गुरुवार, 12 नवंबर 2015

यह मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का जनादेश नहीं है

 

अवधेश कुमार

चुनाव में जय और पराजय होती है और पराजित होने वाले की राजनीति, मनोदशा पर उसका बहुआयामी असर पड़ना स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार जिस अवस्था में है उसमें उनके लिए बिहार विजय बहुत जरुरी था। राज्य सभा में सरकार को आवश्यक विधेयकों को पारित कराने में जिस ढंग की समस्याओं का सामना करना पड़ा है, जिस तरह कांग्रेस ने कठोर रणनीति अपना ली है कि हमको सरकार के काम के रास्ते बस बाधा डालनी है उसमें यह बहुत बड़ा धक्का है। राज्य सभा में अगले दो वर्षों में बहुमत की संभावना का एक आधार बिहार हो सकता था जो नहीं हुआ। दूसरे, इसका मनोवैज्ञानिक असर कांग्रेस सहित राजनीतिक विरोधियों के हौंसला बढ़ने के रुप में आया है तथा मीडिया सहित अन्य क्षेत्रों में मोदी एवं भाजपा के प्रति वितृष्णा ग्रंथि से ग्रसित वर्ग को लग रहा है कि अगर संयुक्त होकर हमला बोला जाए तो मोदी को परास्त किया जा सकता है। तो वे सरकार के विपक्ष में ज्यादा आक्रामक एवं असहिष्णु होंगे। मोदी सरकार एवं भाजपा को इसका सामना करना पड़ेगा। ऐसी और भी समस्याएं और चुनौतियां मोदी सरकार एवं भाजपा के सामने है जिससे निपटने में उनको पहले से ज्यादा कठिनाइयां पेश आएंगी। किंतु कुल मिलाकर विरोधी इस चुनाव परिणाम को जरुरत से ज्यादा खींचकर उसका अर्थ ऐसे निकाल रहे हैं जैसे मोदी सरकार एवं भाजपा के लिए कायमत के दिन आ गए हैं एवं जनता ने उन्हें उसे कयामत तक पहुंचाने का जनादेश दे दिया है।

यह बिहार प्रदेश के विधानसभा चुनाव का परिणाम है जहां विरोधियों की एकजुटता और जातीय गोलबंदी के अनुरुप अपनी रणनीति बनाने में विफलता ने भाजपा को पराजित किया है। क्या बिहार की जनता ने नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव एवं कांग्रेस को केन्द्र मे मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने या उनको काम न करने देने का जनादेश दिया है? क्या इनने कहा था कि हमें आप इसलिए वोट दीजिए कि हम मोदी सरकार को केन्द्र से खत्म करना चाहते हैं, हम उसे किसी सूरत में काम नहीं करने देना चाहते? बहुत सामान्य सी बात है कि यह चुनाव समाजिक-सांप्रदायिक समीकरणों का चुनाव था। एक उदाहरण लीजिए। मोटा मोटी मुसलमान एवं यादव यानी एमवाई संयोग वाली करीब 70 सीटें हैं जिनमें से करीब 55 सीटंें जद यू, राजद एवं कांग्रेस के गठबंधन ने जीता। लालू यादव ने 48 यादवों को टिकट दिया जिसमें से तीन चौथाई से थोड़ा कम जीते हैं। भाजपा की पराजय एवं नीतीश के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत हुई है यह सच है लेकिन इसको इससे ज्यादा समझ लेना गलत होगा और राजनीतिक रुप से भी सही नहीं होगा। लालू यादव कह रहे हैं कि नीतीश अब यहां सरकार चलाएंगे और हम देश भर में मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए निकल पड़ेंगे। देश में लालू यादव का बिहार के अलावा और कहां जनाधार है? उत्तर प्रदेश में यदि मुलायम सिह आपके साथ होते तो भाषण और पत्रकार वार्ता का मंच मिल सकता था। पूर्वी उत्तर प्रदेश में दो चार सभाए हो सकतीं हैं....पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी अजीत सिंह, कांग्रेस के सहयोग से कुछ हो सकता है, लेकिन इससे मोदी सरकार के सेहत पर असर होगा ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है।

दूसरे, जो मोदी विरोधी पार्टियां हैं उनमें से कितने लालू यादव के नेतृत्व में ऐसे किसी अभियान का साथ देंगे? ममता बनर्जी मोदी सरकार के खिलाफ हो सकतीं हैं, पर उनके सामने चुनाव है वो चुनाव देखेंगी या लालू यादव के एजेंडा पर काम करेंगी? वैसे भी ममता का स्वभाव किसी के नेतृत्व को आसानी से स्वीकार करने का नहीं है। कांग्रेस और लालू यादव में वैसे भी रिश्ते तल्ख हैं। क्या जो राहुल गांधी लालू यादव के साथ मंच साझा करने से बच रहे थे वे उनके साथ मंच साझा करेंगे?क्या वे लालू का नेतृत्व स्वीकार करेंगे? लालू यादव अभी सजायाफ्ता हैं। जब तक उनको न्यायालय बरी नहीं कर देता, या फिर उनको सजा नहीं हो जाती, तब तक वे बैठकर चुपचाप रह नहीं सकते। संसद में उनके जाने का रास्ता बंद है तो वो कोई अभियान चलाने का विचार कर सकते हैं, केन्द्र में मोदी और भाजपा विरोधी एकजुटता होगी इसमें भी दो राय नहीं। कुछ पहले से ही है। लेकिन हम न भूलें कि भाजपा विरोधी ध्रुवीकरण सन 1990 के दशक से है और भारतीय राजनीति ने उसके सारे दौर देखें हैं। 1996 में सबसे बड़ी पार्टी होते हुए भी भाजपा को बाहर रखने के नाम पर डेढ़ वर्ष की संयंुक्त मोर्चा सरकार चली जिसमें दो प्रधानमंत्री हुए। संप्रग सरकार का 2004 में गठन ही भाजपा विरोधी ध्रुवीकरण के कारण संभव हुआ। अगला आम चुनाव 2019 में होना है। उस समय तक भारत की राजनीति की क्या परिस्थितियां होती हैं तब तक बिहार सरकार का प्रदर्शन कैसा रहता है, लालू और नीतीश कुमार के संबंध कैसे रहते हैं, सबसे ज्यादा सीटें पाने के बाद लालू यादव नीतीश को मुक्त हस्त से काम करने देते हैं या नहीं........इन सब पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।

