शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

कश्मीर में आतंकवाद की इस प्रवृत्ति को ध्वस्त करना होगा

 

अवधेश कुमार

जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का मारा जाना सामान्य घटनाएं होती हैं। किंतु कई बार ऐसे आतंकवादी मारे जाते हैं जिनका संकेत और संदेह बहुत बड़ा होता है। हाल में कुपवाड़ा के हंदवाड़ा में हिज्बुल मुजाहिदीन के 3 आतंकवादियों को मारा जाना ऐसी ही बड़ी घटना है। इसमें हिज्बुल का स्थानीय कमांडर मन्नान वशीर वानी भी शामिल था। मन्नान का मारा जाना लगभग वैसा ही है जैसा जुलाई 2016 में बुरहान वानी का खात्मा था। बुरहान वानी जिस तरह भटके कश्मीरी युवाओं के अंदर आतंकवाद के प्रति रोमांच पैदा करता था मन्नान भी वही स्थान ग्रहण करता जा रहा था। मन्नान आतंकवादी बनकर हथियार उठाने के पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भूगर्भशास्त्र में पीएचडी कर रहा था। बुरहान वानी इतना पढ़ा लिखा नहीं था इसलिए वह विचारों से उस तरह युवाओं को जेहाद के नाम पर प्रभावित नहीं कर सकता था जिस तरह मन्नान कर रहा था। इस्लाम की वहाबी विचारधारा का मन्नान ने गहरा अध्ययन किया थां। वास्तव में अपने अध्ययन और सोच के कारण वह स्थानीय युवाओं को आतंकवादी बनाने का सबसे बड़ा केन्द्रक हो चुका था। बिना पढ़ा लिखा आतंकवादी तो केवल संघर्ष कर सकता है लेकिन मन्नान वानी जैसा आतंकवादी विचार प्रक्रिया पर हाबी होकर उसे आतंकवादी बना देता है।

हालांकि आरंभ में हिज्बुल ने उसे कुपवाड़ा का ही कमांडर बनाया था लेकिन वह कुपवाड़ा के साथ दक्षिण कश्मीर के ही कुलगाम, पुलवामा और शोपियां में भी सक्रिय था एवं आतंकवादियों की भर्तियां कर रहा था। वह कश्मीर शरियत की बहाली का कट्टर समर्थक था। आतंकवादी बनने के बाद मनान वानी ने कश्मीर में जिहाद को सही ठहराते हुए सोशल मीडिया पर कई लेख लिखे। आप उसको पढ़ेंगे तो उसमें कश्मीर के हालात, इस्लाम और जिहाद पर ऐसी बातें लिखी हुईं हैं कि जिससे कश्मीर के मुस्लिम युवा आसानी से प्रभावित हो सकते हैं। सोशल मीडिया पर इसके पहले किसी आतंकवादी ने इस तरह के लेख नहीं लिखे थे। मारे जाने से करीब पंद्रह दिन पहले भी उसका एक लेख सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। सोशल मीडिया पर अंडर बैरेल ग्रेनेड लांचर लिए हुए उसकी तस्वीरें तथा उसके साथ इस तरह का विचार भारत एवं कश्मीर की व्यापक समझ न रखने वाले मुस्लिम युवाओं के लिए आतंकवादी बनने को प्रेरित करने के लिए पर्याप्त थे। हालांकि वह ज्यादा दिन पहले आतंकवादी नहीं बना था। 4 जनवरी 2018 तक उसका परिवार से फोन पर बातचीत हो रहा था। उसके बाद उसने फोन बंद कर दिया था। माना जा सकता है कि 5 जनवरी से वह पूर्ण आतंकवादी बन गया था। इस तरह उसके आतंकवादी यात्रा केवल नौ महीने चली। हाल के महीनों में सुरक्षा बलों की सुनियोजित रणनीति एवं चुस्ती के कारण आतंकवादियों की औसत आयु इससे भी कम हो गई है। वानी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगता है कि जैसे ही यह सूचना फैली कि सुरक्षा बलों ने उसे घेर लिया है भारी संख्या में लोग उसकी ढाल बनने निकल पड़े। सुरक्षा बलों पर पत्थरांे से हमले हुए, उनको हर तरह से रोकने की कोशिशें हुईं। सुरक्षा बलों को बड़ी कवायद करनी पड़ी। उन्हें दोनों तरफ संघर्ष करना पड़ा। यही नहीं उसकी मौत के बाद अलगाववादियों के सांझा मंच ज्वाइंट रजिस्टेंस लीडरशिप (जेआरएल) ने 12 अक्टूबर को कश्मीर बंद भी आयोजित किया।

