शुक्रवार, 3 मई 2024

सैम पित्रोदा के विरासत टैक्स सुझाव पर घमासान क्यों?

बसंज कुमार

पिछले सप्ताह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व आर्थिक मामलों के जानकर सैम पित्रोदा ने अमेरिका में लिए जाने वाले विरासत टैक्स को भारत में भी लिए जाने के लिए बहस का सुझाव दिया। इस पर पूरे राजनीतिक हलको में उनके इस सुझाव की तीखी आलोचना शुरू हो गई और उनकी अपनी पार्टी ने इसे उनका निजी विचार कहकर पल्ला झाड़ लिया। परंतु विपक्ष या सत्ता पक्ष के आर्थिक मामलों के जानकर ने यह कहने का साहस नहीं किया कि भारत एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है और यहां इंफ्रेस्ट्रॅक्चर के विकास के लिए राजस्व की अवश्यकता है और राजस्व कलेक्शन के लिए यह एक बेहतर सुझाव हो सकता है। मेरी विरोधी राजनीतिक दलों से संबंध होने के बावजूद कई बार शिष्टाचार भेट हुई हैं और आर्थिक मामलों में उनके जानकर होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। उनके इस सुझाव से चल रहे लोकसभा चुनाव के बीच एक नया विवाद पैदा हो गया।

इस विवाद को रोका जाए उससे पहले यह जानने का प्रयास करते हैं कि विरासत टैक्स क्या होता है और अमेरिका में इसे क्यों लगाया जाता है जिससे प्रभावित होकर पित्रोदा ने इसे भारत में भी लगाने की बहस छेड़ दी।  इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कई बार बड़े औद्योगिक घरानों या राजघरानों में अपनी असली औलाद न होने के कारण उन दूर के रिश्तेदारों को बगैर किसी मेहनत और सेवा के अरबों की प्रोपर्टी विरासत के तौर पर मिल जाती है। अमेरिका में विरासत कर ऐसा कर है जो किसी मृत व्यक्ति द्वारा संपत्ति पर लगाया जाता है। इसके अंतर्गत मृत व्यक्ति की संपत्ति का कुछ प्रतिशत उसके वंशज को मिलता है और कुछ हिस्सा राज्य के पास टैक्स के रूप में चला जाता है। यह कर केंद्रीय कर न होकर अमेरिका के 6 राज्यो में लगाया जाता है। इस टैक्स का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि मृत व्यक्ति कहां रहता था और उसका संपत्ति के उत्तराधिकारियों के साथ क्या रिश्ता था। अमेरिका के जिन 6 राज्यो में यह टैक्स लगाया जाता हैं उनमें आयोवा, केंटकी, मैरीलैंड, नेब्रास्का, न्यू जर्सी और पेंसिलवेनिया है और हर राज्य में विरासत टैक्स की दरें अलग-अलग हैं। कुछ राज्यों में मृतक की पत्नी, पति, बच्चों, माता-पिता, दादा-दादी, पोती-पोतियों को विरासत टैक्स से छूट दी गई है। यहां तक की चैरिटी पर भी इस टैक्स से छूट का प्रावधान है, कहीं पर कुल संपत्ति और नकद मूल्य का विरासत टैक्स 1% से भी कम होता है और कहीं-कहीं यह 20% से अधिक हो सकता है

