गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

सुनियोजित हिंसा की नई सुरक्षा चुनौती

अवधेश कुमार

हिंदू धर्म की शोभा यात्राओं पर हमले का क्रम राजधानी दिल्ली तक पहुंच गया । जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती की शोभायात्रा पर भीषण हमला और आगजनी ठीक वैसे ही है जो हम मध्य-प्रदेश के खरगोन से गुजरात के खंभात तक देख चुके हैं । राजस्थान के करौली से लेकर देश के कई क्षेत्रों  में  धार्मिक शोभा यात्राओं पर भीषण हमले और उत्पन्न हिंसा की छानबीन के बाद जो तथ्य सामने आ रहे हैं उसमें दिल्ली के हिंसा भयभीत जरूर करती है लेकिन आश्चर्य में नहीं डालती। छह राज्यों के अलग-अलग स्थानों में एक ही तरह की हिंसा अनायास और छिटपुट घटनाएं हो ही नहीं सकती। वास्तव में हमले और हिंसा की घटनाएं अलग-अलग नहीं थी। दिल्ली के पहले गुजरात, झारखंड ,पश्चिम बंगाल ,कर्नाटक, मध्यप्रदेश आदि राज्य धार्मिक शोभायात्राओं के दौरान हुई हिंसा के सबसे ज्यादा शिकार हुए। इन सभी राज्यों की हिंसक घटनाओं के बीच कुछ समानताएं आपको दिखाई देंगी। पहले शोभा यात्रा पर हमले, पूरी तैयारी के साथ आगजनी और हिंसा। ये सब सुनियोजित तरीके से की गई और एक कड़ी के अंग हैं। सभी राज्यों में जिनकी गिरफ्तारियां हुई हैं उनमें कुछ या कोई  किसी न किसी का नाम ले रहा है। वैसे भी पेट्रोल बम, तलवार, पिस्तौल के साथ अनगिनत पत्थरों, कांच की बोतलों का चलना, लक्षित आगजनी आदि अचानक नहीं हो सकता। इतनी संख्या में पत्थरों, बोतलें, टूटे कांच आदि एकाएक नहीं आ सकती । 

 सबसे पहले  इसके पीछे की सोच को समझना जरूरी है।  जरा सोचिए, वर्षों से अलग-अलग स्वरूपों में निकलतीं शोभायात्राएं जिन लोगों को सहन नहीं हो वो कैसी मानसिकता रखते होंगे? खरगोन से गुजरात के खंभात तक की हिंसा स्पष्ट कर रही है कि कैसे इन सबके बीच अंतर्संबंध था । हिंसा का भयावह सच वीडियो और सीसीटीवी फुटेज में साफ दिख रहा है। दिल्ली का वीडियो देख लीजिए । इसमें शोभायात्रा में लोग गाते नारा लगाते चल रहे हैं और अचानक उन पर भारी संख्या में लोग हमला कर देते हैं । पूरा वातावरण डरावना है। शोभायात्रा में शामिल लोग अपनी गाड़ियां तक छोड़कर जान बचाने के लिए भाग रहे हैं । 10 अप्रैल को खरगोन में अचानक हुए हिंसा और हमले से लोग इतने डरे थे कि उन्होंने छुपकर वीडियो बनाए और उसे तब बाहर किया जब महसूस हुआ कि उन्हें कोई खतरा नहीं होगा। तवड़ी मोहल्ले का एक वीडियो है जिसमें पेट्रोल बम फेंककर जबरदस्त आगजनी करते देखा जा रहा है। स्पष्ट लगता है कि पहले से तय करके पेट्रोल बम फेंके गए और आग लगाए गए। ईंट और पत्थरों की तो बारिश हो रही है। एक वीडियो ऐसा भी है, जिसमें एक युवक अपनी छत से सीसीटीवी कैमरे को दूसरी तरफ घुमा रहा है और उसके ठीक पीछे से दूसरे पक्ष पर जमकर पथराव किया जा रहा है। खरगोन के गौशाला मार्ग का दृश्य भी ऐसा ही है। शाम 5:45 बजे सैकड़ों लोग एकत्रित हुए और हथियारों, डंडों, पत्थरों व अन्य सामानों से  लगातार हमले कर रहे हैं। कई हमलावर यहां भी सीसीटीवी निकालते दिख रहे हैं।शीतला माता मंदिर में तोड़फोड़ का दृश्य पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों पर होने वाले हमले की तरह है। जितनी संख्या में हिंसा करते लोग दिख रहे हैं वह एकाएक इकट्ठे हो ही नहीं सकते। जाहिर है, पहले से पूरी तैयारी करके इकट्ठे थे। तो ये कौन है जिन्होंने देशव्यापी हिंसा की साजिशें रच कर उन को अंजाम तक पहुंचाने में सफलता पाई?

इसका कुछ उत्तर गुजरात के आणंद जिले के खंभात इलाके में 5 अप्रैल को एक धार्मिक जुलूस पर हुए हमले के आरोप में   पकड़े गए लोगों से पूछताछ के बाद मिल रहा है। गिरफ्तार लोगों से पता चला है कि उस हिंसा के पीछे का मुख्य मस्तिष्क मौलवी रजक पटेल है।  मौलवी रजक घटना को अंजाम देने के लिए जिले के बाहर और कुछ विदेशी लोगों से आवश्यक धन की व्यवस्था को लेकर भी संपर्क में था।  फंड जुटाने का काम मतीन नाम के शख्स को दिया गया था।  जैसे ही इन्हें पता चला कि रामनवमी जुलूस की अनुमति मिल गई है इन्होंने तीन दिन के अंदर  पूरी व्यवस्था कर ली। जाहिर है, तैयारी पहले से हो रही होगी। कब्रिस्तान से पत्थर फेंकने की योजना इसलिए बनाई गई ताकि पत्थरों की कमी न पड़े।आणंद के अलावा साबरकांठा और द्वारिका में भी शोभा यात्राओं को निशाना बनाया गया। झारखंड के बोकारो और लोहरदगा में पहले शोभायात्रा ऊपर हमले हुए और फिर आगजनी की गई। 

 अभी तक की छानबीन का निष्कर्ष है कि इन लोगों ने शोभा यात्राओं पर इसलिए हिंसा किया ताकि इनके अंदर भय पैदा हो और आगे से यात्रा न निकालें। यही मानसिकता दिल्ली से लेकर अन्य जगहों में थी। यह मानसिकता जुनूनी मजहबी घृणा से ही पैदा होती है और विश्व स्तर पर यह जिहादी आतंकवाद के रूप में हमारे सामने है। जिस तरह से कोई आतंकी मॉड्यूल योजना बनाकर हमला करता है लगभग वैसा ही तौर तरीका इनका भी था। यानी पहले बैठकें करना, उसमें शोभा यात्राओं को कहां-कहां किस तरह निशाना बनाना है उन पर चर्चा करना, योजना बनाना ,उन्हें अंजाम देने के लिए संसाधन जुटाना, मुख्य लोगों को तैयार करना या बाहर से बुलाना, लोगों को भड़का कर इसके लिए तैयार करना,  शोभायात्रा आने के पहले घात लगाकर बैठना और अचानक हमला कर देना…..।

