बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

दिल्ली भाजपा की जीत में मुस्लिम मतों का मिथक

अवधेश कुमार

भाजपा जब भी कोई चुनाव जीती है मुस्लिम मतों को लेकर विश्लेषण सामने आते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के साथ टीवी चैनलों से लेकर समाचार पत्रों, वेबसाइटों ,यूट्यूब चैनलों पर ऐसी ध्वनियां निकल रही है कि मुसलमानों के एक बड़े वर्ग ने उसके पक्ष में मतदान किया। क्या वाकई ऐसा हुआ है? इमामों का एक संगठन चलाने वाले मौलाना ने मतदान के बाद वीडियो जारी करते हुए कहा कि मैंने भाजपा को मत दिया है। वे टीवी चैनलों पर दिखते हैं इसलिए उनका चेहरा मोटा-मोटी पहचाना है और भाजपा एवं संघ के विरुद्ध उनकी कट्टरता भी सब सामने है। उन्होंने कहा कि मैंने वोट इसलिए दिया क्योंकि कहा जाता है कि मुसलमान एकजुट होकर भाजपा के विरुद्ध मतदान करते हैं। इस धारणा को तोड़ने के लिए मैंने वोट दिया। उन्होंने दूसरा कारण आप के द्वारा मुसलमानों के विरुद्ध आचरण को बताया। दरअसल, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल द्वारा घोषित इमामों का वेतन चुनाव तक 18 महीना से नहीं मिला था। इनका संगठन उसके लिए धरना प्रदर्शन कर रहा था जिसका संज्ञान तक केजरीवाल और उनके साथियों ने नहीं लिया। क्या उनके अलावा किसी अन्य बड़े मुस्लिम चेहरे ने सामने आकर परिणाम के पहले घोषित किया कि उन्होंने भाजपा को मत दिया है? भाजपा की जीत के बाद लोग टीवी कैमरों के सामने आए और कह दिया कि हम नरेंद्र मोदी जी और योगी जी अच्छा शासन चला रहे हैं, इसलिए समर्थन दिया है।

दरअसल, मुस्लिम प्रभाव वाले मुस्तफाबाद और जंगपुरा सीट पर भाजपा की विजय के बाद से यह ध्वनि ज्यादा गुंजित हुई है। ये दोनों क्षेत्र मुस्लिम प्रभाव वाले हैं। अभी तक धारणा थी कि बगैर उनके समर्थन के कोई उम्मीदवार चुनाव जीत नहीं सकता। दिल्ली में 11-12 ऐसे क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। इसके अलावा भी 7-8 क्षेत्रों में मुसलमानों का प्रभाव है। इनमें चार सीटें भाजपा ने जीती हैं। किंतु इसके अलावा ये सारी सीटें एकपक्षीय आप को गई है। पहले मुस्तफाबाद को देखें। मुस्तफाबाद में भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने आप के आदिल अहमद खान को 17 हजार 578 वोटों से हराया। उन्हें 85 हजार 215 तथा आदिल अहमद को 67 हजार 637 मत मिले। यहां एआईएमआईएम के उम्मीदवार और 2020 दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को 33 हजार 474 वोट मिला और कांग्रेस के अली मेहंदी को केवल 11 हजार 763।  ताहिर हुसैन ने जब कहा कि आपकी लड़ाई हमने लड़ी और आपके कारण जेल में है तो मुसलमानों के एक बड़े वर्ग की सहानुभूति मिली। ताहिर हुसैन को इतना वोट नहीं मिलता तो बिष्ट नहीं जीत पाते। आप सोचिए ,कांग्रेस के उम्मीदवार को इतना कम मत मिला। 

