गुरुवार, 28 मार्च 2024

संघ की प्रतिनिधि सभा : जन भावना को समझ कर काम करने से हो रहा विस्तार

अवधेश कुमार

नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा के दौरान संपूर्ण भारत और भारत में अभिरुचि रखने वाले विश्व भर के मीडिया का एकत्रीकरण था। सामने लोकसभा चुनाव के कारण ऐसा लग रहा था कि वहां से इसके संबंध में कुछ रणनीति ऐसी बनेगी, ऐसा वक्तव्य आएगा जो समाचार , बहस और विचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण होंगे। लंबे अनुभव के बावजूद पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की अवधारणा बदली नहीं है कि चुनाव या राजनीतिक दल या सरकार को फोकस करके संघ के आयोजन होते नहीं। यह संभव नहीं कि चुनाव हो और इसमें संघ की अभिरुचि नहीं हो या उसमें उनकी कोई भूमिका हो ही नहीं। यह भूमिका किस रूप में हो सकती है ? इस बारे में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का वक्तव्य ध्यान देने योग्य है- चुनाव देश के लोकतंत्र का महापर्व है। देश में लोकतंत्र और एकता को अधिक मजबूत करना और प्रगति की गति को बनाए रखना आवश्यक है। संघ के स्वयंसेवक सौ प्रतिशत मतदान के लिए समाज में जन-जागरण करेंगे। समाज में इसके संदर्भ में कोई भी वैमनस्य, अलगाव, बिखराव या एकता के विपरीत कोई बात न हो, इसके प्रति समाज जागृत रहे। 

राजनीति और चुनाव को सर्वोपरि मान लेने वाले इस माहौल में सहसा विश्वास करना कठिन है कि देश का सबसे बड़े स्वयंसेवकों का संगठन केवल मतदाता जागरूकता या समाज में सौमन्स्य आदि की दृष्टि से ही चुनाव के दौरान काम करेगा। यह पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की जिम्मेवारी है कि वे देखें कि ऐसा होता है या नहीं? ऐसे सभी संगठनों की जो सीधे दलीय चुनावी राजनीति में शामिल नहीं है, यही यथेष्ट भूमिका हो सकती है। मतदान में किसी दल या उम्मीदवार को अवश्य सहयोग करिए, लेकिन संगठन के रूप में चुनावी भूमिका नहीं होनी चाहिए। आप मतदाताओं के बीच जाएं, उन्हें मुद्दों के प्रति जागरूक करें , मतदान के लिए प्रेरित करें तथा इस बीच राजनीतिक दलों के परस्पर आक्रामक तीखे बयानों, आरोपों तथा समाज के अंदर मतदान के लिए वैमनस्य फैलाने वाले या तनाव और हिंसा पैदा करने वालों के असर को कम करने की कोशिश करें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयं को अगर समाज में एक संगठन की जगह समाज का संगठन मानता है तो उसके लिए कोई राजनीतिक दल दुश्मन नहीं हो सकता। हां, राजनीतिक दलों की नीतियां उसके विरुद्ध हैं, यानी उसके अनुसार देश हित में नहीं है तो तात्कालिक विरोध किया जा सकता है।

 प्रतिनिधि सभा ऐसी बैठक होती है जिसमें संघ के सभी शीर्ष पदाधिकारी, प्रांत स्तर के पदाधिकारी और 36 अनुषांगिक संगठनों के प्रमुख या प्रतिनिधि उपस्थित होते हैं। इस नाते 1500 वैसे प्रमुख प्रतिनिधियों की एक जगह उपस्थिति, विमर्श और निर्णय अत्यंत महत्व के होंगे। इसमें सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का पुनर्निर्वाचन हुआ और वे अगले 3 वर्ष यानी 2027 तक पद पर रहेंगे। संघ पर निष्पक्षता से अध्ययन करने वाले इसका खंडन करते हैं कि यहां चुनाव होता ही नहीं। चुनाव नियमित होते हैं किंतु ज्यादातर अन्य संगठनों या राजनीतिक दलों की तरह पदों की होड़ न होने के कारण नकारात्मक प्रतिस्पर्धा नहीं होती। प्रतिनिधि सभा से घोषित कार्यक्रमों में अहिल्याबाई होल्कर के जन्म के 300 वर्ष  को मई, 2024 से अप्रैल 2025 तक मनाया जाना है। कितने राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के महत्व का आभास है? कौन राष्ट्रीय संगठन समाज विशेषकर महिलाओं को प्रेरणा देने की दृष्टि से इस तरह का कार्यक्रम आयोजित करेगा? इसके अलावा जो विषय वहां चर्चा में थे उनमें संघ के स्वयंसेवकों द्वारा वर्ष में किए गए मुख्य कार्य,श्रीराम मंदिर निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का राष्ट्रीय जागरण की दृष्टि से प्रभाव, संदेशखाली की भयावाहक घटना और मणिपुर, पंजाब आदि शामिल थे।  अगर दत्तात्रेय होसबोले कहते हैं कि स्वतंत्र भारत में संदेशखाली जैसी घटनाएं लोगों को झकझोर देने वाली हैं, दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए तथा इसमें सभी दलों को अपनी राजनीतिक स्वार्थों को छोड़कर महिला सुरक्षा और समाज के इस विषय पर एक मत से ऐसी कार्रवाई करनी चाहिए कि भविष्य में ऐसा करने को कोई सोच नहीं सके तो इससे कौन असहमत हो सकता है? स्वतंत्रता, समानता और समता पर आधारित समाज के लक्ष्य रखने वाले हर संगठन और व्यक्ति को संदेशखाली चिंतित करने वाला होना चाहिए। दुर्भाग्य से राजनीतिक, बौद्धिक एवं आंदोलनात्मक एक्टिविस्टों की दुनिया में इतना तीखा विभाजन है कि यह सोचकर कहीं भाजपा को इसका चुनावी लाभ न मिल जाए अनेक दल, संगठन, बुद्धिजीवी और पत्रकार इसे बड़ा मुद्दा बनाने से बचते हैं। यह शर्मनाक है।‌ ऐसे लोग संघ पर कोई टिप्पणी करेंगे तो समाज उसे स्वीकार नहीं कर सकता।