इस विवाद से कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह कह दिया था की यदि हम सत्ता में आते है तो पूरे देश में आर्थिक सर्वे कराए जाएंगे और उसके बाद संपत्ति का पुनर्वितरण कराया जाएगा। राहुल गांधी के यह विचार भारत में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती हुई खाई को पाटने के लिए एक क्रांतिकारी कदम हो सकता था। हां इसको लागू करना असंभव नहीं पर बहुत मुश्किल जरूर है। राहुल गाँधी के इस बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के अन्य बड़े नेताओं ने हमला बोला दिया। इस पर तमाम अलोचनाओं के बाद भी राहुल गांधी अपनी बात पर अड़े रहे और आगे कह दिया कि आप ये न समझें कि हमारे सत्ता में आने के बाद न सिर्फ जाति सर्वे होगा हम इसमें आर्थिक सर्वे भी शामिल करेंगे अर्थात देश में संपत्ति का पुनर्वितरण करेंगे। इसी बात को लेकर जब पत्रकारों ने सैम पित्रोदा से बात की तो उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए यह नई बात कह दी। जहां तक भारत में विरासत टैक्स का प्रश्न है तो यह देश में पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में 1953 में लागू हुआ लेकिन इसे 32 साल बाद 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में समाप्त कर दिया गया। गौरतलब है कि उस समय देश के वित्त मंत्री राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह थे जो बाद में देश के 8वें प्रधानमंत्री बने। उन्होंने देश में ऐतिहासिक मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कीं जिससे अति पिछड़ी जातियों को 27% आरक्षण लागू हुआ और सत्ता में पिछड़े वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित हुई जिसके आधार पर कई दल जाति पर आधारित जनगणना की बात कर रहे हैं।

प्रश्न यह उठता है कि उस समय भारत कि आर्थिक स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं थी उसके कुछ वर्षों बाद ही भारत को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए दीर्घकालीन ऋण के लिए आईएमएफ के पास जाना पड़ा और आईएमएफ की शर्तों के आगे अपनी आर्थिक नीतियां बदलनी पड़ीं। ऐसे में सरकार को विरासत टैक्स वापस लेने की क्या अवश्यकता थी जब की इससे अच्छे खासे राजस्व की प्राप्ति हो रही थी। आश्चर्य इस बात का है कि कांग्रेस ने भी पित्रोदा के इस सुझाव का समर्थन करने के बजाय पित्रोदा का निजी बयान कहकर किनारा कर लिया जबकि कांग्रेस यह भूल गई कि 70 के दशक में उनकी सबसे कद्दावर नेता इंदिरा गांधी ने राजाओं को दिये जाने वाले प्रिवीपर्स बंद कर दिये थे और इसे पूरा समर्थन मिला था और सरकार के इस कदम को सरकार के राजस्व की स्थिति को सुधारने वाला कदम माना गया था

सैम पित्रोदा के बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमला करते हुए दावा किया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद उनकी संपत्ति सरकार के पास जाने से बचाने के लिए राजीव गांधी ने 1985 में भारत में विरासत टैक्स समाप्त कर दिया। इससे फायदा उठाने के पश्चात कांग्रेस इसे फिर से जनता के ऊपर थोपना चाहती है। अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो विरासत टैक्स के जरिये लोगों के पूर्वजों की ओर से छोड़ी गई आधी संपत्ति छीन लेगी। हो सकता है कि प्रधानमंत्री जी का यह भाषण चुनावी हो पर जो विरासत टैक्स सन् 1985 तक भारत में लागू रहा हो वह एकाएक जनता की सम्पत्ति की लूट का हिस्सा कैसे बन गया। सैम पित्रोदा के बयान को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती का बयान और भी हास्यास्पद् लगता है। उन्होंने कहा निजी सम्पत्ति पर विरासत टैक्स की सोच और उसकी पैरवी कांग्रेस की गरीबी हटाओ की चर्चित विफलता पर से लोगों का ध्यान भटकाना है।  उन्होंने कहा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओ द्वारा भारत में धन व सम्पत्ति वितरण की आड़ में अमेरिका की तरह निजी सम्पत्ति पर विरासत टैक्स की सोच और उसकी पैरवी करना गरीबो की भलाई कम और गरीबी हटाओ की विफलता से ध्यान हटाने का चुनावी हथकंडा है। वास्तव में मायावती जी का यह विरोध उनके द्वारा अर्जित की गई अरबों की सम्पत्ति सरकार के पास जाने की चिंता के कारण है।

