गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

संदेशखाली का सच स्वीकार करें ममता

अवधेश कुमार

पश्चिम बंगाल के संदेशखाली कांड ने पूरे देश को सन्न कर दिया है। जिस तरह की घटनाएं सामने आ रहीं हैं उन पर सहसा विश्वास करना कठिन है। आखिर किसी कानून के शासन वाले राज्य में ऐसा कैसे संभव है कि कोई , कुछ या कुछ लोगों का समूह जब चाहे जितनी संख्या में चाहे महिलाओं को बुला ले और उनका शोषण करें? मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहतीं हैं कि संदेशखाली घटना के पीछे भाजपा का हाथ है। उन्होंने कहा कि संदेशखाली में सबसे पहले ईडी को भेजा गया। फिर ईडी की दोस्त भाजपा कुछ मीडियावालों के साथ संदेशखाली में घुसी और हंगामा करने लगी। ममता बनर्जी, तृणमूल कांग्रेस या सरकार के अन्य प्रवक्ता ऐसी घटना को नकारने की जितनी कोशिश करते हैं उतना ही सच सामने आ रहा है। राजनीतिक दलों के बयानों और मांगों को कुछ समय के लिए छोड़ दीजिए, टेलीविजन कैमरों पर जितनी संख्या में महिलाएं आकर आपबीती सुना रहीं हैं उनसे किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल दहल जाएगा। राजनीतिक दलों में भी केवल भाजपा आवाज उठाती या आंदोलन करती तो माना जाता कि शायद आरोपों में उतनी सच्चाई नहीं है जितनी प्रचारित की जा रही है। सारी वामपंथी पार्टियां और कांग्रेस भी संदेशखाली पर एक ही स्वर में बात कर रहे हैं। राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने संदेशखाली में अशांत क्षेत्रों का दौरा कर  कहा कि मैंने जो देखा वह भयावह, स्तब्ध करने वाला और मेरी अंतरात्मा को हिला देने वाला था। उन्होंने कहा कि विश्वास करना कठिन है कि रविंद्र नाथ टैगोर की धरती पर ऐसा हुआ है। यह भी पहली बार होगा जब राज्यपाल ने राजभवन का नंबर जारी करते हुए कहा कि किसी महिला को डरने की आवश्यकता नहीं है और उन्हें समस्या है तो राजभवन में शरण ले सकती हैं। राज्यपाल ने स्थानीय महिलाओं से कहा कि चिंता मत कीजिए, आपको न्याय जरूर मिलेगा। 

यदि मामले की गंभीरता नहीं होती तो कोलकाता उच्च न्यायालय इसका स्वत: संज्ञान नहीं लेता। पहले उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अपूर्ब सिंह राय की एकल पीठ ने सुनवाई की और बाद में इसे दो सदस्यीय पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया। उच्च न्यायालय इनमें दो अलग-अलग मामलों की सुनवाई कर रही है। पहले स्थानीय लोगों की जमीन हड़पने का है और दूसरा स्थानीय महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने का।

उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने के बाद उम्मीद करनी चाहिए कि मामले का सच सामने आएगा तथा दोषियों को उपयुक्त सजा मिलेगी। किंतु स्वयं ममता बनर्जी और उनके लोग जब तक यह मानने को तैयार नहीं होंगे कि स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे जघन्य और शर्मनाक घटना उनके राज्य में घटित हुई है तब तक सच होते हुए भी इसे साबित करना मुश्किल होगा। पुलिस प्रशासन का रवैया देखिए तो साफ हो जाएगा कि संदेशखाली कांड की सही तरीके से जांच और कानूनी प्रक्रिया पूरी करना सामान्य तौर पर संभव नहीं हो सकता। शाहजहां शेख इतने लंबे समय तक गिरफ्तार नहीं हुआ है तो क्यों? उच्च न्यायालय का दबाव नहीं होता तो शायद उसकी गिरफ्तारी नहीं होती। मामले के दो प्रमुख आरोपी शिबू हाजरा और उत्तम सरदार सहित 18  गिरफ्तार हो चुके थे।‌ हालांकि ये भीज्ञआसानी से गिरफ्तार नहीं हुए। महिलाओं के प्रदर्शन और बवंडर के बाद तृणमूल कांग्रेस ने उत्तम सरदार को उत्तर 24 परगना जिला परिषद सदस्य और तृणमूल के अंचल अध्यक्ष के पद से 6 साल के लिए निलंबित कर दिया। उसके बाद ही पुलिस उसे गिरफ्तार करने का साहस कर सकी। लोग बता रहे हैं की तृणमूल कांग्रेस के लोग घर-घर जाकर देखते थे और जिस घर में सुंदर लड़कियां या महिलाएं होती उन्हें बुला लिया जाता था या उठाकर ले जाया जाता था। पार्टी कार्यालय में भी उनका यौन शोषण किया जाता था। शाहजहां शेख का आतंक इतना था कि कोई आवाज उठाने का साहस नहीं कर पाता था। 5 जनवरी को जब ईडी द्वारा राशन घोटाले से जुड़े मामले में शाहजहां शेख के संदेशखाली स्थित आवास पर छापेमारी के दौरान भारी संख्या में लोगों ने एड की टीम के साथ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवानों पर पर हमले कर दिए और शहर से लगभग 74 किमी दूर गांव से भागने तक मारपीट की। शाहजहां के फरार होने की खबर से लोगों का साहस बढ़ा और वे सड़कों पर उतरकर विरोध करने  लगे जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं। वस्तुत: 5 जनवरी को हुए हमलों के 33 दिनों बाद 7 फरवरी को संदेशखाली में फिर से हंगामा हुआ।केंद्र द्वारा बंगाल को बकाया फंड से वंचित करने का आरोप लगाकर तृणमूल ने संदेशखाली के त्रिमोहानी बाजार में जनजाति समुदाय के एक वर्ग के साथ एक रैली निकाली थी। इसमें शेख शाहजहां के जयकारे लगाने के बाद ही हंगामा शुरू हुआ‌ और लोग तृणमूल के विरुद्ध नारे लगाने लगे। शाहजहां और उनके समर्थकों पर जमीन हड़पने तथा लंबे समय से महिलाओं के यौन उत्पीड़न सहित अनेक प्रकार की प्रताड़नाओं का आरोप लगाने लगे। आक्रोशित महिलाओं ने  शिबू हाजरा के खेत और पॉल्ट्री फॉर्म में आग भी लगा दी। लोग बता रहे हैं कि पॉल्ट्री फॉर्म गांव के लोगों की जमीन छीनकर अवैध तरीके से बनाया गया जहां अनेक तरह की अवैध गतिविधियां चलती थी। उसे क्षेत्र में जाने के बाद कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है कि तृणमूल कांग्रेस, शाहजहां और उनके लोगों का किस तरह का आतंक और दबदबा रहा होगा। शाहजहां के घर पर गई ईडी की टीम और सशस्त्र पुलिस बल पर हुआ हमला इस बात का प्रमाण था कि वहां पुलिस और प्रशासन का नहीं शेख शाहजहां और उसके नेतृत्व में चलने वाले तृणमूल कांग्रेस के नाम पर खड़े किए गए साम्राज्य का शासन था। 

ममता बनर्जी ने विधानसभा में बोलते हुए इसमें भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घसीटा। ममता ने कहा कि संदेशखाली आरएसएस का गढ़ है। वहां पहले भी दंगे हुए थे। क्या आरएसएस में वहां शाहजहां शेख और तृणमूल के लोगों को सत्ताबल की बदौलत जमीन हड़पने और महिलाओं के वीभत्स यौन उत्पीड़न के लिए रास्ता तैयार किया?  वहां जाकर कोई भी देख सकता है कि 24 परगना का संदेशखाली ही नहीं आसपास बांग्लादेश से लगे सीमावर्ती इलाके में रहने वाले भारी आबादी होने के बावजूद अनुसूचित जनजाति के लोग किस तरह की स्थितियों का सामना कर रहे हैं। संदेशखाली एक दर्जन से ज्यादा उन विधानसभाओं की श्रेणी में है जो भारत-बांग्लादेश से लगा है जहां अवैध घुसपैठियों की संख्या हमेशा रही है और वे वहां के लिए समस्या भी रहे हैं। पहले वाम मोर्चा और उसके बाद तृणमूल सरकार ने इनके विरुद्ध कार्रवाई करने की बात तो दूर इन्हें पूरी तरह संरक्षण और पोषण दिया। क्षेत्र के अपराध का विश्लेषण करें तो उनमें गौ तस्करी से लेकर मादक पदार्थों और हथियारों के साथ मानव बिक्री के कारोबार शामिल हैं और इनमें एक समुदाय के लोग सबसे ज्यादा आरोपी और अभियुक्त हैं। यह बात सही है कि पिछले कुछ वर्षों में वहां के लोगों का आरएसएस की ओर आकर्षण बढ़ा है तो इसलिए कि सरकार उन्हें सुरक्षा देने में सफल नहीं रही। लेकिन आरएसएस के कार्यकर्ताओं को भी शाहजहां जैसे बाहुबलियों के उत्पीड़न और अपराध का सामना करना पड़ा है और पुलिस प्रशासन उनका सुरक्षा देने में विशाल रही है। सत्तारूढ़ घटक से जुड़े अपराधी और बाहुबली महिलाओं को जबरन उठाकर अपनी हवश का शिकार बनाते रहे हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार और उत्पीड़न की पहले भी अनेक घटनाएं सामने आई जिनमें ज्यादातर पुलिस में दर्ज नहीं हुई और आवाज उठाने के कारण आरएसएस के कार्यकर्ताओं को भी हमलों, हत्याओं और मुकदमों का शिकार होना पड़ा है। यह बात सही है कि 2007 में वहां भीषण दंगा हुआ था जिसमें सीमा सुरक्षा बल को बुलाना पड़ा था। उसमें भी ज्यादातर आरोपी एक ही समुदाय के थे जिनमें अवैध घुसपैठिए भी शामिल थे।

