रविवार, 30 अप्रैल 2023

अपराधियों का महिमामण्डन - रुग्ण समाज की निशानी

तनवीर जाफ़री
गैंगस्टर एवं नेता ब्रदर्स अतीक़ व अशरफ़ अहमद की इलाहाबाद के एक अस्पताल परिसर में गत 15 अप्रैल की रात पुलिस हिरासत में मीडिया से बातचीत के दौरान तीन हमलावरों ने नज़दीक से गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकाण्ड के बाद उनके महिमामण्डन की कई ख़बरें सामने आई हैं। अतीक़-अशरफ़ की हत्या जिन परिस्थितियों में की गयी उसकी आलोचना सर्वत्र की जा रही है। स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ इस घटनाक्रम पर तुरंत सक्रिय हुये व पुलिस की लापरवाही पर उनकी नाराज़गी की ख़बरें भी आयीं। परन्तु उन दोनों भाइयों की हत्या तथा इससे दो दिन पहले ही अतीक़ के एक बेटे असद की पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ के बाद जिसतरह कुछ ख़बरें इन गैंगस्टर्स के महिमामण्डन को लेकर सुनाई दीं वह चौंकाने वाली थीं। ख़ासतौर पर  धर्म के आधार पर अपराधियों का महिमामण्डन किया जाना तो किसी भी क़ीमत पर मुनासिब नहीं कहा जा सकता। अतीक़ मुसलमानों का कितना बड़ा हितैषी था इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस पर पर दर्ज हुये 20 सबसे संगीन अपराधों में दायर 13 मामले पीड़ित मुसलमानों द्वारा ही दर्ज कराए गये थे। वैसे भी प्रायः गैंगस्टर्स का धर्म जाति से कोई वास्ता नहीं होता। इनके गैंग में सभी धर्मों और जातियों के लोग शामिल होते हैं और इनसे पीड़ित लोग भी किसी भी धर्म जाति के हो सकते हैं। 
इन वास्तविकताओं के बावजूद अतीक़-अशरफ़ की हत्या के बाद उनका महिमामण्डन करने,उन्हें मुसलमानों के हीरो के रूप में पेश करने यहाँ तक कि शहीद बताने तक की ख़बरें कई जगहों से प्राप्त हुईं। एक मौलवी तो बाक़ायदा नमाज़ के बाद दुआओं में अतीक़ ब्रदर्स को शहीद बताता नज़र आया और उसने उन्हें जन्नत भेजने की दुआएं भी दे डालीं।  प्राप्त समाचारों के अनुसार पटना में जामा मस्जिद के बाहर अलविदा की नमाज़ के बाद अतीक़ ब्रदर्स  के समर्थन में नारेबाज़ी की गई और 'अतीक़ अहमद अमर रहें' के नारे लगाए । देश में और भी कई जगह से अतीक़ के समर्थन व उसे महिमामंडित करने के समाचार प्राप्त हुए। विदेशी मीडिया ने तो अतीक़ को रोबिन हुड के रूप में पेश करने की कोशिश की। बेशक उनकी हत्या के तरीक़ों,पुलिस की लापरवाही,सुरक्षा में चूक पर ऊँगली उठना या इनकी आलोचना अपनी जगह पर सही है परन्तु उन्हें महिमामंडित करना क़तई उचित नहीं इसलिये कि किसी अपराधी को महिमामंडित करने का दूसरा अर्थ है उसके द्वारा किये गए अपराधों को नज़र अंदाज़ करना। 
अतीक़ को महिमामंडित करने के विरोध में कई पेशेवर अति उत्साही लेखकों ने तो कई आलेख लिख डाले। बिहार के भाजपा विधायक विधायक हरी भूषण ठाकुर को तो यहां तक कहने का अवसर मिल गया कि -'अतीक़ के समर्थन में नारेबाज़ी करने वालों का एनकाउंटर कर देना चाहिये।' साम्प्रदायिकता को हवा देकर तमाम लोग सरकार से 'रेवड़ी ' हासिल करने की फ़िराक़ में न जाने क्या क्या लिखते रहते हैं। परन्तु इनसे यह सवाल तो ज़रूर पूछा जाना चाहिये कि इन्होंने उस समय क्या प्रतिक्रिया दी थी जब शंभु रैगर नामक एक युवक द्वारा 6 दिसंबर 2017 को राजस्थान में एक बंगाली मज़दूर अफ़राज़ुल शेख़ की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी गयी थी और उसे जला दिया गया था।  इतना ही नहीं बल्कि इस जघन्य हत्याकाण्ड का वीडियो भी स्वयं हत्यारे ही द्वारा फ़ेसबुक पर लाइव टेलीकास्ट किया गया था । वही हत्यारा जेल गया तो जेल से भी वीडियो बनाकर डालता रहा। और जब वह ज़मानत पर बाहर आया तो उसके समर्थन में हज़ारों लोगों ने  जुलूस निकाला था। उसके समर्थन में नारे लगाये गये। यहाँ तक कि उत्पाती साम्प्रदायिक भीड़ द्वारा अदालत की छत पर चढ़ कर भगवा झंडा लहरा दिया गया था ? और धार्मिक जुलूस में उसके नाम की चौकी सजा कर निकाली गयी थी । क्या किसी बेगुनाह व्यक्ति को कुल्हाड़ियों से काटकर उसे जलाये जाने जैसा घृणित अपराध करने वाले का महिमामण्डन करना सही है ?
