रविवार, 31 मई 2020

रिषिपाल को डेसू मजदूर संघ का आउटसोर्स का महामंत्री बनाया

संवाददाता
नई दिल्ली। डेसू मजदूर संघ की एक बैठक हुई। इस बैठक की अध्यक्षता डेसू मजदूर संघ अध्यक्ष किशन यादव ने की व इस बैठक में कोई कर्मचारी शामिल हुए। इस बैठक में मजदूरों से संबंधित कई समस्याओं को रखा गया जिसे जल्द से जल्द निपटने की बात कही गई।
इस बैठक में कई लोगों को नई जिम्मेदारी भी सौंपी गई। डेसू मजदूर संघ अध्यक्ष किशन यादव ने रिषिपाल को आउटसोर्सिंग का महामंत्री बनाया जिस पर संघ के महामंत्री सुभाष चंद, अब्दुल रज्जाक, अशोक, शक्ति, दिनेश, सभाजीत, सैन्तुल त्यागी आउटसोर्सिग कर्मचारियों आदि ने अपना समर्थन दिया।
डेसू मजदूर संघ अध्यक्ष किशन यादव ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि रिषिपाल जी का इन लोगों ने समर्थन किया है तो रिषिपाल जी सभी कर्मचारियों को एक समान देखेंगे और उनकी समस्या को जल्द से जल्द निपटाने में उनकी मदद करेंगे।
रिषिपाल ने महामंत्री बनने पर आभार प्रकट करते हुए कहा कि मैं डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव जी, महामंत्री सुभाष चंद जी और जिन लोगों ने मुझ पर भरोसा जताया और मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है। मैं उनके भरोसे को टूटने नहीं दूंगा। मैं सभी
कर्मचारी भाइयों के दुख-सुख में हर समय उनके साथ खड़ा मिलूँगा और सभी भाइयों क़ा मुझे आपका बहुत प्यार मिला और में सभी भाइयों को तहेदिल से धन्यवाद करता हूं।


66 दिन तक चले निःशुल्क भोजन वितरण का समापन

संवाददाता

नई दिल्ली। 24 मार्च, 2020 से चल रहे देशव्यापी लॉकडाउन में कई समाजसेवी संस्थाओं ने देशभर में अपने स्तर पर देश की जनता को अलग-अलग सुविधा दी। किसी ने लोगों को मुफ्त राशन दिया तो किसी ने खाना तो किसी ने पानी। इस तरह पूर्वी दिल्ली के शास्त्री पार्क में भी युवा एकता समाज सेवा संस्था और युवा दर्पण एनजीओ के साथ ज़िंदगी लाइफ एनजीओ ने 27 मार्च से 31 मई, 2020 तक शास्त्री पार्क के समुदाय भवन में रोजाना 800 से अधिक लोगों को सुबह और शाम दोनों समय लोगों बिना भेदभाव किये भोजन दिया।
कंटेनमेंट  ज़ोन (अनलॉक-1) के बाहर सभी गतिविधियों के गृह मंत्रालय द्वारा चरणबद्ध तरीके से खोलने के मद्देनजर युवा एकता समाज सेवा संस्था और युवा दर्पण एनजीओ के साथ ज़िंदगी लाइफ एनजीओ द्वारा कोविड-19 महामारी के दौरान जरूरतमंद लोगों को ईडीएमसी कम्यूनिटी हॉल, शास्त्री पार्क, दिल्ली में 27 मार्च से 31 मई, 2020 (66 दिन) तक चले निःशुल्क भोजन वितरण का समापन किया।
इस मौके पर युवा दर्पण एनजीओ के अध्यक्ष कमल अरोड़ा ने सभी सहयोगियों को धन्यवाद दिया और कहा कि हमने लोगों की मदद नहीं की बल्कि ऊपर वाले ने हमें एक जरिया बनाया है। मैं अपने सभी सहयोगियों के एक बार फिर धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने मेरा इस नेक काम में सहयोग दिया।
वहीं युवा एकता समाज सेवा संस्था  के उपाध्यक्ष नियाज़ मंसूरी ने भी इस नेक काम के लिए सभी सहयोगियों को धन्यवाद किया और कहा कि हम आगे भी समाज में ऐसे ही लोगों की मदद करते रहेंगे।





