बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

हमास की पराजय से ही विश्व होगा सुरक्षित

अवधेश कुमार

हाल के वर्षों में इस तरह का युद्ध नहीं देखा गया और न ऐसी बर्बरता सामने आई। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 500 के आसपास बच्चे और 300 के लगभग महिलाएं हमास इजरायल युद्ध में मारे जा चुके हैं। हमास ने बर्बरता की सीमा को किस तरह पार किया इसके कई उदाहरण सामने आ गए हैं। एक इजरायली यहूदी गर्भवती महिला का पेट काट कर पहले उसके बच्चे को निकाला गया फिर उसे मारा गया तथा बाद में उस औरत को भी। सभ्य सैनिकों का समूह इस तरह की बर्बरता नहीं कर सकता। संपूर्ण विश्व आहत है। इजरायल और गाजा पट्टी की सीमा पर आयोजित संगीत महोत्सव में जुटे लोगों पर आतंकवादियों ने हमला किया, इस्लामी नारे लगाए ,महिलाओं को नग्न कर सड़कों पर घुमाया, दुष्कर्म किया, छोटे-छोटे बच्चों के सिर में गोलियां मारी गई, उसके बाद उनके प्रति किसी की भी सहानुभूति नहीं हो सकती। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार, उनकी हत्या और मृत्यु के बाद भी बलात्कार के वीडियो आए हैं। एक कमरे में 15 लड़कियों को बंद कर उसे उड़ा दिया गया। बर्बरता की ऐसी अनेक कहानियां अभी तक इस युद्ध ने हमारे सामने लाईं हैं जिनकी कल्पना से ही दिल दहल जाता है। आगे युद्ध समाप्त होने के बाद या उसके बीच भी ऐसी अनेक घटनाएं सामने आएंगी जो हमको आपको अंदर से पूरी तरह हिला कर रख देगा। आश्चर्य की बात है कि कुछ देशों द्वारा और यहां तक कि भारत के अंदर भी हमास के प्रति सार्वजनिक सहानुभूति तथा इजराइल का विरोध किया जा रहा है। 

वास्तव में कुछ देशों और समूहों की ओर से इसे संपूर्ण इस्लाम की लड़ाई बनाने की कोशिश हो रही है। आखिर सीरिया और लेबनान की ओर से भी हमास के समर्थन में इजरायल पर हमले किए गए। ईरान भी हमास का समर्थन करता है तथा जो सूचना है ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी स्वयं अरब देशों के नेताओं से बातचीत कर रहे हैं। हालांकि दो प्रमुख देश संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब हमास के साथ नहीं है। हमास ने इसके विरुद्ध भी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उसने कहा है कि जो मुस्लिम देश इजरायल के साथ संबंध बढ़ा रहे हैं उनके लिए भी हमारा हमला एक संदेश है। इजरायल ने अपने पूर्व चरित्र के अनुभव हमास और उसके समर्थकों के विरुद्ध शत- प्रतिशत दृढ़ संकल्प प्रदर्शित किया है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहु ने कहा कि अब सारे हमास के आतंकवादी मृतक हैं। जिस तरह इस्लामिक स्टेट आईएस को कुचल दिया गया उसी तरह से हम इसको भी कुचल देंगे। जिस तरह का सघन हमला गाजा पट्टी पर हुआ है , वहां की पूरी आपूर्ति श्रृंखला काट दी गई है वैसे ही रहा तो इजरायल की सफलता निश्चित है। हालांकि दुनिया भर से छाती पीटने वाले गाजा पट्टी की घेरेबंदी के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं पर इजरायल ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक बंधक रिहा नहीं किए जाते न बिजली का एक स्विच ऑन किया जाएगा, न पानी का नल खोला जाएगा, न ही ईंधन का एक ट्रक गाजा में दाखिल होगा। उम्मीद करनी चाहिए कि इजरायल अपने संकल्प पर अडिग रहेगा। हमास के आतंकवादी मारे जाएं या आत्मसमर्पण करें यही दो विकल्प उनके सामने होना चाहिए।


हमास ने 7 अक्टूबर को जिस तरह 5000 से ज्यादा रॉकेट इजरायल पर दागे उसकी कल्पना किसी को नहीं थी। इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद तथा उसकी सुरक्षा व्यवस्था खासकर सीमाओं पर आयरन डोम एअर डिफेंस सिस्टम का विश्व लोहा मानता था। इतने बड़े हमले की पूर्व सूचना न मिलना निश्चित रूप से इजरायल के लिए शर्मसार होने का विषय है। इजरायली सेना के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हर्जी हलेवी ने इसे स्वीकार किया और कहा कि इजरायली डिफेंस फोर्स यानी आईडीएफ देश और इसके नागरिकों की रक्षा के लिए जिम्मेवार है और शनिवार सुबह गाजा के आसपास के क्षेत्र में हम इस पर खरे नहीं उतरे। हम इससे सीखेंगे, जांच करेंगे लेकिन अभी युद्ध का समय है। वास्तव में संपूर्ण इजरायल एक साथ खड़ा हो गया है। युद्ध के साथ वहां नेशनल यूनिटी सरकार गठित हो गई जिसमें सत्तारूढ़ और विपक्ष सभी शामिल हैं। इजरायल में बेंजामिन नेतान्याहू के विरोधियों की बड़ी संख्या है और इस कारण हम वहां लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता देख रहे हैं।  लेकिन हमास को खत्म करने को लेकर संपूर्ण एकता कायम हो चुकी है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन का वहां पहुंचकर समर्थन दोहराना बताता है कि इजरायल को अमेरिका सहित अनेक पश्चिमी देशों का हर तरह का समर्थन, सहयोग और मदद हासिल है। ब्लिंकन ने कहा कि हम जानते हैं कि आपके पास अपनी रक्षा की पूरी क्षमता है लेकिन हमारे रहने तक आपको इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उसके बाद अमेरिकी रक्षा मंत्री वहां पहुंचे और राष्ट्रपति जो बिडेन भी जाने वाले हैं।