 तो इन हमलों के संदेश क्या है?आमतौर पर माना जाता है कि केंद्र से लेकर अनेक राज्यों में भाजपा की सरकारों के कारण जिहादी और सांप्रदायिक तत्व कमजोर पड़ गए हैं। वे  बड़ी साजिशों को नहीं सफल कर पा रहे। आतंकवादी हिंसा को अंजाम देने वाली ताकतें भी निराश हैं। इस कारण सीधे आतंकवादी हमले करने की जगह इन शक्तियों ने तरीका बदलने की शुरुआत की है। खुफिया एजेंसियां वर्षों से रिपोर्ट दे रही हैं कि जिहादी आतंकवादी तत्व प्रमुख हिंदू पर्वों त्योहारों के साथ प्रसिद्ध धर्मस्थलों पर हमले की साजिशें रच रहे हैं। स्पष्ट है कि सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी कार्रवाइयों में ऐसे अनेक हमलों को साकार होने के पहले ही विफल किया है। बावजूद रामनवमी की शोभायात्राओं पर इस तरह के सुनियोजित हमले सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल अवश्य खड़ी करती हैं।  संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा की पहले से व्यवस्था की गई होती तो ऐसा नहीं होता। यह कैसे संभव है कि इतनी भारी मात्रा में ईट, पत्थर, डंडे, तलवारें, आगजनी के सामान इकट्ठे हो जाएं , बाहर से लोगों को बुलाया जाए और पुलिस प्रशासन को इसकी जानकारी न मिले? जितने खुलासे अब हो रहे हैं उनसे लगता है कि राष्ट्रव्यापी साजिश रचने के पीछे पीएफआई जैसे संगठनों का हाथ हो सकता है। इसमें सच्चाई है तो यह दो मायनों में ज्यादा चिंताजनक है। एक,पीएफआई पहले से सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर है। बावजूद वह एकपक्षीय सांप्रदायिक हिंसा की साजिशों को अंजाम देने में सफल हो गया। क्या इनकी गतिविधियों पर नजर रखने में हाल के महीनों में ढिलाई बरती गई? दूसरे , आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के विकल्प के तौर पर इस प्रकार की एकपक्षीय हिंसा और दंगा हमारे लिए नई चुनौती बनकर सामने आई है।

वास्तव में इन घटनाओं  की सीख यह है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें तथा सभी सुरक्षा एजेंसियां देश विरोधी जेहादी ताकतों को लेकर सतर्कता और चौकन्नापन में थोड़ी भी ढिलाई न बरतें। योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में रामनवमी के जुलूस 800 स्थानों से निकले लेकिन कहीं हिंसा की घटना नहीं हुई। यह सोचने की बात है कि उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राज्य में कहीं हिंसा नहीं हुई वह भी उस स्थिति में जब विरोधियों के लाख न चाहने के बावजूद भाजपा की सरकार बहुमत से वापस आई है। स्वाभाविक ही इन शक्तियों के अंदर गुस्सा और असंतोष होगा। अगर वहां वे हिंसा करने में कामयाब नहीं हुए तो इसके पीछे सख्त सुरक्षा व्यवस्था के साथ यह भय भी मुख्य कारण है कि अगर पकड़े गए तो अपने सहित परिवारों, रिश्तेदारों के साथ पुलिस प्रशासन किसी सीमा तक जा सकती है। घटना के बाद मध्यप्रदेश सरकार उन लोगों की संपत्तियां बुलडोजर से ध्वस्त करवा रही हैं जिनके चेहरे साफ तौर पर वीडियो फुटेज में दिख रहे हैं। इससे भय वहां भी पैदा हुआ है। आगे इसका असर होगा। किंतु खरगोन की हिंसा बता रही है कि पुलिस प्रशासन अनुमान लगाने में विफल था और इस कारण त्वरित निपटने की तैयारी नहीं थी। धार्मिक आयोजनों पर  हमले और बाद में हिंसा को अंजाम देने वाले आतंकवादी ही हो सकते हैं। इनके साथ उसी तरह की कार्रवाई होनी चाहिए। तो इन नई श्रेणी के आतंकवादियों से इस तरह निपटा जाए कि आगे ऐसा करने की सोचने वालों की कंपकंपी छूट जाए। विडंबना देखिए कि देश में सेक्यूलरवाद और लिबरलवाद का झंडा उठाए पत्रकारों ,बुद्धिजीवियों ,नेताओं और एक्टिविस्टों के मुंह पर इन मामलों ताले लगे हुए हैं। यही हिंसा मुस्लिम धार्मिक जुलूस पर होती तो तूफान खड़ा हो चुका होता, संभव है टूल किट भी बन जाता और दुनिया भर में प्रचार होता कि भारत में फासिस्ट शक्तियों का राज आ गया है जो हिंदू धर्म के अलावा हर मजहब को हिंसा की बदौलत नष्ट करना चाहते हैं। एक मस्जिद पर कुछ युवकों द्वारा भगवा झंडा लगाने का कितना प्रचार हुआ इसे याद करिए। यकीनन यह गलत है। उन्हें भी रोका जाना चाहिए। किंतु उस घटना पर आप आवाज उठाएं और इतनी बड़ी हिंसा पर चुप्पी साधे रहें तो आपको झूठा और पाखंडी मानना ही होगा। जो भी हो हम सबको इन घटनाओं के बाद ज्यादा गहराई से अपने विचार और व्यवहार पर विचार करने की आवश्यकता है। अच्छा होगा कि केंद्र सरकार एनआईए को संपूर्ण हिंसा की जांच सौंप दे ताकि राष्ट्रव्यापी साजिशों का खुलासा हो सके।

अवधेश कुमार,ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली 110092, मोबाइल- 98210 27208

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

पाकिस्तान में अभी बहुत कुछ हो सकता है

अवधेश कुमार

पाकिस्तान में पीएमएलएन के नेता शाहबाज शरीफ 34 वें प्रधानमंत्री बन चुके हैं। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद साफ हो गया था कि इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ेगा। स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रणाली का तकाजा था कि इमरान खान विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का सामना करते। संसद में विपक्ष के आरोपों का जवाब देते तो संसदीय प्रणाली की अच्छी परंपरा शुरु होती। इसके विपरीत उन्होंने संसद की जगह टेलीविजन को जवाब देने का हथियार बनाया था। जिस ढंग से नेशनल असेंबली में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ वह लोकतंत्र की दृष्टि से हास्यास्पद था। सत्ता पक्ष का कोई एक व्यक्ति सदन में नहीं। नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर ने कह दिया कि इमरान खान से उनकी 30 साल की दोस्ती है ,इसलिए वे अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं कराएंगे। डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी पहले ही अविश्वसनीय हो चुके थे। उच्चतम न्यायालय की टेढी नजर देखते हुए दोनों को इस्तीफा देना पड़ा। संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में अध्यक्ष सत्तारूढ़ पार्टी का होता है और उसके संबंध नेताओं से होते ही हैं। अध्यक्ष चुनने के बाद वह अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करता है न की पार्टी की वफादारी और दोस्ती निभाता है। किंतु पाकिस्तान का लोकतंत्र इसी तरह चलता है। आप देखिए डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया और कारण बताया कि यह विदेश की साजिश है। राष्ट्रपति ने इमरान खान की सलाह मानकर नेशनल असेंबली भंग कर दिया था। उच्चतम न्यायालय 48 घंटे के अंदर अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराने का आदेश न देता तो वहां चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सकती थी। 