स्वाभाविक है कि 2025 की विजयदशमी को संघ का 100 वर्ष पूरा हो रहा है तो उसकी चर्चा होगी और उसके अनुसार योजनाएं बनेंगी। हालांकि संघ यही कह रहा है कि उसे जब तक यह संसार है तब तक काम करते रहना है, उसमें अनेक 100 वर्ष आएंगे। तो 100 वर्ष का कोई ऐसा विशेष महत्व नहीं है किंतु उसका ध्यान रखते हुए ज्यादा से ज्यादा शाखा और संपर्क विस्तार हो यही लक्ष्य सामने आ रहा है और उसी की पुष्टि प्रतिनिधि सभा में भी हुई। संघ द्वारा दिए आंकड़ों के अनुसार 2023 के 68,651 शाखाओं के मुकाबले संघ की शाखाओं की संख्या बढ़कर 73,117 पर पहुंच गई। जिन स्थानों पर शाखा लगती है, उनकी संख्या 42,613 से बढ़कर 45,600 हो गई।‌ प्रतिनिधि सभा में  तय हुआ कि, वर्ष 2025 की विजयादशमी से पूर्ण नगर, पूर्ण मंडल तथा पूर्ण खण्डों में दैनिक शाखा तथा साप्ताहिक मिलन का लक्ष्य पूरा होगा।‌ शाखाओं की संख्या 1 लाख करने का लक्ष्य है। श्रीराममंदिर के उद्घाटन समारोह से पहले अयोध्या से लाए गए पूजित अक्षत को घरों में बांटने के दौरान संघ एवं समवैचारिक संगठनों के 44 लाख 98 हजार कार्यकर्ता 5 लाख 98,778 गांवों तक पहुंचे थे। 19 करोड़ 38 लाख परिवारों तक अक्षत पहुंचाया गया और 22 जनवरी को पांच लाख 60 हजार स्थानों पर 9.85 लाख कार्यक्रम हुए। अन्य अनेक संगठनों की समस्या है कि भारत के जनमानस को न समझने के कारण उचित भूमिका नहीं निभाते या विपरीत चले जाते हैं। दूसरी ओर संघ उसे समझ कर उसके अनुसार भूमिका निभाती है और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश करता है। आप संदेशखाली को इसलिए महत्व नहीं देंगे कि इससे भाजपा को लाभ हो जाएगा तो जनमानस, जो उनकी आवाज उठाएगा उसके साथ जाएगा। ‌ श्रीराम मंदिर का उदाहरण लीजिए। राम मंदिर के निर्माण के लिए चंदा एकत्रित करने के लिए संघ के कार्यकर्ता 10 करोड़ से अधिक घरों में पहुंचे थे।  प्राण प्रतिष्ठा से संबंधित कार्यक्रमों में 27.81 करोड़ लोगों की हिस्सेदारी का आंकड़ा दिया गया है। जरा सोचिए विरोधियों को कल्पना थी कि प्राण प्रतिष्ठा उत्सव के लिए संघ अपने संपूर्ण परिवार के साथ इतना व्यापक अभियान चला रहा है? संघ ने अयोध्या आंदोलन को  सामान्य मंदिर निर्माण का नहीं, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और राष्ट्र निर्माण के आंदोलन के रूप में लिया और इसके लिए समाज के सभी वर्गों के साथ संपर्क और उनका मंदिर से किसी न किसी रूप में जोड़ने के लिए हरसंभव प्रयत्न किया। प्रतिनिधि सभा में श्रीराम मंदिर राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर नामक शीर्षक से पारित प्रस्ताव को देखने के बाद आभास हो जाता है कि संघ नेतृत्व ने पहले तथा वर्तमान एवं भविष्य की दृष्टि से  फोकस कर दूरगामी दृष्टि से योजनाएं बनाई हुई है। उसी का परिणाम है कि अभी तक श्रीराम मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ बनी हुई है। 

वास्तव में श्री राम मंदिर भारत के मानस और व्यवहार में परिवर्तन का स्वतंत्रता के बाद अभी तक का सबसे बड़ा कारक बन रहा है।श्रजिन लोगों तक श्रराम मंदिर के चंदे के लिए या पूजित अक्षत आदि को लेकर स्वयंसेवक -कार्यकर्ता गए  उनमें विरोधियों या तटस्थ लोगों की बड़ी संख्या होगी, किंतु उन तक भी पहुंचने का यह श्रेष्ठ माध्यम था, क्योंकि भारतीय समाज में श्रीराम का विरोध नहीं तथा अयोध्या में ध्वस्त किए गए स्थान पर मंदिर बनना चाहिए यह भावना सामूहिक रही है। यह विरोधियों के लिए भी ठहरकर अपने व्यवहार पर पुनर्विचार करने का समय है।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल- 98110 27208

मंगलवार, 26 मार्च 2024

मैं हुआ रिटायर

मैं हुआ रिटायर, 
सारे मोहल्ले में खबर हो गई..!
सब तो थे खुश पर, 
पत्नी जी खफा हो गईं !!

