गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

अल बगदादी का मारा जाना आतंकवाद विरोधी लड़ाई की बड़ी सफलता

 

अवधेश कुमार

अमेरिका अब यह शान से दावा करने की स्थिति में है कि दुनिया के दो सबसे बड़े आतंकवादी और दुनिया भर में हजारों बेगुनाह को मौत की घाट उतारने, लाखों जेहादी आतंकवादियों के लिए प्रेरणास्रोत ओसामा बिन लादेन तथा अबु बक्र अल बगदादी को तलाश कर मार डाला। इस बीच उसने अन्य नामी आतंकवादियों को भी मौत के घाट उतारा जिसमें मुल्ला उमर से लेकर ओसामा का बेटा हमजा बिन लादेन भी है। किंतु 2 मई 2011 को ओसामा और अब 27 अक्टूबर को बगदादी को मार डालना इतिहास का ऐसा अध्याय है जिसे आतंकवाद विरोधी युद्ध की सबसे बड़ी सफलता के रुप में याद किया जाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा टीवी पर लाइव प्रसारण के दौरान बगदादी की मौत की घोषणा पर पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली। इस तरह का क्रूर और बहशी आतंकवादी सरगना दुनिया ने इससे पहले न देखा न सुना था। ट्रम्प ने कहा कि बगदादी अमेरिकी ताकत के डर से चीखते-चिल्लाते हुए कुत्ते की मौत मारा गया। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी ओसामा के मारे जाने के बाद घोषणा किया था कि न्याय किया जा चुका है। यह दोनों की शब्दावलियों में अंतर है। जो जानकारी अमेरिकी राष्ट्रपति ने दी उसके अनुसार बगदादी ने अमेरिकी सेना को आते देख अपने ठिकाने के नीचे खुदी सुरंग से भागने की कोशिश की। उसने साथ में अपने तीन बच्चों को भी ले लिया। इस दौरान सैनिकों और सैन्य कुत्तों ने उसका पीछा किया। सुरंग में जब उसे रास्ता नहीं मिला, तो उसने आत्मघाती जैकेट को विस्फोटित कर लिया। इसमें उसकी और उसके तीनों बच्चों की मौत हो गई। जैसा ट्रम्प ने बताया बगदादी को मारने के लिए सीरिया के इदलिब प्रांत में हेलिकॉप्टर, विमानों और ड्रोन्स के कवर में स्पेशल फोर्सेज को जमीन पर उतारा गया।

अमेरिका के एक भी सैनिक को क्षति न पहुंचने का अर्थ था कि विरोध बड़ा नहीं था। ओसामा को जब पाकिस्तान के ऐबटावाद में नेवी सील के जवानों ने उसके सुरक्षित तीन मंजिले घर में उतरकर मारा था तो वहां भी विरोध के लिए कोई नहीं था। अमेरिका ने बगदादी पर 2.5 करोड़ डॉलर (177 करोड़ रुपए) का इनाम रखा था। हालांकि इसके पहले भी ऐसे कम से कम आठ बार उसे मारे जाने की बात की गई थी। हर बार का दावा गलत निकला। अमेरिका के पूर्व रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने 22 जुलाई 2017 को उसके मारे जाने के दावों को खारिज करते हुए कहा, ‘मेरा मानना है कि बगदादी जिंदा है और मैं तभी मानूंगा कि उसकी मौत हो गई है, जब हमें पता चलेगा कि हमने उसे मार दिया है। सबसे अंतिम दावा रुस ने जून 2017 में किया था कि सीरिया के रक्का के नजदीक 28 मई को बगदादी की एक बैठक पर उसने हमला किया था, जिसमें संभवतः बगदादी मारा गया था। मैटिस की बात सच निकली जब 28 सितंबर 2017 को आईएस ने अल बगदादी का 45 मिनट का ऑडियो जारी किया। लेकिन इस बार संदेह की गुंजाइश नहीं है। इसी वर्ष श्रीलंका के क्राइस्टचर्च में 21 अप्रैल को हुए धमाकों के बाद बगदादी का एक वीडियो जारी हुआ था। इसके पूर्व सार्वजनिक रुप में वह सिर्फ एक बार जुलाई 2014 में मोसुल के अल-नूरी मस्जिद में नजर आया था। उसने इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के जन्म की घोषणा की थी। अब बगदादी का हिंसा और विनाश का ऑडियो या वीडिया कभी नहीं आएगा। यह आतंकवाद विरोधी युद्ध की अब तक की सबसे बड़ी सफलता है।

