शुक्रवार, 27 मार्च 2020

भयावह स्थिति में लौकडाउन के अलावा चारा क्या है

 

अवधेश कुमार

दुनिया की स्थिति निस्संदेह भयावह है। 190 देश कोरोनावायरस की चपेट में आ चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है तथा संक्रमित लोगों की संख्या पांच लाख को पार चुकी है। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 21 दिनों को लौक डाउन की घोषणा देश को इस महामारी से बचाने एवं सुरक्षित रखने का एकमात्र श्रेष्ठ विकल्प है।स्थिति ज्यादा डरावना इसलिए है क्योंकि संक्रमितों और मृतकों की संख्या उन देशों में ज्यादा है जो विकसित व शक्तिसंपन्न हैं और जिनकी स्वास्थ्य सेवाएं सर्वोत्तम मानी जाती हैं। अमेरिका जैसी विश्व की महाशक्ति के यहां मरने वालों का आंकड़ा 1200 को पार कर चुका है। वहां इस समय 85 हजार से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हैं। इटली के लिए यह सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी साबित हो रही हैं। वहां आठ हजार के आसपास लोग मारे जा चुके हैं और 80 हजार के आसपास संक्रमित हैं। पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। अस्पतालों में जगह नहीं है और मैदानों में कैम्प लगाए गए हैं। डॉक्टर बीमारों में जवानों का इलाज कर रहे हैं तो बुजूर्ग अपने हाल पर छोड़े जा रहे हैं। इटली के प्रधानमंत्री ने पूरी तरह हथियार डाल दिया है। उन्हांेने कहा है कि स्थिति पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। हमारी सारी शक्ति खर्च हो चुकी है। स्पेन में कोरोना ने करीब 4000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। ब्रिटेन में 400 तो फ्रांस में 1200 से ज्यादा लोग संक्रमण के बाद जान गंवा चुके हैं। स्पेन में स्वास्थ्यकर्मी ही संक्रमित हो रहे हैं और उनको आइसोलेशन में रखने के कारण समस्याएं आ रहीं हैं। मैड्रिड के कई अस्पतालों में संक्रमण फैल चुका है। इन्हें हर घंटे सैनिटाइज किया जा रहा है। 

वस्तुतः चीन के बाद यूरोप और अमेरिका इसका सबसे बड़ा शिकार हो चुका है। इसके बावजूद कि इन देशों ने अपने सारे संसाघन बचाव व चिकित्सा में झांेक दिए हैं। अमेरिका में स्वास्थ्य आपातकाल लागू है। अमेरिका के कम से कम 16 राज्यों ने अपने नागरिकों को घर में रहने का आदेश जारी किया है। फ्रांस सहित अनेक देशों में सेना उतारनी पड़ी है। सच कहा जाए दुनिया के सभी प्रमुख देशों में लॉक डाउन की स्थिति है। यह स्वयं सोचने की बात है कि जब इन साधनसंपन्न देशों की ऐसी दशा है तो अगर यह महामारी विकासशील और गरीब देशों को अपनी चपेट में ले लिया तो फिर क्या होगा? यही प्रश्न हमें अपने आपसे पूछना है। सच यह है कि कोरोना की चपेट से अब कम ही देश बचे हैं। पहले अफ्रिका से खबर नहीं आ रही थी लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब वहां से कोरोना संक्रमण की पुष्टि शुरु कर दी है। भारत में 11 मार्च तक केवल 71 मामले थे। अब वह 700 को पार गया है। इसका अर्थ हुआ कि संख्या तेजी से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस गेब्रियिसोस ने 23 मार्च को कहा कि कोरोनावायरस महामारी तेजी से बढ़ रहा है। पहले मामले से एक लाख तक पहुंचने में 67 दिन का समय लगा लेकिन दो लाख पहुंचने में 11 दिन और दो से तीन लाख पहुंचने में चार दिन का समय लगा। केवल दो दिनों में चार लाख और एक दिन में पांच लाख। तो यह है स्थिति। 

