बुधवार, 31 मई 2023

क्या संयुक्त राष्ट्रसंघ से अलग हो सकता है भारत

अशोक मधुप

 भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने  लिए विटो पावर देने की मांग करता आ रहा है। वह मानता है  कि विटो पावर धारक पांच राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ को अपनी बपौती समझे  बैठे हैं। वह अपनी मर्जी के हिसाब से इसे  चला रहे हैं। चाहे आतंकवाद का मसला हो, या रूस और यूक्रेन युद्ध का। सूडान के आंतरिक विद्रोह और म्यामार के  मामले में  भी तमाशबीन के अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ कोई महत्वपूर्ण भूमिका  नही निभा  पा रहा। मनमर्जी का प्रस्ताव न होने पर विटो पावर धारक कोई भी देश अपनी विटो पावर का इस्तमाल कर प्रस्ताव को रोक देता  है। भारत इस सब हालात को लेकर वह चिंतित है। वह इस व्यवस्था में सुधार की मांग कर रहा है। उसकी लंबे समय ये मांग  है कि भारत को विटो पावर दी जाए। किंतु संयुक्त राष्ट्र संघ में यदि भारत को विटो की पावर न मिली तो हाे सकता  है कि आगे चलकर भारत इससे अलग हो जाए। ये बात विटो पावर देश भी धीरे–धीरे समझने लगे हैं।

हिरोशिमा में बीते रविवार को जी-7 के सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में सुधार की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि पिछली सदी में बनाई गईं वैश्विक संस्थाएं 21वीं सदी की व्यवस्था के अनुरूप नहीं हैं। जब तक इसमें मौजूदा विश्व की वास्तविकता प्रतिबिंबित नहीं होती, तब तक यह मंच महज चर्चा की एक जगह (टॉक शॉप) बना रहेगा। उन्होंने सवाल उठाया, शांति बहाली के विचार के साथ शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र (यूएन) आज संघर्षों को रोकने में सफल क्यों नहीं हो रहा? संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद की परिभाषा तक क्यों नहीं स्वीकार की गई है?

मोदी ने आश्चर्य जताया कि जब शांति और स्थिरता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए बना संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में है, तो इन पर चर्चा के लिए अलग-अलग मंचों की जरूरत क्यों पड़ती है। इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए। यह जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लागू किया जाए। इस मंच को कमजोर देशों की आवाज भी बनना होगा।

पीएम मोदी ने चीन का नाम लिए बिना कहा, सभी देश यूएन चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें। यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिशों के खिलाफ मिलकर आवाज उठाएं। भारत का हमेशा यह मत रहा है कि किसी भी तनाव, किसी भी विवाद का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से, बातचीत के जरिये किया जाना चाहिए।

इस कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मोदी की मांग से सहमति जताई। उन्होंने हिरोशिमा में पत्रकारों से कहा, यह मौजूदा विश्व के अनुरूप सुरक्षा परिषद तथा व्यापार संगठन में बदलाव का वक्त है। दोनों ही संगठन 1945 के शक्ति संबंधों को प्रतिबिंबित करते हैं। वैश्विक वित्तीय संगठन पुराना, निष्क्रिय व अनुपयोगी हो चुका है। यह कोविड व यूक्रेन हमले के बीच वैश्विक सुरक्षा की अपनी मूल जिम्मेदारी को निभाने में विफल रहा है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर 29 दिसंबर से तीन  जनवरी तक साइप्रस और ऑस्ट्रिया के दो देशों की यात्रा पर थे। उनकी ऑस्ट्रिया की यात्रा तीन जनवरी को खत्म हुई। जयशंकर ने सोमवार को ऑस्ट्रिया के राष्ट्रीय प्रसारक ओआरएफ को एक इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में विदेश मंत्री से पूछा गया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इस सुधार में कितना समय लगेगा। इसके जवाब में उन्होंने कहा, "...जो लोग आज स्थायी सदस्यता के लाभों का आनंद ले रहे हैं, वे स्पष्ट रूप से सुधार देखने की जल्दी में नहीं हैं। मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही अदूरदर्शी दृष्टिकोण है... क्योंकि अंततः संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता और उनके अपने हित और प्रभावशीलता दांव पर हैं।" उन्होंने आगे कहा, “मेरी समझ में, इसमें कुछ समय लगेगा, उम्मीद है कि बहुत अधिक समय नहीं होगा। मैं संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के बीच बढ़ती राय देख सकता हूं जो मानते हैं कि इसमें बदलाव होना चाहिए। यह सिर्फ हमारी बात नहीं हैं।" साइप्रस आदि देशों की यात्रा के बाद उनका ये अभियान और विदेशों के दौरे जारी हैं।

दरअस्ल भारत पिछले काफी समय से अपने लिए विटोपावर की मांग तो कर ही रहा है। साथ ही विश्व के अन्य देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ की सच्चाई  बताने में लगा है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर काफी समय से दूसरे देशों की यात्रा कर संयुक्त राष्ट्र संघ की सच्चाई बताने में लगे हैं। वह बता रहे है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की आज कोई उपयोगिता नही रह गई है। यह कोई निर्णय करने में भी सक्षम नही हैं।अकेले भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर  ही नही बल्कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत कुमार डोभाल भी  लंबे समय से विदेशी दौरों पर हैं। ये दोनों घूम−घूमकर भारत के पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं। अन्य देशों को सुरक्षा परिषद की सच्चाई भी बता रहे हैं। यह भी समझाने में लगे हैं कि कैसे पांच विटो पावर देश गैर विटो पावर देशों के हितों को नुकसान पंहुचा रहे हैं।

भारत अभी तक संयुक्त राष्ट्र के मंच पर अपनी बात कहता आया था। अब दूसरे मंच पर संयुक्त राष्ट्र संघ की गलती निकालना इस बात की और संकेत करता है कि अब वह दिन दूर नहीं जब भारत खुलकर इसका  विरोध करेगा। भारत के इरादे संयुक्त राष्ट्र संघ के विटो पावर धारक देश भी समझने लगे हैं। आगे भी ऐसा ही रहा और सुधार न हुआ तो हो सकता है कि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ से अलग हो जाए। ये भी हो सकता है कि भारत के साथ कुछ अन्य देश भी इससे नाता तोड़ लें।