मैंने पूछा प्यार से क्या हुआ 
क्यों खफा हो गईं ? 
बोली मुझको घूर कर 
मेरी तो फजीहत हो गई ।।

आप हुए रिटायर, 
यानी उम्र आपकी साठ हो गई। 
इस कारण पड़ोसनों को 
मेरी भी उम्र ज्ञात हो गई ।।

कल तक जो दीदी कहती थी, 
आंटी आज पुकार रहीं। 
जिनको हम दीदी कहते थे, 
वे तीखे नयनों से निहार रहीं

मेरे काले बालों में वे 
गोदरेज हेयर डाई तलाश रहीं। 
घूमने जाने के नाम पर वे 
सारे तीरथ बखान रहीं । 

अगर हो रहे थे रिटायर, 
तो पहले से धंधा तलाशते। 
रोज की तरह निकल जाते, 
और मेरी इज्जत संभालते।।

😳😳।                       सभी रिटायर्ड को समर्पित, हाल में रिटायर एक परिचित द्वारा प्रेषित प्रसंग 🙏

सोमवार, 25 मार्च 2024

उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर की मछली शहर सीट पर भाजपा प्रत्याशी घोषित न होने से कार्यकर्ताओं में बेचैनी

संवाददाता
जौनपुर। होली के दिन भाजपा उम्मीदवारों की पांचवीं सूची आ गई, वहीं प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लोकसभा से सटी हुई मछली शहर सीट पर भाजपा प्रत्याशी की घोषणा न होना भाजपा कार्यकर्ताओ में घोर निराशा व्याप्त है। लोगो को पता होगा भाजपा के पड़ोस की सीट फूलपुर से कभी देश के प्रथम प्रधानमन्त्री प जवाहर लाल नेहरू हुआ करते थे और मछली शहर से प्रदेश के मुख्य मंत्री रह चुके श्रीपति मिश्र और राज केशर सिंह जैसे सांसद हुआ करते है पर वर्ष 2014 से इस सीट पर बड़े विचित्र ढंग से भाजपा प्रत्यासी चुने जाते हैं, वर्ष 2014 मे पूर्व सांसद विद्या सागर सोनकर, डा विजय सोनकर शास्त्री और पूर्व नौकरशाह व राष्ट्र वादी लेखक बसंत कुमार के दावे को दरकिनार कर गोंडा के निवासी राम चरित्र निषाद ,जोइसी सीट से 2009 मे  भाजपा प्रत्यासी विद्या सागर सोनकर के खिलाफ चुनाव लड़ चुके थे, को आनन फानन मे भाजपा जॉइन करा कर भाजपा का प्रत्यासी बना दिया हैरानी इस बात की रही कि इस सीट पर सांसद रहते हुए उन्होंने अपने आप को दलित नही माना और अपने आप को ओ बी सी नेता मानते रहे और वर्ष 2019 मे मछली शहर से टिकट कटने पर मिर्जापुर से पिछड़े वर्ग के नेता के रूप मे सपा प्रत्यासी के रूप मे अनुप्रिया पटेल के खिलाफ लड़े। 
   मछली शहर मे वर्ष 2019 मे फिर वही बात दोहराई गयी और दर्जनों भर भाजपा के दावे दारो को दरकिनार कर एक हफ्ते पहले बसपा से बी पी सरोज को लाकर भाजपा से टिकट दे दिया गया और 2014 की भाति बसंत कुमार, विद्या सागर और डा विजय शास्त्री हाथ मलते रह गए। 
सांसद बनने के बाद बी पी सरोज ने लोगो के बीच खूब मेहनत की पर वे एक अलग संस्कृति वाली पार्टी बसपा से आये थे और संगठन और कार्यकर्ताओ से सामंजस्य नही बिठा पाए और चाटुकारो से घिर गए पर संभावना यह थी की उन्हे पुन: टिकट दिया जाता, पर कार्यकर्ताओ की उनके प्रति नाराजगी के कारण उनका टिकट कटता देख बरसाती मेढ़कों की तरह कई लोग सपा बसपा से कुछ माह पूर्व भाजपा मे इसलिए आ गए है कि उन्हे भाजपा टिकट पूर्व की भाति दे देगी। 
पर इस बार भाजपा किसी खाँटी भाजपाई को ही मछली शहर से टिकट देगी, ऐसे खाटी भाजपाईयो मे एक नाम बसंत कुमार का है जो भारत सरकार मे स्वैक्षिक सेवा निर्वित्ति लेकर वर्ष 2011 मे भाजपा मे आये और इन्हे आज भी इनके कामो के कारण भाजपा के संस्थापको मे जाने जाने वाले कलराज मिश्र का हनुमान कहा जाता हैं और हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, डा आंबेडकर पर दर्जनों पुस्तके लिख चुके हैं और स्तंभकर के रूप मे हर सप्ताह इनके लेख छपते है जहाँ वे बड़े बेबाकी से अपने विचार व्यक्त करते है, यदि बसन्त कुमार को मछली शहर से भाजपा अपना प्रत्यासी बनाती है तो भाजपा रिकॉर्ड मतो से जीतेगी और क्षेत्र का विकास भी होगा।

रविवार, 24 मार्च 2024

वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया की करनाल इकाई द्वारा आयोजित होली मिलन समारोह में कांग्रेस, भाजपा और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने की शिरकत

 
वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया की जिला ईकाई द्वारा आयोजित होली मिलन समारोह में आए विभिन्न राजनीति पार्टी के नेतागण व समाजसेवी। 
 
