शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

विपक्ष भाजपा को दबाव में लाने योग्य मुद्दा नहीं ढूंढ सका

अवधेश कुमार

सामान्य तौर पर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से विधानसभा चुनाव का उम्मीदवार बनाया जाना स्वाभाविक घटना होनी चाहिए। गोरक्ष पीठाधीश्वर के प्रमुख होने के साथ वहां से वे 1998 से 5 बार लगातार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। वह उनका मुख्य कार्यक्षेत्र रहा है। लेकिन विपक्षी दलों ने उसे भी एक बड़ा मुद्दा बना दिया है। पहले सपा के प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनके उम्मीदवारी पर प्रश्न उठाया एवं उपहास उड़ाया। उसके बाद से उनकी पूरी पार्टी लगातार यही कर रही है। कांग्रेस के भी कई नेता ऐसे बयान दे रहे हैं मानो गोरखपुर से उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने अपनी हार मान ली हो। प्रश्न है कि वो कहां से लड़ते तो माना जाता कि भाजपा ने सही फैसला किया? यह बात सही है कि उनके अयोध्या से लड़ने की चर्चा थी। कुछ लोगों ने उनके मथुरा से भी उम्मीदवार बनाए जाने की मांग की। अयोध्या भाजपा और पूरे संघ परिवार के लिए धार्मिक- आध्यात्मिक -सांस्कृतिक पुनर्जागरण का महत्वपूर्ण प्रतीक है। श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के माहौल में यह कल्पना थी कि आदित्यनाथ वहां से उम्मीदवार बनेंगे तो उसका संदेश पूरे प्रदेश और देश में जाएगा। मथुरा से उनके उम्मीदवार बनाने की मांग के पीछे यही भाव था कि उस संघर्ष को ताकत मिलेगी एवं इस बात का संदेश जाएगा कि भाजपा प्रखर हिंदुत्व के अपने रास्ते पर कायम है। यह भी सच है कि अभी तक भाजपा की ओर से कभी नहीं कहा गया कि योगी आदित्यनाथ कहां से उम्मीदवार होंगे। गोरखपुर पर जब ऐसी प्रतिक्रिया है तो अयोध्या से उनकी उम्मीदवारी पर कैसी प्रतिक्रियाएं होती इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति पर दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि विरोधी योगी आदित्यनाथ की अयोध्या से उम्मीदवार बनाए जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे क्योंकि उसके बाद की प्रतिक्रियाएं उन्होंने तैयार कर रखी थी। कुछ प्रतिक्रियाएं पहले से आने लगी थी। वास्तव में उन्हें अयोध्या से उम्मीदवार बनाए जाने पर पहली प्रतिक्रिया यही होती कि भाजपा समझ गई है कि वह हारने वाली है इसलिए उसने हिंदुओं के ध्रुवीकरण के लिए योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से उम्मीदवार बनाया है। यह अवसर विपक्ष को नहीं मिल पाया।

