शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

भविष्य उज्जवल समर्पित सेनानी निर्माण करे भाजपा

 

अवधेश कुमार

भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ विरोधियों के अंदर भी यह भाव गहरा हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दबाव में आ गए हैं। प्रधानमंत्री द्वारा रामलीला मैदान से एनआरसी पर लंबा स्पष्टीकरण देना तथा शाह द्वारा एक साक्षात्कार में कहना कि अभी एनआरसी पर काम नहीं हो रहा है तो उस पर चर्चा करने की क्या जरुरत है इसका प्रमाण माना जा रहा है। प्रधानमंत्री का वक्तव्य झारखंड चुनाव परिणाम के पूर्व का है तो गृहमंत्री का चुनाव परिणाम बाद का। नागरिकता संशोधन कानून का विपक्षी पार्टियों के विरोध से तो सरकार पर शायद ही कोई असर होता लेकिन हिंसा और उपद्रव ने लगता है  असर डाला। यह साफ हो गया है कि हिंसा कुछ सुनियोजित थी, कुछ झूठ और गलतफहमी पैदा करके उकसाने के कारण तो कुछ प्रायोजित। सरकार इससे निपटते हुए विपक्षी पार्टियों का राजनीतिक रुप से सामना कर रही थी झारखंड पराजय ने उसे निस्संदेह आघात पहुंचा दिया है। हालांकि केन्द्रीय नेतृृत्व को इसका अहसास था कि झारखंड की सत्ता जा रही है। इसीलिए जितना संभव था केन्द्र की ओर से क्षति कम करने की कोशिश हुई। जो भी हो झारखंड चुनाव परिणाम को नरेन्द्र मोदी सरकार के उन कार्यों से जोड़कर देखना बिल्कुल गलत है जो उसकी विचारधारा से जुड़े हैं। ऐसे अतिवादी विश्लेषण का यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं है कि भाजपा के कदमों से उसके खिलाफ जनाक्रोश पैदा हो चुका है और उसका भविष्य में केन्द्र की सत्ता से भी जाना तय है।

 निस्संदेह, भाजपा के लिए चिंता की बात है कि लोकसभा चुनाव के बाद तीन राज्यों के चुनावों में किसी तरह एक राज्य हरियाणा में वह गठबंधन की सरकार बना सकी। हालांकि महाराष्ट्र में पहले से उसे कम सीटें अवश्य मिलीं, लेकिन शिवसेना गठबंधन के साथ उसे बहुमत प्राप्त हुआ था। हरियाणा में भी वह 40 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी तथा उसके विद्रोही छः निर्दलीय जीते जो बाद में साथ आ गए। झारखंड में भी उसे अकेले सबसे ज्यादा करीब 34 प्रतिशत वोट मिले हैं। उसकी सदस्य संख्या 34 लाख 77 हजार है जबकि उसे 50 लाख के आसपास वोट मिले हैं। इसलिए जिसे भाजपा के अवसान का गीत लिखने से संतोष मिल रहा हो वे लिखें। धरातली सच वह नहीं है। हां, भाजपा के लिए गंभीर आत्मचिंतन तथा सांगठनिक सुधारात्मक कदमों की आवश्यकता निश्चित रुप से पैदा हुई है। आत्मचिंतन भी उस मायने में नहीं जैसे विरोध बता रहे हैं। आत्मचिंतन इस मायने में कि यदि आप इतिहास का नया अध्याय लिखने के दृढ़ इरादे से आगे निकल चुके हैं तो फिर यह मत मानिए कि आसानी से ऐसा हो जाएगा। आपको अनेक झंझावात, तूफान, बाधाओं के साथ ऐसे-ऐसे आघात लग सकते हैं जो कि निराशा की चरम तक ले जाएं। अपने निर्णय पर अडिग रहते हुए इन सबसे जूझते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करते रहनी होगी।

कोई यह कह दे कि भाजपा के खिलाफ जनमत इसलिए हो रहा है कि उसने एक साथ तीन तलाक के विरुद्ध कानून बना दिया, फिर आतंकवाद विरोधी कानून को पहले से ज्यादा सख्त किया, सबसे बढ़कर उसने कश्मीर से अनुच्छेद 370 का खात्मा कर उसका पूरा भूगोल और विधान बदल दिया और अब नागरिकता कानून तथा फिर भविष्य में एनआरसी की ओर जाने की घोषणा तो उस पर केवल हंसा जा सकता है। कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि अयोध्या मामले की तेजी से सुनवाई कर जिस तरह उच्चतम न्यायालय ने फैसला मंदिर के पक्ष मंे दे दिया उसमें भी नेपथ्य में सरकार की भूमिका थी और इससे अंदर ही अंदर एक समुदाय के अंदर आशंकायें पैदा हुईं। इनसे पूछा जाना चाहिए कि भाजपा का मायने क्या है? ये सारे कदम तो भाजपा की मूल विचारधारा से जुड़े हैं। इनको हटा दें तो फिर भाजपा नामक पार्टी की आवश्यकता ही नहीं है। भाजपा और इसका पूर्वज जनसंघ बना ही इन्हीं कार्यों के लिए था। सच यह है कि नरेन्द्र मोदी सरकार 1 में 2017 के उत्तरार्ध से कार्यकर्ता और नेता तक निराश होने लगे थे। जम्मू कश्मीर में जब उसने पीडीपी सरकार से अपने को अलग कर एक से एक कठोर कदम उठाना आरंभ किया तो फिर कार्यकर्ताओं-नेताओं में सरकार और पार्टी को लेकर उत्साह पैदा हुआ जो बालाकोट और फिर उपग्रहरोधी मिसाइल परीक्षण से सशक्त हुआ। अमित शाह के सरकार में आने के बाद से आम कार्यकर्ता, नेता और समर्थक की यही प्रतिक्रिया थी कि अब लग रहा है कि यह भाजपा की सरकार है। जिस तरह तीन तलाक विरोधी विधेयक पारित हुआ तथा 370 पर अमित शाह ने जैसे संसद का सामना कर पारित कराया उसने पूरे संघ परिवार को उनका एवं सरकार का कायल बना दिया।

