सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

कानपुर की घटना कानून की ताकत का दुरुपयोग है

अवधेश कुमार

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले की मड़ौली गांव में घाटी त्रासदी की दुःस्वप्न में भी कल्पना नहीं की जा सकती। सच नहीं हो तो इस पर विश्वास करना कठिन होता कि सामान्य झोपड़ी को गिराने के लिए पुलिस प्रशासन के साथ काफी संख्या में लोगों के रहते हुए मां बेटी अंदर जलकर खत्म हो गई। घटना इतनी बड़ी हो गई, इसलिए यह संपूर्ण देश की सुर्खियों में आ गया। कल्पना करिए, अगर मां बेटी के जलने की भयावह घटना नहीं होती तो क्या स्थिति होती? स्थानीय पुलिस और प्रशासन का एक ही लक्ष्य दिखता था –परिवार को बलपूर्वक उजाड़ दो और न माने तो कानूनी कार्रवाई करो। मां प्रमिला दीक्षित और बेटी नेहा दीक्षित की भयानक मौत के बावजूद प्रशासन का बयान था कि दोनों ने स्वयं को आग लगा लिया। तो पूरी घटना को किस तरह देखा जाए?

मां बेटी स्वयं को आग क्यों लगाएंगी इसका तार्किक उत्तर किसी के पास नहीं है। बावजूद मान लीजिए दोनों ने आग लगाया भी तो उसके लिए दोषी किसे माना जाएगा? क्या वहां उपस्थित पुलिस प्रशासन और लोगों का दायित्व नहीं था कि आग से उनको बचाने की कोशिश करें? किसी ने बचाने की कोशिश नहीं की। इसका केवल इतना अर्थ नहीं है कि पुलिस प्रशासन एवं उपस्थित लोगों को अनहोनी का आभास नहीं था। वास्तव में आग लगने के बावजूद बुलडोजर से झोपड़ी को गिराना साबित करता है कि  उपस्थित सरकारी महकमा हर हाल में मनमानी करने पर उतारू था। यानी उन्हें अपने विरुद्ध किसी तरह की कार्रवाई का डर नहीं था।

ये दोनों स्थितियां डरावनी हैं। अतिक्रमण हटाना प्रशासन की जिम्मेवारी है लेकिन उसका तरीका दादागिरी का नहीं हो सकता। साथ ही आम लोगों का भी दायित्व है कि वे ऐसी नौबत आने पर जान बचाने की कोशिश करें। आग लगने के बाद बुलडोजर से झोपड़ी को गिरा दिया गया। ऐसा न किया जाता तो आग इतना नहीं भड़कता। लोग आग बुझाने और मां बेटी को निकालने की जगह वीडियो बना रहे थे। हैरत की बात है कि किसी ने भी पुलिस से नहीं कहा कि आग लग गई है इसलिए बुलडोजर को रोका जाए। अगर आग लगने पर झोपड़ी न गिराई जाती और दरवाजा तोड़कर प्रमिला और नेहा को निकाला जाता तो संभवतः उनकी जान नहीं जाती। इस तरह वहां उपस्थित अधिकारी, पुलिसकर्मी तथा सारे लोग स्पष्ट तौर पर मां बेटी को जलाकर मारने के दोषी हैं।

जांच के लिए सरकार ने विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन कर दिया है। एसडीएम, लेखपाल, स्थानीय थाना प्रभारी सहित नामजद व अज्ञात कुल 42 लोगों पर हत्या सहित गंभीर धाराओं में मुकदमा किया जा चुका है। चौथा के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद और लेखपाल अशोक चौहान निलंबित हुए तथा लेखपाल गिरफ्तार कर लिए गए हैं। मामला इस स्तर पर पहुंच गया है कि कार्रवाई में कोताही असंभव है।उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने वीडियो कॉलिंग पर परिवार से बात की और देश ने सुना है। इसी तरह पीड़ित परिवार को मुआवजा, सरकारी नौकरी, कृषि भूमि का पट्टा, पेंशन आदि की घोषणा हो गई है। क्या इससे सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो गई?