यह सच है कि इंफ्रास्ट्रॅक्चर के विकास हेतु सरकार के राजस्व को बढ़ाने के लिए जीएसटी समेत अनेक टैक्स लगाए गए। यहां तक कि सीनियर सिटीजन्स को रेल यात्रा के समय दी जाने वाली रियायतें वापस ले ली गयी है और मल्टीहॉप्टिलिटी अस्पतालों में दी जाने वाली डिस्काउंट भी समाप्त कर दिया गया है, फिर सैम पित्रोदा द्वारा सुझाए गए विरासत टैक्स पर इतना शोर-शराबा क्यों? पर हम सभी जानते हैं कि सैम पित्रोदा आर्थिक मामलों के जानकार होने के साथ-साथ यह भी समझते हैं कि वर्ष 2024 के चुनावों में कांग्रेस सत्ता में नहीं आने वाली है, इसलिए उनके इन सुझावों को चुनावी स्टंट कि संज्ञा न देकर, भारत सरकार के राजस्व बढ़ाने के उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए। चाहे यह सुझाव किसी विपक्षी पार्टी के नेता द्वारा लाया गया हो, वैसे विगत वर्षों में सपा, बसपा और कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल हुए हैं और भाजपा सरकार और संगठन में महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व का निर्वाह कर रहे हैं और नीतिगत निर्णय ले रहे हैं तो फिर सैम पित्रोदा के सुझाव पर इतना शोर शराबा क्यों?

बुधवार, 1 मई 2024

संपत्ति सर्वे वितरण और विरासत कर के बवंडर का सच

अवधेश कुमार

कांग्रेस के रणनीतिकारों का जो भी मानना हो लेकिन उसके विचार एवं व्यवहार इन दिनों लगातार आम व्यक्ति को हैरत में डालते हैं। अनेक गंभीर लोग बातचीत में प्रश्न करते हैं कि आखिर कांग्रेस को हो क्या गया है? संपत्तियों के सर्वे और वितरण संबंधी विवाद कांग्रेस की स्वयं की देन है। इसे लेकर मचे बवंडर के बीच विदेश में कांग्रेस पार्टी की इकाई ओवरसीज कांग्रेस ऑफ इंडिया के प्रमुख सैम पित्रोदा ने उत्तराधिकार कर का बयान देकर इसे लोकसभा चुनाव के एक बड़े मुद्दे के रूप में स्थापित कर दिया है। स्वाभाविक है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित समूची भाजपा कांग्रेस पर यह आरोप लगा रही है कि वह लोगों के घरों में घुसकर संपत्तियों का सर्वे करेगी तथा समान वितरण के नाम पर अपने चाहत के अनुरूप समुदाय विशेषकर मुसलमानों के बीच बांट देगी उस समय यह बयान बवंडर को और बढ़ने वाला ही साबित होना था। सैम पित्रोदा के बयान को व्यक्तिगत कह कर खारिज करना आसान नहीं है। आखिर वह कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारी हैं और सोनिया गांधी परिवार के निकटतम लोगों में माने जाते हैं। राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समानांतर विदेशों में प्रोजेक्ट करने , जगह-जगह उनका भाषण और पत्रकार वार्ताएं करने की पूरी कमान उनके हाथों होती है। वह कह रहे हैं कि जब हम सामान वितरण की बात करते हैं तो हमें अमेरिका जैसे इन्हेरिटेंस टैक्स यानी उत्तराधिकार कर पर भी विचार करना चाहिए। उनके अनुसार यहां कई राज्यों में पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति की विरासत संभालने वाले को 55% तक कर दे कर उसके हिस्से शेष 45% आता है। इससे स्वाभाविक ही यह शंका गहरी हुई कि कांग्रेस सत्ता में आने पर वाकई विरासत कर भी लगा सकती है।

अगर राहुल गांधी ने अपने भाषणों और वक्तव्यों में लगातार जाति जनगणना के साथ वित्तीय एवं आर्थिक सर्वे की बात नहीं करते तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा को इसे इतना बड़ा मुद्दा बनाने का अवसर नहीं मिलता। उनके भाषण और वक्तव्य सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं जिनमें वह कह रहे हैं कि हम सत्ता में आने पर जाति जनगणना करेंगे और उसके बाद क्रांतिकारी कदम उठाएंगे, संपत्ति के समान वितरण के लिए वित्तीय सर्वेक्षण करा कर देखेंगे कि किसके पास किस वर्ग के पास कितनी संपत्ति है। इसके बाद जितना जिसका हक होगा उतना उसको दिया जाएगा। कांग्रेस का घोषणा पत्र यानी न्याय पत्र जारी होने के पूर्व और बाद में भी वह इस पर बोलते रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि आप से मिलना चाहता हूं ताकि मैं आपको अपना घोषणा पत्र समझा सकूं। खड़गे सहित कांग्रेस पार्टी के अंदर कोई यह कहने को तैयार नहीं है कि हम वित्तीय और आर्थिक सर्वे नहीं करेंगे तथा समान वितरण की भी बात हमारे एजेंडे में नहीं है। इसकी बजाय कांग्रेस के नेता प्रवक्ता लगातार भारत में उद्योगपतियों, अरबपतियों को निशाना बनाते हुए इनमें से कुछ के हाथों धन सिमट जाने के वक्तव्य दे रहे हैं। 