हालांकि पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय पर सेना, राजनीतिक सत्ता और मजहबी तत्वों का प्रभाव रहा है। इस बार या तो उस पर दबाव नहीं आया या फिर किसी अन्य कारण से उसने ऐसा फैसला किया। पाकिस्तान के लिए यह सामान्य स्थिति नहीं थी कि उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश की अवहेलना होती देख रात में ही सुनवाई के लिए न्यायालय खोल दिया था। राजनीतिक तनाव को देखते हुए केवल सुप्रीम कोर्ट ही नहीं इस्लामाबाद हाईकोर्ट भी खोला गया था ताकि कोई याचिका आए तो उसकी तत्क्षण सुनवाई की जा सके। अविश्वास प्रस्ताव पर ऐसे परिदृश्यों की कल्पना शायद ही किसी स्वस्थ लोकतंत्र में की जा सकती है। पूरे देश में टकराव जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। लेकिन जिस तरह चारों और सुरक्षा व्यवस्था थी वह भी हैरत में डाल डाल रही थी। इस्लामाबाद के सभी रास्ते बंद कर दिए गए। हवाई अड्डों की भी सुरक्षा बढ़ा दी गई। अस्पतालों को हाई अलर्ट पर रख दिया गया। पुलिसकर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई। पुलिस अधिकारियों को इस्लामाबाद में ही रहने का आदेश दिया गया। जब इमरान सरकार का जाना निश्चित था तो ये सारी व्यवस्थायें कि किसने? सामान्यतः ऐसी स्थिति में उच्चाधिकारियों की भूमिका बढ़ जाती है। लेकिन इतना सब कुछ यूं ही नहीं हो सकता। आने वाले समय में इन सबका खुलासा होगा। ऐसा लगता है कि इमरान ने पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान में अपने विरोधियों की संख्या ज्यादा ही बढ़ा लिया था।

तत्काल विपक्ष की एकता से सरकार भले बन जाए लेकिन इसे पाकिस्तान के राजनीतिक संकट के टल जाने की उम्मीद नहीं की जा सकती। पीएमएल क्यू और एमक्यूएम जैसी पार्टियां सेना के प्रभाव में रही हैं। उन्होंने सेना के प्रभाव में ही 2018 में इमरान खान सरकार के गठबंधन में शामिल होना स्वीकार किया था। आगे भी वे किसी दिशा में जा सकते हैं। बिलावल भुट्टो जरदारी की पीपीपी और नवाज शरीफ की पीएमएलएन के बीच दोस्ती स्वाभाविक नहीं। इसलिए वह कितने दिन साथ रहेंगे कहना मुश्किल है। इमरान आए तो सत्ता में सेना और कट्टरपंथियों के समर्थन से लेकिन अपने को बाहर स्वतंत्र दिखाने की बेवकूफी में उन्होंने सेनाध्यक्ष को नाराज कर दिया। सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा के सेवा विस्तार के बारे में कह दिया कि अभी उस पर विचार नहीं किया। आई एस आई प्रमुख की नियुक्ति में भी उन्होंने सेना की अनुशंसा को स्वीकार करने में देर कर दी। देश की आर्थिक हालत खराब हो ही रही थी। अमेरिका ही नहीं एक समय के मित्र इस्लामी देशों सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की 

नाराजगी के कारण इमरान की स्थिति खराब हो रही थी। विपक्ष के नेताओं के विरुद्ध कानून एजेंसियों ने जैसी बेरहमी की उससे उनके बीच एकजुटता पैदा हो गई। ऐसा लगता है कि परिवर्तन कराने में सेना ने प्रत्यक्ष न सही परोक्ष भूमिका अवश्य निभाई है। इमरान खान के इस्तीफा के पहले कमर जावेद बाजवा ने उनसे मुलाकात की। उसके पहले पाकिस्तानी मीडिया के एक समूह में खबर चल गई कि इमरान बाजवा को बर्खास्त करने वाले हैं। इमरान ने इसका खंडन करते हुए कहा कि वे सेना के मामले में हस्तक्षेप नहीं करते। बाजवा की मुलाकात का अर्थ यही लगाया जा रहा है कि उन्होंने उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा होगा। इसमें आगे होगा क्या इसके बारे में निश्चित आकलन नहीं किया जा सकता। यह पाकिस्तान है जहां कब क्या हो जाए कहना कठिन है। अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा वहां की राजनीति में भी महसूस की जा सकती है।

शहबाज शरीफ पंजाब के मुख्यमंत्री रहे हैं और प्रशासन का उन्हें अनुभव है। किंतु उनकी सरकार भी पीपीपी और अन्य दलों के समर्थन पर टिकी होगी। इनके अंदर इमरान के विरुद्ध इतना गुस्सा है कि वे प्रतिशोध में विरोधी नेताओं के दमन की पाकिस्तानी परंपरा को आगे बढ़ा सकते हैं। आज पाकिस्तान का कोई पूर्व प्रधानमंत्री अपने देश में नहीं है। या तो वे विदेशों में निर्वासित जीवन जी रहे हैं या मार दिए गए। इमरान ने अंतिम समय में यही समझौता करने की कोशिश की कि उनके और मंत्रिमंडल के उनके साथियों के विरुद्ध मुकदमा न किया जाए। उन्होंने कहा भी कि उन्हें जेल में डाला जा सकता है। ऐसा हो सकता है। इमरान के शासनकाल में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जेल में डाले गए।  एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने पिछले दिनों खुलासा किया कि उनके विरुद्ध बिल्कुल गलत फैसला दिया गया। परवेज मुशर्रफ लंबे समय से निर्वासित जीवन जी रहे हैं। आम धारणा यही है कि उनके विरुद्ध न भ्रष्टाचार का कोई आरोप साबित होने वाला है न अपराध का। उन पर मुख्यतः संविधान के गला घोंटने का आरोप है और वह भी आपातकाल लगाने के कारण। वे न्यायालय का सामना करना चाहते थे लेकिन परिस्थितियां ऐसी बना दी गई कि उनके पास देश छोड़कर जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। उनके कार्यकाल के प्रधानमंत्री सब बाहर है। नवाज शरीफ के शासनकाल में ही बेनजीर भुट्टो को लंदन में निर्वासित जीवन जीना पड़ा और उनके पति आसिफ अली जरदारी तथा अनेक अन्य नेता जेल में बंद रहे। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी भी तब पीपीपी नेता के रूप में जेल में रहे। हालांकि इस समय वहां का न्यायालय जितना एक्टिव है उसमें पहली नजर में कोई उम्मीद कर सकता है कि अगर सरकार ने इमरान और उनके साथियों के विरुद्ध गलत तरिके से कानूनी कार्रवाई की तो न्यायपालिका से उन्हें न्याय मिल सकता है। किंतु न्यायपालिका की भूमिका ही वहां संदिग्ध रही है। विपक्ष ने भ्रष्टाचार का आरोप सरकार पर लगाया है तो और उसकी जांच के लिए कदम उठाए जाएंगे और संभव है मुकदमे दर्ज हो। अगर इमरान खान गिरफ्तार नहीं होते और संसद में विपक्ष के नेता के रूप में उपस्थित रहते हैं तो पाकिस्तान की राजनीति में नई शुरुआत हो सकती है क्योंकि किसी पूर्व प्रधानमंत्री ने वहां विपक्ष के नेता की भूमिका नहीं निभाई है। तो देखना होगा कि वहां की अगली तस्वीर कैसी बनती है। 