मोदी और शाह को समझना होगा कि आप इस तरह के ऐतिहासिक विधान बनाते और कदम उठाते जाएंगे और आपका बहुआयामी विरोध नहीं होगा, विरोधी पार्टियों से लेकर वैचारिक रुप से नफरत पालने वाले लेफ्ट लिबरल एक्टिविस्ट, एनजीओ, विधिवेत्ता, जन समूह, संगठन, बुद्धिजीवी, पत्रकार, कट्रपंथी सांप्रदायिक मुस्लिम नेता सब एकदम आसानी से आपको काम करने देंगे यह संभव नहीं। बहुत सारे नामधन्यों का तो अस्तित्व ही खत्म होने के कगार पर आ गया है। उसमें बहुतों के लिए करो या मरो की स्थिति है। तो अलग-अलग तरीकों से नागरिकता कानून और एनआरसी को हथियार लेकर ये कूद पड़े हैं जिससे मोदी और शाह की जोड़ी को रोका जा सके। देश-विदेश मंे बदनाम करने से लेकर हर तरह से रोकने की कोशिश हो रही है। ऐसी स्थिति में दबाव में आने की जगह इसका मुकाबला करने की आवश्यकता है और देश भर में समर्थक सड़कों पर भारी संख्या में उतरकर जवाब दे रहे हैं। सच यह है कि जिस तरह का की हिंसा, विरोध और बयानवाजी सरकार के खिलाफ हो रही है उससे उसका समर्थन ज्यादा बढ़ रहा है। विधानसभा चुनावों में पराजय के कारण अलग थे। या आगे भी भाजपा विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती तो उसे इससे जोड़कर देखा ही नहीं जा सकता।

किंतु भाजपा नेतृत्व के लिए गंभीर चिंता की बात है उनकी अपनी पार्टी संरचना। झारखंड सहित तीन विधानसभा चुनावों मंे जिस तरह टिकट न मिलने, या अपनी चाहत के उम्मीदवार की जगह दूसरे को टिकट मिल जाने के खिलाफ व्यापक पैमाने पर भाजपा नेता चुनाव में उतर गए या पार्टी उम्मीदवारों को पराजित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया वह खतरनाक संकेत है। तीनों राज्यों में भाजपा के कमजोर प्रदर्शन का सबसे बड़ा कारण यही था। किसी युद्ध में सेनापति आगे बढ़ जाए और सेना का एक हिस्सा पीछे आपस में ही लड़ते रह जाए तो फिर विजय नहीं मिल सकती। ऐसी ही स्थिति भाजपा की हो गई है। सेनापति यानी मोदी और शाह तो इतिहास निर्माण और विचारधारा पर काम करते हुए अंतिम लक्ष्य तक जाने के लिए दौड़ लगा चुके हैं लेकिन पार्टी के अंदर एक बड़े वर्ग को लगता है कि उसके लिए यह सब मायने तभी रखता है जब उसे पद मिले, चुनाव में टिकट मिले या वह जिसे चाहता है उसे पद और टिकट मिलेे। ऐसी सेना से आप इतिहास के नए अध्याय लिखने वाले युद्ध में विजय नहीं पा सकते। भाजपा पार्टी के रुप वाजपेयी जी के शासनकाल में क्षरित, दिग्भ्रमित और कमजोर हो चुकी थी। नरेन्द्र मोदी के आने से पूरे संगठन परिवार में उत्साह अवश्य पैदा हुआ और चुनावों में विजय मिलती गई पर पार्टी की सांगठनिक और वैचारिक पुनर्रचना का काम नहीं हो सका है। ऐसे समर्पित कार्यकर्ता और नेता फिर से तैयार करने की जरुरत है जिसके लिए राष्ट्र वाकई प्रथम हो, दल और सरकार का लक्ष्य प्राथमिकता में हो और निजी महत्वाकांक्षा गौण। पार्टी में इसकी क्षमता बनी हुई है। इसे हर हाल में करना होगा। किसी सूरत में जहां तक आगे बढ़ गए हैं उससे पीछे हटना आत्मघाती होगा। आज का सच यही है कि इस समय की राजनीति में राष्ट्रीय स्तर पर न कोई नेता नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का मुकाबले है न कोई पार्टी ही भाजपा को बड़ी चुनौती देने की स्थिति में। इसलिए भविष्य भाजपा का ही है। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208

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