गुरुवार, 19 सितंबर 2019

इमरान का कबूलनामा नहीं झूठ का पुलिंदा

 

अवधेश कुमार

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान पता नहीं अपने को दुर्भाग्यशाली मान रहे होंगे या सौभाग्यशाली यह तो वे या उनकी जादूगरनी पत्नी जानती होंगी। हां, पाकिस्तान में अवश्य उन्हें दुर्भाग्यशाली मानने वालों की संख्या बढ़ रही है। 5 अगस्त से वो जो कुछ बोल रहे हैं उससे उनके मानसिक असंतुलन का पता चलता है किंतु उसके पीछे रणनीति होती है। यह बात अलग है कि उनकी सारी रणनीति उल्टी पड़ रही है। अभी रुस के अंग्रेजी समाचार चैनल आरटी को उन्होंने एक लंबा-चौड़ा साक्षात्कार दिया है। इसमें उहोंने कहा कि 1980 के दशक में पाकिस्तान ऐसे मुजाहिद्दीन लोगों को प्रशिक्षण दे रहा था कि जब सोवियत संघ, अफगानिस्तान पर कब्जा करेगा तो वो उनके खिलाफ जेहाद का ऐलान करें। इन लोगों के प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान को पैसा अमेरिका की एजेंसी सीआईए द्वारा दिया गया। उनकी पीड़ा है कि  एक दशक बाद जब अमेरिका, अफगानिस्तान में आया तो उसने उन्हीं समूहों को जो पाकिस्तान में थे, जेहादी से आतंकवादी होने का नाम दे दिया। वे कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने तो अमेरिका की मदद की और आज वही पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहा है।ं इमरान खान कह रहे हैं कि यह सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि हमने इस समूह का साथ देकर क्या पाया है? मुझे लगता है कि पाकिस्तान को इससे अलग रहना चाहिए था, क्योंकि अमेरिका का साथ देकर हमने इन समूहों को पाकिस्तान के खिलाफ कर लिया। लगभग हमने 70 हजार लोगों की जिंदगी गंवाई। साथ ही इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है। यह प्रश्न तो स्वाभाविक रुप से उठता है कि आखिर इमरान ने रुसी टीवी से इस तरह की बात क्यों की? उन्होंने जो कहा वह कितना सच है? उन्होंने ऐसा क्यों कहा?

ध्यान रखिए कि अमेरिका यात्रा में भी उन्होंने अपने देश में अभी भी 35 से 40 हजार हथियारबंद जेहादी मौजूद ंहोना स्वीकार किया था। दरअसल, उनकी रणनीति विश्व समुदाय खासकर अमेरिका और पश्चिमी देशो की सहानुभूति पाने की रही है। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि हमारा तो कोई दोष है नहीं, हम तो स्वयं इन हथियारबंद से लड़ रहे हैं और जनधन की क्षति उठा रहे है। पहले उनको उम्मीद थी कि अमेरिका में इस बयान का अच्छा असर होगा। तालिबान से बातचीत तक उनको उम्मीद थी कि अमेरिका उनको पुचकारेगा और अहसानमंद होगा। अब ट्रंप ने वार्ता ही नहीं तोड़ी है अफगानिस्तान सरकार की इस बात को स्वीकार किया है कि पाकिस्तान से पोषित और संरक्षित आतंकवादी ही सीमा पार कर हमले कर रहे हैं। एक तरफ जम्मू कश्मीर पर भारत के निर्णय से विचलित पूरा पाकिस्तान इमरान को कोस रहा है। यह स्थिति उन्होंने स्वयं पैदा की है। यदि वो केवल भारत की आलोचना करने तक सीमित रह जाते तो पाकिस्तान के लिए इतना बड़ा मुद्दा नहीं बनता। आखिर गिलगित बाल्तिस्तान की संवैधानिक स्थिति में बदलाव का भारत ने विरोध किया लेकिन इमरान सरकार की तरह अतिवाद तक नहीं गया। इमरान ने सेना के दबाव में इसे इतना आगे बढ़ा दिया कि उनके पास पीछे हटने का कोई सम्मानजनक कोना भी नहीं बचा है। उनके बयानों से ही भय पैदा हुआ कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बदला हुआ भारत पहले की तरह सीमा के अंदर सीमित रहने वाला नहीं है। वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर कब्जा करने के लिए बालाकोट से काफी बड़ी कार्रवाई करेगा। जंग की उनकी एवं उनके मंत्रियों रट तथा उसमें नाभिकीय हथियार के इस्तेमाल के भय का भी दुनिया में असर नहीं हुआ। चीन को छोड़कर कोई देश साथ नहीं। मुस्लिम देशों से उम्मीद थी लेकिन वहां से भी निराशा। सउदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात ने साफ कह दिया कि कश्मीर को मुस्लिम मुद्दा न बनाए।