 

रविवार, 24 मई 2020

10 जरूरतमंद परिवरों को घर जाकर दी राशन किट

संवाददाता
नई दिल्ली। जब से लॉकडाउन लगा है तब से आजाद सोच फाउंडेशन ट्रस्ट लगातार जनता के लिए कार्य कर रही है और इस पूरे लॉकडाउन में संस्था की ओर से जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री और भोजन से वंचित न रहना पड़े इसलिए राशन किट बांटी जा रही है।
संस्था एक मुहिम मानकर इस ओर लगातार बढ़ रही इसलिए एक बार फिर से संस्था ने बुलंद मस्जिद कालोनी में 10 जरूरतमंद परिवरों को उनके घर जाकर राशन किट दी जिसमें सभी जरूरत की चीजें थीं जैसे 5 किलो आटा, 5 किलो चावल, 2 किलो चीनी, 1 किलो मसूर की दाल, 1 किलो चने की दाल, 2 किलो आलू, 2 किलो प्याज, आधा किलो बेसन, आधा किलो काले चने, आधा किलो कचरी, 1 किलो नमक, 1 किलो रिफाइंड तेल का पैकेट, 100 ग्राम मिर्च, 100 ग्राम हल्दी, 100 ग्राम धनिया, 100 ग्राम चाय पत्ती, 250 ग्राम सेवई, 1 नहाने वाले साबुन, 2 कपड़े धोने वाले साबुन, 1 सर्फ, 1 बिस्कुट।
संस्था की ओर से 10 जरूरतमंद परिवारों को घर जाकर राशन किट दी गई और लोगों को सादगी से ईद मनाने की सलाह भी दी गई।

इस मौके पर संस्था के अध्यक्ष आजाद ने बताया कि हमारी संस्था लगातार जरूरतमंद परिवारों की किसी न किसी तरह मदद कर रही है और आगे भी ऐसे ही काम करती रहेगी।
उन्होंने आगे कहा कि हमारी संस्था की ओर से सभी को ईद की दिली मुबारकबाद। हम सभी से यही निवेदन करेंगे की इस ईद को सादगी के साथ मनाएं और अल्लाह से दुआ करें कि यह कोरोना वायरस जल्द इस देश से खत्म हो जाए। सभी सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखें और दूसरों को भी बतायें।

इस मौके पर संस्था के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मो. रियाज,  समाजसेवी अब्दुल रज़्ज़ाक़, मोहम्मद एजाज, मोहम्मद चांद, शाहरुख, मो. गुलफाम आदि ने अपना सहयोग दिया। 
 
 
 

शुक्रवार, 22 मई 2020

भारत को विश्व के दिशादर्शक के रुप में खड़ा करने का संकल्प और आर्थिक पैकेज

अवधेश कुमार

जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संबोधन देने आए तो किसी को कल्पना नहीं थी इस बीच सरकार ने एक राष्ट्र के रुप में भारत के अभ्युदय का न केवल सपना बुना है बल्कि उसे व्यावहारिक धरातल पर उतारने की रुपरेखा भी बना ली है। अपने संबोधन में उनहोंने बिना स्पष्ट बोले यह विश्वास पैदा करने की कोशिश की कि विश्व में सिरमौर व मार्गदर्शक के रुप में वैचारिक-सांस्कृतिक-सभ्यतागत और आर्थिक रुप से एक सशक्त भारत के आविर्भाव का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। प्रधानमंत्री के संबोधन तथा पांच भागों में जारी आर्थिक पैकेज का अर्थ है कि भारत कोरोना कोविड 19 के संकट को अवसर के रुप में परिणत करने का कदम उदा लिया है। इसके पीछे एक व्यापक सोच है तथा उसे पूरा करने की संकल्पबद्धता। हमारे देश के विश्लेषकों एवं बुद्धिजीवियों के एक तबके की समस्या है कि वो बने-बनाए ढांचे-खांचे और सिद्धांतों से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करते। उसके अंदर जब आप मूल्यांकन करते हैं तो बदलाव की धारा समझ नहीं आती। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा करते हुए कह दिया कि इसका विस्तृत विवरण वित्तमंत्री क्रमिक रुप से देश के सामने रखेंगी। बस, पूरा विश्लेषण इस पर आकर टिक गया है। 

