शुक्रवार, 13 मार्च 2020

भयावह साजिश का इससे बड़़ा सबूत और क्या चाहिए

अवधेश कुमार

शाहीनबाग धरना, दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा तथा इसके पूर्व जामिया हिंसा को लेकर हुई हाल की पांच गिरफ्तारियों ने एक बार फिर इस खतरनाक सच को साबित किया है कि इनके पीछे देश विरोधी जेहादी-आतंकवादी-सांप्रदायिक शक्तियां सक्रिय हैं। दिल्ली पुलिस ने आठ मार्च को ओखला विहार के जामिया नगर इलाके से इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रॉविंस (आईएसकेपी) मॉड्यूल से जुड़े कश्मीरी दंपती को गिरफ्तार किया। कश्मीर के रहने वाले 36 वर्षीय जहांजेब सामी और उसकी पत्नी 39 वर्षीय हीना बशीर बेग गिरफ्तार होने के पहले शाहीन बाग व जामिया के प्रदर्शन में लगातार सक्रिय थे। इसके एक दिन बाद त्रिलोकपुरी से दानिश अली नाम के एक 33 वर्षीय युवा को गिरफ्तार किया गया जो पीएफआई का सक्रिय सदस्य है। यह भी शाहीनबाग से लेकर जामिया आंदोलन में सक्रिय था। हालांकि इसकी गिरफ्तारी उत्तरपूर्व दिल्ली में हुई हिंसा के संदर्भ में थी। उससे पूछताछ के आधार पर पीएफआई के अध्यक्ष परवेज़ अहमद और सचिव मोहम्मद इलियास को गिरफ्तार किया। उन पर दिल्ली दंगों के साथ शाहीनबाग को फंडिंग करने का आरोप है। हमारे देश के एक्टिविस्टों का एक वर्ग पुलिस के सारे दावों को नकारेगा एवं इनको निर्दोष साबित करने की कोशिश करेगा। आईएसआईएस से जुड़े पति-पत्नी के घर से यह बयान आ ही गया है कि वे तो कश्मीर में इंटरनेट बंद होने के कारण दिल्ली गए थे, क्योंकि उनकी कंपनी वही चली गई थी। लेकिन मूल सवाल यह है कि आखिर पुलिस की विशेष शाखा ने इन्हीं को क्यों गिरफ्तार किया जबकि शाहीनबाग एवं जामिया हिंसा व प्रदर्शनों में काफी संख्या में लोग शामिल थे? यही बात दानिश अली के मामले में भी लागू होता है। 

अभी तक जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार पुलिस को शाहीनबाग में ऐसे लोगों के शामिल होने की सूचना मिली थी जिनका संबंध आईएस जैसे संगठन से है तथा ये नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शनों का इस्तेमाल मुस्लिम युवाओं को भड़काकर हिंसा और आतंकी हमले के लिए करना चाहते थे। जहांजेब और हीना की पहचान पुलिस ने कर ली और इन पर नजर रखी जा रही थी। आगे बढ़ने के पहले आईएसकेपी के बारे में थोड़ी जानकारी जरुरी है। यह अफगानिस्तान में आईएसआईएस का सहयोगी संगठन है। खुरासान मॉड्यूल का मूल आधार पाकिस्तान-अफगान सीमा पर है। यह खतरनाक हमले करता है। तालिबान अमेरिका समझौते के बाद इसने अफगानिस्तान में बड़े हमले किए हैं। यह धन जुटाने के लिए अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से सीधे जुड़ा है। इसे भारत से भी धन भेजे जाने की खबरें सामने आती रही हैं। खुरासान अफगानिस्तान का वह ऐतिहासिक क्षेत्र है, जिसमें अफगानिस्तान और ईरान के हिस्से शामिल थे। यहां ध्यान रखने की बात है कि आईएस ने विश्व इस्लामी साम्राज्य का जो नक्शा जारी किया था उसमें खुरासान में ही भारत के काफी क्षेत्र को शामिल किया था। आईएस ने इस क्षेत्र के लिए अपने कमांडर की नियुक्ति की भी घोषणा कर दी थी। आईएस खुरासान में तालिबान छोड़ने वाले और विदेशी लड़ाके दोनों शामिल हैं। इस संगठन को बेहद क्रूर माना जाता है। कश्मीरी युवाओं में यह फिदायीन हमलावर संगठन लोकप्रिय है। इसके लिए भर्ती दक्षिण एशिया से हो रही है। 

