बुधवार, 23 अगस्त 2017

सरकारी अस्पतालों की चिकित्सा प्रणाली में सुधार की तरफ ध्यान दे सरकार

आर के शर्मा

नई दिल्ली। हमारे देश के सरकारी अस्पतालों की बदहाल चिकित्सा व्यवस्था से सभी भली भांति परिचित हैं।सरकारी अस्पताल चाहे किसी राज्य का हो या केन्द्र सरकार का, सभी अस्पतालों में उपचार कराना आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों व चिकित्साकर्मियों की पर्याप्त संख्या में तैनाती न होना, स्ट्रेचरस व बैड्स की कमी और आईसीयू में गंभीर हालत में मरीजों के लिए वेंटिलेटर नहीं मिल पाने जैसी कई समस्याएं ऐसी हैं जिनसे कि देश के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में निम्न व मध्यम वर्ग के लोगों को रोजाना बड़ी तादाद में सामना करना पड़ रहा है लेकिन इसके बावजूद भी न तो केन्द्र और ना ही राज्य सरकारें इन समस्याओं के समाधान के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करती हैं। परिणामस्वरूप, चिकित्सकों व मरीजों के साथ ही उनके तीमारदारों में आए दिन कहीं न कहीं विवाद हो जाता है। हालांकि केन्द्र व राज्य सरकारें चिकित्सा के क्षेत्र में खर्च के लिए हर वर्ष अच्छा खासा बजट अस्पतालों के लिए जारी करती हैं किंतु इसके बावजूद भी उपरोक्त समस्याओं के कारण चिकित्सकों व मरीजों को अपने-अपने स्तर पर परेशानियों से जूझना पड़ रहा है लेकिन इस बात की जानकारी शायद केन्द्र व राज्य सरकारों के स्वास्थय मंत्रियों को नहीं हैं। बहरहाल, केन्द्र व राज्य सरकारों को चाहिए कि सरकारी अस्पतालों में व्याप्त इन सभी समस्याओं को गंभीरतापूर्वक एवं वास्तविक रूप में हल करने के लिए चिकित्सकों व चिकित्साकर्मियों की पर्याप्त संख्या में भर्ती करने के साथ ही स्ट्रेचर, बैड्स और वेंटिलेटर्स भी बढाने की दिशा में कार्य करें जिससे कि सरकारी अस्पतालों में उपचार के लिए जाने वाले मरीजों को बेहतर चिकित्सा सेवाएं मिल सकें।

-आर के शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रमुख समाजसेवी, नई दिल्ली।




शनिवार, 19 अगस्त 2017

ऐसी त्रासदी पर सरकार का रुख अफसोसजनक

अवधेश कुमार

 सामान्य स्थिति में यह कल्पना से परे है कि देश के किसी बड़े अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी हो जाए और छटपटाकर मासूमों की मौत होने लगे। चूंकि ऐसा हुआ है इसलिए हमें इसे स्वीकारना पड़ रहा है।  मौत के आंकड़ों पर मत जाइए। इसकी संख्या 30 हो 36 हो या 54 या 68....हमारे देश के होनहारों की इन मौतों का जिम्मेवार कौन है इस पर विचार कीजिए। उत्तर प्रदेश सरकार चाहे जो तर्क दे, वह भले कहे कि ऑक्सीजन की कमी से मौतें नहीं हुईं यानी जो मौतें र्हुइं उनका कारण बीमारी था न कि ऑक्सीजन की कमी। लेकिन सारी सूचनाएं यही बता रही हैं कि अस्तपाल में ऑक्सीजन की भयानक कमी हो चुकी थी। यह बात अस्पताल प्रशासन को पता भी था लेकिन समय रहते कोई कदम नहीं उठाया गया। कुछ तदर्थ कदम ऑक्सीजन सिलेंडर लाने के उठाए गए लेकिन वे नाकाफी थे। परिणामतः संवेदनशील वार्डों में मरीज ऑक्सीजन के अभाव में छटपटाकर मरते रहे और उनको बचाने का कोई ंइंतजाम नहीं था। इस नाते देखा जाए तो 10 और 11 अगस्त को जो मौतें हुईं उनमें कुछ बीमारी के कारण स्वाभाविक मौतें भी होंगी, लेकिन ज्यादातर मौतों को मानवनिर्मित त्रासदी कहना होगा। बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के प्रधानाचार्य को निलंबित कर दिया गया और उन्होेंने इस्तीफा भी दे दिया। किंतु क्या इतना ही पर्याप्त है? 9 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उस अस्पताल का दौरा हुआ था। उन्होंने कई घंटे की बैठक लेकर अस्पताल की सारी स्थिति का जायजा लिया था। यह आश्चर्य का विषय होना चाहिए कि उनके संज्ञान में ऑक्सीजन की कमी का मामला नहीं आया।

वास्तव में गोरखपुर और आसपास के स्थानों में जुलाई महीने से दिसंबर के बीच जापानी इंसेफ्लाइटिस का मामला बढ़ जाता है। इसके अलावा डेेगू, चिकनगुनिया, कालाजार आदि के मरीज भी अस्तपाल में आते हैं। चूंकि योगी आदित्यनाथ सांसद रहते हुए इसके लिए लगातार काम करते रहे हैं, इसलिए यह माना जा सकता है कि वे सारी समस्याओं से अवगत होंगे। एक निष्कर्ष तो यही है कि प्रधानाचार्च तथा अस्पताल के अन्य विभाग प्रमुखों ने ऑक्सीजन की कमी का मामला इनको नहीं बताया। अस्पताल को ऑक्सीजन आपूर्ति करने वाला संस्थान पुष्पा सेल्स लिमिटेड ने साफ कर दिया था कि 68 लाख रुपया से ज्यादा उसका बकाया हो चुका है और अगर धन नहीं मिला तो उसके लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति संभव नहीं होगी। यह पत्र केवल अस्पताल को ही नहीं लिखा गया। इसे महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाएं एवं स्वास्थ्य सचिव तक को भेजा गया। साफ है कि इस पत्र का संज्ञान जिस ढंग से लिया जाना चाहिए नहीं लिया गया। दूसरे, लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट संभालने वाले विभाग ने 3 अगस्त को अस्पताल प्रशासन को पत्र लिखा कि ऑक्सीजन खत्म हो रही है। इसका मतलब हुआ कि अस्पताल प्रशासन को 3 अगस्त से ही ऑक्सीजन खत्म होने का पता था। सरकार कह रही है कि 5 अगस्त को अस्पताल को पैसे दिए गए। लेकिन 9 अगस्त तक भुगतान नहीं किया गया। क्यों? जाहिर है, इसके पीछे कहीं न कहीं भ्रष्टाचार है। स्वास्थ्य विभाग कई अन्य विभागों की तरह हमारे देश में भ्रष्टाचार का गढ़ बन चुका है। एक-एक बिल के भुगतान के लिए घुस देने पड़ते हैं। जाहिर है, गैस आपूर्ति के लिए मिलने वाले बकाये में कइयों का हिस्सा रहा होगा। संभव है कंपनी ने वह हिस्सा नहीं दिया इसलिए उसका समय से भुगतान नहीं हुआ।

न तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी पत्रकार वार्ता में इस पहलू पर बात की, न स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने और न ही चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन ने। स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह की पत्रकार वार्ता सबसे निराशाजनक रही। वो जितनी देर बोल रहे थे उससे क्षोभ पैदा हो रहा था। बच्चों की मौत वाली इतनी बड़ी त्रासदी पर अफसोस प्रकट करने,उनके परिवार वालों को सांत्वना देने तथा बेहतरी का आश्वासन की जगह वे आंकड़ा गिनाकर यह बताने लगे कि इस मौसम में हर साल प्रतिदिन औसत 18 से 19 मौतें होतीं ही हैं। इसलिए जो मौतें हुईं उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। जरा सोचिए, ऐसी त्रासदी के समय जब देश भर में बच्चों की असमय मौत से गुस्से का माहौल है यदि आप इस तरह का बयान देंगे तो उससे गुस्सा बढ़ेगा या घटेगा? यह तो आग में पेट्रॉल डालने का बयान था। एक ओर घटना पर जांच बिठा दिया गया और दूसरी ओर मंत्री महोदय स्वयं यह कहते रहे कि ऑक्सीजन की कमी से मौत की बातें गलत है। तो फिर जांच का क्या मतलब है? यह वही बयान है जो अस्पताल प्रशासन तथा स्वास्थ्य महकमा उनसे दिलवाना चाहता था। बिना जांच हुए केवल अस्तपाल प्रशासन के कहने पर आपने यह बयान दे दिया! सच सबके सामने है। मृतकों के माता-पिता रोते-रोते बता रहे हैं कि ऑक्सीजन खत्म हो गया था और उनको अम्बू बैग से ऑक्सीजन देने की कोशिश की जाती रही। लोग थक जाते थे। उसमें बच्चों की मौत होने लगी, लेकिन मंत्री महोदय यह मानने को तैयार ही नहीं।

