सोमवार, 1 अप्रैल 2024

प्रधानमंत्री की देवालय से पहले शौचालय की पहल के प्रेरणास्रोत डॉ. बिंदेश्वर पाठक

बसंत कुमार

पूरा समाज पद्म विभूषण डॉ. बिंदेश्वर पाठक की जयंती 2 अप्रैल को मना रहा है। लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं पर शायद बहुत कम लोगों को पता हो कि उन्होंने अपने 5 दशक के अधिक समय के अथक प्रयास से समाज को स्कैवेंजर फ्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश में सिर पर मैला ढोने वाले लाखों लोगो को इस अमानवीय प्रथा से मुक्ति दिलाई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देवालय से पहले शौचालय की पहल के प्रेरणास्रोत बने। देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हे महात्मा गांधी, बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर और लाल बहादुर शास्त्री के गुणों से परिपूर्ण व्यक्तित्व थ्री इन वन की संज्ञा दी थी। सामाजिक समता का जूनुन उनमें कितना अधिक था कि अपनी मृत्यु से एक घंटा पूर्व 15 अगस्त 2023 को अपने सुलभ प्रांगण में झंडारोहण भगवती नाम की उस महिला से कराया जो वर्ष 2003 तक सिर पर मैला ढोती थी, उसी कार्यक्रम में उनकी तबियत खराब हुई और एक घंटे के अंदर ही वह सब को छोड़कर चले गए। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे उस महापुरुष के जीवन के अंतिम कार्यक्रम में उनके साथ विशिष्ठ अतिथि के रूप में मंच साझा करने का अवसर मिला। 

डॉ. पाठक को आधुनिक भारत में जहां प्रधानमंत्री जी के स्वच्छ भारत अभियान का प्रेरणास्रोत कहा जाता है वहीं उन्हें गांधी और आंबेडकर के विचारों का संवाहक माना जाता है। उन्होंने 1969 में युवा के रूप में बिहार में गांधी शताब्दी समिति के लिए काम करते समय अछूतों की बहाली के लिए काम करने का निर्णय लिया क्योंकि गांधी जी सदैव स्वच्छता की वकालत किया करते थे और हरिजनों विशेषकर मैला ढोने वाले के अधिकारों और उन्हें समाज में सम्मान दिलाने के हिमायती थे और ऐसे समाधान के लिए प्रयत्नशील थे जो घरों में सूखे शौचालयों का स्थान ले सकें।

डॉ. पाठक गांधी जी के उद्देश्य से प्रेरित थे और उनके स्वयं के अनुभवों से अपने मिशन की ओर अग्रसर होने का फैसला किया। वे एक तकनीक लेकर आये जो सूखे शौचालयों का विकल्प बन सकती थी जिसे टू पिट फोर सिस्टम कहा जाता है। उन्हें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि यह तकनीक अंततः भारत में अछूतों के समुदाय के द्वारा बाल्टी शौचालय की समस्या को समाप्त कर देगी। उनके विचार में यह मात्र समाधान नहीं था अपितु रूढ़िबधिता व अमानवीय शोषण में कैद समाज को आजाद कराना था जिससे सिर पर मैला ढोने वाले समाज की गरिमा को ऊपर उठाया जा सके। 

उन्होंने सिर पर मैला ढोने वालों को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने का संकल्प लिया और अपने इस उद्देश्य के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने दो गड्ढो वाले पोर फ्लश शौचालय की स्थायी तकनीक का अविष्कार किया जिसने बाल्टी शौचालयों की जगह ली जो समाज को स्कैवेंजर बना सकी और 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की। 

