यह भारत देश है जहां सुरक्षा और रक्षा संबंधी सैन्य कार्रवाई पर भी विवाद हो सकता है। पर हम राजनीतिक विवादों से परे जो कुछ तथ्य हैं उन तक अपने को सीमित रखें तो वास्तविक खतरे का अहसास हो जाएगा और यही सच भी है। जो कुुछ विजुअल के माध्यम से, रक्षा मंत्रालय के प्रेस वक्तव्य से, कोस्ट गार्ड के प्रवक्ता के बयानों से तथा स्वयं रक्षा मंत्री के वक्तव्य से हमारे सामने आया है हमें उसे ही सच मानना होगा। समुद्र के अंदर विस्फोट और अग्नि से धू-धू कर जलता हुआ नाव शांति का स्रोत तो हो नहीं सकता था। कोस्ट गार्ड एवं नौसेना के द्वारा घिर जाने पर पूरे नाव को विस्फोट से उड़ा देने का पहला निष्कर्ष यही निकलता है कि यह किसी न किसी साजिश से भरा यान था। हम यह न भूलें कि 26 नवंबर, 2008 को पोरबंदर (गुजरात) में रजिस्टर्ड मछली पकड़ने वाली बोट कुबेर में बैठ कर ही 10 आतंकवादी मुंबई आए थे और उन्होंने जो कहर बरपाया था वह पूरी दुनिया का दिल दहलाने वाला था। जाहिर है, जब भी किसी मछली पकड़ने वाले नाव में हथियार और गोला बारुद का ऐसा हस्र होगा जैसा अभी हुआ है तो हमारे सामने मुंबई हमले का डरावना दृश्य जीवंत होगा ही।
इस आधार पर विचार करें तो पोरबंदर नाव दहन की घटना का पहला निष्कर्ष हमारे लिए राहत देने वाला है। हमारे पास जो जानकारी है उसके अनुसार एनटीआरओ को ठोस इनपुट्स मिले थे कि पाकिस्तान स्थित कराची के केटी बंदर की एक मछली पकड़ने वाली नाव अरब सागर में संदिग्ध कार्य को अंजाम देने की तैयारी में है। इसके बाद पुलिस, सीमा सुरक्षा बल, कोस्ट गार्ड एवं नौसेना का सक्रिय होना ही था। यह ऑपरेशन कितना बड़ा था इसका अनुमान इससे लगाइए कि इंडियन कोस्ट गार्ड नौसेना के कई शिप और एयरक्राफ्ट इसमें शामिल हुए थे। यानी जल में उसे पहचानने, फिर रोकने, घेरने तथा आकाश से उस पर नजर रखने एवं भागने से रोकने की पूरी मोर्चाबंदी। हजारों नावों के बीच से ऐसे संदिग्ध नाव को ढूंढ निकालना आसाना नहीं होता। यह दुर्भाग्य है कि इतने बड़े सैन्य औपरेशन को जिसमें वायुयान को रात भर आकाश में उड़ान भरनी पड़ी, विवाद का विषय बना दिया गया है।
बहरहाल, हम इस खतरे को पूरी तरह समझें इसके लिए हाल की कुछ और घटनाओं पर भी नजर डालना आवश्यक है। इस समय हमारे पास यह सूचना है कि आतंकवादी 1999 की कंधार विमान अपहरण जैसी घटना को अंजाम देने की सजिशें रच रहे हैं। इसके पूर्व नये वर्ष में जैसे ही हमने आंखें खोलीं पता चला कि दो आतंकवादियों को नोएडा में गिरफ्तार किया गया है। ये ऐसे गिरफ्तार नहीं किए गए। एक साथ उत्तर प्रदेश एटीएस, पश्चिम बंगाल एटीएस, खुफिया ब्यूरो (आईबी) और रॉ, जिसकी भूमिका अलग है, के साझा ऑपरेशन में इन्हें गिरफ्तार किया गया। हमें याद होगा कि आईबी ने देश के प्रमुख शहरों में आतंकवादी हमले की चेतावनी पहले ही दे दी है। इन शहरों में दिल्ली भी शामिल है। कहा जा रहा है कि ये आतंकवादी देश की राजधानी दिल्ली में बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम देने वाले थे। जो जानकारी है इनमें से एक रकतुल्ला बांग्लादेश के फरीदकोट का रहने वाला है और दिसंबर के पहले हफ्ते में भारत में दाखिल हुआ था। पता नहीं इसमें कितना सच है पर उनके पास से जो लैपटॉप बरामद हुआ है उससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सक्रिय स्लीपर सेल व रैकी किए गए कुछ स्थानों की जानकारी मिली है। साफ है कि इसके आधार पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं एनसीआर में ऐसे स्लीपर सेलों को पकड़ने का अभियान चल रहा है।
