अवधेश कुमार
यह तर्क पहली नजर में किसी के गले उतर सकता है कि आखिर बेंगलूरु विस्फोट मौत, हिंसा या विनाश का कोई बड़ा तांडव मचाने में तो सफल नहीं हुआ। आरंभ में दो घायल हुए जिनमें एक महिला की मृत्यु हो गई और उसका एक रिश्तेदार घायल नवजवान खतरे से बाहर है। निस्संदेह, यह राहत की बात है कि दोनों धमाके कम शक्ति वाले थे और केवल दो लोग ही इसकी चपेट में आए। पर इस तरह का निष्कर्ष भी क्रूरता भरा है और आतंकवादी हमलों के प्रति हमारी अगंभीरता को दर्शाता है। मृतक महिला भवानी की उम्र 37 वर्ष के आसपास बताई जा रही है जो अपने भतीजे कार्तिक (21) के साथ वहां आई थी। उतनी कम उम्र में हमारे देश के एक नागरिक को, जिसका कोई अपराध नहीं था, आतंवादियों का निशाना बन जाना पड़ा तो इसे हम गंभीर नहीं मानें? संभव था, यदि वहां और लोग होते तो निशाने पर वे भी आते। इसे आतंकवादी घटना मानने में तो कोई समस्या नहीं है। बेंगलूरु के चर्च स्ट्रीट स्थित कोकोनट ग्रोव रेस्टोरेंट के पास भीड़भाड़ रहती है तो बम धमाके करने के पीछे सोच क्या हो सकती है। खासकर क्र्रिसमस के मौके पर। धमाके का समय रात साढ़े आठ बजे भी महत्वपूर्ण है।
हमारे लिए इस घटना का महत्व केवल हताहत होने वालों की संख्या तक सीमित नहीं हो सकता। आखिर आतंकवादी इसके द्वारा संदेश क्या देना चाहते हैं? कह सकते हैं कि आतंकवादियों का एक आम उद्देश्य आतंक व भय का माहौल पैदा करना होता है और उन्होंने यह किया। यह भी तर्क दिया जा सकता है कि पुलिस की चौकसी का ही परिणाम था कि वे बड़ा विस्फोट करने में सफल नहीं हुए। हालांकि बेंगलूरु के साथ यह संयोग रहा है कि वहां 2005 से लेकर जितने आतंकवादी हमले हुए वे बहुत बड़े कभी नहीं थे। 28 दिसम्बर 2005 को स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस पर हमला करने से लेकर 25 जुलाई 2008 को नौ श्रृंखलाबद्ध विस्फोट, फिर 17 अप्रैल 2010 के बेंगूलर चिन्नास्वामी स्टेडियम विस्फोट, फिर 17 अप्रैल 2013 को ऐन चुनाव के पूर्व भाजपा कार्यालय के बाहर एक बड़ा धमाका .....इनमें यदि मरने वालों की संख्या को मिला दें तो ये सारे अत्यंत छोटे आतंकवादी कारनामे लगेंगे। चेन्नस्वामी स्टेडियम में तोे मुंबई इंडियंस और बंगलुरु चौलेंजर्स के बीच मुकाबला के बीच दो बम विस्फोट किए गए, जिसमें पांच सुरक्षाकर्मियों समेत 15 लोग सामान्य रुप से घायल हुए थे। एक बम स्टेडियम के बाहर मिला था जिसे बम निरोधक दस्ते ने निष्क्रिय कर दिया था। यही स्थिति नौ श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों में भी थी जिसमें क्षति हुई ही नहीं। तो क्या इन सबको हम यूं ही नजरअंदाज कर लें?
कतई नहीं। इनसे इतना तो साफ है कि बेंगलूरु हमेशा से आतंकवादियों के निशाने पर रहा है। पीछे की चर्चा बाद में। हाल ही में आईएसआईएस के पक्ष में जेहाद समर्थक ट्विटर अकाउंट @shamiwitness वेबसाइट चलाने वाल मेंहदी मसरुर विश्वास वहीं से पकड़ा गया था। मेहदी 2003 से लेवेंटाइन क्षेत्र में दिलचस्पी रखता है, जिसे पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र भी कहा जाता है। इसमें साइप्रस, इस्राइल, जॉर्डन, लेबनान, फलस्तीन, सीरिया और दक्षिणी तुर्की का हिस्सा आता है। दिन के समय वह दफ्तर में काम करता था और रात के समय इंटरनेट पर सक्रिय रहता था। वह आईएसआईएस के अरबी के ट्वीट्स को अंग्रेजी में अनुवाद कर उन्हे रीट्वीट करता था। वह घटनाक्रमों पर पैनी नजर रखते हुए बेहद आक्रामक ट्वीट भी करता था। इस ट्विटर को विदेशी जिहादी फॉलो करते थे। यानी वह आईएसआईएस में भर्ती होने वाले नए सदस्यों के लिए भड़काने और सूचना का स्रोत बन गया था। क्या माना जाए कि ऐसा करने वाला वह अकेला इंसान होगा? दूसरी बात कि उसकी गिरफ्तारी के खिलाफ आतंकवादियों ने सरकार को धमकी भी थी। तो कहीं उसका विरोध करने के लिए तो विस्फोट नहीं किया गया? इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। यह भी खबर थी कि अल कायदा से जुड़ा एक आतंकवादी बेंगलूरु पहुंचा है और पुलिस उसे पकड़ने में लगी थी। अभी हाल ही में केन्द्र की ओर से खुफिया ब्यूरो ने कई शहरों के लिए आतंकवादी हमलों की चेतावनी जारी की थी जिनमें बेंगलूरु भी शामिल है। यानी रेड अलर्ट पहले से था। इसलिए यह विस्फोट बिल्कुल अनपेक्षित नहीं था। यही इसका महत्वपूर्ण पक्ष है कि सामने खतरा रहते हुए आतंकवादी विस्फोट करने में सफल रहे। बहरहाल, आने वाले समय में इसका पूरा खुलासा होगा, पर कनार्टक पुलिस एवं सरकार को कई प्रश्नों का उत्तर देना होगा।