तो इसे यहीं रोकना जरुरी है। जैसा हम जानते हैं कोई दवा इसे नहीं रोक सकती। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल का यह वक्तव्य वायरल हो रहा है कि हमारा अपना व्यवहार संक्रमण को फैलने से रोकने व धीमा करने का सबसे प्रभावी तरीका है। चांसलर मर्केल खुद ही आइसोलेशन में हैं। इसका एकमात्र रास्ता है अपने को बिल्कुल कैद कर देना। कोरोना महामारी को उस हमले की तरह देखना होगा जहां चारों ओर से बमबारी हो रही है, गोलियां बरस रहीं हैं और नीचे बारुदी सुरंग बिछा है। जैसे ही आप निकले कि आप उसकी जद में आ गए। सामान्य युद्ध में तो आप अकेले मरते हैं। कोरोना महामारी के युद्ध में यदि आपको वारयस का बम लगा, गोली लगी तो आपको तत्काल पता भी नहीं चलेगा और आप घर लौटकर अपने परिवार, मित्र, रिश्तेदार और न जाने कितनों की जिन्दगी ले लंेगे। यूरोप के बारे में जितनी जानकारी आई है उसका निष्कर्ष यही है कि समय पर कदम न उठाने यानी लोगों की आवाजही पर रोक न लगाने, एक साथ इकट्ठा होने पर बंदिश न लगाने आदि के कारण ही कोरोना महामारी ने इतना भयावह रुप लिया है। 

अमेरिका की सर्जन जर्नल डॉक्टर जेरोम एडम्स ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनके यहां मरने वालों में से 53 प्रतिशत की उम्र 18 से 49 साल के बीच थी। यह उस धारणा से अलग है कि ज्यादातर बुजूर्ग ही इस महामारी से अपनी जान गंवा रहे हैं। तो यह सोचना ठीक नहीं कि हम अगर जवान हैं तो हमारी मौत इससे नहीं हो सकती। पटना में कतर से आए एक 38 वर्षीय युवक की मौत हो गई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बताया है कि देश में 8 हजार से ज्यादा लोगों को सरकार के क्वारैंटाइन सेंटर में रखा गया है और 2 लाख के आसपास लोग कॉम्युनिटी सर्विलांस पर हैं। यह समय ऐसा है कि क्वारैंटाइन में रह रहे सभी लोगों की मदद की जाए। ये सारे लोग कोरोना संक्रमित नहीं हैं, लेकिन संदिग्ध तो हैं। यह संख्या सामान्य नहीं है। विदेश से आए भारी संख्या में लोगों ने वायदे के अनुसार अपने को आइसोलेशन में नहीं रखा। तो उनकी पहचान कर जबरन आइसोलेशन में रखने के कदम उठाए जा रहे हैं। दिल्ली में 1 मार्च से विदेश से आने वाले 35 हजार लोगों की पहचान हुई है और सारे जिला मजिस्ट्रेट को उन्हें आइसोलेशन में रखने का आदेश दिया गया है। यह कितना कठिन है इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं। इसमें लॉक डाउन या कफ्ॅयू को जनता और देश के हित में ही कहा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले संबोधन में लोगों से घरों में रहने की अपील की थी और उसका असर भी हुआ। बहुमत घरों में या जहां हैं वहीं अपने को कैद रखे हुए था। किंतु एक बड़ी संख्या बाहर निकल रही थी। वे समझ नही रहे थे कि वायरस के चेन को तोड़ना है तो सड़कों, बाजारों सबको कुछ दिनों तक के लिए खाली रखना पड़ेगा। भारत में अभी तक वही लोग संक्रमित हुए हैं जो या तो विदेशों से आए या विदेशों से आए लोगों के संपर्क में थे। चेन को तोड़ने के लिए ही पहले सारे अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को प्रतिबंधित किया गया, फिर घरेलू उड़ानें को, यात्री रेलें बंद की गईं तो ज्यादातर राज्यों ने पहले अंतरराज्यीय बसांे ंको और फिर राज्यों के अंदर सामन्य बस संचालन को रोक दिया है। मेट्रों बंद किया गया। और अब पूर्ण बंदी।