जरा सोचिए, यह घटना 19 दिसंबर 2015 की ही है, पर एजेंसियों ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। आईबी और रॉ की पूछताछ के बाद इन दोनों को पश्चिम बंगाल की आतंकवाद विरोधी ईकाई ट्रांजिट रिमांड पर ले गई। उसके बाद अन्य राज्यों की पुलिस भी उनसे पूछताछ करेगी। अगर गृह मंत्रालय एवं खुफिया ब्यूरो से आ रही अपुष्ट सूचनाओं पर यकीन करें तो कई आतंकवादी बांग्लादेश और नेपाल के रास्ते भारत में दाखिल हुए हैं जिनकी दिल्ली-एनसीआर के आसापस होने की संभावना है।
ठीक इन घटनाओं के बीच ही महाराष्ट्र आतंक विरोधी दस्ता (एटीएस) ने मुंबई के न्यायालय में एक ट्रांसक्रिप्ट दाखिल की है। इसमें गिरफ्तार किए गए सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनीस अंसारी की उमर एलहाजी नाम के एक व्यक्ति से हुई ऑनलाइन चैट का विवरण है जिसमें मुंबई के अमेरिकन स्कूल पर हमले की बात कही गई है। इसके अनुसार स्कूल पर हमले की योजना पाकिस्तान के पेशावर के आर्मी स्कूल पर हुए हमले से काफी मिलती-जुलती है। अभी बेंगलुरु में हुए दो विस्फोटों की धमक हमारे सामने मौजूद हैं, जिनका कोई सुराग पुलिस को नहीं मिल पा रहा है। कहा जा रहा है कि इसके पीछे मध्यप्रदेश की खंडवा जेल से भागे उन पांच पूर्व सिमी सदस्यों का हाथ है जो उत्तर प्रदेश के बिजनौर में सामने आए थे। बहुत ही कम तीव्रता वाले ऐसे विस्फोट करना सिमी के भगोड़े आतंकियों की पहचान रही है। मई में चेन्नई में रेल धमाका तथा जुलाई में पुणे विस्फोट का चरित्र ऐसा ही था। पिछले वर्ष सितंबर में ये पांचों बिजनौर में इसी तरह का विस्फोटक बना रहे थे, लेकिन बनाते समय ही धमाका हो गया जिसमें उनका एक साथी घायल हो गया। अगर वह घायल नहीं होता और ये उसे इलाज कराने न ले जा रहे होते तो शायद उनका पता भी नहीं चलता। पर विडम्बना देखिए, बीच शहर से वे भागने में कामयाब हो गए और उत्तर प्रदेश पुलिस हाथ मलती रही। उसके बाद ही उनके दक्षिण भारत में होने और कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में हमला करने की संभावित खतरे की सूचना खुफिया ब्यूरो ने इस राज्यों को भेजा था। हम जम्मू कश्मीर से लगने वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर हो रही गोलीबारी तथा प्रदेश के भीतर चुनाव के दौरान हुए बड़ी आतंकवादी घटनाओं को कैसे भुला सकते हैं।
ऐसी और भी कई घटनायें हैं जिनका हम यहां जिक्र कर सकते हैं। इन सबको एक साथ मिलाकर देखिए और फिर तस्वीर बनाइए। ऐसा लगेगा कि समुद्र से लेकर आकाश और धरती तक, पश्चिम से लेकर मध्य, उत्तर एवं दक्षिण तक देश में आतंकवाद का खतरा आसन्न मंडरा रहा है। जहां सुरक्षा बलों की सतर्कता गई कि हम शिकार हुए। ऐसी स्थिति में खड़े देश को आतंकवाद के विरुद्ध जैसी मानसिकता और जिस तरह की सशक्त तैयारी होनी चाहिए उसका अभाव हमारे यहां है। अगर हम गहराई से समीक्षा करें तो केवल तटीय सुरक्षा व्यवस्था ही 26/11 के बाद लिए गए निर्णयों के अनुरुप या कायम मानक से नीचे नहीं है, सामूहिक नागरिक सोच भी अनुकूल नहीं मानी जा सकती। हम सैन्य बल की भूमिका को कठघरे में खड़ा करते हैं, पुलिस की एक अवांछित भूमिका पर हंगामा करके उसका जीना हराम करते हैं और उससे उम्मीद करते हैं कि वह आतंकवादी घटनाओं को हर हाल में रोके। इस सोच और व्यवहार में थोड़े संशोधन की आवश्यकता है। कहने का अर्थ यह नहीं कि हम सुरक्षा एजेंसियों को स्वच्छंद आचरण की छूट दे दें, बल्कि....वे ठीक प्रकार से अपनी भूमिका निभा सकें इसके लिए यह आवश्यक है।
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