फैलाने का षडयंत्र जैसे अनेक अपराध स्थापित होते हैं।
केवल कांवड यात्रा मार्ग पर ही नहीं बल्कि समूचे देश में यह नियम कडाई से लागू होना चाहिए ताकि संविधान की वास्तविक रक्षा हो सके। सरकारी सेवाओं के लाभ लेने के लिए नाम के साथ-साथ जाति, वर्ग और सम्प्रदाय आदि का शोर मचाया जाता है परन्तु जब सरकारी नियमों के अनुपालन की समय आता है तो विरोध में आसमान सिर पर उठाने की पहल शुरू हो जाती है। अनेक राजनैतिक दल केवल विरोध करने को ही अपना आदर्श मानते हैं। उपलब्धियों पर प्रमाण चाहते हैं। विकास पर नकारात्मकता परोसते हैं। ऐसे दलों के मुखिया अपने घर की बातों को मनमाने तर्को, प्रमाणों और साक्ष्यों के आधार पर बवन्डर बनाकर दुनिया के सामने पेश करते हैं। देश की बढती साख में बट्टा लगाने वाले सत्ता पर काबिज होने के लिए जायज से अधिक नाजायज संसाधनों का खुलकर उपयोग करने लगे हैं। धर्म की आड में जब हलाल जैसे टैग वस्तुओं की पैकिंग पर लगाये जा रहे हैं तब किसी ने कोई आवाज नहीं उठायी। थूक और मूत में सने उत्पादनों की धडल्ले से हो रही बिक्री के अनेक सबूत सामने आने के बाद भी कार्यवाही न होने से ऐसे कृत्य करने वालों के मंसूबे दिन दुगने-रात चौगुने होकर बढने लगे हैं। 
वर्तमान में संविधान की धारायें केवल और केवल निरीह, लाचार और राष्ट्रभक्तों पर ही लागू हो रहीं है जबकि अनेक जनसेवक, जनप्रतिनिधि, जनसेवक जैसे दमगेधारी अपनी मर्जी से कानून बनाते हैं, उन्हें लागू करते है और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं। संविधान में वर्णित विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अलावा वर्तमान में दबंगपालिक सर्वाधिक प्रभावी होती जा रही है जिसमें राजनैतिक दलों के कद्दावर नेताओं से लेकर अपराध की दुनिया में दहलका मचाने वाले लोगों की एक बडी जमात शामिल है। ऐसे में आम आवाम को संविधान की रक्षा के लिए खडा होना पडेगा अन्यथा केवल लाल किताब हाथ में लेकर संसद में पहुंचने वाले नेता अपने लाल, भगवां, हरे, पीले, नीले और काले अभिनय की दम देश को दुनिया के सामने न केवल बदनाम ही करेंगे बल्कि राष्ट्र को भी गुलामी की ओर बढाकर अपनी रिश्तेदारी में विदेश भाग जायेंगें। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
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