मंगलवार, 28 जनवरी 2020

(12.38) 28-01-2020 To 03-02-2020

इस अंक में क्या है?
-जनसंख्या नियंत्रण कानून समय की मांग, पर इसे भी कुछ लोग विवादित बनाने में लगे
-कोबी ब्रायंट की मौत पर रो रही है पूरी दुनिया
-आंदोलन कुचलने के ये नए ‘लांछन शस्त्र’
-शाहीन बाग में दुकानें बंद होने से धंधा चैपट
-देखो हंस मत देना
-अमित शाह और दूसरे मंत्री शाहीन बाग जाएं और बातचीत कर रास्ता खुलवाएंः केजरीवाल
-शाह दिल्ली जैसा कोई सरकारी स्कूल भाजपा शासित राज्य में दिखाएंः सिसोदिया
-दिल्ली के विकास को अगले स्तर तक ले जाने में मेरी मदद करें: केजरीवाल
-सातवीं बार मैदान में हैं शोएब इकबाल
-164 उम्मीदवार करोड़पति, 13 कैंडिडेट के पास 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति
-दिल्ली में 672 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे 1.47 करोड़ मतदाता
-बिना अधिसूचना के क्लस्टर बसों में मुफ्त यात्रा का कदम खराब होगाः हाई कोर्ट
-15 साल की गौ-सेवा का परिणाम है पद्मश्री पुरस्कारः रमजान खान
-पटना के महिला कॉलेज ने बुर्के पर पाबंदी वापस ली
-7 मार्च को अयोध्या जाएंगे उद्धव ठाकरे
-डायमंड बुक्स ने प्रस्तुत की मुख्तार अब्बास नकवी की फिक्शन बुक ‘बलवा’
-5 महीने बाद कश्मीर में 2जी मोबाइल इंटरनेट सेवा बहाल, 301 वेबसाइट ही चला पाएंगे यूजर्स
-अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले अधिकारियों को किया जाएगा जबरन सेवानिवृत्तः गडकरी
-बी आनंद एनसीएम के सचिव नियुक्त
-मत करो शादी से पहले सेक्स, सरकार ने दिया आदेश
-केरल की मस्जिद में हिंदू विवाह सामाजिक एकता का सबसे बड़ा उदाहरण
-पाकिस्तानी हल्क को है परफेक्ट लड़की की तलाश
-घाना में लागू होगी मोदी सरकार की उज्जवला जैसी योजना, भारत करेगा मदद
-खेत से लेकर खाने की थाली तक होती है अन्न की बर्बादी, इसे रोकना जरूरी
-स्टाइलिश दिखने के लिए पहनें नये कलेवर के स्कार्फ और मफलर
-रहस्य, रोमांच और आश्चर्य की अनोखी दुनिया रामोजी फिल्म सिटी
-अधिक मात्रा में काजू का सेवन खराब कर सकता है स्वास्थ्य
-किंग कोहली आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में टॉप पर बरकरार
-मुंबई में होगा आईपीएल 2020 का फाइनल
-कौन फैसला करता है कि किसे अवॉर्ड मिलेगा? पद्म श्री न मिलने पर विनेश फोगाट
-फ्रेंचाइजी क्रिकेट खेलने वाली टीमों को टी20 विश्व कप में कितना होगा फायदा?
-कंगना का अगला धमाका होगी फिल्म तेजस, एयरफोर्स पायलट का निभाएंगी किरदार
-खुल गया रेखा की मांग के सिंदूर का राज
-बॉलीवुड में जोर-शोर से उठाया जाता है गे-लेस्बियन का मुद्दा
-फिटनेस मेरे लिए जीवन जीने का एक तरीका हैः अनिल कपूर











धर्मपुरा वार्ड 233 की पूर्व निगम पार्षद तुलसी गांधी आम आदमी पार्टी में शामिल

संवाददाता
पूर्वी दिल्ली। गांधी नगर विधानसभा के धर्मपुरा वार्ड 233 की पूर्व निगम पार्षद तुलसी गांधी अपने समर्थकों के साथ आम आदमी पार्टी में शामिल हो गई हैं। वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थी और भाजपा के उम्मीदवार को हराया था। उन्हें संजय सिंह ने अपने आवास पर पार्टी की टोपी और पटका पहनाकर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दिलवाई। 
संजय सिंह ने कहा केजरीवाल जी की कार्यशैली को देखकर लोग अपनी पुरानी पार्टी छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो रहे हैं।
 















 

शनिवार, 25 जनवरी 2020

खतरनाक विस्तार को रोकने के लिए शाहीन बाग का अंत जरुरी

 