कहने का तात्पर्य यह कि इमरान एवं उनके साथी हर तरफ से नाउम्मीद होने के बाद भी मंझधार से निकलने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं। रुस एकमात्र देश है जिसने जम्मू कश्मीर में किए गए संवैधानिक एवं राजनीतिक परिवर्तन का मुखर समर्थन किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रुस यात्रा काफी सफल रही। इसमें इमरान ने हारे को हरिनाम की तरह एक चारा फेंका है कि अमेरिका ने रुस के खिलाफ हमारे यहां मुजाहीद्दीन तैयार किए जिसमें हमारे देश को सहयोग नहीं करना चाहिए था। यह रुस को समझाने की कोशिश है। किंतु उस समय का पूरा सच रुस को पता है। राष्ट्रपति पुतिन तो केजीबी से संबद्ध रहे हैं। उनसे क्या छिपा है। पूरे शीतयुद्ध में पाकिस्तान अमेरिका के साथ रहा। किंतु उस पर कोई दबाव नहीं था। वह स्वेच्छा से अमेरिका के साथ था। सच यह है कि पाकिस्तान राष्ट्र-राज्य की नींव जिस इस्लाम मजहब के आधार पर पड़ी उसमें मुजाहिद्दीन तैयार करना एवं जेहाद के नाम पर किसी कम्युनिस्ट शासन से युद्ध करना उसकी विचारधारा का हिस्सा था। कोई भी सभ्य और संतुलित देश सरकारी तंत्र में जेहाद के लिए इस तरह का ढांचा तैयार नहीं कर सकता था जिसमें आतंकवादियों की भर्ती, प्रशिक्षण एवं उनको युद्ध के लिए भेजने तथा पीछे से हर तरह की सहायता मिलती हो। सच यही है कि सोवियत सेनाओं के साथ लड़ाई के नाम पर पाकिस्तान ने इस्लामी जगत से भी काफी सहायता ली। दूसरे इस्लामी देशों से भी लड़ाके आने लगे, धन आने लगे। सोवियत संघ की वापसी के बाद पाकिस्तान ने अपने द्वारा गठित किए गए तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता पर बिठा दियां। तालिबान के माध्यम से अफगानिस्तान पाकिस्तान का उपनिवेश बन गया।