 जो सच स्थानीय लोगों को और निष्पक्षता से वहां जांच करने वालों को दिखाई देता है अगर सरकार और प्रशासन उसे स्वीकार नहीं करेंगे तो संदेशखाली जैसी घटनाएं लगातार होती रहेगी। पुलिस ने हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए डीआइजी स्तर की एक महिला अधिकारी के नेतृत्व में 10 सदस्यीय टीम का गठन किया है। किंतु  पुलिस कह रही है कि उसे केवल चार शिकायतें मिलीं जिनमें बलात्कार का आरोप है ही नहीं। इसके बाद पुलिस प्रशासन से कोई क्या उम्मीद कर सकता है। पुलिस की घेराबंदी के कारण संदेशखाली में किसी व्यक्ति के लिए प्रवेश कर पाना असंभव है। यहां तक कि राजनीतिक दलों के नेताओं को वहां जाने के लिए उच्च न्यायालय का सहारा लेना पड़ा है और वो भी सीमित क्षेत्र में जा पा रहे हैं। सरकार और प्रशासन अपनी खीझ पत्रकारों पर उतार रह है। एक पत्रकार को गिरफ्तार ही किया गया है। पुलिस के लिए इससे शर्मनाक क्या हो सकता है कि शाहजहां आज तक कानून के शिकंजे से बाहर है। उच्च न्यायालय ने यह प्रश्न भी उठाया कि क्या उसे संरक्षण मिल रहा है? अभी भी समय है ममता बनर्जी सरकार कानून के शासन कायम करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साबित करें तथा उस क्षेत्र की स्थिति को स्वीकार कर अपराधियों और बाहुबलियों की पूरी सफाई के लिए अभियान चलाएं। चूंकि इसकी संभावना नहीं दिख रही, इसलिए यह लंबे जन संघर्ष का विषय हो चुका है।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -98110 27208

भारतीय कृषि एवं खाद्य परिषद् की तीन दिवसीय कार्यशाला/प्रदर्शनी "उत्तर प्रदेश एग्रोटेक- 2024" का आज से शुभारंभ

लखनऊ। भारतीय कृषि एवं खाद्य परिषद अपनी सालाना कार्यशाला व प्रदर्शनी "एग्रोटेक 2024 डेवलपमेंट मीट ऑन उत्तर प्रदेश एग्रीकल्चर" का आयोजन एक मार्च से करने जा रहा है। प्रदर्शनी और कार्यशाला आयोजन भारतीय कृषि खाद्य परिषद, उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के सहयोग से आयोजित कर रहा है। कार्यक्रम के प्रायोजक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और सह प्रायोजक आईपीएल बायोलोजिकल्स लिमिटेड है।
उक्त प्रदर्शनी व कार्यशाला का शुभारंभ माननीय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उद्यान श्री दिनेश प्रताप सिंह जी करेंगे। प्रदर्शनी शुभारंभ कार्यक्रम के दौरान राज्य सभा के सांसद श्री अशोक बाजपेयी जी, वरिष्ठ आईएएस व एडिशनल चीफ सेक्रेटरी कृषि विभाग डॉ देवेश चतुर्वेदी, नाबार्ड के सीजीएम श्री एस के डोरा, डॉ अनीस कुमार शर्मा डायरेक्टर टेक्निकल इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड भी प्रमुख रूप से मौजूद रहेंगे।
तीन दिवसीय कार्यक्रम के प्रथम चरण में प्रदर्शनी का शुभारंभ होने के साथ साथ विभिन्न सत्र का आयोजन भी होगा। जिसमे प्रदेश के आला अधिकारी सहित कृषि विशेषज्ञ शामिल रहेंगे और प्रतिभागियों से विषय सम्बंधित संवाद कर उनको कृषि नवाचार से अवगत कराएँगे। विभिन्न सत्रों में प्रमुख रूप से कृषि सम्बंधित विषयो पर सारगर्भित चर्चा और संवाद का आयोजन प्रस्तावित है। कार्यक्रम के अंत में प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन द्वारा "यूपी इनोवेटिव अवार्ड्स 2024 का वितरण तमाम कृषको को किया जायेगा। साथ ही साथ प्रदर्शनी के बेस्ट स्टाल अवार्ड भी वितरित किया जायेगा।

कार्यक्रम की रूपरेख

कार्यक्रम स्थल: भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, तेलीबाग

कार्यक्रम तिथि: 1 मार्च से 3 मार्च 2024

समय : प्रातः 10:30 से सांय 5: 30 तक

बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

मोदी चुनाव का नहीं विकास का बिगुल फूंकते हैं!

फिरोज़ बख़्त अहमद 
मोदी के प्रतिद्वंदी प्रायः यह कहते सुने जाते हैं कि वे मंदिरों को प्राथमिकता इस लिए देते हैं कि वे चुनाव जीतना चाहते हैं। बहुत छोटी बात बोलते हैं ये लोग और लगता है कि अक्ल के पीछे डंडा ले कर दौड़ रहे हैं क्योंकि मोदी जैसे इन्सान को चुनाव से कोई लेना देना नहीं, न ही राजनीति से मिलने वाले लाभों व शान-ओ-शौकत से कोई सरोकार और न ही अरबों-खरबों की संपत्ति एकत्र करने की इच्छा है, बल्कि ज़मीन से जुड़े इस प्रधानमंत्री के रूप में सेवक को भारत माता को विश्व गुरु बना, ऐसी ऊंचाइयों पर ले जाना है, जहां अमेरिका, ब्रिटेन, चीन आदि के मुक़ाबले में भारत कोसों आगे हो! रही बात राम मंदिर के नाम में चुनाव जीतने की, तो इस शुभ कार्य को इन विपाक्षी दलों ने क्यों नहीं कराया? अपने ही देश में हिंदू तबके को  अदालत से 500 वर्ष संघर्ष कर अपने सबसे बड़े आराध्य की प्राप्ति मोदी ने चुनाव जीतने हेतु नहीं बल्कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए किया कि जिन लोगों के निकम्मेपन के कारण यह रह गया था, क्योंकि वे तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को काल्पनिक मानते हैं और राम सेतु को भी नहीं मानते!
वैसे भी भारत माता इतना विशाल देश है कि हर समय कहीं न कहीं चुनाव चलते रहते हैं और जो लोग जनता की नजर में मोदी की भांति हर प्रकार से दमदार, दिलदार, जानदार, शानदार, वफादार, सेवादार, कामदार और ईमानदार नहीं होते, जानते हैं कि चुनाव जीतना आसान नहीं, अपनी असफलता का ठीकरा मोदी पर फोड़ देते हैं। बात यह नहीं कि मोदी विजयी हों अन्यथा नहीं, देश की बागडोर जिम्मेदार हाथों में रहनी चाहिए और यह पब्लिक है, सब जानती है!
भारत वर्ष को प्रगति व उन्नति के मार्ग पर दौड़ा दिया है, उससे उनके विपक्षी दलों में खलबाली मची हुई है कि यह बंदा किस मिट्टी का बना हुआ है कि न तो रुकता है, न थकता है और न ही झुकता है कि जिस तरक्की से इस व्यक्ति ने अपने दौर में भारत को रु बरु किया है, वह अति विलक्षण है व चमत्कारिक है, जिसे पिछले किसी प्रधानमंत्री के कार्य काल में पूर्ण नहीं किया गया! मोदी को नापसंद करने वाले, गलियां बकने वाले, कोसने वाले और झोलियां फैला कर बददुआ देने वाले भली भांति जानते हैं कि मोदी जो कहते हैं, करते हैं। उन्हों ने कभी नहीं कहा, " हम देख रहे हैं, है देखेंगे। वे देखने वालों में नहीं, करने वालों में हैं।यही बात उन्हें अन्य प्रधानमंत्रियों से भिन्न करती हैं। जनता सही जज है, न कि विपक्षी, वामपंथी दल आदि।
मोदी ही वह आदमी है जो आने वाले समय मे भारत को एक स्वस्थ, सुंदर (कूड़ा, गंदगी के ढेर विहीन) देश बना सकता है। यही वो व्यक्ति है जो पूरी तरह ईमानदार है और आगे भी ईमानदार रहेगा। यही वो आदमी है जो अपने परिवार के लोगों को हमारे सिर पर नही थोपेगा।
बतौर एक वोटर, मुझे मोदी पर 100 प्रतिशत विश्वास है कि यह व्यक्ति देश के लिए कितना भी कठिन निर्णय हो उसे लेने में कभी नहीं हिचकेगा व पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकता है।चुनाव जीतेगा तो सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र की सेवा के लिए 10 साल में, यह व्यक्ति एक दिन भी खाली नहीं बैठा, कुछ न कुछ करता ही रहा, चाहे वह वंदे भारत रेल हो या काश्मीर में सबसे ऊंचा पुल बनाना हो, या दुश्मन के घर में जा कर सर्जिकल स्ट्राइक करनी हो, जिस पर विपक्षियों ने सवाल उठाए! मोदी से पूर्व जीडीपी 1.8 ट्रिलियन थी और आज 3.7 ट्रिलियन है। 
मोदी से पूर्व प्रति व्यक्ति आय 78 हज़ार थी तो आज यह 1 लाख 15 हज़ार है। मोदी से पूर्व हम 10वें आर्थिक स्थान पर थे और आज 5वें आर्थिक स्थान पर हैं। मोदी से पूर्व हमारे देश ने 200 बिलियन का व्यपार किया था और आज यह संख्या 800 बिलियन के लग हग है। मोदी से पहले हमारे पास 5  मेट्रो शहर थे, आज 21 हैं। मोदी से पूर्व हमारे पास 74 एयर पोर्ट थे और आज 160 हैं। मोदी से पूर्व केवल 40 प्रतिशत गाँवों में बिजली थी, आज 95 प्रतिशत गाँवों में बिजली है। 
मोदी से पूर्व केवल 7 एम्स थे, आज 22 हैं। मोदी से पूर्व ई-वे की लंबाई  680 किलो मीटर थी, आज 4067 मीटर है। मोदी से पूर्व रेलवे ट्रैक 25,700 किलो मीटर था, आज, 5,7,700 किलो मीटर है। मोदी से पूर्व सड़क गुणवत्ता में हम 88वें स्थान ओर थे, आज 42 वें स्थान पर है।चूंकि लेखक अपनी इसलामी जड़ों से जुड़ा मुसलमान, एक संस्कारी व राष्ट्रवादी मुस्लिम है, सिवाय भारत माता से जुड़े होने के, किसी अन्य पार्टी या संगठन से नहीं जुड़ा है, अपने मुस्लिम दीन भाईयों से गुजारिश करता है कि भले ही वे मोदी को वोट दें या न दें, मोदी से अंध रंजिश और दुश्मनी का त्याग कर, इस वासुधैव कुटुम्बकम में विश्वास रखने वाले प्रधानमंत्री के बाजुओं को मज़बूत करें, क्योंकि यह वही मोदी है, जिसने कहा है कि वह हर मुस्लिम के एक हाथ में कुरान और दुसरे में कंप्यूटर देखना चाहता है और यह कि वह मुस्लिमों को अपनी संतान की भांति समझता है व उनके साथ बराबरी का सुलूक करना चाहता है। यह वही मोदी है, जिस ने विज्ञान भवन में विश्व की सबसे बड़ी सूफ़ी संगोष्ठी की थी। या वही मोदी है जिसे छः इस्लामी देशों ने अपने सर्वोच्च इनाम दिए थे और यह वही मोदी है, जिसके सम्मान में सऊदी अरब के बादशाह सलमान ने रामायण को अरबी में अनुवाद कर भेंट किया था! इस मोदी का ही दम था जिसने अबु धाबी में मंदिर की स्थापना करे दोनों देशों में हर प्रकार से प्रगाढ़ रिश्ते बनाए!
एक सामान्य भारतवासी और दिल्ली नागरिक होने के नाते, मेरा ये दृढ़ विश्वास है कि आज के समय में यही सबसे उपयुक्त व्यक्ति है जो भारत को विश्वगुरु बना सकता है।यही वह व्यक्ति है जो भारत को आर्थिक और सैन्य महाशक्ति बना सकता है, यही वो आदमी है जो हमको तीसरी दुनिया, विकासशील देश से एक विकसित देश बना सकता है। भारत माता की जय! जय हिंद!  
(लेखक पूर्व कुलाधिपति, भारत रत्न, मौलाना आज़ाद के वंशज और वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