सोमवार, 29 मई 2023

गुरुवार, 25 मई 2023

सिविल सेवा में चयनित युवाओं को जाति और धर्म में मत बांटिए

अशोक मधुप
संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा का कल रिजल्ट आया। भारतीय विदेश  सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय प्रशासनिक सेवा  और केंद्रीय सेवा समूह ‘ए’ और समूह ‘बी’ में नियुक्ति के लिए कुल 933 उम्मीदवारों की अनुशंसा की गई है। अनुशंसित 933 उम्मीदवारों में से 345 सामान्य, 99 ईडब्ल्यूएस, 263 ओबीसी के हैं, 154 एससी, 72 एसटी के हैं। 178 उम्मीदवारों को वेटिंग लिस्ट में रखा गया है। परीक्षा में इशिता किशोर ने एयर एक रैंक हासिल की है। उसके बाद गरिमा लोहिया, उमा हरथी एन और स्मृति मिश्रा रहीं। इस बार खास बात यह की लड़कियों ने परीक्षा में दबदबा कायम किया है।
रिजल्ट आते के साथ ही जाति और धर्म के लंबरदारों ने विजयी होने अपनी जाति और धर्म के युवाओं को खोजकर उन्हें बधाई देना शुरू कर दिया। कोई विजयी को ब्राह्मण बता रहा है कोई जाट। कोई चयनित को ठाकुर बताकर बधाई दे रहा है तो कोई सैनी बताकर। प्रदेश के और जनपद के चयनित युवाओं को भी बधाई दी जा रही है। कोई गांव के लोगों को अपने गांव का बताकर बधाई दे रहा है, तो कोई जिले का बताकर। कहीं अपनी जाति वे विजयी आईएएस को समाज की ओर से सम्मानित करने की बात की जा रही है तो कहीं गांव और जनपद की ओर से। कोई ब्राह्मण समाज की और से बिरादरी के चयनित को सम्मानित करने की बात कर रहा है। तो कोई जाट युवाओं का जाट बिरादरी की ओर से सम्मानित करने के दावे कर रहा है। जाति में भी गोत्र तक की खोज होने लगी। इन चयनित युवाओं में सब अपनी-अपनी बिरादरी के युवा खोजने में लगे हैं। सब अपनी ढपली लिए हैं, अपनी जाति, धर्म और संप्रदाय की माला जपने में लगे हैं। कहीं किसी को बिहार का बताया जा रहा है तो कहीं झारखंड का।
देश के विकास की गाथा लिखने निकले इन युवाओं का जाति और धर्म में बांटा जा रहा है। इन युवाओं को जातियों, धर्म और संप्रदाय में बांटने का जाने.अनजाने किया जा रहा प्रयास बहुत गलत गलत कार्य है। ये समाज को जाति, वर्ग और धर्म में बांटने के षड्यंत्र का एक भाग है। हम पहले ही बहुत विभाजित हैं। इस सामज के पहले से ही चले आ रहे विखंडन को ही एकत्र करने के प्रयास के बाद भी ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही। अब ये नई खिंच रही विभाजन की रेखा समाज में और बड़ी खाई पैदा करेगी। इससे बचने और दूर रहने की जरूरत है। ऐसे लोगों को समझाने की जरूरत है।
संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा के चयनित युवा देश के विकास की गाथा लिखने के लिए आए हैं। सिविल सेवा में वे सभी मैरिट से चुने गए। इनका कार्य देशवासियों को समान रूप से सामाजिक योजनाओं का लाभ दिलाना, बिना भेदभाव के लिए न्याय करना है। नागरिकों के लिए न्याय कर समान रूप से सामाजिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी इन्ही पर आती है। गरीबों को आगे लाकर उन्हें विकास की धारा में शामिल कराने का दायित्व भी इनका ही बनता है। कोई कितना भी सम्मानित कर ले, बधाई दे ले, ये पद पर आकर वहीं करेंगे, जो इन्हें आदेश होंगे। जो कानून कहेगा, जो सरकार की गाईड लाइन बताएगी। ये न जाति के प्रभाव में आएंगे, न समुदाए के न धर्म की रेखा इनके निर्णय में बाधा बनेगी।ऐसे में इन्हें जाति, वर्ग और धर्म में बांटना गलत है।ये देश और समाज के हैं। इन्हें उसी का रहने दीजिए। काफी समय से एक बात अैर तेजी से बढ़ी है। दलित की लड़की से से बलात्कार। बलात्कार के बाद दलित युवती की हत्या। इस तरह की बात करने वाले, नारे लगाने वाले अैर खबर लिखने वालों के लिए बताते चलें कि बेटी गांव की होती है, समाज की होती है। वह न दलित की होती है, न सर्वण की। इस तरह की बात करना भी इसी विखंडन का हिस्सा है। इसे जितनी जल्दी समझ लिया जाए, उतना ही बेहतर है।
ऐसा ही पिछले कुछ समय से देश के शहीद और क्रांतिकारियों के साथ हो रहा है। महात्मा गांधी को बनिया, लाल बहादुर शास्त्री को कायस्थ, कांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को ब्राह्मण बताया जा रहा है तो महाराणा प्रताप को राजपूत। महापुरूष, शहीद और क्रांतिकारी देश और समाज के होते हैं। जाति और धर्म के नही। शहीद स्थनों पर सभी धर्म और जाति के लोग जाते तथा श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नूरपुर में आजादी की लड़ाई में थाने पर ध्वजारोहण करने का प्रयास करते दो युवक प्रवीण सिंह और रिखी सिंह शहीद हुए। ये पूरे समाज के लिए पूज्य हैं, आदरणीय हैं। इन्के शहीद स्थल पर हर साल शहीद मेला लगता है। सभी जाति धर्म के स्त्री-पुरूष इस शहीद स्थल पर आते दीप जलाते और श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं , अब इन्हें ठाकुर और चौहान बताकर समाज से दूर किया जा रहा है। इन पर ठाकुर और चौहान अपना हक बताने लगे।ये गलत है। ऐसा करने वालों को समझाना चाहिए। बताया जाना चाहिए कि इससे दूर रहें।
हिंदू धर्म के मानने वाले सभी धर्म स्थलों पर जाते हैं, चाहे वह किसी भी समाज के हों। मंदिर की तरह उन्हें बौद्ध मठ, गुरूद्वारे चर्च और पीर. पैंगम्बर के स्थान भी पूजनीय हैं, सभी जगह जाते हैं।सभी को मानतें हैं और सजदा करते है। अगर इन स्थानों को अपने धर्म के लिए ही निर्धारित किया जाएगा, तो गलत ही होगा।
देश के युवाओं, प्रतिभाओं सैनिको , सैनानियों क्रांतिकारियों, शहीदों और समाज के महापुरूषों को जातियों और धर्म में बांटना समाज के विखंडन की प्रक्रिया का हिस्सा है,ऐसे में इसे रोकिए। समाज का जोड़ने आगे बढ़ाने के लिए आगे आईए। बांटने के लिए नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अमेरिकी धार्मिक रिपोर्ट भारत के लिए अस्वीकार्य

अवधेश कुमार

अमेरिका ने फिर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी वार्षिक रिपोर्ट में भारत को अल्पसंख्यक विरोधी देश साबित करने की कोशिश की है। अमेरिका इसे विश्व भर के देशों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का तथ्यात्मक एवं प्रामाणिक दस्तावेज घोषित करता है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय के विशेष राजदूत राशद हुसैन ने कहा कि रिपोर्ट विश्व भर के लगभग 200 देशों और क्षेत्रों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में एक तथ्य आधारित व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इसे जारी करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों को उजागर करना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता का दमन किया जा रहा है और अंततः प्रगति को ऐसे विश्व की ओर ले जाना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता हर जगह हर किसी के लिए एक वास्तविकता हो। ब्लिंकन ने भारत का उल्लेख नहीं किया, पर रिपोर्ट में भारत का संदर्भ भयानक तस्वीरों से भरी है। राशद हुसैन के बयान में भारत का जिक्र है। उन्होंने कहा कि कई सरकारों ने अपनी सीमाओं के भीतर धार्मिक समुदाय के सदस्यों को खुले तौर पर निशाना बनाना जारी रखा है। इन सरकारों के संदर्भ में रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्षों का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारत का नाम स्पष्ट तौर पर लिया। उसके बाद चीन और अफगानिस्तान समेत कई देशों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में विविध धार्मिक समुदाय से जुड़े कानून के हिमायती और धार्मिक नेताओं ने हरिद्वार शहर में मुस्लिमों के खिलाफ घोर नफरत भाषा का इस्तेमाल किया जो निंदनीय है। 

इसमें 20 से अधिक ऐसी घटनाओं का जिक्र है जिससे आभास होता है कि भारत की वर्तमान सरकार के अंदर बहुसंख्यक समुदाय यानी हिंदू अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले कर रहा है, उनके भवनों को तोड़ रहा है , जला रहा है , उनके धार्मिक अधिकारों के पालन में बाधाएं खड़ी कर रहा है। उदाहरण के लिए कहा गया है कि इस वर्ष कई राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यक सदस्यों के खिलाफ कानूनी एजेंसी अधिकारियों द्वारा हिंसा की रिपोर्ट सामने आई। गुजरात में सादी वर्दी में पुलिस द्वारा अक्टूबर में एक त्यौहार के दौरान हिंदुओं को घायल करने के आरोपी चार मुस्लिम पुरुषों को सार्वजनिक रूप से पीटने और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा अप्रैल में खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुस्लिमों के घरों और दुकानों पर बुलडोजर चलाने की बात कही गई है। इसे मुस्लिमों पर अत्याचार के रूप में पेश किया गया है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा बुलडोजर से घर और संपत्तियां ध्वस्त करने का भी इसी रूप में उल्लेख है। कोई निष्पक्ष और विवेकशील व्यक्ति इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं कर सकता। भारत जैसे विविधताओं के देश में समुदायों के बीच कभी-कभार विवाद, टकराव आदि होते हैं, किंतु यह कहना कि केंद्र व राज्य सरकारों की भूमिका से इसे प्रोत्साहन या संरक्षण मिलता है गलत है। न्यायपालिका के हाथों ही ऐसे मामलों में अंतिम कानूनी फैसले का अधिकार है। अमेरिकी रिपोर्ट में भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका की भूमिका को नजरअंदाज किया गया है। इसमें तथ्यात्मक गलतियां भी हैं। उदाहरण के लिए हरिद्वार की जिस सभा का जिक्र है उसके कई लोगों पर न केवल मुकदमे हुए बल्कि उन्हें जेलों में भी डाला गया। भारत को पाकिस्तान, चीन,अफगानिस्तान आदि की श्रेणी में रखना साफ करता है कि रिपोर्ट तैयार करने वालों का उद्देश्य क्या हो सकता है।

हालांकि इसमें हैरत की कोई बात नहीं है। अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी रिपोर्ट में न जाने कितने वर्ष ऐसी बातें अलग - अलग तरीके से कही गई हैं। पिछले 2 मई को ही अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग यानी यूएससीआईआरएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया जाए जो धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिंताजनक माने जाते हैं। यह अमेरिका की काली सूची यानी ब्लैक लिस्ट  है। इसमें चीन, रूस, सऊदी अरब, ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान आदि शामिल है। इस वर्ष निकारागुआ, वियतनाम और भारत को शामिल करने की सिफारिश की गई है। यह आयोग पिछले 4 वर्षों से ऐसी सिफारिश कर रहा है। हां,अमेरिकी विदेश विभाग इसे स्वीकार नहीं करता। कल्पना कर सकते हैं कि रिपोर्ट बनाने वालों की मानसिकता कैसी होगी? भारत को निकारागुआ ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान की श्रेणी में रखने वाले लोगों की सोच पर तरस आना चाहिए। किंतु दूसरी ओर यह बताता है कि भारत और यहां के हिंदू समाज को लेकर विश्व भर में कैसी मानसिकता बनाई गई है खासकर मोदी सरकार आने के बाद। 