  •   वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया ने समाज को हमेशा एक करने का प्रयास किया : एमपी संजय भाटिया
संवाददाता
करनाल। भाजपा सांसद संजय भाटिया ने कहां कि वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया की जिला करनाल की ईकाई ने होली मिलन समारोह का आयोजन कर समाज की अलग-अलग विचार धारा रखने वालों को एक करने काम किया है और ऐसे कार्यक्रम हमेशा से समाज में एकता का संदेश देते है। श्री भाटिया आज श्री कृष्णा मंदिर में आयोजित वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया की जिला ईकाई द्वारा आयोजित होली मिलन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बेशक आज यहां पर अलग-अलग विचाारधारा रखने वाले लोग पहुंचे, लेकिन समाज के नाते हमारा परिवार एक है और मैं सब को होली के पर्व की बहुत बहुत बधाई देता हॅू। उन्होंने कहा कि होली एक ऐसा त्यौहार है कि जो दो दुश्मनों को दुश्मनी समाप्त कर एक होने का व आपसी रंजीश को समाप्त करने व पुरानी बातों को भुलाकर एक दुसरे को गले लगाकर भाईचारे का संदेश देता है। 
उन्होंने कहां की सौ गलत फैमलियां बन जाती है, लेकिन होली का पर्व सब कुछ भुलाकर आपसी भाईचारे का संदेश देता है। ज्ञात रहे कि जिला ईकाई द्वारा होली मिलन समारोह में खास तौर पर डब्ल्यूजेआई के राष्ट्रीय सचिव विकास सुखीजा, राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य मेहश शर्मा व हरियाणा के प्रेस सचिव शिव बत्तरा उपस्थित हुए। जब कि कार्यक्रम का आयोजन जिला कार्यकारी अध्यक्ष विनय विज, समन्वय प्रमुख मनीश शर्मा, सह समन्यय प्रमुख हरविंद्र सिंह व पूर्व जिला महिला अध्यक्ष नीरा माटा द्वारा आयोजित किया गया।
इस अवसर पर खास तौर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी राष्ट्रीय सचिव विरेंद्र सिंह राठौर, कांग्रेस के जिला संयोजक सरदार त्रिलोचन सिंह, पूर्व सीएम मनोहर लाल के पूर्व करनाल विधानसभा के प्रतिनिधि संजय बठला सहित कांग्रेस के नेता अशोक खुराना सहित समाजसेवी रिंकू घरौंडा, अरविंद्र मान, कपील अत्रेजा, एमसी कश्यप, प्रवेश गाबा, भाजपा नेता विनय संधु, समाजसेवी एंव भाजपा नेता रिंका चीमा, एडवोकेट संजय मदान, एडवोकेट जितेंद्र राणा सहित प्रराग गाबा, वरिष्ठ पत्रकार शिव शर्मा सहित गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। आज के इस अवसर पर वार्ड नंबर-8 की पूर्व पार्षद मेघा भण्डारी भी पहुंची। इस मौके पर कांगे्रस के राष्ट्रीय सचिव विरेंद्र सिंह राठौर ने उपस्थित गणमान्य लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि होली पर्व भाईचारे का संदेश देता है और इस दिन सभी प्रकार की गलत फैमियों को मिटा कर सभी को गले लगाकर सभी विवाद समाप्त कर नई जिंदगी की शुरूआत करनी चाहिए। 
उन्होंने इस मौके पर कहां कि उनकी यही सोच है कि जिस क्षेत्र में वो रहते है वहां के साथ-साथ अभी क्षेत्रों का समान विकास होना चाहिए। इस मौके पर उपस्थित कांग्रेसी नेता सरदार त्रिलोचन सिंह ने कहा कि उन्हों मालूम है कि वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया ने हमेशा से ही समाज को एक करने व सकारात्मक पत्रकारियता करने में अपना अहम योगदान दिया है। उन्होंने इस मौके पर डब्ल्यू जे आई के राष्ट्रीय सचिव विकास सुखीजा धन्यवाद व आभार प्रकट करते हुए कहां कि सुखीजा ही हमेशा से ही समाज को एक करने के लिए अपने संगठन द्वारा सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाते रहते है, उनकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। इस मौके पर डब्ल्यू जे आई की जिला ईकाईन उपस्थित गणमान्य लोगों को दोशाला व स्मृति ङ्क्षचह् देकर सम्मानित किया। आज के इस कार्यक्रम में उपस्थित कलाकारों ने भजनों पर नृत्य कर समा बांध दिया।

गुरुवार, 21 मार्च 2024

इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में हेरा-फेरी की आशंका

बसंत कुमार

पिछले दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से देश की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को गुप्त चंदा देने और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा इन बॉन्डों के सहारे जो पैसा मिला है उसकी सही जानकारी न देने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। दरअसल इस समय इलेक्टोरल बॉन्ड ऐसा शब्द बन गया है जिसकी चर्चा हर ओर हो रही हैं क्योकि देश के अधिकांश दलों को इन बॉण्डों के माध्यम से मिलने वाले चंदे को सार्वजनिक कराने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर टिप्पणी करने और आवश्यक निर्देश देना पड़ा। इस पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए डेटा शेयर किया जिसे चुनाव आयोग ने 14 मार्च को सार्वजनिक किया पर इस डेटा में कई कमिया थी और यह डेटा अधूरा था। इस डेटा में पारदर्शिता न होने के कारण तरह-तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं। इस सेट में आधी अधूरी जानकारी देने से बवाल मच गया था क्योंकि इसमें हर बॉण्ड का यूनिक कोड नहीं दिया गया था, जिससे बॉण्ड खरीदने वाले और उसे कैश कराने वाली पार्टी का मिलान कराया जा सके।

इसके अलावा इसमें 12 अप्रैल 2019 से पहले खरीदे गए बाँड्स की जानकारी नहीं दी गई थी जबकि इस अवधि में खरीदे गए बॉण्डों की कीमत 4000 करोड़ रुपए से अधिक थी और इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने और इसके माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा देने का धंधा वर्ष 2017 से ही शुरू हो गया था जबकि जिस यूनिक कोड को पहले दिये गये सेट में छिपाया गया था उस यूनिक कोड से यह पता चल जाता कि डोनर और चंदा लेने वाली पार्टी के बीच संबंध क्या है और किस तरह से इन कम्पनियों को राजनीतिक दलों द्वारा फेवर किया गया है।

