शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

क्या राहुल की हिन्दुत्व छवि से कांग्रेस भाजपा को चुनौती दे सकेगी

 

अवधेश कुमार

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की तीन दिवसीय गुजरात दौरा इन दिनों चर्चा में है उसका एक प्रमुख कारण उनका मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करना है। हालांकि अपने भाषणों में उन्होंने मोदी सरकार की हर मुद्दे पर आलोचना की और वो खबरों में आईं भीं, लेकिन सबसे ज्यादा बहस यदि हो रही है तो उनकी मंदिर यात्राओं पर। कांग्रेस उपाध्यक्ष तीन दिन की गुजरात यात्रा के दौरान पांच मंदिरों में गए और राजकोट तथा जामनगर में गरबा में शामिल हुए। राहुल ने 25 सितंबर को द्वारकाधीश मंदिर में भगवान कृष्ण की पूजा कर अपनी यात्रा आरंभ  की और एक हजार सीढ़ियां चढ़कर चामुंडा देवी के मंदिर भी गए। वे पटेल समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले कागवाड गांव के खोडलधाम भी गए। यहां लेउवा पटेल समुदाय के लोगों ने भव्य मंदिर बनाया है। राजकोट लौटने पर राहुल गांधी जलाराम बापा के मंदिर भी गये। इस मंदिर में जाने का उनका कोई पूर्व निर्धारित कार्यक्रम नहीं था। कोई नेता सामान्यतः किसी मंदिर या मस्जिद में जाता है तो इसमें कोई विशेष चर्चा की बात होनी नहीं चाहिए। किंतु यदि आप चुनावी दौरे पर निकले हैं, आपकी चुनावी सभाएं हो रहीं हैं और उनके दौरान आप ऐसा करते हैं तो इसका राजनीतिक अर्थ निकाला जाना स्वाभाविक है। राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों को पता था कि इसका राजनीतिक अर्थ निकाला जाएगा। सच कहा जाए तो जानबूझकर उन्होंने ऐसा किया ताकि इसकी ठीक से चर्चा हो।

विश्लेषक इसे नरम हिन्दुत्व कार्ड नाम दे रहे हैं। यानी भाजपा की छवि कठोर हिन्दुत्व की है तो कांग्रेस कम से कम नरम हिन्दुत्व का संदेश देकर वोट पाने की कोशिश कर रही है। राहुल की इस यात्रा पर राज्य कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोषी का बयान है कि भाजपा और आरएसएस के लोग जानबूझकर कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताते हैं। राहुल का मंदिरों का दौरा इसी हमले का जवाब था। कांग्रेस प्रवक्ता के ऐसा कहने के बाद क्या इसका कोई और विश्लेषण की आवश्यकता रह जाती है? हालांकि पता नहीं दोषी का उसके बाद कोई बयान नहीं आया। हां, कांग्रेस के प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने अवश्य कहा कि कांग्रेस सभी धर्माे को समान रूप से सम्मान देती है। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जीत के बाद इंदिरा गांधी ने अंबा जी के दर्शन किए थे। हम आश्वस्त हैं कि 22 साल बाद गुजरात में कांग्रेस की वापसी होगी। इसीलिए राहुल गांधी मंदिरों में जाकर आशीर्वाद ले रहे हैं। प्रश्न है कि क्या वाकई राहुल गांधी का हिन्दुत्व कार्ड या यह संदेश देना की हिन्दू धर्म में हमारी भी पूरी आस्था है कांग्रेस के लिए वोट के रुप में फलदायी होगा? आखिर अंततः उद्देश्य तो यही है।

राहुल गांधी केवल भक्तिभाव से तो मंदिरों में गए नहीं थे। वह भी सौराष्ट्र के इलाके में जहां पटेल आरक्षण के लिए आंदोलन करने वाले हार्दिक पटेल ने उनका स्वागत किया। उद्देश्य तो यही हो सकता है कि पटेलों की थोड़ी बहुत जो नाराजगी भाजपा से है उसका लाभ उठाया जाए। पटेल कई कारणों में एक हिन्दुत्व के कारण भी भाजपा को वोट दे देते हैं इसलिए स्वयं की भी हिन्दुत्व की छवि पेश करो। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की अब तक की सबसे बुरी पराजय के बाद ए. के. एंटनी की अध्यक्षता में कारणों की जांच के लिए एक समिति बनी थी। उसकी रिपोर्ट हालांकि सार्वजनिक नहीं हुई,लेकिन यह माना जा रहा है कि उसमें एंटनी ने साफ कहा है कि कांग्रेस की छवि मुसलमान समर्थक की हो गई थी इसलिए हिन्दू उससे नाराज हो गए थे और वे भाजपा के साथ चले गए। उसके बाद से कांग्रेस इस छवि को सुधारने की कोशिश कर रही है। उसे करना भी चाहिए। किंतु कांग्रेस की समस्या है कि वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकती। किसी कांग्रेसी नेता से पूछिए कि आप हिन्दुत्व में विश्वास करते हैं तो उसके लिए हां कहना कठिन हो जाएगा। हालांकि हिन्दुत्व पर भाजपा भी पहले की तरह मुखर नहीं है, लेकिन वह समय-समय कुछ मुद्दों या घटनाओं के मामले में जो स्टैण्ड ले लेती है या नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में परोक्ष रुप से जो संकेत दे देते हैं उससे पहले की उसकी निर्मित छवि कायम रहती है। फिर भाजपा को समर्थन देने वाले संघ परिवार के दूसरे घटकों के लिए हिन्दुत्व पर मुखर होने में कोई समस्या नहीं है। वे काफी मुखर रहते हैं और इसका लाभ भी भाजपा को मिल जाता है।