यह संक्रमण पैदा होने और उसके विस्तार को रोकने के लिए अपरिहार्य हैं। इसके बाद बारी लोगांेे की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने लोगों को समझाते हुए कहा कि मान लो हमारे यहां 25-30 हजार कोरोना संक्रमित हो गए तो हम कुछ नहीं कर सकते। तब लॉक डाउन करने का कोई फायदा भी नहीं होगा। सारे अस्पताल मिलकर भी इलाज नहीं कर सकते। यह पूरे भारत वर्ष पर लागू होता है। अगर राजधानी दिल्ली इसे संभालने की स्थिति में नहीं होगी तो कौन शहर और राज्य इसमें सक्षम हो सकेगा? कोई नहीं। यूरोप में इतनी बुरी इसीलिए हुई, क्योंकि जनवरी में मामला सामने आने के बावजूद वहां लोगों की आवाजाही को प्रतिबंधित करने से लेकर बचाव के अन्य कदम नहीं उठाए गए। वहां तो हवाई अड्डों पर अनिवार्य स्क्रीनिंग तक की व्यवस्था नहीं हुई। भारत ने जनवरी से ही स्क्रीनिंग शुरु की और जांच भी। वास्तव में ऐसे पूर्वोपाय के कारण ही हमारे देश में स्थिति नियंत्रण में है। जिस चीन की बात हो रही है वहां हुबेई प्रांत के साथ 20 राज्यों में ऐसा लॉक डाउन किया गया जो हमारे यहां के कर्फ्यू से ज्यादा सख्त था। वायरस के केन्द्र वुहान शहर और उसके आसपास के इलाकों में आवश्यक सेवा ही नहीं, मेडिकल स्टोर तक बंद कर दिए गए। जिसे लेकर आशंका हुई उसे सेना जबरदस्ती उठा लेती। इसमें अनेक त्रासदियां हुंईं। अनेक होटल और घर ध्वस्त कर दिए गए। वहां कोई धरना-प्रदर्शन हो नही सकता। हमारे यहां स्थिति जितनी बिगड़ जाए तो वैसा कर ही नहीं सकते। निस्संदेह, लोगों को परेशानियां हो रहीं हैं, लेकिन अगर स्वयं को, परिवार को, देश को बचाना है तो फिर इसे सहन करने का ही विकल्प है। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्पलेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208

शनिवार, 21 मार्च 2020

भारत ने संकट में भी सबकी चिंता करने का चरित्र पेश किया

 

अवधेश कुमार

यह दृश्य निश्चय ही पूरी दुनिया के लिए प्रेरक था। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ यानी सार्क देशों के नेता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस और उसके होने वाले अन्य प्रभावों से लड़ने के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग की पेशकश कर रहे थे। बड़े देशों के नेता यह अवश्य कहते हैं कि साझा चुनौतियां का सामना मिलकर करना चाहिए, यहां तक कहा जाता है कि अगर किसी महामारी या प्राकृतिक आपदा से कोई एक या कई देश जूझ रहा हो तो विश्व समुदाय को एकजुट होकर उसका सहयोग करना चाहिए, पर व्यवहार में इस समय ऐसा होता नहीं दिखता। कोरोना वायरस से घबराए और अपने को बचाने में लगे देश विश्व की तो छोड़िए, पड़ोसियों तक की चिंता नहीं कर रहे। उसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्क देशों के बीच सहयोग की पहल कर भारत की विश्व बंधुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित परंपरागत चरित्र का परिचय दिया है। जब उन्होंने ट्वीट किया कि सार्क देशों के नेताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए साझा रणनीति बनाने तथा सहयोग करने पर चर्चा करनी चाहिए तो पाकिस्तान को छोड़कर सभी देशों के प्रमुखों ने इसका स्वागत किया। ट्वीट में मोदी ने कहा था कि हम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपने नागरिकों को स्वस्थ रखने के उपायों पर चर्चा कर सकते हैं। हम एकजुट होकर दुनिया के सामने एक मिसाल पेश कर सकते हैं और इसे स्वस्थ रखने में योगदान दे सकते हैं। तय समय पर कॉन्फ्रेंस हुआ और पाकिस्तान को छोड़कर सभी देशों ने सकारात्मक बातचीत की। 

ऐसा भी नहीं था यह कॉन्फ्रेंस केवल औपचारिक बातचीत तक सीमित रही। सार्क देशों में कोरोना से निपटने के लिए कोविड-19 इमरजेंसी फंड बनाने की घोषणा करते हुए मोदी ने भारत की ओर से इसमें एक करोड़ अमेरिकी डॉलर (लगभग 74 करोड़ रुपये) देने का एलान किया। मोदी ने यह भी कहा कि भारत के विशेषज्ञ डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों व वैज्ञानिकों की टीम सार्क के देशों के कहने पर कहीं भी जाने के लिए पूरी तरह तैयार है। मोदी के प्रस्ताव के अनुसार एक हफ्ते के भीतर सार्क देशों में कोरोना से निपटने में जुटे विशेषज्ञों की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें वे अपने-अपने अनुभवों को साझा करने के साथ ही एक-दूसरे की मदद करने योग्य मुद्दों पर चर्चा करेंगे। मोदी ने कहा कि भारत सार्क के साथी देशों के साथ इस महामारी पर निगरानी के सॉफ्टवेयर को भी साझा करने को तैयार हैं। साथ ही इसके इस्तेमाल का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। मोदी ने सभी देशों को अपने देश की उन्नत चिकित्सा सुविधा साझा करने की पेशकश की। इस तरह मोदी ने सार्क के बीच पहल कर विश्व समुदाय के लिए एक उदाहरण पेश किया है। पाकिस्तान को छोड़कर सभी सार्क देशों ने इसे सकारात्मक ढंग से लिया। मोदी के ट्वीट प्रस्ताव के साथ ही सबने इस पहल की प्रशंसा करते हुए इसमें भागीदारी की बात की थी। सम्मेलन में श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष मौजूद थे। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने तो खराब स्वास्थ्य के बावजूद इसमें हिस्सा लिया। लेकिन पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री इमरान खान की जगह स्वास्थ्य मामलों के विशेष सहायक जफर मिर्जा को भेज दिया। सम्मेलन के दौरान भी सभी सार्क देश कोरोना से निपटने के लिए साझा रणनीति पर चर्चा कर रहे थे, वहीं पाकिस्तान ने इससे निपटने में चीन का गुणगान करते हुए उससे सीखने की सलाह के साथ कश्मीर मुद्द उठाया। प्रधानमंत्री मोदी ने समय की नजाकत को भांपते हुए पाकिस्तान के हरकत की अनदेखी की तथा लक्ष्य के अनुरुप बैठक का सकारात्मक माहौल में अंत किया। 