चुनाव आयोग द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड का दूसरा डेटा 17 मार्च को शेयर किया गया और इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही पीठ के प्रमुख मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचुड़ ने ये डेटा एक साथ न शेयर करने पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को भी फटकार लगाई, पर चुनाव आयोग की वेबसाइट पर यह डेटा पूरी तरह अपलोड होने पर यह सार्वजनिक हो गया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किस कंपनी ने किस राजनीतिक दल को कितना पैसा दिया और यह भी सही है कि इन इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये सत्ताधारी पार्टियों को अधिक पैसा मिला और केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा के अलावा बंगाल में सत्ता में रह रही टीएमसी और ओडिशा में सत्ता में रह रही बीजेडी जैसी पार्टियों ने भी खूब पैसा बटोरा। इन सबसे में अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि तमिलनाडु में शासन कर रही डीएमके को सबसे अधिक चंदा फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस के मालिक सैटियागो मार्टिन जिसे लॉटरी किंग के नाम से जाना जाता है की कंपनी ने कुल 1300 करोड़ से ज्यादा के मूल्य के बाँड्स खरीदे और डीएमके को सबसे अधिक 656.5 करोड़ के बॉण्ड खरीदकर दिये। इससे स्वयं समझा जा सकता हैं कि पेरियार के सामाजिक न्याय का दंभ भरने वाली पार्टी जब सटोरियों से इतना अधिक डोनेशन ले रही है तो वह पेरियार के आदर्शों को कैसे पूरा करेगी, फ्यूचर गेमिंग के अलावा डीएमके को कई बड़ी कंपनियों ने डोनेशन दिए। मेधा इंजीनियरिंग 105 करोड़, इंडिया सीमेंट्स 14 करोड़ और सन् टीवी ने 10 करोड़ दिये।

नई जानकारी के अनुसार लाटरी किंग की फ्यूचर गेमिंग से ममता बनर्जी की टीएमसी को कम से कम 540 करोड़ के चुनाव बॉण्ड मिले। फ्यूचर गेमिंग ने डीएमके, भाजपा, कांग्रेस को भी इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से डोनेट किये, इसने टीएमसी और डीएमके अलावा वाईएसआर कांग्रेस को 160 करोड़, भाजपा को 100 करोड़ और कांग्रेस को 50 करोड़ दिये, दूसरा इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे बड़ा खरीददार हैदराबाद की मेधा इंजीनियरिंग है जिसने भाजपा, बीआरएस और डीएमके सहित कई दलों को 966 करोड़ दिये, इसके अलावा वेदांता ग्रुप ने भाजपा, कांग्रेस, बीजेडी को चंदा दिया जबकि भारती एयरटेल ने बीजेपी, अकाली दल, आरजेडी और कांग्रेस को चंदा दिया इनके अलावा न जाने कितनी कंपनिया है जिन्होंने पक्ष-विपक्ष की सभी पार्टियों को चंदा दिया।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को दिये गए ऐतिहासिक फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को ही असंवैधानिक करार कर दिया और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को इस स्कीम के तहत बेचे गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने के आदेश दिये थे, पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने उस आदेश जिसमें यह जानकारी, 6 मार्च 2024 तक देने की बात कही गई थी उसे 30 जून 2024 तक बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी और इस अपील पर ही कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को फटकार लगाई थी और बैंक को ये डेटा मार्च महीने में शेयर करने के लिए कहा, जबकि बैंक की मंसा यह थी कि मामले को लोकसभा चुनाव तक लटकाया जाए जिससे लोगों को चुनाव के पहले इस गोरखधंधे में किस पार्टी को कितना पैसा मिला पता चल सके। सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े रुख में की परिणति चुनावी फंडिंग के मामले में एक सकरात्मक पहल के रूप में हुई।

आश्चर्यजनक यह है कि कुछ कंपनियों जैसे फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस ने अपने यहां ईडी की कार्यवाही शुरू होने के बाद खरीदे और अब यह देखना है कि बॉण्ड खरीदने के पश्चात इनके ऊपर ईडी कार्यवाही में कितनी ढील दी गई और यह आशंका यदि सच साबित होती है तो ईडी की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न उठने लगेंगे, वैसे भी कुछ वर्षों में ईडी और सीबीआई के सरकारों द्वारा दुरुपपयोग के आरोप लगने लगे हैं पर लोग इसे विपक्ष का चुनावी हथकंडा मानते थे। यदि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद-फरोख्त के बाद राजनीतिक दलों द्वारा इन कंपनियों को फेवर देने की बात सच साबित हुई तो यह देश के मतदाताओं के साथ सरासर ठगी होगी।

जब चुनाव आयोग और न्यायालय यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के आय के स्रोत और उनके अपराधिक रिकॉर्ड के बारे में मतदाता को जानने का हक है और चुनाव जितने के बाद भी वह अपने बारे में जानकारी छुपाने का दोषी पाया जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है, ठीक इसी प्रकार राजनीतिक दलों को भी अपनी आय का स्रोत छुपाये जाने पर उसकी मान्यता रद्द कर दी जानी चाहिए क्योंकि देश में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना के लिए हमारे महापुरुषों ने बड़ा त्याग किया है और देश के नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार दिया है पर इस लोकतंत्र को धनाड्यों, बाहुबलियों, भूमाफियों द्वारा हाई-जैक करने नहीं दिया जाना चाहिए।