अवधेश कुमार

राजधानी दिल्ली का शाहीन बाग इन दिनोें देश में तो सुर्खियां बना ही हुआ है, सुर्खियां बनाने वालों की कृपा से अनेक दूसरे देशों में भी यह चर्चा में है। वहां जाइए और चुपचाप घटनाक्रमों, लोगों की गतिविधियों, उनकी आपसी बातचीत सबका पर्यवक्षण करिए। आपके सामने यह साफ हो जाएगा कि पूरा धरना ही झूठ, भ्रम, गैर जानकारी, नासमझी, , पाखंड , सांप्रदायिक सोच तथा भाजपा, संघ एवं नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के प्रति एक बड़े वर्ग के अंदर व्याप्त नफरत की सम्मिलित परिणति है। भाजपा विरोधी राजनीतिक पार्टियां और संगठन भी इस तरह की नफरत और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने मेें भूमिका निभा रहे हैं। झूठ यह है कि नागरिकता संशोधन कानून मुसलमानों के खिलाफ है। कई लोग कहते मिल जाएंगे कि मोदी और शाह मुसलमानों को बाहर निकालना चाहता है या हमें कैद में रख देगा। यह भ्रम है जिसे योजनापूर्वक फैलाया गया है। गैर जानकारी का तो साम्राज्य है। ज्यादातर को पता ही नहीं कि नागरिकता कानून, एनपीआर या एनआरसी क्या है। जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते वो बातें वहां सुनने को मिल जाएंगी। नासमझी यह है कि इसके पीछे भूमिका निभाने वाले कुछ लोग मानते हैं कि इससे मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनेगा एवं यह समय के पूर्व ही गिर जाएगी। इस लेखक को टीवी पर लगातार दिखने वाले एक मौलाना ने स्वयं कहा कि सरकार अब जाने वाली है। पाखंड यह कि इसके पीछे गंदी राजनीति है, इस पर आने वाले भारी खर्च को अदृश्य शक्तियां वहन कर रहीं हैं और कहा जा रहा है कि लोग खर्च कर रहे हैं। सांप्रदायिक सोच के बारे में तो प्रमाण देने की जरुरत ही नहीं है। आप पूरी व्यवस्था देख लीजिए, इतना भारी संसाधन बिना पूर्व योजना के आ ही नहीं सकता। इसका वित्तपोषण भी एक रहस्य बना हुआ है कि आखिर कौन इतना खर्च कर रहा है। 

इस बहुप्रचारित धरना, जिसे भारत का सबसे बड़े आंदोलन की संज्ञा दी जा रही है का यही सच है। इसमें छः श्रेणी के लोगों की भूमिका है। ऐसे लोग हैं जिनके अंदर वाकई यह भय पैदा कर दिया गया है कि मोदी सरकार पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ काम कर रही है इसलिए हमको अपनी रक्षा के लिए वहां जाना चाहिए। दूसरी श्रेणी में वे लोग हैं जिनको पूरा सच मालूम है लेकिन मोदी और भाजपा से नफरत में उन्होंने यह आग लगाई है और वे वहां डटे हुए हैं ताकि आग बूझे नहीं। तीसरी श्रेणी में वे हैं जिनका आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं। वे या तो अपने नेता, मालिक या अन्य के कहने या फिर पैसे एवं अन्य लालच में आते हैं। चौथी श्रेणी नेताओं की हैं जो वहां इसलिए जा रहे हैं ताकि वे मुसलमानों के हमदर्द बनकर उनका वोट पा सकें। पांचवी श्रेणी उनका है जो जेएनयू से लेकर जामा मस्जिद एवं कई जगहों पर देश विरोधी नारों से लेकर उत्पात के कारण बने हैं और उनको लगता है कि इसके साथ जुड़कर वे ज्यादा ताकतवर होंगे एवं सरकार पर दबाव बढ़ेगा। छठी श्रेणी मजहबी कट्टरपंथियों का है जो देश में अपनी सोच का जेहादी माहौल पैदा करने लिए सक्रिय रहे हैं। अगर इन सबको साथ मिला दें तो सकल निष्कर्ष यह है कि हर हाल में मोदी सरकार को मुसलमान विरोधी, सांप्रदायिक, लोकतंत्र का हनन करने वाला करार देकर देश एवं दुनिया में बदनाम करना तथा इसे कमजोर कर देना है। हालांकि इसमें सफलता मिलने की संभावना इसलिए नहीं है कि ऐसे झूठ और फरेब पर आधारित प्रदर्शनों से मोदी सरकार का समर्थन ज्यादा बढ़ेगा। 

आज की स्थिति यह है कि राजधानी दिल्ली का बड़ा वर्ग जिनकी संख्या लाखों में है, वो इस धरना के कारण लगने वाले जाम से परेशान होकर इसके खिलाफ है। लोग विरोध मेें प्रदर्शन भी करने लगे हैं। मीडिया के बड़े समूह द्वारा तथ्य सामने रखने तथा अलग-अलग संगठनों द्वारा मुहल्ला सभाओं में नागरिकता कानून का सच बताने से मुस्लिम समुदाय के अंदर भी यह भाव पैदा हो रहा है कि इस कानून से हमारा तो कोई लेना-देना है नहीं। यह भाव जैसे-जैसे बढ़ रहा है मोदी विरोधी अभियानकर्ता एनपीआर एवं एनआरसी की बात करते हए बता रहे हैं कि एनपीआर में तुमसे पहचान मांगा जाएगा, तुम्हारे खानदान का विवरण मांगा जाएगा और नहीं देने पर तुम्हारे नाम के सामने सब लिख दिया जाएगा तथा एनआरसी में तुम्हारा नाम नहीं होगा। इस तरह तुम भारत के नागरिक नहीं रहोगे। यहां तक दुष्प्रचार है कि उसके बाद तुमको जिस सेंटर में रखा जाएगा वहां मोदी और शाह केवल एक शाम तुमको भोजन देगा। आप अगर शाहीन बाग नहीं गए हैं तो आपको इस पर सहसा विश्वास नहीं होगा लेकिन वहां चले जाइए तो आपको इन महान विचारों से सामना हो जाएगा। सबसे भयावह स्थिति इस तथाकथित आंदोलन में छोटे-छोटे बच्चों का दुरुपयोग है। उनके अंदर किस तरह का जहर भरा जा रहा है यह उनके बयानों एवं नारों से मिल जाएगा। एक बच्चा-बच्ची जिसे आजादी का अर्थ नहीं मालूम उसे रटवाकर नारा लगवाया जा रहा है। एक बच्ची को पूरा बयान रटा दिया गया है जिसमें वह कह रही है कि मोदी और शाह हमें मारने वाला है हम उसको मार डालेंगे। 