विश्वास के सिंहासनों से षड्यंत्रों का शंखनाद

डा. रवीन्द्र अरजरिया
देश को धर्म के नाम पर बांटकर स्वार्थ पूर्ति के प्रयास निरंतर तेज होते जा रहें। लोकसभा के चुनावों की बयार चलते ही विश्वास के सिंहासनों से षडयंत्रों का शंखनाद होने लगा है। कहीं कल्कि पीठ के पीठाधीश्वर कलयुग की काल गणना करके  परमात्मा के अवतरण की घोषणा कर रहे हैं तो कहीं कर्नाटक की कांग्रेस सरकार मंदिरों पर टैक्स लगाने के लिए कर्नाटक हिन्दू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती संशोधन विधेयक 2024 को विधान सभा में पास करती है। कहीं असम की भाजपा सरकार मुस्लिम मैरिज एण्ड डिवोर्स एक्ट 1935 को समाप्त करती है तो वहां के मुस्लिम नेता शरीयत कानून के अनुसार ही सामाजिक व्यवस्था मानने की घोषणा करते हैं। कहीं मुस्लिम लीग के फरमान जारी होते हैं तो कहीं खुलेआम गजवा-ए-हिन्द को इस्लाम का अभिन्न अंग मानने के फतवे जारी होते हैं। कहीं हिन्दू राष्ट्र की मंचीय घोषणा होती है तो कहीं मिशनरी के द्वारा लालच के सब्जबाग दिखाये जाते हैं। चौराहों से लेकर चौपालों तक चर्चाओं का बाजार गर्म है।
कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु में बैठकर मुख्यमंत्री सिध्दारमैया ने कांग्रेस के आलाकमान के इशारे पर हिन्दू मंदिरों को मुगुलकालीन जरिया कर जैसे चाबुकों से लहूलुहान करने हेतु विधान सभा में विधेयक  पेश किया और संख्या बल के आधार पर पास भी कर लिया परन्तु विधान परिषद में भाजपा के पास अधिक सदस्य होने के कारण उसे अन्तिम रूप नहीं दिया जा सका। यह वही पार्टी है जिसके आलाकमान राहुल, सोनिया, प्रियंका गांधी चुनावी काल में दर-दर गली-गली मंदिरों में माथा टेककर हिन्दू मतदाताओं के वोट बटोने के लिए प्रयास कर रहे हैं। वहीं असम की राजधानी दिसपुर में आसन जमाये मुख्यमंत्री डा. हेमंत विस्वा ने अपनी पार्टी के मुखिया के संकेत पर मुसलमानों के विवाह और तलाक की परम्परागत व्यवस्था की कानूनी मान्यता समाप्त कर दी। इस हेतु वहां के मंत्री जयंत मल्लाबरुआ ने घोषणा करते हुए कहा कि अब मुस्लिम विवाह और डिवोर्स से जुडे सभी मामले स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सुलझाये जायेंगे।
दूसरी ओर इसका विरोध करते हुए असम में आल इण्डिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के मुखिया बदरुद्दीन अजमल ने मोर्चा खोल दिया जिसे आगे बढाते हुए समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने कहा कि मुस्लिम सिर्फ शरीयत कानून को ही मानेगा। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद शहर में स्थापित दारुल उलूम मदरसा ने गजवा-ए-हिन्द को डंके की चोट पर मान्यता देते हुए फतवा जारी किया है। फतवे में कहा गया है कि भारत पर आक्रमण करने के दौरान मरने वाले महान शहीद कहलाए जायेंगे और उन्हें जन्नत नसीब होगी। यह सब कुछ देश के अन्दर बैठकर दबंगी से सोशल मीडिया की साइट पर किया जा रहा है ताकि मुसलमानों के अन्दर धार्मिक उन्माद भडकाया जा सके। इस हेतु सुन्न-अल-नसा नामक पुस्तक का जिक्र करते हुए हजरत अबू हुरैरा की हदीस का हवाला दिया गया। उसमें कहा गया कि अल्लाह के संदशवाहक ने भारत पर हमले का वायदा किया था। उन्होंने कहा था कि अगर मैं जिन्दा रहा तो इसके लिए अपनी खुद की और अपनी संपत्ति की कुर्बानी दे दूंगा। मैं सबसे महान शहीद बनूंगा। वहीं अनेक स्वयं भू हिन्दू धर्मगुरुओं के व्दारा भी हिन्दू राष्ट्र की घोषणा खुले मंचों से की जा रही है। लोगों की निजिता को सार्वजनिक करके हाल ही में लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर पहुंचने वाले ऐसे धर्मगुरु अक्सर अपने विवादास्पद कृत्यों, वक्तव्यों और संवादों  से विष पौध ही रोपते रहते हैं। हिन्दू राष्ट्र का प्रचार भी गजव-ए-हिन्द की तरह ही माना जा रहा है। अन्तर केवल सोच का है।
हिन्दुओं की आस्था केवल समस्या के समाधान तक ही सीमित होती है जिसे अस्थाई कहा जा सकता है परन्तु मुस्लिम आस्था को कट्टरता के रूप मे स्थापित करने के निरंतर प्रयास होते रहते हैं। नेटवर्किंग की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था के कारण ही हल्व्दानी काण्ड के मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक को लम्बे समय तक हथकडी पहनाना सम्भव नहीं हुआ। वह सुरक्षित इस्लामिक नेटवर्क के कारण ही अनेक राज्यों में अपने लोगों के घरों में न केवल ठहरा बल्कि पैसे, वाहन और अन्य संसाधन प्राप्त करता रहा। ऐसा ही कृत्य एक हिन्दू गायक ने विवादास्पद बयान देने के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए बुंदेलखण्ड में नव प्रचारित धार्मिक स्थान के समीप आश्रय लेकर किया था। देश के गरीब इलाकों में मिशनरी द्वारा लालच का सहारा लेकर निर्धन परिवारों को धर्म परिवर्तन की ओर बढाया जा रहा है। गोरों के शासनकाल के मनमाने आवंटन आज तक यथावत मालिकाना हक के रूप में स्थापित हैं जिन्हें स्वाधीनता के अनुबंध के आधार पर तत्कालीन कथित नेताओं ने मूर्त रूप देने का काम किया था। 
अनेक स्थानों पर तो चिकित्सालय, शिक्षालय जैसी संस्थायें आज भी आम लोगों पर लागू होने वाले कानून नहीं मानतीं हैं। विशेषाधिकारों की दुहाई पर काम करने वाले कभी मानवाधिकरों की ढाल खडी कर देते हैं तो कभी अभिव्यक्त की आजादी पर संसद में बाबरी मस्जिद जिन्दाबाद के नारे बुलंद करते हैं। यह कारक लोक सभा के चुनाव काल में सुनामी की तरह ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं ताकि अंध श्रध्दा को प्रचारित करके वोट बैंक पर डाका डाला जा सके। इन प्रयासों को असफल करने के लिए आम आवाम को स्वयं आगे आना पडेगा अन्यथा आस्था के मनगडन्त मायनों को सत्ता की परिभाषा बनाने वाले अपने षडयंत्र से भाई-भाई के बीच खूनी जंग छिडवाने का मंसूबा पूरा कर लेंगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