 इस बीच कई राज्यों के चुनाव हो चुके होंगे। अगले वर्ष तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल पुड्डुचेरी के चुनाव है। उसमें असम में कांग्रेस पार्टी टूट चुकी है। भारी संख्या में विधायक एवं नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। असम के 14 लोकसभा में से 7 भाजपा ने जीती और उसका मत प्रतिशत कांग्रेस से 7 प्रतिशत ज्यादा रहा। तो वहां कांग्रेस के लिए बड़ा खतरा मंडरा रहा है। लगातार तीन बार का सत्ता विरोधी रुझाान है सो अलग। वहां लालू और नीतीश की बैसाखी कांग्रेस को मिल पाएगी क्या? लालू यादव वहां क्या कर पाएंगे? तमिलनाडु में कांग्रेस की सफलता की गुंजाइश शून्य है तथा लालू, नीतीश या मोदी के दूसरे विरोधी वहां ज्यादा कुछ कर नहीं सकते। पश्चिम बंगाल में भाजपा कमजोर है तो कांग्रेस भी मजबूत नहीं है। वाम मोर्चा मोदी विरोधी अभियान में केन्द्र में तो कांग्रेस या लालू का साथ दे सकता है, लेकिन वहां के चुनाव में वह इनके साथ गठबंधन नहीं कर सकता। बिहार में भी वाम मोर्चा ने अपना अलग वजूद बनाने की कोशिश की। केरल में स्थानीय निकाय के चुनाव में भाजपा ने पहली बार रेखांकित करने वाला प्रदर्शन किया है। विधानसभा चुनाव में वह कितना कर पाएगी कहना कठिन है, पर वहां लालू का तो कुछ नहीं है। कांग्रेस को वहां उनकी आवश्यकता भी नहीं है। वहां कांग्रेस सरकार के जाने की संभावना है। तो जरा इन चुनावों के बाद के माहौल की कल्पना करिए। क्या इस समय ये नेतागण जो माहौल बना रहे हैं वही माहौल इन राज्यों के चुनावों के बाद रह सकेगा? फिर 2017 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश एवं गुजरात के चुनाव हैं। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस आज कहां है और जहां है वहां से आगे बढ़ने के लिए वह क्या कर रही है? मान लीजिए भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, बसपा और सपा के बीच ही मुकाबला हुआ तो उससे कांग्रेस, लालू को क्या मिलने वाला है? उ. प्र. में कांग्रेस का संभावित कमजोर प्रदर्शन उसे उस मानसिक अवस्था में कुछ समय नहीं रहने देगा कि वह मोदी सरकार पर आज की तरह हमला कर सके। हां, अगर उसने पंजाब में सरकार बना ली तो कुछ कहने की हालत में होगी। हिमाचल में हर बार सत्ता बदलती है। अगर यह परंपरा नहीं टूटी तो 2017 में बारी भाजपा की है। गुजरात में कांग्रेस अभी उस अवस्था में नहीं है कि भाजपा से सत्ता छीन सके। उसके बाद 2018 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश का चुनाव आएगा?

इन सबका जिक्र यहां इसलिए आवश्यक है कि एक प्रदेश के चुनाव से उत्साहित होने वालों को जरा भविष्य के दृश्य की याद आ जाए। भारत इतना छोटा देश नहीं है कि एक प्रदेश के चुनाव में विजय से आप केन्द्र सरकार के विरुद्ध एकदम ऐसा वातावरण बना देंगे कि उसका काम करना कठिन हो जाए या उसके अस्तित्व पर खतरा हो जाए। मोदी सरकार के पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत है तो उसे कार्यकाल पूरा करना ही है। बिहार में नीतीश कुमार ने जनता से जो सात सूत्री वायदे किए, 2 लाख 70 हजार करोड़ की योजना रखी और जो दूसरे वायदे किए उनके पूरा करने के लिए जनादेश मिला है। बिहार सरकार को ठीक से चलाएं, वहां की आर्थिक-सामाजिक समस्या को दूर करने के लिए काम करें और लालू यादव उसमें साझेदार होने के नाते सहयोग करे। इस जनादेश को इससे ज्यादा समझना उनके लिए भी आत्मघाती साबित हो सकता है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027207

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