 जंगपुरा में तरविंदर सिंह मारवाह किसी तरह 675 मतों से पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को हरा पाए। उन्हें 38 हजार 859,  मनीष सिसोदिया को 38 हजार 184 और कांग्रेस के फरहाद सूरी को 7 हजार 350 वोट मिला। मुस्लिम मतदाताओं ने तरविंदर के पक्ष में मतदान किया होता तो जीत का अंतर ज्यादा होता। उनकी और पारिवार कि पृष्ठभूमि कांग्रेस की है। इस कारण मुस्लिम वोट उनको मिलता रहा है। इस बार आंकड़े ऐसा नहीं बताते। कांग्रेस के मुस्लिम मत काटने का उनको लाभ मिला।

ईमानदारी से विश्लेषण किया जाए तो साफ दिखाई देगा कि 2020 के दंगों में मुस्लिम नेताओं की भूमिका देखने के बाद गैर मुसलमानों के बीच थोड़ी एकजुटता हुई। दूसरे, पिछले लोकसभा चुनाव एवं महाराष्ट्र व हरियाणा विधानसभा चुनावों में राजनीतिक, मजहबी मुस्लिम नेताओं, शीर्ष मुस्लिम व्यक्तियों के द्वारा वोट को इस्लाम और दीन का विषय बनाने तथा भाजपा के विरुद्ध मतदान करने के फतवे आदि के कारण एकजुटता का सुदृढ़ीकरण हुआ है। अरविंद केजरीवाल इसे भांपते हुए ही हिंदुत्व पर मुखर हुए तथा पुजारियों और ग्रंथियों तक को 18। हजार वेतन देने की घोषणा की। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने वंदे मातरम और भारत माता की जय का नारा लगाया तथा भाजपा की ही तरह भारत को विश्व गुरु एवं महाशक्ति बनाने के लिए भाजपा को हराने का हवन कर दिया। इस कारण हिंदुत्व के मुद्दे पर वैसी क्षति नहीं हुई जैसी आईएनडीआईए अन्य दलों को हो रही है।

दिल्ली में सबसे बड़ी दो जीत आप को मिली और वह मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्र में ही। आप प्रत्याशी आले मुहम्मद इक़बाल को मटियामहल से इस चुनाव में 42 हजार 724 वोट के अंतर से सबसे बड़ी जीत हासिल हुई। सीलमपुर से आप के चौधरी जुबेर अहमद 42 हजार 477 मतों से जीते जो दूसरी बड़ी जीत है। इससे पता चलता है कि मुस्लिम वोटो का रुख क्या रहा।

मटियामहल से आले मुहम्मद ने भाजपा की दीप्ति इंदौर को हराया। आले को 58 हजार 120 और दिप्ती को केवल 15 हजार 396 मत मिला। भाजपा प्रत्याशी आप प्रत्याशी से पहले राउंड में ही पीछे गए। यहां कांग्रेस के असीम अहमद को केवल 10 हजार 295 मत मिला। सीलमपुर में चौधरी जुबेर को 79 हजार 09 और भाजपा के अनिल शर्मा को 36 हजार 532 मत मिले और कांग्रेस के अब्दुल रहमान 16 हजार 551 तक सिमट गये। चांदनी चौक के 10 विधानसभा सीटों में चार मुस्लिम बहुल हैं। चारों में एक भी भाजपा नहीं जीत सकी । बल्लीमारान  में भाजपा के पार्षद कमल बागड़ी को केवल 27 हजार 181 और दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख मुस्लिम चेहरे और जाने-माने नेता हारून यूसुफ भी 13 हजार 569  मत पा सके जबकि आप के इमरान हुसैन को 57 हजार 04 मत मिला। सदर बाजार में आप के सोमदत्त को 56 हजार 177 वोट मिला और उन्होंने भाजपा के मनोज कुमार जिंदल को 6307 वोट से हराया। यह भी मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्र है लेकिन यहां हिंदुओं और गैर मुसलमानों की भी बड़ी आबादी है। इस कारण मनोज जिंदल ने 49 हजार 870 मत पाया और कांग्रेस के अनिल भारद्वाज को 10 हजार 057 ही मिला। चांदनी चौक से कांग्रेस के मुदित अग्रवाल को केवल ने 9 हजार65 वोट मिले जबकि आप के पुनरदीप सिंह को 38 हजार 993 और भाजपा के सतीश जैन को 22 हजार 421।