कानून के सामान्य राज में इस तरह की अविश्वसनीय त्रासदी होनी ही नहीं चाहिए । ठीक है कि वह जमीन ग्राम समाज की है। अगर प्रशासन के पास इसकी शिकायत आई तो जांच में उसे यह पता क्यों नहीं चला कि पीड़ित कृष्णगोपाल दिक्षित किस मजबूरी में वहां बसे हैं?  1 महीने पहले परिवार का पक्का मकान गिराया गया था। उसके बाद उन्होंने झोपड़ी बना ली थी। पानी पीने का हैंडपंप तक एसडीएम ने तुड़वा दिया था। वह वहां लंबे समय से रह रहे थे। वहां पुश्तैनी पेड़ थे जो गिर गया था और उसकी जगह दूसरे पेड़ लगे हुए थे। ग्रामीण बता रहे हैं कि दीक्षित परिवार के अंदर के ही आपसी तनाव की महत्वपूर्ण भूमिका है। दूसरे पक्ष की पूरी कोशिश थी कि उन्हें बेघर किया जाए। लेखपाल एवं एसडीएम तक किसी तरीके से उनकी प्रभावी पहुंच नहीं होती तो इस तरह की कार्रवाई के लिए प्रशासन सामान्य तौर पर तत्पर नहीं होता। परिवार के पास दूसरी जमीन होती तो शायद वहां नहीं बसते। चबूतरे पर पूजा पाठ के लिए मंदिर भी बना रखा था। यानी परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था। परिवार पर कभी किसी को तंग करने या गलत करने का आरोप सामने नहीं आया है।  केवल उत्तर प्रदेश नहीं देशभर के गांवों में सरकारी, धार्मिक संस्थानों और गैरमजरूआ जमीनों पर जगह-जगह कब्जे हैं। प्रशासन बहुत कम जगह इस तरह तत्पर दिखता होगा। अभी तक की जानकारी यह भी है कि मामला जिलाधिकारी तक भी पहुंचा था। गोपाल कृष्ण परिवार और मवेशी के साथ जिलाधिकारी तक पहुंच गए थे लेकिन उन्हें वहां से हटाया गया तथा उनके विरुद्ध धारा 144 से लेकर बलवा करने आदि में प्राथमिकी भी दर्ज हुई। एक सामान्य परिवार पर थाना में मुकदमा दर्ज हो जाए तो उसकी क्या दशा होती है इसकी कल्पना वही कर सकते हैं जिनको अनुभव हो।

जाहिर है , परिवार परेशान था। उसमें एसडीएम जैसे स्थानीय स्तर के लिए उच्च अधिकारी और लेखपाल पुलिस बल के साथ पहुंचकर बुलडोजर से घर गिराने लगे तो मां बेटी और परिवार की क्या मानसिकता होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। इसलिए घटना कि सही तरीके से जांच हो। उम्मीद की जा सकती है कि विशेष जांच दल पता लगाएगा कि नौबत यहां तक आने के पीछे वास्तविक कारण क्या है? यह इसलिए आवश्यक है ताकि भविष्य के लिए उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की अन्य सरकारें भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कदम उठा सकें। कुछ घंटे पूर्व तक जो परिवार अतिक्रमणकारी दिख रहा था वह सरकारी जमीन पाने का पात्र हो गया। कैसी विडंबना है! उनके पास जमीन होती तो वह सरकारी जमीन पाने के हकदार नहीं होते। हालांकि घटना को जातीय एंगल देना गलत है क्योंकि दोनों पक्ष ब्राहण जाति के हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि बेचारगी और प्रभावहीनता उनमें भी हैं जिन्हें हम सवर्ण जातियां कहते हैं। राजनीति से परे उठें तो योगी आदित्यनाथ सरकार की सबसे बड़ी यूएसपी कानून और व्यवस्था है। बुलडोजर भू माफियाओं, गुंडों, दादाओं के विरुद्ध एक प्रबल हथियार बना है जिसे दूसरी राज्य सरकारें भी अपना रहीं हैं। यह घटना बताती है कि अगर पुलिस प्रशासन की सोच और व्यवहार न बदले तो कानून व्यवस्था स्थापित करना सर्वसामान्य लोगों के लिए ट्रेजेडी बन जाती है। राज्य सरकार इसे अकेली घटना मानेगी तो दूसरे रूप में इसकी पुनरावृत्ति होगी। 

निश्चित मानिए कि स्थानीय पुलिस प्रशासन की कार्रवाइयों का  प्रदेश में कुछ लोग अवश्य शिकार हो रहे होंगे। उप्र पुलिस और प्रशासन के रवैये पर जगह -जगह सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ता ही नाराजगी प्रकट करते रहते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं - नेताओं की बड़ी नाराजगी यही थी कि पुलिस प्रशासन नियंत्रण से बाहर है, हमारी बात नहीं सुनता और विरोध करने पर मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करता है। उप्र पुलिस प्रशासन के विरुद्ध शिकायतें आम है। कई बार छोटे-छोटे मामलों में बेरहमी से पेश आती है और लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज देती है जिसकी आवश्यकता नहीं होती। जरा सोचिए, भारत के बाहर भारतवंशी जिस बुलडोजर को प्रतीक बनाकर कार्यक्रमों में प्रदर्शित कर महिमामंडित करते हैं वह प्रशासन के द्वारा ही अपराध का हथियार बन गया।