इस तरह बच्चों के अंदर सांप्रदायिकता और हिंसा का बीज बोने वाले आखिर देश को कहां ले जाना चाहते हैं? इन बच्चों का क्या दोष है? लेकिन यह भी रणनीति है। बच्चों और महिलाओं को आगे रखो ताकि दुनिया की मीडिया यह सुने और इन पर कोई कार्रवाई हो तो फिर हमें छाती पीटने का मौका मिल जाए कि महिलाओं और बच्चों के साथ बर्बरता की गई। इनके नेताओं के मुंह से बार-बार यही निकलता है कि महिलाएं यहां अपने अधिकारों के लिए और संविधान की रक्षा के लिए लड़ रही है तो उनके बच्चे कहां जाएंगे। वे बच्चे जो कह रहे हैं वो उन्होंने वहां देखा है उन्हें किसी ने सिखाया नहीं है। एक बच्चा नारा लगा रहा है कि जो हिटलर की चाल चलेगा और उसके साथ सब बोल रहे हैं कि वो हिटलर की मौत करेगा।  कोई बच्चा बिना सिखाएं यह नारा बोल सकता है क्या? महिलाओं को आगे रखने की रणनीति के तहत दिल्ली में ही कई जगहों पर ऐसे धरने आयोजित किए जा रहे हैं, तथा देश के कुछ दूसरे हिस्सों में भी। ये बच्चे कितने खतरनाक मानसिकता से बड़े होंगे और क्या करेंगे यह सोचकर ही भय पैदा हो जाता है। 

प्रश्न है कि यह ऐसे ही चलेगा या इस पर पूर्ण विराम लगाया जाएगा? यह कहना कि विरोध-प्रदर्शन-आंदोलन हमारा संवैधानिक अधिकार है इस खतरनाक अभियान का सरलीकरण करना है। सबसे पहले तो किसी विरोध या आंदोलन का तार्किक आधार होना चाहिए। नागरिकता कानून मुसलमानों के खिलाफ है नहीं। एनपीआर 2010 में हुआ, 2015 में उसको अद्यतन किया गया। कोई समस्या नहीं आई। वह मूल जनगणना का भाग है एवं सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए आवश्यक है। एनआरसी अभी आया नही। जब आएगा और उसमें कुछ आपत्तिजनक बातें होंगी तो उसका विरोध किया जाएगा। इस समय ऐसा कुछ है नहीं। तो जिस विरोध का कोई तार्किक आधार नहीं है, जो विरोध दूसरे के अधिकारों का हनन कर रहा है, जिसमेें बच्चों का रैडिकलाइजेशन किया जा रहा है, जिसमें एक समुदाय को भड़काने जैसे सांप्रदायिकता के तत्व साफ दिख रहे हैं, जिसका पूरा उद्देश्य ही कुत्सित राजनीति है यानी मोदी-शाह को बदनाम कर सरकार को फासीवादी साबित करो....वह संवैधानिक अधिकार के तहत नहीं आ सकता। संविधान में मौलिक अधिकार के साथ मौलिक कर्तव्य भी हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि अधिकारों के नाम पर ऐसी स्थिति पैदा कर दें जिनसे दूसरे के लिए कर्तव्य पालन कठिन हो जाए और वह भी सुनियोजित राजनीतिक साजिश के तहत। 

साफ है कि शाहीन बाग का अंत नहीं होगा तो इसका जहरीला विस्तार और जगह हो सकता है। कारण, इसमें अलग-अलग कुत्सित उद्देश्य से लगे लोग जानते हैं कि इसे जगह-जगह फैलाएं बिना वे मोदी सरकार को खलनायक बना देने में कामयाब नहीं होंगे। इसलिए ज्यादा विस्तार से पहले ही इसे रोकना होगा। इसके कारण देश के बड़े वर्ग में गुस्सा पैदा हो रहा है। तो खतरा यह है कि कहीं प्रतिक्रिया में वो वर्ग इनको चुनौती देने लगा तो फिर स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। इसलिए जरुरी है कि इसे अभी ही रोका जाए। इस बात की चिंता किए बिना कि ये क्या दुष्प्रचार करेंगे, ये आगे क्या करेंगे और राजनीतिक पार्टियां इसे किस तरह लेंगी इसका कानूनी तरीके से अंत किया जाए।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208