इन आंकड़ों से साफ हो जाता है कि ज्यादातर क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं ने पूर्व की तरह भाजपा को हराने के लिए रणनीतिक मतदान किया। बहुचर्चित ओखला क्षेत्र आइए। ओखला में आप के अमानतुल्लाह खान को 88 हजार 943 जबकि एआईएमआईएम के सिफ़उर रहमान को केवल 3 हजार 958 मत मिला और भाजपा के मनीष चौधरी को 65 हजार 304। बाबरपुर में गोपाल राय को 76 हजार 192 और भाजपा के अनिल वशिष्ठ को 57 हजार 198 मत  मिला। यहां भी कांग्रेस के मोहम्मद इशराक को केवल 8 हजार 797 मत प्राप्त हुए। गोकुलपुर से आप के सुरेंद्र कुमार ने 80 हजार 504 मत पाकर भाजपा के प्रवीण निमेष को 8 हजार 260 मतों से पराजित किया जिन्हें 72 हजार 297 मत मिला और कांग्रेस के ईश्वर सिंह केवल 5 हजार 905 तक सीमित रह गए।  करावल नगर में कपिल मिश्रा को 1 लाख 7367 वोट मिला जबकि आप के मनोज त्यागी को 84 हजार 12 और कांग्रेस के पीके मिश्रा को 3921। गांधीनगर में भी अरविंदर सिंह लवली केवल 12 हजार 748 मतों से जीते। क्यों? उन्हें 56 हजार 858 मत मिला जबकि आप के नवीन चौधरी को 44 हजार 110 एवं कांग्रेस के कमल अरोड़ा को 3 हजार 453। अरविंदर सिंह कांग्रेस से आए हैं और मुसलमानों के बीच भी उनका अच्छा प्रभाव माना जाता रहा है। वैसे गांधीनगर और करावल नगर सीट पिछली बार भी भाजपा के खाते में गया था और कारण यही था कि कांग्रेस ने ठीक-ठाक वोट काटा । सीमापुरी आरक्षित सीट है किंतु यहां भी मुस्लिम मत प्रभावी है। यहां आप के वीर सिंह धिंगाना ने 10 हजार 368 मतों से जीत हासिल की। उन्हें 66 हजार 353 और भाजपा के कुमारी रिंकू को 55 हजार 985 मत मिले तथा कांग्रेस के राजेश लिलोठिया केवल 11 हजार 823 मत पा सके। 

 इस तरह मतों के आंकड़ों का विश्लेषण करेंगे तो कहीं नहीं दिखेगा कि मुस्लिम मत भाजपा की ओर गया। भाजपा के सदस्य तथा एक दो प्रतिशत कहीं मतदान कर दें तो अलग बात है, अन्यथा मुस्लिम मतों की प्रवृत्ति भाजपा को हराने की ही रही। दरअसल , अलग-अलग मुस्लिम संगठनों, इमामों , मौलवीयों, मुल्लाओं, मुस्लिम बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों आदि प्रमुख चेहरों ने हिंदुत्व विचारधारा के साथ भाजपा की इस्लाम विरोधी , दीन विरोधी छवि बना दिया है। इस कारण उनका वोट मिलना तत्काल मुश्किल है। भविष्य के बारे में अभी कुछ कहना कठिन है।

 पता– अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली- 110092 ,मोबाइल 981027208