(लेखक भारत सरकार के पूर्व उप सचिव हैं।) M-9718335683

सीएए का विरोध औचित्यहीन

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सीएए या नागरिकता संशोधन कानून को अमल में लाने को लेकर किसी को संदेश था तैयार गलती उसकी थी। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा चुनाव के पूर्व इसे लागू करने के बयान के बाद तो केवल तिथि की प्रतीक्षा थी। विरोधियों की प्रतिक्रियाएं  वही हैं जैसी संसद में पारित होने के पूर्व से लेकर लंबे समय बाद तक रही है। यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि आखिर ऐन चुनाव के पूर्व ही इसे लागू करने की क्या आवश्यकता थी?  अगर लागू नहीं किया जाता तो चुनाव में विरोधी यही प्रश्न उठाते कि इसे लागू क्यों नहीं कर रहे? हालांकि आम लोगों के मन में यह प्रश्न उठेगा कि इतना समय क्यों लगा? कानून पारित होने के बाद नियम तैयार करने के लिए गृह मंत्रालय को सात बार विस्तार प्रदान किया गया था। नियम बनाने में देरी के कई कारण रहे। कानून पारित होने के बाद से ही देश कोरोना संकट में फंस गया और प्राथमिकतायें दूसरी हो गई। दूसरे, इसके विरुद्ध हुए प्रदर्शनों ने भी समस्याएं पैदा की। अनेक जगह प्रदर्शन हिंसक हुए, लोगों की मौत हुई और दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे तक हुए। तीसरे,विदेशी एजेंसियों और संस्थाओं की भी इसमें भूमिका हो गई। चौथे, उच्चतम न्यायालय में इसके विरुद्ध याचिकाएं दायर हुई। इन सबसे निपटने तथा भविष्य में लागू करने पर उनकी पूनरावृत्ति नहीं हो इसकी व्यवस्था करने में समय लगना ही था। मूल बात यह नहीं है कि इसे अब क्यों लागू किया गया। मूल यह है कि इसका क्रियान्वयन आवश्यक है या नहीं और जिन आधारों पर विरोध किया जा रहा है क्या वे सही है?

यह बताने की आवश्यकता नहीं कि कानून उन हिंदुओं, सिखों, बौद्धों , जैनों , पारसियों और ईसाइयों के लिए है, जो 31 दिसंबर , 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण पलायन कर भारत आने को विवश हुए थे। यानी यह कानून इनके अलावा किसी पर लागू होता ही नहीं। भारत में नियमों के तहत आवेदन कर कोई भी नागरिकता प्राप्त कर सकता है। केवल इस कानून के तहत इन समुदाय के लोगों के लिए नागरिकता प्राप्त करना आसान बनाया गया है।  उदाहरण के लिए नागरिक कानून, 1955 में आम विदेशी के‌ लिए भारत में रहने की अवधि 11 वर्ष है जबकि उनके लिए 5 वर्ष किया गया है। यह आशंका ही निराधार है कि इससे किसी को बाहर निकाला जाएगा। सीएए गैर कानूनी रूप से रह रहे विदेशियों या किसी को निकालने के लिए नहीं लाया गया है। इसके लिए विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 पहले से हैं।‌ नागरिकता कानून, 1955 के अनुसार अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या वापस उनके देश भेजा जा सकता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने इनमें संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी भारत में रुकने तथा कहीं भी आने-जाने की छूट दे‌ दी थी  तो   विशेष प्रावधान के द्वारा आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक में खाता खुलवाने, अपना व्यवसाय करने या जमीन तक खरीदने की अनुमति दी गई।  इस तरह उन्हें भारत द्वारा अपने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी थी। निस्संदेह, इस कानून के बाद उत्पीड़ित वर्ग भारत आना चाहेंगे। पर इस समय जनवरी 2019 की संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार इनकी कुल संख्या 31, 313 है।  ये सब भारत में वर्षों से रह रहे हैं।

आज विरोध करने वाले विपक्षी दलों के दोहरे आचरण के कुछ उदाहरण देखिए। एक, राज्यसभा में 18 दिसंबर, 2003 को मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘विभाजन के बाद बांग्लादेश जैसे देशों से बहुत सारे लोग भारत आए थे। यह हमारा नैतिक दायित्व है कि अगर परिस्थितियां इन दुर्भाग्यशाली लोगों को भारत में शरण लेने के लिए बाध्य करें तो हमारा रवैया इनके प्रति और अधिक उदार होना चाहिए।’ दो, 4 फरबरी, 2012 को माकपा के महाधिवेशन ने बाजाब्ता पूर्वी पाकिस्तान या बांग्लादेश से आए हिन्दू-सिख-बौद्धों को नागरिकता दिए जाने का प्रस्ताव पारित किया था। तीन, 3 जून, 2012 को माकपा नेता प्रकाश करात ने यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर बांग्लादेश से आए लोगों को मानवाधिकार के चलते नागरिकता देने की मांग की थी। चार,पश्चिम बंगाल में इस कानून को लागू न करने का विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने वाली ममता बनर्जी ने 4 अगस्त , 2005 को लोकसभा में यह मामला उठाते हुए हिन्दुओं को नागरिकता देने की मांग की थी।

यह विषय आजादी के समय से ही चला रहा है। महात्मा गांधी ने 26 सितंबर ,1947 को प्रार्थना सभा में कहा था कि हिन्दू और सिख वहां नहीं रहना चाहते तो वे भारत आएं। भारत का दायित्व है कि उन्हें यहां केवल रहने ही नहीं दे, उनके लिए रोजगार सहित अन्य व्यवस्थाएं करें।  डॉ. बाबा साहब अंबेदकर राईटिंग्स एंड स्पीचेज  के 17 वें वॉल्यूम के पृष्ठ संख्या 366 से 369 तक उनके विचार लिखे हैं।‌ एक उदाहरण -  भारत में अनुसूचित जातियों के लिए निराशाजनक संभावनाआंें के बावजूद मैं पाकिस्तान में फंसे सभी से कहना चाहूंगा कि आप भारत आइए। .. जिन्हें हिंसा के द्वारा इस्लाम धर्म में परिवर्तित कर दिया गया मैं उनको कहता हूं कि आप अपने बारे में यह मत सोचिए कि आप हमारे समुदाय से बाहर हो गए हैं। मैं वायदा करता हूं कि यदि वे वापस आते हैं तो उनको अपने समुदाय में शामिल करेंगे और वे उसी तरह हमारे भाई माने जाएंगे जैसे धर्म परिवर्तन के पहले माने जाते थे।’ बाबा साहब ने 18 दिसंबर , 1947 को प्रधानमंत्री पं. नेहरु पत्र लिखकरअनुरोध किया कि पाकिस्तान सरकार से कहें कि अनुसूचित जातियों के आने के रास्ते बाधा खड़ी न करे। नेहरु जी ने 25 दिसंबर, 1947 जवाब में लिखा कि हम अपनी ओर से जितना हो सकता है पाकिस्तान से अनुसूचित जातियों को निकालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। स्वयं को अंबेडकरवादी कहने वाले अगर इस कानून का अभी भी विरोध कर रहे हैं तो इससे अनैतिक आचरण कुछ नहीं हो सकता। नागरिकता संशोधन कानून बाबा साहब अंबेडकर के विचारों को साकार करने वाला है।