  हमारा विश्व इस समय कई दृष्टियों से खतरनाक स्थिति में है। हमास जैसे आतंकवादी संगठनों के पक्ष में अगर देश व समूह खड़े हैं तो कल्पना किया जा सकता है कि एक बड़े वर्ग की सोच कैसी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले के बाद इसे आतंकवादी घटना करार देते हुए इजरायल का समर्थन व्यक्त किया जो हमारे देश के अंदर ही बहुत लोगों के गले नहीं उतरा जबकि हम स्वयं आतंकवाद का दंश लंबे समय से झेल रहे हैं। विरोधी यह भूल गए कि हमास फिलीस्तीन मुक्ति संगठन का भी विरोध करता है तथा राष्ट्रपति अब्बासी तक को अवैध करार दे चुका है। भारत की फिलिस्तीन मामले पर न नीति बदली है न बदलेगी। भारत की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि हम हमेशा से बातचीत के माध्यम से सुरक्षित और वैध सीमाओं के भीतर एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यावहारिक फिलिस्तीन राज्य की स्थापना का समर्थन करते हैं। नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने इजरायल और फिलिस्तीन दोनों की यात्रा की। इसलिए किसी को गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि युद्ध में इजरायल के समर्थन देने का अर्थ फिलिस्तीन राज्य का विरोध है। आतंकवादी संगठन मजहबी सोच और हिंसा के बल पर राज्य पर कब्जा करें, दूसरे राज्य को मजहबी आधार पर भयभीत कर उसे नष्ट करने की कसमें खायें तो उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। हमास के प्रवक्ता ने बार-बार कहा है कि उसका लक्ष्य यहूदियों और यहूदी राज्य का नाश है। हमास ने तो एक बार धरती से यहूदियों और ईसाइयों दोनों के खत्म करने तक की बात कर दी। 

 1967 के युद्ध के समय भी इजरायली एजेंसियों को अरब देशों के चारों ओर से किए हमले की जानकारी नहीं मिल सकी थी।  उसने सामना किया और सफलता पाई। कुछ अरब देशों के अंदर इसकी टीस आज तक बनी हुई है। आश्चर्य की बात है कि इस क्षेत्र में इजरायल के सारे मित्र देशों की खुफियां एजेंसियां भी सक्रिय रहती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा है कि हिटलर के समय यहूदियों के नरसंहार के बाद यह उस तरह की दूसरी घटना है। यह सच भी है , क्योंकि इतनी संख्या में यहूदी उसके बाद कभी इस तरह नहीं मारे गए। किंतु इस मामले में जो बिडेन की नीति प्रश्नों के घेरे में है। ऐसा लगता है कि लेबनान, सीरिया, फिलिस्तीन,  कतर और ईरान में इस हमले की योजना बनी और वहीं से इन्हें समर्थन भी मिला। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी ने आरोप लगाया है कि हमास ने इस हमले में उस छह अरब डॉलर की राशि का उपयोग किया है जिसे जो बिडेन प्रशासन द्वारा ईरान पर प्रतिबंधों में ढील दिए जाने के कारण जारी किया गया। अमेरिका की नीति समझ में नहीं आई जब उसने ईरान पर प्रतिबंधों में तब ढील दी जब वह यूक्रेन युद्ध में रूस को ड्रोन दे रहा है। हमास के ज्यादातर नेता कतर में रह रहे हैं जो उस क्षेत्र में अमेरिका का दोस्त है। कतार में अमेरिका का पश्चिम एशिया का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है। तो अमेरिकी नीति पर निश्चित रूप से प्रश्न उठेगा किंतु उनके सामने इजरायल को बचाने के अलावा कोई चारा नहीं है। इस घटना ने साफ कर दिया है कि आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध से पीछे लौटकर अमेरिका ने संपूर्ण विश्व को खतरे में डाल दिया। इससे विश्व भर के आतंकवादी संगठनों का हौसला बढ़ा और हमास के हमले पर जगह-जगह उत्सव मनाते देखे जा रहे हैं। युद्ध में इजरायल की विजय संपूर्ण विश्व की सुरक्षा और शांति के लिए अपरिहार्य है। इससे इस्लामी कट्टरपंथ और आतंकवाद कमजोर होगा।  केवल भारत, इजरायल और पश्चिमी देशों के लिए ही नहीं, कई अरब देशों के लिए भी जरूरी है। मिस्र, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश हैं जहां इजरायल के सफल न होने पर इस्लामी कट्टरपंथी बड़े खतरे बन जाएंगे। इसलिए भारत ने बिना लाग लपेट समर्थन व्यक्त कर विश्व शांति और सुरक्षा की दृष्टि से सही फैसला किया।

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