इसका अर्थ यही हुआ कि सरकारें बदल जातीं हैं लेकिन सत्ता का चरित्र आसानी से नहीं बदलता। सत्ता का चरित्र वही रहता है। मंत्री स्वयं मृतकों के परिजनों के पास जाकर उनसे समझने, उनको सांत्वना देने की बजाय, अपने दौरे में स्थानीय प्रशासन तथा अस्पताल प्रशासन से बताकर जो सूचना उनसे मिली उसके आधार पर बयान देने की पतित परंपरा का पालन कर रहे थे। उसमें सच्चाई उनके सामने आ नहीं सकता था। आखिर लोग चुनाव द्वारा सत्ता क्यों बदलते हैं? सत्ता का चरित्र बदलने के लिए ही न। यानी सरकार केवल अधिकारियों की सूचना और उसके परामर्श पर काम न करे। वह जनता से सीधे जुड़े। भाजपा को उत्तर प्रदेश के लोगों ने अपार बहुमत दिया है। उससे उम्मीद है कि वह सत्ता के चरित्र में बदलाव लाएगा। किंतु इतनी बड़ी त्रासदी में उसका रवैया पूर्व सरकारों वाला ही रहा है। किसी मंत्री ने मृतक परिवारों के पास जाने की जहमत नहीं उठाई। यह क्या है? इसका परिणाम है कि उनके पास वास्तविक सूचना नहीं आई। ऑक्सीजन की कमी का आलम तो यह था कि एक डॉक्टर इंसेफेलाइटिस वार्ड के प्रभारी डॉ. कफील खान जिन्हें प्राइवेट प्रैक्टिस करने के कारण अस्पताल से हटा दिया यगा है, छटपटाते हुए जगह-जगह फोन करते रहे। स्थानीय अखबारों की सूचना है कि जब किसी बड़े अधिकारी ने उनका फोन नहीं उठाया या कोई आश्वासन नहीं दिया तो वे अपनी कार लेकर निकल पड़े।  प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर दोस्तों से मदद मांगी। कार से 12 सिलेंडर लाए। फिर एक कर्मचारी की बाइक पर एसएसबी के डीआईजी के पास पहुंचे। उससे मिन्नतें कीं। वहां से 10 सिलेंडर मिले। सिलेंडर ढोने के लिए एसएसबी ने ट्रक भी भेजा। मोदी केमिकल्स नामक आपूर्तिकर्ता से बात की जिसका ठेका अस्पताल ने रद्द कर दिया था। वह नकद भुगतान पर ऑक्सीजन देने को तैयार हुआ। कहा जा रहा है कि डॉक्टर ने अपना डेबिट कार्ड देकर पैसे निकलवाए। इस प्रसंग की चर्चा यहां इसलिए आवश्यक है ताकि यह पता चल सके कि अस्पताल के अंदर की दशा क्या थी। बिल्कुल आपातस्थिति थी। ऐसी स्थिति में कोई यह दावा करे कि ऑक्सीजन के बिना किसी की मृत्यु नहीं हुई तो इसे कैसे स्वीकार कर लिया जाए।

हम यह नहीं कहते कि इसके पहले वहां मौतें नहीं हुईं हैं। मौत के जो आंकड़े मीडिया में आ रहे हैं वे ही बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वर्षों से वहां के लोग इन्सेफ्लाइटिस से अपने बच्चों को मौत के मुंह में जाते देखते रहे हैं। पूर्व की सरकारों को भी जिस तरह युद्ध स्तर पर इस मामले को लेना चाहिए था नहीं लिया गया। इसका एक बड़ा कारण तो यही माना जाएगा कि पूर्वांचल का क्षेत्र वर्षों से उपेक्षित रहा है। अगर वैसी मौतें राजधानी दिल्ली और मुंबई आदि में होने लगे तो पूरी सरकार पैरों पर खड़ी नजर आएंगी। गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर मेें हर वर्ष सैंकड़ों की संख्या में हुई मौतों की गूंज उस रुप में लखनउ या दिल्ली नहीं पहुंचती। सरकार बदलने के बाद स्थिति में बदलाव की उम्मीद थी। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर और आसपास के लोगों की उम्मीद ज्यादा बढ़ीं। ऐसा नहीं है उन्होंने कुछ नहीं किया, लेकिन जितना और जिस तरह किया जाना चाहिए था नहीं किया है। वैसे भी स्वास्थ्य महकमा हमारे देश में कई तरह की व्याधियों का शिकार है। स्वास्थ्य सेवा किसी सरकार की प्राथमिकता में होनी चाहिए। हमारे देश में यह प्राथमिकता कभी रही नहीं। जाहिर है, गोरखपुर की दिल दहलानेवाली त्रासदी अब भी प्रदेश एवं केन्द्र सरकार की आंखें खोलें तथा वहां की स्थानीय समस्या का तो निदान हो ही पूरी स्वास्थ्य सेवाओं का जीर्णोद्धार किया जाए।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

 

 

शनिवार, 12 अगस्त 2017

सुप्रीम कोर्ट ने एनएफएसए का पालन पूरे देश भर में करने का आदेश केंद्र सरकार को दिया, मनरेगा मामले में सुनवाई 5 दिसम्बर को

नई दिल्ली । स्वराज अभियान द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चल रही सूखा राहत याचिका में कई मुद्दे उठाये गये। जिसमें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, मनरेगा, किसानों को लोन, फ़सल नुक़सान मुआवज़ा आदि योजनों के क्रियान्वयन जैसे कई अहम मुद्दे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने 21 जुलाई 2017 को दिए गये हाल ही के आदेश में कई निर्देश जारी किये। जिसमें स्वतंत्र district grievance redress officers को नियुक्त करना, राज्य खाद्य आयोग, Vigilance committees और खाद्य सुरक्षा के तहत खाद्य वितरण सिस्टम के स्वतंत्र ऑडिट की व्यवस्था करनी थी। 

9 अगस्त 2017 की सुनवाई में कोर्ट ने इन सारे निर्देशों को सूखाग्रस्त राज्यों से आगे बढ़ाते हुए पूरे देश भर में लागू करने का आदेश दिया। इस सुनवाई में मुख्य फ़ोकस मनरेगा के क्रियान्वयन पर रहा। 

स्वराज अभियान ने निम्नलिखित बिंदुओं पर ऐफ़िडेविट फ़ाइल किया है: 

1. प्रोग्राम के लिए अपर्याप्त फ़ंड और केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के लेबर बजट में एक तिहाई से भी ज़्यादा की कटौती।

2. मज़दूरी देने में देरी। 

3. मजदूरी देने में हुई देरी का मुआवज़ा को केंद्र सरकार के लेवल से हटाकर ग्रामीण विकाश मंत्रालय द्वारा मुआवज़ा देने से इंकार। राज्य सरकार की देरी की वजह से मुआवज़े का 6% भी भुगतान नहीं। 

4. सोशल ऑडिट यूनिट के स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए कोई स्वतंत्र फ़ंड नहीं, जो कि सीएजी द्वारा निर्धारित मानक कि मनरेगा के ख़र्च का 0.5% सोशल ऑडिट में ख़र्च होना चाहिये, का भी उल्लंघन है। 

कोर्ट इन मामलों में आगे की सुनवाई 5 दिसम्बर 2017 को करेगा। यह बयान स्वराज अभियान द्वारा नरेगा संघर्ष मोर्चा, राइट टू फ़ूड कैम्पेन और Peoples’ Action for Employment Guarantee के असोसीएशन में जारी किया गया है।

शुक्रवार, 2 जून 2017

"डेंगू और चिकनगुनिया की रोकथाम" विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया


 संवाददाता

नई दिल्ली। "डेंगू और चिकनगुनिया की रोकथाम" विषय पर गाँधी शांति प्रतिष्ठान के सभागृह में एक सेमिनार आयोजित किया गया।इस कार्यक्रम में दिल्ली की लगभग सौ सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

 मुख़्य वक्ता डॉ एस एम् रहेजा,एडीजीएचएस, दिल्ली सरकार ने उपस्थित लोगो को डेंगू और चिकनगुनिया के फैलने और उसकी रोकथाम के सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।साथ ही इन भयानक बिमारियों को नियंत्रित करने में सामाजिक संस्थाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हम सब मिलकर ही इन बिमारियों पर नियंत्रण कर सकते हैं जरुरत है बस अपने आस पास साफ़ सफाई रखकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की। चर्चा उपरान्त डॉ रहेजा ने प्रतिभागियों के सवालो के उत्तर भी दिए।

 कार्यक्रम के अंत आयोजक अमित मिश्रा ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि डेंगू और चिकनगुनिया मुक्त दिल्ली के लक्ष्य को पूरा करने के लिये दिल्ली के कोने कोने से संस्थाएं एक मंच पर आकर प्रयास कर रहे हैं। आगामी पच्चीस जून को इसी क्रम में डेंगू और चिकनगुनिया मुक्त दिल्ली के लिये संवेदीकरण यात्रा का आयोजन किया जाएगा और घर घर जाकर लोगो को जागरूक किया जाएगा।

रविवार, 16 अप्रैल 2017

आप के कार्यकर्ता एआईएमआईएम में शामिल

 



