शनिवार, 6 जनवरी 2018

अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आर्थिक सहायता रोकने का मतलब

 

अवधेश कुमार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली 25.5 करोड़ डॉलर यानी करीब 16 अरब 26 करोड़ रुपए की मदद रोकना निश्चय ही एक बड़ी घटना है। यह कोई साधारण राशि नहीं है। पाकिस्तान जिस आर्थिक दुर्दशा का शिकार है उसमें इतनी राशि का महत्व अपने-आप समझा जा सकता है। यह केवल इसी साल नहीं रोका गया है। ट्रपं ने साफ किया है कि अगर पाकिस्तान ने अपनी सीमा के अंदर आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की तो आगे से उसे कोई राशि नहीं मिलेगी। पाकिस्तान इसके जवाब में कुछ भी कहे सच यही है कि पाकिस्तान के लिए इसकी भरपाई संभव नहीं है। किंतु इसका महत्व केवल राशि रोकने तक ही नहीं है। यह अमेरिका द्वारा इस बात की स्वीकृति है कि पाकिस्तान अपनी सीमा में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता यानी उन्हें पालता है। भारत तो यह आरोप पाकिस्तान पर लगाता ही रहा है। अमेरिका द्वारा इसकी स्वीकृति के बाद पाकिस्तान के लिए कठिनाइयां बढ़ने वाली है। इस संबंध में ट्रंप ने वर्ष 2018 के पहले दिन अपने ट्विट में जो तेवर दिखाए वह आने वाले समय में अमेरिकी नीति का संकेत है। इसमें ट्रंप ने पाकिस्तान पर हमला बोलते हुए कहा कि अमेरिका ने मूर्खतापूर्ण तरीके से पाकिस्तान को गत 15 वर्षों में 33 अरब डालर यानी 2 लाख 14 हजार करोड़ रुपए से अधिक की सहायता दी और उन्होंने हमारे नेताओं को मूर्ख सोचते हुए हमें  झूठ और धोखे के अलावा कुछ भी नहीं दिया। वे आतंकियों को सुरक्षित पनाहगाह देते रहे और हम अफगानिस्तान में खाक छानते रहे। अब और नहीं।

यह कोई साधारण वक्तव्य नहीं है। अमेरिका का राष्ट्रपति यदि यह कहता है कि पाकिस्तान उनकी और दुनिया की आंखों में धुल झोंककर आतंकवादियों को सुरक्षित जगह मुहैया कराता रहा तो फिर पाकिस्तान इसे गलत कैसे करार दे सकता है। यही बात भारत कहता रहा है और उसे अमेरिका आपसी बातचीत में स्वीकारता भी था, लेकिन 2001 के बाद से किसी राष्ट्रपति ने इतना खुलकर और इतनी दृढ़ता से पाकिस्तान पर हमला नहीं किया था। तो हम कह सकते हैं कि यह भारत की कूटनीतिक सफलता भी है। आखिर हम भी अपनी कूटनीति में पाकिस्तान के संदर्भ में यही अभियान चला रहे थे कि उसे किसी तरह आतंकवादियों का पनाहगार देश दुनिया की बड़ी शक्तियां मान ले।

हालांकि ट्रंप ने भी अचानक ऐसा कदम नहीं उठाया है। उन्होंने और उनके दूसरे मंत्रियों ने बार-बार इसके बारे में संकेत दिया।  वास्तव में ट्रंप प्रशासन लगातार पाकिस्तान को आतंकवादियों और उनके संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कहता रहा, लेकिन पाकिस्तान इसे उसी तरह टालता रहा जिस तरह वह जॉर्ज बुश एवं बराक ओबामा के शासनकाल में टालता रहा था। वह आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रदर्शन अवश्य करता रहा लेकिन उन संगठनों को नष्ट करने के लिए कोई बड़ा कदम उसने उठाया हो इसके प्रमाण नहीं। जिन आतंकवादी समूहों ने उसके अंदर हमले करके जीना हराम किया है उनके खिलाफ तो वह कार्रवाई करता है, लेकिन जो सीमा पार हमले करते हैं उनके प्रति उसने कार्रवाई नहीं की यह सच है। ट्रपं प्रशासन ने न जाने एक साल के अंदर कितनी बार कहा कि अगर पाकिस्तान ने कार्रवाई नहीं की, तो वह अपने तरीके से उनसे निपटेगा। यह एक चेतावनी थी। इसका अर्थ था कि जिस तरह अमेरिका अफगानिस्तान में हमले कर  रहा है वैसे ही वह पाकिस्तान में भी करेगा। यदि उसे स्वयं कार्रवाई करनी है तो फिर पाकिस्तान को राशि देने का कोई तुक नहीं है। इस बात को पाकिस्तान को समझना चाहिए था, लेकिन उसे लगता रहा कि अमेरिका पहले की तरह ही बोलता रहेगा और सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा।