यह हमारे लोकतंत्र का विद्रूप चेहरा है कि पुलिस प्रशासन आम आदमी के प्रति उस तरह संवेदनशील और सहयोगी नहीं बना जैसा उसे होना चाहिए। किंतु योगी आदित्यनाथ की नेतृत्व वाली सरकार के अंदर प्रशासन का यह व्यवहार उद्वेलित करता है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की विजय का सर्वप्रमुख कारण यही था कि योगी जी के नेतृत्व में गुंडे, माफिया, बाहुबली कब्जे में होंगे तथा कानून व्यवस्था का पूर्ण राज्य होगा। इसलिए कानपुर की घटना को केंद्र बनाकर संपूर्ण प्रदेश में प्रशासन पुलिस की कार्रवाइयों और व्यवहारों की समीक्षा करने और आवश्यकतानुसार उनमें सुधार समय की मांग है। अपनी पार्टी और संगठन परिवार के कार्यकर्ताओं से भी इन मामलों में फीडबैक लेते रहने की व्यवस्था इस दिशा में बहुत बड़ा सहयोगी हो सकता है।

अवधेश कुमार, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली- 1100 92, मोबाइल 98110 27208

सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

सामाजिक एकता फॉउंडेशन की ओर से आयोजित ऑल इंडिया मुशायरे में आए शायरों ने बांधा समां

 मो. रियाज

नई दिल्ली। सामाजिक एकता फाउंडेशन की ओर सोमवार को सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक गौसिया मस्जिद ग्राउंड, बुलंद मस्जिद, शास्त्री पार्क में ऑल इंडिया मुशायरा का आयोजन किया गया। इस मुशायरे में देश के विभिन्न प्रांतों से आए हुए शायरों ने अपने कलाम पढ़ लोगों की वाहवाही बटोरी। पूरे मुशायरे में अपनी ओर ध्यान खींचा सबसे छोटी आठ साल की शायरा आसिमा चाँदपुरी ने। इनके एक शेर ने पूरी महफिल को ही अपना दीवाना बना लिया। आसिमा चांदपुरी ने अपने शेर में पढ़ा जन्नत का घर है मां तो दरवाजा बाप है, बच्चों की परवरिश का शीराज़ा बाप है।
मुशायरे में दिल्ली उर्दू अकेडमी के वाइस चेयरमैन हाजी ताज मोहम्मद मुख्य अतिथि थे। इस मुशायरे के कन्वीनर मोहम्मद आसिम चांदपुरी ने मुख्य अतिथि हाजी ताज मोहम्मद स्मृति चिन्ह व गुलदस्ता देकर स्वागत किया। 
मुशायरे के मुख्य अतिथि हाजी ताज मोहम्मद ने कहा कि इस तरह कार्यक्रम सामाजिक एकता के संदेश और सिद्धांतों को फैलाएंगे, वहीं दूसरी ओर ये समाज में सामाजिक सद्भाव और भाईचारे को भी मजबूत करेंगे। 
मुशायरे कार्यक्रम का निजमात क़ासिर सहसवानी द्वारा किया गया। इस मुशायरे में नामी शायर शर्फ नान पारवी, ज़फर कानपुरी, डा. ज़ाहिद एहसास, आरिफ़ देहलवी, समर बुग्रासवी, फैसल स्योहारवी, फरीद अहसास, अमीर अमरोही, जनाब आसिम चाँदपुरी साहब, जनाब ख़ुमार देहलवी, शमशाद बदायूंनी, महबूब आलम, सूफी गुलफाम शाहजहाँपुरी, बिलाल आबिद जैसे शायरों ने अपने कलाम लोगों को बीच रख समां बांधे रखा।
इस मुशायरे में चौधरी जावेद राणा, हनीफ अली, इरफान अम्बरी, अब्दुल मन्नान, रिज़वान अहमद, इशरत खान उर्फ मामू आदि ने अपना सहयोग दिया।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

अडाणी समूह के विरुद्ध बवंडर को कैसे देखें

अवधेश कुमार


अडाणी समूह को लेकर राजनीति में मचा हंगामा और सोशल मीडिया पर उठा तूफान आश्चर्यजनक नहीं है। देश में राजनीति को लेकर जिस स्तर का तीखा शत्रुतापूर्ण विभाजन है उसमें हमने लगातार ऐसे मामलों पर बवंडर और हंगामे देखे हैं जिनकी आवश्यकता नहीं थी। कहने का तात्पर्य नहीं कि विपक्षी दलों या मोदी सरकार व भाजपा विरोधियों को अमेरिकी संस्था हिंडेनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद सच्चाई जानने के लिए प्रश्न नहीं उठाना चाहिए। पर कोई विदेशी संस्था रिपोर्ट दे और हम ऐसी स्थिति पैदा कर दें जिससे लगे कि भारत की अर्थव्यवस्था हिल गई है यह परिपक्व व्यवहार नहीं माना जा सकता। लंबे समय से कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों और नेताओं ने ऐसी तस्वीर बनाने की कोशिश की है मानो अडाणी समूह और उनके अध्यक्ष गौतम अडाणी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार हर सीमाओं को लांघकर सरकारी संस्थाओं के संरक्षण में आगे बढ़ा रही है। राहुल गांधी गौतम अडाणी का नाम ले - लेकर पिछले कई सालों से हमले कर रहे हैं। विपक्ष कह रहा है कि भारतीय जीवन बीमा निगम से लेकर बैंकों में आम आदमी का पैसा है और अडाणी के कारोबार डूबने के साथ उन सबकी जिंदगी की कमाई लूट जाएगी।