  • कई समाज के लोगो ने दिया ए आई एम आई एम को समर्थन


नई दिल्ली । दिल्ली में एआईएमआईएम का जनाधार लगातार बढ़ रहा है। कांग्रेस आप, सपा, भाजपा के सभी दलों के लोग एआईएमआईएम में लगातार शामिल हो रहे है।
इसी सिलसिले ने आप के एक ग्रुप ने एक सभा के मंच पर आकर एआईएमआईएम का दामन थाम लिया।आप के लोगो के पार्टी में जुड़ने से हाजी अब्दुल हन्नान की जीत पक्की मानी जा रही है।
लोगो को ख़िताब करते हुए हाजी अब्दुल हन्नान ने कहा कि दूसरे दलों के आकर पार्टी में जुड़ना, इस बात का साबुत है कि पार्टी की जीत पक्की है उत्तर पूर्वी लोकसभा के संयोजक आस मोहम्मद कुरैशी ने कहा कि शास्त्री पार्क वार्ड में एआईएमआईएम की आंधी चल रही है। हमारा मुकाबला सीधा भाजपा से है।
इस मौके पर आप के डॉ ज़ाहिद अहसास, हाजी मोहम्मद अली शेरवानी वाले, नदीम कुरैशी, बाबु भाई, मो सलीम, मो साजिद अंसारी जीन्स वाले, इमरान अंसारी ने पार्टी छोड़ ए आई एम आई एम का दामन थाम लिया।इस सभा को कामयाब बनाने में मेहरुद्दीन उस्मानी ने अहम रोल अदा किया।
 

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

बुलंद मस्जिद कालोनी के सैंकड़ों मुसलमनों ने थामा भाजपा का दामन

  • शास्त्री पार्क वार्ड के बुलंद मस्जिद कालोनी में मुस्लिमों की 95 प्रतिशत आबादी
  • पिछले चुनाव में यहां से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार बने थे विधायक
  • भाजपा के उम्मीदवार को तौला लड्डूओं में
  • कार्यालय का भी उद्घाटन हुआ
  • सैंकड़ों मुसलमनों के भाजपा में शामिल होने के बाद आप और कांग्रेस को हो सकता है बड़ा नुकसान
संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली में नगर निगम चुनावी की सरगर्मी सातवें आसमान पर है इसी के चलते आज दिल्ली के शास्त्री पार्क वार्ड 25-ई में बुलंद मस्जिद कालोनी के सैंकड़ों मुसलमानों ने आज भाजपा का दामन धाम लिया। भाजपा में अधिकतर लोग आम आदमी पार्टी और कांग्रेस छोड़कर शामिल हुए। भाजपा में शामिल होने वाले लोग ऐसा लग रहे थे जैसे यहां कोई मुस्लिम जलसा हो रहा हो मगर हकीकत यह थी कि लोगों का आप और कांग्रेस से मोहभंग हो गया है।

बुलंद मस्जिद वह कालोनी है जहां भाजपा को 180 से 250 के बीच ही वोट पड़ते थे और यह मुस्लिम बहुल इलाका है जहां पहले कांग्रेस को और पिछले 3 चुनाव से आप को वोट पड़ रहे हैं मगर आज के दृश्य को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि यह वही मुस्लिम इलाका है जिसे कांग्रेस या आप का गड़ कहा जाता है। इस इलाके की सबसे बड़ी खासियत यह है जिसको भी यहां के लोगों ने गले लगाया है वह विजय होकर ही गया है। यह पहला मौका है जब यहां के लोग भाजपा में इतनी बड़ी तादाद में शामिल हुए।

भाजपा के उम्मीदवार रोमेश चन्द्र गुप्ता ने कहा कि आज इस इलाके से इतनी बड़ी तादाद में मुस्लिम समाज मेरे साथ व भाजपा के साथ जुड़ा है यह जीत की निशानी है। आज बुलंद मस्जिद के लोगों ने मेरा जो स्वागत किया मैं उसको कभी नहीं भूल सकता यहां के लोगों ने फूल-मालाओं से स्वागत तो किया ही मुझे मेरे वजन के बराबर लड्डू से भी तोला। हमारे एक कार्यालय का भी उद्घाटन हो गया है। इस पर भाजपा के उम्मीदवार ने अपनी जीत का दावा करते हुए कहा की जीतने के बाद वह इस इलाके की सड़कें को पक्का करना और इलाके में जो कब्रिस्तान है उसका बड़ा कर सुन्दर बनाना है।

आज के प्रोग्राम की सरपरस्ती हाजी मुस्तकीम ने की और उन्होंने बताया की आज तक कांग्रेस के लोग मुसलमानों को भाजपा का डर दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते थे मगर काम नहीं करते थे। काम के नाम पर अनाधिकृत कालोनी का राग अलाप दिया जाता था। यहां लगभग 11000 वोट है और सबसे ज्यादा वोट पड़ता है। इसके साथ ही यहां के वोट से ही जीत सुनिश्चित होती है जिस कारण कांग्रेस और आप वाले लोगों को फिर भाजपा का डर दिखा रहे हैं मगर अब मुस्लिम समाज इनके बहकावे में नहीं आने वाला।

हाजी मुस्तकीम ने आगे बताया है इस इलाके में पिछले निगम पार्षद ने कुछ काम नहीं किया है जिससे इलाके में कोई काम नहीं हुआ पाया है। इस इलाके को हमेशा से ही विकास कार्य से अछुता रखा गया है।
 


 

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

योगी के आने से ‘सेकुलरिये’ सकते में

श्याम कुमार

आजादी के बाद अब तक एक ओर भ्रष्टाचारियों एवं घोटालेबाजों की चांदी रही है तो दूसरी ओर कट्टरपंथी मुसलमानों एवं फर्जी सेकुलरवादियों की। देश में अब तक इन्हीं लोगों का तुश्टीकरण एवं संरक्षण होता रहा है। यह तुष्टीकरण एवं संरक्षण भी भ्रश्टाचार ही था। मजहब के आधार पर नागरिकों में भेदभाव करना व हक मारना अन्याय है तथा यह अन्याय भ्रश्टाचार का दूसरा रूप है। योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से कट्टरपंथी मुसलमान एवं फर्जी सेकुलरिए सकते में हैं। उनमें खलबली मची हुई कि यह क्या हो गया? नेहरू वंश के नेतृत्व में कांग्रेसी षासन हिन्दुओं के लिए काला अध्याय रहा है। उस दौर में हिन्दुओं को दूसरे दर्ज का नागरिक बना दिया गया था। अब तक कट्टरपंथी मुसलमान एवं फर्जी सेकुलरिए ही हावी रहे हैं तथा वे प्रथम श्रेणी के नागरिक बने हुए थे। वे दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं, क्योंकि दोनों की भाशा एवं नीयत एक है-हिन्दुत्व एवं भारतीय संस्कृति का विरोध। फर्जी सेकुलरियों में नकली वामपंथियों, नकली समाजवादियों, तथाकथित बुद्धिजीवियों आदि की जमातें षामिल हैं। 

हाल में ‘आप की अदालत’ में रजत शर्मा ने योगी आदित्यनाथ पर ‘मुकदमा’ चलाया था, जिसमें योगी से बड़े तीखे सवाल पूछे गए थे। रजत शर्मा ने पूछा था कि गोरखपुर में कतिपय मुहल्लों के मुसलिम नामों को क्यों बदल दिया गया है, जैसे अलीनगर का नाम आर्यनगर, मियां बाजार का नाम माया बाजार आदि। योगी ने उत्तर में कहा था कि ये जो बदले हुए नाम हैं, वे वस्तुतः उन मुहल्लों के मूल एवं असली नाम थे, जिन्हें मुसलिम षासनकाल में बदल दिया गया था। अतः जब उस समय नाम बदले जाने पर आपत्ति नहीं की गई तो अब भी आपत्ति नहीं की जानी चाहिए। इसी प्रकार एक अन्य प्रश्न के उत्तर में योगी आदित्यनाथ ने आंकड़े देकर बताया था कि जो हिन्दू बहुल इलाके हैं, वहां हिन्दुओं से मुसलमानों को किसी प्रकार का कश्ट नहीं मिलता है। लेकिन जिन क्षेत्रों में मुसलमानों का प्रतिशत अधिक होता है, वहां फसाद होते हैं तथा हिन्दुओं का चैन से रहना मुश्किल होता है। जहां मुसलमानों की संख्या बहुत अधिक होती है, वहां दंगे होते हैं तथा हिन्दुओं को उत्पीडि़त कर वह इलाका छोड़ने को विवश किया जाता है। योगी आदित्यनाथ की बात बिलकुल सही है तथा उत्तर प्रदेश के अनेक हिस्सों में हिन्दू आबादी वाले मुहल्ले धीरे-धीरे मुसलिम आबादी वाले मुहल्ले हो गए हैं। 