भारत के लिए घटनाओं पर नजर रखने और भविष्य की दृष्टि से चौकस रहने का ही एकमात्र विकल्प है। शाहबाज शरीफ ने प्रधानमंत्री बनने के पहले ही कह दिया कि कश्मीर मसला जब तक नहीं सुलझता तब तक भारत से बातचीत नहीं होगी। ऐसा लगता है जैसे भारत ने पाकिस्तान से बातचीत की दरख्वास्त की हो। इमरान खान ने अंतिम समय में भारत की विदेश नीति की काफी प्रशंसा की तो मरियम नवाज ने कहा कि उन्हें भारत में ही बस जाना चाहिए। जब नई सरकार आने के पहले ही भारत विरोधी अलाप शुरू हो गया है तो आगे क्या करेंगे। इमरान हो या शाहबाज या अन्य कोई भारत की अनुकूलता की दृष्टि से तत्काल मौलिक अंतर आने की संभावना नहीं दिखती । 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल- 98110 27208



शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

मोदी विपक्ष के लिए अपराजेय और पार्टी के लिए अपरिहार्य हो गए हैं

अवधेश कुमार 

राकांपा प्रमुख शरद पवार का यह बयान वैसे तो सामान्य है कि वे मोदी या भाजपा विरोधी किसी गठबंधन का नेतृत्व नहीं करेंगे लेकिन गठबंधन बनता है तो मदद करेंगे।  अनेक विरोधी नेता सत्ता से भाजपा को हटाना चाहते हैं लेकिन नेतृत्व की दावेदारी से बचते हैं। क्यों ? उन्हें उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम नरेंद्र मोदी को लेकर जनता की सोच का धीरे-धीरे एहसास हो गया है। चुनाव चाहे केंद्र का हो ,राज्य का या स्थानीय निकाय का ,मोदी सबसे बड़े मुद्दे के रूप में सर्वत्र उपस्थित हैं। यह असाधारण स्थिति है जो देश में पिछले छह दशकों से ज्यादा समय से नहीं देखा गया। आखिर मोदी में ऐसा क्या है जिससे ऐसी स्थिति पैदा हुई? थोड़ी गहराई से देखें तो नजर आएगा की नरेंद्र मोदी जब केंद्रीय सत्ता की दावेदारी में सामने आए थे तब उनके पक्ष और विपक्ष दोनों में लहर की स्थिति थी। पिछले आठ वर्षों में विरोध की लहर कमजोर हुई और पक्ष की मजबूत। इसका मतलब विपक्ष कमजोर हुआ तथा विरोधियों के एक बड़े समूह की धारणा मोदी को लेकर बदल गई। कुछ वर्ष पहले आप जहां जाते मोदी समर्थकों के साथ विरोधी भी उसी आक्रामकता से सामने आ जाते थे। आज मोदी का विरोध होता है लेकिन उसमें आक्रामकता ही नहीं संख्या बल भी वैसी नजर नहीं आती। ज्यादातर विरोध औपचारिक होकर रह गए हैं। यह स्थिति केवल देश में नहीं विदेशों में भी है।

एक नेता ,जिसे देश और विदेश के विरोधियों ने महाखलनायक बना कर पेश किया वह धीरे-धीरे अपने कार्यों और भाषणों से इतनी बड़ी संख्या में लोगों का हृदय बदलने में कामयाब हुआ है तो इसे असाधारण परिवर्तन कहना ही मुनासिब होगा। भाजपा के लिए इसके पहले कोई नेता इस तरह अपरिहार्य नहीं माना गया। 

पिछले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में आप जहां भी जाते मोदी का नाम सबसे ज्यादा सुनने को मिलता। ऐसे मतदाताओं की संख्या भी काफी थी जो कह रहे थे कि इस चुनाव में हम भाजपा को वोट नहीं देंगे लेकिन 2024 में मोदी हैं इसलिए उनके समर्थन में वोट जाएगा ही । इसका अर्थ यही है कि विधानसभा चुनाव में अगर भाजपा का ग्राफ किसी राज्य में पहले से कमजोर हुआ है तो उससे 2024 के अंकगणित का आकलन करना नासमझी होगी। घोर विरोधी भी यह मानने को विवश है कि मोदी को हटा पाना टेढ़ी खीर है। विरोधियों की समस्या है कि वे हमेशा नरेंद्र मोदी का आकलन अपनी एकपक्षीय विचारधारा के चश्मे से करते हैं और यही विफल हो जाते हैं। आप देश के किसी भी आदिवासी मोहल्ले में चले जाइए और पूछिए कि किसे वोट दोगे तो बिना सोचे स्त्री-पुरुष सब बोलेंगे कि मोदी को। उन सबकी आवाज ऐसी मुखर होती है कि जिन्हें मोदी के आविर्भाव के बाद समाज के मनोविज्ञान में आए परिवर्तनों का आभास नहीं हो वे दंग रह जाएंगे। दूसरी ओर आप  बुद्धिजीवियों ,पेशेवरों ,वैज्ञानिकों, सैनिकों ,किसानों ,मजदूरों ,कारीगरों, टैक्सी चालकों,  रिक्शा चालकों आदि के बीच जाएं तो उनके मुंह से भी मोदी समर्थन की आवाज निकलती है। महाविद्यालय -विश्वविद्यालय ही नहीं, स्कूली छात्रों के बीच  जाइए तो वहां भी मोदी को लेकर रोमांच भाव दिखाई देता है। उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान यादव समूह मुख्यतः सपा के पक्ष में था। लेकिन उनमें भी ऐसे लोग मिलते थे जो कहते थे कि मैं तो मोदी का समर्थन करना चाहता हूं लेकिन प्रदेश का माहौल ऐसा है कि मेरा वोट माना ही नहीं जाएगा। एक सेना का नौजवान मुझे मिला जिसने कहा कि मैं तो मोदीवादी हूं, क्योंकि मुझे मालूम है कि सेना और रक्षा के लिए उन्होंने क्या किया है लेकिन हमको सपा समर्थक बना दिया गया है। यह उदाहरण बताने के लिए पर्याप्त है कि मोदी किस तरह उन लोगों के दिलों दिमाग पर राज कर रहे हैं जिनकी अपनी कोई निश्चित दलीय निष्ठा या विचारधारा नहीं है।