भर्ती परीक्षाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार युवाओं के साथ घोर अत्याचार

 बंसत कुमार

17-18 फ़रवरी को उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में अनुचित संसाधनों का इस्तेमाल करने के आरोप में 244 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इस खबर के खुलासे के बाद समाजवादी पार्टी समेत सभी विपक्षी दलों ने सरकार पर भर्ती परीक्षा में हो रही गड़बड़ी में संलिप्त होने का आरोप लगाते हुए इस परीक्षा को निरस्त करके दुबारा से भर्ती परीक्षा आयोजित करने की मांग की है। यह सिर्फ एक परीक्षा में धांधली का मामला नहीं है बल्कि विगत कुछ वर्षो में आयोजित होने वाली अधिकांश परीक्षाओं में इस तरह की धांधली सामने आ रही है। इसी कारण से दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान परीक्षाओं में सफल होने के लिए अभ्यर्थियों द्वारा की जा रही धांधली को अफ़सोसजनक बताया। न्यायालय ने आगे कहा कि इस धांधली का परिणाम यह है कि निर्दोष और ईमानदार छात्र अपने साथ के लोगों के अव्यस्थित और अमर्यादित आचरण का शिकार बन रहे हैं। ऐसी स्थिति में राज्य और उनकी एजेंसियों के पास परीक्षा को पूरी तरह रद्द करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता है।

न्यायालय की पीठ ने आगे कहा कि यह देखा गया है कि ऐसी परीक्षाएं आयोजित करने वाली एजेंसियों के लिए यह निर्धारित करना और पहचानना बेहद मुश्किल हो जाता है कि कितने छात्र इस तरह के तरीको और अनियमितताओं में शामिल हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली कौशल उद्यमिता विश्वविद्यालय द्वारा अधिसूचित रिक्ति में जूनियर सहायक के पद के लिए कई उम्मीदवारों की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कानून का सुव्यवस्थित सिद्धांत यह है कि चयन प्रक्रिया को दागदार नहीं किया जा सकता। किसी भी प्रकार की परीक्षा आयोजित करते समय चयन प्रक्रिया की पवित्रता बनाये रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मजे की बात यह है कि इस तरह की गड़बड़ी के लिए देश में एक सॉल्वर गैंग काम कर रहा है जिससे असली अभ्यर्थी के स्थान पर किसी और को बैठाकर प्रश्न पत्र हल कराए जाते हैं। यद्यपि पुलिस एवं प्रशासन दावा कर रही है कि दो दिन चली उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती परीक्षा में धांधली रोकने के कड़े इंतजाम किये गए थे।

पारंपरिक पुलिस के साथ-साथ सीसीटीवी, ड्रोन कैमरे, जैमर और बायोमैट्रिक संसाधनों का इस्तेमाल कर फर्जी अभ्यर्थियों, पेपर लीक और साल्वर गैंग पर नजर रखी गई। कई जगहों पर छात्राओं के जूड़े तक चेक किये गए। इसके लिए पुलिस के साथ आरएएफ और पीएसी को भी लगाया गया, साथ ही एसटीएफ भी लगातार निगरानी करती रही थी। इसके बावजूद प्रदेश भर में तमाम सालवर और अनुचित संसाधनों का प्रयोग करने वाले अनेक अभ्यर्थी गिरफ्तार किए गए। कहने का अभिप्राय यह है की सरकार की ओर से इतने भारी भरकम इंतजाम के बावजूद फर्जीवाड़ा रोकने में सरकार कामयाब नहीं हो पाई। नकल की कोशिश में लगे लोगों के पास से भारी संख्या में नकल सामग्री, माइक्रोफोन, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, फर्जी एडमिट कार्ड, फर्जी आधार कार्ड आदि बरामद किए गए। अभ्यर्थियों को नकल कराने के एवज में लाखों रूपए की नगद राशि वसूली गई। कहीं-कही तो सालवर ब्ल्यूटूथ डिवाइस से नकल कराते हुए पकड़े गए।

इस परीक्षा में पेपर लीक का मुद्दा भी बहुत गरमाया हुआ है। सोशल मीडिया के साथ-साथ विपक्षी दलों ने भी इसे खूब उछाला। एक ओर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखकर इस परीक्षा को निरस्त कर दुबारा परीक्षा आयोजित करने की मांग की। वहीं कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कहा कि जो युवा रोजगार चाहते हैं वे इसके लिए परीक्षा की तैयारी करते हैं और पेपर देने जाते हैं पर इससे पहले ही पेपर लीक हो जाता है। पेपर लीक हो जाने से लाखों युवा निराश हैं और उनके मन में आक्रोश है। यह पहली बार नहीं हो रहा है, पेपर लीक होने की घटनाएं पूरे देश में वर्षों से हो रही हैं। उत्तर प्रदेश में ये घटनाएं तब भी हो रही थी जब प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव थे। लगभग एक दशक पहले जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जी मुख्यमंत्री थे तब सिपाहियों की भर्ती हुई जिसमें रिश्वत लेकर और अन्य अनियमितताओं के आरोप लगे फिर भी इस परीक्षा से चुने हुए अभ्यर्थी ड्यूटी भी जॉइन कर लिए गए पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद उन्हें घर बैठा दिया गया पर उसके बाद मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके न्यायालय के आदेश आने के बाद दुबारा ड्यूटी पर बुला लिया गया। इस प्रकार की घटनाओ से युवा जो रात-दिन एक करके परीक्षा की तैयारी करते हैं उनमें निराशा व्याप्त होती हैं।

यह हाल सिर्फ उत्तर प्रदेश पुलिस का ही नहीं है। देश के अधिकांश भर्ती बोर्डों का यही हाल है, दो वर्ष पूर्व रेलवे में ग्रुप डी की भर्ती प्रक्रिया हुई और इसमें भारी पैमाने पर सालवर्स के इस्तेमाल होने की खबरे आई और रेल प्रशासन को युवाओ का विरोध झेलना पड़ा। कई जगह गाड़ियां रोकी गई, अगर इसी प्रकार सरकारी नौकरियों में धांधलियां चलती रही तो सरकार पर, न्यायालय और प्रशासन पर से लोगों का भरोसा उठ जायेगा। इस तरह की भर्ती भी हमारी सरकार की सेवाओ की दक्षता पर भी असर डालेंगी। आज हमारे गांवों में रहने वाले मध्यम वर्ग के युवाओं के मन में यह भ्रांति उठने लगी है कि रसूक और पैसे के बगैर सरकारी नौकरी मिलना मुश्किल है। युवाओं के मन से यह भ्रम निकालने के लिए हमें अपनी भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शिता पूर्ण बनाना होगा और तभी हम अपने प्रशासनिक इकाइयों से बेहतर परिणाम की आशा कर सकेंगे। गलत रास्ते से चुनकर आए लोग धनवान बनने के लिए गलत ही करेंगे और हमें यह बात समझ लेना चाहिए। सरकार को भी भर्ती प्रक्रिया को निरंतर चलने वाली सामान्य प्रक्रिया के स्थान पर इवेंट के रूप में आयोजित करने से बचना चाहिए जितने बड़े पैमाने पर भर्ती प्रक्रिया होगी उतना ही गड़बड़ी की आशंका रहेगी।

सभी राजनीतिक दल और विभिन्न सामाजिक संगठन जाति के आधार पर आरक्षण के लिए पक्ष-विपक्ष आपस में टकराते हैं पर सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया में चल रही धांधली पर कोई भी आवाज़ नहीं उठाता। यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि विगत कुछ वर्षों में चाहे कोई भी दल सत्ता में हो सरकारी नौकरियों में चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और संदेह से परे नहीं रही है। इन परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर साल्वरों का पकडा जाना इसका प्रमाण है यदि हम सरकारी नौकरी मिलने को पूर्व की भांति योग्यता और मेहनत का परिणाम स्थापित करना चाहते हैं तो हमें इस समस्या का समाधान करना होगा।