हिन्दू को विश्वास नहीं हो रहा है कि अब उसे आजादी मिल गई है। पिछले आठ सौ साल से गुलामी झेलते-झेलते उसकी गुलाम बने रहने की आदत पड़ गई थी। पहले मुसलिम हमलावरों ने गुलाम बनाया। चूंकि हिन्दू स्वभाव से अतिउदार एवं अतिसहिश्णु होता है, इसलिए बार-बार धोखा खाकर भी क्षमा करना उसकी प्रवृत्ति होती है। इसी से क्षमा करने के सिद्धांत के पुरोधा महात्मा गांधी ने भी झुंझलाकर कह दिया था कि हिन्दू कायर कौम है। न्यायमूर्ति अब्दुल करीब छागला हिन्दू को चरित्र से सेकुलर एवं न्यायप्रिय मानते थे। वास्तविकता यही है कि हिन्दू धर्म वास्तविक रूप में सेकुलरवादी, अर्थात पंथनिरपेक्षता के सिद्धांत का अनुयायी है। सम्पूर्ण हिन्दू दर्शन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सिद्धांत निहित है। यह दर्शन ‘न्याय सबके साथ, अन्याय किसी के साथ नहीं’ सिद्धांत का प्रतिपादक है। भारतीय जनता पार्टी ने इसी आदर्श को ग्रहण कर अपना सिद्धांत बनाया है-‘सबका साथ, सबका विकास’। नरेंद्र मोदी षुरू से कह रहे हैं कि उनका लक्ष्य समस्त सवा सौ करोड़ देशवासियों का कल्याण एवं विकास करना है। इन सवा सौ करोड़ में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि सभी धर्मावावलम्बी शामिल हैं। देश के सभी लोगों का कल्याण एवं समस्त क्षेत्रों का विकास नरेंद्र मोदी का ऐसा लक्ष्य है, जो देश को पुराना गौरव वापस दिलाएगा तथा हमारा देश पुनः ‘सोने की चिडि़या’ बन सकेगा।

अपने उदार स्वभाव के कारण ही हिन्दू भारत ने तमाम विदेशियों को अपने यहां शरण दी और उनका अस्तित्व समाप्त होने से बचाया। यहूदी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। आज विश्व में यहूदियों का जो अस्तित्व बचा हुआ है, वह सिर्फ हिन्दू भारत के कारण है। भारत ने ही उन्हें षरण देकर नश्ट होने से बचाया था। पारसियों के बारे में भी यही बात लागू होती है। षकों व हूणों को भारतीय समाज ने ऐसा आत्मसात किया कि वे अलग नहीं रह गए। लेकिन मुसलिम हमलावरों एवं अंग्रेजों के मामले में भारतीयों की उदारता आत्मघाती सिद्ध हुई। दोनों ने हमारी उदारता एवं सदाशयता का फायदा उठाकर हमें अपना गुलाम बना लिया और लगभग आठ सौ साल तक हमें उनकी गुलामी झेलनी पड़ी। विदेशी मुसलिम हमलावरों के बाद अंग्रेजों की गुलामी झेली और जब उनसे मुक्ति मिली तो हिन्दू नेहरू वंश के नेतृत्व वाले कांग्रेसी राज में कट्टरपंथी मुसलमानों एवं फर्जी सेकुलरियों की गुलामी के चंगुल में फंस गया। इन लोगों की जिद एवं कलह के कारण ही देश का वातावरण स्थायी रूप से अशांत बना हुआ है। ये लोग ‘न्याय सबके साथ, अन्याय किसी के साथ नहीं’ सिद्धांत के बजाय ‘हिन्दू के साथ अन्याय, मुसलमान के साथ पक्षपात’ सिद्धांत चाहते हैं। अयोध्या का ‘रामजन्मभूमि प्रकरण’ इसका ज्वलंत उदाहरण है। 

हिन्दुओं की मान्यता है कि अयोध्या भगवान राम की अवतार-स्थली है। इलाहाबाद उच्चन्यायालय द्वारा कराई गई जांच से सिद्ध हो गया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर विशाल मंदिर था, जिसे तोड़कर उस पर मस्जिद बना दी गई। किन्तु कट्टरपंथी मुसलमान एवं फर्जी सेकुलरिए वहां जबरदस्ती विवाद खड़ा किए हुए हैं। यदि सामान्य मंदिर की बात होती तो उसे वहां से अन्यत्र हटाया जा सकता था। लेकिन उस स्थल का रामजन्मभूमि होने का महत्व है। इसी प्रकार चूंकि वहां मुसलमानों के लिए मस्जिद का कोई विशिष्ट महत्व नहीं है, इसलिए उसे वहां के बजाय अन्यत्र बनाया जा सकता है। लेकिन कट्टरपंथी मुसलमानों एवं सेकुलरियों ने जानबूझकर ‘बाबरी मसजिद विवाद’ खड़ा कर दिया और देश की शांति नष्ट कर दी। यदि वहां रामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण हो जाने दिया जाता तो उससे हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच स्थायी रूप से सौहार्द एवं प्रेमभाव स्थापित किया जा सकता था।         


मेरी पत्रकारिता के छप्पन वर्ष

श्याम कुमार

गत 2 नवम्बर, 2016 को मेरी पत्रकारिता का 57वां वर्ष आरम्भ हो गया। अर्थात आधी षताब्दी से भी अधिक समय हो गया है। इसी प्रकार 10 नवम्बर, 2016 से मेरी उम्र का 76वां साल षुरू हुआ है। मैं बीस वर्ष का था, जब पत्रकारिता में आया था। आज भी मुझे वह दिन याद है, जब 2 नवम्बर, 1961 को मैंने इलाहाबाद के लीडर प्रेस परिसर में पहली बार कदम रखा था। वहां से देश के दो सुविख्यात राष्ट्रªीय समाचारपत्र ‘भारत’ व ‘लीडर’ प्रकाशित होते थे। ‘भारत’ के नित्य कई संस्करण प्रकाशित होते थे तथा अनेक राज्यों में अखबार का व्यापक प्रसार था। लीडर प्रेस परिसर में ‘भारती भंडार’ नामक प्रसिद्ध प्रकाशन-केंद्र भी था, जहां से प्रायः सभी महान साहित्यकारों की पुस्तकें प्रकाशित होती थीं। उस समय इलाहाबाद पूरे देश का केंद्र-विंदु था तथा शिक्षा, विधि, पत्रकारिता, सांस्कृतिक कार्यकलापों, राजनीति आदि का देश का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता था। जिस दिन मैंने पत्रकारिता में कदम रखा, उस दिन से मेरा जीवन अपना नहीं रहा तथा पूरी तरह पत्रकारिता को समर्पित हो गया। मुझे केवल सोने का समय मिल पाता था, शेष कोई भी समय अपना नहीं था। पारिवारिक परम्परा के अनुसार समाजसेवा के कार्याें में भी बहुत रुचि थी। 1961 में ही जनवरी में अखिल भारतीय सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं समाजसेवी संस्था ‘रंगभारती’ की स्थापना की, जिसके कार्यकलापों की लम्बी श्रृंखला बन गई। ‘रंगभारती’ ने 1961 में इलाहाबाद के परीभवन में देश का पहला हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया तथा अन्य अनेकानेक कार्यक्रमों की पहली बार नींव डाली। 

दैनिक ‘भारत’ के प्रधान सम्पादक शंकर दयालु श्रीवास्तव मेरे पिता जी के मित्र थे तथा मेरे यहां उनका आना होता था। लेकिन मेरी उनसे कभी भेंट नहीं हुई थी। मैं जब हाईस्कूल में था, तभी से मेरी भाशा पूर्णरूपेण मंज चुकी थी तथा अर्धविराम तक की त्रुटि नहीं होती थी। मैं दैनिक ‘भारत’ में ‘पाठकों के पत्र’ स्तम्भ में पत्र लिखा करता था, जिससे प्रधान सम्पादक शंकर दयालु श्रीवास्तव प्रभावित थे। अचानक पिताजी का देहावसान होने के बाद उन्होंने मुझे ‘भारत’ में बुला लिया। उसी वर्ष मैंने एमए किया था। ‘भारत’ में मुझे अपने वरिश्ठों से पत्रकारिता का अत्यंत कठोर प्रशिक्षण मिला। मैंने अपने जीवन में डाॅ. धर्मवीर भारती एवं हेरम्ब मिश्र से अधिक योग्य पत्रकार आजतक नहीं देखे। हेरम्ब मिश्र मेरे वरिष्ठ थे। अवकाशप्राप्त आईएएस अधिकारी अरविंद नारायण मिश्र के बाबा बाबूराम मिश्र भी मेरे वरिश्ठ सहयोगी थे। शंकर दयालु श्रीवास्तव उच्चकोटि के सम्पादक थे तथा उनका बड़ा नाम था। दैनिक ‘भारत’ में वरिश्ठों ने मुझे सीख दी कि पत्रकार के लिए देशहित सबसे बड़ा होना चाहिए। पत्रकारिता भाव, भाशा एवं अभिव्यक्ति का मिश्रण है, यह मेरा सिद्धांत बन गया। मेरे परिवार के अन्य लोग भी पत्रकार हैं तथा हम सबने हमेशा ईमानदारी, आदर्श एवं उच्चकोटि की पत्रकारिता की।

