शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

भाजपा की वोट नीति

अवधेश कुमार

जबसे यह साफ हो गया कि नरेन्द्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनेंगे तभी से अपने चुनावी रंगरुप और ढांचे को वह एक श्रेष्ठतम सुप्रबंधित मशीनरी और जीवंत समूहों- योजनाओं में ढालने का कदम उठा रही है। जून में मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के साथ ही भाजपा चुनावी मोड में आ गई थी। 13 सितंबर को उनके प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के साथ उसका एक क्रम पुरा हुआ। 24 दिसंबर को पार्टी की संसदीय बोर्ड और मुख्यमंत्रियों की साझा बैठक तथा उसके बाद चुनाव अभियान समिति की बैठक में जो कुछ हुआ वह उसी कड़ी का अंग था। अगर सामने आए कार्यक्रमों पर सरसरी नजर दौड़ाएं तो यह औपचारिक चुनाव प्रचार अभियान आरंभ होने के पूर्व सम्पूर्ण पार्टी का अंतिम मतदान को छोड़कर उससे संबंधित सारे क्रियाकलापों, जरुरतों के मोर्चे पर सक्रिय हो जाना है। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा भी कि आम चुनाव के लिए अब मात्र 120 दिन बचे हैं। इसलिए भाजपा 60 दिन तैयारी और शेष 60 दिन प्रचार में लगाएगी। तो क्या हैं योजनाएं? क्या हैं इनके पीछे की सोच? और क्या हो सकते हैं इनके संभावित परिणाम?

चुनाव की दृष्टि से यह पहली ऐसी बैठक थी जिसमें वे सभी  नेता शामिल थे, जिनकी औपचारिक रुप से महत्वपूर्ण भूमिका होगी। पार्टी की शीर्ष निर्णयकारी ईकाई केन्द्रीय संसदीय बोर्ड, फिर पार्टी शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री, सभी प्रदेशों के अध्यक्ष व चुनाव अभियान समिति व उप समितियों के प्रमुखों के अलावा उन लोगों को भी बुलाया गया था जिनकी सक्रियता और अनुभव की आवश्यकता पार्टी को होगी। इसके बाद अलग से केंद्रीय चुनाव अभियान समिति ने विचार विमर्श किया और तब जाकर योजनाओं और कार्यक्रमों का ऐलान हुआ। ऐसी बैठकें लगातार नहीं हो सकतीं। इसका अर्थ साफ है कि बैठक के पूर्व एजेंडा आदि पर अनौपचारिक तैयारी चल रही थी और जितने सुझाव व कार्यक्रम आए उन सबको अंतिम रुप देकर सामने लाया गया। निस्संदेह, 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस को ध्यान में रखकर इसका आयोजन किया गया होगा ताकि अगले दिन से ही इसकी शुरुआत हो जाए। तो कहा जा सकता है कि 25 दिसंबर को भाजपा ने सुशासन दिवस के साथ चुनाव अभियान आरंभ कर दिया है। लेकिन स्वाभाविक ही वाजपेयी अब जैविक रुप से जीवित होते हुए भी भाजपा को नेतृत्व या मार्गदर्शन देने की स्थिति में नहीं है। इसलिए  अबकी बारी अटलबिहारी की जगह ‘मोदी फॉर पीएम’ का ही नारा होगा। 

तीन कार्यक्रम चुनाव की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण और लोकसभा चुनाव परिणाम पर प्रभाव डालने वाले साबित हो सकते हैं। उनमें सबसे पहला है, घर-घर जाकर मतदाताओं से वोट के साथ नोट मांगने का अभियान। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार भाजपा कार्यकर्ता कम से कम एक नोट, एक वोट की योजना के साथ 10 करोड़ परिवारों से सीधे संपर्क करेंगे। उन्हें भाजपा की नीतियों के बारे में बताने के अलावा 10 से 1000 रुपये तक का चंदा एकत्र करेंगे। इसी दौरान मतदान केन्द्र स्तर के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन भी होगा। ये सम्मेलन फरवरी अंत तक पूरे कर लिए जाएंगे। पार्टी ने इसके लिए लोकसभा की 450 सीटों को लक्ष्य बनाया है। तीसरा कार्यक्रम, जो इसके साथ होते हुए भी अलग से किया जाएगा वह है, जनवरी में नए मतदाताओं से संपर्क करने का। इनमें नए मतदाताओं का पंजीकरण कराना भी शामिल है। नए मतदाताओं में मतदान के प्रति रुचि सबसे ज्यादा देखी जा रही है और राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा कुछ हद तक दिल्ली चुनाव में नए मतदाता कैमरे पर बयान देते देखे गए कि वे मोदी के लिए मत दे रहे हैं। मोदी वैसे भी युवाओं को आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। वे युवाओं को न्यू एज वोटर की जगह न्यू एज पावर घोषित करके उनकी तालियां बटोरते हैं।