पूरे पैकेज को सरसरी तौर पर देखें तो यह स्वीकार करना होगा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार कोविड 19 आपदा से संघर्ष करते हुए इससे हो रही क्षति को रोकने, जो हो चुकी उसकी भरपाई करने, पूर्व से चली आ रही आर्थिक सुस्ती और कोविड की मार से उबारने, अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को गति देकर पटरी पर सरपट दौड़ाने, जिस वर्ग पर सबसे अधिक मार पड़ी है उसके कल्याण के लिए व्यावहारिक योजनाएं बनाने, उत्पन्न हो रहीं सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान निकालने, बड़े और साहसिक आर्थिक सुधार.......के साथ अपनी वैश्विक भूमिका पर दिन-रात काम किया है। ऐसा नहीं होता तो हर क्षेत्र को समाहित करते हुए इतना लंबा-चौड़ा पैकेज नहीं आता। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एवं वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने गकोज दिनों में कुल 53 घोषणाएं कीं। इसमें अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र की कठिनाइयों का गहराई से अध्ययन कर जितना संभव है उतना सहयोग करने की कोशिश की जा रही है ताकि वे सुस्ती या ठहराव से उठकर गतिमान हो सकें। उदाहरण के लिए 45 लाख एमएसएमई यानी लघु, सूक्षम एवं मध्यम ईकाइयों के लिए 3 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया गया। इससे उद्योगों के प्रमोटरों को बैंक से कर्ज मिलेगा। इसके दायरे में ऐसे उद्योग आएंगे, जो नॉन परफॉर्मिंग असेट्स हो चुके हैं या संकट में चल रहे हैं। छोटे उद्योगों के लिए 50 हजार करोड़ रुपए का फंड बना है। एमएसएमई की परिभाषा बदली गई है। इससे ज्यादा उद्योग एमएसएमई के दायरे में आ जाएंगे। इसी तरह संकट में चल रहे छोटे उद्योगों के लिए 20 हजार करोड़ रुपए की राहत। सरकार और सरकारी उद्यम अगले 45 दिन में एमएसएमई के सभी बकाया का भुगतान कर देंगे। लौकडाउन की मार से त्रस्त एमएसएमई को उबारने तथा उसे गतिशील बनाने के लिए वर्तमान वित्तीय स्थिति में इससे ज्यादा नहीं किया जा सकता।  कर्ज देने वाली कंपनियों के लिए 30 हजार करोड़ रुपए की स्पेशल लिक्विडिटी स्कीम की शुरुआत होगी।इससे नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां और माइक्रो फाइनेंस इंस्टिट्यूशंस को लाभ मिलेगा जिन्हें बाजार से पैसा जुटाने में दिक्कत होती है। कर्ज देने वाली कंपनियों के लिए 45 हजार करोड़ रुपए की आंशिक गारंटी स्कीम लाई गई है। कर्ज देने पर अगर नुकसान होता है तो उसका 20 प्रतिशत भार सरकार उठाएगी। तो वे बिना भय के उद्वमियों को कर्ज दे सकेंगे और अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी। 

लौकडाउन में समाज के निचले तबके को सबसे ज्यादा मार पड़ी है। दूसरे राज्यों में रहने वाले बिना राशन कार्ड वाले  8 करोड़ मजदूरों को अगले दो महीने तक मुफ्त राशन के लिए 3500 करोड़ रुपए जारी करना, एक देश-एक राशन कार्ड की व्यवस्था, श्रमिकों को कम किराए के मकान के लिए सरकार और निजी संयुक्त उद्यम में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कम किराए के मकान की योजना आदि इनके तात्कालिक एवं दूरगामी कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है।  मनरेगा का विस्तार कर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से बाहर से आए श्रमिकों को इस योजना के तहत काम देने को कहा गया है। इनकी बेकारी मे सरकार के पास यही विकल्प था। इसी तरह शहरों के रेहड़ी, पटरी ठेले वालों को 10 हजार  की कर्ज के लिए 5000 करोड़ की व्यवस्था है। इनकी चर्चा इसलिए की गई, क्योंकि गांवों से शहरों तक गरीबों की आबादी के सामाजिक – आर्थिक विकास का पूरा ध्यान रखा गया है। इसके बगैर भारत आत्मनिर्भर सक्षम देश होने की कल्पना नहीं कर सकता। वैसे पैकेज में व्यापारी, उदायोगपति, किसान, सेवा क्षेत्र, ऊर्जा, रियल्टी,पर्यटन सबके लिए प्रावधान और आवंटन है। वास्तव में केन्द्र सरकार के पैकेज में समग्रता है तथा सभी क्षेत्रों व समाज के सभी श्रेणी के लोगों को लाभ पहुंचाकर देश को गतिमान बनाने का लक्ष्य रखा गया है। 