मैं बहुत सम्पन्न घर का था तथा मैंने अपने माता-पिता को हमेशा देते देखा, कभी लेते नहीं देखा। हमारे घर में अनेक रिश्तेदारों के लड़कों को षरण मिली, जिनका अच्छा भविष्य मेरे माता-पिता ने बनाया। उन्हें पढ़ाया और नौकरी लगवाई। दर्जनों गरीब कन्याओं का विवाह कराया। धीरे-धीरे हमारे घर की सम्पन्नता परोपकार की वेदी पर बलि चढ़ती गई। गांव में करोड़ों की जायदाद थी, जिसकी जानकारी पिताजी को ही थी तथा वही देखभाल के लिए वहां जाया करते थे। चकबंदी नहीं हुई थी, अतः उनका अचानक देहांत हो जाने से उस सम्पत्ति का पता ही नहीं लग पाया। माता-पिता से परोपकार एवं समाजसेवा के संस्कार मुझे भी मिले, जो नशे की तरह मुझमें समा गए तथा ‘घर फूंक तमाशा देख’ सिद्ध हुए। मेरी सारी कमाई उनमें खर्च होती गई। सरकार से मुझे कभी मदद नहीं मिली। मैंने तमाम लड़कों की नष्ट हो रही जिंदगी बचाकर उन्हें अच्छी जिंदगी दी और उज्ज्वल भविष्य बनाया। किन्तु किसी ने एहसान नहीं माना और कुछ ने तो न केवल बहुत क्षति पहुंचाई, बल्कि प्राणलेवा वेदनाएं दीं। केवल एक व्यक्ति ऐसा है, जिसने एहसान माना। वह व्यक्ति एक भिक्षा मांगने वाले का पुत्र था, जो मेरी मदद पाकर डाॅक्टर बन गया और अब अत्यंत वरिश्ठ डाॅक्टर है। 

लीडर प्रेस सुविख्यात उद्योगपति घनश्याम दास बिरला का था तथा उतना विशाल परिसर देश के किसी समाचारपत्र के पास नहीं था। उसमें पत्रकारों के लिए आवासीय बंगले भी बने हुए थे। उस समय मेरा दिल्ली, मुम्बई व अन्य महत्वपूर्ण नगरों में प्रायः जाना होता था तथा सभी जगह अखबारों में पत्रकारों व सम्पादकों से मेरी घनिष्ठता थी। जितने अधिक योग्य पत्रकार ‘भारत’ में थे, उतने कहीं भी नहीं थे। हेरम्ब मिश्र, कुसुम कुलश्रेष्ठ, कृष्ण बिहारी श्रीवास्तव पत्रकारिता के बेजोड़ रत्न थे। वहां विश्वम्भर नाथ जिज्जा थे, जो पत्रकारिता ही नहीं, पुरानी राजनीतिक गतिविधियों के भी जीवंत इतिहास थे। हिन्दी की पहली कहानी उन्होंने लिखी थी। जब मैं ‘भारत’ परिवार में षामिल हुआ, जिज्जा जी 75 वर्ष के थे तथा स्वभाव के बड़े कड़क थे। मजाल नहीं था कि कोई नया पत्रकार टेलीप्रिंटर छू ले। लेकिन ‘भारत’ में अधिकांश पत्रकार घोर अर्थाभाव में थे। मैं सम्पन्न परिवार का था, इसलिए उस गरीबी को देखकर दहल गया था। उस समय अधिकांश समाचार ‘पीटीआई’ व ‘यूएनआई’ से टेलीप्रिंटर पर अंग्रेजी में आते थे। ‘हिन्दुस्थान समाचार’ व ‘नाफेन’ आदि समाचार हिन्दी में भेजते थे, किन्तु उनकी मात्रा नगण्य थी। सम्पादकीय मेज पर हर पत्रकार को नित्य अंग्रेजी से हिन्दी में चार काॅलम समाचार अनुवाद करना होता था। 

‘भारत’ में अधिकांश सहयोगी कठोर परिश्रमी थे। सामान्य ड्यूटी में कठिन परिश्रम करने के बाद आर्थिक लाभ के लिए वे ‘डबल ड्यूटी’ किया करते थे। जब मैं वहां नया था तो एक दिन मेरे वरिष्ठ सहयोगी गणेश भारती मुझे अनुवाद के लिए थोक में समाचार देते जा रहे थे। मैं बोल पड़ा कि इतनी मेहनत करने पर मर जाऊंगा तो भारती जी ने उत्तर दिया-‘मेहनत करने से कोई नहीं मरता’। उनका वह वाक्य मैंने आत्मसात कर लिया और अस्वस्थता में भी जब तक बिलकुल मजबूर न हो जाऊं, मैं सारे कार्य पूर्ववत करता रहता हूं। पत्रकारिता में मेरी लगन, परिश्रम एवं समर्पण का ही फल है कि मुझे निकट से जानने वाले जो थोड़े लोग बचे हैं, वे आज भी मेरे योगदान को अद्भुत मानते हैं और भूरि-भूरि सराहना करते हैं। मैं हमेशा जनजीवन से निकट रूप में जुड़ा रहा, इसीलिए आम जनता में मुझे सदैव भरपूर सराहना मिली तथा मेरी छप्पन-वर्षीय पत्रकारिता में वही सराहना मेरा सबसे बड़ा सम्मान सिद्ध हुई।

रिक्शे वाले ने योगी की भविष्यवाणी की

श्याम कुमार
उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता कल्याण सिंह, जो वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल हैं, जब भी लखनऊ आते हैं तो पूरे उत्तर प्रदेश से उनसे मिलने आने वालों का उनके आवास पर तांता लग जाता है। हर तरह के लोग आते हैं, इसलिए प्रायः रोचक अनुभव भी होते हैं। ऐसा ही एक अनोखा अनुभव गत सात मार्च को हुआ था, जो उस समय अनोखा नहीं लगा था। कल्याण सिंह कक्ष में सोफे पर बैठे थे, जिनके बगल में मैं बैठा हुआ था। बड़ा कक्ष आगंतुकों से भरा हुआ था। बुलंदशहर से आए वहां के पूर्व-विधायक डाॅ. सतीश शर्मा पास के सोफे पर बैठे थे। तभी उन्होंने अपना एक अनुभव सुनाया। उन्होंने बताया कि गत वर्ष जनवरी में कल्याण सिंह के जन्मदिन के अवसर पर वह लखनऊ आए थे। एक दिन जब वह कल्याण सिंह के आवास से लौट रहे थे तो उन्हें उनके आवास के पास माल एवेन्यू में ही एक रिक्शेवाला मिल गया था। रिक्शेवाला हट्टा-कट्टा था और उसने समझ लिया था कि डाॅ. शर्मा कल्याण सिंह से मिलकर आए हैं। रिक्शा चलाते हुए वह रिक्शावाला बातें करने लगा। उसने बताया कि पांच वर्ष पूर्व उसने भविष्यवाणी कर दी थी कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। उस समय जब उसने भविष्यवाणी की थी, लोग उसकी बात पर हंसे थे। लेकिन उसका कथन सच हुआ। रिक्शेवाले ने डाॅ. सतीश शर्मा से कहा कि अब उसकी भविष्यवाणी है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा-चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को तीन सौ से अधिक सीटें मिलेंगी, महंत योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे तथा कल्याण सिंह देश के राष्ट्रपति होंगे।
डाॅ. सतीश शर्मा ने बताया कि पहले तो उन्होंने रिक्शेवाले की बातों पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसने मोदी के बारे में जो भविष्यवाणीवाणी की, वैसा दावा तो बाद में अन्य लोग भी करने लगे थे। मुझे याद आया, मेरा स्टेनो कई वर्शाें से लगातार मुझसे कहता था कि मोदी प्रधानमंत्री बन जाएं, तभी इस देश का उद्धार होगा। चूंकि उस समय कांग्रेसियों, कट्टरपंथी मुसलमानों एवं फर्जी सेकुलरियों ने देश-विदेश में मोदी के विरुद्ध इतना अधिक दुश्प्रचार कर डाला था कि मोदी प्रधानमंत्री बन सकेंगे, यह बात किसी के भी गले नहीं उतरती थी।
डाॅ. सतीश शर्मा ने कहा कि भाजपा तीन सौ से अधिक सीटें जीतेगी, रिक्शेवाले की इस बात को भी उन्होंने कोई महत्व नहीं दिया। कारण यह कि उस समय सभी पार्टियां तीन सौ से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही थीं तथा बड़ी संख्या में लोगों का यह भी मानना था कि किसी पार्टी को बहुमत नहीं प्राप्त होगा। लेकिन रिक्शे वाले की अन्य दो भविष्यवाणियों पर वह चैंके। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए महंत योगी आदित्यनाथ की चर्चा कभी-कभी उड़ जाती थी, लेकिन उस चर्चा को कोई महत्व नहीं दिया जाता था। मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा में अन्य लोगों के नाम अधिक चर्चित थे। इसी प्रकार राष्ट्रªपति पद के लिए कल्याण सिंह के नाम की दूर-दूर तक कहीं चर्चा नहीं थी। डाॅ. सतीश शर्मा ने बताया कि उन्होंने रिक्शेवाले से कहा कि यदि उसकी कल्याण सिंह वाली भविष्यवाणी सत्य हुई तो वह उसे एक ई-रिक्शा भेंट करेंगे। उन्होंने रिक्शेवाले से उसका नाम व पता पूछा तो उसने बताया कि वह बनारसी के नाम से मशहूर है और ‘सहारा’ के पास रहता है।
कल्याण सिंह की मौजूदगी में गत सात मार्च को जब डाॅ. सतीश शर्मा ने यह बात बताई थी तो वहां मौजूद सभी लोग इस बात से तो सहमत थे कि कल्याण सिंह राष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त पात्र हैं, किन्तु यह कथन इसलिए सच होने की संभावना नहीं है कि उस पद के लिए पहले से ही लालकृश्ण आडवाणी, डाॅ. मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन, वेंकैया नायडू आदि नाम चर्चित हैं। कल्याण सिंह ने भी ऐसी किसी संभावना से इनकार किया। गत दिवस कल्याण सिंह के यहां डाॅ. सतीश शर्मा पुनः मिल गए तो मुझे उनकी बातें याद आ गईं। चुनाव-परिणाम घोशित होने से पहले सात मार्च को कल्याण सिंह के यहां उन्होंने रिक्शेवाले की जो यह भविष्यवाणीी बताई थी कि भाजपा को तीन सौ से अधिक सीटें मिलेंगी, वह पूरी तरह सही निकली। भाजपा को 325 सीटें मिल जाने का चमत्कार हुआ। यदि कल्याण सिंह राष्ट्रªपति न बनें तो भी रिक्शेवाले की योगी एवं भाजपा के बारे में डाॅ. शर्मा के सामने की गई भविष्यवाणी तो सत्य सिद्ध हुई ही। डाॅ. सतीश शर्मा ने गत सात मार्च को जब कल्याण सिंह के सामने रिक्शेवाले की भविष्यवाणी की चर्चा की थी, उस समय तक न तो चुनाव-परिणाम घोषित हुए थे और न मुख्यमंत्री पद के लिए योगी के नाम की चर्चा थी।   
गत दिवस जब मैं कल्याण सिंह के यहां पहुंचा तो वह जयपुर प्रस्थान करने के लिए भीतर तैयार हो रहे थे। अन्य लोगों के साथ मैं भी कक्ष में बैठ गया। कल्याण सिंह का पौत्र संदीप सिंह प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री हो गया है, अतः उससे मिलने वाले भी आ रहे थे। तभी सिटी माॅन्टेसरी स्कूल के संस्थापक जगदीश गांधी एक बड़ा पिटारा लिए हुए अपनी पुत्री एवं नाती के साथ कल्याण सिंह से मिलने आ गए। वे लोग संदीप सिंह से मिले और कल्याण सिंह की प्रतीक्षा करने लगे। जगदीश गांधी की पुत्री जब संदीप सिंह से निरंतर अंग्रेजी में ही बात करने लगी तो लोगों को उसके इस अंग्रेजी-प्रेम का बुरा लगा।
 जगदीश गांधी ने बताया कि उसके बच्चों ने अलग-अलग देश के लोगों से षादी की है। जगदीश गांधी के बारे में अकसर चर्चा हुआ करती है कि उनके स्कूलों में नेता, पत्रकार एवं अधिकारीगण अपने बच्चों को प्रवेश दिलाते हैं, इसलिए जगदीश गांधी उन सभी पर अपना भारी प्रभाव रखते हैं। यह भी चर्चा होती है कि  शिक्षण-संस्थाओं में गरीब बच्चों को प्रवेश दिलाने का सरकार द्वारा जो निर्धारित कोटा है, उस पर जगदीश गांधी ने अपनी शिक्षण-संस्थाओं में अमल नहीं किया और उस आदेश के विरुद्ध सर्वाेच्च न्यायालय तक लड़ने चले गए। लेकिन वहां उन्हें हार मिली। बताया जाता है कि सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद जगदीश गांधी ने अपनी शिक्षण-संस्थाओं में गरीब बच्चों के कोटे वाले आदेश पर अमल नहीं किया है। इस पर लोग तुलसीदास की यह पंक्ति याद करते हैं-‘समरथ को नहि दोश गोसाईं’।