वास्तव में यह मानवता की रक्षा के लिए बना प्रगतिशील कानून है। धार्मिक अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न से बचाने,  उन्हें शरण देने, उनकी सहायता करने पर संपूर्ण विश्व में एकमत है तथा संयुक्त राष्ट्र इसकी चर्चा करता है। भारत विभाजन के बाद तीनों देशों से उम्मीद की गई थी कि वे अपने यहां अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा प्रदान करेंगे। विभाजन के समय अल्पसंख्यकों की संख्या पाकिस्तान में 22 प्रतिशत के आसपास थी जो आज दो प्रतिशत भी नहीं है। बांग्लादेश की 28 प्रतिशत हिन्दू आबादी 8 प्रतिशत के आसपास रह गई है। अफगानिस्तान में तो बताना ही मुश्किल है। वे या मुसलमान बना दिए गए, मार दिए गए या फिर भाग गए। भागने वाले तो कम ही थे क्योंकि उनको गले लगाने वाला कोई देश था नहीं। विभाजन के साथ ही पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न, उनका  जबरन धर्मान्तरण ,संपत्तियों पर कब्जा करने आदि की शुरुआत हो गई।

अत्याचार के कारण लोगों ने भागना आरंभ किया लेकिन नागरिकता के लिए उस समय 19 जुलाई, 1948 की समय सीमा निर्धारित कर दी गई थी। इस कारण उस समय सीमा के बाद आने वालों के लिए नागरिकता के रास्ते बंद हो गए। आज के बांग्लादेश और तब के पूर्वी पाकिस्तान सहित पूरे पाकिस्तान में गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर उत्पीड़न की घटनाओं के बीच 8 अक्टूबर, 1950 को नई दिल्ली में नेहरु लियाकत समझौता हुआ। इसमें दोनों देशों ने अपने यहां अल्पसंख्यकों के संरक्षण, जबरन धर्म परिवर्तन न होने देने सहित अनेक वचन दिए....। भारत ने आज तक इसका शब्दशः पालन किया है जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश ने इसके विपरीत आचरण किया। यही कारण है कि आज भारत में उस समय के 9.7 प्रतिशत मुसलमान की संख्या 15% के आसपास हो गई और उन देशों में घटती चली गई। जब अपने धर्म का पालन करते हुए निर्भय होकर सुरक्षित जीने तक की स्थिति नहीं है तो क्या उनको इन देशों के मजहबी कट्टरपंथी व्यवस्था के हवाले ही छोड़ दिया जाए? वास्तव में नागरिकता संशोधन कानून के क्रियान्वयन के साथ दशकों से उत्पीड़ित शर्णार्थियों को राहत की सांस लेने और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिलेगा। इनकी सांस्कृतिक, सामाजिक भाषायी सभी प्रकार के पहचाने की रक्षा हो सकेगी। यह विभाजन के साथ आरंभ हुई प्रक्रिया को ही आगे बढ़ाना है जिसकी आवश्यकता तब तक है जब तक  इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को स्वतंत्रतापूर्वक सम्मानजनक सुरक्षित जीवन जीने का आधार नहीं बनता।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर , पांडव नगर कंपलेक्स , दिल्ली- 110092, मोबाइल -9811027208



बुधवार, 20 मार्च 2024

NoMeansNo POSH कॉन्क्लेव चैप्टर 2 ने कुल PoSH अनुपालन को बढ़ावा देने में नए मानक स्थापित किए


संवाददाता

नई दिल्ली। नोमीन्सनो, सेंटर फॉर स्किल डेवलपमेंट एंड ट्रेनिंग की एक पहल, ने नोमीन्सनो पॉश कॉन्क्लेव के बहुप्रतीक्षित अध्याय 2 की मेजबानी की, जो पूरे भारत में टोटल पीओएसएच (यौन उत्पीड़न की रोकथाम) अनुपालन को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। 20 मार्च को अलोफ्ट एयरोसिटी, नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों, सरकारी निकायों, कॉर्पोरेट प्रतिनिधियों और उद्योग जगत के नेताओं की जबरदस्त प्रतिक्रिया देखी गई।

पीओएसएच अनुपालन के बारे में जागरूकता और समझ को बढ़ावा देने पर केंद्रित इस सम्मेलन में राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू), दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) और कई कॉर्पोरेट संस्थाओं सहित महत्वपूर्ण अधिकारियों की भागीदारी हुई। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षणों में से एक श्री अजय चौधरी, आईपीएस, विशेष पुलिस आयुक्त (एसपीयूडब्ल्यूएसी और स्पूनर) की उपस्थिति थी, जो इस अवसर पर मुख्य विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

पीओएसएच अधिनियम पर श्री चौधरी की गहन अंतर्दृष्टि और व्यापक ज्ञान के साथ-साथ कानूनी मामलों को संबोधित करने में उनकी विशेषज्ञता ने उपस्थित लोगों को अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया। उन्होंने यौन उत्पीड़न से संबंधित किसी भी शिकायत या शिकायत के मामले में कानून के संरक्षकों से संपर्क करने के महत्व पर जोर दिया, जिससे सभी के लिए एक सुरक्षित कामकाजी माहौल सुनिश्चित हो सके।

NoMeansNo के दूरदर्शी संस्थापकों, श्री विपिन पचौरी और श्री विशाल भसीन की सराहना करते हुए, श्री चौधरी ने इस तरह के एक महत्वपूर्ण मंच को आयोजित करने में उनकी पहल की सराहना की। उन्होंने देश भर में पीओएसएच अनुपालन पर जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों, संघों और डोमेन के दिग्गजों को एक छत के नीचे एकजुट करने के उनके प्रयासों की सराहना की।