प्रधानमंत्री के संबोधन और आर्थिक पैकेज को एक साथ मिलाकर विचार करें तभी पूरी बात समझ में आ सकती है। प्रधानमंत्री ने भारत के वर्तमान और भविष्य की, बदलती हुई दुनिया की तो संभावित तस्वीर पेश की ही, उसके साथ भारत की उसमें भूमिका और इसे विश्व का सिरमौर और प्रभावी देश बनाने में समाज के हर श्रेणी और हर व्यक्ति की भूमिका होगी यह भी साफ किया है। उन्होंने कहा कि संकट अभूतपूर्व है लेकिन थकना, हारना, टूटना बिखरना मानव को मंजूर नहीं है। सतर्क रहते हुए ऐसी जंग के सभी नियमों का पालन करते हुए अब हमें बचना भी है और आगे बढ़ना भी है। किसी संकट में नेतृत्व को ही देशवासियों को दिशा देनी होती है। यह बात लंबे समय से सुनी जा रही है कि 21 वीं सदी एशिया की और उसमें भारत की सदी होगी। किंतु यह होगा कैसे? प्रधानमंत्री ने कहा कि इसका मार्ग एक ही है आत्मनिर्भर भारत। अगर कोविड 19 आपदा संकट है तो इसमें अवसर भी निहित है। आत्मनिर्भरता के मायने क्या? आत्मनिर्भरता की जो अवधारणा चार दशक से पहले थी वो आज भूमंडलीकृत विश्व में प्रासंगिक नहीं है। भूमंडलीकरण भी तीन दशक में बदला है। अर्थकेन्द्रित की जगह मानव केन्द्रित की बात हो रही है। इसमें देश अपने को सिमटने में लगे हैं, संरक्षणवाद की ओर बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री ने यहीं पर स्पष्ट किया ही हमारी संस्कृति का जो संस्कार है उसमें आत्मनिर्भरता की आत्मा वसुधैव कुटुम्बकम है। हम आत्मकेन्द्रित नहीं हो सकते। यानी हमारी आत्मनिर्भरता विश्व के सभी मानवों से जुड़ी होंगी। हमारे यहां कोई संरक्षणवाद नहीं होगा।

 जो लोग अभी स्वदेशी की बात करते हुए इसे सीमाओं के तहत बांध रहे हैं वह सही नही है। प्रधानमंत्री स्वयं मेक इन इंडिया की अपील कर चुके हैं। इसका अर्थ यही है कि कंपनियां हमारे यहां आकर उत्पादन करें जिनहें यहां बेचें और विश्व बाजार में भी। यह वर्तमान दौर की आत्मनिर्भरता का फलक है। इसी तरह हमारे देश की कंपनियां भी अपना वैश्विक विस्तार कर सकतीं हैं, पर पहले वह देश के लिए वस्तुओं को निर्मित कर हमें आत्मनिर्भर बनाए। वे ऐसी सामग्री बनाएं जो विश्वस्तरीय हों। उन्होंने साफ कहा कि भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता सामाहित है। दुनिया का कोई देश नहीं है जो अपने यहां हर प्रकार के पैदावार और उत्पादन की कोशिश नहीं करता। आवश्यकताओं के लिए जितना हम दुनिया पर निर्भर रहेंगे उतना ही हम अपनी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय भूमिका निभाने में दुर्बल होंगे। इसलिए आत्मनिर्भरता मूल मंत्र है उस भारत को फिर से सामने लाने के लिए जो था और सोने की चिड़ियां कहलाता था। हमारे मनीषियों ने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान ऐसे भारत का सपना देखा था जो अपनी आवश्यकताओं को लेकर आत्मनिर्भर हो, जहां दुनिया के लिए सारी खिड़कियां दरवाजे बंद नहीं हो, जिसे देखकर दुनिया सीखे कि एक राष्ट्र के रुप में किस तरह विश्व और प्रकृति हित से आबद्ध रहते हुए सशक्त हुआ जा सकता है। एक ऐसे भारत की कल्पना की गई थी जिसके पास ताकत हो लेकिन सारी दुनिया उससे प्रेम करे, उसका सम्मान करे डरे नहीं। एक ऐसा भारत जो दुनिया को रास्ता दिखाने का काम करे। 