हम किसी कॉर्पोरेट घराना या कंपनी समूह को पाक साफ होने का प्रमाण पत्र नहीं दे सकते , पर अदाणी कंपनियों के शेयर कीमतों में आई जबरदस्त गिरावट के साथ ही अलग-अलग संस्थाओं ने अपना वक्तव्य दे दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने स्पष्ट कहा है कि एक नियामक के तौर पर वह वित्तीय स्थिरता के लिए पैनी नजर रखता है। आरबीआई के अनुसार बैंकिंग व्यवस्था मजबूत और स्थिर है। आरबीआई को यह स्पष्टीकरण इस नाते देना पड़ा क्योंकि विपक्ष के माहौल से ऐसी तस्वीर बन रही है कि भारतीय मुद्रा बाजार संकट में आ गया है।  जब अपने देश में हम शुद्ध व्यावसायिक व आर्थिक मुद्दों तथा किसी विदेशी संस्था या देसी संस्था द्वारा लगाए गए आरोपों में तथ्यों की जांच किए बगैर हंगामा करते हैं तो उसका संदेश दुनिया भर में नकारात्मक जाता है एवं निवेशकों के अंदर आशंका पैदा होती है। इस कारण रिजर्व बैंक द्वारा स्पष्टीकरण अपरिहार्य हो गया था। अडानी समूह को कर्ज देने वाले बैंक ऑफ बड़ौदा और स्टेट बैंक दोनों ने स्पष्ट किया था कि उन्होंने नियमों के मुताबिक कर्ज दिया और अतिरिक्त कर्ज का कोई प्रस्ताव नहीं है। भारतीय जीवन बीमा निगम ने भी स्पष्ट किया कि उन्होंने केवल ₹36254 रुपया अदानी समूह के शेयर में लगाया है और अभी भी मुनाफे की स्थिति में है। यह भी साफ है कि अदाणी समूह की कुल परिसंपत्ति उसको मिले कर्ज से ज्यादा मूल्य के हैं। बावजूद अगर विपक्ष और विरोधी मानने के लिए तैयार नहीं तो इसे क्या कहा जाए। रिपोर्ट के बाद अनेक प्रकार का अफवाह भी अलग-अलग माध्यमों के इकोसिस्टम से  दुनिया में प्रसारित हो रहा है। साफ लग रहा है कि योजनाबद्ध तरीके से इकोसिस्टम काम कर रहा है ।  एक दिन में  लगभग ढाई अरब शेयर किसी समूह का बेच दिया जाना सामान्य नहीं हो सकता।

हिंडनबर्ग समाजसेवी संस्था नहीं है कि भारत और आम निवेशकों के हित के लिए रिपोर्ट जारी करेगा। वह स्वयं मानता है कि शार्ट सेलर है और अडाणी समूह के शेयरों के गिरने से उसे लाभ होगा। हिंडनबर्ग के आरोपों में से चार को मुख्य मानकर उल्लिखित किया जा सकता है।  एक, अदाणी समूह पर कर्ज बहुत ज्यादा है और उसका मूल्यांकन उसकी वित्तीय हैसियत से ज्यादा किया गया है। दो,  अदाणी समूह लिक्विडिटी यानी तरलता जोखिम में है क्योंकि उसके पास लघुकालीन देनदारियां बहुत ज्यादा है। तीन, अडाणी समूह ने टैक्स हैवन देशों में शेल कंपनियां बनाकर अपनी कंपनियों में निवेश कराया और भारी कमाई की। चार,अदाणी समूह का ऑडिट लगातार संदेह के घेरे में है। इस संबंध में तर्क देते हुए कहा है कि 8 वर्ष में कंपनी ने 5 चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर बदले। यह उसके खाता बही से संबंधित गड़बड़ी का संकेत देता है। अदाणी समूह की कंपनियों के ऑडिटरों पर भी उसने संदेह व्यक्त किया है। हमारे यहां रामचरितमानस, भगवद्गीता, वेद  पुराण सब पर प्रश्न उठ सकता है लेकिन ऐसा लगता है जैसे हिंडेनबर्ग रिपोर्ट सबसे ऊपर है जो प्रश्नों और संदेहों से परे है। अडाणी समूह ने 413 पृष्ठों में हिंडनबर्ग के आरोपों का उत्तर दिया जिसे उसने खारिज किया है। उसने स्वीकार कर लिया तो स्वयं का रिपोर्ट ही गलत साबित हो जाएगा।

