शनिवार, 11 अप्रैल 2015

भ्रष्टाचार केवल घूसखोरी नहीं राजनीतिक आचरण भी है

अवधेश कुमार

सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध जितनी आवाज पिछले करीब एक दशक में उठी है उतनी कभी नहीं उठी थी। दिल्ली में सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी का तो मुख्य यूएसपी ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध हल्लाबोल रहा है। इसके पूर्वज संगठन का नाम ही था, इंडिया अगेन्स्ट करप्शन और पूरा अन्ना अभियान सरकारी भ्रष्टाचार को दूर करने व इनके द्वारा बनाए दस्तावेज जन लोकपाल को लागू करने के लिए था। इसलिए उसकी ओर पूरे देश की नजर रहती है कि आखि वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्या करती है और किस तरह करती है। इस संदर्भ में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भ्रष्टाचार निरोधक हेल्पलाइन 1031 को फिर से जारी कर  दिया है। इसके द्वारा उनने यही संदेश दिया कि वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने तथाकथित संकल्प पर कायम हैं। केजरीवाल सरकार अपनी पिछली आयु 49 दिन को पार कर चुकी है। उसी उपलक्ष्य मंे दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित एक भव्य और विशाल आयोजन में हेल्पलाइन जारी किया गया। किंतु इसे इस तरह पेश किया गया मानो कोई अनोखा क्रांतिकारी कार्यकम आरंभ हुआ है। मनीष सिसोदिया नारा लगा रहे थे, ‘भ्रष्टाचार का एक ही काल’ और लोग कह रहे थ,े ‘केजरीवाल केजरीवाल’। हालांकि यह वही हेल्पलाइन है जो पिछली सरकार के दौरान भी जारी हुआ था।

हर विवेकशील व्यक्ति चाहेगा कि इस हेल्पलाइन नंबर से आम आदमी को भ्रष्टाचार से लड़ने में सहायता मिले। साथ ही दूसरे राज्यों को भी इससे प्रेरणा मिले। आखिर कौन नहीं चाहेगा हमारे देश से भ्रष्टाचार का अत हो? कौन नहीं चाहेगा कि उसे किसी सरकारी कार्यालय में काम कराने के लिए घूस नहीं देना पड़े? कौन नहीं चाहेगा कि अगर कोई कर्मचारी अधिकारी उससे काम करने के एवज में यदि घूस मांगता है तो उसे सजा मिले? सजा मिलनी है तो उसके खिलाफ शिकायत करनी होगी और शिकायत तभी साबित होगा जब उसके पक्ष में आपके पास सबूत हों। इस नाते हेल्पलाइन और स्टिंग दोनांे की उपयोगिता समझ में आती है। एक बार आपने हेल्पलाइन पर फोन दर्ज किया तो शिकायत आ गई और उसकी जांच होगी। पर सुनने में जितना आसान लगता है वैसे ही सब कुछ होने लगे तो फिर कब का भारत में सदाचार का बोलबाला हो गया होता।  केजरीवाल और उनके साथियों का एनजीओ संस्कार हमेशा ऐसे किसी भी कदम में सामने आ जाता है। वे अपने हर कदम को क्रांतिकारी और अनोखा बताते हैं, जबकि वे जानते हैं कि इस तरह के हेल्पलाइन ज्यादातर राज्यों में चल रहे हैं। केन्द्र में केन्द्रीय सर्तकता आयोग सहित कई एजेंसियां ऐसी हेल्पलाइन लंबे समय से जारी किए हुए है,। कुछ ईमेल है जहां आप गोपनीय शिकायत भी कर सकते हैं। क्या इन सबसे सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार नियंत्रित हुआ? अगर ऐसे भ्रष्टाचार दूर होेने लगे तो फिर कुछ करने की आवश्यकता क्या है? इनसे ही पूछा जाना चाहिए कि आपने अपने पिछले वो 49 दिन वाले अतीत में इस हेल्पलाइन से क्या हासिल किया? जो जानकारी बाहर आई उसके अनुसार पिछले कार्यकाल में इस हेल्पलाइन पर शिकायतें तो काफी आईं, पर कार्रवाई एक क्लर्क के खिलाफ ही हो सकी।