वास्तव में नरेंद्र मोदी ने अपना बहुआयामी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व प्रमाणित किया है। ऐसा नहीं है कि उन्होंने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा से समझौता किया जिससे विरोधी भी समर्थक बने। इसके उलट हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर पहले की भाजपा  सरकारों की नीतियों से ज्यादा स्पष्ट और मुखर होते हुए आम आदमी के कल्याण, विकास की सोच तथा विदेश व रक्षा नीति के बीच मोदी ने अपने कार्यों से संतुलन बनाया है। मोदी को हिंदुत्व का हीरो मानने वाले प्रसन्न और संतुष्ट हैं तो दूसरी ओर उन्हें देश की रक्षा व विकास से लेकर विदेशों में भारत की धाक जमाने की उम्मीद करने वाले भी। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान भले सतह पर दिखाई नहीं दिया लेकिन देश में कहीं चले जाइए आंदोलनकारियों के विरोध में आम किसान भी गुस्से में बोलते मिलते थे और उनके मन में मोदी के प्रति अपार सहानुभूति का भाव झलकता था। जिन्हें विरोध करना है वो भले स्वीकार न करें, देश और विदेश का बहुमत इसे स्वीकार करता है। जरा सोचिए,  विपक्ष यदि महंगाई का मुद्दा उठाता है तो भारी संख्या में लोग कहते हैं कि हम महंगे तेल लेंगे लेकिन वोट मोदी को ही देंगे। ये सारे लोग न तो विक्षिप्त हैं न अज्ञानी और न ही उनकी जेबों पर महंगाई का दबाव नहीं पड़ता। उनका विश्वास है कि देश और हम मोदी के हाथों ज्यादा सुरक्षित हैं।

आलोचक कहते हैं कि मोदी भाषण अच्छा देते हैं और लोगों को सम्मोहित कर लेते हैं। थोथे शब्दों से कोई इतने लंबे समय तक जनता का ऐसा विश्वास हासिल नहीं कर सकता। जो देश गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदी का बहिष्कार कर रहे थे वहां के नेता वैसी प्रशंसा कर रहे हैं जो हमारे यहां उनके समर्थक भी नहीं करते। दुनियाभर में फैले भारतवंशियों के अंदर मोदी का क्रेज अभूतपूर्व है। केवल भाषणों से ऐसा नहीं हो सकता। हालांकि सच यह है कि विरोधियों की तरह मोदी के समर्थकों में भी बहुतायत ऐसे ही लोग हैं जो संपूर्णता में उनका मूल्यांकन नहीं करते।  आखिर एक साथ समाज के निचले तबके से लेकर ऊपर तक ,अनपढ़ से बुद्धिजीवी, सामान्य कारीगर, रिक्शा चालक से लेकर वैज्ञानिक और नौकरशाह तथा विदेशों के भारतवंशी एवं दूसरे देशों के नागरिक, नेता ..सब मोदी के बारे में इतनी सकारात्मक धारणा क्यों रखते हैं इसका अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो उत्तर मिल जाएंगे। सोचिए इसके पहले किस प्रधानमंत्री ने मन की बात में ऐसे छोटे-छोटे मुद्दों और विषयों को उठाया जो हमारी आपकी जिंदगी से सीधे जुड़ीं हैं? परीक्षा पर चर्चा करते और छात्रों के प्रश्नों का विस्तार से उत्तर देते हुए कौन नेता देखा गया? उपग्रह प्रक्षेपण के समय अंतरिक्ष केंद्र में उपस्थित रहने का रिकॉर्ड पहले भी है लेकिन विफल हो जाने के बाद वहां जाकर वैज्ञानिकों को साहस व संबल देने का ऐसा कार्यक्रम पहले नहीं देखा गया। 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की योजना से देश में विवेकशील वर्ग सहमत नहीं, पर अनाज होते हुए भी गरीबों को मुफ्त पहुंचा देने का कार्य पहले तो नहीं हुआ। किसने किसानों के खाते में राशि पहुंचाई? धारा 370 हटाने के कट्टर समर्थक भी कल्पना नहीं करते थे कि उनकी जिंदगी में वे इसे साकार होते देखेंगे। अयोध्या में मंदिर निर्माण हो ही जाएगा इसकी भी कल्पना नहीं थी। मोदी ने यह नहीं सोचा कि अयोध्या मंदिर निर्माण के फैसले के बाद तुरंत ट्रस्ट बनाकर निर्माण प्रक्रिया शुरू कराने, स्वयं भूमि पूजन में जाने तथा इसी तरह काशी विश्वनाथ का पुनर्निर्माण करने और वहां उद्घाटन में जाने का मुस्लिम देशों की सोच पर क्या प्रभाव होगा। वे यह सब करते हुए भी निकट के मुस्लिम देशों से अच्छा संबंध बनाए हुए हैं।  आप काशी विश्वनाथ धाम में चले जाइए आपको अंदर अनेक लोग कहते हुए मिल जाएंगे जियो मोदी ..मोदी जिंदाबाद। अयोध्या श्रीराम के दर्शन कर लौटते समय लोगों के ऐसे ही शब्द आपको सुनने को मिल जाएगा। उनको वोट न देने वाले अनेक मुस्लिम मिल जाएंगे जो कहेंगे कि मोदी के कारण उनका जीवन चल रहा है। ऐसा नहीं है कि मोदी को एक सुगठित और सशक्त भाजपा विरासत में मिला था। अंतर्कलह का शिकार एवं तेजी से लोकप्रियता खोती भाजपा विरासत में मिला था। इसमें दो राय नहीं कि संघ परिवार एक व्यापक संगठन है और चुनावी सफलता में उन सबकी शक्ति का योगदान है। यही ताकत पहले भी थी और भाजपा की लोकप्रियता लगभग खत्म हो रही थी। एक साथ पार्टी को संभालना, यानी संगठन कौशल, नेतृत्व के स्तर पर प्रदेश से देश सही लोगों की तलाश ,विचारधारा की पटरी पर पार्टी को लौटाना, उसे क्षमायाचना मुद्रा से बाहर ले जाना और सबके साथ सरकार में देश के अंदर और बाहर संतुलन बनाते हुए नेतृत्व करना असाधारण प्रतिभा का प्रमाण है। विपक्ष में इस तरह प्रतिभा का धनी कोई नेतृत्व सामने आए तभी लगेगा कि मोदी को वास्तविक चुनौती मिली है।

अवधेश कुमार,ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली- 110092, मोबाइल -98910 27208



