शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

अतीक की हत्या के मायने

अवधेश कुमार

सहसा इस समाचार पर विश्वास करना कठिन था कि अतीक अहमद और अरशद अहमद को गोलियों से भून दिया गया है। आखिर पुलिस की सुरक्षा में गिरफ्तार इतने बड़े माफिया अपराधी की हत्यारे इतनी सरलता से हत्या कर देंगे इसकी कल्पना की ही नहीं जा सकती थी। आम धारणा यही थी कि अतीक की सुरक्षा व्यवस्था इतनी सशक्त है कि कोई उसमें घुसने की सोच ही नहीं सकता। साबरमती से प्रयागराज लाने, फिर न्यायालय में ले जाने आदि के बीच जैसी सुरक्षा व्यवस्था दिखी थी उसमें घुसकर दोनों भाइयों की हत्या कर दे इसकी संभावना कोई व्यक्त नहीं कर सकता था। बावजूद उसकी हत्या हुई। साफ है कि सुरक्षा व्यवस्था में कमी थी।  जाहिर है, पूरी जांच के बाद ही स्थिति ज्यादा स्पष्ट होगी कि आखिर सुरक्षा चूक कहां हुई कैसे हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में अगर अतीक अहमद को मिट्टी में मिलाने की घोषणा की थी तो पुलिस का दायित्व था कि वह कानूनी तरीके से उसके उसको पूरा करने के उत्तरदायित्व का सतर्कतापूर्वक निर्वहन करे। अतीक अहमद और उत्तर प्रदेश के अन्य बड़े अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई लंबे समय से राजनीतिक विवाद का विषय रहा है। इसलिए विरोधी दलों की प्रतिक्रियाओं को हम अस्वाभाविक नहीं मान सकते। पूछताछ के लिए पुलिस ने न्यायालय से अनुमति ली थी तो उसकी सुरक्षा का दायित्व पुलिस का था। विरोधी प्रश्न उठाएंगे ही। किंतु इसमें सुरक्षा चूक के साथ कई ऐसे महत्वपूर्ण पहलू निहित हैं जिन पर गहराई से विचार करके ही हम सही निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं।

किसी भी हत्या में चार पहलू होते हैं, हत्या का तरीका, हत्यारे, परिस्थितियां और मकसद। हत्या का तरीका देखिए तो तीनों हत्यारों के पास एक मीडिया संस्थान का परिचय पत्र था, एक टीवी चैनल के लोगो वाला माइक भी। जाहिर है, इसके पीछे ज्यादा चालाक दिमाग लगा और सारी व्यवस्था की गई। यह सब नहीं हुआ है। दो हत्यारों ने निकट से गोली चलाई जबकि तीसरा थोड़ी दूर से चला रहा था। अभी तक की जानकारी में उनका एक गोली भी व्यर्थ नहीं गया। यानी ये पूरी तरह प्रशिक्षित शूटर हैं। तीनों के अपराधिक रिकॉर्ड भी सामने आ गए हैं। हत्या में इस्तेमाल पिस्टल सामान्य नहीं है। यह तुर्कीये से आता है और भारत में प्रतिबंधित है। इसकी कीमत भी काफी है। हत्यारों को पता था कि अतीक अहमद और अशरफ को कानूनी प्रक्रिया के तहत मेडिकल जांच के लिए अरविंद हॉस्पिटल लाया जाना है। इसका मतलब है कि रेकी की गई। उस जगह का पूरा मुआयना हुआ और फिर उन्होंने हमले के लिए अपने स्थान तय किए होंगे। इन निष्कर्ष यही है कि यह सुनियोजित गोलीबारी है जिसके पीछे काफी गहरा विचार विमर्श हुआ होगा। निश्चय ही इसमें और भी कई लोगों की भूमिका होगी। यह कहानी आसानी से गले नहीं उतरती कि तीनों हत्यारों ने जेल में विचार किया कि हम छोटे-छोटे अपराध करके आपराधिक दुनिया का बड़ा नाम नहीं हो सकते और इसलिए उन्होंने अतीक की हत्या करने का निश्चय किया। यद्यपि अपराध की दुनिया में बड़ी हस्ती या बड़े माफिया की हत्या कर रोमांचित होने और ग्लैमर प्राप्त करने की कहानी हमारे सामने हैं । परंतु यह मामला इतना आसान नहीं लगता । इस हत्या में काफी संसाधनों का ब्याह हुआ है। हत्यारों की किसी तरह का निजी दुश्मनी का कोई पहलू सामने नहीं है। इन तीनों अपराधियों की थोड़ी कहानी जानने के बाद ऐसा लगता ही नहीं कि पति की हत्या करने के पीछे इनका कोई स्वीकार्य मकसद हो सकता है। तो हत्या करने के पीछे इरादा क्या हो सकता है?

