अवधेश कुमार
वरुण और प्रियंका बाड्रा के बीच का संवाद या वाद प्रतिवाद इस चुनाव का एक अत्यंत ही रोचक और विचारणीय अध्याय बन रहा है। नेहरु इदिरा वंश के इन दो परिवारों के युवा सदस्यों के बीच चूंकि ऐसा पहली बार हो रहा है, इसलिए इसे लेकर लोगांे की धारणाएं अलग अलग बन रहीं हैं। मेनका गांधी ने इसके पूर्व सोनिया गांधी की आलोचनाएं की हैं, लेकिन दूसरी ओर से इसका कभी प्रत्युत्तर नहीं आया। वरुण गांधी ने तो कभी अपनी चाची या भाई बहनों के खिलाफ बोला ही नहीं। तो फिर प्रियंका की ओर से ऐसी आलोचना और आक्रामकता क्यों? अगर वरुण ने राहुल या प्रियंका के बारे में कुछ आलोचनात्मक बयान दिया होता तो इसे स्वाभाविक माना जाता। ऐसा हुआ नहीं है। बल्कि प्रियंका की आलोचना के बाद भी वरुण ने यही कहा कि मैंने कभी सीमा नहीं लांघी, लेकिन मेरी शालीनता को मेरी कमजोरी न समझी जाए। यानी यह एक चेतावनी थी कि अगर आपने इस तरह मेरी तीखी आलोचना की तो मुझे भी ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। देखना होगा आगे प्रियंका और राहुल वरुण को लेकर क्या रुख अपनाते हैं, पर इसके कारणों की तो पड़ताल करनी होगी। आखिर क्यों इसकी शुरुआत हुई? साथ ही इस प्रश्न पर भी विचार करना होगा कि आखिर यह विवाद कहां तक जा सकता है?
प्रियंका ने इसे विचारधारा की लड़ाई का नाम दिया है। उनके अनसार वरुण जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं वह देश को विभाजित करने वाली है जबकि उनके परिवार की विचारधारा प्रेम और एकता की रही है। उन्होंने कहा कि मेरे पिता ने इसके लिए अपनी जान दे दी। सामान्य तौर पर ऐसा लग सकता है कि चूंकि राहुल, सोनिया और पूरी कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ संघर्ष को विचारधारा का नाम दिया है, इसलिए प्रियंका का बयान उसी क्रम का अंग हो सकता है। सोनिया एवं राहुल दोनों कह रहे हैं कि हमारी कांग्रेस की विरासत लोगों को जोड़ने वाली है, जबकि भाजपा की विचारधारा समाज के बीच विभाजन पैदा करने वाली है। देश इसे स्वीकार करे या नहीं, पर कांग्रेस ने इस चुनाव को इसी दिशा में मोड़ने की रणनीति अपनाई है। इसलिए प्रियंका ने यदि वरुण की आलोचना की तो एक भाजपा के उम्मीदवार के नाते। ध्यान रखिए इस बयान के पूर्व उनके भाषण का जो वीडियो वायरल हुआ उसमें वे कह रहीं हैं कि यहां से जो चुनाव लड़ रहे हैं वे मेरे भाई हैं। पर वे रास्ता भटक गए हैं। जब कोई रास्ता भटकता है तो बड़े लोग उसे सही रास्ते पर लाते है। इसलिए आपलोग उन्हें सही रास्ते पर लाइए। यानी उनको पराजित कर सबक सिखाइए।
इस परिप्रेक्ष्य में यह कहा जा सकता है कि प्रियंका ने पहले से ही वरुण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसमें वे पीछे तो जाने वाली नहीं हैं। इसमें जो सबसे कठोर शब्द प्रयोग किया प्रियंका ने वह था विश्वासघात का। उनके शब्दोें में वरुण ने ऐसा करके परिवार के साथ विश्वासघात किया। दूसरे शब्दों में उस परिवार की परंपरा कांग्रेस की है, जबकि वरुण विरोधी पक्ष में है। वरुण भाजपा की राजनीति मंे आज से तो नहीं है। पिछला लोकसभा चुनाव उनने भाजपा के टिकट पर जीता। वे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं। प्रियंका को यदि यह नामंजूर था तो वो पहले भी आलोचना कर सकतीं थीं। ध्यान रखने की बात है कि पिछले आम चुनाव में वरुण के एक बयान ने उन्हें जेल तक पहंुचा दिया था। बावजूद इसके प्रियंका या राहुल ने उसकी आलोचना नहीं की। तो फिर अब क्यों? क्या कोई अज्ञात भय पैदा हो गया है? क्या इसका कारण मात्र इतना है कि वे इस बार परिवार की विरासत माने जाने वाली सीटों में से एक सुल्तानपुर से उतर गए हैं? यह संभव है, क्योंकि रायबरेली, अमेठी एवं सुल्तानपुर को ये अपना स्थान मानते हैं। कोई और वहां से उम्मीदवार होता तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। वरुण उस परिवार के सदस्य हैं। इससे गुणात्मक अंतर आ जताा है।