हम अपने देश के  कारोबारी, संस्थाओं आदि पर विश्वास न कर विदेशी संस्था को परम विश्वासी मान रहे हैं। विपक्षी नेताओं को विश्व में कॉर्पोरेट संघर्ष , शेयर बाजार, मुद्रा बाजार, ऑडिट आदि के बारे में मान्य जानकारी लेने की कोशिश करनी चाहिए थी। जब भी किसी कंपनी पर ऐसी स्थिति पैदा होती है ऑडिटर के जिम्मे आता है कि वह बही खाते पर स्पष्टीकरण दे। हिंडनबर्ग ने ऑडिटरों को ही संदेह के घेरे में ला दिया है। अमेरिका और कुछ दूसरे देशों में ऐसी संस्थाएं हैं, जो कंपनियों का ऑडिट करती हैं, रेटिंग जारी करती हैं और इन पर एकाधिकार मानती हैं। व्यवसाय की नई ऑडिट कंपनियों को वो संदेह के घेरे में लाती हैं, क्योंकि इससे उनके व्यवसाय पर असर पड़ता है। भारत इस समय ऐसी स्थिति में है जहां उसे कमजोर करने, दबाव में लाने ,उसके शेयर मार्केट, वित्तीय और आर्थिक हैसियत को चोट पहुंचाने के साथ विश्व भर में बढ़ती उसकी कंपनियों की साख गिराने के लिए अनेक प्रकार के षड्यंत्र और कुचेष्टायें हो रही हैं। चीन के साथ हमारा राजनीतिक और सामरिक ही नहीं आर्थिक एवं व्यापारिक टकराव भी हैं। चीन के बेल्ट एवं रोड इनीशिएटिव के विरुद्ध भारत कई देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। इसी में श्रीलंका के अंदर अडाणी ने वैसे बंदरगाह, ऊर्जा और अन्य निर्माण की परियोजनायें कई गुना ज्यादा निविदा भर कर लिया जिसे चीन लेना चाहता था। 2022 के आरंभ में ही अडाणी ने पुनेरिन और मन्नार में 500 मेगावाट के अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं ली । चीन के दूतावास ने बयान जारी कर कहा कि वह सौर ऊर्जा परियोजना से बाहर हो गया है । पूर्व राजपक्षे प्रशासन ने चीन के साथ सौर ऊर्जा परियोजना को रद्द कर दिया था। इसी तरह इजराइल का हाईफा बंदरगाह चीन लेना चाहता था जिसे अदाणी ने लिया है। अडाणी समूह आईफा में रियल स्टेट परियोजना विकसित करने के साथ एआई प्रयोगशाला स्थापित कर रहा है जो भारत और अमेरिका में स्थित उसकी एआई प्रयोगशालाओं के साथ जुड़ा होगा। पिछले 6 साल में अदाणी समूह ने वहां एल्बिट सिस्टम्स, इजरायल वेपन सिस्टम्स, और इजरायल इनोवेशन जैसी कंपनियों के साथ महत्वपूर्ण साझेदारियां की है। अडाणी ने पिछले सितंबर में सिंगापुर के एक सम्मेलन में चीन पर सीधा हमला करते हुए कहा कि बेल्ट और रोड इनीशिएटिव का विरोध हो रहा है और चीन अलग-थलग पड़ेगा। कल्पना कर सकते हैं कि अडाणी के विरुद्ध चीन और उसके समर्थक देशों के सत्ता प्रतिष्ठान में कैसा वातावरण रहा होगा।

संपूर्ण दुनिया की अर्थव्यवस्था कांप  रही है उसमें विश्व में सबसे तेज गति का सेहरा भारत के सिर है। यह ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। अदाणी समूह भारत का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ और विश्व में अपना विस्तार करने वाला समूह रहा है । इसलिए इस बात को स्वीकार करने का ठोस आधार है कि सुनियोजित तरीके से भारत को धक्का पहुंचाने की कोशिश हुई है। आम माहौल ऐसा बनाया गया मानो नरेंद्र मोदी के सबसे निकटतम और सबसे कृपा प्राप्त व्यक्ति अदाणी और उनका समूह ही हो। जो व्यक्ति राष्ट्र के लिए अपनी पत्नी, मां, पिता ,भाई सबका परित्याग कर सकता है वह किसी एक औद्योगिक समूह को गलत तरीके से सहयोग करेगा यह कैसे माना जा सकता है? समस्या यह है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरुद्ध उच्चतम सीमा तक नफरत पालने और सत्ता से उन्हें हटाने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले लोगों को सच्चाई से लेना-देना नहीं। वो नहीं सोचते हैं कि अगर जीवन बीमा निगम को समस्या हो तो वह अदाणी समूह का शेयर बेचकर हट सकता है। वह ऐसा नहीं कर रहा है तो इसके पीछे उसके वित्तीय विशेषज्ञों का परामर्श होगा। यही बात अदाणी समूह में पैसा लगाने वाली अन्य वित्तीय संस्थाओं पर भी लागू होती है। अच्छा होता कि विरोधी भारत को केंद्र में रखकर चुनौतियों एवं विरोधियों के षड्यंत्र को समझने की कोशिश करते। किंतु वे करेंगे नहीं। इसलिए रास्ता यही है कि देश बनाए झूठे माहौल से अप्रभावित रहे, सरकार तथा वित्तीय संस्थाएं दबाव में न आएं। अदाणी समूह ने धोखाधड़ी की है तो हमारे देश की संस्थाओं के पास इतनी क्षमता है कि वे उसे पकड़ लें। यह समय एकजुट होकर भारत विरोधियों को प्रत्युत्तर देने का है।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -98110 27208

