बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

कानपुर की घटना कानून की ताकत का दुरुपयोग है

अवधेश कुमार

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले की मड़ौली गांव में घाटी त्रासदी की दुःस्वप्न में भी कल्पना नहीं की जा सकती। सच नहीं हो तो इस पर विश्वास करना कठिन होता कि सामान्य झोपड़ी को गिराने के लिए पुलिस प्रशासन के साथ काफी संख्या में लोगों के रहते हुए मां बेटी अंदर जलकर खत्म हो गई। घटना इतनी बड़ी हो गई, इसलिए यह संपूर्ण देश की सुर्खियों में आ गया। कल्पना करिए, अगर मां बेटी के जलने की भयावह घटना नहीं होती तो क्या स्थिति होती? स्थानीय पुलिस और प्रशासन का एक ही लक्ष्य दिखता था –परिवार को बलपूर्वक उजाड़ दो और न माने तो कानूनी कार्रवाई करो। मां प्रमिला दीक्षित और बेटी नेहा दीक्षित की भयानक मौत के बावजूद प्रशासन का बयान था कि दोनों ने स्वयं को आग लगा लिया। तो पूरी घटना को किस तरह देखा जाए?

मां बेटी स्वयं को आग क्यों लगाएंगी इसका तार्किक उत्तर किसी के पास नहीं है। बावजूद मान लीजिए दोनों ने आग लगाया भी तो उसके लिए दोषी किसे माना जाएगा? क्या वहां उपस्थित पुलिस प्रशासन और लोगों का दायित्व नहीं था कि आग से उनको बचाने की कोशिश करें? किसी ने बचाने की कोशिश नहीं की। इसका केवल इतना अर्थ नहीं है कि पुलिस प्रशासन एवं उपस्थित लोगों को अनहोनी का आभास नहीं था। वास्तव में आग लगने के बावजूद बुलडोजर से झोपड़ी को गिराना साबित करता है कि  उपस्थित सरकारी महकमा हर हाल में मनमानी करने पर उतारू था। यानी उन्हें अपने विरुद्ध किसी तरह की कार्रवाई का डर नहीं था।

ये दोनों स्थितियां डरावनी हैं। अतिक्रमण हटाना प्रशासन की जिम्मेवारी है लेकिन उसका तरीका दादागिरी का नहीं हो सकता। साथ ही आम लोगों का भी दायित्व है कि वे ऐसी नौबत आने पर जान बचाने की कोशिश करें। आग लगने के बाद बुलडोजर से झोपड़ी को गिरा दिया गया। ऐसा न किया जाता तो आग इतना नहीं भड़कता। लोग आग बुझाने और मां बेटी को निकालने की जगह वीडियो बना रहे थे। हैरत की बात है कि किसी ने भी पुलिस से नहीं कहा कि आग लग गई है इसलिए बुलडोजर को रोका जाए। अगर आग लगने पर झोपड़ी न गिराई जाती और दरवाजा तोड़कर प्रमिला और नेहा को निकाला जाता तो संभवतः उनकी जान नहीं जाती। इस तरह वहां उपस्थित अधिकारी, पुलिसकर्मी तथा सारे लोग स्पष्ट तौर पर मां बेटी को जलाकर मारने के दोषी हैं।

जांच के लिए सरकार ने विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन कर दिया है। एसडीएम, लेखपाल, स्थानीय थाना प्रभारी सहित नामजद व अज्ञात कुल 42 लोगों पर हत्या सहित गंभीर धाराओं में मुकदमा किया जा चुका है। चौथा के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद और लेखपाल अशोक चौहान निलंबित हुए तथा लेखपाल गिरफ्तार कर लिए गए हैं। मामला इस स्तर पर पहुंच गया है कि कार्रवाई में कोताही असंभव है।उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने वीडियो कॉलिंग पर परिवार से बात की और देश ने सुना है। इसी तरह पीड़ित परिवार को मुआवजा, सरकारी नौकरी, कृषि भूमि का पट्टा, पेंशन आदि की घोषणा हो गई है। क्या इससे सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो गई?

कानून के सामान्य राज में इस तरह की अविश्वसनीय त्रासदी होनी ही नहीं चाहिए । ठीक है कि वह जमीन ग्राम समाज की है। अगर प्रशासन के पास इसकी शिकायत आई तो जांच में उसे यह पता क्यों नहीं चला कि पीड़ित कृष्णगोपाल दिक्षित किस मजबूरी में वहां बसे हैं?  1 महीने पहले परिवार का पक्का मकान गिराया गया था। उसके बाद उन्होंने झोपड़ी बना ली थी। पानी पीने का हैंडपंप तक एसडीएम ने तुड़वा दिया था। वह वहां लंबे समय से रह रहे थे। वहां पुश्तैनी पेड़ थे जो गिर गया था और उसकी जगह दूसरे पेड़ लगे हुए थे। ग्रामीण बता रहे हैं कि दीक्षित परिवार के अंदर के ही आपसी तनाव की महत्वपूर्ण भूमिका है। दूसरे पक्ष की पूरी कोशिश थी कि उन्हें बेघर किया जाए। लेखपाल एवं एसडीएम तक किसी तरीके से उनकी प्रभावी पहुंच नहीं होती तो इस तरह की कार्रवाई के लिए प्रशासन सामान्य तौर पर तत्पर नहीं होता। परिवार के पास दूसरी जमीन होती तो शायद वहां नहीं बसते। चबूतरे पर पूजा पाठ के लिए मंदिर भी बना रखा था। यानी परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था। परिवार पर कभी किसी को तंग करने या गलत करने का आरोप सामने नहीं आया है।  केवल उत्तर प्रदेश नहीं देशभर के गांवों में सरकारी, धार्मिक संस्थानों और गैरमजरूआ जमीनों पर जगह-जगह कब्जे हैं। प्रशासन बहुत कम जगह इस तरह तत्पर दिखता होगा। अभी तक की जानकारी यह भी है कि मामला जिलाधिकारी तक भी पहुंचा था। गोपाल कृष्ण परिवार और मवेशी के साथ जिलाधिकारी तक पहुंच गए थे लेकिन उन्हें वहां से हटाया गया तथा उनके विरुद्ध धारा 144 से लेकर बलवा करने आदि में प्राथमिकी भी दर्ज हुई। एक सामान्य परिवार पर थाना में मुकदमा दर्ज हो जाए तो उसकी क्या दशा होती है इसकी कल्पना वही कर सकते हैं जिनको अनुभव हो।