 अल-बगदादी दुनिया का सबसे वांछित आतंकवादी-अपराधी था। हालांकि 2017 से इस खंखार आतंकवादी के पैर उखड़ने लगे थे। 28 जून 2017 को इस्लामिक स्टेट ने मोसुल की प्रसिद्ध झुकी हुई मीनार और उससे जुड़ी उस नूरी मस्जिद को विस्फोट कर उड़ा दिया जिसमें वर्ष 2014 में पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आए अल बगदादी ने खुद को खलीफा घोषित किया था। यह मोसूल का इलाका था जिसे आईएस के कब्जे से छुड़ाने के लिए इराकी सेना संघर्ष कर रही थी। 9 दिसंबर 2017 को इराक के प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी ने इस्लामिक स्टेट को इराक से पूरी तरह खदेड़ने का दावा किया था और यह सच था। उसके बाद 23 मार्च को सीरिया में अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन सेना ने, जिसे अमेरिकी समर्थक बल भी कहा जाता है घोषणा कर दी कि आईएस के कब्जे से अंतिम क्षेत्र को मुक्त करा लिया गया है। एसडीएफ़ ने ऐलान किया कि सीरिया में पांच साल पहले घोषित खि़लाफ़त को अंततः नष्ट कर दिया गया है। लेकिन जब तक अल बगदादी जिन्दा था इसे पूर्ण विजय नहीं माना जा सकता था। अमेरिका को अफगानिस्तान पर हमला करने के बाद लादेन को तलाशने में साढ़े नौ वर्ष लग गए थे। इसी तरह यह माना जाने लगा था कि बगदादी की तलाश करना भी आसान नहीं होगा। किंतु दोनों में अंतर था। लादेन को पाकिस्तान में अत्यंत ही सुरक्षित जैसा ठिकाना मिल गया था। बगदादी को किसी देश मेें ठिकाना नहीं मिल सकता था। सीरिया में ही उसके होने की संभावना थी।

अल बगदादी इराक में अमेरिकी विजय के खिलाफ संघर्ष कर रहे अल कायदा का ही प्रमख था। अल कायदा से अलग उसने 2006 में आईएसआई यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक नाम से संगठन बनाकर अकेले कब्जा करने पर काम शुरु किया। इसमें वह सफल नहीं हुआ। उसे सद्दाम हुसैन काल के सेना के कुछ लोग मिल पाए थे। हालांकि उसने जिस तरह पुलिस, सेना से जुड़े ठिकानों पर हमला करना शुरु किया और उसकी खबरें फैलने लगी, मुस्लिम युवाओं का उसकी ओर आकर्षण व झुकाव हुआ और भारी संख्या में लड़ाके शामिल होने लगे। लेकिन उसकी कल्पना बड़ी थी। मध्यकालीन इस्लामी साम्राज्य की स्थापना जिसका प्रमुख खलीफा हो। सीरिया में गृहयुद्ध आरंभ हो चुका था। उसने संगठन का नाम आईएसआईएस यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया कर दिया। वहां फ्री सीरियान आर्मी या एफएसए को अमेरिका और उसके साथी देशों की सहानुभूति तथा हल्का सहयोग प्राप्त था। जून 2013 में एफएसए ने अपनी पराजय देख अपील की कि उसे हथियार और अन्य संसाधन दिया जाए। उसके बाद अमेरिका, इजरायल, जॉर्डन, तुर्की, सऊदी अरब और कतर ने उसे को हथियार, धन और सैन्य प्रशिक्षण की सहायता देनी आरंभ की। आधुनिक हथियार, एंटी टैंक मिसाइल, गोला-बारूद सब कुछ दिया गया। इन देशों को यह पता ही नहीं चला कि आईएसआईएस एफएसए के साथ है। इन्हीं हथियारों, संसाधनों और प्रशिक्षणों की बदौलत बगदादी ने सीरिया और इराक के एक बड़े हिस्से को कब्जे में ले लिया। ऐसा लगता ही नहीं था कि इराक और सीरिया बगदादी के भयानक कब्जे से कभी मुक्त हो पाएगा। किंतु मोसूल और रक्का दो प्रमुख केन्द्र हाथों से निकलने के बाद यह विश्वास पैदा हुआ कि इसका आधिपत्य खत्म हो सकता है।