शनिवार, 18 मार्च 2017

ईवीएम पर बावेला का सच

 अवधेश कुमार

जब बसपा प्रमुख मायावती ने चुनाव परिणाम में तस्वीर स्पष्ट होने के साथ अपनी पार्टी की पराजय और भाजपा की विजय के लिए ईवीएम यानी ईलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन पर सवाल उठाया तो आम प्रतिक्रिया यही थी कि इसे कोई पार्टी गंभीरता से नहीं लेगी। इतने समय से ईवीएम से मतदान हो रहे हैं और उन परिणामों को भी देश ने स्वीकार किया है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता, निगरानी और सतर्कता पर पूरे देश को विश्वास है। इसे ध्यान मंे रखते हुए माना गया कि मायावती अपन बुरी हार को सहन नहीं कर पा रहीं हैं, इसलिए वो ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगा रहीं हैं। किंतु कुछ समय के बाद अखिलेश यादव ने भी कह दिया कि अगर बसपा प्रमुख ऐसा कह रहीं हैं तो कुछ सोच समझकर ही कह रही होंगी, इसलिए इसकी एक बार जाचं हो जानी चाहिए। उसके बाद कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला हे कहा कि कांग्रेस चुनाव परिणामों को तो स्वीकार कर रही है, लेकिन बसपा की नेता ने अगर कहा है तो उसका संज्ञान लिया जाना चाहिए। हालांकि कांग्रेस ने बाद में इस पर जोर नहीं दिया।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसमें कूदे और साफ आरोप लगा दिया कि ईवीएम के माध्यम से उनकी पार्टी के वोट अकाली और कांग्रेस को स्थानांतरित करा दिए गए। उनके अनुसार ऐसा नहीं होता तो आप की विजय सुनिश्चित थी। उन्होंने निर्वाचन आयोग से दिल्ली की नगर निकायों का चुनाव मतदान पत्रों से कराने की मांग की। यह बात अलग है कि दिल्ली राज्य चुनाव आयोग ने दिल्ली सरकार को बता दिया है कि नगर निगम चुनाव ईवीएम से ही होंगे।

वास्तव में ईवीएम पर जब भी सवाल उठाए गए चुनाव आयोग का यही मत रहा है कि ईवीएम से किसी तरह की छेड़छाड़ संभव नहीं। यह बिल्कुल सुरक्षित मतदान का यंत्र है। इस बार भी मयावती के पत्र के जवाब में आयोग ने साफ किया है कि आपके आरोप स्वीकार करने योग्य नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ईवीएम को पहली बार कठघरे मंें खड़ा किया गया है। 2004 से इसका व्यापक प्रयोग आरंभ हुआ और तभी से इस पर प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने अनेक बार कहा है कि जिसे आशंका है वो आकर तकनीकी रुप से हमें बताएं कि इसमें छेड़छाड़ कैसे की जा सकती है लेकिन कोई आयोग तक इसके लिए गया नहीं। हां, दावे जरुर किए जाते रहे। ईवीएम को खलनायक मानने वालों में भाजपा भी रही है। 

2009 के लोक सभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा ने इसके खिलाफ एक प्रकार का अभियान चलाया था। किरीट सौमैया ने कई शहरों में इसका प्रदर्शन किया था जिसमें उनके साथ एक विशेषज्ञ कम्प्यूटर-लैपटॉप पर दिखाता था कि ईवीएम में कैसे गड़बड़ी की जा सकती है। भाजपा के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ईवीएम पर डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट अवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन शीर्षक से एक किताब लिखी। इसकी भूमिका लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी। इस किताब में ईवीएम में की जाने वाली गड़बड़ियों का जिक्र है। तब कांग्रेस तथा अन्य कई पार्टियों ने इसे खारिज कर दिया था। आज वही पार्टियां अपनी पराजय के लिए इसमें गड़बड़ी किए जाने का आरोप लगा रहीं हैं।

विरोधी तर्क देते हैं कि आखिर ऐसी कौन सी मशीन है जिसमें गड़बड़ियां नहीं की जा सकतीं? एक क्षण के लिए यह सही लग सकता है। किंतु  ईवीएम की कार्यप्रणाली तथा मतदान के पूर्व और मतदान के दौरान तथा बाद में उसके रख-रखाव सहित सारी प्रक्रियाओं को समझने के बाद किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति का निष्कर्ष यही होगा कि इसमें छेड़छाड़ संभव नहीं है। मामला उच्चतम न्यायालय तक भी गया और वहां भी सारे मंथन के बाद निष्कर्ष यही आया कि ईवीएम में सेंध लगाना संभव नहीं है। 

ईवीएम के बारे में सबसे गलत धारणा यह है कि इसे ऑनलाइन हैक किया जा सकता है। जब इसमें इंटरनेट कनेक्शन होता नहीं, यह किसी दूसरी मशीन से भी जुड़ी नहीं होती तो फिर इसके हैकिंग या ऑनलाइन दूसरी गड़बड़ियों की कोई संभावना ही नहीं। इसमें वन टाइम प्रोग्रामेबल चिप होता है जो बगैर वाईफाई और किसी कनेक्शन के चलता है। वस्तुतः ईवीएम का सॉफ्टवेयर कोड वन टाइम प्रोग्रामेबल नॉन वोलेटाइल मेमोरी के आधार पर बना है। किसी से छेड़छाड़ करनी हो तो फिर निर्माता से कोड हासिल होगा। ईवीएम का सॉफ्टवेयर अलग से रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय के यूनिट बनाते हैं। बगैर पीठासीन अधिकारी के मतपत्र को कंट्रोल यूनिट के साथ जोड़े कोई वोट नहीं कर सकता है। ईवीएम मशीन को लगातार चेक किया जाता है ताकि मतदान के दौरान कोई गड़बड़ी न हो। 2006 के बाद से ईवीएम में तारीख और समय को लेकर नए फीचर जोड़े गए। इससे हर मतदाता का डेटा और उसका वोट सुरक्षित रहता है। इसमें एक कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और पांच मीटर केबल होता है। कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होता है व बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कम्पार्टमेंट के अंदर रखा होता है। कंट्रोल यूनिट का प्रभारी मतदान अधिकारी बैलेट बटन दबाता है। यह मतदाता को बैलेटिंग यूनिट पर पसंद के अभ्यर्थी एवं चुनाव चिन्ह के सामने बटन को दबाकर मत डालने में सक्षम बनाता है। इसके साथ ही एक तीसरी तरह की यूनिट भी अब जोड़ दी गई है इसे वीवीपैट कहा जाता है। इसमें वोट देने के कुछ सेकेंड के अंदर मतदाता को पर्ची दिखाती है कि उसने किसको वोट दिया है। हालांकि चुनाव आयोग की तरफ से अभी तक इस तरह की मशीन का इस्तेमाल सभी मतदान केन्द्रो पर नहीं किया गया है।