देखा जाए तो यहां से केवल कोरोना वायरस में सहयोग का ही नहीं सार्क के जीवन में भी एक नए दौर की शुरुआत हुई है। पाकिस्तान के रवैये को देखते हुए भारत ने उसे दरकिनार कर अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग को प्रमुखता दिया है तथा सार्क सम्मेलन पिछले चार सालों से स्थगित है। इस्लामाबाद सम्मेलन का भारत के बहिष्कार का साथ अन्य सभी देशों ने दिया था। भारत ने इसकी जगह बिम्सटेक को महत्व देना शुरु किया था। पूरी दुनिया को आतंकित करने वाले कोरोना वायरस से लड़ने के साथ कायम हुई एकजुटता यदि ठोस परिणाम लाता है जिसकी संभावना है तो फिर भविष्य में इसका विस्तार अन्य क्षेत्रों में हो सकता है। वैसे भी भारत ने अपने वायदे के अनुरुप सार्क देशों के लिए एक उपग्रह का प्रक्षेपण कर दिया है।  सार्क देशों में दुनिया की पूरी आबादी का पांचवां हिस्सा रहता है। इस नाते यहां सहयोग की संभावनां व्यापक हैं। मोदी ने सहयोग एवं साझेदारी की पहले भले अब की है लेकिन भारत ने कोरोना वायरस सामने आने के साथ ही अपने देश को रक्षित करने के समानांतर भारत की वैश्विक भूमिका का निर्वहन करना आरंभ कर दिया था। सम्मेलन के दौरान बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मुहम्मद सालिह ने कोरोना ग्रस्त इलाकों से अपने नागरिकों को बचाने के लिए मोदी की तारीफ की। अगर भारत ने इनके नागरिकों को दुष्प्रभावित देशों से नहीं निकाला होता तो ये भारत का आभार कैसे व्यक्त करते। यह तथ्य कम लोगों को मालूम है कि चीन में कोरोना वायरस का प्रकोप सामने आने ही मोदी ने वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को मदद की पेशकश की, विस्तृत पत्र लिखा। चीन को सबसे पहले चिकिस्ता सामग्री भेजने वाला देश भारत था। सबसे अंतिम 26 फरवरी को भारत ने 15 टन सामग्री वुहान भेजी थी। विदेश मंत्रलय के नेतृत्व में वहां से भारत के अलावा सात दूसरे देशों के 36 नागरिकों को भी निकाला गया। इसमें मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका व अमेरिका के भी नागरिक थे। जापान से जब 27 फरवरी को भारतीयों को निकाला गया तो उनके साथ दक्षिण अमेरिकी देश पेरू समेत पांच दूसरे देशों के नागरिकों को भी निकाला गया। ईरान मेें तो चार वैज्ञानिक दलों के साथ एक पूरी लेबोरेटरी भेजी गई है। दक्षिण कोरिया को मदद की पेशकश की गई तो सिंगापुर को भी। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मोदी ने टेलीफोन पर बातचीत की तो उन्होंने कोरोनावायरस से लड़ने के लिए मास्क समेत अन्य चिकित्सा सामग्रियों की मांग की और भारत ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। वास्तव में मोदी लगातार दुनिया के नेताओं से बातचीत कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मोरिसन से लेकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन इनमें शामिल हैं। 