अबू धाबी में इतिहास के नए अध्याय का निर्माण

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक घटना है। किसी इस्लामिक देश में संपूर्ण सनातन रीति-रिवाज से मंदिर का निर्माण, पूजन, प्राण प्रतिष्ठा , उद्घाटन और बिना किसी बाधा के सारे कर्मकांडों का पालन होना सामान्य घटना नहीं है। इस मंदिर के निर्माण की कहानी पढ़ने के बाद लगता है कि असंभव संभव हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी को इस मामले में सौभाग्यशाली मानना होगा कि उनके कार्यकाल में ही इसके लिए जमीन मिली, शिलान्यास हुआ और उन्हें ही इसके उद्घाटन का भी अवसर मिला। उद्घाटन के दौरान अपने भाषण में उन्होंने कहा भी कि मैं सौभाग्यशाली हूं कि अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अबू धाबी में अक्षरधाम मंदिर के उद्घाटन का साक्षी बना हूं। 20 अप्रैल, 2019 को महंत स्वामी महाराज और प्रधानमंत्री मोदी ने इसका शिलान्यास किया था और लगभग 5 वर्ष बाद दोनों ने इसका उद्घाटन भी किया। 27 एकड़ में फैला यह मंदिर 108 फीट ऊंचा है जिसकी लंबाई 262 फिट एवं चौड़ाई 180 फिट है। इसमें 18 लाख पत्थर की ईंटें लगी है और 30 हजार मूर्तियां हैं। संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नह्यान की उदारता का अभिनंदन करना होगा जिन्होंने न केवल इसकी अनुमति दी बल्कि कुल 27 एकड़ जमीन दी तथा हर तरह का आवश्यक सहयोग भी किया। किंतु यह भी सच है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पहल नहीं की होती तो मंदिर का कितने भव्य रूप में सरकार होना संभव नहीं होता।

मंदिर का सपना 1997 में देखा गया था। सच यही है कि मोदी के आने के बाद ही काम आगे बढ़ा। अक्षरधाम मंदिर निर्माण समिति के लोग सरकार से संपर्क करते रहे किंतु ऐसी सफलता नहीं मिली। सन 2015 में प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की पहली संयुक्त अरब अमीरात यात्रा के दौरान उन्होंने सही तरीके से इस विषय को रखा और फिर रास्ता निकलने लगा। 

अक्षरधाम के दुनिया भर में 1200 मंदिर हैं और सबकी अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। किंतु अबू धाबी का मंदिर सबसे विशिष्ट और भविष्य की दृष्टि से विश्व में अलग-अलग संस्कृतियों , सभ्यताओं, मजहबों आदि के बीच संबंध तथा शांति की आशा पैदा करने वाला है। यदि संयुक्त अरब अमीरात जैसे पूर्ण इस्लामी शासन के अंदर वैदिक हिंदू रीति से मंदिर का निर्माण और कर्मकांड संभव है तो यह मानने का कोई कारण नहीं कि मजहबी कट्टरपंथ को समन्वयवादी परस्पर सहकार की दिशा में मोड़ा नहीं जा सकता। मुख्य बात है पहल करने और उसके अनुरूप भूमिका निभाने की। हिन्दू या सनातन संस्कृति की विशेषता ही समन्वयवादी है। इसी में वह क्षमता है जो सभी मजहबों, पंथों, संस्कृतियों-सभ्यताओं के अंदर एक ही भाव को महसूस कर सबके बीच समन्वय और सहयोग कायम करने का नेतृत्व कर सकता है। प्रधानमंत्री ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा भी कि एक ही ईश्वर को, एक ही सत्य को ज्ञानी अलग-अलग तरह से बताते हैं। यह भारत की मूल चेतना का हिस्सा है। हमें विविधता में बैर नहीं लगता, बल्कि विविधता ही विशेषता लगती है। जैसा प्रधानमंत्री ने बताया मंदिर में पग-पग पर विविधता में विश्वास की झलक दिखती है।  दीवारों पर इजिप्ट के धर्म और बाइबिल की कहानियां उकेरी गई हैं तो वॉल ऑफ हारमनी को बोहरा समाज ने बनवाया है तथा लंगर की जिम्मेदारी सिख भाइयों ने ली है। 

वास्तव में इस मंदिर में हर देवी देवता के मंदिर हैं और उनकी लीलाएं पत्थरों पर मूर्तियों से उतारी गई है। पर इसको इस तरह निर्मित किया गया है कि विश्व का कोई भी मजहब व पंथ इसे अपने से अलग न देखे। मंदिर के निर्माण में हर धर्म के व्यक्ति ने योगदान दिया है। इस मंदिर का निर्माणकर्ता बीएपीएस यानी बचासन वासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामी नारायण संस्था हिंदू संस्था है, जमीन इस्लामी सरकार ने दिया, मुख्य आर्किटेक्ट ईसाई, निदेशक जैन , प्रोजेक्ट मैनेजर सिख ,स्ट्रक्चर इंजीनियर बौद्ध तथा कंस्ट्रक्शन कांट्रैक्टर पारसी रहे। मंदिर की सात मीनारें संयुक्त अरब अमीरात की सात अमीरातों का प्रतीक हैं। प्रधानमंत्री ने संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति का उल्लेख करते हुए कहा कि सबके सम्मान का यही भाव हिज हाइनेस शेख जायेद के जीवन में दिखता है। उनका विजन है- वी आर ऑल ब्रदर्स।

संयुक्त अरब अमीरात सात अमीरातों के संग से बना है, इसलिए मंदिर के सात शिखर में सात भारतीय देवता विराजमान हैं, मंदिर में सात गर्भ गृह हैं। अगर भारतीय परंपरा के जानवर गाय, हाथी और मोर है तो अरब देश के ऊंट, रेगिस्तान के बकरी, बाज, फलों में अन्ननाश और खजूर को भी दीवारों में उकेरा गया है। 

इस तरह यह मूल रूप से हिंदू मंदिर होने और हिंदुत्व व सनातन की विश्व कल्याणकारी विचार और भूमिका को पूरी तरह प्रभावी तरीके से रखते हुए भी सभी धर्म के प्रति सम्मान की भावना को स्वीकारने व बल देने का स्थल बन सकता है।  आखिर संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति ने सब कुछ समझने के बाद ही इसके लिए स्वीकृति दी होगी। ध्यान रखिए, स्वयं अक्षरधाम संस्था ने दो प्रकार के मॉडल बनाए थे। एक संपूर्ण वैदिक हिंदू रिति का था और दूसरा एक समान भवन की तरह दिखने वाला था जिसमें अंदर देवी- देवताओं की मूर्तियां और अन्य चीजें। दूसरे मॉडल में बाहर हिंदू चिह्न नहीं थे। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि जब यह प्रस्ताव शेख जायेद के पास गया तो उन्होंने कहा कि जो मंदिर बने वह सिर्फ मंदिर न बने, मंदिर जैसा दिखे भी। तो वह यूं ही नहीं हुआ होगा। जिस मजहब में बूतपरस्ती के विरुद्ध इतनी बातें हो वहां उन्हें समझा कर तैयार करना आसान नहीं रहा होगा। निश्चित रूप से हिंदुत्व की व्यापकता, जिसमें पूरे ब्रह्मांड के एक-एक कण के प्रति अपना दायित्व , सबमें एक ही तत्व देखने व सबको सम्मान देने के भाव को सही तरीके से समझाया गया होगा। एक बार अगर उन्हें समझ आ गया कि हिंदुत्व के अंदर किसी दूसरे से घृणा या किसी मजहब को छोटा करने का भाव नहीं है, बल्कि सम्मान का है तो फिर भविष्य में इसका असर केवल विपक्षीय नहीं वैश्विक भी हो सकता है।  प्रधानमंत्री ने आशा प्रकट की किक् मंदिर मानवता के लिए बेहतर भविष्य के लिए बसंत का स्वागत करेगा। वास्तव में अगर हिंदू धर्म का यह मंदिर अपने उद्देश्य के अनुसार पूरी दुनिया के लिए सांप्रदायिक सौहार्द्य और वैश्विक एकता का प्रतीक बनने लगा तो सभ्यताओं और मजहबों के बीच टकराव और संघर्ष की तस्वीर बदलने लगेगी।

तो अबू धाबी में मंदिर के उद्घाटन के साथ इतिहास का वह अध्याय आगे बढ़ा है जो हिंदुत्व और भारत राष्ट्र का मूल लक्ष्य रहा है। यानी सभी धर्मों के अंदर एक ही भाव है और जीव-अजीव सबके अंदर एक ही तत्व, इसलिए हमें सबके कल्याण के रास्ते पर चलना है। अब तक संयुक्त अरब अमीरात अपने बुर्ज खलीफा, शेख जायेद मस्जिद और हाईटेक गगनचुंबी भवनों, मौल और मार्केट के लिए जाना जाता था।  उसमें अब अबू धाबी का मंदिर भी जुड़ गया है। निश्चय ही न केवल संयुक्त अरब अमीरात और खाड़ी के अन्य देशों से बल्कि विश्व भर से लोग वहां आएंगे और हिंदू धर्म ,संस्कृति ,सभ्यता की व्यापकता को देखेंगे, समझेंगे।  विश्व के दूसरे प्रमुख मजहबों के पूजा स्थलों में इस तरह का व्यापक समन्वयवादी साकार स्वरूप नहीं दिखाई पड़ता। इससे भारतीय संस्कृति-सभ्यता के प्रति उनके मन में सम्मान बढ़ेगा। इससे लंबे समय से हर स्तर के विद्रोहियों द्वारा सनातन और हिंदुत्व के साथ भारत एवं यहां की सभ्यता संस्कृति के बारे में फैलाए गए दुष्प्रचारों का खंडन होगा। यही नहीं इस तरह के स्थलों और विचारों के प्रसार के साथ भारत को विश्व कल्याण की दृष्टि से सभ्यताओं , संस्कृतियों और धर्मौ के बीच समन्वय, सौहार्द्र व बंधुत्व का संस्कार कायम करने के लिए नेतृत्वकारी भूमिका स्वयमेव प्राप्त होगी।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली- 110092, मोबाइल- 981027208

