रविवार, 14 जुलाई 2024

ज्योतिपुंज देवी अहिल्या बाई होलकर

प्रो. मीना शर्मा
 
भारत के इतिहास में पुण्यश्लोक देवी अहिल्या बाई एक ऐसा अविस्मरणीय नाम है जो एक आदर्श राज्यकर्ता, एक कुशल प्रशासक, एक विजनरी नेतृत्वकर्ता, एक बेहतरीन राजनेता, मातृशक्ति के सशक्तिकरण की एक जीती जागती मिसाल, भारतीय संस्कृति धार्मिक परंपरा की एक सजग प्रहरी एवं पुरोधा, कर्त्तव्यपरायणता और न्यायप्रियता का अनुपम उदाहरण, सुशासन और सुराज्य का एक आदर्श प्रतीक, कूटनीति और चाणक्य नीति से विस्मित करने वाली इतिहास उपेक्षिता एक महिला दूरद्रष्टा शासक और जो स्त्री विमर्श का शत प्रतिशत भारतीय संस्करण है जिसने एक ऐसे सुशासन का आदर्श उदाहरण पेश किया है जो हर दौर के लिए एक आदर्श अनुकरणीय शासन व्यवस्था के रूप में लागू किया जा सकता है

31 मई 1725 में महाराष्ट्र के अहमद नगर में जन्मीं वीरांगना देवी अहिल्या बाई के त्रिशताब्दी महोत्सव वर्ष देश अगले साल मनाने जा रहा है आज के समय में वर्तमान भारत में आज भी एक आदर्श महिला और आदर्श अनुकरणीय शासक के रूप में देवी अहिल्या बाई की प्रासंगिकता और महत्त्व है, इसे महोत्सव के माध्यम से पूरे देश को और भावी पीढ़ी को बताने जा रहा है ताकि प्रेरणास्त्रोत देवी अहिल्या बाई के द्वारा स्थापित मानकों, मूल्यों, आदर्शों, प्रतीकों, कार्यों का पुनः स्मरण कर अनुकरण कर उन्हें एक सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें और विरासत एवं विकास के इस मशाल को भावी पीढ़ियों के सुरक्षित हाथों में सौंप कर भारत और युवाओं के भविष्य को सुरक्षित कर सकें।

देवी अहिल्या बाई का शासन काल और शासन व्यवस्था एक मील का पत्थर है एक आदर्श शासन काल और एक आदर्श शासन व्यवस्था का एक आदर्श अनुकरणीय उदाहरण, एक नजीर पेश करता है। स्त्री शक्ति के विभिन्न किरदारों, सभी भूमिकाओं एक आदर्श बहू, एक आदर्श पत्नी, एक आदर्श मां का फर्ज निभाने के बाद वैधव्य की त्रासदी से उत्पन्न एक बड़े राज्य को चलाने की जिम्मेदारी को कर्त्तव्यपरायणता के साथ न सिर्फ़ बखूबी निभाया बल्कि एक आदर्श सुशासन और सुराज्य कैसा हो, ये भी कर दिखाया। स्त्री धर्म और राज धर्म दोनों को ही देवी अहिल्या बाई होलकर ने साधकर स्त्री संबंधी तमाम भ्रांतियों, मिथकों को तोड़कर यह संदेश दिया कि जरुरत पड़ने पर स्त्री विषम परिस्थितियों में भी कोई भी कार्य करने में सक्षम है, वो घर परिवार की चिंता के साथ साथ देश की चिंता करना जानती है, वो एक साथ ममता की पुतली और मोम की लौ के साथ साथ वो एक अपराजेय योद्धा भी है जो अपने शौर्य पराक्रम अदम्य साहस दृढ़ निश्चय से अपने विरोधियों को भी कड़ी टक्कर देने में, दुश्मनों के दांत खट्टे करने में सक्षम है। स्त्री शक्ति रूपा, सुराज्य स्थापित करने वाली एक आदर्श राज्यकर्ता का भी नाम है।