प्रधानमंत्री अब जी 20 देशों के बीच सहयोग पर बातचीत कर रहे हैं।  वे नेताओं को कोरोना वायरस को लेकर एक सामूहिक नीति बनाने तथा एक दूसरे के बीच सहयोग विकसित करने पर बातचीत कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि मैं इस बात से भी अवगत हूं कि पीएम मोदी जी20 देशों के बीच सामंजस्य बनाने को उत्सुक दिख रहे हैं। मेरे ख्याल से यह सराहनीय प्रसास है। ऑस्ट्रेलिया निश्चित रूप से इसका समर्थन करता है और यह संदेश भेजा जा चुका है। हालांकि विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत की तरफ से समूह-20 की बैठक बुलाने का कोई आह्वान अभी नहीं किया गया है लेकिन प्रधानमंत्री की वैश्विक नेताओं के साथ बातचीत में एक साझा रणनीति बनाने का सुझाव जरूर दिया गया है। दुनिया की स्थिति इसके विपरीत है। चीन और अमेरिका के बीच एक तरह से कूटनीतिक लड़ाई शुरू  हो गई है। पहले अमेरिका की तरफ से चीन पर आरोप लगाया गया कि उसने महामारी को रोकने की कोशिशों में सुस्ती बरती और दुनिया को इस हालात में पहुंचाने का वह दोषी है। चीन की तरफ से अमेरिकी सेना पर यह दोषारोपण किया गया कि वुहान में कोरोना वायरस को लाने में उसकी भूमिका संदिग्ध है। हालांकि चीन के आरोप पर कोई देश विश्वास करने वाला नहीं है। पर इसमें तनातनी देखी जा सकती है। अमेरिका द्वारा यूरोप से आवागमन पर प्रतिबंध लगाने के कारण कई यूरोपीय देशों ने नाराजगी व्यक्त कर दी है। 

कहने का तात्पर्य यह कि दुनिया के देश या तो अपने मंे उलझे हैं या फिर उनके बीच आपस में तनाव है। एकमात्र भारत ही है जिसके नेता ने पड़ोसियों के साथ सहयोग की पहल की और उसे विस्तारित करते हुए विश्व समुदाय की चिंता करने वाले देश के रुप में स्वयं को प्रस्तुत किया है। वैसे भी वैश्विक महामारी के लिए वैश्विक रणनीति और सहयोग का ढांचा होना चाहिए। यह काम इस समय भारत के अलावा कोई नहीं कर रहा। मोदी ने इस मामले में पड़ोसी प्रथम नीति के तहत सार्क देशों के साथ सहयोग के एक ढांचे की शुरुआत की और उसके बाद विश्व स्तर पर पहल किया है। ऐसे ही संकट में किसी देश और उसके नेतृत्व की पहचान होती है। अभी तक भारत एवं उसका नेतृत्व दुनिया के लिए श्रेष्ठ उदाहरण बनकर उभरा है जिसका असर लंबे समय मे विश्व पटल पर कई रुपों में दिखाई देगा। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208