ध्यान रखने की बात है कि अमेठी से पहले संजय गांधी ने ही चुनाव लड़ा एवं जीता था। विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद राजीव गांधी जब राजनीति में आए तो वहां से सांसद बने। 1984 में मेनका गांधी ने उनके खिलाफ चुनाव भी लड़ा पर बुरी तरह हार गई। वरुण संजय गांधी के बेटे हैं। जिस तरह राहुल, प्रियंका और सोनिया विरासत का दावा करतीं हैं, उसी तरह वे भी कर सकते हैं। वरुण ने अभी तक यही कहा है कि वे अपनी ताई और भाई के खिलाफ चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। लेकिन सुल्तानपुर से खड़ा होेना एक प्रकार से उनको चुनौती देना ही है। संभव है राहुल, प्रियंका एवं सोनिया के मन में यह आशंका पैठ गई हो कि अगर कल वह अमेठी आकर कहें कि यह तो हमारे पिता का क्षेत्र रहा है, और अब उनके पुत्र के रुप में मैं आ गया हूं तो उसका प्रभाव हो सकता है। इस प्रकार की भयग्रंथि से इन्कार करना कठिन है। आखिर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस रायबरेली की सारी सीटें हार गईं थी और अमेठी में भी उसे केवल दो सीटों पर बढ़त मिली थी। वरुण जब तक पिलीभीत में रहे, इस परिवार को भय का कोई कारण नहीं था। लेकिन सुल्तानपुर आने से पूरी स्थिति बदल रही है। इसलिए प्रियंका ने मोर्चा खोला है। वे इसके द्वारा वहां की जनता को यह समझाने की कोशिश कर रहीं हैं कि आप परिवार के सदस्य होने के झांसे में न आएं। उन्हें लगता है कि अगर वे साधारण शब्दों में उनका विरोध करतीं तो इसका उतना असर नहीं होता। उनकी दृष्टि में इन तीनों क्षेत्रों के लोग परिवार को वोट देते हैं और चूंकि वरुण परिवार से ही हैं, इसलिए लोगों का झुकाव उनकी ओर हो सकता है। इसलिए उन्होंने पहले सबक देने यानी हराने की अपील की और बाद में परिवार का विश्वासघाती जैसा कठोर शब्द प्रयोग किया ताकि संदेश बिल्कुल साफ हो जाए।
प्रियंका अभी तक सार्वजनिक तौर पर उस परिवार में सबसे कम बोलने वालीं रहीं हैं। इसलिए उनकी बातों पर ज्यादा गौर किया जाता है और उसे सुनने में लोग रुचि भी लेते हैं। पर लोग उनकी बात मान लेंगे इसमें संदेह है। आखिर यह प्रश्न तो उठेगा कि परिवार का एक अंग, जिसका कांग्रेस पर एकच्छत्र राज है वह एकता का वाहक हो गया और उसी परिवार का दूसरा भाग एकता को तोड़ने का! विवेकशील लोग कांग्रेस पार्टी को उसी तरह नहीं देखते जैसे राहुल, प्रियंका, और सोनिया गांधी या कांग्रेस के नेता देखते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश में। ऐसा होता तो वहां कांग्रेस के पक्ष में हवा दिखाई देती जो है नहीं। फिर लोग यह भी तो देखेंगे कि इतने तीखे हमले के बादवजूद वरुण ने कितने संतुलन और सहजता से उत्तर दिया। अपने प्रत्युत्तर में उसने कितनी शालीनता दिखाई। अगर इस आधार पर मूल्यांकन होगा तो पलड़ा वरुण का भारी हो जाएगा।
बहरहाल, इस प्रसंग से नेहरु , इंदिरा वंश की इस पीढ़ी के बीच खाई खड़ी होेने का संकेत मिला है। अभी तक यह माना जाता था कि मेनका एवं सोनिया की तरह इन भाई बहनों में कटुता नहीं है। इनके बीच संवाद भी होता है, पर प्रियंका के इन दोनों बयानों से दूसरी ध्वनि निकली है। राहुल एवं प्रियंका यदि इन तीनों सीटों को अपने लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना देते हैं तो फिर आगे और हमले होंगे और संभव है वरुण भी मजबूर होकर प्रति हमला करें। हालांकि वे कह रहे हैं कि मैंने एक बार बोल दिया कि उनकी खिलाफत नहीं करनी है तो उस पर कायम रहूंगा। यह राजनीति है और यहां चुनाव एक युद्ध की तरह हो चुका है जिसमें विजय को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाता। हालांकि अगर वरुण मुंह खोलते तो हैं तो फिर कई बातें सामने आएंगी। एक छोटे बच्चे को मां के साथ किस तरह घर से निकाला गया। उसके बाद कितनी परेशानियां उन्हें हुईं....इसके पीछे कौन थे.....। अगर ऐसा होता है फिर इससे परिवार की किरकिरी होगी, सोनिया गांधी की छवि को नुकसान होगा। मेनका गांधी का आरोप है कि सोनिया ने उनके खिलाफ साजिश रचकर परिवार से बाहर कराया। आखिर सोनिया, प्रियंका एवं राहुल कहां तक सफाई देंगे। हमें अभी इस प्रकरण के अगले अध्याय की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर काॅम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208