मणिपुर : फ़ेल हुई 'डबल इंजन' की सरकार

निर्मल रानी

8 फ़रवरी को जब दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित हो रहे थे और भाजपा के साथ ही देश का मीडिया भी भाजपा की जीत के क़सीदे बांचने में लगा था। देश को यह बताया जा रहा था कि दिल्ली से 'आप' दा  जा चुकी है।  ठीक उसी समय भाजपा हाईकमान द्वारा निर्देशित भाजपा की मणिपुर की सबसे 'आपदा ग्रस्त ' डबल इंजन सरकार के मुख्यमंत्री नोंगथोम्बम बीरेन सिंह को त्यागपत्र देने हेतु निर्देशित किया जा चुका था । जिसे दिल्ली जीत के जश्न से ठीक अगले दिन यानी 9 फ़रवरी को अमल में लाया गया। पिछले छह महीनों से मैतेई, कुकी और नागा विधायक एक साथ मिलकर मुख्यमंत्री बीरेन को पद से हटाने के लिए केंद्रीय नेताओं से बात कर रहे थे। ख़बरों के अनुसार गत  3 फ़रवरी को ही मणिपुर के 33 विधायकों ने, जिनमें 19 विधायक भाजपा के भी बताये जा रहे हैं,दिल्ली पहुंचकर प्रधानमंत्री व गृह मंत्री से मिलकर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध  अविश्वास प्रस्ताव की जानकारी दे दी थी।  बल्कि यह भी बता दिया था कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्तव आने की स्थिति में भाजपा विधायक भी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। इसीलिये भाजपा नेतृत्व को भारतीय राजनीति के इतिहास के सबसे अकुशल,असफल व अकर्मण्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा। हाँ मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के त्याग पात्र के बावजूद यह सवाल हमेशा बना रहेगा कि इतनी व्यापक व दीर्घकालिक अनियंत्रित हिंसा होने के बावजूद आख़िर भाजपा नेतृत्व ने किन परिस्थितियों में उन्हें मुख्यमंत्री पद से पहले क्यों नहीं हटाया ? इतना ही नहीं बल्कि बीरेन सिंह पर जातीय हिंसा के दौरान पक्षपात करने का भी आरोप है। बीरेन सिंह स्वयं मैतेई समुदाय से आते हैं। कुकी जनजाति के एक व्यक्ति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर यह आरोप लगाया गया था कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने राज्य में हिंसा भड़काई है।  याचिकाकर्ता ने इससे सम्बंधित एक ऑडियो टेप भी अदालत में सबूत के तौर पर जमा कराया है। प्रयोगशाला 'ट्रुथ लैब्स' ने इस बात की पुष्टि भी की है कि इस ऑडियो टेप में 93 प्रतिशत आवाज़ बीरेन सिंह की आवाज़ से मेल खाती है। गोया बीरेन सिंह 'राजधर्म का पालन' न करने के भी खुले दोषी हैं। 

इतिहास इस बात का साक्षी रहेगा कि बावजूद इसके कि देश के और भी कई राज्य समय समय पर किसी न किसी मुहिम या आंदोलन वश हिंसा,अशांति व अव्यवस्था के शिकार रहे हैं। परन्तु भाजपा शासित इस राज्य में 3 मई 2023 से मैतेयी व कुकी समुदायों के बीच छिड़े जातीय हिंसक संघर्ष में जिस स्तर की हिंसा व अशांति देखनी पड़ी उसकी दूसरी मिसाल देश में कहीं भी देखने को नहीं मिलती। हिंसा, आगज़नी, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार यहाँ तक कि हिंसक भीड़ द्वारा युवतियों की नग्न परेड कराने जैसी शर्मनाक घटनाएं घटीं। मंत्रियों, विधायकों व अन्य नेताओं के घरों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस  थाने आग की भेंट चढ़े,यहाँ तक कि शस्त्रागार के हथियार तक उपद्रवी छीन ले गये। सैकड़ों लोग इस संघर्ष में मारे गये जबकि हज़ारों लोग विस्थापित भी हुये। परन्तु मणिपुर का 'डबल इंजन' मूक दर्शक बना रहा। क़ानून व्यवस्था की यह स्थिति राज्य में उस समय पैदा हुई थी जबकि मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में एन डी ए के पास 52 सीटें हैं जिसमें अकेली भाजपा के पास 37 सीटें हैं। राज्य सरकार के लिये इससे बेहतर बहुमत और क्या हो सकता था ? 