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

स्वामी प्रसाद मौर्य ने लॉन्च किया अपना नया राजनीतिक दल 'राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी'

-दिल्ली में स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी राजनीतिक पार्टी 'राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी' लॉन्च की

नई दिल्ली। स्वामी प्रसाद मौर्य ने गुरुवार को अपने नए राजनीतिक दल 'राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी' लॉन्च कर दी। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक कार्यक्रम के दौरान पार्टी की घोषणा की गई। कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थकों ने एक साथ दलितों और पिछड़ों के लिए आवाज उठाने का प्रण लिया।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने तीन दिन पहले समाजवादी पार्टी पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए पार्टी सदस्यता और एमएलसी पद से त्यागपत्र दे दिया था। उनके इस कदम को लोकसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीति के जानकारों के अनुसार, स्वामी के इस कदम से राजनीतिक तौर पर सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को ही होगा।

इस मौके पर स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि देश बहुत संकट से जूझ रहा है। भारत का संविधान खतरे में है, लोकतंत्र की हत्या हो रही है. एक विशेष जाति के लोगों को पदोन्नति देकर सरकारी नौकरियां दी जा रही हैं. केंद्र सरकार किसानों पर लाठीचार्ज कर रही है, उनकी गलती क्या है? वे सिर्फ एमएसपी की गारंटी मांग रहे हैं।'

पूर्व सपा नेता ने कहा कि पहले केंद्र ने जीएसटी के नाम पर लोगों का शोषण किया, अब वे ईडी के माध्यम से छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ रही है. ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स का दुरुपयोग किया जा रहा है. विपक्षी नेताओं पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं. जहां भी विपक्ष की सरकार है, बीजेपी वहां के नेताओं की आवाज दबा रही है।

उन्होंने कहा कि आरएसएस या बीजेपी से किसी ने भी आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी. बीजेपी सरकार सभी सरकारी एजेंसियों और संगठनों को अडानी और अंबानी को बेच रही है और जब सरकारी संगठन निजी हाथों में जाते हैं, तो वहां आरक्षण का मतलब नहीं होता. वे आरक्षण खत्म करना चाहते हैं. बीजेपी राम का नाम लेकर देश भर में अशांति फैलाने की कोशिश कर रही है. वे रामभक्त नहीं हैं, वे सिर्फ लोगों को वास्तविक मुद्दों से भटकाना चाहते हैं।

बता दें कि इसी साल 13 फरवरी को स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी में महासचिव पद छोड़ दिया था और हाईकमान पर भेदभाव का आरोप लगाया था. वह 20 साल बसपा में बड़े पदों पर रहे और मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं. इसके बाद 2017 के चुनाव से पहले स्वामी ने पाला बदल लिया था और बीजेपी में शामिल हो गए थे. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी तो स्वामी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया. हालांकि, 5 साल बाद ही उनका बीजेपी से मोहभंग हो गया और 2022 के चुनाव से पहले सपा में शामिल हो गए थे. अब उन्होंने सपा भी छोड़कर अपनी अलग पार्टी का गठन किया है।

बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

बिहार की जनता के बारे में कौन सोच रहा है

अभिषेक गुप्ता
बिहार मे नितिश कुमार ने एक बार फिर बहुमत हासिल कर लिया। पाला बदलने के बाद भी उनका मुख्यमंत्री का पद बच गया। उनकी घरवापसी हो गई और भाजपा के साथ मिलकर फिर से उन्होंने बिहार में सरकार बना ली। महागठबंधन से नितिश कुमार के अलग होने के कारण क्या रहे यह समय बताएगा। यह सवाल उनसे कोई पूछता भी नहीं। इससे पहले नितिश कुमार एनडीए से क्यों अलग हुए इसका भी ठोस कारण आजतक नहीं पता चला। एनडीए से पहले दो बार अलग होने के कारण क्या है, इस पर तमाम चर्चाएं होती रही, लेकिन खुलकर कुछ नहीं पता चला। बिहार में पिछले तीस सालों में तमाम राजनीतिक उठापटक होते रहे है। इन तमाम उठापटक के बीच बिहार में एक सवाल यही उठता रहा है कि आखिर बिहार की जनता इस उठापटक में कहां है। राजनीतिक दल और सरकार उनके बारे में कितना सोच रहे है। तमाम राजनीतिक उठापटक और सरकार के गिरने बचाने के खेल के बीच जनता तो गायब है। जनता के मुद्दे गायब है। बिहार के तमाम मुद्दे वहीं के वहीं है। गरीबी बढी है, बेरोजगारी बढी है, देश भर में मजदूरों की आपूर्ति का बड़ा केंद्र आज भी बिहार ही है।
निशिचत तौर पर इस उठापटक के बीच नितिश कुमार ने अपना जनसमर्थन खोया है और उनके व्यक्तिव पर सवाल उठा है। आम जनता भी बार-बार पाला बदलने के उनके इस रवैये से नाराज है। ग्रामीण इलाकों में नितिश कुमार ने जनसमर्थन खोया है। जो नितिश कुमार किसी जमाने में सुशासन बाबू जाने जाते थे उन्होंने अपनी सरकार बचाने के लिए बाहुबालियों का सहारा लिया। उन्होंने अपनी सरकार बचाने के लिए अनंत सिंह, आनंद मोहन और प्रहलाद यादव का सहारा लिया। ये बाहुबाली किसी जमाने में नितिश कुमार को फूटी आंख नहीं सुहाते थे। अनंत सिंह जेल में है। उनकी पत्नी नीलम देवी विधायक है। उन्होंने राजद का पाला बदल सता का दामन थामा। नितिश कुमार की सरकार बचायी। आनंद मोहन जेल से छूटे है। उनके बेटे चेतन आनंद विधायक है। आनंद मोहन के बाहुबल को नितिश हमेशा चुनौती देते रहे। लेकिन उन्होंने आखिर अपनी सरकार बचाने के लिए आनंद मोहन का सहारा लिया, उनके बेटे का वोट उन्हें मिला। चेतन आनंद जो राजद के विधायक थे वे सरकार के साथ चले गए।
निश्चित तौर पर इस सारे घटनाक्रम के दौरान सबसे ज्यादा मजबूत होकर राजद के नेता तेजस्वी यादव उभरे है। नितिश कुमार के साथ गठबंधन के दौरान उन्होंने अच्छा काम किया और लालू यादव के जंगल राज की परछाई से निकलने की कोशिश की। उनका ए टू जेड की राजनीति अब बिहार में प्रभाव दिखा रही है। विधानसभा मे नितिश कुमार के विश्वास मत के दौरान तेजस्वी यादव ने काफी शानदार भाषण दिया और इसकी सराहना उनके विरोधी भी कर रहे है। उन्होने अपने भाषण के दौरान कोई उग्रता नहीं दिखायी। उन्होंने काफी शालीनता से सता पक्ष को जवाब दिया और यही जवाब सता पक्ष को निरुतर कर गया। तेजस्वी ने कहा कि क्रेडिट लेने पर सवाल उठाया जा रहा है। तेजस्वी ने साफ शब्दों में कहा कि उन्होंने जो क्रेडिट लिया वो जायज था। बिहार में गठबंधन की सरकार ने जो काम किया उसका क्रेडिट सिर्फ मुख्यमंत्री नहीं ले सकते है। क्योकि जिन विभागों ने काम किया था वो उनका विभाग था, मंत्री उनके थे। तेजस्वी ने अपने भाषण के दौरान तंज कसा कि क्या मोदीजी गारंटी लेंगे कि यह सरकार फिर से पलटी नहीं मारेगी।
हालांकि तमाम उठापठक के बीच अहम चिंता यह है कि राजनेता सत्ता प्राप्त करने के लिए लड़ाई ल़ड़ रहे है। लेकिन राज्य आज भी देश के गरीब राज्यों में गिना जाता है। किसी जमाने में बंगाल का हिस्सा रहा यह राज्य आज भी बदहाली की स्थिति में है। ब्रिटिश राज के दौरान बिहार अलग राज्य न होकर बंगाल का हिस्सा था और लंबी मांग के बाद ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में बिहार (आज के ओडिशा और झारखंड) को बंगाल से विभाजित कर एक राज्य बनाने की घोषणा की थी। 22 मार्च 1912 को बिहार को बंगाल से अलग कर एक नया प्रांत बनाया गया था और बाद में 1935 में ओडिशा (उस वक़्त उड़ीसा) को बिहार से अलग एक नए प्रांत का दर्ज़ा दिया गया। इसके बाद फिर 15 नवंबर 2000 को बिहार के दक्षिण हिस्से को अलग कर झारखंड के तौर पर एक नया राज्य बनाया गया, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उड़ीसा और झारखंड जैसे राज्य बिहार से आगे निकलने की कोशिश में है, लेकिन बिहार को लेकर गंभीर चिंता यहां के राजनेताओं ने नही की। 
आज 21 वीं सदी में भी बिहार की हालत बदहाल है। राज्य में लगभग 1 करोड़ खेती से जुड़े है जो राज्य के लगभग 8 प्रतिशत है। वहीं 2 करोड़ के करीब लोग श्रमिक है। राज्य के 63.74 फीसदी यानी करीब 29.7 लाख परिवार रोजाना 333 रुपये से कम यानी 10,000 रुपये मासिक से कम पर गुजारा करते हैं। वहीं 34.13 फीसदी या एक तिहाई से अधिक लोग रोजाना 200 रुपये या उससे कम पर गुजर बसर करते हैं। ये आंकड़े बताते है कि राज्य के नेताओं और शासनतंत्र ने राज्य के विकास के लिए कोई खास काम नहीं किया। दिलचस्प बात यह है कि इन आंकड़ों के बाद भ  राज्य के तमाम नेता बड़े बड़े दावे करते है। बिहार की इस बदहाली के लिए तमाम राजनीतिक दल और इसके नेता जिम्मेवार है। हाल ही मे विश्वासमत के दौरान यह दिखा किस तरह से विधायकों को तोड़ने की कोशिश हुई, पैसे के लेनदेने के आरोप लगे और अब तो इस मामले में गिरफ्तारी भी हो चुकी है। ये तमाम घटनाएं यह दिखाती है को बिहार का एक तबका खासा अमीर हो गया, जबकि एक बड़ा तबका खासा गरीब है। इसके लिए राज्य के तमाम नेताओं को आत्ममंथन कर राज्य के विकास के लिए काम करना होगा।
(राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तंभकार)