जाहिर है , परिवार परेशान था। उसमें एसडीएम जैसे स्थानीय स्तर के लिए उच्च अधिकारी और लेखपाल पुलिस बल के साथ पहुंचकर बुलडोजर से घर गिराने लगे तो मां बेटी और परिवार की क्या मानसिकता होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। इसलिए घटना कि सही तरीके से जांच हो। उम्मीद की जा सकती है कि विशेष जांच दल पता लगाएगा कि नौबत यहां तक आने के पीछे वास्तविक कारण क्या है? यह इसलिए आवश्यक है ताकि भविष्य के लिए उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की अन्य सरकारें भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कदम उठा सकें। कुछ घंटे पूर्व तक जो परिवार अतिक्रमणकारी दिख रहा था वह सरकारी जमीन पाने का पात्र हो गया। कैसी विडंबना है! उनके पास जमीन होती तो वह सरकारी जमीन पाने के हकदार नहीं होते। हालांकि घटना को जातीय एंगल देना गलत है क्योंकि दोनों पक्ष ब्राहण जाति के हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि बेचारगी और प्रभावहीनता उनमें भी हैं जिन्हें हम सवर्ण जातियां कहते हैं। राजनीति से परे उठें तो योगी आदित्यनाथ सरकार की सबसे बड़ी यूएसपी कानून और व्यवस्था है। बुलडोजर भू माफियाओं, गुंडों, दादाओं के विरुद्ध एक प्रबल हथियार बना है जिसे दूसरी राज्य सरकारें भी अपना रहीं हैं। यह घटना बताती है कि अगर पुलिस प्रशासन की सोच और व्यवहार न बदले तो कानून व्यवस्था स्थापित करना सर्वसामान्य लोगों के लिए ट्रेजेडी बन जाती है। राज्य सरकार इसे अकेली घटना मानेगी तो दूसरे रूप में इसकी पुनरावृत्ति होगी। 

निश्चित मानिए कि स्थानीय पुलिस प्रशासन की कार्रवाइयों का  प्रदेश में कुछ लोग अवश्य शिकार हो रहे होंगे। उप्र पुलिस और प्रशासन के रवैये पर जगह -जगह सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ता ही नाराजगी प्रकट करते रहते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं - नेताओं की बड़ी नाराजगी यही थी कि पुलिस प्रशासन नियंत्रण से बाहर है, हमारी बात नहीं सुनता और विरोध करने पर मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करता है। उप्र पुलिस प्रशासन के विरुद्ध शिकायतें आम है। कई बार छोटे-छोटे मामलों में बेरहमी से पेश आती है और लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज देती है जिसकी आवश्यकता नहीं होती। जरा सोचिए, भारत के बाहर भारतवंशी जिस बुलडोजर को प्रतीक बनाकर कार्यक्रमों में प्रदर्शित कर महिमामंडित करते हैं वह प्रशासन के द्वारा ही अपराध का हथियार बन गया।

यह हमारे लोकतंत्र का विद्रूप चेहरा है कि पुलिस प्रशासन आम आदमी के प्रति उस तरह संवेदनशील और सहयोगी नहीं बना जैसा उसे होना चाहिए। किंतु योगी आदित्यनाथ की नेतृत्व वाली सरकार के अंदर प्रशासन का यह व्यवहार उद्वेलित करता है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की विजय का सर्वप्रमुख कारण यही था कि योगी जी के नेतृत्व में गुंडे, माफिया, बाहुबली कब्जे में होंगे तथा कानून व्यवस्था का पूर्ण राज्य होगा। इसलिए कानपुर की घटना को केंद्र बनाकर संपूर्ण प्रदेश में प्रशासन पुलिस की कार्रवाइयों और व्यवहारों की समीक्षा करने और आवश्यकतानुसार उनमें सुधार समय की मांग है। अपनी पार्टी और संगठन परिवार के कार्यकर्ताओं से भी इन मामलों में फीडबैक लेते रहने की व्यवस्था इस दिशा में बहुत बड़ा सहयोगी हो सकता है।

अवधेश कुमार, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली- 1100 92, मोबाइल 98110 27208

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