मंगलवार, 21 जनवरी 2020

(12.37) 21-01-2020 To 27-01-2020

-आप, भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के सामने हैं ये चुनौतियां? कौन मारेगा असल बाजी
-नड्डा का पटना कॉलेज से भाजपा अध्यक्ष पद तक का सफर
-न्यायप्रिय व धर्मनिरपेक्ष शासक थे ‘छत्रपति शिवाजी’
-26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ था
-घोषणापत्र से पहले केजरीवाल ने जारी किया 10 कामों का गारंटी कार्ड
-दिल्ली विधानसभा में 4 सीटों पर चुनाव लड़ेगी आरजेडी
-सिसोदिया के खिलाफ खड़े भाजपा के रवींद्र नेगी की कुल संपत्ति 1.29 करोड़
-शास्त्री पार्क में सीएए के खिलाफ निकाला कैंडल मार्च
-लवली के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी गांधीनगर सीट, त्रिकोणीय मुकाबले में जीत किसकी?
-राम मंदिर निर्माण का जिम्मा नहीं मिलने पर कोर्ट जाएगा रामालय ट्रस्ट
-नेताजी के पौत्र बोले, नागरिकता के मुद्दे पर सत्तारूढ़ और विपक्ष द्वारा भय का माहौल उत्पन्न किया जा रहा
-एनपीआर का उद्देश्य जाति, विचारधारा के बारे में सूचना प्राप्त करना हैः प्रकाश आंबेडकर
-दुनिया के 130 ऊर्जावान शहरों की सूची में हैदराबाद, बेंगलुरु शीर्ष पर
-पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में येचुरी को भेजना चाहती है माकपा
-एमजे अकबर की पुस्तक में दावा, स्वतंत्रता का पहला दिन पाक में बिताना चाहते थे महात्मा गांधी
-फिल्मी अंदाज में भागे ब्राजील के 76 बेहद खतरनाक कैदी, हफ्तों से बना रहे थे सुरंग
-रोज पति देता था गाली, पत्नी ने फिर किया कुछ ऐसा...
-अकाली दल नहीं लड़ेगा दिल्ली चुनावः मनजिंदर सिरसा
-ज्वालामुखी से निकल रहा था राख और धुआं, फिर भी बेफिक्रे कपल रचा रहे थे शादी
-आरटीआई में हुआ खुलासा, जेएनयू के पास 82 विदेशी छात्रों की राष्ट्रीयता की जानकारी नही
-पूरे देश में एक जून तक लागू हो जाएगा ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ः रामविलास
-दिल्ली में नीतीश करेंगे एनडीए का प्रचार, पीके कहेंगे केजरीवाल फिर एक बार
-चंडीगढ़ को पहचान देता ‘सूफी आस्तान-ए-रामदरबार’
-सोते समय बच्चा करता है बिस्तर गीला तो अपनाएं यह उपाय
-हार्ट अटैक पड़ने पर अस्पताल पहुंचने से पहले मरीज को दें यह उपचार
-आखिर क्यों प्रवीण कुमार खुद को गोली से उड़ा देना चाहता था?
-सीरीज जीत को कोहली ने बताया संतोषजनक, जानिए क्यों?
-10 साल में साईं के 24 सेंटरों से आए यौन शोषण के 45 मामले
-इस साल भी न्यूजीलैंड को पहली गेंद से दबाव में लाना चाहेंगेः कोहली
-मुशफिकुर ने किया पाक दौरे पर जाने से इनकार
-लाल बिकनी पहन कर समुद्र में कूदी दिशा पटानी, कड़ाके की ठंड में बढ़ गया तापमान
-सुपर हॉट तमन्ना भाटिया की दिलकश तस्वीरें, इन्हीं अदाओं से फैंस की उड़ा लेती हैं नींद
-नताशा दलाल से नहीं श्रद्धा कपूर को बचपन से ही प्यार करते हैं वरुण धवन
-फिर रोमांटिक बॉय बनेंगे शाहरुख खान, करण जौहर के साथ करने जा रहे हैं फिल्म
-रणबीर के साथ काम करने के लिए उत्साहित हैं श्रद्धा








शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

यह है सच जेएनयू हिंसा का

 

अवधेश कुमार

जिनको हर संस्था को अविश्वसनीय बनाना है उनके लिए किसी प्रमाण का कोई मायने नहीं। किंतु दिल्ली पुलिस के विशेष जांच दल यानी सिट के प्रमुख ने प्राथमिक जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है। वह मोटामोटी वही है जो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय या जेएनयू में हिंसा पर गहराई से नजर रखने वाले बता रहे थे। कोई भी हिंसा अपने-आप नहीं होती। जेएनयू में जो भयावह हिंसा के वीडियो दिखे वे एकपक्षीय नहीं थे। पहली बार हिंसा की जो तस्वीरें आईं उनके पहले भी हिंसा हुई थी जिनका सच धीरे-धीरे सामने आ चुका है। दिल्ली पुलिस ने इसकी पुष्टि की है। दिल्ली पुलिस ने पत्रकार वार्ता में हिंसा मामले में नौ आरोपितों की तस्वीरें जारी की हैं। इसमें जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष भी शामिल हैं। पुलिस को कठघरे में खड़ा करने वाले कुछ भी कहंे लेकिन उसने यही कहा कि यह छात्रों का मामला है , इसलिए हम तत्काल गिरफ्तार नही ंकर रहे उन्हें नोटिस भेजकर जवाब मांगा गया है। प्रश्न है कि अगर जांच पूरी नहीं हुई तो फिर दिल्ली पुलिस ने पत्रकार वार्ता क्यों की? इसका उत्तर देते हुए सिट प्रमुख ने ही कहा कि सामान्य तौर पर हम जांच पूरी होने के बाद ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं लेकिन इस घटना के संदर्भ में फैलाई जा रही अफवाहों की वजह से हमें पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करना पड़ रहा है। छात्रों का भविष्य इससे जुड़ा हुआ है, उसको ध्यान में रखते हुए हम आपसे जानकारी साझा कर रहे हैं। जेएनयू  घटना को लेकर लोगों के बीच गलत जानकारी फैलाई जा रही है। यानी गलत बातों को जवाब देने के लिए जितनी जानकारी आई उसे सार्वजनिक कर दिया गया। जाहिर है, ज्यादा गलफहमी न फैले इसलिए यह जरुरी था। 