जघन्य अपराधियों,बलात्कारियों,हत्यारों को महिमामंडित करने उन्हें हीरो बनाने जैसा घृणित कार्य तो गोया अब परंपरा का रूप लेता जा रहा है। किसी घटना को साम्प्रदायिक या जातिवादी मोड़ दे दिये जाने पर तो गोया अपराधियों का महिमामण्डन अनिवार्य सा हो गया है। देश में ऐसी दर्जनों मिसालें मौजूद हैं। हाथरस बलात्कार काण्ड में बलात्कारियों के पक्ष में पंचायत बुलाई गयी। 2018 में जम्मू के कठुवा में एक ग़रीब मज़दूर की 8 वर्षीय बेटी असिफ़ा का अपहरण कर उसके साथ गैंग रेप किया गया व उसकी निर्मम हत्या कर उसकी लाश जंगल में फेंकने जैसी वारदात अंजाम दी गयी। और उसके बाद बलात्कारियों व हत्यारों के पक्ष में राज्य के भाजपा मंत्रियों व विधायकों का खड़ा होना व उन्हें बचाने के लिये जुलूस प्रदर्शन धरना  करना क्या देश कभी भूल सकेगा ? बिल्क़ीस के बलात्कारियों,दंगाइयों की सुगम रिहाई और बाद में राजनैतिक मंच पर उस अपराधी का महिमामण्डन,क्या अपराधियों के हौसले नहीं बढ़ाता ? 2019 में शाहजहांपुर के स्वामी शुकदेवानंद विधि महाविद्यालय जिसे स्वामी चिन्मयानंद का ट्रस्ट चलाता है यहां पढ़ने वाली एलएलएम की एक छात्रा ने स्वामी चिन्मयानंद पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे। उन्हें एम पी एम एल ए अदालत बा इज़्ज़त बरी कर देती है। जामिया में धरने पर बैठे लोगों की तरफ़ जो अनजान युवक तमंचे से गोलियां चलाता है वह आज महिमामंडित होकर साम्प्रदायिकतावादियों का आइकॉन बन चुका है। भाजपा नेता जयंत सिन्हा झारखण्ड में मॉब लिंचिंग के हत्यारे दोषियों को जेल से छूटने के बाद माला पहनाते व उनके साथ फ़ोटो सेशन करते देखे जाते हैं। 2015 में नोएडा के निकट दादरी में अख़लाक़ नमक 50 वर्षीय व्यक्ति की भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दी थी। अख़लाक़ का बेटा भारतीय वायुसेना में अधिकारी है। उस समय भी तत्कालीन सांसद योगी आदित्य नाथ सहित तमाम बड़े भाजपा नेता मंत्री सांसद व विधायक हत्यारों की हौसला अफ़ज़ाई करते उन्हें बचाते व उनके पक्ष में पंचायतें करते दिखाई दिए थे। 
लगभग वही सिलसिला अतीक़ व अशरफ़ की हत्या के बाद भी नज़र आया। हत्यारों,बलात्कारियों या किसी भी अपराध में संलिप्त लोगों को धर्म या जाति के आधार पर समर्थन देना एक ख़तरनाक सिलसिले को बढ़ावा देना है। कहना ग़लत नहीं होगा कि अपराधियों का महिमामण्डन न केवल न्याय व्यवस्था को प्रभावित करने की कोशिश है बल्कि यह रुग्ण समाज की भी निशानी है।
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