तो इमरान एकपक्षीय बात बोल रहे हैं। वो कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने 100 अरब डॉलर की क्षति उठाई। 2 जनवरी 2018 को डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान  को दी जाने वाली 255 मिलियन डॉलर की सैन्य मदद को रोकते हुए यह बताया था कि अमेरिका पिछले 15 सालों में पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दे चुका है। यानी आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए पाकिस्तान को डेढ़ दशक में अमेरिका से 2 लाख 8 हजार 461 करोड़ रूपये की मदद मिल चुकी थी। पाकिस्तान का रक्षा बजट सालाना 8.7 अरब डॉलर है जिसका चार गुना वह 15 साल में अमेरिका से वसूल चुका है। यह तो केवल 2002 से 2017 का आंकड़ा था। अगर शीतयुद्धकाल की घोषित रकम को देखें तो अमेरिका के एक रिसर्च थिंक टैंक सेंटर फॉर ग्लोबल डवलवमेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि 1951 से लेकर 2011 तक अलग-अलग मदों में अमेरिका ने पाकिस्तान को 67 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद दी है। 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए अपना खजाना खोल दिया। इमरान आज स्वयं को पीड़ित बता रहे हैं लेकिन सच यही है कि उस समय के शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने अमेरिका को अपनी भूमि का इस्तेमाल करने की छूट देकर पाकिस्तान को बचा लिया और अरबो डॉलर से देश का भला किया। हां,सेंटर फॉर ग्लोबल डवलवमेंट के मुताबकि, वित्तीय वर्ष 2002 से 2009 के बीच आर्थिकी से जुड़े मदों में 30 प्रतिशत वित्तीय सहायता दी गई जबकि 70 प्रतिशत मदद सैन्य क्षेत्र में दी गई है।  2010 से 2014 के बीच सैन्य मदद में थोड़ी कमी आई है और आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में कुल मदद का करीब 41 प्रतिशत दिया गया।

ये मदद इसलिए दिए गए ताकि पाकिस्तान अपने यहां आतंकवाद के तंत्र को खत्म करेगा। पाकिस्तान ने अमेरिको को लगातार धोखा दिया। वह सब कुछ समझते हुए अफगानिस्तान युद्ध के कारण सहन करता रहा लेकिन बाद में अपना रुख कड़ा किया। अमेरिका ने शीतयुद्ध काल में इतने हथियार और सैन्य सामग्रिया पाकिस्तान में डाल दिया जिसकी उसे कल्पना नहीं थी। पाकिस्तान के शासकों ने उन्हीं सामग्रियों का उपयोग करते हुए पूर्वी क्षेत्र में भारत को लहूलुहान करने के लिए समानांतर आतंकवादी ढांचा खड़ा किया। पूरब से पश्चिम तक आप जेहादी आतंकवादियों का तंत्र खड़ा करेंगे पहले पंजाब और उसके बाद जम्मू और कश्मीर। इस ढांच को बाजाब्ता सरकार का अंग बनाया गया। परवेज मुशर्रफ ने पिछले दिनों एक साक्षात्कार में कहा कि वे सब हमारे लिए हीरो थे क्योंकि वे इस्लाम के लिए जेहाद कर रहे थे। ओसामा बिन लादेन से मिलना नेता एवं सैन्य अधिकारी अपना सम्मान समझते थे। इमरान इन सबको छिपाकर किसे मूर्ख बनाना चाहते हैं? भारत ने इसका तथ्यों के साथ पूरा सबूत दुनिया के सामने रखा है। इसी कारण वहा के अनेक संगठनांें और व्यक्तियों को प्रतिबंधित किया गया है। इमरान को इसका तो अफसोस है कि उनके पूर्वजों ने अमेरिका की मदद करके गलती की। वो भूल गए कि यह तो उनके देश की विचारधारा थी जो आज भी है। उनका देश उसी पैसे और सैन्य सामान से चल रहा था। वे यह नहीं बताते कि पंजाब और जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को प्रायोजित करना गलत था या नहीं? अगर पूर्वजों की गलती बतानी है तो इसे भी बताइए। अगर इमरान पूर्वजों की गलती ढूंढेंगे तो पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई सबसे बड़ी गलती लगेगी। 1971 के युद्ध ने पाकिस्तान को आर्थिक दृष्टि से डांवाडोल कर दिया था। उसमें अमेरिकी डॉलर एवं मदद के कारण उनका खर्च चलता था। इस तरह अगर वे अपने पूर्वजों की भूल देख्ेंगे तो धीरे-धीरे काफी पीछे चले जाएंगे। इसमें उनका स्वयं का नाम भी आ जाएगा। आखिर आतंकवादियों ने उनकी विजय में भूमिका निभाई है और उनके खिलाफ कार्रवाई करके वे उन्हें दुश्मन बनाना नहीं चाहते।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092,दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

 

 

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