वैसे पुलिस का कहना है कि इन छात्रों के प्रदर्शन की वजह से आम लोगों को परेशानी हो रही है। कनॉट प्लेस में लोगों को इनके प्रदर्शन की वजह से दिक्कतें हुईं। जब भी हम इन लोगों से कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं तो ये लोग कानून का उल्लंघन करते हैं। यह सच है। अब जरा घटनाक्रम को देखिए और जो माहौल बनाया गया उससे तुलना करिए। माहौल यह बनाने की कोशिश हुई कि केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के कारण उनसे जुड़े छात्र संगठनों ने गुंडों और अपराधियों की तरह वामपंथी छात्र संगठनो से जुड़े लोगों को मारा? क्यों मारा इसका कोई समाधानपरक जवाब नही। दिल्ली पुलिस ने सिलसिलेवार ढंग से जेएनयू के घटनाक्रम को रख दिया है। यह तो सच है कि जेएनयू में विंटर रजिस्ट्रेशन चल रहा है जिसका वामपंथी दलों से जुड़े छात्र संगठन एआईएसएफ, एसएफआई, आईसा और डीएसएफ  विरोध कर रहे है। ज्यादातर छात्र रजिस्ट्रेशन कराना चाहते हैं। इन संगठनों के सदस्य खुद जो छात्र रजिस्ट्रेशन करना चाह रहे थे उनको धमका भी रहे थे। हमारे पास पांच जनवरी की घटना का वीडियो आया लेकिन पुलिस ने एक जनवरी से ही विवरण दिया है। जांच में पता चला कि एक और दो जनवरी को रजिस्ट्रेशन की कोशिश करने वाले छात्रों को डराया-धमकाया गया, धक्कामुक्की भी की गई। दिल्ली पुलिस ने बताया कि 3 जनवरी को स्टूडेंट फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स असोसिएशन और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन के सदस्य सेंट्रलाइज रजिस्ट्रेशन सिस्टम को रोकने के लिए जबरदस्ती सर्वर रूम में घुसे और कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया। इसके बाद सर्वर को बंद कर दिया।  4 जनवरी को फिर उन्होंने सर्वर ठप करने की कोशिश की। दोपहर में पीछे शीशे के दरवाजे से कुछ अंदर घुसे और उन्होंने सर्वर को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। इससे रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया रुक गई। इन मामले में पुलिस के पास प्राथमिकी दर्ज कराई गई है जिसमें आईसा घोष का नाम है। पाचं जनवरी को साढ़े 11 बजे रजिस्ट्रेशन न करने देने से परेशान चार छात्र स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सामने बेंच पर बैठे हुए थे। एआइएसएफ, आइसा, एसएफआइ और डीएसएफ का एक समूह आया और उन छात्रों को पीटने लगा। बीचबचाव के लिए गए गार्डों को भी पीटा गया। 20 छात्रों के खिलाफ गार्डों पर हमला करने की प्राथमिकी दर्ज हुई है। इसके बाद पाचं जनवरी को इन्हीं 4 संगठनों के लोगों ने पेरियार हॉस्टल में छात्रों पर हमला किया। दोपहर में पेरियार हॉस्टल में नकाबपोश हमलावरों ने चुन-चुनकर छात्रों को मारा। पुलिस का कहना है इसमें जेएनयूएसयू अध्यक्ष भी शामिल थीं। हमलावर मुंह ढंके हुए थे। पेरियार हॉस्टल में कुछ खास कमरों को निशाना बनाया गया। इसके बाद शाम को साबरमती हॉस्टल में नकाबपोश हमलावरों ने तोड़फोड़ और हिंसा की। इसमें भी कुछ छात्रों की पहचान हुई है। 5 जनवरी को शाम को साबरमती हॉस्टल के पास मौजूद टी पॉइंट के पास पीस मीटिंग हो रही थी। इसी दौरान कुछ नकाबपोश लोगों ने हाथ लाठी डंडा लेकर साबरमती हॉस्टल पर हमला किया। इस समूह में घामिल कुछ छात्रों को चिह्नित किया गया है। थोड़ी बहुत हिंसा नर्मदा हॉस्टल में भी हुई। इसका भी केस दर्ज हुआ है। 

ध्यान रखिए कि अभी यह आधी जांच रिपोर्ट है। इससे इतना साफ होता है 5 जनवरी की शाम का जो दृश्य हमने देखा उसकी पृष्ठभूमि पहले बनाई जा चुकी थी। तीन दिनों से तनाव था और दो दिनों में कई बार मार पिटाई हुई थी। पांच जनवरी को पिटे गए ज्यादातर लोग या तो विद्याथी परिषद के थे या फिर आम छात्र जो सेमेस्टर की परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराना चाहते थे। इन छात्रों की पिटाई एवं घायल होने के कारण निश्चय ही गुस्सा पैदा हुआ होगा। तभी ह्वाट्सऐप समूह बना अपनी रक्षा के लिए जिसमें कहा गया कि सभी अपनी रक्षा के लिए कुछ न कुछ पास रखें। इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि जिन लोगों के हाथों में कोई डंडा दिख रहा है वे हमलावर ही थे। वे अपनी रक्षा के लिए भी रखे हो सकते हैं। आखिर पेरियार हॉस्टल में उन्हीं कमरों में क्यों हमला हुआ जिसमें परिषद के छात्र थे। बहुत सारे छात्र-छात्राओं ने छिपकर अपने को बचाया। छात्राओं के गुप्तांगों पर चोट किया गया। इसलिए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि बाद में इसकी प्रतिक्रिया में हमला हुआ। जो लाग चेहरा ढंके हुए थे वे परिषद के भी हो सकते हैं और सामान्य छात्रों का समूह या उनके साथ कुछ बाहरी समर्थक। पुलिस कह रही है कि हमला करने वालों को सारी जगहों का पता था। 