 अल बगदादी के नेतृत्व वाला आईएस पहला आतंकवादी संगठन था जिसने इराक और सीरिया में 88 हजार वर्ग किलोमीटर तक के इलाके को नियंत्रित किया हुआ था। इराक के 40 प्रतिशत हिस्से पर इसका कब्जा था। अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा था जिसका स्रोत अल कायदा था। ओसामा बिन लादेन ने स्वयं को खलीफा घोषित नहीं किया था। बगदादी इसीलिए अल कायदा से अलग हुआ क्योंकि उसकी कल्पना जल्दी से खिलाफत का लक्ष्य हासिल करना था। बगदादी अपने इलाके में उसी तरह शासन, संघर्ष और व्यवहार कर रहा था जैसा हमने मध्यकालीन इतिहास में पढ़ा है। बगदादी ने  कब्जे के दौरान बड़े पैमाने पर नरसंहार करवाया और इनका वीडियो दहशत के लिए सोशल मीडिया पर फैलाया। 2014 में इराक के सिंजार क्षेत्र पर कब्जा करने के बाद उसका वहशीपन दुनिया के सामने आया जब उसने यजीदी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय की हजारों महिलाओं और लड़कियों को बंधक बनाया और उन्हें यौन गुलाम बनने के लिए मजबूर किया। बाजार लगाकर उन्हें बेचते हुए वीडियो जारी किया। पंक्तियों में खड़ा कर जिस क्रूरता से वह विरोधियों की हत्यायें करता था उसकी कल्पना मात्र से सिहरन पैदा हो जाती है।

निस्संदेह? इराक और सीरिया से आईएस की पराजय एवं अब अल बगदादी के अंत के साथ आधुनिक दुनिया में क्रूरता के एक अध्याय का अंत हुआ है। इससे जेहादी आतंकवाद को अब तक का सबसे बड़ा धक्का कह सकते हैं। किंतु आतंकवाद का खतरा खत्म हो गया ऐसा मानना गलत होगा। अभी भी आईएस आतंकवादी हैं। आईएस नाइजीरिया से लेकर फिलीपींस तक सक्रिय है। जैसे ओसामा मरने के बावजूद आतंकवादियों के लिए प्रेरणा का स्रांेत है बगदादी का प्रभाव उससे ज्यादा है। बगदादी ने संघर्ष में अपने प्रवक्ता से लोन वूल्फ यानी अकेले जो भी संसाधन मिले उसी से हमला करने का जो बयान दिलवाया वह पूरी दुनिया में फैल चुका है। अनेक देश उसके शिकार हुए हैं। आईएस के सहयोगी संगठन मिस्र और लीबिया में भी हमले करते रहे हैं। इस तरह खतरा अभी है। हां, बगदादी के मारे जाने के बाद उस तरह का आकर्षण और हिंसा की प्रेरणा का जिंदा स्रोत अवश्य खत्म हो गया है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

 

 

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड के एएमसी कर्मचारी शिव राम की सेवानिवृत्ति पर भावभीनी विदाई

◆बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड में ठेकेदारी पर कार्य करने वाले एएमसी के कर्मचारी ने ठेकेदारी के इतिहास में पहली बार पाई रिटायरमेन्ट ◆शिव राम के रिटायरमेन्ट पर उनके पुत्र संजय को हेल्पर की पोस्ट पर नियक्ति कराई 
 