कांग्रेस के साथ ऐसी स्थिति नहीं है। हालांकि राहुल गांधी ने जब उत्तर प्रदेश चुनाव के पूर्व खाट सभाए आरंभ की थी तो अपनी यात्राओं में वे मंदिर जाते थे। अयोध्या के संकटमोचन मंदिर का पूरा दृश्य देश के सामने आया था। किंतु वे संतुलन बनाने के लिए मस्जिद भी जाते थे। यह कांग्रेस की मनोग्रंथि है। वह भाजपा से मुकाबला करने के लिए एक कदम आगे बढ़ती है,लेकिन उसका सेक्यलूरवाद आड़े आ जाता है और फिर वह संतुलन बनाने लगती है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को इससे क्या मिला चुनाव परिणाम हमारे सामने है। हालांकि गुजरात में उन्होेंने ऐसा नहीं किया है। वहां संतुलन बनाने के लिए वो किसी मस्जिद में नहीं गए। किंतु क्या पता आने वाली यात्राओं में वे ऐसा करें। वैसे कांग्रेस को लगता है कि गुजरात के मुसलमान भाजपा को यदि वोट नहीं करेंगे तो जाएंगे कहां। यह उसकी गलतफहमी भी हो सकती है।

इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस का एक बड़ा संकट सेक्यूलरवाद को लेकर उसकी छवि है। सेक्यूलरवाद का वह अर्थ हमारे संविधान निर्माताओं ने नहीं दिया जिसे कांग्रेस या अन्य पार्टियां प्रचारित करतीं हैं। सेक्यूलरवाद का अर्थ सर्वधर्म समभाव से था। सेक्यूलरवाद का अर्थ था कि राज्य किसी धर्म विशेष को न प्रश्रय देगा न विरोध करेगा। यानी सभी धर्मों को समान रुप से आदर करेगा। दुर्भाग्य से सेक्यूलरवाद का अर्थ हमारे देश में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण हो गया। हिन्दुओं की समस्याओं पर खुलकर बोलना और हिन्दुत्व से जुड़े मुद्दों पर मुखर होना सेक्यूलर विरोधी या सांप्रदायिकता का पर्याय बना दिया गया। यह सेक्यूलरवाद के नाम पर विकृत व्यवहार था। भाजपा ने 1980-90 के दशक से इस पर जोरदार प्रहार करना आरंभ किया और भारतीय राजनीति की स्थापित चूलें हिल र्गइंं। कांग्रेस की सेक्यूलर ग्रंथि एक सीमा से आगे उसे जाने ही नहीं दे सकती। इसलिए राजनीति में वह भाजपा को कम से कम इस समय इस पर मात देने की स्थिति में नहीं है। हालांकि कांग्रेस ऐसा कर दे तो भारत की राजनीति में फिर से एक बड़ा परिवर्तन आ सकता है। किंतु कोई कांग्रेसी नेता यह कहने को तैयार नहीं होगा कि अयोध्या में विवादित स्थान पर राम मंदिर बनना चाहिए। भाजपा के नेता भले इस पर कुछ करें नहीं परं ऐसा बोलने में उन्हें कोई झिझक नहीं है। तो फिर कांग्रेस हिन्दुत्व के धरातल पर भाजपा का मुकाबला कहां से कर सकती है।

वैसे कांग्रेस का यह रवैया साबित करता है कि विचारधारा को लेकर वह गहरे उहापोह का शिकार है। यानी वह तय ही नहीं कर पा रही है कि कांग्रेस की विचारधारा होगी क्या। इसका असर केन्द्र से लेकर प्रदेश स्तर तक पार्टियों पर पड़ा है। एक संभ्रम की स्थिति कायम है और कांग्रेस के नेता कार्यकर्ता भविष्य को लेकर गहरे हताशा के शिकार हैं। आप मंदिरों में पूजा-अर्चना करके इस हताशा से पार्टी को नहीं उबार सकते। गुजरात को ही लीजिए तो वहां पार्टी बिखर रही है। बड़े-बड़े नेता और उनके साथ कार्यकर्ताओं का समूह पार्टी छोड़कर जा रहा है। उसे कैसे रोका जाए यह उसके सामने सबसे पहला प्रश्न है। राहुल गांधी के तीन दिवसीय दौरे में इस पर किसी तरह काम किए जाने की कोई सूचना नहीं है। राज्य सभा के चुनाव में अहमद पटेल किसी तरह जीत पाए। उनकी अपनी पार्टी ने ही उनको संकट में डाल दिया था। पिछले चुनाव में भाजपा को 47.85 प्रतिशत मत मिला था, जबकि कांग्रेस को 38.93 प्रतिशत। भाजपा में यदि गुजरात परिवर्तन पार्टी के 3.63 प्रतिशत मत को जोड़ दे ंतो वह 51 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है। मतों के इतने बड़े अंतर को पाटने लिए केवल मंदिर जाकर नरम हिन्दुत्व का संदेश देना किसी मायने में असरकारी नहीं हो सकता है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

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