स्थानीय पढ़े लिखे युवाओं का आतंकवादी बनने की प्रवृति गंभीर चिंता का विषय है। मन्नान वानी स्वयं भी मेधावी था तथा उसका परिवार भी शिक्षित। उसके पिता बशीर अहमद लेक्चरर हैं और एक भाई इंजीनियर है। उसने वॉटर एन्वायरमेंट एनर्जी एंड सोसाईटी विषय पर आईसेक्टर विश्वविद्यालय भोपाल में हुए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सर्वश्रेष्ठ पत्र प्रस्तुत करने का सम्मान भी अर्जित किया था। इस सम्मेलन में चीन, अमरीका और इंग्लैंड सहित विभिन्न मुल्कों के 400 से ज्यादा लोगों ने भाग लिया था। उसने मानसबल स्थित एक प्रतिष्ठित सैनिक स्कूल से 11वीं और 12वीं की पढ़ाई की थी। वानी को पढ़ाई के दौरान कई पुरस्कार भी मिले। वानी वर्ष 2011 से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से पढ़ाई कर रहा था, जहां उसने एम. फिल की पढ़ाई पूरी करने के बाद भूविज्ञान से पीएचडी में प्रवेश लिया। आज भी कॉलेज की वेबसाइट पर उसे मिले पुरस्कारों के साथ नाम दर्ज है। ऐसा युवा यदि आतंकवादी बन रहा है तो इसका अर्थ है कि कश्मीर के लोगों के बीच उससे ज्यादा इस्लामी कट्टरपंथ (रैडिकलाइजेशन) फैलाया जा चुका है जिसकी हम कल्पना करते है।  वानी की तरह अनेक युवा आतंकवाद की तरफ इसी कारण जा रहे हैं। वानी के बाद, तहरीक-ए-हुर्रियत के अध्यक्ष मोहम्मद अशरफ सेहराई का बेटा एवं एमबीए का छात्र जुनैद अशरफ सहराई भी आतंकवादी समूह में शामिल होने के लिए गायब हो गया था। बाबा गुलाम शाह बदशाह विश्वविद्यालय के बी.टेक के छात्र ईसा फजली जैसे दूसरे युवकों के आतंकवादी समूह में शामिल होने का पता भी इस वर्ष के आरंभ में ही चला था।

जम्मू-कश्मीर के सोपोर में पिछले 3 अगस्त को मुठभेड़ में मारा गया अल बद्र का आतंकवादी खुर्शीद अहमद मलिक भी काफी मेधावी छात्र था। मारे जाने के बाद सब-इंस्पेक्टर परीक्षा में उसके चयन का परिणाम आया। पिछले साल ही उसका बीटेक पूरा हुआ था। वह 31 जुलाई को घर पर यह कहकर निकला था कि कश्मीर प्रशासनिक सेवा का फॉर्म जमा करने जा रहा है। पता चला कि उसने ऑनलाइन फॉर्म तो जमा किया था, लेकिन घर नहीं लौटा। जाहिर है, उसे भी रैडिकलाइज किया गया था। उसने इंजीनियरिंग के बाद गेट परीक्षा भी पास की थी। आतंकवादी बनने वालों में गांदरबल का युवक रऊफ भी शामिल है जो सरकारी पॉलिटेक्निक में चौथे सेमेस्टर का स्टूडेंट है। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले एक अधिकारी इनामुल हक का भाई के भाई के आतंकवादी संगठन में शामिल होने की आशंका है। शोपियां जिले के द्रागुद गांव से ताल्लुक रखने वाला और श्रीनगर के एक कॉलेज से यूनानी मेडिसिन सर्जरी की पढ़ाई कर रहा शम्स-उल-हक मेंगनू 26 मई से लापता है। मेंगनू का भाई जम्मू-कश्मीर के बाहर अपनी सेवा दे रहा है। इसी साल अप्रैल में दक्षिण कश्मीर के शोपियां में सेना का एक जवान मीर इदरीश सुल्तान लापता हो गया था। बाद में खबर आई कि वह अन्य दो व्यक्तियों के साथ हिज्बुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया है।