संवाददाता
 
नई दिल्ली। बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड के डिवीजन कृष्णा नगर सब डिवीजन आठ ब्लाक गीता कालोनी शिकायत केंद्र में ठेकेदारी पर कार्य करने वाले एएमसी के कर्मचारी श्री शिव राम (हेल्पर) की ठेकेदारी के इतिहास में पहली बार रिटायरमेन्ट हुई। इस रिटायरमेंट की विदाई पार्टी डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव के सौजन्य से की गई।
इस रिटायरमेंट पर डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव के अथक प्रयास से शिव राम के पुत्र संजय को हेल्पर के पद पर नियुक्त करवाया। शिव राम को सभी एएमसी के कर्मचारियों ने मिलकर 38 हजार रुपए दिए और ठेकेदार की तरफ़ से 11 हजार रुपए का चैक दिया गया। इसमें सभी एएमसी के कर्मचारियों ने भी योगदान दिया। किसी कारण रिटायरमेन्ट में किशन यादव नहीं पहुंच सके उनकी जगह अब्दुल रज्जाक ने शिव राम को फूल-माला से सम्मानित किया। 
डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव की ओर से अब्दुल रज्जाक ने कहा कि हम एम्पिरियल कम्पनी के सुपरवाईजरों का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने शिव राम की रिटायरमेन्ट के बाद उनके पुत्र संजय को हेल्पर की पोस्ट पर नियुक्ति दी। 
उन्होंने कहा कि शिव राम की सेवानिवृत्ति के बाद उनके स्थान पर उनके पुत्र संजय की नियुक्ति में पंकज शुक्ला, मुद्दस्सीर खान, योगेश इन तीनों का सबसे बड़ा योगदान रहा है। इसके लिए डेसू मजदूर संघ धन्यवाद करता है।
अब्दुल रज्जाक ने आगे कहा कि डेसू मजदूर संघ एक ईमानदार यूनियन है जो हमेशा कर्मचारियों को उनका सम्मान दिलाती रही है और दिलाती रहेगी। इसके लिए श्री किशन यादव जी व उनकी टीम हमेशा से ही कर्मचारियों के सम्मान के लिए लड़ती रही है, उनको उनका हक दिला रही है और आगे भी दिलाती रहेगी।
 









 

शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

राजेश कुमार के परिवार को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता का चेक दिलवा

संवाददाता

नई दिल्ली । बीएसईएस में आउटसोर्सिंग व एएमसी आधार पर काम करने वाले कर्मचारी अपनी जान पर खेलकर कार्य करते हैं। कभी-कभी तो कर्मचारियों की कार्य करते समय जान तक चली जाती है पर बीएसईएस में ऐसे कर्मचारियों की कोई गिनती नहीं होती। ऐसे कर्मचारी को कोई अपना मानने को तैयार नहीं होता है।
बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड के लिए चीना एण्ड चीना कम्पनी जो हर्ष विहार में काम करती है। इस कम्पनी में राजेश कुमार काम करता था जिसकी बुखार के बाद टाइफाइड होने से मृत्यु हो गई।
राजेश कुमार जो मूलतः बिहार का रहने वाला था वह अपने परिवार के साथ किराये के मकान में रहता था। राजेश कुमार जो क़रीब चार साल से चीना एण्ड चीना कंपनी के लिए काम करता था। काम के दौरान ही इसको बुखार लग गया। बुखार में ही वो काम पर जाता था ताकि पैसे नहीं कटें पर बुखार ने टाइफाइड का रूप धारण कर लिया जिस कारण 17 अक्टूबर को राजेश कुमार का देहांत हो गया।
राजेश कुमार के बारे में जब डेसू मजदूर संघ व कर्मचारी यूनियन को पता चला तो वह लोग राजेश कुमार के घर गए और पूरी जानकारी ली। इसके बाद डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव व कर्मचारी यूनियन के सदस्य कंपनी के मालिक व बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड के सीईओ पीआर कुमार से मिले। सीईओ पीआर कुमार ने आश्वासन दिया कि राजेश कुमार को कंपनी की ओर से आर्थिक सहायता दिलवाई जाएगी।
डेसू मजदूर संघ व कर्मचारी यूनियन के अथक प्रयास से मृत्यु कर्मचारी के परिवार को एम्बुलेन्स के लिए 30 हजार, क्रियाकर्म आदि के लिए 50 हजार नगद तथा 5 लाख का चैक दिलवाया।
डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव ने बताया कि इस कार्य को जल्द पूरा करवाने में बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड के सीईओ पीआर कुमार जी का बहुत बड़ा योगदान है। उनके इस योगदान के लिए डेसू मजदूर संघ धन्यवाद करता है।
इस कार्य में डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव, महामंत्री सुभाष चन्द, अब्दुल रज्जाक, विजय कुमार, ऋषि पाल, कर्मचारी यूनियन के महामंत्री सौरभ सुदन ओर अन्य कर्मचारियों का योगदान रहा।