तो कुल मिलाकर प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत का अर्थ व्यापक है। इसमें सभ्यतागत एवं सांस्कृतिक उत्थान व पहचान की व्यापकता है तो पुनर्जागरण का जयघोष भी।  इसमें अपने ह्दय को भारतीय चिंतन के अनुरुप सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण का विस्तार देना है तो साहसी और संकल्पवान देश के रुप में सिर उठाकर खड़ा होने की प्रेरणा भी। आर्थिक सशक्तता तो जुड़ा है ही। ऐसा देश ही कोविड 19 उपरांत आकार लेती विश्वव्यवस्था को दिशा देकर सर्वस्वीकृत दिशा दर्शक की भूमिका में आ सकता है। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208


बुधवार, 20 मई 2020

डेसू मजदूर संघ ने श्रम कानून में बदलाव का विरोध किया

संवाददाता

नई दिल्ली। हाल ही कई राज्यों की सरकारों ने श्रम कानून में बदलाव किए हैं।  इनमें मजदूरों के काम के घंटों को बढ़ाया गया है। इसी को लेकर डेसू मजदूर संघ ने इस नए कानून का विरोध किया।
क्या है नया कानून-नए श्रम कानून संशोधन-2020 में हुए संशोधन के बाद अब यूपी समेत 7 बीजेपी शासित राज्यों में यह कानून लागू कर दिया जाएगा। इस कानून में काम करने के घंटों को 8 की जगह 12 घंटे कर दिया गया है लेकिन यहां सरकार ने कहा है कि 12 घंटे का काम किसी भी वर्कर की उसकी खुद की इच्छा पर निर्भर करेगा। 
इसके अलावा इस कानून के बाद नौकरी पर रखने वाले लोगों को हटाने, काम के दौरान हादसे का शिकार होने और समय पर पगार देने जैसे नियमों को छोड़ कर बाकी सभी नियमों को तीन साल के लिए आगे बढ़ा दिया गया है।
डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव का कहना है कि यह श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है और इस नए संशोधन द्वारा श्रमिक कानून को कमजोर बना दिया गया है।
उन्होंने आगे कहा है कि कोरोना संकट के बीच जहां मजदूरों के लिए सरकार को काम करना चाहिए था तो वहीं नया श्रमिक कानून बना कर मजदूरों की जिंदगी को खतरे में डाला जा रहा है। लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की दशा पहले ही दयनीय है उसे और दुखद बनाया जा रहा है।
इस कानून का डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव, महामंत्री सुभाष चंद्र, अब्दुल रज्जाक, ऋषि पाल, सुभाष, शक्ति, सभाजीत पाल आदि मजदूरों ने इस कानून का विरोध किया।
 









 

 

 

शुक्रवार, 15 मई 2020

कोरोना संकट से उभरती विश्व व्यवस्था में भारत एवं चीन

 