फिर प्रयोग की प्रणाली देखिए। कौन सी ईवीएम मशीन किस मतदान केन्द्र पर रहेगी इस बात का पता पहले से नहीं होता। मतदान कराने वाले दल को एक दिन पहले पता चलता है कि उनके पोलिंग बूथ पर कौन से सीरिज़ की ईवीएम आएगी। मतदान आरंभ होने से पहले ईवीएम  की जांच की जाती है कि यह ठीक है या नहीं। स्वाभाविक ही इस जांच में यह भी शामिल है कि कहीं किसी तरह की छेड़छाड़ तो नहीं की गई है। इस प्रक्रिया को मॉक पोलिंग भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही मतदान शुरू करवाई जाती है। 

सभी पोलिंग एंजेट से मशीन में वोट डालने को कहा जाता है ताकि ये जांचा जा सके कि सभी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट गिर रहा है कि नहीं। यानी किसी मशीन में टेंपरिंग या तकनीकि गड़बड़ी होगी तो मतदान के शुरू होने के पहले ही पकड़ ली जायेगी। मॉक पोल के बाद सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एंजेट मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का प्रमाण पत्र देते है। यह प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही संबंधित मतदान केन्द्र में मतदान शुरू की जाती है। मतदान आरंभ होने के बाद मतदान केन्द्र में मशीन के पास मतदाताओं के अलावा मतदान कर्मियों के जाने का निषेध है। वे ईवीएम के पास तभी जा सकते है जब मशीन की बैट्री डाउन हो या कोई अन्य तकनीकि समस्या उत्पन्न हो गई हो। हर मतदान केन्द्र में एक रजिस्टर बनाया जाता है जिसमें मतदान करने वाले मतदाताओं का विस्तृत विवरण अंकित रहता है। रजिस्टर में जितने मतदाताओं का विवरण होता है उतने ही मतदाताओं की संख्या ईवीएम में भी होती है। मतगणना वाले दिन इनका आपस मे मिलान मतदान केंद्र प्रभारी की रिपोर्ट के आधार पर होता है।

इतनी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद यदि कोई छेड़छाड़ का आरोप लगा रहा है तो फिर उसे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। यह भारतीय राजनीति के पतन को दर्शाता है। केजरीवाल कह रहे हैं कि सारे विशेषज्ञ बता रहे थे कि लोग अकाली और भाजपा को हराने के लिए मतदान कर रहे थे तो फिर उनको हमसे ज्यादा वोट कैसे आ गए? वे यह भी कह रहे हैं कि एक घर में जहां कई वोलंटियर हैं वहां उनसे भी कम मत निकले हैं। इसी तरह मायावती प्रश्न कर रहीं हैं कि मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा को कैसे ज्यादा मत पड़ गया? इनसे यह कहना होगा आपके प्रश्नों का उत्तर आपकी राजनीति में है, राजनीति की बदलती धारा मंे हैं तथा लोगों की आपके प्रति धारणा में है। इसका उत्तर ईवीएम में नहीं है। भारत में चुनाव की निष्पक्षता और विशिष्टता को स्वीकार करिए जिसकी प्रशंसा दुनिया करती है। अगर ईवीएम में समस्या होती तो चुनाव आयोग इसे स्वीकार ही क्यों करता? उसकी भूमिका निष्पक्ष चुनाव कराने की है और इसे ध्यान में रखते हुए ही उसने इसका प्रस्ताव किया तथा इसे शत प्रतिशत लागू कर दिया। कुछ देशों का उदाहरण दिया जाता है कि उनने इसे बंद किया या परीक्षण के बावजूद लागू नहीं किया। यह उनकी सोच है। हमारे यहां अभी तक इसमें समस्या नहीं दिखी है। भारत ने कई देशोें को ईवीएम मशीनों को बेचा है जिनसे वहां मतदान हो रहा है। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह कि ईवीएम को खलनायक बनाना उचित नहीं। इसकी बजाय पार्टियां पराजय के असली कारणों, जो उनकी राजनीति में निहित है, पर आत्मचिंतन करें।

अवधेश कुमार, ई: 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाष.ः01122483408, 9811027208

 

 

 

 

आम आदमी नागरिक सेवा समिति की बैठक हुई

 

संवाददाता

नई दिल्ली। आम आदमी नागरिक सेवा समिति एक बैठक हुई। इस बैठक में समिति के काफी संख्या में कार्यकर्ता शामिल हुए। इस बैठक की अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष मो. अनीस ने की। इस अवसर पर सीलमपुर विधान सभा के अध्यक्ष निजाम मसूदी, उपाध्यक्ष दिलशाद मसूदी, जरनल सेकेटरी हाफिज शेरवानी, सेकेटरी शारुक अंसारी, कोषाध्यक्ष फैज़ान अंसारी, 41-ई वार्ड अध्यक्ष आमिर अंसारी, 43-ई वार्ड अध्यक्ष मंसूर इलाही, सलमान सैफी माईनौरिटी अध्यक्ष, सीलमपुर, ज़की अख्तर, समाजसेवी अकरम मसूदी सीनियर मुरसलीन मनसूरी समाज सैवक इमाम मुनीरी नदीम राहिन ६ समाज सैवक दानिश जहांगिरी मौसिन मनसूरी वाड॒ अधयक्ष 42/E सभी ने देश के हालात पर चरचा की अचछे नेताओ को जिताने की सहमती जताई और बड़ी सखंया मे सहमती जताई।

 

बुधवार, 15 मार्च 2017

स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत

राम निवास

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
चलो देश को स्वच्छ बनाएं
आओ भारत को स्वस्थ बनाएं
घर-घर में जीवन मुस्काएं।

गांधी जी का था ये सपना
स्वच्छ देश भारत हो अपना
संकल्प फिर से वही दोहराएं
चलो देश को ..............

प्रदूषण, राक्षस-सा विकराल खड़ा है
कैसे करें नियंत्रण ये संकट बहुत बड़ा है
छोड़ के दामन भौतिकता का प्रकृति से मेल बढ़ाएं।
चलो देश को ..............

जो कुछ दिया कुदरत ने, उसका सम्मान करो
धरती मात हमारी है, मत इसका अपमान करो
बनी रहे सुंदरता इसकी, ना करकट फैलाएं।
चलो देश को ..............

स्वच्छता और स्वस्थता का, है गहरा नाता
होंगे निरोग, तो बनेंगे खुद के भाग्य विधाता
हरियाली ही हरियाली हो, धरती को स्वर्ग बनाएं।
चलो देश को ..............

पवित्र-पावन नदियां अपनी, प्रदूषण को रोती हैं
गंदे नाले बनके रह गईं, आभा अपनी खोती हैं
जल ही जीवन ऐसा कहते, आओ पीने लायक बनाएं
चलो देश को ..............

आहार स्वस्थ हों, विचार स्वस्थ हों
हर गली मोहल्ला, परिवार स्वस्थ हों
दुनिया भर में रोशन हो, ऐसा हिन्दुस्तान बनाएं।
चलो देश को ..............

हर नगर, हर गांव स्वच्छ तो, सुधरेगा परिवेश
हर रोग मिटेंगे, ना होगा कोई क्लेश
मोदी जी का यह संदेश जन-जन में फैलाएं।
चलो देश को स्वच्छ बनाएं।
राम निवास,
डी-121, मोती बाग-1, नई दिल्ली-110021