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

बंदिशें हटने के साथ जम्मू कश्मीर

 

अवधेश कुमार

जम्मू कश्मीर में पोस्ट पेड मोबाइल सेवाएं चालू हो चुकीं हैं। यह कदम साबित करता है कि सरकार की दृष्टि में 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने तथा राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू कश्मीर की स्थिति काफी सुधर गई है। पिछले 8 अक्टूबर को राज्यपाल ने घोषणा की कि 10 अक्टूबर से सैलानी प्रदेश में आ सकते हैं। राज्य प्रशासन ने सैलानियों के घाटी छोड़ने और वहां न जाने संबंधी अडवाइजरी को करीब 2 महीने बाद वापस ले लिया। अनुच्छेद 370 को खत्म करने से 3 दिन पहले 2 अगस्त को एक सिक्यॉरिटी अडवाइजरी जारी कर अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को कश्मीर छोड़ने की सलाह दी थी। इस एडवायजरी को वापस लेना जम्मू कश्मीर के अतीत और वर्तमान को देखते हुए बहुत बड़ी घोषणा है। इसका मतलब यह भी हुआ कि सुरक्षा समीक्षा में भी सकारात्मक संकेत मिले हैं। ऐसा नहीं होता तो राज्य प्रशासन सैलानियों को बुलाने का रास्ता प्रशस्त नहीं करता। इसी तरह सारे विद्यालय खोले जा चुके हैं। 24 अक्टूबर को बीडीसी चुनाव कराने का फैसला भी महत्वपूर्ण है। तो क्या यह मान लिया जाए कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख अब सामान्य होने के करीब है?

ऐसा मान लेना जल्दबाजी होगी। मोबाइल सेवाएं बहाल होते ही शोपियां से सेब लेकर राजस्थान जा रहे ट्रकपर हमला एवं चालक का मारा जाना तथा श्रीनगर में हथगोला फेंकना इसका प्रमाण है कि आतंकवादी अशांति के पूरे प्रयास करेंगे। लद्दाख मे तो कोई समस्या नहीं है किंतु जम्मू कश्मीर वर्षों से असामान्य राज्य रहा है और सीमा पार से आतंकवाद जारी रहने तथा अलगाववादियों को समर्थन देने तक उसका पूरी तरह सामान्य होना कठिन है। वहां के मुख्यधारा के नेताओं की भी यही रणनीति रही है कि कश्मीर को किसी तरह सामान्य राज्य न बनने दिया जाए ताकि केन्द्र पर उनका दबाव बना रहे एवं उनकी घटिया राजनीति और कुशासन पर खतरा पैदा न हो। दूसरी स्थिति में तो काफी बदलाव है, किंतु इसकी चर्चा आगे। आज की स्थिति यह है कि करीब 90 प्रतिशत पाबंदियां खत्म की जा चुकीं हैं। वस्तुतः आठ से 10 थाना क्षेत्रों के अलावा लोगों की आम गतिविधियों पर लगी पाबंदियां हट चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर में 16 अगस्त से ही पाबंदियां धीरे-धीरे हटाई जाने लगीं और सितंबर का पहला हफ्ता आते-आते अनेक हटा लिए गए। आंशिक रूप से 17 अगस्त को लैंडलाइन सेवाएं बहाल की गईं और 4 सितंबर को इसे पूरी तरह बहाल कर दिया गया। उसके बाद पोस्टपेड उपभोक्ताओं के लिए इनकमिंग मोबाइल सेवाएं बहाल की गई। आउटगोइंग मोबाइल सेवाओं पर रोक जारी थी जो हटा दी गई है। हां, मुक्त इंटरनेट बहाल करने में समय लगेगा। इंटरनेट से आतंकवादियों और उनके समर्थकों के बीच संपर्क का खतरा है। जब तक मोटा-मोटी निश्चिंतता नहीं हो जाती पूरी तरह इंटरनेट एवं प्रीपेड मोबाइल सेवा बहाल करने में समस्या है। हालांकि पर्यटकों की सुविधा के लिए पर्यटक स्थलों पर इंटरनेट सेवा बहाल की जा रही है। 