 वर्तमान धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी रिपोर्ट मीडिया एडवोकेसी रिसर्च ग्रुप्स के द्वारा तैयार किया गया है। इस समूह में कौन-कौन संस्थाएं और लोग शामिल हैं इनकी जानकारी सामने आनी चाहिए । राशद हुसैन पाकिस्तानी मूल के हैं। रिपोर्ट जारी होने के बाद वैश्विक स्तर पर एएफपी न्यूज़ एजेंसी द्वारा एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी से बातचीत प्रकाशित हुई जिनका नाम नहीं लिया गया। उसने कहा कि हम भारत में सिविल सोसायटी और संगठनों तथा अपने समर्थक पत्रकारों के साथ इसके लिए काम करना जारी रखेंगे जो हर दिन इनमें से कुछ दुर्व्यवहारों का दस्तावेजीकरण करने के लिए काम कर रहे हैं। इसका अर्थ क्या है? 

हम यह कह सकते हैं कि हिंदुओं के संस्कार, चरित्र और  हिंदू धर्म को अपने रीलीजन के अनुसार देखने के कारण भी पश्चिमी एवं अन्य देशों में समस्याएं पैदा होती हैं। किंतु इस बयान से साफ है कि भारत के ही संगठन और पत्रकार इस तरह की रिपोर्ट देते हैं। तो जब हमारे यहां ही आपकसरकार और उससे जुड़े संगठनों को अल्पसंख्यकों का खलनायक साबित करेंगे और उसके अनुसार रिपोर्ट देंगे तो दुनिया की संस्थाएं उन्हें हाथों-हाथ लेंगी। कई बार भारत में इस सच को स्वीकार करने में बहुत लोग बचते हैं कि यहां के बारे में दुष्प्रचार में अपने ही लोगों की भूमिका सबसे ज्यादा होती है। इसके पहले भी अनेक घटनाएं आईं हैं। कोई छोटी सामान्य घटना देखते देखते-देखते दुनिया भर में सोशल मीडिया से लेकर  मुख्य मीडिया तक बड़ी घटना के रूप में प्रचारित हो जाती है और उसका उत्तर देना या खंडन करना कठिन हो जाता है। रिपोर्ट में जिन घटनाओं का उल्लेख है वह हमारे यहां के लोगों और संगठनों ने ही तैयार किया और बनाया है। विडंबना देखिए कि इसमें संघ प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत के कई बयानों को अल्पसंख्यकों पर जुल्म के प्रमाण के रूप में पेश किया गया है। संघ प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत के कई बयानों को प्रमाण के रूप में पेश किया गया है। एक उदाहरण देखिए– 2021 में भागवत ने कहा था कि देश में हिंदुओं और मुसलमानों के साथ धर्म के आधार पर अलग-अलग व्यवहार नहीं करना चाहिए और गोकशी के लिए गैर हिंदुओं की हत्या हिंदुत्व के विरुद्ध है। जरा सोचिए, जो संगठन वर्तमान शासन वाली पार्टी का भी उद्गम है ,उसके प्रमुख अगर ऐसी बातें कर रहे हैं तो सरकार और संगठन को किस तरह हिंसा को प्रोत्साहित प्रायोजित और संरक्षित करने वाला माना जाए? डॉक्टर भागवत ने भी यह नहीं कहा कि भारत में ऐसी घटनाएं आम हैं। भारत में ऐसी रिपोर्ट का समर्थन करने वाले इस बात का ध्यान रखें कि जब आप भाजपा, संघ और उससे जुड़े संगठनों पर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा करने के आरोप को प्रचारित करते हैं तो चूंकि ये हिंदुओं के संगठन हैं इसलिए इससे विश्व भर में हिंदुओं की छवि विकृत होती है। इस कारण अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा ऑस्ट्रेलिया सहित कई यूरोपीय देशों में हिंदू नफरती अपराध तथा हिंसा के शिकार हो रहे हैं। अपनी उत्साहित प्रतिक्रिया देने से पहले इस पहलू पर अवश्य विचार करना चाहिए। दूसरे, अमेरिका के यहां अन्य धार्मिक समुदायों तथा अमेरिकी समाज के क्षेत्रों के साथ क्या कुछ हुआ हो रहा है इसे भी उजागर करना चाहिए। अनेक देशों के मुसलमानों को अमेरीकी भूमि पर उतरने के साथ हवाई अड्डों पर जिस तरह की सुरक्षा जांच का सामना करना पड़ता है उससे बड़ा भेदभाव कुछ हो नहीं सकता।  दूसरे धर्म के लोगों पर वहां नफरत से भरी हिंसा हो रही है। हिंदुओं के बारे में एक रिपोर्ट कहता है कि पिछले कुछ समय से उनके विरुद्ध घृणा, दुष्प्रचार और हिंसा में 1000 गुना की वृद्धि हुई है। भारत सदियों से अनेक पंथो, संप्रदायों का देश है। विविधता और सहिष्णुता इसकी संस्कृति थी है और रहेगी। इसके लिए हमें किसी बाहरी से सीख लेने की आवश्यकता नहीं है। जो समस्याएं उभरतीं हैं उनको निपटाने में भारत के लोग और संस्थाएं सक्षम हैं। ये बातें मुखरता से अमेरिकी कानों तक पहुंचाना आवश्यक हो गया है।

सोमवार, 22 मई 2023

रविवार, 21 मई 2023

क्या है 'रेवड़ी',क्या है 'ज़रूरत' कौन करेगा तय?

तनवीर जाफ़री   

उत्तर प्रदेश के जालौन में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करते समय 15 जुलाई 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में सर्वप्रथम उन राजनैतिक पार्टियों पर निशाना साधा था जो चुनाव जीतने मात्र के लिये जनता को लालच देने वाली योजनाओं की घोषणाएं किया करते हैं। प्रधानमंत्री ने इसे 'रेवड़ी कल्चर' का नाम दिया था। उन्होंने कहा था कि -'मुफ़्त की रेवड़ियों का ऐलान कर वोट लेने की कोशिश करने का अभ्यास देश के विकास के लिए हानिकारक है'। चुनावी घोषणाओं में देश की जनता को मुफ़्त की चीज़ों का लालच देकर वोट हासिल करने की साज़िश की है। ये रेवड़ी कल्चर आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक साबित होगा। ऐसे लोगों को लगता है कि मुफ़्त की रेवड़ी के बदले उन्होंने जनता जनार्दन को ख़रीद लिया है'। यही बात प्रधानमंत्री ने गत 26 अप्रैल को कर्नाटक में भी एक चुनावी जनसभा के दौरान दोहराते हुये कहा कि - ‘मुफ़्त की रेवड़ी की राजनीति की वजह से कई राज्य बेतहाशा ख़र्च अपनी दलगत भलाई के लिए कर रहे हैं। राज्य डूबते चले जा रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों का भी ये खा जा रहे हैं।  देश ऐसे नहीं चलता, सरकार ऐसे नहीं चलती।'

परन्तु इसी के साथ प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार द्वारा दी जा रही 'मुफ़्त सेवाओं '  की पैरवी इन शब्दों में की - उन्होंने कहा कि -' कुछ तात्कालिक चुनौतियों से निपटने के लिए देश के ग़रीब परिवारों को हर संभव सहायता दी जा रही है और ये सरकार का दायित्व है। कोरोना के समय हमें ज़रूरत लगी तो हमने मुफ़्त वैक्सीन दिया देश को… क्योंकि जान बचानी थी’ ‘मुफ़्त राशन देने की ज़रूरत पड़ी तो दिया गया क्योंकि देश में कोई व्यक्ति भूखा नहीं रहना चाहिए। लेकिन देश को आगे बढ़ाना है तो हमें इस 'रेवड़ी कल्चर' से मुक्त होना ही पड़ेगा। ’ आज सरकार के प्रतिनिधि बड़े गर्व से बताते रहते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कोरोनाकाल में ग़रीब लोगों को 5  किलो अनाज मुफ़्त दिये जाने की जो योजना शुरू की गयी थी उसका फ़ायदा देश के 80 करोड़ लोग उठा रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि कोरोना काल ख़त्म हो जाने के बावजूद इस मुफ़्त राशन योजना को फ़िलहाल दिसंबर 2023 तक बढ़ाये जाने कभी ख़बर है।

