शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

तीनों सेनाओं के शीर्ष पर एक कमान की नियुक्ति के मायने

 अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस संबोधन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनाए जाने की घोषणा से रक्षा महकमे और रक्षा विशेषज्ञों का उत्साह साफ महसूस किया जा सकता है। सीडीएस के लिए हिन्दी में हम आगे शायद प्रधान सेनापति शब्द का प्रयोग करें। हालांकि अभी प्रधानमंत्री ने केवल घोषणा की है। सीडीएस का स्वरुप, अधिकार और दायित्व आदि तय होना बाकी है। प्रधानमंत्री ने यही कहा कि बदले हुए समय में हमें सेना के तीनों अंगों को समान रुप से विकसित करना होगा। यानी यह नहीं होना चाहिए कि थल सेना तो ज्यादा मजबूत हो लेकिन वायुसेना उससे कम और नौसेना काफी कम। तीनों का अपना महत्व है। तीनों की क्षमता और आवश्ययकता के बीच समानता होनी चाहिए। इसी क्रम में यह भी आवश्यक है तीनों सेनाओं के बीच पूर्ण तालमेल हो। सीडीएस की भूमिका इसीलिए महत्वपूर्ण हो गई है। दुनिया की रक्षा तैयारियों को देखें तो निष्कर्ष यही निकलता है कि आने वाले समय में जो भी युद्ध होगा वह काफी सघन होगा किंतु वह ज्यादा लंबा नहीं चल सकता। एक साथ देश की पूरी ताकत उसमें झांेकी जाएगी। इसमें जिसके पास सेना के तीनों अंग समान रुप से सक्षम होंगे तथा इनके बीच बेहतर समन्वय होगा उसकी स्थिति मजबूत होगी। बड़ी रक्षा चुनौतियों से धिरे भारत जैसे देश के लिए तो यह अपरिहार्य है। जिन्हें 1999 में करिगल में पाकिस्तानी सेना की हमारी सीमा में घुसपैठ और उसके बाद हुए युद्ध की पूरी कहानी पता है वे जानते हैं कि किस तरह उस दौरान थल सेना और वायुसेना के बीच भयावह मतभेद उभरे थे। यह हमारी बहुत बड़ी कमजोरी साबित हुई थी। युद्ध आरंभ होने के 22 दिन बाद सरकार को वायुसेना को शामिल होने का आदेश देना पड़ा था और तब तक काफी नुकसान हो चुका था। इसका मूल कारण यही था कि तीनो ंसेनाओं के बीच रणनीति विमर्श का तालमेल तथा सरकार के साथ समन्वय बिठाने वाला अधिकारप्राप्त कोई पद नहीं था।

वास्तव में रक्षा महकमे तथा विशेषज्ञ इसकी मांग लंबे समय से कर रहे थे। 26 जुलाई को करगिल युद्ध की समाप्ति के बाद 29 जुलाई 1999 को वाजपेयाी सरकार ने दो समितियां गठित कीं थीं। इनमें एक करगिल रिव्यू कमेटी यानी करगिल समीक्षा समिति का गठन के. सुब्रमण्हयम की अध्यक्षता में तथा रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति जनरल डीबी शेकाटकर की अध्यक्षता में गठित की गई थी। 7 जनवरी, 2000 को रिपोर्ट भी आ गई। दोनों समितियों ने उसी समय सीडीएस की सिफारिश की थी। इनमें इसकी आवश्यकता के साथ इसकी भूमिका का भी उल्लेख था। हालांकि करगिल समीक्षा समिति ने अपनी सिफारिशों में सीडीएस के साथ ही एक वाइस सीडीएस बनाने की सिफारिश भी की थी। रिपोर्टों पर विचार करने के लिए तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण  आडवाणी की अध्यक्षता में 2001 में मंत्रियों का एक समूह गठित हुआ जिसने रिपोर्ट को स्वीकार कर सीडीएस बनाने की अनुशंसा कर दी। इसके बाद की भूमिका नौकरशाही के हाथ आ गई। वहां से इसमंे अड़ंगा लगना आरंभ हो गया। यह तर्क दिया गया कि अगर तीनों सेना की एक कमान बनाकर उसके शीर्ष पर किसी व्यक्ति को बिठा दिया गया तो सैन्य विद्रोह की संभावना बढ़ जाएगी। किंतु वाजपेयी इस पर अड़ रहे । इसमें  एक नई संरचना सामने आई। अक्टूबर, 2001 में हेटक्वार्टर इंटिग्रेटिड डिफेंस स्टाफ (एचक्यूआईडीएस) बनाया गया। यह एक ऐसा संगठन है जो पिछले 18 वर्ष से काम कर रहा है लेकिन इसका अलग से कोई प्रमख तक नहीं है। वस्तुतः वीसीडीएस को चीफ ऑफ इंटिग्रेटिड डिफेंस स्टाफ में तब्दील करते हुए चेयरमैन चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (सीआईएससी) का रूप दिया गया। तीन सेना प्रमुखों में से जो वरिष्ठ है उसे चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी का अध्यक्ष बना दिया जाता है। लेकिन उसके पास कोई अधिकार नहीं है। वहां से रक्षा मंत्री तक पत्राचार होता है। रक्षा सचिव उसे फाइलों में रख दें या रक्षा मंत्री तक ले जाएं एवं कार्रवाई हो यह उनके अधिकार क्षेत्र में है।