इसके अलावा, श्री चौधरी ने श्री विशाल भसीन द्वारा लिखित "POSH प्रो गाइड" के विमोचन के लिए अपनी सराहना व्यक्त की। यह व्यापक गाइडबुक संगठनों को संपूर्ण POSH अनुपालन प्राप्त करने के लिए एक स्पष्ट और व्यवस्थित रोडमैप प्रदान करने का वादा करती है, जिससे कार्यस्थल के भीतर प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित होती है।

NoMeansNo POSH कॉन्क्लेव के अध्याय 2 की सफलता पूरे भारत में कार्यस्थलों में सम्मान, समानता और सुरक्षा की संस्कृति को बढ़ावा देने की सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है। जैसे-जैसे राष्ट्र व्यापक पीओएसएच अनुपालन की दिशा में अपनी यात्रा जारी रख रहा है, इस तरह की पहल एक बेहतर और अधिक समावेशी कल को आकार देने में महत्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में काम करती हैं।
 

NoMeansNo और आगामी घटनाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए, कृपया [www.nomeansno.in] पर जाएं या [विपिन पचौरी - 9953608209] से संपर्क करें।

भारत मंडपम में आयोजित तीन दिवसीय स्टार्ट-अप : महाकुंभ का समापन

संवाददाता 

नई दिल्ली। नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित किया गया। ASSOCHAM की ओर से आमंत्रित मैरी कॉलेज के प्रोफेसर अमित वी. 1. हंस और 48 छात्रों ने भी इस समारोह में भाग लिया। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि वे भाशा को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए संकल्प-बुद्ध सूक हैं। इसके लिए स्टार्ट-अप महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। उन्होंने यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क ए.आई. कहा कि भारत ए. आई. में अग्रणी रहेगा। वे स्वयं भी ए.आई. की मदद से विविध भाषा‌ओं के इस देश में अपनी बात लोगों तक पहुंचाते।


मंगलवार, 19 मार्च 2024

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 'CAA पर 3 हफ्ते में जवाब देने को कहा', अगली सुनवाई 19 अप्रैल को

नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं 200 से ज्यादा याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सीजेआई ने आदेश दिया कि जवाब दाखिल करने के लिए सरकार ने चार हफ्ते का समय मांगा है. लेकिन कोर्ट उन्हें तीन हफ्ते का मोहलत देती है। 

सुनवाई को दौरान वकील कपिल सिब्बल ने किसी को भी नागरिकता ना देने का गुहार लगाई. सिब्बल ने कहा कि कोर्ट ने 19 अप्रैल को अगली सुनवाई की तारीख तय की है. इस बीच अगर नागरिकता दी जाती है तो हम दोबारा कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. बता दें कि सीएए के खिलाफ याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है।

सीएए को भारत की संसद ने 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया था. यह कानून व्यापक बहस और विरोध का विषय रहा है. सीएए, 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करता है. यह कानून अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई समुदायों से आने वाले उन प्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है, जो अपने संबंधित देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हैं और 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं।

पिछले हफ्ते, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आईयूएमएल की याचिका का उल्लेख करते हुए कहा था कि चुनाव नजदीक हैं. इसलिए सीएए संसद से पारित होने के चार साल बाद नियमों को अधिसूचित करना सरकार की मंशा को संदिग्ध बनाता है।

कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि सीएए धर्म के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है. उन्होंने यह तर्क दिया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत 'समानता के अधिकार' का उल्लंघन करता है. याचिकाकर्ताओं में केरल की इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML), तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, एनजीओ रिहाई मंच और सिटीजन्स अगेंस्ट हेट, असम एडवोकेट्स एसोसिएशन और कुछ कानून के छात्र शामिल हैं।

शनिवार, 16 मार्च 2024

जहां अंधेरा वहां उजाला कार्यक्रम के अंतर्गत 28 पोलों पर विधायक अनिल वाजपेयी ने लगवाई स्ट्रीट लाइटें

संवाददाता

नई दिल्ली। गांधी नगर विधानसभा के विधायक अनिल वाजपेयी ने अपनी विधानसभा में जहां अंधेरा वहां उजाला कार्यक्रम के अंतर्गत समेत सभी 28 पोलो का लाइट समेत स्विच दबाकर स्थानीय लोगों से उद्घाटन कराया। विधायक के दौरे के समय जहां-जहां लोगों ने डार्क स्पॉट की बात की वहां-वहां लाइट शुरू करा दी। उपस्थित सभी लोगों ने विधायक का व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद किया।
जहां एक और विधायक ने पोल समेत लाइट लगवाई वहीं दूसरी ओर शास्त्री पार्क वार्ड के क्लस्टर झुग्गी झोपड़ी में 21.28 लाख रुपए की लागत से सारी सड़क और टॉयलेट के सौंदर्याकरण और 17.36 लाख रुपए की लागत से चंद्रपुरी क्लस्टर कैलाश नगर में और देवलोक गली बनने का उदघाटन किया। विधायक अनिल वाजपेयी ने बताया कि लगभग एक करोड़ की लागत से ये सारे कार्य कराए जा रहे हैं। श्री वाजपेयी ने बताया कि लगभग 2 करोड़ 73 लाख रुपए की लागत से अभी भी कार्यों की फाइल गूगल मैपिंग की वजह से रुकी हुई है जल्दी ही उसका भी समाधान हो जाएगा। इस अवसर पर पूजा शर्मा, भरत भदौरिया, मोहम्मद अम्मान, ऋषि राय अरुण मिश्रा, शैलेन्द्र शर्मा, गौरव जैन, संजय गुप्ता, दीपक गुप्ता, चमन भारद्वाज, अजय शर्मा सुनील प्रधान समेत काफी संख्या में आरडब्ल्यूए के लोग उपस्थित थे।
 
 

 

 
 

 


 

 
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