सही है कि भाजपा के अंदर विमर्श चला था कि योगी आदित्यनाथ को कहां से उम्मीदवार बनाया जाए। चर्चा में अयोध्या भी शामिल था। लेकिन कभी उसका फैसला नहीं हुआ। भाजपा की रणनीति यह है कि वह चुनाव में विजय के प्रति आत्मविश्वास से भरी हुई पार्टी दिखे। वह ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकती जिससे लगे कि वह किसी तरह परेशान है या  अपने चुनावी भविष्य को लेकर चिंतित है। अयोध्या से उनके उम्मीदवार बनाए जाने का मतदाताओं पर क्या असर होता यह कहना कठिन है लेकिन इसका एक अर्थ निकाला जाता कि वह जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है इसीलिए हिंदुत्व का सबसे बड़ा कार्ड खेला है। ध्यान रखिए, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को भी प्रयागराज के सिराथू से उम्मीदवार बनाया गया है जो उनका मुख्य कार्यक्षेत्र रहा है। भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व की संसदीय राजनीति में सामान्यतः बड़े से बड़े नेता अपने मुख्य कार्यक्षेत्र या स्थापित चुनाव क्षेत्र से ही चुनाव लड़ते हैं। इसके अपवाद अवश्य रहे हैं। पर अपवाद और असामान्य स्थिति में ही सामने आया। वैसे भाजपा द्वारा जारी अभी तक के उम्मीदवारों की सूची देखें तो उसमें भी यही लगता है कि पार्टी बिल्कुल सहज सामान्य तरीके से चुनाव में उतर रही है। बहुत ज्यादा विधायकों के टिकट नहीं काटे गए जबकि आम धारणा यही थी कि उसके विधायकों के खिलाफ जनता के अंदर असंतोष है और भारी संख्या में उनके टिकट काटे जाएंगे। तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उम्मीदवारी को पूरे संदर्भों से मिलाकर देखना चाहिए। योगी और मौर्या दोनों के लिए क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मतलब यह हुआ कि उन्हें पूरे प्रदेश में चुनाव अभियान चलाने तथा रणनीति बनाने का पूरा अवसर उपलब्ध है। नई जगह से उनको अपने चुनाव की भी थोड़ी चिंता होती तथा कुछ न कुछ अतिरिक्त समय देना पड़ता। इस नाते भी भाजपा की दृष्टि से यह बिलकुल स्वाभाविक रणनीति है। यह भी न भूलिए कि गोरखपुर का चुनाव अंतिम चरण में है। इस तरह योगी आदित्यनाथ के पास प्रदेश की चुनाव कमान संभालने के लिए पूरा समय है।

इसके दूसरे पहलू भी हैं और यह विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने वाला है। लंबे समय से उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री विधानसभा से निर्वाचित होकर नहीं पहुंचा। योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्या को भी विधान परिषद से लाया गया था। वे चुनाव लड़ सकते थे लेकिन पार्टी ने यही निर्णय किया। इसके पहले अखिलेश यादव और मायावती दोनों विधान परिषद से ही निर्वाचित होकर मुख्यमंत्री बने रहे। तो भाजपा ने इससे यह संदेश दिया कि उसके मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों जनता के बीच से निर्वाचित होकर आएंगे। इस कारण विपक्ष के साथ समस्या हो गई कि वो क्या करें? बसपा ने साफ कर दिया है कि मायावती उम्मीदवार नहीं बनेंगी। सपा के अखिलेश यादव और कांग्रेस के प्रियंका वाड्रा के बारे में प्रश्न उठाया जा रहा था कि वो बताएं कि कहां से लड़ेंगे। सपा को आभास हो गया था कि अखिलेश यादव यदि चुनाव नहीं लड़ते तो भाजपा उनके विरुद्ध ज्यादा आक्रामक होगी। योगी की उम्मीदवारी तय होने के बाद अखिलेश यादव को ही मैनपुरी के सरल सीट से उम्मीदवार होने की घोषणा करनी पड़ी। या अभी उनका घरेलू क्षेत्रीय क्योंकि मुलायम सिंह ने पहला विधानसभा चुनाव वहीं से लड़ा था। यह पूरा क्षेत्र मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव का कार्य क्षेत्र रहा है। कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में ऐसा जनाधार नहीं है जो अब भाजपा को चुनौती दे सके। बावजूद प्रियंका वाड्रा के हाथ में चुनाव की कमान है तो उनसे भी भाजपा पूछेगी? भाजपा इसे मुद्दा बनाएगी इसमें कोई दो राय नहीं। अखिलेश यादव से भाजपा पूछ सकती है कि योगी के गोरखपुर से उम्मीदवार बनाने को आपने मुद्दा बनाया और आप भी तो अपने घर से ही चुनाव लड़ रहे है? उनकी आलोचना क्यों की? यदि वो किसी दूसरे क्षेत्र में जाते तो कहा जाता कि देखो अपने क्षेत्र में पराजय के भय से उन्होंने दूसरा क्षेत्र चुना है। कहने का तात्पर्य कि सपा, कांग्रेस या अन्य विरोधी भले गोरखपुर को लेकर कुछ भी बोले वे खुद इस घेरे आ गए हैं। यदि उन्होंने योगी की उम्मीदवारी को मुद्दा बनाने की गलत रणनीति नहीं अपनाई होती तो ऐसी नौबत नहीं आती। आप जानबूझकर मुद्दा देंगे तो आपको भी उस के घेरे में आना ही पड़ेगा।