मंगलवार, 14 मार्च 2017

चुनाव परिणामों में आश्चर्य के तत्व नहीं

 अवधेश कुमार

चुनाव परिणाम आने के पहले एक्जिट पोल ने इसकी दिशा दे दी थी। इन चुनाव परिणामों से केवल उनको ही आश्चर्य हुआ होगा जो धरातली वास्तविकता से परे अपने राजनीतिक विचारों के मद्दे नजर पूर्व आकलन कर रहे थे। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को लें तो भाजपा की ऐसी विजय से बहुत लोग विस्मित हैं। वे यह नहीं सोचते कि परिवार और पार्टी में इतनी बड़ी कलह तथा कानून और व्यवस्था के स्तर पर विफल सरकार को जनता क्यों दोबारा सत्ता में वापस लाएगी जबकि उसके पास विकल्प मौजूद हैं। सत्ता में रहते वक्त हमेशा नेतागण अपनी क्षमता और लोकप्रियता का जरुरत से ज्यादा आकलन करते हैं तथा उनके आसपास के लोग उनको और आकाश में चढ़ाने की भूमिका निभा देते हैं। अखिलेश यादव के साथ ऐसा ही हुआ है। उनके सबसे बड़े सलाहकार रामगोपाल यादव ने उन्हें प्रधानमंत्री मैटेरियल तक घोषित कर दिया। चुनाव में जय-पराजय होती रहती है, लेकिन अखिलेश यादव ने जिस ढंग से विद्रोह करके पूरी पार्टी को अपने एकच्छत्र साम्राज्य में लाया तथा स्वयं एवं अपनी पत्नी डिम्पल यादव को मुख्य प्रचारक बना दिया उसके पीछे भाव तो यही था न कि इन दोनों की लोकप्रियता इतनी है कि विजय के लिए और किसी की आवश्यकता भी नहीं। इसमें उन्होंने अपने पिता तक को चुनाव प्रचार से वानप्रस्थ लेने को विवश कर दिया। कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन का भी कोई तार्किक आधार नहीं था। यह सोचना कि इससे मुस्लिम मतों के बंटवारे को रोका जा सकेगा गलत आकलन था। कारण, कांग्रेस तो पिछले 28 वर्षों से अपने जनाधार के लिए प्रदेश में तरस रही है। मुसलमान उसके साथ होते तो उसकी 2012 एवं उसके पूर्व 2007 में वैसी दुर्दशा नहीं हुई होती। कांग्रेस के पास ऐसा जनाधार है भी नहीं कि इसे किसी पार्टी को स्थानांतरित करा सके।

वास्तव में इन सब हालातों में यदि अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की विजय होती तो यह आश्चर्य की बात होती। जनता को यदि समाजवादी पार्टी को विजयी नहीं बनाना था तो उसके पास दो विकल्प थे, भाजपा एवं बसपा। बसपा का शासन लोगों ने 2007-12 देखा है। उसमें ऐसा कुछ नहीं था जिससे उसकी तरफ बहुमत का आकर्षण हो। दूसरी ओर भाजपा है जिसने परिवर्तन का नारा दिया। हर चुनाव में एक प्रमुख कारक होता है जो राज्यव्यापी भूमिका निभाता है और अन्य कारक या उपकारक उसके ईर्द-गिर्द जुड़ते जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने परिवर्तन का जो नारा दिया वह लोगों को अपील करने लगा। जब मोदी कहते थे कि उत्तर प्रदेश के पास सब कुछ है लेकिन अच्छी सरकार नहीं है तो यह लोगों को अपील करता था। इसने एक मनोवैज्ञानिक स्थिति कायम की। वैसे भी 18 से 30 वर्ष के युवा मतदाताओं ने केन्द्र में भाजपा की सरकार देखी है, 2002 तक की सरकार को लेकर उनका कोई परिपक्व अनुभव नहीं है। इस कारण भी भाजपा की ओर उनका आकर्षण स्वाभाविक था। अगर लोगों को परिवर्तन करना था तो फिर बसपा से भाजपा उनको हर दृष्टि से बेहतर विकल्प लगा। इससे पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी के प्रति लोगों का विश्वास अभी कायम है। उनकी लोकप्रियता बनी हुई है।

भाजपा ने विजय के लिए अगड़ों और गैर यादव अति पिछड़ी जातियों का समीकरण बनाने की जो कोशिश की वह वाकई सफल रही है। समाजवादी पार्टी के शासनकाल में एक जाति विशेष को पुलिस प्रशासन में जरुरत से ज्यादा तरजीह देने से अन्य जातियां नाराज थीं एवं उनके पास भाजपा विकल्प में रुप में था। हम यह न भूलें कि बसपा में जो विद्रोह हुआ और उससे अति पिछड़े निकले उससे उसकी छवि को धक्का लगा। बसपा ने आरंभ में मुसलमानों एवं दलितों का समीकरण बनाने की कोशिश की। मुसलमानों की आबादी के अनुपात से ज्यादा 100 टिकट दिए, जिससे दूसरी जातियां नाराज हुईं। जब मायावती को लगा कि खेल खराब हो रहा है तो उनने फिर पिछड़ जातियों का सम्मेलन आरंभ किया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। वैसे भी जिन लोगों ने 2007 से 2012 के बीच उनका शासन देखा है उसमें कोई ऐसा आदर्श तत्व नहीं था जिससे उनके प्रति बहुमत का आकर्षण हो। मुसलमानों ने भाजपा को हराने के लिए जो रणनीतिक मतदान आरंभ किया उसका असर भी हिन्दुओं पर हुआ और वह भी परिणाम में निर्णायक तत्व बन गया। सबसे अंत में 6ठे चरण के दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वाराणसी में जनदर्शन के नाम से रोड शो तथा उसके बाद अंतिम चरण के पूर्व दो दिनों तक वाराणसी में रहना, रोड एवं सभाए करना ऐसी रणनीति थी जिसने उसके लिए कभी भी अनुकूल न रहे पूर्वांचल में आलोड़न पैदा कर दिया।

अन्य राज्यों में उत्तराखंड मंें पिछले चुनाव में केवल .66 प्रतिशत से कांग्रेस आगे थी। उसे बहुमत भी नहीं मिला था। तो यह परिणाम कभी भी बदल सकता था। हालांकि हरीश रावत ने चुनाव रणनीति में पूरी परिपक्वता का परिचय दिया लेकिन उनकी पार्टी में जो भारी विद्रोह हो चुका था उसकी भरपाई जरा कठिन थी। भाजपा को भारी बहुमत मिला है। हरीश रावत की दोनों स्थानों से पराजय यह बताता है कि उनके एवं उनकी सरकार के खिलाफ कितना जन आक्रोश था। पंजाब में लोकसभा चुनाव के समय ही मोदी लहर के बावजूद अकाली एवं भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था। आम आदमी पार्टी ने 33 विधानसभा सीटों पर तथा कांग्रेस ने 37 विधानसभा सीटों पर बढ़त पाई थी। उस समय आम आदमी पार्टी चरम लोकप्रियता पर थी। विधानसभा चुनाव आने के पूर्व ही उसकी पार्टी में विभाजन हो गया। वह मालवा क्षेत्र में सिमटी रह गई। इसके विपरीत कांग्रेस संगठन की दृष्टि से उससे आगे थी। वह मांझा और दोआबा मंें भी मजबूत थी। अकाली भाजपा सरकार के विरुद्व गुस्से का लाभ उठाने की हालत में वह ज्यादा थी। नवजोत सिंह सिद्वू का अंतिम समय में कांग्रेस में आना और चुनाव लड़ना भी उसके पक्ष में गया। सिद्धू भाजपा में रहते हुए चाहते थे कि उनको पंजाब में राजनीति करने दिया जाए, पार्टी अकाली से रिश्ता तोड़े तथा अकेले दम पर आगे बढ़े। पार्टी को यह स्वीकार नहीं था। हालांकि उनकी बात मानी जाती तो भाजपा आज संभवतः बेहतर स्थिति में होती। जो भी हो पंजाब में कांग्रेस की विजय उसके लिए प्राणवायु के समान है। 2013 के बाद पहली बार कहीं वह अपनी बदौलत विजय पाने में सफल हुई है। हालांकि इसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह की भूमिका बहुत बड़ी है जिनने लोगों से भावुक अपील की थी यह उनके जीवन का अंतिम चुनाव है।

अन्य दो राज्यों गोवा एवं मणिपुर में को लें तो वहां भी परिणाम अपेक्षा के विपरीत नहीं है। गोवा में  संघ के पुराने प्रचार सुहास वेलिंगकर ने गोवा रक्षा मंच बनाया, शिवसेना एवं महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के साथ गठबंधन बनाया और वह भाजपा को कुछ नुकसान पहुंचाने में सफल रही है। वह बहुमत तक नहीं पहुंच पाई। आम आदमी पार्टी ने प्रचार तो बहुत किया लेकिन गोवा में परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों भाजपा एवं कांग्रेस के बीच पैठ बनाना उसके लिए कठिन था। इन दोनों पार्टियों का वहां पुराना संगठन है। यहां तक कि भाजपा वहां कैथोलिक ईसाइयों तक को अपनी नीतियों से साथ रखने में लंबे समय से सफल रही है। इस बार मनोहर पर्रिकर के मुख्यमंत्री न होने का असर था। किंतु सबसे बड़ी चिंता कांग्रेस को होनी चाहिए कि आखिर भाजपा के शासन के विरुद्ध असंतोष का भी लाभ वह नहीं उठा सकी तथा वेलिंगकर के विद्रोह का भी। मणिपुर की ओर लौटें तो वहां के मतदाताआंे के एक बड़े वर्ग को विकल्प की तलाश थी। पहले उसे विकल्प नहीं मिल रहा था। इस बार एक ओर नगा पीपुल्स फंट ने नागाओं को विकल्प दिया तथा दूसरी और भाजपा ने उत्तर पूर्व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाकर विकल्प देने की कोशिश की। जितनी संख्या में कांग्रेस के लोगों ने पार्टी का परित्याग कर भाजपा का दामन थामा था उससे लग रहा था कि मुख्यमंत्री इकराम ओबीबी सिंह के नेतृत्व को लेकर असंतोष है। नए जिला बनाने के विरुद्ध जो बंद हुआ वह भी कांग्रेस के खिलाफ गया। उसे वह परिणाम नहीं मिला जो 2012 में था। भाजपा की प्रदेश में इतनी बड़ी पैठ सामान्य नहीं है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

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