यहीं पर परिस्थितियों और मकसद जैसे पहलुओं पर गौर करना होगा। अतीक अहमद लंबे समय से अपराध की दुनिया में था तो वह केवल अपने लिए ही ऐसा नहीं करता था। वह अपराधी नेता था।  पांच बार विधायक और एक बार सांसद बना। राजनीति के अपराधीकरण के दौर में नेता, राजनीतिक पार्टियां किस तरह चुनाव जीतने के लिए इनका उपयोग करती थी यह जाना हुआ तथ्य है। स्पष्ट है कि उसने अनेक लोगों के लिए अपराध किया होगा जिनमें राजनीति ,प्रशासन, व्यापार आदि सभी क्षेत्र के सम्मानित लोग भी शामिल होंगे। अतीक जिस तरह पुलिस के सामने आसानी से सब कुछ बता रहा था निश्चय ही अनेक ऐसे लोगों की असलियत सामने आ जाती। संभव है इनमें से कुछ लोग हत्या के पीछे होंगे ताकि उनका राज राज बना रहे। यह भी ध्यान रखने की बात है कि अतीक पर एक सौ मुकदमे दर्ज है। इसके अलावा भी उनकी उसके सैकड़ों अपराध होंगे। उसकी दुश्मनी कितने लोगों से होगी, कितने उससे प्रतिशोध लेने के लिए अंदर ही अंदर तैयारी कर रहे होंगे इसका अनुमान लगा सकते हैं। यह भी संभव है कि भाजपा और योगी आदित्यनाथ सरकार की छवि खराब करने के लिए भी उसकी हत्या हुई हो। आखिर योगी आदित्यनाथ की मुख्य यूएसपी कानून और व्यवस्था है तथा 2022 विधानसभा चुनाव में उनकी जीत के पीछे यह सबसे बड़ा तत्व था। अतीक अहमद के बारे में उन्होंने विधानसभा में आक्रामक भाव में कहा था कि इस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे। उत्तर प्रदेश में वैसे भी सांप्रदायिक हिंसा और दंगा पैदा करने के अनेक षड्यंत्र समय-समय पर सामने आए हैं। तो हम इसके पीछे षड्यंत्र के कारणों को नकार नहीं सकते। योगी सरकार द्वारा कानून और व्यवस्था के दावे की धज्जियां उड़ाने का इरादा हो सकता है। आखिर विरोधी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था खत्म हो चुकी है और मुख्यमंत्री को त्यागपत्र दे देना चाहिए। हत्या के बाद हत्यारों ने जय श्रीराम का नारा लगाया। संभव है इसमें हिंदू मुस्लिम संघर्ष कराने की भी सोच हो। हम किसी भी पहलू को खारिज नहीं कर सकते।

इस समय सरकार और पुलिस कम से कम अतीक अहमद को इस तरह मारना नहीं चाहिए। आतीक की सारी हेकड़ी खत्म थी। उसने कहा था कि हम मिट्टी में मिल चुके हैं और अब तो रगड़ा जा रहा है। उसकी और उससे जुड़े लोगों की हजारों करोड़ की अवैध संपत्ति बुलडोजर द्वारा ध्वस्त हो चुकी है, कुछ जब्त किए जा चुके हैं। उसके पूरे गिरोह को खत्म करने में भी काफी हद तक सफलता मिली है। साबरमती से प्रयागराज लाकर उसके अंदर हर क्षण डर पैदा कर उसे अंदर से कमजोर किया जा चुका है। वह लगातार अपने अपराध के बारे में पुलिस को जानकारियां देने लगा था। कहां से हथियार आता है , कहां से पैसे आते हैं ,कहां-कहां संपर्क है इस दिशा में वह काफी कुछ बता चुका था। यह भी समाचार आया कि उसने पाकिस्तान के अपने संबंधों के बारे में भी पुलिस को बताया। इस नाते सरकार के लिए उसका जिंदा रहना आवश्यक था। सबसे ज्यादा समय सपा में बिताया। अगर वह अपराध के पीछे उस पार्टी के कुछ नेताओं का नाम बताता तो यह भाजपा के लिए मुंह मांगे वरदान की तरह होता। इसमें उसे मारने का कोई कारण नहीं है। जाहिर है, सुरक्षा चूक का लाभ उठाते हुए इसे अंजाम दिया गया है।

इस दृष्टि से देखें तो यह पुलिस प्रशासन के लिए क्षति है। वह एक-एक क्षण जेल में काटता या न्यायालय फांसी की सजा देती तो उसका संदेश कुछ और होता। सपा विपक्ष होने के नाते सरकार को घेरे ,उसकी आलोचना करे, किंतु उसे भी इस बात का जवाब देना होगा कि उसके अपराध के बारे में पूरी जानकारी होते हुए सपा ने उसे पार्टी का विधायक और सांसद क्यों बनाया? आज अगर उसकी हत्या हुई है तो इसी कारण क्योंकि वह अपराधी था। उत्तर प्रदेश में अपराध तंत्र के लिए आवश्यक आधारभूत संरचना इतनी सशक्त रही है कि किसी बड़े अपराधी का आसानी से अंत करना संभव नहीं था। जिन पार्टियों के शासनकाल में अपराधियों को अपराध करने के सारे आधारभूत ढांचे उपलब्ध हुए क्या उन्हें हम अतीक अहमद के अपराध और राजनीति की दुनिया में इतने ऊपर उठने तथा इस पर ने तो तक आने की क्या की जिम्मेवारी से पूरी तरह मुक्त कर देंगे? अपराध का आधारभूत ढांचा है तभी तो ये तीन अपराधी आकर उसे मारने में सफल हो गए। पहले इंडियन नेशनल लोकदल और बाद में सपा ने उसे विधायक क्यों बनाया? उसकी सारी योग्यता विशेषज्ञता अपराधी होने की ही थी। पार्टी और सत्ता द्वारा उसे संरक्षण मिलने के कारण न केवल उसका अपना गैंग फैला बल्कि दूसरे विरोधी गैंग भी उत्तर प्रदेश में पैदा होते गए। उनकी जेल में जाने के साथ खत्म हो गया हो ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। आखिर पंजाब में सिद्धूमूसेवाला की हत्या भी नए युवाओं ने की और लॉरेंस बिश्नोई जेल से  ही अंजाम दिलात रहा। इसलिए विपक्ष पुलिस सुरक्षा व्यवस्था में हत्या होने की आलोचना करें पर वह स्वयं भी कटघरे में खड़ा है।

अवधेश कुमार, ई- 30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -1100 92, मोबाइल -98110 27208

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