रविवार, 28 सितंबर 2025

समर्पण से समरसता तक: संघ की सौ साल की यात्रा

डॉ. नीलू तिवारी

जिस दौर में समाज असमानता, शिक्षा की कमी, बेरोजगारी और आपदाओं जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, वहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने सेवा-प्रकल्पों और निःस्वार्थ सहयोग के माध्यम से समाज को दिशा देने का कार्य करता है। यह संगठन केवल परंपरागत विचारों तक सीमित नहीं, बल्कि युवाओं को अनुशासन, नेतृत्व और राष्ट्रसेवा की शिक्षा देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ता है। कोविड-19 महामारी, बाढ़, भूकंप और अन्य संकटों में स्वयंसेवकों का साहस और सेवा भाव यह दर्शाता है कि यह विचार केवल सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यावहारिक और जीवंत है। आज जब भारत वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है, तो “समुत्कर्ष” और “परम वैभव” संघ का आदर्श हमें आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक गौरव और सामाजिक एकता की राह दिखाता है। यही कारण है कि यह विषय केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य दोनों की दृष्टि से अत्यंत प्रासंगिक है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम भारतीय समाज में सदियों पुरानी सोच और आधुनिक राष्ट्र निर्माण की एक अनूठी मिसाल के रूप में लिया जाता है। बचपन में ब्रिटिश विरोध के कारण डॉ. हेडगेवार को दंड मिला इसी साहस के चलते आगे चलकर 1925 में नागपुर संघ की स्थापना हुई। संघ का उद्देश्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं रहा,बल्कि उसने समाज को नैतिक,सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से संगठित करने की दिशा में भी निरंतर कार्य किया है। इस संदर्भ में संघ के चार स्तंभ समुत्कर्ष,सेवा,सहयोग और साहस विशेष महत्व रखते हैं।

समुत्कर्ष, केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं है।इसका उद्देश्य समाज और राष्ट्र के समग्र उत्थान को सुनिश्चित करना है। आदिवासी और दूरस्थ क्षेत्रों में जहाँ न बिजली है न सड़क, आरएसएस ने “एकल विद्यालय” शुरू किए। आज डेढ़ लाख से अधिक गाँवों में यह अभियान चल रहा है। झारखंड की गुमला ज़िले की एक बच्ची,जो लकड़ी बीनने जाती थी, इन्हीं स्कूलों से पढ़कर आईएएस अधिकारी बनी। उसकी सफलता ने पूरे गाँव का जीवन बदल दिया। संघ से प्रेरित इस विद्या भारती संस्थान ने लाखों बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ संस्कार दिए। राजस्थान का एक विद्यार्थी, जिसने विद्या भारती में पढ़ाई की, आगे चलकर डॉक्टर बना और अपने ही गाँव में निःशुल्क स्वास्थ्य केंद्र खोला। समुत्कर्ष केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को ऊँचाई पर ले जाने का संकल्प है।

सेवा, संगठन की आत्मा है। प्राकृतिक आपदाओं, महामारी और सामाजिक संकटों में संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले राहत कार्यों में जुटते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान जब लोग ऑक्सीजन और अस्पतालों के लिए भटक रहे थे, आरएसएस स्वयंसेवक घर-घर दवा और सिलेंडर पहुँचा रहे थे। दिल्ली का एक स्वयंसेवक अकेले 150 से अधिक सिलेंडर बाइक से ले गया और सैकड़ों लोगों की जान बचाई। संघ ने घर-घर राशन और दवाइयाँ पहुँचाने, स्वास्थ्य शिविर आयोजित करने और मानवता की भावना को जीवित रखने का कार्य किया। सेवा का यह दृष्टिकोण केवल तत्काल राहत तक सीमित नहीं; यह समाज में भरोसा, एकता और मानवता की भावना को मजबूत करता है। केरल बाढ़ 2018 में नावों और राफ्ट से लोगों को बचाया गया,राहत शिविर चलाए गए और बच्चों के लिए अस्थायी स्कूल खोले गए। 2001 में गुजरात भूकंप जब कच्छ और भुज बर्बाद हो गए थे,आरएसएस स्वयंसेवक मलबे से लोगों को निकालने और पीड़ित परिवारों को भोजन देने में जुट गए। बाद में अनाथ बच्चों के लिए स्कूल और महिलाओं के लिए रोजगार केंद्र भी स्थापित किए गए। आरएसएस ने दिखाया कि सेवा का मतलब केवल राहत नहीं, बल्कि समाज को संकट से उबरने और पुनर्निर्माण की राह पर ले जाना भी है।