 ये दोनों सोशल मीडिया के माध्यम से संगठन की गतिविधियां फैला रहे थे। सीएए-एनआरसी के विरोध को जिंदा रखने के लिए दोनों आरोपी प्रदर्शनकारियों के अंदर जिहाद की बातें करते थे। दोनों सोशल मीडिया तथा ह्वाटस्टएप कौल के जरिए लगातार अफागानिस्तान के आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के संपर्क में थे। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ भी सड़क पर उतरने के लिए इन्होंने उकसाया। इसके खिलाफ भड़काने वाली सामग्री भी ये लोग तैयार करके फैला रहे थे। जो लोग इन्हें मासूम साबित करने पर तुले हैं उन्हें इस बात का अवश्य जवाब देना चाहिए कि जहांजेब ने अलग-अलग नामों से सोशल मीडिया अकाउंट क्यों बनाया हुआ था? इसके कई कई फर्जी आईडी मिले हैं। ये टेलिग्राम, फेसबुक, थ्रीमा, श्योर स्पॉट, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक्टिव थे। किसी कंपनी में सामान्य सॉफ्टवेयर का काम करने वाला इतने प्लेटफार्म पर और कई नामों से इतना सक्रिय नहीं रहता जितना ये थे। यही नहीं दोनों पति-पत्नी इंडियन मुस्लिम यूनाइट नाम का एक सोशल अकाउंट चला रहे थे। क्यों? वास्तव में ये आईएस की जेहादी विचारधारा से युवाओं को प्रभावित कर जेहादी गतिविधियां करने को प्रेरित कर रहे थे। जांच में यह बात भी सामने आई है कि ये सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों को फ्री कश्मीर के नारे लगवाते थे। ये दिल्ली के अलावा मुंबई और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में भी लोगों को सीएए का डर दिखाते, उन्हें कौम के खिलाफ बड़ी साजिश बताते थे। पूछताछ में दोनों ने बताया कि वह आईएस की पत्रिका स्वात-अल-हिंद के फरवरी महीने के संस्करण को प्रकाशित करवाने में शामिल थे। इस पत्रिका को 24 फरवरी को ऑनलाइन जारी किया गया था। इसमें सीएए का विरोध कर रहे लोगों से जिहादी रास्ता अपनाने की अपील की गई थी। इसमें लिखा था कि लोकतंत्र आप लोगों को नहीं बचा पाएगा। जहांजेब शामी ने बीटेक किया है, जबकि हिना ने एमसीए किया है। दोनों अपनी विशेषज्ञता के कारण सोशल मीडिया एवं आधुनिक तकनीकों के उपयोग में निष्णात हैं। इनके घर से सीएए विरोधी और समुदाय के खिलाफ काफी सामग्रियां मिलीं हैं। 