अवधेश कुमार

दुनिया चीन के शहर वुहान की गतिविधियं सामान्य पटरी पर लौटती देख रही है। इसे सरल शब्दों में एक विडम्बना ही कहा जाएगा कि दुनिया में जहां सबसे पहले कोरोना का आविर्भाव हुआ वह देश लॉकडाउन और वंदिशों से मुक्त हो गया तो दुनिया के ज्यादातर देशों को अपने यहां लौकडाउन सहित, आपातकाल, कड़े कानूनों सहित वंदिशों को सख्त करना पड़ रहा है। दुनिया संकट में है लेकिन चीन की स्थिति को पूरी तरह सामान्य माना जा रहा है। एक धारणा यह है कि चीन दुनिया के संकट का व्यापारिक-आर्थिक लाभ लेने की योजना पर काम करते हुए उत्पादन पर फोकस कर रहा है। उसकी नजर प्रमुख देशों की उन कंपनियों पर भी हैं जिनकी वित्तीय हालत खराब हो चुकी है। उसमें निवेश कर वह अपने आर्थिक विस्तार की योजना पर काम करने लगा है। ये संभावनाएं भय पैदा करतीं हैं कि कहीं कोरोना संकट दुनिया में चीन के सर्वशक्तिमान देश बन जाने में परिणत न हो जाए। निश्चित रुप से यह एक पक्ष है जो भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों के लिए चिंताजनक है। लेकिन चीन को इसमें सफलता मिलने की संभानवा कम हैं। इस समय का परिदृश्य देखिए। चीन के खिलाफ ज्यादातर देश खुलकर बोल रहे हैं। सारे प्रमुख देश उसे कोरोना कोविड 19 के प्रसार  का दोषा घोशित कर चुके हैं। एकमात्र भारत ही है जो इस मामले में संयत रूख अपनाते हुए किसी तरह का आरोप लगाने से बच रहा है। जी 20 के वीडियो कॉन्फ्रेंस से आयोजित सम्मेलन में, जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी उपस्थित थे, इस बात की पूरी संभावना थी कि कुछ देश चीन से नाराजगी व्यक्त करें, पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुद्धिमता से ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने अपने भाषण के आरंभ में कहा कि यह समय किसी को दोष देने या वायरस कहां से आया इस पर बात करने का नहीं बल्कि मिलकर इसका मुकाबला करने का है। इसका असर हुआ और सकारात्मक परिणामों के साथ वर्चुअल शिखर बैठक खत्म हुआ। किंतु न बोलने का अर्थ यह नहीं है कि भारत चीन का अपराध को समझ नहीं रहा। लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस वैश्विक संकट के दौरान भारत की भूमिका का निर्वहन इस तरह किया है जिसमें इभी चीन या किसी की आलोचना फिट नही बैठती। 

वास्तव में इस पूरे संकट के दौरान चीन और भारत की भूमिका में ऐसा मौलिक अंतर दुनिया ने अनुभव किया है जिसका प्रभाव भावी विश्व व्यवस्था पर पड़ना निश्चित है। भारत ने कोविड 19 प्रकोप मे अपने अंदर के संकट से लड़ते और बचने का उपाय करते हुए दुनियाई बिरादरी की चिंता, आवश्यकतानुसार सहयोग, मदद आदि का जैसा व्यवहार किया है उसकी प्रशंसा चारों ओर हो रहीं हैं। पत्रकार वार्ता में हाइड्रोक्लोरोक्विन को लेकर एक बार रिटैलिएशन शब्द प्रयोग करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी प्रधानमंत्री मोदी की फिर प्रशंसा करने लगे हैं। ब्राजिल के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो ने तो कह दिया कि मोदी ने हनुमान जी की संजीवनी बुटी की तरह हमारी मदद की है। वह दवा कितना कारगर है यह स्पष्ट नहीं ह। लेकिन मूल बात है संकट के समय दिल बड़ा करके दुनिया की मांग को पूरा करने के लिए आगे आना। कोविड 19 से निपटने को आधार बनाकर अनेक देशों के नेता मोदी एवं भारत की प्रंशसा कर चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कई विश्व संगठन भारत की प्रशंसा कर रहे हैं। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन द्वारा अपने यहां कोरोना कोविड 19 को नियंत्रित करने की भी प्रशंसा की है, लेकिन इसी कारण उसे आलोचना भी सुननी पड़ रही है। कई नेताओं ने कहा है कि यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की जगह चीन स्वास्थ्य संगठन बन गया है। इसकी चर्चा का उद्देश्य केवल यह बताना है कि चीन को लेकर किस तरह का गुस्सा दुनिया में है। इसके विपरीत भारत ने एक परिपक्व, संवेदनशील, मतभेदों को भुलाकर मानवता का ध्यान रखते हुए कोरोना संकट का सामना करने के लिए दुनिया को एकजुट करने के लिए प्रभावी कदम उठाने वाले देश की छवि बनाई है। आखिर चीन को आलोचना से बचाने के लिए भी खुलकर भारत के प्रधानमंत्री ही सामने आए। यह वही चीन है जो मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के रास्ते लगातार बाधा खड़ी करता रहा, जो कश्मीर मामले पर पाकिस्तान के साथ रहता है, भारत के न्यूक्लियर सप्लाई ग्रूप में प्रवेश की एकमात्र बड़ी बाधा है तथा सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोधी भी। 