आइसी घोष उनको संदिग्ध बनाने को पुलिस का पक्षपातपूर्ण रवैया बता रहीं हैं। यह ठीक है कि उनके सिर पर चोट आई तो किसी ने हमला किया। यह तो नहीं हो सकता कि उन्होंने स्वयं ही अपने उपर हमला कर लिया। किंतु इससे यह साबित नहीं होता कि उनके नेतृत्व में इसके पहले हमले नहीं हुए थे। पहचान के लिए सीसीटीवी फुटेज सबसे अच्छा स्रोत हो सकता था लेकिन 3 और 4 जनवरी की घटना में वाईफाई सर्वर ध्वस्त हो चुका था। इस वजह से सीसीटीवी फुटेज नहीं मिला। पुलिस को भी वायरल विडियो और तस्वीरों की मदद से हमलावरों को पहचानना पड़ रहा है। एक वीडियो में वो साफ तौर लाठी, डंडों से लैश समूह के साथ दिख रहीं हैं जो हमला करता है। वह समूह पत्थर भी चला रहा है। पेरियार हॉस्टल में हमले का शिकार हुए छात्र भी गवाही दे रहे हैं। आखिर उतने लोग पीटे गए तो आकाश से आकर उन्हें कोई नहीं पीट गया। सर्वर केन्द्र को ताला लगाकर बाहर कुछ नकाबपोशों के साथ जेएनयू की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष गीता कुमारी दिख रही है। इन्हें पुलिस कह रही है कि आपलोग यहां से हट जाओ लेकिन वो बहस कर रही है। पुलिस भी जानती है कि इन छात्र नेताओं के पक्ष में राजनीतिक दलों के साथ बड़े-बड़े वकीलों का समूह खड़ा हो जाएगा। इसलिए वो जो कुछ सामने लाएगा और मामला बनाएगा उसके पहले इसका ध्यान अवश्य रखेगा कि न्यायालय में उसे कैसे लोगों का सामना करना है। 

 दो महीने से ज्यादा समय से ये छात्र समूह पूरे जेएनयू को अपने सिर उठाकर रखा हुआ है। उच्च न्यायालय के इस आदेश के बावजूद कि प्रशासनिक भवन ने 100 मीटर तक आप प्रदर्शन नही ंकर सकते। ये वहां तक पहुंचते हैं, प्रशासनिक भवन तक को पिछले दिनों नारों से पोत दिया गया। विवेकानंद की मूर्ति को नुकसान पहंुचाया गया। भगवा, हिन्दुत्व, भाजपा, संघ के अंत के नारे लिखे गए। यह सब एक विश्वविद्यालय और छात्र संगठन का नारा नहीं हो सकता। ये राजनीतिक नारे है। साफ है कि इसके पीछे राजनीतिक दलों और नेताओं की भूमिका है। पुलिस को इनके चेहरे से भी नकाब उतारना चाहिए। जेएनयू पर वर्चस्व रखने तथा अपने विचारों के लिए प्रशिक्षण केन्द्र बनाने के वामपंथी दलों की शिक्षा संस्थान विरोधी नीति का अंत होना चाहिए। साथ ही छात्रों के बीच वैचारिक दुश्मनी और हिंसा के अंत के लिए भी मध्यस्थता एवं मेल-मिलाप की कोशिश जरुरी है। पुलिस ने किसी को गिरफ्तार न कर सही किया है। जो अपराधी प्रवृति के हैं उनको छोड़कर किसी छात्र का भविष्य खराब हो जाए यह उचित नहीं होगा। 

अवधेश कुमार, ई-30़ गणेश नगर, पांडव नगर कौम्पले्क्स, दिल्ली-110092, मोबाईल- 98110272028


मंगलवार, 14 जनवरी 2020

शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

जेएनयू की भयावहता

 

अवधेश कुमार

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय या जेएनयू का दृश्य किसी भी विवेकशील व्यक्ति को अंदर से हिला देने वाला है। विश्वविद्यालय परिसर में भारी संख्या में नकाबपोश लाठी-डंडों, हॉकी स्टिक आदि लेकर छात्रों, शिक्षकों पर हमला कर दें, छात्रावासों में तोड़फोड़ करें, कुछ घंटों तक उनकी हिंसा जारी रहे और फिर आराम से भाग जाएं यह सब सामान्य कल्पना से परे है। जिस तरह के वीडियो दिख रहे हैं उनसे लगता ही नहीं है कि यह जेएनयू के स्तर का कोई विख्यात विश्वविद्यालय है। अब पुलिस सक्रिय है, प्राथमिकी भी दर्ज हो गई है। उम्मीद करनी चाहिए कि छानबीन निष्पक्ष होगी और दोषी पकड़े जाएंगे। हां, हम केवल उम्मीद ही कर सकते कर सकते हैं क्योंकि जिस तरह की राजनीति इस हिंसा को लेकर हो रही है उसमें पुलिस पर भी दबाव बढ़ता है। एक स्वर में हिंसा की निंदा हो तो पुलिस निर्भीक और निष्पक्ष होकर जांच करती है लेकिन अगर एक समूह दूसरे पर हिंसा का आरोप मढ़े और दूसरा पहले पर तथा राजनीतिक दल भी कूद जाएं तो फिर दोषियों और अपराधियों का पकड़ा जाना कठिन हो जाता है। जेएनयू में विचारधारा को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवं वामपंथी संगठनों के बीच संघर्ष नया नहीं है। इस संघर्ष का अंत भी नहीं हो सकता। लेकिन वैचारिक संघर्ष विचारधारा तक ही सीमित होनी चाहिए थी। इसमें हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं। जैसे ही आप हिंसा करते हैं वैसे ही आप गुंडे और अपराधी हो जाते हैं। हिंसा करने वाले किसी भी विचारधारा के हो वे अपराधी ही माने जाएंगे। अगर तस्वीर यह बन जाए कि एक तरफ की हिंसा सही और दूसरे तरफ की गलत तो आप वैचारिक टकराव को हिंसक टकराव में बदलने से नहीं रोक सकते।