इनसे परे इसका एक अन्य पहलू ज्यादा महत्वपूर्ण व गंभीर है। अभी तक के चुनाव अभियानों का गहराई से विश्लेषण करें तो निष्कर्ष आएगा कि विपक्ष चुनाव को प्रभावित करने की दृष्टि से कोई ऐसा बड़ा मुद्दा नहीं उठा पाया है जिसमें भाजपा घिरती हुई दिखे। गोरखपुर से मुख्यमंत्री के उम्मीदवार बनाए जाने को मुद्दा बनाने का अर्थ ही है कि आपके पास व्यापक सोच व दृष्टि का अभाव है। सच यही है कि विपक्ष अभी तक भाजपा के विरुद्ध केवल सामान्य मुद्दे उठा रहा है। मसलन, आर्थिक विकास नहीं हुआ, काशी उद्धार कर दिया उससे क्या भक्तों का पेट भर जाएगा ,विकास विज्ञापन में है जमीन पर नहीं है ,मुस्लिम विरोधी है, योगी अलोकप्रिय हैं ,उनको जनता घर भेजने वाली है आदि आदि। बसपा ने अपना चेहरा और चरित्र बदलने की कवायद में अपनी आक्रामक छवि को बदला है। लेकिन सपा और कांग्रेस बिल्कुल आक्रामक हैं। उनसे उम्मीद की जा सकती थी कि वो भाजपा के सरकारों एवं प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री आदि की गतिविधियों का गहराई से मूल्यांकन कर ऐसे मुद्दे सामने लाएंगे जिससे भाजपा घिरेगी। ऐसा न करने के कारण वह नरेंद्र मोदी सरकार, प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एवं भाजपा आरएसएस को लेकर वही सब बातें कर रहे हैं जो लंबे समय से किया जाता रहा है। वो ऐसी सामान्य बातें हैं जो पहले भी बेअसर रही हैं। इनसे जनता का बड़ा वर्ग प्रभावित होकर भाजपा विरोधी हो जाएगा और विपक्ष के समर्थन में मतदान करेगा ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती। इसे दुर्भाग्य ही मानना होगा कि अभी तक विपक्ष भाजपा के विरुद्ध उसे दबाव में लाने  तथा जनता को प्रभावित करने योग्य  मुद्दे नहीं ढूंढ सका।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल - 98110 27208

बुधवार, 19 जनवरी 2022

अस्सी बनाम बीस प्रतिशत

अवधेश कुमार 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा 80% बनाम 20% का बयान जिस सघन बहस,  विवाद और बवंडर का आधार बना है वह अस्वाभाविक नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और कुछ हद तक गृह मंत्री अमित शाह ऐसे नाम हैं, जिनके एक-एक शब्द का विशेष दृष्टिकोण और परिधि के तहत पोस्टमार्टम किया जाता है। उत्तर प्रदेश चुनाव के बीच उनके इस बयान का ऑपरेशन नहीं हो और शोर न मचे यह संभव ही नहीं था। योगी आदित्यनाथ जी ने एक टीवी चैनल के काॅन्क्लेव में मेरे ही प्रश्नों के उत्तर मेंयाह कहा था। हालांकि मैंने जब प्रश्न किया था तब भी मुझे उम्मीद थी कि उनके द्वारा दिया गया इसका उत्तर मीडिया की सुर्खियां के साथ बहस का विषय बनेगा। जिस समय वे उत्तर दे रहे थे उसी समय साफ हो गया था कि आने वाले समय में चुनाव तक ये शब्द गूंजते रहेंगे। प्रश्न है कि क्या वाकई इसके जो अर्थ लगाए जा रहे हैं वे सही हैं? क्या मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए उत्तर के पीछे वही निहितार्थ और भाव थे जो बताए जा रहे हैं?