उत्तरखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी ने किया राइजिंग इंडिया डेवलपमेंट एक्सपो का उद्घाटन

नई दिल्ली। मंत्री ने बेहतर स्वास्थ्य के लिए मण्डया/बाजरा अपनाने पर जोर दिया तथा आजादी के 100वें वर्ष मानी 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है। यह दृष्टिकोण नार्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, पर्यावरणीय स्थिरता और सुशासन सहित विकास के विभित्र पहलुओं को शामिल करता है। आज माननीय मंत्री जी ने इंडिया एक्सपी सेंटर एवं मार्ट ग्रेटर नोएडा दिल्ली एनसीआर में राइजिंग इंडिया डेवलपमेंट एक्सपो का उद्घाटन किया। यह प्रदर्शनी 22 में 24 फरवरी 2024 तक प्रदर्शित रहेगी। अपने उद्घाटन भाषण में मंत्री ने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य और पोषण के लिए बाजरा अपनाने की सलाह दी, वह प्रदर्शनी में प्रदर्शित मशीनरी और उपकरणों ने बहुत प्रभावित हुए।

उपरोक्त एक्सपो का आयोजन पिक्सी एक्सपो मीडिया एवं ग्लोबल मिडिया ग्रुप द्वारा इंडिया एक्सपो सेंटर एवं मार्ट, ग्रेटर नोएडा में किया जा रहा है। सी में जधिक संगठन जपने उत्पादों, भविष्य की रणनीति जऔर परिवर्तनकारी पहल के साथ भाग ले रहे हैं जो हमारे राष्ट्र की प्रगति को आगे बड़ा रहे हैं क्योंकि हम अगले कुछ वर्षों में एक विकसित अर्थव्यवस्था की ओर यात्रा कर रहे हैं। यह एक्सपो प्रभावशाली सरकारी योजनाओं को प्रदर्शित करने और भारत के भविष्य को आकार देने के लिए एक अनूठा मंच प्रदान करता है। इस मेगा इवेंट में लगभग 30 एमएसएमई, 15 राज्य सरकार के बागवानी बोर्ड और अन्य उद्योगों के 60 मे अधिक निजी प्रमुख कम्पनीयां भाग ले रहे हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआईआर कई नबीन उत्पाद प्रदर्शित करेगा जो किसानों के निए उपयोगी होंगे बऔर खेती की प्रक्रिया की आगान बनाएंगे।

पृथ्वी विज्ञान हमारे रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, मौसम विज्ञानी मौसम का अध्ययन करते हैं और खतरनाक तुफानों पर नजर रखते हैं। जलविज्ञानी पानी का अध्ययन करते हैं और बाड़ की चेतावनी देते हैं। भूकंपविज्ञानी भूकंपों का अध्ययन करते हैं और यह अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं कि वे कहाँ टकराएँगे। यह भविष्यवाणी जब किसानों को कई तरह में मदद कर रही है।
बाजरा, उपभोक्ताओं, किमानों और पर्यावरण को लाभ पहुंचाता है। वे स्वस्थ आहार का एक अच्छा स्रोत हैं एवं वे कृषकों और जलवायु को लाभ पहुँचाते हैं कम पानी वाले होते हैं और नियमित रूप से खेती करने में सक्षम होते हैं।

सरकार की योजना देश-विदेश में कई कार्यक्रम आयोजित करने की है बाजरा और अन्य पोषक अनाजों को लोकप्रिय बनाने के लिए। इसके अलावा, सभी राज्य सहित भारत सरकार के मंत्रालय/विभाग सरकारों के समन्वय से पोषक अनाजों को बढ़ावा देंगे। संयुक्त राष्ट्र के जादेश पर भारत में 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष पोपित किया। भारत सरकार की पहन गहन बाजरा संवर्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा के लिए सरकार में बाजरा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं जैसे कि घरेलू और वैश्विक मांग पैदा करना और पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराना। बाजरा के पोषण मूल्य को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने बाजरा को भी पोषक तत्व के रूप में अधिसूचित किया है।

बाजरा मूल्य श्रृंखला में हजारों स्टार्टअप काम कर रहे हैं भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान ने 250 स्टार्टअप शुरू किए हैं। बाजरा के महत्व पर जोर देते हुए नाथों साधनहीन किसानों के लिए भोजन और पाउडर की आपूर्ति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बाजरा पारंपरिक भोजन है एशिया और अफ्रीका में 59 करोड लोग। बाजरा ही एकमात्र ऐसी फसल है जो भविष्य में भोजन, चारा, ईंधन, कुपोषण, जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों का गमाधान करेगी। बाजरा विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, कैल्जियम, से भरपूर होता है नौह पोटेमियम, मैग्रीशियम, जस्ता और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले बाजरा होते हैं गेहूं से एलर्जीध्क्षसहिष्णु बच्चों के लिए उपयुक्त हैं। बाजरा उगाने के कई फायदे हैं: न्यूनतम वर्षा आधारित फसल होना उर्वरकों का उपयोगय कोई कीटनाशक नहीं क्योंकि वे कीटों के हमले के प्रति कम संवेदनशील होते हैंप बाजरे के बीजों को वर्षों तक भंडारित किया जा सकता है, जिससे सुखे में भी फायदा होता है।

माननीय मंत्री जी ने सुझाब दिया कि किसानों को आमन्दनी बड़ानें के लिए पारम्परिक खेती से जैविक खेती एवं बागवानी की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिये। इस सम्बन्ध में सरकार के विभिन्न स्किमों को किसानों तक पहुचानें के लिए इस तरह के आयोजन लगातार होते रेहने चाहिए इस सम्बन्ध में आयोजकों के सफल प्रयास के लिए मंत्री जी ने ग्लोबल मिडिया के मी.ई.ओ श्री चालिन्द्र कुमार जी एवं उनकी पुरी टिम को धन्यवाद दिया।

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024

निगम पार्षद हाजी समीर की लापरवाही का हर्जाना भर रहे हैं बुलंद मस्जिद, शास्त्री पार्क निवासी

असलम अल्वी

गांधी नगर विधानसभा के शास्त्री पार्क वार्ड नंबर 213 जिसके निगम पार्षद कांग्रेस पार्टी के हाजी समीर मंसूरी हैं। यहां की जनता ने भाजपा व आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को अपना निगम पार्षद नहीं चुना बल्कि कांग्रेस के प्रत्याशी हाजी समीर को निगम पार्षद चुना ताकि यह शास्त्री पार्क वार्ड के ही निवासी हैं तो यह शास्त्री पार्क की ओर ज्यादा ध्यान देंगे पर उन्हें क्या बता था कि जिसे वह निगम पार्षद बना रहे हैं वह ही उनके साथ सौतेला व्यवहार करेंगे।
इन्हें सबसे ज्यादा वोट बुलंद मस्जिद कॉलोनी के निवासियों ने दिया था ताकि मुस्लिम बहुल इलाका होने की वजह से यह मुस्लिम प्रत्याशी इनकी परेशानी को कम करने में मील का पत्थर बनेंगे पर उन्हें क्या पता था कि जो वह सोच रहे हैं उसके उल्ट वह उनके लिए ही नुकसानदायक साबित होंगे।

हाजी समीर से पहले यहां से भाजपा से निगम पार्षद रोमेश गुप्ता थे जिन्हें यहां से मात्र 351 वोट मिले थे पर उन्होंने बुलंद मस्जिद कॉलोनी को कभी अकेला नहीं छोड़ा। उनके कार्यकाल में सफाई व्यवस्था कभी खराब नहीं हुई। मगर अब यहां चारों ओर आप गंदगी का ढेर देखें और उनके बीच जीवन गुजरते लोगों को। यहां की सफाई व्यवस्था से यहां के निगम पार्षद को कोई लेना देना नहीं। उनसे यहां के लोग कई बार सफाई व्यवस्था दुरूस्त करवाने के लिए कह चुके हैं पर वह निगम में आम आदमी पार्टी की सरकार को ही दोषी ठहरा देते हैं, वह कहते हैं कि हमारे पास फंड नहीं तो हम काम कैसे करवाएं। सफाई कर्मचारी बढ़ाएं नहीं जा रहे हैं तो मैं क्या करूं।