जहां तक कोविड के दौरान मुफ़्त वैक्सीन लगाये जाने का प्रश्न है तो देश में अभी तक जितनी भी महामारी सम्बन्धी वैक्सीन लगाई गयी हैं कभी भी किसी भी सरकार द्वारा जनता से उसके पैसे वसूले नहीं गये। हाँ कोविड वैक्सीन से पहले किसी सरकार के मुखिया ने अपनी फ़ोटो युक्त प्रमाणपत्र ज़रूर नहीं बांटे जोकि राजनैतिक प्रचार के सिवा और कुछ नहीं था। दुनिया के कई देशों में इसका मज़ाक़ भी उड़ाया गया। रहा सवाल मुफ़्त राशन बांटने का तो पिछले लोकसभा चुनाव में तो भारतीय जनता पार्टी ने मुफ़्त राशन हासिल करने वाले मतदाताओं की अलग श्रेणी ही बना डाली जिसका नाम 'लाभार्थी ' रखा गया। कोई आश्चर्य नहीं कि यह योजना दिसंबर 23 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव तक भी बढ़ा दी जाये। रहा सवाल देश के लोगों की भूख की फ़िक्र करने की तो यहाँ यह भी याद रखना ज़रूरी है कि पेट तो राशन से भरता है न कि प्रधानमंत्री के चित्र छपे उन मज़बूत थैलों से जिनकी क़ीमत उन थैलों में पड़े राशन से भी अधिक थी। भूख मिटाने के नाम पर किया जाने वाला इसतरह का पार्टी प्रचार सरकारी ख़र्च पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का तरीक़ा नहीं तो और क्या है ?

कर्नाटक में मोदी को इसलिए 'रेवड़ी'  फिर याद करनी पड़ी क्योंकि कांग्रेस ने भाजपा द्वारा अपने चुनाव प्रचार में परोसे गये विभाजनकारी एजेंडे के मुक़ाबले में राज्य की जनता से पांच ऐसे वादे किये थे जो सीधे तौर पर कांग्रेस को फ़ायदा पहुँचाने वाले तो ज़रूर थे परन्तु सरकार के राजस्व पर निश्चित रूप से भरी बोझ साबित होने वाले थे। इनमें एक वादा था 'गृह लक्ष्मी योजना,  इसके अंतर्गत महिलाओं को हर महीने 2000 रुपये की सहायता राशि देने की बात है जबकि 'युवा निधि योजना' के तहत स्नातक की पढ़ाई करने वाले युवाओं को दो साल तक 3 ,000 रुपये और डिप्लोमा होल्डर्स को दो साल तक 1500 रुपये प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता दिए जाने का वादा किया गया है। इसी प्रकार 'अन्न भाग्य' योजना में ग़रीब परिवारों को हर महीने 10 किलो चावल की गारंटी देने की बात कही गयी है तो 'सखी योजना' के तहत महिलाओं को सरकारी बसों में फ़्री बस पास उपलब्ध कराने का घोषणा की गयी है। इसी तरह ' गृह ज्योति' योजना में हर घर  को 200 यूनिट फ़्री बिजली देने का वादा किया गया है। कर्नाटक की नई सिद्धारमैया सरकार ने शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले इन्हीं वादों को पूरा करने की घोषणा भी कर दी है।  

इसके पहले हिमाचल प्रदेश में गत वर्ष हुये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जनता से जो अनेक वादे  किये थे उनमें सत्ता संभालते ही बेरोज़गार युवाओं को एक लाख सरकारी नौकरियां देने,ग्रामीण सड़कों के लिए भू-अधिग्रहण क़ानून लागू कर भू-स्वामियों को चार गुना मुआवज़ा देने,महंगाई से निपटने के लिए लोगों की जेबों में पैसा डालने,पुरानी पेंशन योजना (OPS ) लागू करने, महिलाओं को 1500 रुपए प्रति माह देने और 300 यूनिट बिजली मुफ़्त देने जैसे वादे प्रमुख थे। ऐसे ही वादों ने कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक में सत्ता दिलाई। इसी प्रकार दिल्ली में बिजली पानी शिक्षा व स्वास्थ्य की मुफ़्त घोषणा कर अरविंद केजरीवाल सत्ता में आये।और यही 'रेवड़ी वितरण फ़ार्मूला' पंजाब में भी लागू किया गया। पूर्व में भी किसानों का क़र्ज़ मुआफ़ करने, किसानों का बिजली बिल मुआफ़ करने के नाम पर विभिन्न पार्टियां वोट मांगती रही हैं।कहीं मुफ़्त तीर्थ यात्रा करने के नाम पर वोट तो कहीं मुफ़्त शौचालय बनाने के नाम पर,कहीं मुफ़्त आवास देने के नाम पर, कहीं मुफ़्त राशन के नाम पर तो कभी मुफ़्त वैक्सीन के नाम पर वोट माँगा जाता रहा है। मध्य प्रदेश में भी ऐसी कई 'रेवड़ी 'योजनायें चल रही हैं। गोया रेवड़ियां बांटने में कोई भी दल किसी से पीछे नहीं है। ऐसे मे यह तय करने का अधिकार आख़िर किसे है और यह कौन तय करेगा कि कौन सी योजना 'रेवड़ी वितरण ' की श्रेणी में आती है और कौन सी योजना जनता की वास्तविक ज़रुरत है ? परन्तु यह तो तय है कि चाहे वह 'रेवड़ी' हो या ज़रुरत की घोषणायें, सभी राजनैतिक दल इनसे चुनावी लाभ ही हासिल करना चाहते हैं।