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी ग्राम पंचायत का फिटनेस सेंटर

दिलीप यादव

सरायरंजन/समस्तीपुर:ये है सरायरंजन प्रखंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत राज गंगसारा स्थित उच्च विद्यालय में बना फिटनेस सेंटर यूं तो यह फिटनेस सेंटर बना था पंचायत के लोगों को स्वस्थ बनाने के लिए लेकिन पंचायत के लोगों का तो फिटनेस नहीं बन पाया बस पदाधिकारियों तथा जनप्रतिनिधि लोगों का फिटनेस जरूर बना। फिलहाल फिटनेस सेंटर का ही सेहत दुरुस्त नहीं है। अब तो इसे भ्रष्टाचार कहना बेवकूफी होगी क्योंकि अब यह शिष्टाचार बन गई है। लोग तो व्यर्थ ही भ्रष्टाचार कहकर बदनाम करते हैं अब तो ये लोगों की आदत सी बन गई है,लोगों का व्यवहार सा बन गया है। लाखों की लागत से बना यह फिटनेस सेंटर अपनी बदहाल स्थिति पर आंसू बहा रही है लेकिन कोई भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि इस योजना की खैरियत भी पूछने नहीं जा रहे हैं,ऐसे में खुद फिटनेस सेंटर अपना दुःख दर्द बयां कर रही है। “मैंअपने गांव का फिटनेस सेंटर हूं,मेरा जन्म यही कोई चार पांच महीना पहले भ्रष्टाचार की गली में हुई है। मेरी माता का नाम कल्याण है और पिता का नाम श्री विकास योजना है। मेरे परम हितैसी भ्रष्टाचार चाचा के सामने में मैने जन्म लिया,हमारे नर्स पदाधिकारी बहन तथा जनप्रतिनिधि कंपाउंडर ने मुझे इसी हालत में छोड़कर चले गए। मेरा जन्म पंचायत रूपी अस्पताल में हुआ है।" हे पार्थ तुम कहां हो बेजुबान बोल रहा है और बोलने वाले मुंह पर नोट साटकर बैठे हैं। कुछ तो शर्म कीजिए आपलोग। बहरहाल मैं ज्यादा बातें नहीं बनाते हुए मुद्दे की बात बतला दूं की चार पांच महीने पहले ग्राम पंचायत के योजना से प्रत्येक पंचायत में फिटनेस सेंटर लगाई गई जिसमें लाखों रुपए खर्च किए गए जो अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। पदाधिकारी भी सो चुके हैं और जनप्रतिनिधि लोग तो घोड़ा बेचकर सो गए हैं।

 










बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

बीबीसी डॉक्युमेंट्री की मंशा को समझें

अवधेश कुमार


बीबीसी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री को देखने और दिखाने पर उतारू लोग क्या पाना चाहते हैं समझ से परे है। वैसे इसके दिखाने के लिए जिद पर सामने आने वालों की संख्या अत्यंत कम है। मुख्य प्रश्न यह है कि क्या इंडिया :द मोदी क्वेश्चन की विषयवस्तु को लाने के पीछे कोई अच्छा उद्देश्य हो सकता है? बीबीसी ने कहा है कि इसमें नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय संघ स्वयंसेवक संघ  से लेकर भाजपा में आने, मुख्यमंत्री बनने और प्रधानमंत्री तक की सफर का विवरण है। सच यह है कि सबसे ज्यादा चर्चा गुजरात दंगों की है। गुजरात दंगों के 20 वर्ष हो गए। भारत का आम आदमी उससे बाहर निकल निकल चुका है। बावजूद इस रूप में फिल्माने का क्या उद्देश्य हो सकता है?

•बीबीसी का कहना है कि ब्रिटिश विदेश मंत्रालय से उन्हें एक रिपोर्ट मिली जिसको आधार बनाकर इसका निर्माण किया है।

•डॉक्यूमेंट्री का एकमात्र थीम यही है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में हिंसा के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे। डॉक्यूमेंट्री  नरेंद्र मोदी को हिंसा का प्रायोजक व संरक्षक दोनों बताता है।

• इस तरह डॉक्यूमेंट्री का प्रत्यक्ष उद्देश्य यह साबित करना है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार, भाजपा आदि ने योजनाबद्ध तरीके से मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा कराई और की।

क्या किसी डॉक्यूमेंट्री का ऐसा स्वर पहली बार है? क्या इसे स्वीकार किया जा सकता है?