कहा जा सकता है कि पिछली बार केजरीवाल सरकार को काम करने का अवसर कम मिला। इसलिए वे स्टिंग एवं हेलपलाइन दोनों का जो असर होना चाहिए नहीं दिखा सके। चलिए इस बार देख लेते हैं। मुख्यमंत्री केजरीवाल कह रहे थे कि हम जो कहते हैं वो करते हैं, हम जुमले नहीं करते। अन्ना आंदोलन के दौरान हमारे अंदर भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का जज्बा था। अपनी 49 दिनों की सरकार के बाद भी हमें ऐसा करने का पूरा विश्वास था। अगर मनीष सिसोदिया कल को चोरी करते हैं तो वो मेरे कोई नहीं लगते उनको भी जेल जाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमारे पास इतना साहस है कि हम अपनी पार्टी के लोगों के खिलाफ कार्यवाही कर सकते हैं। बहुत अच्छा। किसी भी नेता को इसी तरह की सोच रखनी चाहिए। न्याय और फैसले में कोई अपनापन या रिश्तेदारी नहीं। पर पहले तो इस कसौटी पर स्वयं इनके कदमों को कसनी होगी। वास्तव में इस कथन के दो अर्थ हैं। एक तो यह कि हमारी पार्टी या सरकार में अपने साथी भी भ्रष्टाचार करेंगे तो उसे हम छोड़ेंगे नहीं। क्या इसके कोई उदाहरण देश के सामने रखे गये हैं? अभी पार्टी के पूर्व लोकपाल एडमिरल रामदास ने पत्र लिखकर कहा है कि उन्हें कुछ मामले जांच के लिए दिए गए थे और उसकी जाचं पूरी होने के पहले बिना सूचना दिए उनकी जगह दूसरे लोकपाल की नियुक्ति कर दी गई। कई मामलों की जांच की बात हमारे सामने आई, लेकिन न तो एक भी जांच पूर्णता तक पहुंचने दी गई और न सार्वजनिक हुई। अगर यह कसौटी है तो फिर हम कैसे उम्मीद करें कि आप अपने हेल्पलाइन से वाकई चमत्कार करने वाले हैं। दूसरे, पार्टी कार्यकारिणी और पीएसी से निकाले गए योगेन्द्र यादव एवं प्रशांत भूषण ने एक कथित नकली कंपनी से मिले 2 करोड़ के चंदे तथा कुछ उम्मीदवारों , जो अब विधायक बन चुके हैं, के खिलाफ जांच की ही तो मांग की थी। प्रशांत को तो जांच की जिम्मेवारी भी दी गई थी लेकिन क्या हुआ हमारे सामने है। तो कथनी और करनी का यह फर्क आखिर क्या संदेश देता है?

वैसे इसका दूसरा अर्थ उनकी राजनीति से भी है। अरविन्द केजरीवाल पता नहीं यह समझते हैं या नहीं कि भ्रष्टाचार केवल सरकारी घूस लेना ही नहीं है। सरकारी घूसखोरी तो इसका एक लक्षण है। भ्रष्टाचार में आचरण शब्द है। आचारण का संस्कार सारे भ्रष्ट व्यवहारों के मूल में होता है। चाहे वह घूस लेना हो, दलाली करना, जनता के काम के लिए आए धन को पूर्णतया या आंशिक रुप से डकार जाना...... आदि आदि। नेतृत्व के अपने आचरण से भी सत्ता प्रतिष्ठान के शेष अंग प्रभावित होते हैं। अभी उन्होंने योगेन्द्र प्रशांत जैसे अपने दल के संस्थापकों ही नहीं, इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के समय से उनके साथ चलने वाले साथियों को जिस तरह अपमानित करके , निरंकुशता से हर ईकाई से बाहर करवाया उसे कैसा आचरण माना जाएगा? सदाचार या भ्रष्टाचार? इस प्रसंग का पूरा असर भ्रष्टाचार विरोधी कदमों पर पड़ेगा। जो कुछ केजरीवाल ने एक कार्यकर्ता के साथ टेलीफोन बातचीत में अपने वरिष्ठ साथियों के बारे में बोला, जो सार्वजनिक भी हो गया, जिस तरह से राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने भाषण से उत्तेजना पैदा करके उनके लिए अपमानजनक स्थिति पैदा की वह बहुत बड़ा मानवीय और राजनीतिक भ्रष्टाचार है। इस भ्रष्टाचार का निवारण कैसे होगा?