जब तक हाजी समीर को वोट चाहिए था तो उन्होंने यहां की सफाई व्यवस्था और भाजपा व आप को ही निशाना बना रखा था कि यह लोग काम नहीं कर रहे हैं। आप लोग मुझे जीताकर लाओ मैं आपकी कॉलोनी को चमन बना दूंगा पर अब हाल यह है कि डी-ब्लॉक में सरकारी स्कूल, कब्रिस्तान, बाबा जलालुद्दीन की दरगाह, डीडीए पार्क व गौसिया मस्जिद है पर यहां पर आने जाने वाले लोगों को काफी परेशानी होती है क्योंकि जब नाला ओवरफलो होता तो सारा पानी रोड पर आ जाता है जिसकी वजह से यहां आना जाना मुश्किल हो जाता है।

जब यहां के लोगों से बात करने की कोशिश की लोगों ने कैमरे पर बात करने से मना कर दिया मगर दबी जुबान में निगम पार्षद व निगम कर्मचारियों को वह बुरा-भला ही कहते नजर आए। उन्होंने ने कहा आप हमसे यहां की सफाई व्यवस्था के बारे में सवाल करोगे उसके बाद निगम के कर्मचारी या निगम पार्षद के लोग आकर हमें परेशान करेंगे।

इसी बीच हमें यहां कांग्रेस के कार्यकर्ता मिले उन्होंने भी कैमरे पर कुछ बोलने से मनाकर दिया मगर कांग्रेस कार्यकर्ता व समाजसेवी इजहार सलमानी ने हमसे बात की और यहां की परेशानी के बारे बताया।








 




गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

क्यों बिखर रही है कांग्रेस और इंडिया गठबंधन

बसंत कुमार

अभी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री व कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक चवहा न को कांग्रेस से त्याग पत्र देकर भाजपा जॉइन किये कुछ ही घंटे नही बीते की कांग्रेस के सचिव और पूर्व प्रधान मन्त्री लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र विभाकर शास्त्री कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा मे शामिल हो गए, भाजपा जॉइन करने के तुरंत बाद अशोक चवहान को महाराष्ट से राज्य सभा का टिकट भी मिलगया और हो सकता है विभाकर शास्त्री को उत्तर प्रदेश से लोकसभा का टिकट भी मिल जाये। वर्ष 2024 के आम चुनावो मे नरेंद्र मोदीजी को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस ने कई दर्जन दलों के साथ मिलकर इंडिया  गठबंधन तैयार किया और उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस इस महा गठ बंधन के साथ सत्ता पार्टी को मजबूत चुनौती देगी, पर ऐसा नहीं हुआ महागठबंधन के प्रधानमंत्री पद के दावेदर नितीश कुमार रातोरात पलटी मारते हुए एन डी ए मे शामिल होकर सरकार बना ली। टी एम सी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने बंगाल में कांग्रेस और महागठबंधन के साथियों के लिए कोई भी सीट छोड़ने के बजाय अकेले ही लड़ने का फैसला किया है और ऐसा ही फैसला उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ सीट बटवारे पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कर लिया है और रही सही कसर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पंजाब और दिल्ली में सभी सीटो पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार खड़ी करने की घोषणा कर के पूरी कर दी है अर्थात इंडिया गठबंधन बनने से पहले ही टूटता नजर आ रहा है। पर कांग्रेस के लिए महा गठबंधन को बचाने से पहले अपनी पार्टी को बचाना ज्यादा महत्व पूर्ण है क्योकि हर रोज उनके एक न एक कद्दावर नेता पार्टी छोड़कर भाग रहे है। 

लोक सभा चुनाव में जुटी कांग्रेस को रोजाना एक न एक झटका लग रहा है यह पता ही नहीं चल पाता कि कौन नेता कब पार्टी का साथ छोड़ दे, क्या महाराष्ट्र, क्या मध्य प्रदेश, क्या कर्नाटक सहित सभी राज्यो मे कांग्रेस नेताओ का पार्टी छोड़ने का सिल सिला जारी है 10-12 वर्ष पहले तक कांग्रेस के किसी बड़े समारोह में राहुल गाँधी के पहुँचते ही उन्हे ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवडा, आर पी एन सिंह, जितिन प्रसाद समेत नेता उन्हे घेर लेते थे पर आज ये सभी नेता कांग्रेस और राहुल गाँधी दोनों का साथ छोड़ चुके हैं। अभी यह स्थिति है कि राहुल गाँधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के तीन नेताओ ने पार्टी छोड़ दी है। कांग्रेस पार्टी के अंदर जो हल चल चल रही है वह नई नही है यह अंतरकलह कई सालों से चल रही है जिसको सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और मल्लिकारजून खड़गे तक रोकने मे असफल दिखाई दे रहे है।

सोनिया गाँधी के करीबी माने जाने वाले गुलाम नबी आजाद, कैपटन अमरिंदर सिंह, रीता बहुगुणा जोशी आदि कांग्रेस छोड़कर या तो अपनी पार्टी बना चुके है या भाजपा का दामन पकड़ चुके है। इतना ही नहीं राहुल गाँधी के करीबी माने जाने वाले उनके सिपहसलार सुश्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी, जितिन प्रसाद, अशोक तंवर, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर, अशोक चौधरी, हेमंत विश्व शर्मा, सुनील झाखड, अश्वनी कुमार जैसे बड़े नेता पार्टी को अलविदा कह चुके है। इससे पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता जो चार दशको से पार्टी के थिंक टैंक का हिस्सा रहे कपिल सिब्बल  कांग्रेस छोड़कर, सपा के टिकट पर राज्य सभा सांसद बने। यदि देखा जाए तो लालू प्रसाद यादव की आर जे डी और सिब्बु सोरेन की झार खण्ड मुक्ति मोर्चा ही कांग्रेस के विष्वशनिय साथी के रूप में बचे है और इंडिया गठबंधन के अन्य साथी मौके की नजाकत के अनुसार कांग्रेस के साथ व दूर खड़े रहते है।

जहां तक भाजपा का प्रश्न है तो उनके पास नरेंद्र मोदीजी जैसा नेतृत्व है जिसने अपनी कड़ी मेहनत और दूर दर्शिता से अपने 9 वर्षो के कार्यकाल में देश को विश्व की 5वीं आर्थिक महाशक्ति के रूप में खड़ा कर दिया है और निकट भविष्य में देश के किसी भी दल मे उनके नेतृत्व को टक्कर देने वाला कोई नजर नही आ रहा और भाजपा बगैर अपना कुनबा बढ़ाये वर्ष 2024 के चुनावो मे पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने वाली है फिर अशोक चव्हाण जैसे नेता जिन्हे आदर्श घोटाले के आरोप के चलते मुख्यमन्त्री के पद से त्याग पत्र देना पड़ा था को पार्टी मे इतनी गर्मजोशी से लेकर राज्य सभा का टिकट क्यो दे दिया गया, ऐसे विवादित लोगो को पार्टी मे लेने से भाजपा की पार्टी विथ ए डिफ्रेंस वाली छवि पर धक्का लगेगा, जो लोग विगत कुछ वर्षो मे कांग्रेस छोड़कर भाजपा की शरण मे आये है उनमे से अधिकांश कांग्रेस मे लंबे समय तक रहे है और कांग्रेस शासन में पद और प्रतिष्ठा पाते रहे है।

आज जो नेता कांग्रेस को डूबता हुआ जहाज मानकर पार्टी को छोड़कर भाग रहे है और भाजपा की शरण में आ रहे है क्या भरोषा है कि भविष्य मे दुर्भाग्य से भाजपा सत्ता से हटने लगे तो ये पुन: भाग खड़े हो क्योकि इनमे से अधिकांश चुनाव के समय भाजपा मे टिकट मिलने और सांसद बनने के लोभ मे आ रहे है और पार्टी भी दशकों से परत के लिए काम कर रहे कार्य कर रहे कर्मठ कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज कर के इन भगोड़े अवसर वादियों को उपकृत कर रही है। इससे पार्टी के लिए काम कर रहे समर्पित कैडर कार्य कर्ताओ का वह वर्ग जो पार्टी की रीतियों और नीतियों के लिए मर मिटता है समाप्त हो जायेगा। इस तथ्य पर पार्टी नेतृत्व को सोचना होगा।

स्वतंत्र भारत के 7 दशक के राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस एक बार नही तीन तीन बार सत्ता से बाहर हुई है और हर बार पार्टी नेतृत्व ने अपनी संगठन क्षमता के बल पर शानदार वापसी की है और कभी भी इतने बड़े पैमाने पर कांग्रेस के बड़े बड़े नेता पार्टी छोड़कर नही भागे है। इस समय कांग्रेस के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपने गठबंधन इंडिया और कांग्रेस को बिखरने से रोकना है, इसके लिए कांग्रेस नेताओ को आत्मावलोकन करना होगा कि क्या कारण है कि डेढ़ सौ वर्ष पुरानी पार्टी इस प्रकार बिखर रही है अगर यह रोका नही गया तो नरेंद्र मोदी जैसे कुशल और मेहनती नेता के नेतृत्व मे भाजपा को तीसरी बार सत्ता मे आने से रोकना विपक्ष के लिए असंभव होगा।

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/