 जेएनयू में जो कुछ हुआ उनके बारे में कोई भी जिम्मेवार व्यक्ति बगैर जांच के निश्चित मत नहीं दे सकता। कारण, ऐसी हिंसा से किसी भी विचारधारा के संगठन को लाभ नहीं मिल सकता। इसलिए अच्छा हो कि छात्र संगठनों, शिक्षक समूहों और राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप से परे हटकर हम पुलिस की जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करें। वास्तव में जेएनयू में जो कुछ भी हो रहा है वह कई पहलुओं पर हमें गंभीरता से विचार करने को मजबूर करता है। पिछले अक्टूबर में फीस वृद्धि को लेकर दोनों पक्षों के छात्र संगठनों ने आंदोलन किया था। वामपंथी संगठन और कांग्रेस से जुड़ा एनएसयूआई आंदोलन पर कायम रहा लेकिन विद्यार्थी परिषद यह आरोप लगाते हुए पीछे हट गया कि हमारी लड़ाई केवल फीस वृद्धि के खिलाफ है इसका राजनीतिकरण किए जाने से हम सहमत नहीं है। यह आंदोलन पिछले तीन महीनों से चल रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने फीस में कटौती भी की और अब इतना ज्यादा नहीं है कि आंदोलन को सही ठहराया जा सके। उसमें आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए भी प्रावधान किया गया। बावजूद अगर अहिंसक तरीके से कोई विरोध प्रदर्शन हो रहा है तो हम उसे रोकने के लिए बल प्रयोग की अनुशंसा नहीं कर सकते। लेकिन अगर आंदोलनरत समूह  कक्षाओं का बहिष्कार करें, परीक्षाओं का बहिष्कार करें और इसके लिए बलपूर्वक दूसरे छात्रों को भी मजबूर करें तो यह कानून को हाथ में लेना है। वामपंथी छात्र समूह सेमेस्टर परीक्षाओं के लिए रजिस्ट्रेशन को रोक रहे थे। प्रशासन ने रजिस्ट्रेशन के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की तो इन्होंने सर्वर केंद्र पर कब्जा कर उसका तार काट दिया। जो छात्र रजिस्ट्रेशन करने जा रहे थे उनको जबरन भगाया जाता था। उनके साथ मारपीट भी हुई। विद्यार्थी परिषद के लोगों का कहना है कि जो छात्र रजिस्ट्रेशन कराना चाहते थे हम उनका समर्थन करते हैं और उनके साथ गए थे। जो नया वीडिया आया है उसमें जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष कुछ छात्रों का नेतृत्व कर रहीं हैं जिनके हाथों में डंडे हैं। वे पत्थर चलाते भी दिख रहे हैं। यानी जो दृश्य हमने पहले देखा वह पूरे प्रकरण का एक भाग है। वास्तव में इसे मिलाकर ही पूरे प्रकरण को देखा जाना चाहिए।

हालांकि तब भी हम पूरी जांच के बगैर अंतिम निष्कर्ष नहीं देना चाहते। यहां एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि अगर कोई छात्र संगठन या कई संगठनों का समूह कक्षाओं को रोक रहा है, बलपूर्वक छात्रों को रजिस्ट्रेशन कराने से रोकता है, छात्रोः शिक्षकों को सरेआम डराता-धमकाता है, नेट के सर्वर सेंटर पर कब्जा कर लेता है तो उनके खिलाफ कानूनी तौर पर कार्रवाई करने में समस्या क्या है या थी? विश्वविद्यालय प्रशासन इतना दब्बू और कमजोर बार-बार क्यों नजर आता है कि कोई भी छात्र संगठन कानून हाथों में लेकर मनमानी करें और उसके खिलाफ कुछ न किया जाए? इससे पता चलता है कि जेएनयू के अंदर कितनी विकट और जटिल चुनौतियां पैदा हो गई हैं। यह स्थिति एक-दो दिनों में नहीं हुई है। वर्षों से वहां विचारधारा का टकराव चलता रहा है। जब एक पक्ष यानी विद्यार्थी परिषद काफी कमजोर था तकरार भी कम होते थे। वामपंथी समूह का वर्चस्व जेएनयू में लंबे समय से रहा है। एक समय ऐसा था जब कांग्रेस से जुड़े छात्र संगठन एनएसयूआई के साथ भी उनका टकराव होता था। भाजपा के शक्तिशाली होने के बाद एनएसयूआई वामपंथी छात्र संगठनों के सहयोगी की भूमिका में आ गई है। वैचारिक विभाजन छात्रों तक सीमित नहीं है। शिक्षकों, प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों सभी के बीच  वैचारिक विभाजन है। जेएनयू में जो यह ज्यादा दिखता है, क्योंकि वामपंथी उसे क्रांतिकारी विचारों के रक्षित केन्द्र मानते रहे हैं और दूसरे विचार का प्रसार उनको एकाधिकार तोड़ना लगता है। क्रांतिकारी एवं पंरगतिशील विचारधारा के नाम पर असामाजिक-उपद्रवी एवं मजहबी कट्टरपंथी तत्वों का वहां प्रवेश हो चुका है। हमने फरवरी 2016 में वहां भारत विरोधी नारे के दृश्य देखे थे। उसके बाद जेएनयू में क्या हुआ यह सबके सामने है। उससे यह साफ हो गया कि जेएनयू किस-किस तरह के अवांक्षित तत्वों का आश्रयस्थल एवं गतिविध्यों का केन्द्र बन चुका है। मकबूल बट्ट से लेकर अफजल गुरु तक की बरसी मनाना जेएनयू के अंदर घनीभूत हो चुके वैचारिक विकृति के ही प्रमाण थे। इन सबका अब वहां प्रखर और प्रभावी विरोध हो रहा हो। वर्तमान हमले और प्रतिहमले को देखने के बाद यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि असामाजिक और उपद्रवी तत्व प्रभावी हो चुके हैं।