राज धर्म के पालन में निपुण प्रजा वत्सल देवी अहिल्या बाई प्रजा को सब प्रकार के अभावों कष्टों से मुक्त करने में सक्षम और तत्पर रहती थीं। प्रजा के सभी अंगों विशेषकर निर्बल जनता विशेषकर पिछड़ों दलितों आदिवासियों, महिलाओं आदि पर विशेष ध्यान दिया और उनके उत्थान पर बल दिया। उनकी मान्यता थी कि देश ऋण मातृ ऋण शासक ऋण जनता या प्रजा की सेवा करके ही चुकाया जा सकता है। जन कल्याण के कार्यों, सेवाओं के द्वारा ही जनता के ऋण से मुक्त हुआ जा सकता है।

देवी अहिल्या बाई की शासन व्यवस्था ने व्यापार और खेती को बढ़ावा दिया एवं रोजगार को बढ़ावा देने के लिए उद्योग की आधार शिला रखी। आर्ट एंड क्राफ्ट पर बल दिया। महेश्वर का वस्त्र उद्योग उसका एक अनुपम उदाहरण है।

राज्य के चहुमुखी विकास पर जोर दिया। निजी संपत्ति को भी जन हित कार्यों में झोंक दिया। उनके महल के दरवाजे गरीबों किसानों मजदूरों दुखियों के लिए सदा खुले रहते थे। करों में भारी रियायत देकर कर के बोझ से दबी जनता को राहत प्रदान किया, यहां तक कि जंगल के डाकुओं को ही जंगल का संरक्षक और प्रकृति का प्रहरी बना कर उन्हें जीवन जीने का अवसर एवं वातावरण प्रदान किया।

पुण्यश्लोक देवी अहिल्या बाई ने राज काज के साथ साथ धर्म का काज भी बखूबी किया। वो शिव की अनन्य उपासक थीं और शिव की आज्ञा से ही कल्याणकारी राज्य चला रहीं थीं। शिव का अर्थ ही होता है कल्याण या शिवत्व। शिव ही सत्य है, सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है, शिवत्व की भावना से ओत प्रोत होकर राज धर्म का सदैव पालन किया। उनकी न्यायप्रियता अनुपम थी। जनता की सेवा को ही देश ऋण से मुक्ति का मार्ग बताया। वो आजीवन इसी मुक्ति के मार्ग पर चलीं और तमाम नीतियों एवं कल्याणकारी योजनाओं को जन केंद्रित रखा। राज्य के लोग उन्हें देवी स्वरूपा मानते थे। वो कर्म को धर्म और धर्म को कर्म मानती थीं। धर्म के काम में भी वो बढ़ चढ़कर भाग लेती थीं। उन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया। मथुरा काशी गया सोमनाथ हरिद्वार अयोध्या कांची द्वारका बद्रीनाथ केदारनाथ रामेश्वरम जगन्नाथ पुरी आदि मंदिरों और ज्योर्तिलिंगों के निर्माण, रख रखाव, जीर्णोद्धार, प्रबंधन में यथा शक्ति तन मन धन से सेवा प्रदान किया। विभिन्न पर्व त्यौहार महोत्सव को बढ़ावा दिया, धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए श्रद्धालुओं के निमित्त नदियों पर घाट का निर्माण कराया, ठहरने के लिए अनेक धर्मशालाएं बनवाई। प्रमुख व्यापारिक और धार्मिक मार्गों के निर्माण कर, रख रखाव कर पूरे भारत में धर्म यात्राओं और व्यापारिक यात्राओं को आसान बनाने पर बल दिया। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत की विरासत और विकास की नीति को आगे बढ़ाया।

देवी अहिल्या बाई में सादगी की सुंदरता और सुंदरता की सादगी थी। सार्वजनिक जीवन में ऐसी सादगी शालीनता सुचिता मर्यादा नैतिकता दुर्लभ है। एक रानी होकर भी अंतिम सांस तक उनका जीवन सादगी से भरा हुआ था, शासक को भोग विलास ऐश्वर्य से कोसों दूर रहने वाला यह एक सकारात्मक सोच और अनुकरणीय आदर्श का एक विलक्षण उदाहरण है, जो हर देश और हर काल में हर शासक को एक सही राह दिखलाता है एक सही कर्त्तव्यपथ पर चलना सिखाता है।