सोमवार, 4 अप्रैल 2022

आम आदमी पार्टी, वैशाली ने चलाया सदस्यता अभियान

 

आज दिनांक 04 अप्रैल को महनार विधानसभा प्रभारी डॉ. विपिन कुमार के मार्गदर्शन एवं महनार छात्र संघ प्रखंड प्रभारी अभय कुमार साह की अध्यक्षता में लावापुर नारायण (महनार) में आम आदमी पार्टी के सदस्यता अभियान चलाया गया, जिसमें काफी लोगों ने पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होकर पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। लोगों को पार्टी की टोपी पहनाकर पार्टी की सदस्यता दिलाई गई।

इस कार्यक्रम में बबी कुमार, पंकज कुमार पासवान, अंकित राज, विद्यम कुमार, ललन कुमार, अभिनाश कुमार, राहुल कुमार, रोहित कुमार, रंजीत कुमार, निखिल कुमार, राजा कुमार, ज्ञानतोष कुमार, विकाश कुमार, अशोक कुमार राय इत्यादि कार्यकर्ता मौजूद रहे।

रविवार, 3 अप्रैल 2022

थियेटर का आरंभ सभ्यता के आरंभ के साथ ही हो गया था: पद्मश्री डीपी सिन्हा

 - वरिष्ठ पत्रकार अमित कुमार को मिला बेस्ट क्रिटिक अवार्ड

- कृति जैन को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से किया गया सम्मानित

नई दिल्ली। थियेटर का आरंभ सभ्यता के आरंभ के साथ ही हो गया था। जब बच्चा आंख खोलता है उसी के साथ अभिनय करना शुरू कर देता है। इसलिए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि थियेटर का जन्म सभ्यता के जन्म के साथ ही हुआ है। यह बात साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा  (डीपी सिन्हा) ने दिल्ली के मुक्तधार सभागार में आयोजित '14वे नटसम्राट थियेटर अवार्ड' वितरण समारोह में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े प्रतिष्ठित विभूतियों को सम्मानित करते वक्त कही। इस मौके पर हिंदी दैनिक 'राष्ट्रीय सहारा' के वरिष्ठ संवाददाता अमित कुमार को वर्ष 2022 के लिये बेस्ट क्रिटिक अवार्ड से नवाजा गया तो दूसरी ओर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) की पूर्व निदेशक कृति जैन आदि को सम्मानित किया गया। इस मौके पर जयवर्धन (जेपी सिंह) द्वारा रचित हिंदी राजनीतिक व्यंग्य नाटक 'खैरातीलाल का कुर्सी तंत्र' का विमोचन भी किया गया।
इस मौके पर कृति जैन ने नटसम्राट के निदेशक श्याम कुमार को पिछले 19 वर्षों से लगातार अपने बल बूते थियेटर करने के लिए बधाई दी तो दूसरी ओर वैसे लोगों को सम्मानित करने के लिए भी बधाई दी जो पर्दे के पीछे रहते हुए लगातार रंगमंच को समृद्ध कर रहे हैं। अमित कुमार ने कहा कि यह हर किसी को अपना काम लगन और ईमानदारी से करते रहना चाहिए एक न एक दिन उसका फल जरूर मिलता है। यह नही सोचना चाहिए कि कोई आपके काम का आंकलन नही कर रहा है। कही न कही कोई न कोई आपके काम का आंकलन करता है और उसका प्रतिफल इस तरह के पुरस्कार का मिलना है। वैक स्टेज संगीत के लिए पुरस्कार पाने वाले जमील खान ने कहा ने बताया कि उनकी पांच पीढियां 'नक्कारे' बजाने का काम करती आ रही है। पहले नौटंकी में बजाते थे तो वहां बंदिशें नही थी लेकिन थियेटर में आने के बाद पता चला कि यहां आपको एक सीमा में ही काम करना है और इसे मैने एक छात्र की तरह सीखता रहा। 
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल के प्रमुख और सहायक प्राध्यापक शान्तनु बोस को इस साल का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का सम्मान मिला है। श्री बोस ने सम्मान ग्रहण करने के बाद इतने भावुक हो गए कि उनकी आंखों से आंसू इस लिये निकल गए कि वर्षो से रंगमंच करते आने के बाद भी आज तक बंगाली थियेटर से कोई पुरस्कार नही मिला। पुरस्कार के लायक हिंदी थियेटर वालों ने समझा और सम्मान दिया। इस मौके पर सर्वश्रेष्ठ लेखक का सम्मान अनीस आजमी को, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए मनीष मनोजा, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए दक्षा शर्मा को तथा डॉ. जीतराम भट्ट को थियेटर प्रमोटर के लिए सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप प्रत्येक को शॉल, प्रतीक चिन्ह और बुके भेंट किया गया।

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

आशीर्वचनम चाइल्ड केयर फाउंडेशन का निशुल्क शिक्षा केंद्र ज्वाला नगर शाहदरा में खोला गया


आज दिनांक 2 अप्रैल 2022 को नवरात्रि एवं नव वर्ष के शुभ अवसर पर आशीर्वचनम चाइल्ड केयर फाउंडेशन द्वारा निशुल्क शिक्षा केंद्र ज्वाला नगर शाहदरा में खोला गया जिसमें फ्री बेसिक कंप्यूटर, फ्री बेसिक इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स, फ्री स्किल डेवलपमेंट एवं फ्री ट्यूशन को पढ़ाया जाएगा। 
संस्था के संस्थापक अमन कुमार जी ने बताया कि वह भविष्य में भी ऐसे कई शिक्षा केंद्र बच्चों की शिक्षा के लिए फ्री शिक्षा केंद्र समर्पित करेंगे जिससे कि बच्चों को उचित शिक्षा मिल सके और एक सुदृढ़ समाज का निर्माण हो सके आज शिक्षा केंद्र का शुभारंभ आदरणीय पूनम अम्मा जी एवं जयप्रकाश शर्मा जी के कर कमलों द्वारा किया गया जिसमें कई बच्चे उपस्थित रहे और उनको संस्था द्वारा कॉपी पेन पेंसिल स्टेशनरी का सामान बाटा गया कार्यक्रम में मुख्य रूप से रितेश शर्मा, सचिन दूबे, उज्जवल बंसल, लोकेश गर्ग, तरुण गुप्ता, अंकित पाठक, संतोष कुमार, धर्मराज चौधरी अशफाक, शिवम, शोएब, अभिषेक, अरविंद आदि प्रमुख कार्यकर्ता गण उपस्थित थे