बुधवार, 18 मार्च 2020

(12.45) 17-03-2020 To 23-03-2020

इस अंक में क्या है

-स्वास्थ्य ही नहीं अर्थव्यवस्था को भी तेजी से प्रभावित कर रहा है कोरोना
-कोरोना का छाना, सिंधिया का जाना व संसद में हंगामा
-दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाईश रहे...
-कारगिल के सेनापति जॉर्ज फर्नांडिस जिनकी रगों में बसा था हिन्दुस्तान
-दिल्ली में 31 तक 50 से अधिक लोगों वाले कार्यक्रमों पर रोक, जिम-नाइट क्लब भी बंद
-मिर्जा गालिब को भारत रत्न दिए जाने की राज्यसभा में उठी मांग
-कोरोना से दिहाड़ी मजदूर भी प्रभावित, नहीं मिल रहा काम
-एमबीए वाले को रेलवे में मिली खलासी की नौकरी
-जेएनयू की सड़क का नाम ‘वीर सावरकर’ रखना शर्म की बातः आइशी
-तीन वर्ष में उत्तर प्रदेश ने अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कियाः योगी आदित्यनाथ
-कोरोना वायरस से संक्रमितों के इलाज का पूरा खर्चा उठाएगी बिहार सरकारः नीतीश कुमार
-तेलंगाना विधानसभा में सीएए, एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पास
-दिल्ली दंगे: अब तक 718 मामले दर्ज, 3400 से ज्यादा लोग हिरासत में लिया गया
-भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर ने बनाई आजाद समाज पार्टी
-संघ की शाखाओं में हुई बढ़ोतरी, तीन हजार शाखाएं बढ़ीं
-कोरोना वायरस का असर, न्यूयॉर्क में सभी स्कूल,रेस्तरां और बार बंद
-कोरोना वायरस का कहर, ईरान के धार्मिक नेता आयतुल्ला हाशीम बाथेई की हुई मौत
-अमेरिका की अलबामा प्रतिनिधि सभा ने नमस्ते को अपनाने से इनकार किया
-अब पता चला क्यों इतनी तेजी से फैलता है कोरोना वायरस
-पुतिन 12 साल और बने रह सकते हैं रूस के राष्ट्रपति, तोड़ेंगे तानाशाह स्टालिन का रिकॉर्ड
-कोरोना का डर मोहें सतावै
-त्वचा संबंधी समस्याओं से छुटकारा दिलाती है कच्ची हल्दी
-फ्रिक्शनल थेरेपी क्या है, यह कैसे आपकी खूबसूरती बरकरार रखता है?
-फेफड़ों को हेल्दी बनाए रखने के लिए खाएं यह चीजें
-टयूलिप गार्डन देखने चलें कश्मीर
-क्या आप जानते हैं कैसे सजाएं पुराने कपड़ों से अपने घर को
-विश्व कप 1975: जब हार की कसक बनी थी भारतीय हाकी टीम के लिये जीत की प्रेरणा
-रोहित ने कहा, कोविड-19 के कारण दुनिया को थमते हुए देखना दुखद
-कोई नहीं जानता, कब शुरू होगा आईपीएल
-सपना चैधरी ने अपने बॉयफ्रेंड से कर ली सगाई
-दीपक ठाकुर और सोमी खान की शादी की तस्वीरें हुई वायरल
-जावेद अख्तर के सुनहरे शब्दों ने बदल दी थी आमिर खान की तकदीर
-अमिताभ बच्चन ने ‘अंग्रेजी मीडियम’ की अभिनेत्री को भेजा खत









शुक्रवार, 13 मार्च 2020

भयावह साजिश का इससे बड़़ा सबूत और क्या चाहिए

अवधेश कुमार

शाहीनबाग धरना, दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा तथा इसके पूर्व जामिया हिंसा को लेकर हुई हाल की पांच गिरफ्तारियों ने एक बार फिर इस खतरनाक सच को साबित किया है कि इनके पीछे देश विरोधी जेहादी-आतंकवादी-सांप्रदायिक शक्तियां सक्रिय हैं। दिल्ली पुलिस ने आठ मार्च को ओखला विहार के जामिया नगर इलाके से इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रॉविंस (आईएसकेपी) मॉड्यूल से जुड़े कश्मीरी दंपती को गिरफ्तार किया। कश्मीर के रहने वाले 36 वर्षीय जहांजेब सामी और उसकी पत्नी 39 वर्षीय हीना बशीर बेग गिरफ्तार होने के पहले शाहीन बाग व जामिया के प्रदर्शन में लगातार सक्रिय थे। इसके एक दिन बाद त्रिलोकपुरी से दानिश अली नाम के एक 33 वर्षीय युवा को गिरफ्तार किया गया जो पीएफआई का सक्रिय सदस्य है। यह भी शाहीनबाग से लेकर जामिया आंदोलन में सक्रिय था। हालांकि इसकी गिरफ्तारी उत्तरपूर्व दिल्ली में हुई हिंसा के संदर्भ में थी। उससे पूछताछ के आधार पर पीएफआई के अध्यक्ष परवेज़ अहमद और सचिव मोहम्मद इलियास को गिरफ्तार किया। उन पर दिल्ली दंगों के साथ शाहीनबाग को फंडिंग करने का आरोप है। हमारे देश के एक्टिविस्टों का एक वर्ग पुलिस के सारे दावों को नकारेगा एवं इनको निर्दोष साबित करने की कोशिश करेगा। आईएसआईएस से जुड़े पति-पत्नी के घर से यह बयान आ ही गया है कि वे तो कश्मीर में इंटरनेट बंद होने के कारण दिल्ली गए थे, क्योंकि उनकी कंपनी वही चली गई थी। लेकिन मूल सवाल यह है कि आखिर पुलिस की विशेष शाखा ने इन्हीं को क्यों गिरफ्तार किया जबकि शाहीनबाग एवं जामिया हिंसा व प्रदर्शनों में काफी संख्या में लोग शामिल थे? यही बात दानिश अली के मामले में भी लागू होता है। 