• प्रतिबंधित होने के कारण मैंने डॉक्यूमेंट्री नहीं देखी है। विदेश में देखने वाले जिन लोगों ने जानकारी दी उसके आधार पर कहा जा सकता है कि इसमें नया कुछ भी नहीं है।

• पहले स्वयं बीबीसी, अनेक विदेशी और यहां तक कि भारतीय मीडिया संस्थानों ने ऐसी रिपोर्ट और डॉक्यूमेंट्री न जाने कितनी बार दिखाई। सबमें मिलाजुला कर यही बातें थीं।

• डॉक्यूमेंट्री की थीम को पुष्ट करने के लिए जिन लोगों के वक्तव्य लिए गए हैं वे सब संघ ,भाजपा, मोदी के विरुद्ध पहले से झंडा उठाए हुए हैं।

जहां तक इसे स्वीकार करने की बात है तो …

•एक, पिछले वर्ष जून में उच्चतम न्यायालय ने गुजरात दंगों पर अपने अंतिम फैसले में स्पष्ट लिखा है कि हिंसा के पीछे सरकार की सुनियोजित साजिश या भागीदारी का रंच मात्र सबूत नहीं मिलता।

• दो, दंगों की छानबीन के लिए उच्चतम न्यायालय की मॉनिटरिंग में गठित विशेष जांच दल या सिट ने 8 फरवरी, 2012 की अपनी अंतिम रिपोर्ट में स्पष्ट कहा था कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी या सरकार की साजिश या हिंसा में सुनियोजित भूमिका के किंचित भी प्रमाण नहीं मिले हैं।

• तीन, उच्चतम न्यायालय में इसी के विरुद्ध याचिका दायर हुई थी। न्यायालय ने सिट की भूमिका को सराहा और कहा कि इसको अस्वीकार करने का कोई आधार नहीं है।

इस तरह यह डॉक्यूमेंट्री उच्चतम न्यायालय के फैसले के विरुद्ध है। इस कारण यह शीर्ष न्यायालय की विश्वसनीयता और साख को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश है। प्रश्न है कि सिट और उच्चतम न्यायालय से परे बीबीसी को ऐसे तथ्य कहां से मिल गए जिनसे उसे हिंसा तत्कालीन गुजरात सरकार द्वारा नियोजित व संरक्षित लगता है? जब भी ऐसी डॉक्यूमेंट्री, रिपोर्ट आदि को भारत विरोधी और देश की एकता अखंडता को प्रभावित करने वाला कहा जाता है तो पूछा जाता है कि आखिर मोदी, संघ और भाजपा का विरोध भारत विरोध कैसे हो गया?

•एक,पिछले दो दशक में भारत में हुए आतंकवादी हमलों में पकड़े गए आतंकवादियों में से अनेक ने यही कहा कि उन्हें गुजरात दंगों के जो वीडियो दिखाए गए उनसे गुस्सा पैदा हुआ कि यहां मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है और वे हिंसा के लिए तैयार हुए।

• दो,ऐसी अनेक रिपोर्ट हैं जिनमें भारत सहित विश्व भर में अतिवादी जिहादी तत्वों के बीच गुजरात दंगों की एकपक्षीय तस्वीरें पेश कर उन्हें भारत विरोधी बनाया गया।

• तीन,यह डॉक्यूमेंट्री भी ऐसे समूहों के बीच पहुंचा होगा जो वर्तमान भारत सरकार को इस्लाम और मुसलमानों का दुश्मन बना कर प्रचारित करेंगे। वैश्विक जिहादी आतंकवाद को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के लिए पहले से व्याप्त खतरे में कितनी वृद्धि होगी।

• चार, स्वयं भारत में अतिवादी तत्व ऐसा दुष्प्रचार कर रहे हैं जिस कारण तन से जुदा के नारे लगे और जुदा हुए।

अगर डॉक्यूमेंट्री के तथ्यों और आरोपों में सच्चाई होती तब भी इसे प्रचारित करने से पूर्व सौ बार सोचने की आवश्यकता थी, जबकि यह सच्चाई से परे है। डॉक्युमेंट्री में रिपोर्ट लिखने वाले एक कूटनीतिक कह रहे हैं कि हमारी जांच के निष्कर्ष सही हैं। हिंसा में 2000 लोग मारे गए थे और मोदी उसके लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे।

•यह रिपोर्ट तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मंत्री जैक स्ट्रॉ के आदेश का हिस्सा थी।