आम निष्कर्ष यही निकाला गया है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के अंदर 19 - 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को ध्यान रखते हुए ही कहा कि 80 प्रतिशत और 20प्रतिशत  का चुनाव होगा। 80 प्रतिशत सकारात्मक दृष्टि से भाजपा का समर्थन देंगे और 20 नकारात्मक दृष्टि से पहले भी विरोध करते रहे हैं, आगे भी करेंगे लेकिन सरकार भाजपा की बनेगी। हम किसी के हृदय में घुसकर नहीं देख सकते क अंदर क्या चल रहा है। उनके मस्तिष्क में कौन सा विचार है और कहां निशाना है इसको जानने के लिए कोई यंत्र विकसित नहीं हुआ है। किसी के व्यक्तित्व ,पृष्ठभूमि, संदर्भ, परिस्थितियां आदि के आधार पर निष्कर्ष निकालते हैं। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि मेरे प्रश्न क्या थे। मैंने योगी जी से यह कहते हुए प्रश्न किया था कि मेरे प्रश्न तो एक ही है लेकिन इसके तीन अलग-अलग अंग हैं। मैंने पूछा था कि यदि आपको मतदाताओं से कहना हो कि किसी सूरत में विपक्ष का समर्थन नहीं करें तो आप क्या कहेंगे? इसके साथ मैंने कहा था कि सपा और बसपा जैसे मुख्य दलों के अलावा आपके दो बड़े विरोधी या विपक्ष मैंने उत्तर प्रदेश में महसूस किया है। पहला, उत्तर प्रदेश का चुनाव केवल एक प्रदेश का नहीं है, पूरे देश में और देश के बाहर विदेश में भी जो नरेंद्र मोदी, अमित शाह और आदित्यनाथ योगी को हराना चाहते हैं उनके लिए यह एक बड़ा एजेंडा है। वह उत्तर प्रदेश में ,देश में और विदेश में सक्रिय हैं। वे लोगों के बीच जा रहे हैं, कई तरीकों से अपनी बात कर रहे हैं और उनका प्रभाव भी है। तो उनसे निपटने या उनकी चुनौतियों का सामना करने के लिए आपकी तैयारी क्या है? दूसरा, मैं मुसलमानों के बीच जा रहा हूं। मुसलमान कह रहे हैं कि यह सरकार तो हिंदुओं की है। हमको तो इस सरकार को हराना है। तो ये जो दो बड़े विपक्ष या विरोधी हैं इनसे आप कैसे निपटेंगे ,इनकी चुनौतियों का कैसे सामना करेंगे? इसी का उन्होंने उत्तर दिया था।

उन्होंने कहा था कि सत्ता में हमने बिना भेदभाव के सबका विकास किया है  लेकिन किसी का तुष्टीकरण नहीं किया है। जैसा हम जानते हैं उत्तर प्रदेश के पूर्व शासन पर मुसलमानों के तुष्टीकरण यानी उनको विशेष प्राथमिकता और बढ़ावा देने का आरोप हो रहा है और यह प्रमाणित हुआ है। उन्होंने कहा कि कोई इसे हमारी कमजोरी मानता है तो माने। राष्ट्रवाद के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है। जो राष्ट्र विरोधी हैं हिन्दू विरोधी हैं वे हमें नहीं मानेंगे।  उनका इसी में कहना था कि मोदी जी और योगी जी अपने गर्दन काट कर तश्तरी में सजा देंगे तब भी वो वर्ग हम पर विश्वास नहीं करेगा। इसी के आगे उन्होंने 80% और 20% वाली बात की थी।