अभी तक जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार पुलिस को शाहीनबाग में ऐसे लोगों के शामिल होने की सूचना मिली थी जिनका संबंध आईएस जैसे संगठन से है तथा ये नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शनों का इस्तेमाल मुस्लिम युवाओं को भड़काकर हिंसा और आतंकी हमले के लिए करना चाहते थे। जहांजेब और हीना की पहचान पुलिस ने कर ली और इन पर नजर रखी जा रही थी। आगे बढ़ने के पहले आईएसकेपी के बारे में थोड़ी जानकारी जरुरी है। यह अफगानिस्तान में आईएसआईएस का सहयोगी संगठन है। खुरासान मॉड्यूल का मूल आधार पाकिस्तान-अफगान सीमा पर है। यह खतरनाक हमले करता है। तालिबान अमेरिका समझौते के बाद इसने अफगानिस्तान में बड़े हमले किए हैं। यह धन जुटाने के लिए अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से सीधे जुड़ा है। इसे भारत से भी धन भेजे जाने की खबरें सामने आती रही हैं। खुरासान अफगानिस्तान का वह ऐतिहासिक क्षेत्र है, जिसमें अफगानिस्तान और ईरान के हिस्से शामिल थे। यहां ध्यान रखने की बात है कि आईएस ने विश्व इस्लामी साम्राज्य का जो नक्शा जारी किया था उसमें खुरासान में ही भारत के काफी क्षेत्र को शामिल किया था। आईएस ने इस क्षेत्र के लिए अपने कमांडर की नियुक्ति की भी घोषणा कर दी थी। आईएस खुरासान में तालिबान छोड़ने वाले और विदेशी लड़ाके दोनों शामिल हैं। इस संगठन को बेहद क्रूर माना जाता है। कश्मीरी युवाओं में यह फिदायीन हमलावर संगठन लोकप्रिय है। इसके लिए भर्ती दक्षिण एशिया से हो रही है। 

 ये दोनों सोशल मीडिया के माध्यम से संगठन की गतिविधियां फैला रहे थे। सीएए-एनआरसी के विरोध को जिंदा रखने के लिए दोनों आरोपी प्रदर्शनकारियों के अंदर जिहाद की बातें करते थे। दोनों सोशल मीडिया तथा ह्वाटस्टएप कौल के जरिए लगातार अफागानिस्तान के आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के संपर्क में थे। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ भी सड़क पर उतरने के लिए इन्होंने उकसाया। इसके खिलाफ भड़काने वाली सामग्री भी ये लोग तैयार करके फैला रहे थे। जो लोग इन्हें मासूम साबित करने पर तुले हैं उन्हें इस बात का अवश्य जवाब देना चाहिए कि जहांजेब ने अलग-अलग नामों से सोशल मीडिया अकाउंट क्यों बनाया हुआ था? इसके कई कई फर्जी आईडी मिले हैं। ये टेलिग्राम, फेसबुक, थ्रीमा, श्योर स्पॉट, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक्टिव थे। किसी कंपनी में सामान्य सॉफ्टवेयर का काम करने वाला इतने प्लेटफार्म पर और कई नामों से इतना सक्रिय नहीं रहता जितना ये थे। यही नहीं दोनों पति-पत्नी इंडियन मुस्लिम यूनाइट नाम का एक सोशल अकाउंट चला रहे थे। क्यों? वास्तव में ये आईएस की जेहादी विचारधारा से युवाओं को प्रभावित कर जेहादी गतिविधियां करने को प्रेरित कर रहे थे। जांच में यह बात भी सामने आई है कि ये सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों को फ्री कश्मीर के नारे लगवाते थे। ये दिल्ली के अलावा मुंबई और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में भी लोगों को सीएए का डर दिखाते, उन्हें कौम के खिलाफ बड़ी साजिश बताते थे। पूछताछ में दोनों ने बताया कि वह आईएस की पत्रिका स्वात-अल-हिंद के फरवरी महीने के संस्करण को प्रकाशित करवाने में शामिल थे। इस पत्रिका को 24 फरवरी को ऑनलाइन जारी किया गया था। इसमें सीएए का विरोध कर रहे लोगों से जिहादी रास्ता अपनाने की अपील की गई थी। इसमें लिखा था कि लोकतंत्र आप लोगों को नहीं बचा पाएगा। जहांजेब शामी ने बीटेक किया है, जबकि हिना ने एमसीए किया है। दोनों अपनी विशेषज्ञता के कारण सोशल मीडिया एवं आधुनिक तकनीकों के उपयोग में निष्णात हैं। इनके घर से सीएए विरोधी और समुदाय के खिलाफ काफी सामग्रियां मिलीं हैं। 