संचार सेवा को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर छाती पीटने वालों के दबाव में यदि सरकार काम करती तो अभी तक न जाने कितनी आतंकवादी घटनाएं घट जाती। जम्मू कश्मीर की स्थिति को देखते हुए इतना बड़ा कदम उठाने के पूर्व इस तरह के प्रतिबंध तथा इसमें बाधा बनने वाले नेताओ को ससम्मान नजरबंद या कैद करना आवश्यक था। इसी कारण जम्मू कश्मीर इस दौरान शांत रहा। पाबंदी का असर यह हुआ कि लंबे समय बाद एक भी व्यक्ति दो महीने से ज्यादा समय में आतंकवादी हमले का शिकार नहीं हुआ। इस बीच आठ आतंकवादियों को मारा गया, कई गिरफ्तार हुए। निस्संदेह, आम लोगों को ज्यादा परेशानियां हुईं लेकिन इसे प्रसव पीड़ा की तरह लिया जाना चाहिए। इस बीच आतकवादी संगठनों ने लोगों को डराने की कोशिश की। पोस्टर तग लगाए गए लेकिन उसके जवाब में भी पोस्टर लगे। 2008, 2010 और 2016 में आतंकवादियों ने अपनी बात न मानने पर हत्याएं कीं थी।

वैसे पाबंदियों को जिस तरह सैन्य आपातकाल के रुप में चित्रित किया गया वह सही भी नहीं था। सात अक्टूबर को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कश्मीर में 196 में से केवल दस थाना क्षेत्रों में ही धारा 144 लगी हुई है। मीडिया को प्रतिबंधित करने की बात भी सही नही है। राजधानी दिल्ली से गए पत्रकार वहां से रिपोर्ट करते रहे। इंटरनेट के कारण समस्या थी लेकिन वे पत्रकार ही बताते रहे कि मीडिया पर पांबंदी की बात गलत हैं। स्थानीय समाचार पत्र भी निकलते रहे। हां, 16 या 20 पृष्ठ के अखबार 10-12 पृष्ठ में आते रहे। घाटी के ज्यादातर अखबारों का भारत विरोधी, आतंकवादी, अलगाववादी समर्थक तेवर को देखते हुए ऐसी परिस्थिति में उन पर थोड़ी निगरानी आवश्यक थी। वैसे भी वहां के ज्यादातर अखबार या तो सरकार के परोक्ष मदद से निकलते हैं या अलगाववादी उनको वित्त उपलब्ध कराते हैं। कठिनाइयां थीं जो कि स्वाभाविक है लेकिन उसका चित्रण झूठ और अतिवाद पर आधारित था। उच्चतम न्यायालय में  एक याचिका जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय पहुुंच नहीं पाने की डाली गई तो एक बच्चों को नजरबंद करने की। ये दोनों आरोप गलत निकले और मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं को फटकार भी लगाई।