•कहा गया है कि हिंसा का विस्तार मीडिया में आई रिपोर्टों से कहीं अधिक था और दंगों का लक्ष्य मुसलमानों को खदेड़ कर बाहर करना था।

• जैक स्ट्रा कह रहे हैं कि यह बहुत ही हैरान करने वाली रिपोर्ट थी। यह बहुत ही गंभीर दावा था कि मुख्यमंत्री मोदी ने पुलिस को पीछे रख कर और हिंदू चरमपंथियों को शह देकर एक सक्रिय भूमिका निभाई थी।

बीबीसी का वक्तव्य है कि इस डॉक्यूमेंट्री के लिए उच्चतम संपादकीय मानकों का पालन करते हुए गहन रिसर्च किया गया है। प्रश्न है कि क्या गुजरात में भारतीय जांच एजेंसियों न्यायालयों आदि से ज्यादा पहुंच ब्रिटिश तंत्र की थी? इस डॉक्यूमेंट्री के आरंभ के कुछ मिनट में ही गोधरा रेल दहन के बारे में कहा गया है कि इसकी पीछे किसकी भूमिका थी यह अभी भी विवादित है और मुसलमानों पर इसका आरोप लगाया गया।  न्यायालय ने उनके दोषियों को सजा तक दे दी और सारा मामला कानूनी दृष्टि से भारत में बिल्कुल साफ हो गया। फिर ऐसी टिप्पणी का क्या अर्थ है? दूसरे दंगों में 2000 नहीं बल्कि कुल 1040 लोग मारे गए थे जिनमें मुसलमानों की संख्या 750 के आसपास थी। शेष हिंदू और पुलिस वाले थे। दंगा सरकार द्वारा प्रायोजित थी तो इतनी संख्या में हिंदू और पुलिस के लोग कैसे मारे गए? उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में दंगों में सरकार और मोदी की भूमिका साबित करने के लिए लगातार कानूनी लड़ाई लड़ने वालों के विरुद्ध जांच करने की अनुशंसा यूं ही नहीं की है।

गुजरात दंगा या ऐसे दूसरे दंगे हम पर शर्मनाक धब्बा हैं, पर पिछले किंतु पिछले 20 वर्षों से इस तरह प्रचारित किया गया मानो इसके पहले और बाद में भारत और दुनिया में दंगे हुए ही नहीं हो। ब्रिटेन ही कई दंगों की मार झेल चुका है। भारत के मीडिया ने कभी वहां की सरकार को इसके लिए खलनायक नहीं बनाया।

यह प्रश्न भी उठता है कि उस समय की रिपोर्ट जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया वह अचानक बाहर कैसे आ गई? जैक स्ट्रा और ऐसे दूसरे अनेक ब्रिटिश राजनीतिक मानवाधिकारों से लेकर हिंदू-मुस्लिम संबंधों यहां तक कि भारत में सिखों को लेकर भी दुष्प्रचार अभियान में हमेशा शामिल रहे हैं।

इसलिए यह न मानने का कोई कारण नहीं है कि इस रिपोर्ट को बहुआयामी नकारात्मक उद्देश्यों की दृष्टि से बीबीसी को लीक कर डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इनमें भारत के अंदर सांप्रदायिक शांति बिगाड़ने ,9 राज्यों के विधानसभा चुनाव तथा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ भारत के विदेशी संबंधों को प्रभावित करने की मंशा हो सकती है। ब्रिटेन और भारत सहित दुनिया भर में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो संघ, भाजपा और तत्काल नरेंद्र मोदी को लांछित करने, उनके विरुद्ध जनता के अंदर आक्रोश पैदा करने तथा विश्व भर में उनकी छवि को कलंकित करने के लिए किसी सीमा तक जा सकते हैं।  हालांकि इनकी समस्या यह है कि उन मुद्दों पर दुष्प्रचार करते हैं जिनका लाभ भाजपा और तत्काल मोदी को मिलता है। क्योंकि यह झूठ एवं एकपक्षीय होता है इसलिए देश का बहुमत कभी इसे स्वीकार नहीं करता। जो विचारधारा किसी मजहब के विरुद्ध नफरत और हिंसा पर आधारित होगी उसे इतने लंबे समय तक जनता का समर्थन नहीं मिल सकता। 2002 से 2014 तक लगातार गुजरात दंगों को लेकर सघन अभियान चले और इसका लाभ भाजपा एवं मोदी को मिला। इसलिए ज्यादा संभावना इसी बात की है कि वर्तमान डॉक्यूमेंट्री चुनावों में भाजपा को क्षति की बजाय लाभ पहुंचा सकते हैं । चुनावी लाभ हानि से परे यह प्रश्न बड़ा है कि आखिर कौन शक्तियां है जो भारत में शांति, स्थिरता और सामाजिक सद्भाव तथा विश्व में भारत का बढ़ता कब सहन नहीं कर पा रही?

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -1100 92, मोबाइल -98110 27208



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