तनवीर जाफ़री  संपर्क - 9896219228
                                                                                  

शुक्रवार, 19 मई 2023

जिम के नाम पर पार्काें का विनाश

श्याम कुमार

शहरों में हरियाली से भरे पार्क फेफड़ों का काम करते हैं, क्योंकि उस हरियाली से क्षेत्र के लोगों को ऑक्सीजन मिलती है तथा इलाके में प्रदूशण कम होता है। लेकिन आजादी के बाद दीर्घकालीन कांग्रेसी षासन में नलकूप आदि लगाकर पार्काें की हरियाली को विनश्ट किया गया। तमाम अच्छे-भले आकर्शक पार्क उजाड़ दिए गए। जलापूर्ति के लिए पार्काें में नलकूप आदि लगाने के बजाय अन्यत्र जगहें तलाष की जानी चाहिए थीं तथा अन्य उपायों का सहारा लिया जाना चाहिए था। अब एक नया फितूर पार्काें में जिम लगाए जाने के नाम पर सामने आया है। इसके परिणामस्वरूप हमारे पार्क हरियाली से परिपूर्ण पार्काें के बजाय अब ‘जिम पार्क’ का रूप ले लेंगे। यह कुकृत्य इस बात का भी ज्वलंत उदाहरण है कि अहंकार में चूर हमारी अफसरषाही षासन को बरगलाकर टैक्स के रूप में जनता से प्राप्त हुए धन की किस प्रकार बरबादी करती है!
       अफसरषाही द्वारा सरकार को बरगलाकर षहरों के पार्काें को ‘जिम पार्क’ में बदल देने की जो योजना इस समय कार्यान्वित की जा रही है, उससे पार्काें में हरियाली को तो क्षति पहुंचेगी ही, पार्काें में जिम की कसरतें करने के लिए षोहदों को इकट्ठा होने का अवसर भी मिल जाएगा। इस समय जो प्राइवेट जिमों का प्रचलन है, उनमें भारी षुल्क देकर लोग षरीर को हश्टपुश्ट रखने के उद्देष्य से जाते हैं। उनमें षुल्क दे सकने वाले वे षोहदे भी होते हैं, जो अपने हश्टपुश्ट षरीर से लड़कियों को रिझाने में समय लगाया करते हैं। लेकिन पार्काें में लगे जिम-उपकरणों के निःषुल्क इस्तेमाल की सुविधा हो जाएगी तो वहां अधिकतर गुंडेषोहदों का ही वर्चस्व हो जाएगा। अभी पार्काें में जो स्त्री-पुरुश टहलने जाते हैं, उनके सामने गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी। वहां उनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं होगी। थानों की पुलिस का यह हाल है कि जब से जहां भी पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हुई है, वहां पुलिस में सुनवाई और भी मुष्किल हो गई है तथा पुलिस का रूप बिलकुल बेलगाम हो गया है। पुलिस अधिकारी भी अफसरी अंदाज में डूबे रहते हैं।  
     गत 17 मार्च को सवेरे नौ बजे के लगभग अचानक कुछ लोग हमारी डायमंडडेरी कॉलोनी में आए और यहां स्थित नेताजी सुभाश पार्क में लगे हुए पेड़ों को उखाड़ने लगे। चूंकि मैं डायमंडडेरी कॉलोनी कल्याण समिति का अध्यक्ष हूं, इसलिए कॉलोनी के लोग भागे हुए मेरे पास आए और मुझे वहां ले गए। वहां मैंने पार्क में लगे पेड़ों को नश्ट किए जाने का विरोध किया। जो लोग पेड़ उखाड़ रहे थे, उनका मुखिया एक युवक सरदार था, जिसने बताया कि उसकी कंपनी को लखनऊ नगर निगम ने षहर के पार्काें में जिम बनाने के लिए ठेका दिया है, इसलिए वे लोग जिम के चौदह बड़े उपकरण लगाने के वास्ते पार्क के पेड़ों को हटाकर वहां जिम हेतु जमीन बना रहे हैं। जब उन्होंने जिद पकड़ ली कि उन्हें जिम के लिए जगह बनानी ही है तो मैंने उन्हें पार्क में कुछ ऐसी जगहें दिखा दीं, जहां वे अपने उपकरणों को लगा सकेंगे। उसके बाद मैं विधानसभा व लोकभवन चला गया और जब वहां से लौटा तो देखा कि उन लोगों ने किसी की नहीं सुनी तथा अपने अनुसार पार्क में तमाम जगह पेड़ों को नुकसान पहुंचाते हुए जिम के उपकरण लगाने के उद्देष्य से छोटे-छोटे प्लेटफॉर्म बना दिए हैं। जहां प्लेटफॉर्म बना दिए गए हैं, वहां पर पेड़ लगाने के लिए मैं अनगिनत पत्र लिखकर लखनऊ नगर निगम, उत्तर प्रदेष उद्यान निदेषालय एवं वन विभाग से अनुरोध कर चुका हूं। किन्तु नए पेड़ तो लगाए नहीं गए, जिम के नाम पर पार्क में वर्तमान हरियाली को भी नश्ट करने का कुत्सित कदम उठाया गया। अभी तो मौजूदा पेड़ों को ही क्षति पहुंचाई गई है, जब सारे उपकरण लग जाएंगे तो यह पार्क हरियाली से भरा हुआ पार्क लगने के बजाय मात्र ‘जिम पार्क’ होकर रह जाएगा। पार्क में लोगों के टहलने के लिए जो भ्रमणपथ(पाथवे) बना हुआ है, वह भी निरर्थक हो जाएगा।
       षहर के पार्काें में जिम-उपकरण लगाने की योजना भले ही अच्छे उद्देष्य से बनाई गई हो, लेकिन उस योजना के दुश्परिणामों पर बिलकुल विचार नहीं किया गया है। आष्चर्य नहीं कि उक्त योजना के पीछे लूटखसोट एवं कमीषनखोरी की भावना निहित हो। बाद में जब इस योजना के कार्यान्वय की जांच होगी तो उसका हश्र भी वैसा ही होगा, जैसा अब तक हुई तमाम भ्रश्ट योजनाओं की जांच का हुआ है। जो लोग भ्रश्टाचार से मालामाल हो चुके होंगे, वे मूंछों पर ताव देते हुए निर्द्वंद घूमते रहेंगे।
    उपर्युक्त जिम-योजना के बजाय पार्काें में योगासन सिखाए जाने से योजना बनाई जानी चाहिए। योगासन में षोहदों-गुंडों की रुचि नहीं हुआ करती है तथा पार्काें में यदि योगासन-केंद्र बनाए जाते हैं तो उनमें वही लोग आएंगे, जो अपने षरीर को स्वस्थ रखना चाहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के सत्तासीन होने के बाद हमारी जिन प्राचीन विद्याओं को बढ़ावा दिया गया है, उनमें आयुर्वेद, योगासन आदि भी हैं। बाबा रामदेव ने योगासन की जिस विलुप्त होती जा रही प्राचीन विद्या का पुनर्जागरण किया था, उसे मोदी सरकार ने बहुत बढ़ावा दिया। योगासन के प्रति लोगों में बचपन से ही रुचि पैदा की जानी चाहिए। इसी से मैं अनेक वर्शाें से यह मांग कर रहा हूं कि हमारी षिक्षण-संस्थाओं में योगासन को अनिवार्य किया जाना चाहिए। जितना भारीभरकम खर्च जिम के महंगे उपकरणों को लगाने में किया जा रहा है, उतने खर्च पर योगासन के योग्य प्रषिक्षकों की व्यवस्था की जा सकती थी।
    डायमंडडेरी कॉलोनी कल्याण समिति की मांग है कि कॉलोनी के नेताजी सुभाश पार्क में जिम के लिए बनाए गए प्लेटफॉर्माें को तत्काल हटाकर वहां पेड़ लगाए जाएं तथा पार्क में योगासन सिखाने की व्यवस्था की जाय। केवल डायमंडडेरी कॉलोनी के पार्क में ही नहीं, अन्य समस्त पार्काें में भी जिम खोलने के बजाय योगासन सिखाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस रूप में एक प्रकार से योगासन-क्रांति की षुरुआत हो जाएगी तथा क्षेत्रवासियों को अपने षरीर को स्वस्थ रखने का अवसर मिल जाएगा। योगासन ऐसी विधा है, जिससे षरीर स्वस्थ रहता है तथा बीमार पड़ने की संभावना कम हो जाती है।



                                                        (ष्याम कुमार)
                                                            सम्पादक, समाचारवार्ता
                                                          ईडी-33 वीरसावरकर नगर
                                                        (डायमन्डडेरी), उदयगंज, लखनऊ।
                                                     मोबा0-9415002458, 7905405266
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                                         दिनांकः 19 मई, 2023     

सोमवार, 15 मई 2023

16-05-2023 To 22-05-2023(16.01)









 

अंहकार का नाश ही विनम्रता का जनक

डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल
वर्तमान दौर में चारों तरफ अंहकार बढता ही जा रहा है, जहां अंहकार है वहां विनम्रता नहीं हो सकती है। भारतीय संस्कृति में विन्रमता का उल्लेख विशिष्टता के साथ मिलता है। विन्रमता के द्वारा अनेक द्वन्द्वों को पाटा जा सकता है। बस आवश्यकता इस बात की है कि विन्रमता को जीवन में धारण किया जाये। जब तक व्यक्ति के आचरण में विनम्र विचारों को समावेश नहीं होता है तब तक अहं विसर्जन की बात सोची भी नहीं जा सकती है। वर्तमान दौर में बढ रहे द्वन्द्वों मंे प्रमुख रूप से अंह का हावी होना ही है। सहिष्णुता का अभाव, अहं का प्रभाव व्यक्ति मंे व्याप्त विन्रमता को खण्डित करने में सहायक होता है। विन्रमता जीवन का सहज एवं आवश्यक गुण है। विन्रमता ही व्यक्ति के जीवन का दर्पण है। जिस व्यक्ति में जितनी विन्रमता होती है लोग उस व्यक्ति की महानता को तत्काल स्वीकार कर लेते है। अंह से पोषित विन्रमता अधूरे ज्ञान की परिचायक होती है।
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन अपनी विशिष्टता के साथ गतिशील होता है। वे ही लोग पथभ्रष्ट होते है जो विन्रमता को सहज गुण न मानकर प्रदर्शन का लबादा मानते है। विन्रमता का प्रदर्शन स्वार्थ का जनक है। स्वार्थी व्यक्ति परिवार एवं समाज में अपनी सफल पहचान नहीं बना पाता है। विनम्रता विकास की जननी है। सही मायने में अंह का विसर्जन एवं विन्रमता को धारण करना ही जीवन विकास का सशक्त माध्यम है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में अंह का विसर्जन कर न्रमता के सूत्र को शिरोधार्य किया है वह व्यक्ति हर क्षेत्र में सफलता के झण्डे गाड सकता है।
भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में गुरू-शिष्य की महत्ता निर्विवाद है। शिष्य का समर्पण, नम्रता ही उसे गुरू से बढकर योग्यता का वाहक बना देती है। वो इसलिये की शिष्य ने अपने अंह का विसर्जन कर अपने आप को समर्पित किया। विन्रमता जीवन का सहज गुण है। सही मायने में व्यक्ति के आंतरिक एवं बाह्य व्यक्तित्व का दर्पण है विन्रमता। विन्रमता का गुण हर किसी व्यक्ति को अपनी ओर आर्कषित कर लेता है। विन्रम व्यक्ति सब जगह हर किसी से सम्मान पाता है वहीं अपने गुणों के कारण लोगों का आदर्श भी बन जाता है। व्यक्ति के जीवन का आध्यात्मिक गुण है विन्रमता का समावेश। विन्रम व्यक्ति के जीवन में प्रदर्शन नाम मात्र का होता है। प्रदर्शन से परे आत्मा आत्मा के विकास का सूत्र है विन्रम जीवन। वर्तमान में जीवन से विन्रमता का ह्ास तीव्र गति से हुआ है। विन्रमता का स्थान चापलूसी लेती जा रही है। चिकनी चुपडी बातों से अपना कार्य निकलवाने का प्रयास ही विन्रमता बनती जा रही है जबकि विन्रमता में न तो चापलूसी होती है ओर न ही स्वार्थ। विन्रमता जीवन का आवश्यक अंग बन जाता है किसी ने ठीक ही कहा है-
झूकते वे ही है जिनमें जान है, मुर्दा दिल क्या खाक झुकेगें।
सचमुच इस बात में विन्रमता पर करारा आध्यात्मिक पुट मिलता है। झुकते वे ही लोग है। जिनमें कुछ संस्कार है, गुण है। अंह से आपूरित व्यक्ति टूटना पंसद करते है लेकिन झूकना नहीं ओर यह भी सच है कि जो अकडते है वे टूटते ही है। जो व्यक्ति झूकना जानता है संसार उसके सामने स्वयं झूकने लग जाता है। यह है विन्रमता का प्रभाव। विन्रमता जीवन का स्थायी गुण है जिसे अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन को सुरभित कर सकता है। नम्रता व विनय जीवन को अलग ही पहचान देती है। नम्रताहीन व्यक्ति बहुत कुछ पाने से वचित रह जाते है। सदियों से भारतीय संस्कृति में ’’विद्या ददाति विनयम्’’ का समावेश रहा है।
विद्या वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जिसमें विन्रमता हो। विद्या विनय के विद्या अर्थात ज्ञान प्राप्त करना असंभव है। अंह का पूर्ण रूपेण विसर्जन ही विन्रमता का जनक है। अंहकार से मुक्त जीवन को ही विन्रम जीवन की संज्ञा दी जा सकती है। आज जरूरत है कि हमारी पीढी विन्रमता जैेसे गुणों को जीवन में धारण कर जीवन विकास की गति को समझे। आज के दौर में अंहकार युक्त ज्ञान बढा है जो भले ही रोजगार का माध्यम बन सकता है लेकिन आत्मिक शांति एवं जीवन विकास के लिए विन्रमता से युक्त ज्ञान ही परिपूर्ण माना जा सकता है। विन्रमता को धारण करने के लिए व्यक्ति को सहजता, सरलता के साथ धैर्य पूर्वक सहिष्णुता के साथ आध्यात्मिक विकास की अवधारणा को समझना होगा, तभी विन्रम जीवन का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। विन्रमता को जीवन में धारण कर व्यक्ति अपने जीवन के साथ साथ परिवार, समाज एवं राष्ट्र के विकास में आध्यात्मिक चेतना जागरण का वाहक बन सकता है। जीवन में विन्रमता तमाम योग्यताओं की जनक है। विन्रमता के द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र का समावेश कर सकता है।
विन्रमता को धारण करने के लिए व्यक्ति को आध्यात्मिक जीवन का अनुशरण करना होगा। जीवन के विविध चरणों में भिन्न भिन्न स्थितियों के साथ सामन्जस्य एवं सहिष्णुता इसके लिए परम जरूरी है। विन्रमता एक दिन का परिणाम नहीं हो सकता है विन्रमता के लिये धैर्य एवं निरन्तर आध्यात्मिक विचारों का समावेश ही जीवन सुरभित बना सकता है। विन्रमता विकास की जननी है। विन्रम व्यक्ति का जीवन ही सर्वप्रिय व जनप्रिय हो सकता है। सही मायने मंे विन्रमता के संस्कार ही जीवन को नई दिशा देने में सक्षम है।
-राष्ट्रीय संयोजक-अणुव्रत लेखक मंच
लाडनूं (राजस्थान)
 मोबाइल-9413179329