इससे और दूसरे कई आचरणों से केजरीवाल का लोकतांत्रिक संस्कार, सत्ता के प्रति निस्पृह होने, साथियों का सम्मान करने......आम आदमी की तरह व्यवहार करने ...सामूहिक निर्णय करने आदि दावों के आवरण उतरे हैं। केजरीवाल का लोकतांत्रिक संस्कार, सत्ता के प्रति निस्पृह होने, साथियों का सम्मान करने......आम आदमी की तरह व्यवहार करने ...सामूहिक निर्णय करने आदि सारे दावों के आवरण उतर चुके हैं। नैतिक बल क्षीज चुका है। जाहिर है, एक बार ऐसी छवि बनने के बाद कर्मचारियों अधिकारियों पर जो असर होना चाहिए वह नहीं हो सकता। वे भी तो यह मानेंगे कि केजरीवाल भी सत्तालोलुप, अन्य अनेक नेताओं की तरह असहमति और अपने नेतृत्व पर प्रश्न उठाने वालों के प्रति असहिष्णु तथा विरोध का स्वर दबाने के लिए किसी सीमा तक जाने वाले नेता हैं। ऐसी छवि बनने के बाद भय निरोधात्मक प्रभाव कमजोर हो जाता है। अपने साथी विधायक मंत्रियों पर से भी नैतिक प्रभाव कम हो जाता है। इसे कोई भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाईन खत्म नहीं कर सकता।

लोकतंत्र में निरंकुश सोच और आचरण सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। सच कहा जाए तो शीर्ष राजनीतिक प्रशासनिक भ्रष्टाचार की व्यापकता यहीं से पैदा होती है। चुनावों में अपार बहुुमत वाली जीत सब कुछ नहीं होता....छवि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। राजीव गांधी की सरकार अपार बहुमत से आई थी, पर उसमें क्या हुआ, जबकि राजीव गांधी इरादतन न निरंकुश थे, न पाखंडी और न ही भ्रष्टाचारी। अरविन्द केजरीवाल आखिर अपनी कैसी छवि बना रहे हैं? इसी कार्यक्रम में उन्होंने मीडिया के एक वर्ग को निशाने पर लेते हुए कहा कि ये सब मुझे हराने में लगे थे। यह भी एक असहिष्णु मानसिकता का विस्तार है और वैचारिक भ्रष्टाचार है। हर चैनल, अखबार, या पत्रकार आपका समर्थन करे यह जरुरी है? अगर जिसे आपका विचार पंसद नही वह आपका विरोध करेगा। जो आपका समर्थन करे वो ठीक और जो विरोध करे वो दुश्मन ये एक लोकतांत्रिक मानस वाले नेता की सोच नहीं हो सकती। आखिर इसके द्वारा केजरीवाल क्या संदेश देना चाहते हैं?

लोकसभा चुनाव के पूर्व नागपुर के चंदा वसूली के लिए भोजन कार्यक्रम में केजरीवाल ने मीडिया वालों को जेल भेजने की बात कह दी और वह स्टिंग से बाहर आ गया। उसके पूर्व 2013 में सरकार से त्यागपत्र देने के बाद रोहतक का अपना पूरा भाषण ही केजरीवाल ने मीडिया के खिलाफ दिया। इसके पूर्व भारत के किसी नेता ने इस तरह पत्रकारों को जेल में डालने की धमकी नही दी थी। उन्होंने साफ कहा था कि अगर वे सत्ता में आये तो मीडिया की जांच कराकर पत्रकारों को भी जेल में डालेंगे। इस प्रकार की भाषा एक निरंकुश या अधिनायकवादी सोच वाले व्यक्ति के मुंह से ही निकल सकती है। क्या यह भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में नहीं आएगा? तो स्वयं अपना आचरण भ्रष्ट रखते हुए यह दावा करना कि हम भ्रष्टाचार के काल के रुप में आ गए हैं, राजनीतिक प्रदर्शन के सिवा कुछ नहीं माना जा सकता है। तो साफ है कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की व्यापकता को समझंें, केजरीवाल की समझ की सीमाओं तथा इनके स्वयं के आचरणों को निष्पक्षता से अवलोकन करें और उत्साहित होने की जगह इसके दूसरे रास्ते तलाशें। इससे दूसरे राज्यों या देश को भी कोई प्रेरणा नहीं मिल सकती।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208  


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