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

बाबर पुर ब्लॉक कांग्रेस क़ो मिला युवा व ऊर्जावान अध्यक्ष

दिल्ली में जहां निगम चुनाव की तिथि का अभी कोई पता नही है वही कांग्रेस ने इस महोल में  नए ब्लॉक अध्यक्ष बना कर नयी शक्ति का संचार किया है बाबरपुर में संजय गौड़ advocate क़ो अध्यक्ष बना कर पार्टी ने यहाँ के युवाओं में नया जोश भर दिया है संजय गौड़ छात्र राजनीति में Nsui के जिलाद्यक्ष, प्रदेश उपाध्यक्ष युवा कांग्रेस के प्रदेश महासचिव भी रह चुके है अभी वर्तमान में ये विश्वास नगर कांग्रेस के प्रभारी भी थे ! बाबरपुर निगम चुनाव में भी जो जोश संजय गौड़ ने दिखाया उससे भी यह के कांग्रेस में जान आ गयी थीं ! संजय गौड़ ने कहा की मुझे अध्यक्ष बनाने के लिए अनिल चौधरी जी , जय प्रकाश अग्रवाल ज़ी, संदीप दीक्षित , मतिन अहमद जी, मुदित अग्रवाल जी , चौधरी जुबेर अहमद , कैलाश जैन, अब्दुल अलाम तवर , मंगल गौड़ व अन्य शीर्ष नेतृत्व का दिल से आभार हैं पार्टी को मैं विश्वास दिलाता हूँ कीं आने वाले समय बाबरपुर में पूरा ब्लॉक कोंग्रेस मय होगा ! सभी को मान सम्मान देते हुआ साथ ले कर चलना होगा ! इस मोके पर मैं महेश गौड़, दीपक शर्मा मनोज यादव, सूरिंदर शर्मा, संजीव किसान , विकी पंडित , होरी लाल शर्मा, श्याम लाल भारद्वाज, कुंवर पाल राकेश कुमार जैन, नैन सिंह , क्षितिज शर्मा , सोनू पाल, अनिल जैन, रितिक जैन, विजेंदर गुप्ता, प्रमोद, सचिन जैन,  आशीष तोमर, सतीश शर्मा, अज्जु चोधरी, आमिर ,ज़फ़र, संजय कपूर, शंकर शर्मा , दीपांशु सागर, अमित जस्टिन, वेद शर्मा, पंकज शर्मा, शुभम दीक्षित , कृष्णा शर्मा, जलालूदिन, आरिफ़, अक्षित गौड़, वैभव शर्मा , भव्य शर्मा,  कुणाल शर्मा , कुणाल कैन, सभी का धन्यवाद करता हूँ !

भव्य समारोह से भाजपा ने कई लक्ष्य साथे

अवधेश कुमार

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह को जैसी असाधारण भव्यता प्रदान की गई वह यूं ही नहीं थी। पिछले कुछ वर्षों में अलग-अलग पार्टियां शपथ ग्रहण समारोह को भव्य स्वरूप प्रदान करने की कोशिश करती हैं। प्रभावी संख्या में जनता की उपस्थिति भी हम लोग देखते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी सरकार का शपथ ग्रहण समारोह इसका प्रमाण है। अरविंद केजरीवाल स्वयं कार्यक्रम और मंच प्रबंधन के माहिर नेता हैं । भगत सिंह के पैतृक गांव में आयोजित समारोह को उत्सव का रूप दिया गया और दिल्ली का पूरा मंत्रिमंडल, सारे विधायकों एवं अन्य नेताओं के साथ प्रदेश भर के कार्यकर्ता समर्थक भारी संख्या में उपस्थित रहे। लेकिन योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह की व्यापकता, भव्यता और प्रभाविता के समक्ष यह कहीं नहीं ठहरता। वास्तव में अभी तक हुए मुख्यमंत्रियों के सारे शपथ ग्रहण समारोहों को याद करें तो लखनऊ के अटल बिहारी वाजपेई स्टेडियम का कार्यक्रम सबको काफी पीछे छोड़ गया। यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि आखिर किसी मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह को  इतना बड़ा स्वरूप प्रदान करने की आवश्यकता क्यों हुई? इसे फिजूलखर्ची मानने वालों की भी संख्या होगी। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने ऐसा किया तो इसके इसके पीछे निश्चित कारण होंगे। तो क्या हो सकते हैं वे कारण?

ध्यान रखिए,  विभिन्न क्षेत्रों के वे लोग, जिनके चेहरे जाने पहचाने हैं या जो जनता को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते या कर सकते हैं, जिनके नाम, समुदाय या वर्ग से कुछ निश्चित संदेश निकलते हों उनमें से काफी लोग वहां उपस्थित थे। अभिनेता, गायक, संगीतकार, खिलाड़ी, एक्टिविस्ट, संस्कृतिकर्मी आदि तो थे ही, पहली बार इतनी संख्या में उद्योगपति कारोबारी तथा साधु-संत उपस्थित थे। कह सकते हैं कि साधु-संत भाजपा की पहचान रहे हैं लेकिन इतने ज्यादा लोगों को इसके पहले किसी शपथ ग्रहण समारोह में नहीं बुलाया गया था। उद्योगपतियों एवं कारोबारियों में तो वे ही शपथ ग्रहण में बुलाए जाते रहे जिनके व्यक्तिगत संबंध हो। इस मायने में योगी आदित्यनाथ का शपथ ग्रहण समारोह बिल्कुल अलग माना जाएगा। जाहिर है, संख्या के साथ व्यक्तित्व एवं उनके कार्यों ,पेशे और विधाओं से भी स्पष्ट संदेश देने की रणनीति अपनाई गई।

वास्तव में पिछले वर्ष पश्चिम बंगाल में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद से विरोधियों ने ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की मानो अब भाजपा के सत्ता में रहने के दिन पूरे हो गए। ममता बनर्जी की तरह दूसरी पार्टियों ने भी अगर ठीक रणनीति बनाकर आप पर आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ा तो भाजपा को पराजित किया जा सकता है। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता एवं प्रशासन द्वारा संघ भाजपा कार्यकर्ताओं  और समर्थकों के विरुद्ध हिंसा से पार्टी के मनोविज्ञान पर नकारात्मक असर हुआ। साफ दिख रहा था कि भाजपा आक्रामक तरीके से उसका जवाब देने में सक्षम नहीं हो रही है। दूसरी ओर विरोधियों ने अगला लक्ष्य उत्तर प्रदेश को बनाया था। संपूर्ण भाजपा विरोधी मतों का समाजवादी पार्टी के पक्ष में ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई गई। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को प्रमुख चुनौती देने का दावा करने वाली ममता बनर्जी तक भी 2 दिनोंके लिए वहां पहुंच गई। ऐसी कोई विर नहीं जिन्होंने उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा के पराजय की भविष्यवाणी न की। आरंभ में चुनाव में आगे दिख रही पार्टी के बारे में मीडिया से आ रही खबरें बता रही थी कि धीरे-धीरे चुनाव कठिन संघर्ष में परिणत होता जा रहा था। पूरे देश के विरोधी किसी न किसी तरह भाजपा के पराजित होने की भविष्यवाणी करते रहे। इसी दौरान विपक्षी एकता की भी कवायदें हुईं। चुनाव अभियान के बीच ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव विपक्षी एकता की धुरी बनने के लिए अलग-अलग जगह जाने लगे। सबकी नजर उत्तर प्रदेश पर थी। भाजपा को इसी वर्ष गुजरात जैसे महत्वपूर्ण राज्य के चुनाव का सामना करना है तथा अगले वर्ष मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे प्रदेशों के चुनाव है। कोरोना के प्रभाव ने भाजपा को कोई बड़ा आयोजन लंबे समय से करने नहीं दिया। कृषि कानून विरोधी आंदोलन को आधार बनाकर बनाए गए माहौल का भी भाजपा करारा प्रति उत्तर नहीं दे सकी थी। कोरोना काल के टूल किट को भी मिला दें तो कहना होगा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा के अंदर अपने चरित्र के अनुरूप इन सबके सम्मिलित प्रत्युत्तर न देने की कथा लंबे समय से कायम थी। पूरे माहौल में ऐसा कुछ नहीं था जिससे भाजपा के समर्थक और कार्यकर्ताओं के अंदर उत्साह का संवेग पैदा हो सके। 