भारत के पास भी मौका था चीन विरोधी भावनाओं को हवा देकर उसके खिलाफ माहौल मजबूत करने का। भारत ने इसके विपरीत प्रतिशोध की भावना से परे संयम एवं करुणा से भरे देश की भूमिका निभाई। जैसा हमने कहा प्रधानमंत्री या सरकार के किसी मंत्री ने अभी तक चीन को कठघरे में खड़ा करने का बयान नहीं दिया है, जबकि इसके पूरे आधार मौजूद हैं। चीन ने अपने यहां फंसे भारतीयों को निकालने की अनुमति देने में देर की थी। उस समय भी भारत अपना धैर्य बनाए रखते हुए औपचारिक अनुरोध करता रहा और उसकी अनुमति मिलने के बाद वुहान से अपने और कुछ दूसरे देशों के लोगों को निकाला। दुनिया ने यह प्रकरण भी देखा है। इस समय एक दूसरी स्थिति भी पैदा हुई है। कोरोनावायरस पर काबू करने के बाद चीन ने कई देशों का मेडिकल सामग्रियां भेजनी शुरु की । इससे उसे भारी लभी हो रहा है। पर ज्यादातर देशों चीन की इस बात के लिए आलोचना कर रहे हैं कि उसने उसे ऐसी सामग्रियां भेजीं जो मानक पर खरे नहीं उतरते। कई देशों ने शेष ऑर्डर भी रद्द कर दिए हैं। चीन द्वारा निर्यात किए गए पीपीई के पूरी तरह अनुपयोगी होने की शिकायतें आ रहीं हैं। यहां तक कि स्वयं को चीन का करीबी मानने वाले पाकिस्तान में चीनी मास्क एवं अन्य सामग्रियों को बेकार कहा जा रहा है। भारत में भी उसके रैपिड टेस्ट किट विफल हो गए। एक तो चीन द्वारा समय पर दुनिया को कोरोना वायरस में सूचना न देने को लेकर गहरी नाराजगी और उस पर घटिया सामग्रियों की आपूर्ति को लेकन दुनिया का मनोविज्ञान कैसा निर्मित हो रहा होगा इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। 