अगर सर्वेक्षण होगा तो फिर सर्वेक्षणकर्मी लोगों के घर में जाएंगे। घर वाले चाहें न चाहें उनकी एक-एक चीज देखी जाएगी। इसके अलावा अगर सर्वेक्षण का कोई तरीका कांग्रेस के पास है तो उसे बताना चाहिए। मंगलसूत्र जैसे शब्द व्यंग्यात्मक शैली में होते हैं। इनका इतना ही अर्थ है कि महिलाओं के आभूषण तक भी सर्वे में जाने जाएंगे।  संपत्ति के विवरण के वैधानिक प्रावधानों में आभूषणों आदि की पूरी सूची और उसके मूल्य बताने ही पड़ते हैं। चूंकि राहुल गांधी अपनी घोषणा पर कायम हैं और कांग्रेस इससे पीछे नहीं हट रही तो सैम पित्रोदा के उत्तराधिकार कर से देश में भय पैदा हो गया है। कुछ लोगों ने तो यह भी  तलाश लिया कि पहले भी भारत ने विरासत कर था और स्वयं पित्रोदा कोई नई बात का नहीं कह रहे हैं। प्रक्रांतर से यह स्वयं पित्रोदा के विचार का समर्थन करना ही है । निश्चित रूप से था और यह अंग्रेजों का बनाया हुआ कानून था जो व्यवहार में नहीं उतर पाया तथा सरकारी विभागों में इतनी मुकदमे हुए जिनके खर्च उससे प्राप्त से ज्यादा हो गया। हालांकि प्रधानमंत्री का आरोप है कि र राजीव गांधी के प्रधानमंत्रीत्व काल में उसे इसलिए हटाया गया, क्योंकि उन्हें बिना कर दिए अपनी मां की संपत्ति का उत्तराधिकार लेना था। सच है कि पारिवारिक संपत्ति में से संजय गांधी के परिवार को शायद ही कुछ प्राप्त हुआ हो। यह ऐसा मुद्दा रहा है जिसे आरंभिक दिनों में मेनका गांधी ने उठाया था।

 बहरहाल, भले अर्थव्यवस्था, समाज और देश के बारे में समझ रखने वाले इसे उचित न मानें लेकिन कांग्रेस के अंदर भाव यही है कि राहुल गांधी की इन घोषणाओं का देश के आम लोगों पर बड़ा प्रभाव है और उन्हें लगता है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो देश के धनी और संपन्न लोगों की संपत्तियां लेकर हमारे बीच बांटा जाएगा। वह मानते हैं कि इससे उनका वोट काफी बढ़ेगा और सत्ता में भी आ सकते हैं।

 पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस की नीति और व्यवहार में पुरानी शैली के वामपंथियों की तरह संपत्तिवानों, उद्योगपतियों आदि के विरुद्ध घृणा और गुस्सा साफ परिलक्षित होता रहा है। उनको निशाना बनाया जाता है। पांच न्याय और 25 गारंटी में कांग्रेस ने ऐसी-ऐसी बातें की है जिनको धरातल पर उतारना भारतीय अर्थव्यवस्था के बूते की बात नहीं है।। लेकिन इस समय कांग्रेस के थिंक टैंक या सोनिया गांधी परिवार को सुझाव देने वाले मानते हैं कि कांग्रेस को पुराने वामपंथियों की तरह क्रांतिकारी तेवर धारण करना चाहिए तभी वह अपना खोया हुआ जनाधार वापस ला सकती है तथा भाजपा को हरा सकती है। सैम पित्रोदा ने जो कहा है वह इसी सोच का विस्तार है। हमारी आपकी दृष्टि में अमेरिका एक पूंजीवादी देश है लेकिन क्रांति हुए बिना वहां वामपंथियों की ताकत हमेशा सशक्त रही है। वहां ये सत्ता, प्रशासन, न्यायपालिका , मीडिया से लेकर पूरे थिंक टैंक पर हाबी हैं। वहां के बड़े-बड़े पूंजीपति जिनमें जार्ज सोरोस जैसे लोग शामिल है, भी अपने प्रकट लक्ष्यों और घोषणाओं में आधुनिक वामपंथी ही है। उनकी दृष्टि की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में उनकी ही सोच की अर्थव्यवस्था, समाज के बीच संपत्ति का विभाजन, अल्पसंख्यकों के विशेषाधिकार आदि के लक्ष्य से भारत जैसे विकासशील देश में बदलाव के लिए अपने थिंक टैंक विकसित करते हैं और ऐसे लोगों को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। उनका लक्ष्य ऐसे देश को सशक्त करना तो नहीं हो सकता । विदेशों में उनके भाषण होते हैं। इसलिए यह मानने का कोई कारण नहीं है कि राहुल गांधी, कांग्रेस के दूसरे नेता या सैम पित्रोदा के साथ उनके संवाद नहीं होंगे। इस अतिवादी वाम सोच में ही अल्पसंख्यकों के लिए वैसे विशेष प्रावधानों की घोषणाएं हैं जिन्हें देखकर भाजपा के लिए यह आरोप लगाना आसान हो गया है कि संपत्ति के सर्वे के पीछे राहुल गांधी और कांग्रेस का इरादा अल्पसंख्यकों के नाम पर मुसलमानों के बीच ही उसे वितरीत करना है। इस पर बहस हो सकती है तथा पहली दृष्टि में कहा जा सकता है कि भाजपा जानबूझकर कांग्रेस को मुस्लिमपरस्त साबित करने के लिए ऐसा कर रही है। किंतु कांग्रेस ने अभी तक इस बात का खंडन नहीं किया है कि उसकी मंशा मुसलमानों को विशेष तौर पर धन के वितरण में या आरक्षण आदि में शामिल करना नहीं है। यूपीए सरकार के दौरान आप देखेंगे कि केंद्र से राज्यों की कांग्रेस सरकारों ने मुसलमानों के लिए अनेक प्रावधान किये, अनेक संपत्तियां अलग-अलग इस्लामी संस्थाओं को दी गई और उनके लिए सरकार के नियम कानून तक बदले गए। बाद में दूसरी सरकारों ने उनमें से कई संपत्तियां वापस ली और इनमें न्यायालय का भी साथ मिला। भारतीय सभ्यता संस्कृति की परंपरागत व्यवस्था में संपत्तियों के अधिक संग्रह का आदेश नहीं था। परिश्रम से अर्जित करने पर रोक नहीं था लेकिन उसके स्वामित्व की सीमाएं रहीं हैं तथा अर्जित संपत्तियों को भी सहकारी जीवन की तरह मिल बांटकर खाने की व्यवस्था रही है। वर्तमान युग में अपनी क्षमता, प्रतिभा की बदौलत उत्तरोत्तर आर्थिक प्रगति पर किसी भी बंधन की स्वीकार्यता नहीं है। इससे समाज के विकसित होने की मानसिकता कमजोर होती है तथा यह पूरे देश की प्रगति को उल्टी दिशा में मोड़ना है। इसलिए संपत्ति पर कैप लगाना या उसके एक बड़े हिस्से का राष्ट्रीयकरण कर लोगों में बांटना या एक सीमा से ज्यादा संपत्ति पर जरूर से ज्यादा कर लगाकर उसकी आय को बांट देने की सोच का कभी समर्थन नहीं किया जा सकता। इससे भयावह अराजकता और उथल-पुथल की स्थिति पैदा होगी जिसे संभालना कठिन होगा। चूंकि कि चुनाव के बीच यह मुद्दा आ गया है इसलिए देश के लोगों को तय करना है कि वह इसके साथ है या विरोध में।

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