इतने विवरण के बाद शाहीनबाग धरना तथा देश के अलग-अलग जगहों पर शाहीनबाग विस्तारित धरने, प्रदर्शनों को लेकर क्या किसी को संदेह रह जाता है कि इसके पीछे व्यापक गहरी साजिश है? उत्तर प्रदेश एवं असम की हिंसा में पीएफआई की संलिप्तता के इतने प्रमाण मिले हैं कि केन्द्रीय गृहमंत्रालय के पास इनको प्रतिबंधित करने की अनुशंसाएं विचाराधीन है। जामिया हिंसा के बारे में भी पुलिस ने जो आरोप पत्र न्यायालय में डाला है उसमें भी पीएफआई का नाम है। शाहीनबाग में जिस तरह के भड़काउ भाषण हो रहे थे, जैसी सामग्रियां बंटती रहीं हैं और वहां जिस तरह हर प्रकार के संसाधन उपलब्ध रहे हैं उनसे किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति के अंदर कई प्रकार के संदेह पैदा होते थे। केन्द्र सरकार को पूरी तरह मुस्लिम विरोधी बताना तथा उसके खिलाफ मरने-मारने के लिए तैयार करने की बातें खुलेआम होती रहीं हैं। उसमें चेहरे से तो आप पहचान नहीं सकते थे कि बोलने वाला कौन है? इसकी पृष्ठभूमि क्या है? यह किस उद्देश्य से यहां सक्रिय है। अब अगर आईएस जैसे संगठन की भूमिका तक वहां सामने आ रही है तो इसी से समझा जा सकता है कि साजिश कितनी गहरी और खतरनाक है। यह बिल्कुल संभव है कि आने वाले समय में और भयावह जानकारियां सामने आएं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक दस्तावेज सामने आया है जिसमें दलितों और मुस्लिमों को इकट्ठा कर भारत को अस्थिर करने की योजना है। संभव है उसको भी अमल में आने की कोशिशें हुईं हों। दिसंबर हिंसा के पीछे पीएफआई से जुड़े संगठनोें के खाते में 120 करोड़ रुपया आने तथा हिंसा के साथ तेजी से जमा होने एवं निकालने का पूरा आंकड़ा तथ्यों के साथ सामने रखा जा चुका है। पता नहीं और कौन-कौन से संगठन या उससे प्रभावित भारत विरोधी जेहादी, माओवादी या अन्य प्रकार की हिंसक और सांप्रदायिक विचारधारा मे परिणत मस्तिष्क इसके पीछे सक्रिय हैं। यह बात तो आसानी से समझ में आती है कि जो नागरिकता कानून तीन देशों से धार्मिक रुप से उत्पीड़ित और अपनी सम्मान गंवाकर पलायन कर शरण के लिए आए लुटे-पिटे लोगों को नागरिकता देने के लिए है उसे मुसलमानों के खिलाफ झूठे दुष्प्रचार को लोगों के दिमाग तक पहुंचाने वालों का एक प्रभावी तंत्र अवश्य होगा। कैसे निहायत ही झूठ को इनने लोगों के दिमाग में उतार दिया कि मोदी और शाह मुसलमानों के खिलाफ है, वह आपकी नागरिकता छीन लेगा, आपको जेलों में डाल देगा या देश से बाहर भी निकाल देगा। यह किसी छोटे तंत्र के वश के बाहर है। अब जब पीएफआई के बाद आईएस तक की भूमिका सामने आ गई है तो फिर यह समझने में देर नहीं लगना चाहिए किस तरह की शक्तियां भारत को अशांत करने के लिए सक्रिय हैं। दिल्ली हिंसा में पीएफआई की भले पहली गिरफ्तारी है किंतु आने वाले समय में और गिरफ्तारियां एवं तथ्य सामने आएंगे। एनआईए इसकी ज्यादा गहराई से जांच करेगी। यह उन लोगों को भी सोचना चाहिए जो इनके बहकावे में आकर प्रदर्शनों में शामिल हुए या सांप्रदायिक उकसावे में आकर हिंसक गतिविधियों तक में संलिप्त हो गए। साथ ही पुलिस प्रशासन को भी इसका जवाब देना चाहिए कि आखिर इतने भयानक तत्वों की भूमिका सामने आने के बाद भी शाहीनबाग जैसे अवैध और नासूर बन चुके धरना को खत्म करने में समस्या क्या है?

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208


मंगलवार, 10 मार्च 2020

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