जेहाद और आतंकवाद का विचार युवाओं एवं छात्रों में किस तरह फैल रहा है इसका प्रमाण 10 अक्टूबर को जालंघर के एक छात्रावास से मिला। पंजाब पुलिस और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जालंधर से तीन ऐसे छात्रों को गिरफ्तार किया जिनके संबंध जाकिर मूसा के संगठन अंसार गजवात-उल-हिंद से थे। इंस्टिट्यूट के हॉस्टल के एक कमरे से एक असॉल्ट राइफल समेत दो हथियार और विस्फोटक भी बरामद किए गए। वस्तुतः जेहादी समूहों ने छात्रों का जेहादीकरण करने के लिए ऑपरेशन स्टूडेंट शुरु किया है। इसके तहत कश्मीरी मुस्लिम छात्रों को रेडिकलाइज कर आतंक फैलाने की कोशिश हो रही है। दक्षिण कश्मीर में स्थानीय भर्तियां करने के साथ देश के दूसरे हिस्सों में भी पढ़ाई कर रहे कश्मीरी छात्रों को लक्षित किया जा रहा है। ये समूह ऐसे छात्रों की सूची तैयार करते हें जो कश्मीर के बाहर पढ़ाई कर रहे हैं। आतंकवादी समूहों के साथ उनके जो ओवरग्राउंड कार्यकर्ता है वे उनसे संपर्क कर उनको रैडिकलाइज करने की कोशिश करते हैं। सुरक्षा बलों ने ऐसे अनेक मेल पकड़े हैं जिनकी संवीक्षा से उन तक पहुंचना संभव हो रहा है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मन्नान वानी से भी इसी तरीके से संपर्क किया गया। उनको समर्थन भी है तभी तो वानी के मारे जाने के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों के एक वर्ग ने नमाज-ए-जनाजा पढ़ने की कोशिश की और उसे रोकने पर अस्वीकार्य नारे लगाए। 

सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार दक्षिण कश्मीर में शोपियां और पुलवामा जिले से ज्यादा युवा आईएसआईएस कश्मीर और असंर-गजवात-उल-हिंद जैसे आतंकवादी संगठनों में शामिल हो रहे हैं। सुरक्षा बलों की मानें तो इस साल अबतक 130 से अधिक स्थानीय युवा आतंकवादी बने। 2017 में इनकी संख्या 126 थी। 2010 के बाद यह सर्वाधिक संख्या है। जम्मू-कश्मीर सीआईडी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय आतंकवादियों की संख्या में इजाफा हुआ है। निश्चय ही यह स्थिति जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से संघर्ष तथा उसके समूल नाश करने के उद्देश्य को कठिन बनाता है। हालांकि सुरक्षा बलों के कारण आतंकवादी लगातार मारे जा रहे हैं किंतु जब तक इनके रैडिकलाइजेशन करने वाला ढांचा ध्वस्त नहीं किया जाता मुन्नान वानी जैसे न जाने कितने मेधावी छात्र आतंकवादी बनने के लिए तैयार होते रहेंगे।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः0112483408, 9811027208

 

 

 

 

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