सरकार ने अपनी ओर से कुछ कोशिशें लोगों की कठिनाइयां दूर करने के लिए भी कीं। मसलन, बकरीद के दिन सामग्रियां पहुंचाने, राशन की कुछ सामग्रियों की आपूर्ति सुनिश्चित करने, सेब की खरीदारी करने या बाहर जाने के लिए ट्रकों की व्यवस्था, बीमारों को अस्पताल पहुंचाने आदि। सरकार ने 5000 करोड़ में घाटी का 50 प्रतिशत सेब खरीदने का ऐलान किया। पुलवामा के डीसी सैयद राशिद सेब बाजारों में पहुंचाने के लिए रोजाना 300 ट्रक का बंदोबस्त किया गया है। 3 सितंबर को अमित शाह ने दिल्ली मिलने आए पंचों और सरपंचों के लिए पुलिस सुरक्षा तथा 2-2 लाख रुपये का बीमा कवरेज देेने की घोषणा की।

अब आएं सबसे ज्यादा चर्चा वाले पहलू यानी नेताओं की नजरबंदी एवं कैद पर। सरकार ने करीब चार हजार लोगों को हिरासत में या नजरबंद रखा था। इनमें से करीब 700 लोग मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से संबंध रखते हैं। 17 सितंबर को  केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने जम्मू कश्मीर प्रशासन को कह दिया था कि कोई भी व्यक्ति चाहे वो कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, अगर वह कश्मीर में कानून व्यवस्था का उल्लंघन करता है या लोगों को भड़काने का प्रयास करता है तो उसके खिलाफ पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट (पीएसए) लगा दिया जाए। फारूक अब्दुल्ला को पीएसए के तहत हिरासत में ले लिया गया। इससे पहले वे करीब एक माह से भी ज्यादा समय तक नजरबंद थें। 370 पर भिन्न मत रखने वाले और भी कुछ लोगों पर पीएसए लगाया गया है। हालांकि राजनीतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं की रिहाई भी शुरू हो चुकी है। जम्मू प्रांत में मुख्यधारा के सभी प्रमुख राजनीतिक नेताओं को नजरबंदी से मुक्त कर दिया गया है। घाटी में नेताओं की पृष्ठभूमि और संवैधानिक परिवर्तन पर उनकी विचारधारा का आकलन करने के बाद रिहा करने की प्रक्रिया चल रही है। नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स कांफ्रेंस, माकपा और अवामी इत्तेहाद पार्टी से जुड़े करीब तीन दर्जन प्रमुख नेताओं को मुक्त कर दिया गया। हालांकि राज्य के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन और नौकरशाही छोड़ राजनीति में सक्रिय हुए शाह फैसल समेत कई नेताओं की रिहाई की संभावना नहीं है। तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ. फारूक अब्दुल्ला, उमर और महबूबा व कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं ने रिहाई के लिए बांड व अन्य प्रशासनिक शर्तों को मानने से इनकार कर दिया है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जीए मीर को भी मुक्त कर दिया। जो जानकारी आ रही है प्रशासन नेताओं को कह रहा है कि ब्लौक विकास परिषद के चुनाव प्रक्रिया में किसी रुप में भाग लेने को इच्छुक लोग मुक्त हैं। इसके तहत भी काफी लोग मुक्त हुए है। हां, रिहा होने वालों से यह वचन लिया जा रहा है कि वो कोई भी ऐसी गतिविधि न करें, जिससे हालात बिगडऩे की आशंका हो। ऐसा होने पर उन्हें हिरासत में ले लिया जाएगा। बड़े नेता शर्त मानने को तैयार नहीं है इसलिए उनको रिहा नहीं किया जाएगा। अभी तक जो राजनीतिक व्यक्ति नजरबंद हैं या दूसरे राज्यों की जेलों में कैद हैं, उनसे दो बार पूछा गया है कि वे मुख्यधारा में लौटना चाहें तो सरकार उनकी पूरी मदद करेगी। वैसे नेता कुछ भी कहें घाटी की फिजां बदल रहीं हैं। 31 अगस्त को ही खबर आई कि जम्मू-कश्मीर से 575 युवा सेना में भर्ती हुए हैं।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408,9811027208

 

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