नेताओं से ज्यादा गहरी नाराजगी और असंतोष जनता के अंदर है। आज अगर सर्वेक्षण करा लिया जाए तो भारत सहित पूर्वी एशिया के कोरोना प्रभावित देश जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, पूरा पश्चिम यूरोप, अमेरिका... सब जगह आम लोग कुछ अपवादों को छोड़कर एक स्वर में चीन को कोरोनावायरस प्रसार का दोषी ठहराएंगे। मीडिया में अलग-अलग देशों के आ रहे सर्वेक्षणों से इसकी पुष्टि भी होती है। कई देशों में चीन पर मुकदमा कर हर्जाना वसूलने की भी मांग हो रही है। चीनी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार निर्यात व्यापार से प्राप्त आय है। इस बात की संभावना बन रही है कि कोरोना महामारी से निकलने के बाद दुनिया के अनेक देश चीन से संबंधों को लेकर पुनर्विचार करें। इसमें दुनिया पर बढ़ता चीन का दबदबा कमजोर भी हो सकता है। दूसरी ओर भारत को देखिए। भारत पहला देश था जिसने चीन में सहायता सामग्री भेजी। अपनी समस्या में उलझे हुए भी अनेक देशों में भारत आज भी सहायता सामग्री भेज रहा है। मदद भेजने वालों में सार्क सदस्यों के साथ मलेशिया जैसे देश, जिसने अनुच्छेद 370 एवं नागरिकता कानून पर भारत के खिलाफ बयान दिया वह भी शामिल है। इसमें ईरान भी शामिल है जहां हमने लैब के साथ अपने स्वास्थ्यकर्मी भी भेले हैं। संयुक्त अरब अमीरात में भी सामग्रियों के साथ कुशल स्वास्थ्यकर्मी भेजे गए हैं। चीन ने तो कोरोना संकट के दौरान बाहर की सुध तक नहीं ली। उसने पूर्वी एशियाई देशों की बैठक बुलाने की सोचा भी नहीं। इसके समानांतर भारत एकमात्र देश है जिसने पहले अपने पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों के संगठन सार्क तथा बाद में दुनिया के प्रमुख देशों के संगठन जी 20 की बैठक बुलाने की पहल की। निर्गुट देशों की वर्चुअल शिखर बैठक में भी इसकी प्रमुख भूमिका थी। संकट में फंसे एक-एक देश के नेता से मोदी लगातार बातचीत कर न केवल उनका आत्मबल बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि साथ मिलकर सामना करने की भी बात कर रहे हैं। इससे संबंध के नए सिरे से विकसित होन का आधार भी बन रहा है। भारत विश्व के अगुआ देश के रूप में उभरा है। वास्तव में चीन के व्यवहार में कभी वैश्विक हित की चिंता नहीं दिखी। भारत का चरित्र संकीर्ण स्वार्थों तक सिमटे रहने वाले देश की नहीं बनी है। कोरोना संकट में दुनिया के हित की चिंता और उस दिशा में आगे बढ़कर काम करने का उसका चरित्र ज्यादा खिला है। भारत के प्रधानमंत्री की भूमिका एक विश्व नेता की बनी है। ये कारक अवश्य ही कोरोना के बाद उभरने वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को ठोस रुप में प्रभावित करेंगे। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208



मंगलवार, 12 मई 2020

समस्त कनेक्ट फाउंडेशन ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के शास्त्री पार्क क्षेत्र में बांटी राशन किट

संवाददाता 
नई दिल्ली। शिक्षा और राहत कार्यों के क्षेत्र में कार्यरत दिल्ली स्थित सामाजिक संगठन, समस्त कनेक्ट फाउंडेशन ने आज शहर के उत्तर पूर्वी जिले के शास्त्री पार्क क्षेत्र में कोविड-19 और लॉक डाउन के मद्देनजर गरीब मजबूर परिवारों के बीच खाने पीने और रोज़मर्रा की ज़रूरी वस्तुएं वितरित किए। 
इस अभियान के अन्तर्गत तृतीय चरण में विशेष रूप से 71 परिवारों में ज़रूरी वस्तुएं, क्षेत्रीय लोगों की उपस्थिति में और सुरक्षा और स्वास्थ्य के सभी नियमों को क्रियान्वित करते हुए वितरित हुईं।
संस्था के निदेशकों श्री ज़फ़र इमाम खान, श्रीमति विनीता सूद और श्री जितेन्द्र प्रसाद केशरी, समाजसेवी श्री मुदस्सिर खान, श्री मोहम्मद रियाज़, श्री आज़ाद, श्री अब्दुल रज़्ज़ाक़, श्री मोहम्मद एजाज,  समाजसेविका श्रीमति शकीला उर्फ रिहाना दाई आदि ने क्षेत्रीय लोगों का राहत सामग्री के सफलतापूर्वक वितरण के लिए आभार प्रकट किया।
संस्था पहले भी लॉकडाउन में जरूरतमंदों को  कई जगहों पर खाद्य सामग्री बांट चुकी है। 
इस बार भी संस्था द्वारा राशन किट बनाकर दी गई जिसमें आटा, चावल, चीनी, 2 तरह की दालें, आलू, प्याज, बेसन, चना, कचरी, नमक, तेल, 3 तरह के मसाले, चाय पत्ती, सेवई, नहाने का साबुन, बर्तन धोने का साबुन, कपड़े धोने का सर्फ, बिस्कुट।
 





 

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