डॉ. बिंदेश्वर पाठक जहां महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वच्छता और समाज को स्कैवेंजर मुक्त बनाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के मिशन के अनुरूप समाज में अछूतों की स्थिति सुधारने और उनके मानवधिकारों के लिए भी कृतसंकल्प रहे। वे भेदभावपूर्ण उन सामाजिक संरचनाओं को बदलने के लिए दृढ़ संकल्प थे जो मैला ढोने वालों को मंदिरों में प्रवेश को रोकते थे। वर्ष 1988 में प्रसिद्धनाथ द्वारा मन्दिर में अछूतों के साथ उनके संस्कार और अनुष्ठान हेतु मन्दिर पहुंचे जहां ब्राह्मणों द्वारा उन्हें रोक दिया गया पर डॉ. पाठक ने टकराव का रास्ता अपनाने के बजाय गांधी के सुझाए अनुनय विनय का रास्ता अख्तियार किया और पुजारियों को अपने अछूत साथियों के साथ मन्दिर में प्रवेश के लिए राजी कर लिया। इस सफलता पर देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने टिप्पणी की कि जब तक ये चीजे हासिल नहीं की जाती है तब तक भारत को विकास की राह पर नहीं कहा जा सकता है। वर्ष 1991 मे टू पोर फ्लश शौचालय विकसित करके पर्यावरण प्रदूषण रोकने के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और मोदी सरकार ने इस वर्ष उनके अनोखे योगदान के लिए मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया। उन्होंने मैला ढोने वालो को समर्थन व प्रेरणा दी जिससे उन्हें सामाजिक गतिशीलता के पथ पर ले जाया जा सके और उन्होंने राजस्थान के टोंक शहर में पूर्व में मैला ढोने वालो का पुनर्वास किया।

उन्होंने सुलभ के माध्यम से उनके लिए ब्यूटिशियन, खाद्य प्रसंस्करण, सिलाई, कढ़ाई के क्षेत्र में प्रशिक्षण दिलवाया और उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए पाठ्यक्रम प्रारंभ किये, इन कारकों ने उन्हे बड़े पैमाने पर उनके आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान किया। उन्हें आत्मनिर्भर बनाया और उन्हे सम्मान के साथ जीने में सहायता प्रदान की। इसके अलावा डॉ. पाठक ने नई दिल्ली में सुलभ काम्पलेक्स में पूर्व में मैला ढोने वालों के आश्रितों के लिए 12वीं कक्षा तक स्कूल और एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया। उनका यह कार्य डॉ. भीमराव आंबेडकर के वंचितों के सशक्तिकरण मिशन के अनुरूप है। उनकी संस्था सुलभ को अंतर्राष्ट्रीय गौरव उस समय प्राप्त हुआ जब संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक व सामाजिक परिषद द्वारा सुलभ इंटरनेशनल को विशेष सलाहकार का दर्जा प्रदान किया गया। 

डॉ. पाठक जहां गांधी जी के अस्पश्यृता उन्मूलन से प्रभावित थे वहीं दूसरी ओर डॉ. आंबेडकर के आर्थिक विकास के मंत्र से दलितों और वंचितों को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने को उत्सुक थे। उन्होंने अस्पश्यृता जैसी कुरीति में बदलाव लाकर इसे विकास का माध्यम बना दिया। उन्होंने सुलभ शौचालय के अपशिष्ट से बिना दुर्गंध वाली बायोगैस का निर्माण किया, इस तकनीक का उपयोग करके भारत समेत अनेक विकासशील देश ऊर्जा के साथ साथ कंपोष्ट खाद के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। इसी कारण उन्हे आजाद भारत के गांधी के सामाजिक सुधार और डॉ. आंबेडकर के आर्थिक सुधार और महिला सशक्तिकरण के ध्वज वाहक की संज्ञा दी जाती हैं।

वर्ष 2012 में सर्वाेच्च न्यायालय ने वृंदावन में रह रही विधवाओं की दयनीय स्थिति पर बड़ी तल्ख टिप्पणी की थी और इनके पुनर्जीवन का उत्तरदायित्व सुलभ इंटरनेशनल को दिया था। अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए डॉ. पाठक ने अनूठी पहल की और इन्हें गुजारे के लिए 2000 रुपए प्रतिमाह पेंशन की शुरुआत की और सदियों पुरानी रुढिवादी परंपरा से हटकर अनूठे अंदाज में होली मनाने के लिए प्रेरित किया और होली के पावन अवसर पर इन विधवाओ को राधा की सहचरी बन कर श्याम से होली खेलने के लिए प्रेरित किया।

वास्तव में डॉ. पाठक ऐसे योद्धा थे जो मैला ढोने वाली महिलाओं के उत्थान से लेकर वृन्दावन की विधवाओं के कल्याण की जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार करते थे। वे गाँधी जी और डॉ. आंबेडकर के विचारों के सच्चे ध्वज वाहक थे और उनकी सोच से प्रेरणा लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपनी आधुनिक सोच से स्वच्छ भारत मिशन को मूर्त रूप दिया।

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