एक प्रभावशाली शासक के तौर पर देवी अहिल्या बाई की कारगर समर नीति या युद्ध नीति थी, जो अनावश्यक जनता पर युद्ध थोपे जाने के खिलाफ थी, वो अन्य राज्यकर्ताओं के साथ कनेक्ट रहकर, युद्ध के स्थान पर दो राज्यों के बीच मैत्रीवत संबंधों को कायम रखने के पक्ष में थीं। क्योंकि युद्ध निमार्ण के तमाम कार्यों को ध्वस्त कर अंततः राज्य और राज्य की जनता का ही विनाश लीला रचती है, युद्ध की विभीषिका की मार अंततः जनता पर ही पड़ती है, इस दर्शन से परिचालित होकर विजनरी डिप्लोमेसी का वीरांगना अहिल्या बाई ने सदैव परिचय दिया और पालन किया। जो युद्ध और शांति के संदर्भ में मानवीय संवेदना एवं मानवीय विवेक को प्रस्तावित करता है जो आज भी विदेश नीति के संदर्भ में प्रासंगिक और पथ प्रदर्शक है।

भारत एक वैविध्यपूर्ण संस्कृति, समृद्ध परंपराओं का देश है, उनके सच्चे वाहक के रूप में एक सांस्कृतिक, धार्मिक, प्रशासनिक राजदूत के रूप में रानी अहिल्या बाई एक आदर्श शासक के रूप में दिखाई पड़ती हैं। ऐसी अनुकरणीय शासक की त्रिशताब्दी वर्ष भारत मनाने जा रहा है यह महोत्सव पूरे साल देश भर में मनाया जायेगा, देवी अहिल्या बाई के ऐतिहासिक योगदान और स्तुत्य कार्यों को जनता को बताया जायेगा। महोत्सव वर्ष में उनके द्वारा स्थापित मानकों मूल्यों आदर्शों मापदंडों कार्यों को याद करना स्मरण करना और राष्ट्रीय जीवन में उनका अनुकरण करना, एक आदर्श राज्यकर्ता देवी अहिल्या बाई के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इसके लिए देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों, गोष्ठियों, सम्मेलनों के आयोजन की योजना बनाई गई है ताकि इतिहास के उपेक्षित विस्मृत पन्नों पर कुछ धूल छटें और इस उनसुंग हीरो देवी अहिल्या बाई को इतिहास में सही स्थान मिले, न्याय मिले और भावी पीढ़ी उनसे कनेक्ट होकर विरासत और विकास की मशाल को आगे बढ़ा सके और गर्व कर सके कि आज से 300 वर्ष पूर्व भी क्या कोई ऐसी आदर्श महिला शासक हो सकती है जो पुरूष बाहुल्य/प्रधान शासक समाज के बीच में भी अपनी अलग एक अनूठी छाप छोड़ने वाली थी और जिसका प्रभाव आज तक है और आने वाली अनेकानेक भावी पीढ़ियों तक अक्षुण्ण बना रहेगा।

ऐसी विलक्षण प्रतिभा से सम्पन्न इस दुर्लभ इतिहास नायिका देवी अहिल्या बाई की त्रिशताब्दी जन्मोत्सव मनाने की योजना और आयोजन पूरे देश के लिए एक गर्व की बात है आनंद उत्सव की बात है राष्ट्र गौरव की बात है। इस प्रकार के सभी आयोजनों की सफलता के लिए समस्त देशवासियों, 140 करोड़ भारतवासियों, सभी आयोजकों और श्रद्धेय श्री मोहन भागवत जी को देवी अहिल्या बाई की त्रिशताब्दी वर्ष महोत्सव की बधाई, साधुवाद और सफल भव्य आयोजन के लिए मंगलकामना देती हूं और आप सभी का अभिनंदन एवं आभार व्यक्त करती हूं।


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