उत्तर प्रदेश चुनाव परिणाम ने यह अवसर प्रदान किया जिससे वह एकबारगी शक्तिशाली तरीके से प्रतियोगिता दे सके तथा कार्यकर्ताओं और समर्थकों के अंदर उत्साह का संचार करने के साथ आम जनता की नजर में विरोधियों को कमजोर दिखा सके। 

कहने की आवश्यकता नहीं कि इसमें भाजपा को व्यापक सफलता मिली है। महा विजय जैसे उत्सव के स्वरूप ,भाजपा एवं सहयोगियों द्वारा शासित सभी प्रदेश के मुख्यमंत्रियों, हर वर्ग, पेशे ,समुदाय के लोगों की भारी संख्या में उपस्थिति के माध्यम से उसने संदेश दिया है कि इस समय भारत में भाजपा ही एकमात्र दल है जो सर्वाधिक शक्तिशाली होने के साथ देश के सबसे ज्यादा क्षेत्रों तक विस्तारित है तथा सभी क्षेत्र के लोगों का इसके साथ जुड़ाव है। दूसरे शब्दों में दूर-दूर तक आमने सामने कोई ऐसा दल है ही नहीं जो भारत के जनसांख्यिकीय, भौगोलिक, पेशावर, सांस्कृतिक सभी प्रकार की विविधताओं का प्रतिनिधित्व कर सकें।उद्योगपतियों एवं कारोबारियों के अंदर भी है भाव गहरा हुआ होगा कि उन्हें कोई पार्टी अगर खुलकर अपने बीच बुलाती है और महत्व देती है तो भाजपा ही है। यह सब किसी पार्टी को कितना सहयोग दे सकते हैं यह बताने की आवश्यकता नहीं। 

इनके अलावा योगी आदित्यनाथ संदर्भ में भी इसके मायने महत्वपूर्ण है । भाजपा और संघ उन्हें एक बड़े राष्ट्रीय व्यक्तित्व के रूप में उभारने के कोशिश करती रही है। भगवाधारी होने के साथ उनकी प्रशासनिक क्षमता तथा कानून और व्यवस्था को लेकर दृढ़ संकल्पित चरित्र को लगातार प्रचारित किया गया है। कुछ हलकों से यह प्रचारित किया जा रहा था कि योगी को भाजपा चाहे जितना बड़ा बना दे, हिंदुत्व पर उनकी आक्रामकता के कारण उद्योग, व्यापार , अभिनय, संस्कृति, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान ,खेल आदि क्षेत्रों का बड़ा समूह उन्हें पसंद नहीं करता। शपथ ग्रहण से बड़ा अवसर इसे गलत साबित करने का नहीं हो सकता।   इन सभी क्षेत्रों से ऐसे लोगों की उपस्थिति से भाजपा ने संदेश दे दिया है कि योगी सर्व स्वीकृत नेता बन चुके हैं। अगर संत महात्माओं का उन्हें समर्थन है तो उद्योगपतियों, कारोबारियों, फिल्मी कलाकारों और खिलाड़ियों का भी। पार्टी एवं संघ परिवार के अंदर तो उन्हें व्यापक समर्थन है ही। भाजपा के संदर्भ में इसके मायने कहीं ज्यादा गहरे हैं। वास्तव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा तथा मोहन भागवत के नेतृत्व में संघ किस दिशा में आगे बढ़ रहा है योगी आदित्यनाथ को उसका समुच्चय प्रतीक के रूप में खड़ा किया गया है। देश में हिंदुत्व एवं राष्ट्रवाद को लेकर इस समय जैसा मुखर माहौल है वैसा लंबे समय से नहीं देखा गया। भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को इतना महत्व देकर इस व्यापक समूह को बताया है कि वह उनकी  सोच के अनुसार ही आगे बढ़ रही है।उस तरह के रंग-बिरंगे कार्यक्रम और भव्य तस्वीरों से जनता रोमांचित होती है। यह सच भी है कि आज भाजपा के अलावा किसी दल में ऐसे आयोजन की क्षमता नहीं बची है। ज्यादातर दलों की हैसियत नहीं कि इस तरह अनेक क्षेत्रों के प्रमुख लोगों को वे इतने कम समय में अपने समारोह में बुला सकें तथा इतना इतनी भारी संख्या के बावजूद वैसा व्यवस्थित और प्रभावी आयोजन कर सकें। ऐसे माहौल का चुनाव पर निश्चित रूप से असर होता है।

हां,राजनीति के दूसरे दलों के प्रमुख चेहरों की उपस्थिति नगण्य अवश्य थी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का भाग होने के कारण वहां पहुंचे थे। राजनेताओं के बड़े चेहरों की अनुपस्थिति के भी अपने मायने हैं। भाजपा ने ही मीडिया को खबर दी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं अखिलेश यादव, मायावती, मुलायम सिंह आदि विपक्षी नेताओं को आने का निमंत्रण दिया था। वे नहीं आए। भाजपा की ओर से राज्य के बाहर के भी अलग-अलग दलों के कुछ नेताओं को निमंत्रण भेजा गया था। उन सबकी अनुपस्थिति से भाजपा को अपने अनुकूल यह संदेश देने में सफलता मिली कि उसके विरुद्ध सारे एकजुट हैं और उनकी विजय को पचा नहीं पा रहे। चूंकी उनकी क्षमता चुनाव में मुकाबला कर विजय पाने की है नहीं तो उन्होंने अघोषित रूप से कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। हो सकता है भाजपा गाहे-बगाहे इसकी चर्चा करे। हम जानते हैं कि इस तरह की रणनीति भी बेअसर नहीं रह सकती।

इस तरह एक कार्यक्रम से भाजपा ने हमें लक्ष्य प्राप्त करने की कहानी कोशिश की । अपनी चुनावी संभावनाओं को सशक्त किया तो  विचारधारा के पायदान पर भी उठाए जाने वाली आशंकाओं को ध्वस्त करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है। योगी को सर्वाधिक महत्व मिलना अपने आप में इन दोनों लक्ष्यों पर स्पष्ट संदेश देना ही है।

अवधेश कुमार, ई- 30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली 110092, मोबाइल - 9811027208



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