शुक्रवार, 12 मई 2023

शुक्रवार को गांधीनगर के विधायक अनिल बाजपेई ने सुनी लोगों की जन समस्याएं

हर बार की तरह इस बार भी शुक्रवार को गांधीनगर के  विधायक श्री अनिल बाजपेई जी ने लोगो की समस्याओं को सुना।

आज विशेष बात यह भी रही कि गांधीनगर के एसएचओ श्री भगवती प्रसाद जी और गांधी नगर की निगम पार्षद श्रीमती प्रिया जी ने भी इस अवसर पर उपस्थित रहकर लोगो को समस्याओं को सुना।

गांधीनगर के एसएचओ श्री भगवती प्रसाद जी ने लोगो को कहा की दिल्ली पुलिस तो कैमरे लगाती है लोगो को भी अपने घरों पर कैमरे लगाने की पहल करनी चाहिए और किरायदारों की वेरिफिकेशन भी करानी चाहिए,।

आज की मीटिंग में श्री विशाल मिश्रा,श्री ऋषि राय,श्री आयुष कुमार श्री राजेंद्र वर्मा श्री अरूण शर्मा जी के अलावा एरिया के सम्मानित लोग भी मौजूद थे।

उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा में नए अध्याय की शुरुआत

अवधेश कुमार

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की 10वीं और 12वीं हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा से लेकर परिणाम तक की पूरी प्रक्रिया को अगर अनेक शिक्षाविद और विश्लेषक उदाहरण के रूप में पेश कर रहे हैं तो यह बिल्कुल स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश में कोई परीक्षा और परिणाम विवादित नहीं हो इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। ऐसा हुआ तो साफ है कि प्रदेश में शिक्षा और परीक्षा के क्षेत्र में नए अध्याय की शुरुआत हुई है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की स्थापना का यह 100वां वर्ष है।सच कहा जाए तो परीक्षा और परिणाम दोनों के साथ नए इतिहास का निर्माण हुआ है। उत्तर प्रदेश बोर्ड के इतिहास में अब तक के सबसे कम समय में यह परिणाम घोषित हुआ है। ध्यान रखिए उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद एशिया का सबसे बड़ा शैक्षणिक बोर्ड है। इनमें परीक्षार्थियों की भारी संख्या को देखते हुए यह कहा जाने लगा था कि इतनी बड़ी संख्या से लेकर भौगोलिक रूप से पूरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण की दूरी के बीच आयोजित परीक्षाओं में कुछ न कुछ गड़बड़ी होगी ही। 10वीं  की परीक्षा में में कुल पंजीकृत छात्रों की संख्या 31 लाख 16 हजार 454 थी जिनमें से 28 लाख 63 हजार 631 छात्र परीक्षा में बैठे। इसी तरह इंटरमीडिएट या 12 वीं में कुल पंजीकृत थे 27 लाख 68 हजार 180 जिनमें से 25 लाख 71 हजार 2 छात्र परीक्षा में बैठे। इस तरह 54 लाख से ज्यादा छात्रों ने परीक्षा दिया, जिनमें से 46 लाख से थोड़ा ज्यादा उत्तीर्ण हुए।

इतनी बड़ी संख्या परीक्षार्थियों की तो दुनिया के अनेक देशों में नहीं है। उसमें भी उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कई मामलों में बदनाम था। कदाचार, नकल और काफी विलंब से परिणाम घोषित करना उसकी पहचान बन गई थी। मान लिया गया था कि चाहे इसकी जितनी आलोचना हो इसे पूरी तरह बदला ज्यादा बिल्कुल संभव नहीं है । इतनी बड़ी संख्या कि परीक्षार्थियों के उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन उनके प्रारूप में उनकी गणना और फिर अंततः अंतिम परिणाम निकालने में तो समय लगेगा। लेकिन हुआ क्या?  बोर्ड की परीक्षा 16 फरवरी से 4 मार्च तक आयोजित की गई थी। इसके बाद मूल्यांकन-  पुनर्मूल्यांकन 14 दिनों में पूरा हो गया और 25 अप्रैल को परिणाम जारी। इस तरह परीक्षा खत्म होने के 52 दिनों बाद ही परिणाम आ गया। परीक्षा पूरी तरह कदाचार मुक्त। यानी नकल की एक भी सूचना पूरे प्रदेश से कहीं नहीं आई। इसी तरह प्रश्न पत्र लीक होने की परंपरा भी खत्म हो गई। ऐसा कोई वर्ष नहीं था जब प्रश्न पत्रों के लीक का मामला सामने नहीं आता। हर बार किसी न किसी पत्र या कई पत्रों की पुनर्परीक्षाएं भी आयोजित करनी पड़ती थी। कई बार तो एक ही विषय की पुनर्परीक्षा कई बार करानी पड़ी क्योंकि बार-बार प्रश्न लीक होने की घटनाएं सामने आ गई। आपको उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद को जानने वाले बोलते मिल जाएंगे कि ऐसा हो गया पर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि वाकई ऐसा हुआ ही है। फिर नहीं कह सकते की नकल नहीं होने या प्रश्न पत्र लिक नहीं होने का असर उत्तीर्ण होने वाली संख्या पर पड़ा है।