ध्यान रखिए, 28 दिसंबर को ही नौ वर्ष पहले इंडियन इन्स्टीच्यूट आफ साईंस पर हमला हुआ था जिसमें दिल्ली के एक प्रोफेसर मारे गए थे। यह हमला भी 28 दिसंबर को हुआ है। पता नहीं इन दोनों के बीच कोई रिश्ता है या नहीं, पर इससे साफ है कि आतंकवादियों के मॉड्यूल या स्लीपर सेल्स वहां मौजूद हैं। खुफिया एजेंसियों एवं पुलिस प्रशासन को वर्तमान खतरों व चेतावनियों के साथ हर उस तिथि का ध्यान रखना ही चाहिए जिस दिन पहले विस्फोट हो चुका है। कर्नाटक एवं बेंगलूरु जेहादी आतंकवादियों का प्रमुख केन्द्र लंबे समय से रहा है। सिमी से लेकर, हरकत उल जेहाद अल इस्लामी और इंडियन मुजाहीद्दीन के अनेक आतंकवादी वहां पकड़े गए, या फिर पुलिस की हिट सूची में रहे। जिस इंडियन मुजाहिद्दीन ने 2013 तक आतंकवादी हमलों की झड़ी लगा दी उसके केन्द्र के रुप मंे भी कर्नाटक चिन्हित हो चुका है। जिन भटकल बंधुओं की हर घटना में चर्चा होती रही है वे यहीं के थे। कर्नाटक का बंेगलूर एवं गुलबर्ग इनका मुख्य केन्द्र माना जाता रहा है। अगर खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट को स्वीकार करें तो इंडियन मुजाहिद्दीन के दो बड़े गढ़ महाराष्ट्र एवं कर्नाटक ही रहे हैं। यह एक मोटा मोटी तस्वीर है जिससे हम उन क्षेत्रांे में आतंकवादियों की गतिविधियों की झलक देख सकते हैं।
फोरेंसिक विशेषज्ञ बता रहे हैं कि धमाके में कम तीव्रता के आईईडी का प्रयोग किया गया है एवं इसे उड़ाने के लिए टाइमर लगा था। पर उसमें व्यक्ति की जान लेने की क्षमता तो थी। खैर, यह कोई एक व्यक्ति भी कर सकता है और समूह भी। आज आतंकवादी होने के लिए किसी समूह के साथ होना आवश्यक नहीं रह गया है। मेंहदी जैसे किसी समूह का सदस्य नहीं है, वैसे आतंकवाद से प्रभावित और मजहब के लिए मौत को गले लगाकर जन्नत पाने के उन्माद से ग्रसित लोगों की संख्या बढ़ रही है जो अकेले भी किसी घटना को अंजाम दे सकते हैं। आखिर आईएसआईएस के साथ लड़ने के लिए हमारे यहां से युवा और प्रौढ़ इराक सीरिया गए हैं और कुछ जाते हुए पकड़े गए हैं। इसलिए इस घटना में निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कोई समूह था या किसी व्यक्ति ने ऐसा किया। अल कायदा प्रमुख अल जवाहिरी द्वारा भारत को केन्द्र में रखकर दक्षिण एशिया के लिए ईकाई के गठन तथा आईएसआईएस के इस्लामी साम्राज्य में भारत के एक भाग को शामिल करने के बाद खतरा वैसे भी बढ़ा हुआ है।
इसलिए बेंगलूरु की घटना भले छोटी लगे पर इसके संकेत और संदेश गहरे हैं। यह हमारे उपर मंडराते आतंकवादी खतरे की पूर्व चेतावनी है। राज्यों एवं केन्द्र दोनों के लिए इसमें संकेत निहित है। इस घटना में चाहे मध्यप्रदेश की जेल से भागे हुए सिमी सदस्यों का हाथ हो या किसी का जैसा पुलिस आशंका व्यक्त कर रही है, आईएसआईएस एवं अल कायदा दोनों के नए तेवर और उनकी योजनाओं, भारतीयों का उनके समूह में होना ......आदि हमारे लिए आतंकवाद से निपटने के लिए हर क्षण चौकसी के साथ उसके मुकाबले की पूरी तैयारी अमेरिका और यूरोपीय देशों के सदृश करने का ही विकल्प देती है। यह अच्छा संदेश है कि बेंगलूरु मंे हमले के तुरत बाद केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा घटना स्थल पर पहुंचें, मौके का मुआयना किया और पत्रकारों से बातचीत कर स्थिति स्पष्ट किया। उनने पहले ट्विट करके भी लोगों से संयम बरतने की अपील की। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तत्क्षण अपना वक्त्व्य दिया, मुख्यमंत्री से बात की एवं आवश्यकता पड़ने पर हर तरह की सहायता का प्र्रस्ताव दिया। यहां तक केन्द्र की सक्रियता प्रशंसनीय है, पर यह घटना के बाद की प्रतिक्रिया है और उसमें भी यह छोटी घटना है। घटना के पूर्व राज्यों के साथ सुरक्षा व्यवस्था पर पूर्ण तालमेल तथा किसी बड़ी घटना से निपटने को लेकर सशक्त तैयारी का पूर्व परीक्षण अब अपरिहार्य हो गया है।
अवधेश कुमार, ई.ः 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः 110092, दूर.ः 01122483408, 09811027208