कोई राजनीतिक अभियान बगैर ठोस आधार और विचार के नहीं हो सकता। निस्संदेह, चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम यदि भाजपा के अनुकूल नहीं आए होते तो पार्टी नेतृत्व का मनोविज्ञान चिंता और निराशा से भरा होता और तब उसका मुख्य लक्ष्य प्रतिकूल परिणामों के प्रभावों से कार्यकर्ताओं और समर्थकों को बाहर निकालना होता। चुनाव परिणामों से उत्साहित भाजपा के संसदीय बोर्ड ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि राज्यों के चुनाव परिणाम इस बात का जनमत सर्वेक्षण हैं कि सरकार को काम करके दिखाना चाहिए या हट जाना चाहिए। साफ है कि परिणाम के बाद माहौल उसे अपने पक्ष में लग रहा है और मोदी केन्द्रित अभियान उसे और सुदृढ़ करेगा। विचार के तौर पर जनता को संदेश दिया जाएगा कि देश में इस समय 1975 में कांग्रेस के लगाए गए आपातकाल के बाद जैसे हालात हैं। इसके साथ अपना दृष्टिकोण पत्र, घोषणा पत्र तथा भाजपा शासित राज्यों की उपलब्धियों की प्रचार सामग्रियां साथ होंगी। और मोदी की सभाएं ज्यादा से ज्यादा कराकर माहौल को सशक्त करने की कोशिश होगी। किंतु यह भाजपा का अपना आकलन है। भारत जैसे बहुविध आकांक्षाओं और राजनीतिक अपेक्षाओं वाले देश में कम से कम 300 लोकसभा क्षेत्रों तक अपने पक्ष में बहुमत को मोड़ना कितना कठिन है यह बताने की आवश्यकता नहीं।

पर भाजपा के दोनों संपर्क अभियानों को एक साथ मिलाकर देखिए तो इसका महत्व साफ हो जाएगा। ध्यान रखिए 2014 के लोकसभा चुनाव तक देश में पहली बार मतदान करने वाले युवा मतदाताओं की संख्या करीब 12 करोड़ होगी। 10 करोड़ लोगों तक चंदे और मतदान के लिए पहुंचना तथा 12 करोड़ नए मतदाताओं से संपर्क करने का अर्थ चुनावी गणित के आलोक में सामान्य बात नहीं हैं। 2009 के लोस चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 11 करोड़ 91 लाख 11 हजार 19 मत मिला था। भाजपा को 7 करोड़ 84 लाख 35 हजार 381 मत मिले थे। पिछले लोस चुनाव में करीब 10 करोड़ वोटर ऐसे थे, जिन्हें पहली बार मतदान करना था। इनमें भी 2 करोड़ की वृद्धि है। अभी तक की स्थिति के अनुसार करीब 400 लोकसभा स्थानों पर भाजपा उसके सहयोगियों और कांग्र्रेस के बीच ही टकराव होना है। भाजपा को यदि 272 का आंकड़ा पार करना है तो उसे 13 से 14 करोड़ के बीच मत चाहिए होगा। यानी 2009 से 6 करोड़ ज्यादा। यह कार्य आसान नहीं है। इसलिए भाजपा ने नोट और वोट, नए मतदाताओं एवं मतदान स्तर के सम्मेलनों का निर्धारिण उचित ही किया है। इसी नोट और वोट योजना से जनसंघ एवं बाद में भाजपा आगे बढ़ी थी। 1977 में जनता पार्टी इसी की बदौलत चुनाव लड़ने के लिए संसाधन पा सकी थी एवं जनमत निर्माण संभव हुआ था। इसलिए यह बिल्कुल व्यावहारिक और संसदीय लोकतंत्र के लिए सर्वथा उचित राजनीतिक आचरण होगा।

किंतु प्र्रश्न तो यही है कि क्या जैसी योजनाएं बनाईं गईं हैं जमीन पर भी वैसे ही उतर जाएंगी? क्या भाजपा में इतनी संख्या में चारों ओर निष्ठावान, ईमानदार और अनुशासित कार्यकर्ता बचे हैं जो पार्टी की योजनानुसार इसे जमीन पर अंजाम दे सकेंगे? अगर ऐसा है तो फिर कांग्रेस के प्रति असंतोष, अन्य दलों को लेकर आकर्षण में क्षीजन के दौर में मोदी का नाम चमत्कार कर सकता है और मोदी फॉर पीम का लक्ष्य हासिल हो सकता है। लेकिन भाजपा भी धीरे-धीरे कांग्रेस की तरह कार्यकर्ताओं की पार्टी नहीं रह गई है। पार्टी में स्वाभाविक नेतृत्व की जगह लद गए या लादे गए नेताओं की प्रबंधन शैली के कारण कार्यकर्ताओं की जगह भाजपा में निहित स्वार्थियों का वर्चस्व हो चुका है। आज विवेक से कौन निष्ठावान और कौन निहित स्वार्थी है इसकी पहचान करने वाले अत्यंत कम बचे हैं। इसीलिए उम्मीदवारों के रुप में भी वैसे लोगों का नाम सामने आ रहा है जिन्हें ईमानदार और निष्ठावान कार्यकर्ता आसानी से स्वीकार नहीं कर सकते। हां, मोदी का नाम उनके अंदर एक उम्मीद जरुर पैदा कर रहा है और युवाओं की बड़ी तादाद उनके नाम पर काम करने के लिए आगे आ रही है। पर इनका भी उचित उपयोग करने वाले ईमानदार और विवेकशील लोग चाहिए। इसलिए भाजपा को सबसे पहले ऐसे लोगों को तलाशकर जिम्मेवारी देनी होगी जो इस योजना को ईमानदारी से अमल में लाने के कार्यक्रम को अंजाम दिलवा सकें, अन्यथा योजनाएं और कार्यक्रम अपेक्षानुरुप साकार नहीं होंगी।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः110092, दूर.ः 011 22483408, 09811027208
 

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