बिना नकल के संपन्न कड़ी परीक्षा के बावजूद अगर 10 वीं  में 89.78 प्रतिशत और 12 वीं में 75.52% परीक्षार्थी सफल हुए हैं तो इससे सामान्य नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न है कि यह चमत्कार हुआ कैसे? वास्तव में योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में शिक्षा का सुधार एक महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा। वैसे तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति धीरे-धीरे जमीन पर उतर रही है, किंतु उप्र की परीक्षाओं का अतीत शर्मनाक रहा है। सरकार ने इस बात के लिए कमर कस लिया था कि परीक्षा को इतना फूलप्रूफ बनाएंगे कि दूसरी सरकारें भी हमारी नकल करने को विवश हो जाए। पहले लंबा विचार मंथन हुआ और फिर उनमें से आए महत्वपूर्ण सुझावों- विचारों को कार्य रूप में परिणत करना आरंभ हुआ। वास्तव में उप्र बोर्ड ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट दोनों परीक्षाओं में ऐसे कई नए और महत्वपूर्ण प्रयोग किए जिनका असर दिखा। शायद कईयों को इसका महत्व समझ में तब आएगा जब यह पता चले कि बोर्ड के  इतिहास में पहली बार है जब परिणाम रिकॉर्ड समय में जारी किया गया। दूसरे, प्रश्न पत्र लिक नहीं हुआ यह तो महत्वपूर्ण है ही, किसी भी दिन गलत प्रश्न पत्र नहीं खोले गए यह भी सामान्य परिवर्तन नहीं है। जब पेपर लीक नहीं हो या एक विषय की जगह दूसरे विषय का प्रश्न पत्र न खुल जाए तो पुनर्परीक्षा कराने की आवश्यकता ही नहीं हो सकती । इसी का परिणाम था कि पुनर्परीक्षा नहीं करानी पड़ी। सारी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई है। अगर प्रश्नपत्र लीक हो जाते या परीक्षा वाले विषय की जगह दूसरे दिन वाले विषय के प्रश्नपत्र खुल जाते तो पुनर्परीक्षा करानी पड़ती और  रिकॉर्ड समय में परिणाम निकालना संभव नहीं होता। यह यूं ही नहीं हुआ। पूरी व्यवस्था की नए सिरे से समीक्षा और आवश्यक परिवर्तन के साहसिक निर्णय से ही संभव हुआ है। इनके लिए सबसे पहली आवश्यकता प्रश्न पत्रों को सुरक्षित रखने की होती है।  जैसी सूचना है पहली बार उच्चस्तरीय सुरक्षा मानकों के अनुसार 4 लेयर में टैंपर एवीडेंट लिफाफे में पैकेजिंग की गई थी। इस कारण कोई भी प्रश्न पत्र लीक होकर वायरल नहीं हुआ। दूसरे, परीक्षा केंद्रों पर प्रश्न पत्रों को सुरक्षित रखने के लिए प्रधानाचार्य के कक्ष से अलग एक कक्ष में स्ट्रांग रूम की व्यवस्था की गई जिसे हर तरह से सुरक्षित किया गया था। इन सबसे भी आगे उत्तर पुस्तिकाओं में किसी प्रकार परीक्षा के बाद परिवर्तन नहीं हो, वो सुरक्षित रहें इसके लिए पहली बार क्यूआर कोड

 का प्रयोग हुआ और माध्यमिक शिक्षा परिषद का लोगो लगाया गया। इससे उत्तर पुस्तिकाओं की शुचिता सुनिश्चित और पुनःस्थापित हुई। सभी जनपदों में सिलाईयुक्त उत्तर पुस्तिकाएं प्रेषित की गई। स्वभाविक ही इतने कदम से उत्तर पुस्तिकाओं में किसी भी प्रकार के हेरफेर या परिवर्तन की संभावना खत्म करने की कोशिश हुई और अभी तक की सूचना में इसके अपेक्षित परिणाम आए हैं।

वास्तव में किसी भी व्यवस्था में केवल ऊपरी आदेश या सख्ती से अपेक्षित सकारात्मक परिवर्तन नहीं हो सकता। उसके लिए उसकी पूरी संरचना, प्रकृति और तौर-तरीकों में आंतरिक स्तर पर परिवर्तन करना पड़ता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं अभिरुचि ली और शिक्षा मंत्री के अलावा उच्चाधिकारियों के साथ संबंध में संवाद बनाए रखा। बार-बार यह संदेश दिया गया कि सरकार परीक्षाओं को शत प्रतिशत पवित्र और दोषरहित बनाने के प्रति पूरी तरह संकल्पित है और जो इस रास्ते की बाधा बनेगा उसे परिणाम भुगतना पड़ेगा। संदेश दिया गया कि अगर परीक्षा में कोई भी गड़बड़ी हुई तो उसके लिए जिम्मेवारी तय करके सजा दी जाएगी । जैसा हम सब जानते हैं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने अपने लिए तीन सोपान तय किए थे। गुणवत्तापरक शिक्षा, परीक्षा शत-प्रतिशत नकल विहीन तथा मूल्यांकन शुचितापूर्ण। जब माध्यमिक शिक्षा परिषद ने अपने आंतरिक व्यवस्था में सुधार आरंभ किए तो शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों से उसका विरोध भी हुआ। उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार कोई भी कदम उठाए तो उसे राजनीतिक विचारधारा के आईने में हमेशा आलोचना और हमले झेलने पड़ते हैं। खासकर जब नकल करने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी एनएसए लगाने तथा परीक्षा निरीक्षकों पर भी कानूनी कार्रवाई का की घोषणा हुई तो पूरे देश में इसका विरोध हुआ। पहली दृष्टि में यह बात गले नहीं उतर रही थी कि अगर कोई छात्र नकल कर रहा है तो उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून क्यों लागना चाहिए? उसी तरह अगर परीक्षा निरीक्षक की गलती नहीं है और किसी ने उसकी नजर बचाकर नकल कर लिया तो उसके लिए निरीक्षक क्यों जेल जाए और सजा भुगते ।

इन सबके परिणाम हमारे सामने हैं। यह संभव नहीं कि मनुष्य कोई काम करे और उसमें छोटी मोटी भूलें न हो। किंतु उसे न्यूनतम बिंदु पर लाया जा सकता है। यह साबित हो गया कि अगर राजनीतिक नेतृत्व में इच्छाशक्ति हो तथा संकल्पबद्धता के साथ काम किया जाए तो छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के व्यवहार में परिवर्तन के साथ व्यापक सुधार संभव है। निश्चय ही अन्य राज्य उत्तर प्रदेश से सीख ले सकते हैं।

 

मंगलवार, 9 मई 2023

सोमवार, 8 मई 2023

विगत 05 वर्षो के दौरान वार्षिक विवरणी आर.एन.आई. में न प्रस्तुत करने पर प्रकाशन होगा रद्द

उत्तर प्रदेश। अपर प्रेस पंजीकय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय नई दिल्ली द्वारा जनपद गौतमबुद्धनगर से प्रकाशित 261 समाचार पत्र/पत्रिकाओं की विगत पॉच वर्षो के दौरान वार्षिक विवरणी न प्रस्तुत करने पर प्रकाशन को रद्द करने से सम्बन्धित पत्र जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट को प्रेषित किया है। जिला मजिस्ट्रेट सुहास एल.वाई. के निर्देश पर तत्सम्बन्धी समाचार पत्र/पत्रिकाओं की सूची उनके प्रकाशक/स्वामी के अवलोकनार्थ जिला सूचना कार्यालय गौतमबुद्धनगर में उपलब्ध है।
उपरोक्त पत्र के द्वारा अवगत कराया है कि भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय (आर.एन.आई.) प्रेस एवं पुस्तकों के पंजीयन अधिनियम 1867 के अन्तर्गत सम्बन्धित जिला मजिस्ट्रेट के द्वारा संस्तुति किये गये घोषणा पत्र के आधार पर समाचार पत्रों/पत्रिकाओं का पंजीयन करता है। पंजीकृत प्रकाशनों के स्वामी/प्रकाशक के लिए यह अनिवार्य है कि वह निर्धारित प्रपत्र में प्रेस एवं पुस्तक पंजीयन अधिनियम 1867 की धारा-19डी के अनुसार प्रत्येक वर्ष 30 जून तक अथवा उससे पूर्व वार्षिक विवरणी आरएनआई कार्यालय में जमा कर दें। पत्र के द्वारा यह अवगत कराया गया है कि ऐसे प्रकाशक जिन्होनें विगत तीन वर्षो तक वार्षिक विवरणी प्रस्तुत नहीं की थी जनवरी 2020 में अवसर प्रदान किया गया था कि वे अपनी वार्षिक विवरणी जमा कर दें। अपर प्रेस पंजीयक आरएनआई द्वारा जारी पत्र व जनपद गौतमबुद्धनगर के 261 पंजीकृत प्रकाशनों की सूची प्रकाशन स्थल के आधार पर जिला सूचना कार्यालय गौतमबुद्धनगर में उपलब्ध है। 