आज का दुखद सच यही है कि सीआईएससी अपनी ही निहित कमजोरियों के कारण सेना के तीनों अंग के बीच तालमेल बिठाने में सफल नहीं है। इसकी किसी मायने में प्रभावी भूमिका है ही नहीं। हो भी नहीं सकती। रक्षा सचिव को रक्षा मामले में सबसे ज्यादा अधिकार प्राप्त है। ध्यान रखिए, सेना एवं रक्षा विशेषज्ञों द्वारा मामला उठाने पर 2012 में यूपीए सरकार ने नरेश चंद्र समिति का गठन हुआ था। उन्होंने सिफारिश की थी कि चेयरमैन, चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी को स्थाई कर दिया जाए और सेनाध्यक्षों में से जो सबसे वरिष्ठ है उसे अध्यक्ष बनाया जाए। दरअसल, नौकरशाही में हमेशा सीडीएस को गहरा संदेह रहा है। इसलिए वे इसके पक्ष मंे न सिफारिश कर सकते थे न सिफारिश को स्वीकार ही। अब चूंकि प्रधानमंत्री ने घोषणा कर दी है तो इसका साकार होना सुनिश्चित है।

अब प्रश्न है सीडीएस की जिम्मेदारी और दायित्वों का। साफ है कि केवल पद गठित करके उस पर किसी को बिठा देने भर से  आवश्यकतायें पूरी नहीं होंगी। तो? कुछ संभावनाएं दिख रहीं हैं और कुुछ सुझाव के रुप में सामने आए हैं। जो संभावनायें हैं उनके अनुसार यह न तो इतना उच्चाधिकार प्राप्त पद होगा जिससे कोई बड़ा खतरा पैदा हो और न बिना अधिकार के केवल नामधारी होगा। वह एक चार-तारा सैन्य अधिकारी हो सकता है जिसके हाथों कमान और नियंत्रण केन्द्रित होगी। यानी सीडीएस की नियुक्ति के साथ एकीकृत कमान संरचना आरंभ हो जाएगी। वह सैंन्य मामलोें पर सरकार को सलाह देगा जो अब फाइलों में दबा नहीं रहेगा। कहने की आवश्यकता नहीं कि सीडीएस तीनों सेनाओं के बीच तालमेल की भूमिका अदा करेगा। तालमेल का मतलब है कि उनके बीच जहां भी मतभेद होगा उसे भी दूर करेगा। इस तरह कहा जा सकता है कि सीडीएस के आविर्भाव के साथ सेनाओं की कार्यप्रणाली में काफी सुधार हो जाएगा। वह औपनिवेशिक प्रणाली से मुक्त होगी। किंतु इसको पूर्णता देने के लिए कई कदम उठाने होंगे। मसलन, सबसे पहले तो सीडीएस के पद पर ऐसे समर्थ और सक्षम सैन्य अधिकारी की नियुक्ति हो जिसे तीनों अंगों के कामकाज की समझ के साथ अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा स्थिति तथा देशों के संबंधों की भी पूरी जानकारी हो। आखिर सब कुछ व्यक्तित्व पर ही निर्भर करेगा। दूसरे, रक्षा मंत्रालय की संरचना में भी नए सिरे से व्यापक बदलाव हो। रक्षा मंत्रालय का चरित्र भी एक समन्वित कमान का होना चाहिए। सीडीएस की रक्षा मंत्री तक सीधी पहुंच हो और उनके माध्यम से वह प्रधानमंत्री से भी बात कर सके। एक सुझाव यह भी है कि रक्षा भूमि और पूंजीगत बजट को सीडीएस के तहत ला दिया जाए। इस पर सरकार अवश्य विचार कर रही होगी। सीडीएस सीधे रक्षा मंत्री के प्रति जवाबदेह हो।

जब आप सीडीएस की नियुक्ति करते हैं तो सेना के तीनों प्रमुखों की भूमिका में भी थोड़ा बदलाव करना होगा। आखिर उनके शीर्ष पर अब एक अधिकार प्राप्त सेनापति आ जाएगा। इसे भी परिभाषित और उल्लिखित करना होगा। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इनको सामान्य स्थिति में जवानों के प्रशिक्षण, संगठन और सैन्य साजो-सामान से सुसज्जित करने जैसे मूल काम पर फोकस करना चाहिए। इससे इनका महत्व कम नहीं होता न इनकी भूमिका कमतर होती है। इनके लिए भी सुविधा हो जाएगी कि ये सीधे अपनी बात अब सीडीएस तक पहुुचाएंगे जहां से वह सरकार के पास चला जाएगा। सीडीएस तीनों सेना प्रमुखों से गहन विचार-विमर्श के बाद ही रणनीति को अंतिम रुप देकर रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री को अवगत कराएंगे। उसमें यह शामिल होगा कि तीनों प्रमुखों का क्या मत है। वास्तव में मूल प्रश्न रक्षा मामले में एक राष्ट्रीय सोच तथा कार्यसंस्कृति को विकसित करने की है। उम्मीद करनी चाहिए कि सीडीएस के गठन के साथ इसकी शुरुआत हो जाएगी। दुनिया के प्रमुख देशों मंे यह काफी पहले हो चुका है। हम काफी समय पीछे रह गए थे।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/