इतने विवरण के बाद शाहीनबाग धरना तथा देश के अलग-अलग जगहों पर शाहीनबाग विस्तारित धरने, प्रदर्शनों को लेकर क्या किसी को संदेह रह जाता है कि इसके पीछे व्यापक गहरी साजिश है? उत्तर प्रदेश एवं असम की हिंसा में पीएफआई की संलिप्तता के इतने प्रमाण मिले हैं कि केन्द्रीय गृहमंत्रालय के पास इनको प्रतिबंधित करने की अनुशंसाएं विचाराधीन है। जामिया हिंसा के बारे में भी पुलिस ने जो आरोप पत्र न्यायालय में डाला है उसमें भी पीएफआई का नाम है। शाहीनबाग में जिस तरह के भड़काउ भाषण हो रहे थे, जैसी सामग्रियां बंटती रहीं हैं और वहां जिस तरह हर प्रकार के संसाधन उपलब्ध रहे हैं उनसे किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति के अंदर कई प्रकार के संदेह पैदा होते थे। केन्द्र सरकार को पूरी तरह मुस्लिम विरोधी बताना तथा उसके खिलाफ मरने-मारने के लिए तैयार करने की बातें खुलेआम होती रहीं हैं। उसमें चेहरे से तो आप पहचान नहीं सकते थे कि बोलने वाला कौन है? इसकी पृष्ठभूमि क्या है? यह किस उद्देश्य से यहां सक्रिय है। अब अगर आईएस जैसे संगठन की भूमिका तक वहां सामने आ रही है तो इसी से समझा जा सकता है कि साजिश कितनी गहरी और खतरनाक है। यह बिल्कुल संभव है कि आने वाले समय में और भयावह जानकारियां सामने आएं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक दस्तावेज सामने आया है जिसमें दलितों और मुस्लिमों को इकट्ठा कर भारत को अस्थिर करने की योजना है। संभव है उसको भी अमल में आने की कोशिशें हुईं हों। दिसंबर हिंसा के पीछे पीएफआई से जुड़े संगठनोें के खाते में 120 करोड़ रुपया आने तथा हिंसा के साथ तेजी से जमा होने एवं निकालने का पूरा आंकड़ा तथ्यों के साथ सामने रखा जा चुका है। पता नहीं और कौन-कौन से संगठन या उससे प्रभावित भारत विरोधी जेहादी, माओवादी या अन्य प्रकार की हिंसक और सांप्रदायिक विचारधारा मे परिणत मस्तिष्क इसके पीछे सक्रिय हैं। यह बात तो आसानी से समझ में आती है कि जो नागरिकता कानून तीन देशों से धार्मिक रुप से उत्पीड़ित और अपनी सम्मान गंवाकर पलायन कर शरण के लिए आए लुटे-पिटे लोगों को नागरिकता देने के लिए है उसे मुसलमानों के खिलाफ झूठे दुष्प्रचार को लोगों के दिमाग तक पहुंचाने वालों का एक प्रभावी तंत्र अवश्य होगा। कैसे निहायत ही झूठ को इनने लोगों के दिमाग में उतार दिया कि मोदी और शाह मुसलमानों के खिलाफ है, वह आपकी नागरिकता छीन लेगा, आपको जेलों में डाल देगा या देश से बाहर भी निकाल देगा। यह किसी छोटे तंत्र के वश के बाहर है। अब जब पीएफआई के बाद आईएस तक की भूमिका सामने आ गई है तो फिर यह समझने में देर नहीं लगना चाहिए किस तरह की शक्तियां भारत को अशांत करने के लिए सक्रिय हैं। दिल्ली हिंसा में पीएफआई की भले पहली गिरफ्तारी है किंतु आने वाले समय में और गिरफ्तारियां एवं तथ्य सामने आएंगे। एनआईए इसकी ज्यादा गहराई से जांच करेगी। यह उन लोगों को भी सोचना चाहिए जो इनके बहकावे में आकर प्रदर्शनों में शामिल हुए या सांप्रदायिक उकसावे में आकर हिंसक गतिविधियों तक में संलिप्त हो गए। साथ ही पुलिस प्रशासन को भी इसका जवाब देना चाहिए कि आखिर इतने भयानक तत्वों की भूमिका सामने आने के बाद भी शाहीनबाग जैसे अवैध और नासूर बन चुके धरना को खत्म करने में समस्या क्या है?

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208


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