 जितनी बड़ी संख्या में छात्रों को रजिस्ट्रेशन कराने से रोका गया, उनके साथ हिंसा हुई उससे नाराजगी है। अब यह साफ हो गया है कि दिन के आरंभ में रजिस्ट्रेशन का समर्थन करने के कारण विद्यार्थी परिषद के छात्रों पर हमले हुए जिनमें कई बुरी तरह घायल हुए। संभव है उन्होंने बाहर अपने संपर्क के लोगों को वहां की कठिनाइयां बताई हो और फिर जवाब में हमला हुआ हो।  दुर्भाग्य यह है कि भाजपा विरोधी पार्टियां जिस तरह से पूरे कांड को संघ परिवार द्वारा प्रायोजित बताकर आग में पेट्रौल डाल रहीं है उससे टकराव बढ़ेगा। इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है कि अस्पतालों में घायल से मिलने में भी नेतागण यह देख रहे थे कि वे किस संगठन से जुड़े हुए हैं। विद्यार्थी परिषद के घायल कार्यकर्ता उनके लिए अछूत थे। विचार करने की जरुरत है कि कोई सत्तारूढ़ पार्टी हिंसा कराकर कौन सा लक्ष्य प्राप्त करेगी? दिल्ली की कानून व्यवस्था केंद्र सरकार के जिम्मे है तो वह जानबूझकर अशांति क्यों पैदा करना चाहेगी?  नौबत यहां तक आ गई है तो उसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए इस पर विचार करना पड़ेगा ताकि इससे निपटा जा सके। अगर वामपंथी विचारधारा के छात्र समूह जेएनयू पर अपने वर्चस्व को अधिकार समझते हैं तो यह उनकी समस्या है। वामपंथी दल यदि यह मानते हैं कि वे संघ और भाजपा विरोध के नाम पर अपने छात्र समूहों के साथ खड़ा होकर हाशिए से फिर राजनीति की मुख्यधारा में आ सकते हैं तो इससे बड़ी नासमझी कुछ नहीं हो सकती। इससे हालात और खराब होंगे। तो फिर?

इस पर विचार करना जरूरी है कि इस तरह के टकराव को रोकने के लिए क्या किया जाए? यह केवल कानून और व्यवस्था का प्रश्न नहीं है। पुलिस की भूमिका कानून तोड़े जाने के बाद आरंभ होती है। कानून तोड़े जाने की पृष्ठभूमि को रोकने में मुख्य भूमिका विश्वविद्यालय प्रशासन, शिक्षकों, छात्रों और सामाजिक समूहों की ही हो सकती है। राजनीतिक दलों की भूमिका की हम अनुशंसा इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि भाजपा के विरोध में मौका ढूंढने वाले राजनीतिक दल कभी नहीं चाहेंगे कि टकराव खत्म हो और सरकार को घेरने का अवसर उनके हाथ से निकल जाए। विचारधारा के स्तर पर असहमति और मतभेद खत्म नहीं हो सकता लेकिन यह दुश्मनी और शारीरिक हिंसा में न बदले इसका उपाय करना होगा। जो हिंसा कर रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई हो। साथ ही ऐसे लोग, जो किसी राजनीतिक विचारधारा से नहीं जुड़े, आगे आएं, जेएनयू विश्वविद्यालय प्रशासन, छात्र संगठन, शिक्षक संगठन सभी से बातचीत करें, उनके बीच संवाद कराने की कोशिश हो। सबको समझाया जाए कि विचारधारा के संघर्ष का मतलब यह नहीं कि हम एक दूसरे के दुश्मन हो जाएं। संवाद की यह प्रक्रिया सतत् चले। जब भी टकराव की नौबत आए उनके बीच मध्यस्थता हो सके इसकी औपचारिक संस्थानिक व्यवस्था हो। जिनका ब्रेनवाश किया जा चुका है कि आरएसस-भाजपा हमारी दुश्मन है और उसको खत्म करना हमारा लक्ष्य वे शायद ही बदले। लेकिन कोशिश करने में क्या समस्या है।

अवधेश कुमार, ईः30 , गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः 9811027208

 

मंगलवार, 7 जनवरी 2020

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