बहरहाल मई 2023 से लेकर अभी तक जारी हिंसा के बीच लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गाँधी जहां तीन बार मणिपुर का दौरा कर हिंसा पीड़ितों के बीच जाकर वहां के लोगों से मिलकर हालात का जायज़ा ले चुके हैं वहीँ प्रधानमंत्री ने अभी तक एक बार भी हिंसाग्रस्त मणिपुर का दौरा करना मुनासिब नहीं समझा। हद तो यह है कि राहुल गाँधी व विपक्ष के तमाम प्रयासों के बावजूद सदन में मणिपुर पर चर्चा को भी टालने की कोशिशें हुईं। सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा मणिपुर की शर्मनाक घटनाओं को कांग्रेस शासित राज्यों से जोड़कर मणिपुर घटनाओं पर लीपापोती करने की कोशिश की गयी। निःसंदेह राहुल गाँधी देश के अकेले ऐसे नेता हैं जो लगातार मणिपुर हिंसा के विषय को उठाते रहे हैं । और भाजपा पर यह दबाव इतना बढ़ा कि मणिपुर विधानसभा में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव आने से पहले ही पार्टी ने आख़िरकार उनसे त्याग पत्र ले ही लिया। 

बीरेन सिंह के त्यागपत्र के बाद मणिपुर में भाजपा के लिये राजनैतिक संकट खड़ा होना तो निश्चित है ही साथ ही अब यह भी प्रमाणित हो चुका है कि बीरेन सिंह पूरी तरह से मणिपुर हिंसा को नियंत्रित कर पाने में असफल रहे हैं। अन्यथा क्या कारण था कि 3 मई 2023 से लेकर अब तक हिंसा पर पूर्ण नियंत्रण हासिल नहीं किया जा सका ? इसी दीर्घकालिक हिंसा के कारण भाजपा के ही अधिकांश विधायक बीरेन नेतृत्व के विरुद्ध होते जा रहे थे। और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी भाजपा विधायकों द्वारा ही की जा रही थी। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना थी कि कहीं मणिपुर बीजेपी के हाथ से निकल न जाये। क्योंकि राज्य में हिंसा की भेंट चढ़े लंबा समय बीत चुका है और समाधान के नाम पर कुछ भी सामने नज़र नहीं आ रहा। ऐसे में प्रदेश बीजेपी के अंदर ही काफ़ी मतभेद शुरू हो गए थे."बीजेपी के लोग ही मुख्यमंत्री बदलने की मांग कर रहे थे। आगामी 10 फ़रवरी से विधानसभा सत्र शुरू होते ही मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इसीलिये भाजपा नेतृत्व द्वारा दिल्ली चुनाव परिणाम के जश्न के बीच ही बीरेन सिंह से त्यागपत्र लेने का फ़ैसला किया गया। 

देखना होगा कि बंगाल सहित अन्य ग़ैर भाजपा शासित राज्यों को 'जंगल राज ' व 'आपदा ग्रस्त ' सरकार बताने वाली भाजपा, मणिपुर में महा 'आपदा' के रूप में विराजमान रहे मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाने के बाद जातीय हिंसा में सुलगते मणिपुर के लोगों को भयमुक्त करने व उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाने के लिये क्या क़दम उठती है। और देश की इस बात पर भी नज़र रहेगी कि मणिपुर में  'डबल इंजन 'की सरकार के बुरी तरह से फ़ेल होने का प्रभाव भविष्य में पूर्वोत्तर की भाजपा की राजनीति पर क्या पड़ेगा।

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