सम्बन्धित समाचार पत्र के स्वामी/प्रकाशक सूची देखकर वांछित सूचना जिला सूचना अधिकारी गौतमबुद्धनगर को 1 सप्ताह के भीतर अनिवार्य रूप से उपलब्ध करा दें अन्यथा पीआरबी अधिनियम 1867 की धारा-8 के अन्तर्गत इन प्रकाशनों प्राधिकत घोषणा पत्र (फार्म-1) रदद् कर दिया जायेगा। आरएनआई के द्वारा जिन समाचार पत्रों के नाम पत्र के माध्यम से जिलाधिकारी को प्रेषित किये है उसमें विकल्प चेतना, समय संबंध, लोकमंच जन चेतना, बाजार गाइड, वॉइस ऑफ इंडिया, नोएडा लाइफ, लोह स्तंभ, जनता विद्यालय एच एस स्कूल जेवर मैगजीन, मतदाता लोक संपर्क ऑन लोकसेवा सूत्र, भवानी मेल, आनंद धाम, बुद्धि प्रकाश, यथार्थ समाचार, विकासशील भारत, नोएडा दर्पण, नोएडा टाइम्स, रिफॉर्म इंडिया, उत्तरांचल गौरव, स्वर्ण विधान, निशा संदेश, युगांचल, स्वतंत्र हिंद सत्ता, वॉइस ऑफ दी कॉरपोरेट वर्ल्ड, पंच सत्ता, न्यू नोएडा बाजार, विस ए विस, गांव देहात, वर्तमान सच्चाई, मीडिया सत्ता, सुदर्शन इंडिया, प्रोफाइलर, कानून की कलम, मंत्रा माधव, भारत धाम, कर्ण मीडिया, चारुशील भारत, जन जन की आवाज जनचेतना, प्राकृत मार्ग, जी आई एस एंड डेवलपमेंट, दा फ्यूचर जेड टाइम्स, देहात 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आत्मनिर्भरता के लिए जीवन विज्ञान की शिक्षा उपयोगी

डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल
(वरिष्ठ साहित्यकार व चिंतक)
देश में नई शिक्षा नीति का निर्धारण हो चुका है। शिक्षा में नई नीति भावी नागरिक में मूल्यों के निर्माण की दिशा में उठा विशिष्ट कदम है। सही मायने में आत्मनिर्भर बनाने में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। वर्तमान आधुनिक शिक्षा व्यवसाय व नौकरी तक सिमटती जा रही है। जबकि शिक्षा सही मायने में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक व बौद्धिक विकास का समन्वित रूप है। जीवन विज्ञान में शिक्षा को दार्शनिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है, अर्थात् शिक्षा को अन्तिम परिभाषा, सर्वमान्य उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं चिन्तन आधारित शिक्षा विधियों का निर्माण होता है, यही दर्शन शिक्षा के नाम से पुकारा जाता है, केवल शिक्षाशास्त्र नहीं केवल दर्शनशास्त्र नहीं परन्तु नव-सर्जित विषय शिक्षा दर्शन का स्वरूप बन जाता है। दर्शन के विभिन्न अंग-ज्ञान दर्शन, मूल्य दर्शन, नीति दर्शन, सौन्दर्य दर्शन आदि के समान ही शिक्षा दर्शन के भी विभिन्न अंग निश्चित किये जाते हैं। इसमें अंतिम, शाश्वत एवं सूक्ष्म, ज्ञान, तर्क, नैतिकता, सौन्दर्यानुभूति आदि का अध्ययन शिक्षा के रूप, उद्देश्य, मूल्य, आदर्श, विधि, भावनात्मक दृष्टिकोण आदि के रूप में होता है।
शिक्षा से ही सभी समस्याओं का समाधान संभव है वहीं समाज निर्माण पूर्ण शिक्षा से ही निर्धारित होता है। शिक्षा में जीवन विज्ञान की परिकल्पना करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ कहते है वर्तमान शिक्षा प्रणाली गलत नहीं है पर अधूरी है, संतुलित नहीं है। संतुलित शिक्षा प्रणाली वह होती है जिसमें व्यक्तित्व के चारों आयाम शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक-संतुलित रूप से विकसित हो। इन चारों आयामों का विशिष्ट रूप जीवन विज्ञान में देखने को मिलते है। शरीर, मन, बुद्धि और भावना का विकास भी अपेक्षित है। शिक्षा के दो आयाम शारीरिक विकास और बौद्धिक विकास प्रमुख रूप से प्रचलित है। आज की शिक्षा में इन दो आयामों का विकास तो हो रहा है लेकिन मानसिक व भावनात्मक विकास पर ध्यान नहीं दिया जा रहा हैं जिसके कारण शिक्षा से मानवीय चिंतन की परिकल्पना का असंतुलन हो गया है।
आचार्य तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ के निर्देशन में शिक्षा में जीवन विज्ञान नीति के निर्धारण के लिए अनुंशषा पत्र तैयार किया गया। जिसमें जीवन विज्ञान की आवश्यकता पर बल दिया गया। जीवन विज्ञान की कल्पना और योजना को व्यापक रूप से वैज्ञानिक तर्क संगत के साथ प्रयोग सिद्ध भी बताया गया। संतुलित एवं पूर्ण शिक्षा के लिए जीवन विज्ञान की आवश्यकता पर बल दिया गया। जीवन विज्ञान में अध्यात्म और विज्ञान, मनोविज्ञान और समाज विज्ञान तथा सृष्टि संतुलन शास्त्र का समन्वित रूप है। शिक्षा में जीवन विज्ञान की परिकल्पना को विशिष्ट शिक्षा आयाम बताते हुए वे कहते है जीवन विज्ञान यह मानता है कि मस्तिष्क में अपार शक्ति है, और उस शक्ति का विकास जीवन विज्ञान के प्रयोगों से संभव है।
यदि अपराध व हिंसा को कम करना है तो समाज को भी संयम की जीवनशैली अपनाना होगी। यदि समाज के मुखिया ही नैतिक जीवन जिएं तो हमारा चिंतन बदल सकता है, तथा अपराध व हिंसा की समस्या भी कम हो जाएगी। शिक्षा दर्शन वास्तव में दर्शन होता है, क्योंिक उसमें भी अन्तिम सत्यों, मूल्यों, आदर्शों, आत्मा-परमात्मा, जीव, मनुष्य, संसार, प्रकृति आदि पर चिन्तन एवं उसके स्वरूप को जानने का प्रयत्न होता है, अतएवं यह दर्शन एक अभिन्न अंग ही होता है और प्रारम्भिक शिक्षा दार्शनिक दर्शन पर ही बल देते रहे हैं।
मानव जीवन में शिक्षा का एक प्रमुख कार्य व्यक्ति को आत्म निर्भर बनाना है। ऐसा व्यक्ति समाज के लिये भी सहायक होता है, जो अपना भार स्वयं उठा लेता है। भारत जैसे विकासशील समाज में व्यक्ति को आत्म निर्भर बनाने का कार्य शिक्षा का है। स्वामी विवेकानन्द ने शिक्षा के इस कार्य को इंगित करते हुये लिखा था-केवल पुस्तकीय ज्ञान से काम नहीं चलेगा। हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है जिससे कि व्यक्ति अपने स्वयं के पैरों पर खड़ा हो सकता है। चिंतक विलमॉट ने स्पष्ट कहा है कि शिक्षा जीवन की तैयारी है। शिक्षा का प्रमुख कार्य बच्चों को जीवन के लिये तैयार करना है। शिक्षा के इस कार्य पर विचार करते हुये स्वामी विवेकानन्द लिखते है कि-क्या वह शिक्षा कहलाने के योग्य है जो सामान्य जन समूह को जीवन के संघर्ष के लिये अपने आपको तैयार करने में सहायता नही देती है और उनमें शेर सा साहस न उत्पन्न कर पाये। आजकल प्रयोजन व उद्देश्य की पूर्ति के बिना कोई कार्य नहीं होता। जब तक किसी राष्ट्र का नैतिक स्तर उन्नत नहीं होता, तब तक जो भी प्रयत्न हो रहा है, वह फलदायी नहीं बनेगा। जरूरी है समाज में नैतिक स्तर ऊँचा हो। यह सब शिक्षा के द्वारा ही संभव है।
जीवन विज्ञान का सिद्धांत कहता है केवल दो शब्दों में संपूर्ण दुनिया की समस्या और समाधान छिपे हुए हैं, एक है पदार्थ जगत और दूसरा है चेतना जगत। पदार्थ भोग का और चेतना त्याग का जगत है। हमारे सामने केवल पदार्थ जगत् है और इसकी प्रकृति है समस्या पैदा करना। इस जगत् में प्रारंभ में अच्छा लगता है और बाद में यह नीरस लगने लगता है। दूसरा है चेतना जगत जो प्रारंभ में कठिन लगता है लेकिन जैसे-जैसे व्यक्ति उस दिशा में जाता है उसे असीम आनंद प्राप्त होने लगता है। महाप्रज्ञ ने शिक्षा को सही मायने में मानव मस्तिष्क के लिए उपयोगी बनाया है। शिक्षा दर्शन में दार्शनिक सिद्धान्तों का शिक्षा के क्षेत्र में व्यवहार किस प्रकार होता है, और होना चाहिये इसे प्रभावी रूप से बताया गया हैं।
-राष्ट्रीय संयोजक-अणुव्रत लेखक मंच
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