वैसे ट्रंप प्रशासन ने यह तो जहां यह साफ कर दिया है कि अब अमेरिका की कोई योजना नहीं है कि वह पाक में सैन्य सहायता के नाम पर करोड़ों डॉलर की रकम निवेश करे। किंतु यह भी कहा गया है कि अमेरिका, पाकिस्तान से उम्मीद करता है कि वह अपनी सरजमीं पर मौजूद आतंकवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करेगा। अमेरिकी प्रशासन ने यह भी साफ किया है कि दक्षिण एशिया रणनीति के लिए पाकिस्तान का समर्थन अमेरिका को मिलना चाहिए। इन दोनों पंक्तियों के अर्थ अत्यंत गंभीर हैं। ऐसा नहीं है कि धन बंद कर देने से आपको आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई न करने की खुली छूट मिल गई है। कार्रवाई आपको करनी होगी। साथ ही आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में पाकिस्तान की भूमि से लेकर जो समर्थन अमेरिका को मिलता रहा है वह भी जारी रहना चाहिए। यह सीधे-सीधे अमेरिका की पाकिस्तान को चेतावनी है कि अगर आपने इसमें आनकानी की तो फिर उसके परिणाम गंभीर होंगे। पाकिस्तान की प्रतिक्रिया अभी जैसे को तैसे वाला है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि अमेरिका अफगानिस्तान की लड़ाई के लिए पाकिस्तान के संसाधनों का इस्तेमाल करता है और उसी की कीमत चुकाता है। उन्होंने कहा कि ट्रंप के नो मोर का कोई महत्व नहीं है और पाकिस्तान इस तानाशाही को नहीं सहेगा। ख्वाजा आसिफ ने कहा, हमने अमेरिका को पहले ही कह दिया है कि अब हम उसके लिए और नहीं करेंगे। अरबों डॉलर देने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यदि हमने यह लिया है तो इसमें पाकिस्तान द्वारा दी गई सेवाओं के बदले भुगतान भी शामिल है। ट्रंप अफगानिस्तान में हार से दुखी हैं और इसलिए वह पाकिस्तान पर दोष मढ़ रहे हैं। हमारी जमीन, रोड, रेल और दूसरी सेवाओं का इस्तेमाल किया गया और इसके बदले हमें भुगतान किया गया। इसका अंकेक्षण भी हुआ है। आसिफ ने यह भी कह दिया है कि अमेरिका फंड को रोके या नहीं, लेकिन पाकिस्तान को इसकी जरूरत नहीं है। हमारा हित उनसे अलग है और हम उनके सहयोगी नहीं बनेंगे। ध्यान रखिए, एक दिन पहले ख्वाजा आसिफ ने ट्रंप के ट्वीट के जवाब में कहा था कि हम राष्ट्रपति ट्रंप के ट्वीट पर जल्दी ही जवाब देंगे। इंशाल्लाह... चलो दुनिया को सच पता चल जाएगा। तथ्य और कल्पनाओं का अंतर लोगों को जानना चाहिए।

तो यह जवाब है पाकिस्तान का। प्रश्न उठता है कि आखिर पाकिस्तान इस ढंग से जवाब क्यों दे रहा है? उसने यह नहीं कहा है कि हम आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं और आगे भी करेंगे। इसके विपरीत वे कह रहे हैं कि हम ही नो मोर कह देते हैं। माना जाता है कि पाकिस्तान की आवाज के पीछे चीन हो सकता है। चीन जिस ढंग से पाकिस्तान में निवेश कर रहा है उससे शायद उसका हौंसला बढ़ा हुआ है। किंतु क्या चीन पाकिस्तान और वह भी आतंकवाद के मामले पर अमेरिका से सीधा टकराव लेने का जोखिम उठाएगा? सच यह है कि चीन पाकिस्तान में चीन पाक आर्थिक गलियारे के नाम पर निवेश अवश्य कर रहा है लेकिन उसने भी हाल में पाकिस्तान के सामने कई शर्तें रख दी हैं। दूसरे, वह उस तरह से सहायता राशि देने वाला देश नहीं है जैसा अमेरिका है। 11 सितंबर 2001 को आतंकवादी हमले के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान के खिलाफ कार्रवाई आरंभ की तो उसके निशाने पर पाकिस्तान भी था। उस समय जनरल परवेज मुशर्रफ राष्ट्रपति थे। उन्होंने अमेरिका की सभी शर्तें स्वीकार कर उसके एवज में भारी राशि लेना आरंभ किया। इससे पाकिस्तान बच भी गया तथा उससे लगातार राशि मिलती रही। 2009 में अमेरिका-पाकिस्तान के बीच केरी-लुगर-बर्मन एक्ट करार हुआ। इसके तहत 2010 से 2014 तक पाकिस्तान को अमेरिकी मदद तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ाकर 7.5 अरब डॉलर कर दी गई। स्वयं अमेरिका का मानना है कि ज्यादातर मदद का इस्तेमाल भारत के खिलाफ सैन्य ताकत बढ़ाने और सरकारी खर्चे निकालने में किया गया। 2014 में इसका उदाहरण सामने आया था जब पाकिस्तान ने अमेरिका से मिले 50 करोड़ रुपए सरकारी बिलों के भुगतान और विदेशी मेहमानों को तोहफे देने में खर्च कर दिए। आरोप यह भी है और सच लगता भी है कि अमेरिका से मिले पैसे का इस्तेमाल पाकिस्तान कश्मीर में आतंक को बढ़ावा देने में भी करता है।  ख्वाजा जो कह रहे हैं उसमें इतना सच है कि उनके संसाधनों और जमीन का इस्तेमाल अमेरिका इस लड़ाई में करता है। किंतु वे भूल रहे हैं कि उस समझौते में आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की बात भी शामिल थी। यह काम आपने नहीं किया है। तो इसका परिणाम आपको भुगतना पड़ेगा। अभी तो अमेरिका ने एक कदम उठाया है। देखते हैं आगे वह क्या करता है। उम्मीद करनी चाहिए कि अमेरिका का तेवर ऐसा ही बना रहेगा तथा पाकिस्तान से सीमा पार हमला करने वाले आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई होगी।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः9811027208, 01122483408

 

 

 

 

 

 

 

 

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