सहयोग आरएसएस की तीसरी पहचान है। समाज के हर वर्ग को जोड़ने और एकता की भावना को बढ़ावा देता है और राष्ट्र के निर्माण में योगदान करता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद न केवल शिक्षा सुधार की आवाज़ उठाता है बल्कि छात्र-छात्राओं को सामाजिक जिम्मेदारी से भी जोड़ता है। 2020 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रवासी श्रमिकों के बच्चों को मुफ्त पढ़ाई की व्यवस्था कराई। भारतीय किसान संघ ने किसानों के अधिकार और प्राकृतिक खेती के पक्ष में बड़ा आंदोलन खड़ा किया। महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों में इसने सामूहिक जल-संरक्षण अभियान चलाया, जिससे 50 गाँवों में पानी की समस्या खत्म हो गई। सेवा भारती – झुग्गी बस्तियों और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर, शिक्षा केंद्र और सिलाई-कढ़ाई प्रशिक्षण से हजारों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया। सहयोग का यह दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि समाज के हर वर्ग को जोड़कर राष्ट्रीय एकता और सामाजिक स्थिरता बनी रहे।

संघ का चौथा स्तंभ साहस है। संघ ने अपने इतिहास में अनेक कठिन परिस्थितियों और आलोचनाओं का सामना करते हुए अपने आदर्शों और मूल्यों की रक्षा की है। गांधीजी की हत्या के बाद लगे प्रतिबंध, आपातकाल में जब लोकतंत्र कुचला गया और हजारों कार्यकर्ता जेलों में डाल दिए गए, तब भी आरएसएस ने गुप्त पत्रक बाँटकर लोगों को जागरूक किया और लोकतंत्र की रक्षा की। संघ का साहस केवल संगठन की सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के हित में न्याय, मानवता और नैतिकता के लिए खड़े होने की क्षमता भी प्रदर्शित करता है। विभाजन के समय शरणार्थियों की मदद करना, सीमा पर सैनिकों के साथ सहयोग करना और प्राकृतिक आपदाओं में सबसे पहले राहत कार्य में जुटना इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

आज के आधुनिक भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह मॉडल और भी महत्वपूर्ण हो गया है जब संघ ने डिजिटल शिक्षा, स्वास्थ्य जागरूकता, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण जैसे आधुनिक कार्यक्रमों के माध्यम से अपने चार स्तंभों समुत्कर्ष, सेवा, सहयोग और साहस को और मजबूत किया है। यही कारण है कि संघ न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आधुनिक भारत में स्थायी विकास और विश्वगुरु बनने की दिशा में भी प्रेरक संगठन के रूप में सामने आता है। आज जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी शक्ति, पहचान और नेतृत्व स्थापित कर रहा है, तब संघ की यह भूमिका और भी प्रासंगिक बन जाती है। संघ केवल इतिहास का संरक्षक नहीं, बल्कि आधुनिक भारत के युवाओं और समाज के लिए प्रेरणा, नैतिक मार्गदर्शन और सामाजिक चेतना का स्रोत भी है।

डॉ. नीलू तिवारी, 302, वैशाली रिट्रीट, ए ब्लॉक, नेमी सागर कॉलोनी, शिविका मार्ग, वैशाली नगर, जयपुर, राजस्थान, भारत. पिन कोड: 302021 मोबाइल: +91 94139 07005
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