इसका हम अपने अनुसार अर्थ लगाने के लिए स्वतंत्र हैं। यह बात सही है कि मैंने स्पष्ट रुप से मुसलमान शब्द का प्रयोग करके ही प्रश्न पूछा था। इसलिए उनके उत्तर को इस संदर्भ में देखा जाना स्वभाविक है। हालांकि उनके पूरे वक्तव्य को साथ मिलाकर देखा जाए तो उनका निहितार्थ यही था कि हमने सरकार होने के नाते सबके लिए काम किया है, न किसी को विशेष बढ़ावा दिया न किसी की अनदेखी की और यही करेंगे लेकिन कुछ लोग हैं जो हम पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं। उन्होंने इसमें राष्ट्र विरोधी, हिन्दू विरोधी शब्द प्रयोग किया और राष्ट्रवाद के प्रति  प्रतिबद्धता जताई। हां ,उन्होंने विश्वास करने या समर्थन करने की अपील नहीं की। उन्होंने यही कहा कि वो शक्तियां मोदी जी और योगी जी को क्यों वोट देंगे? उनके कहने का एक अर्थ यही था कि जो सकारात्मक दृष्टि से विचार करेंगे वो हमको वोट देंगे लेकिन नकारात्मक सोच रखने वाले न पहले दिया है न आगे देंगे।

योगी आदित्यनाथ अपनी स्पष्टता और प्रखरता के लिए विख्यात है। वो गोल मटोल या छायावादी शैली में बात नहीं करते। उनकी सरकार में माफिया और अपराधियों के विरुद्ध जैसी कठोर कार्रवाई हुई है उसकी कल्पना शायद ही किसी को रही हो। इसमें मुसलमानों की संख्या बहुत है। लेकिन क्या जितने बड़े अपराधियों ,माफियाओं ,गैंगस्टरों के विरुद्ध कार्रवाई हुई है उनके बारे में पहले से पता नहीं था? इनमें कौन है जिनके बारे में कहा जाए कि वे निर्दोष थे और सरकार ने जानबूझकर मुसलमान होने के कारण बड़े-बड़े मुकदमा करके उन्हें जेल में डाल दिया? वे सारे साधनसंपन्न हैं और न्यायालय में जितना चाहे खर्च कर सकते हैं, कर भी रहे हैं। जाहिर है, पहले की सरकारें उन पर हाथ डालने से बचती थी। योगी आदित्यनाथ सरकार ने निर्भीकता से इनके विरुद्ध कार्रवाई की। इसे कोई मुस्लिम विरुद्ध कार्रवाई कहे तो उससे पूछा जा सकता है कि क्या अपराधियों के विरुद्ध भी यह देखकर पुलिस काम करेगी कि यह किस समुदाय के हैं? मेरे प्रश्न में यह शामिल भी था। उत्तर प्रदेश में घूमने वाला कोई भी स्वीकार करेगा कि मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद ,आजम खान आदि के विरुद्ध कार्रवाइयों को इस रूप में प्रचारित किया गया है कि सरकार मुसलमान होने के कारण इन्हें परेशान कर रही है। बहुत सारे मुसलमान मानते हैं कि ये बाहुबली व अपराधी हैं ,इन्होंने सत्ता और शक्ति का दुरुपयोग किया है लेकिन बहुत बड़े वर्ग के अंदर इसे लेकर विकृत धारणा है। मुसलमानों का बहुमत भाजपा को आज भी अपना विरोधी मानता है तथा उसे हराने के लिए रणनीतिक मतदान करने वाला है। आप किसी मुस्लिम आबादी में चले जाइए आपको भाजपा विरोधी वातावरण मिलेगा। इक्का-दुक्का लोग समुदाय का विरोध झेल कर भाजपा समर्थन की बात कर देते हैं । उत्तर प्रदेश में सरकार के सामाजिक आर्थिक विकास एवं कल्याण कार्यक्रमों का आंकड़ा बताता है कि मुसलमानों को उनके 19% आबादी के मुकाबले सभी योजनाओं का 34% अनुपात प्राप्त हुआ है।

नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ या ऐसे अनेक नेताओं की हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता है। किंतु सरकार के रूप में उन्होंने मुस्लिम विरोधी काम किया है इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। हां, जिन मुद्दों को पहले की सरकारें छूने से बचती थी इन्होंने उन पर खुलकर काम किया है। दूसरी सरकार होती तो अयोध्या का फैसला आने के बाद भी मंदिर निर्माण के दिशा में आगे बढ़ने से बचती। काशी विश्वनाथ को भव्य रूप देने का माद्दा कोई सरकार नहीं दिखाती। इलाहाबाद को प्रयागराज या फैजाबाद को अयोध्या करने से लेकर धर्म संस्कृति से जुड़े स्थलों के विकास, अनेक कब्जा किए गए मंदिरों को मुक्त कराकर निर्माण का कार्य या लव जिहाद के विरुद्ध धर्म परिवर्तन संबंधी कानून, गौ हत्या निषेध ,अवैध बूचड़खाना बंद करना, शिक्षा के क्षेत्र में आवश्यक परिवर्तन आदि कार्य कोई दूसरी सरकार नहीं करती। यह सब भारतीय सभ्यता संस्कृति और अध्यात्म के गौरव को पुनर्स्थापित करना है। इसे मुस्लिम विरोधी कहने से बड़ी विडंबना कुछ नहीं हो सकती। ये काम पहले की सरकारों को भी करना चाहिए था। मुस्लिम वोटों के भय से चाहते हुए भी किसी सरकार ने नहीं किया। अंतर यही है। इस सरकार ने मुस्लिम वोटों की चिंता नहीं की यह सच है। लेकिन यह भी सोचिए कि कोई समुदाय इस पर अडिग हो जाये कि हर हाल में भाजपा के विरोध में वोट देना है तो उसे क्या कहा जा सकता है? शांत होकर इस प्रश्न का उत्तर तलाशिये।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर,  पांडव नगर कंपलेक्स,  दिल्ली-110092, मोबाइल-9811027208

मंगलवार, 11 जनवरी 2022

पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा चूक पर बवंडर स्वाभाविक

अवधेश कुमार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब यात्रा में सुरक्षा चूक का मामला जिस तरह के राजनीतिक बवंडर का विषय बना है उसमें आश्चर्य का कोई कारण नहीं। ऐसी घटना कभी भी होती तो मामला विवाद का विषय बनता ही। इसके पहले शायद ही ऐसी कोई घटना हुई हो जब प्रधानमंत्री का काफिला अपने गंतव्य तक जाने की बजाए इस तरह वापस लौटा हो तथा उनके रैली रद्द होने के पीछे सुरक्षा चूक का कारण बताया गया हो। कॉन्ग्रेस द्वारा इसे राजनीति का विषय बनाना खतरनाक है। उसका कटाक्ष रपके हुए कहा है कि फिरोजपुर रैली में लोग आए नहीं इसलिए प्रधानमंत्री ने सुरक्षा चूक का बहाना बनाकर रद्द कर दिया। चुनाव के मौसम में किसी पार्टी पर इस तरह का आरोप लगाना स्वाभाविक है पर इसमें प्रधानमंत्री की सुरक्षा का गंभीर पहलू जुड़ा हुआ है ,इसलिए इसे राजनीति से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिए। भारत में महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर लगातार प्रश्न उठाए जाते हैं और आमजन की परेशानियों को देखते हुए समय-समय पर विरोध और विवाद का विषय भी बनता है। किंतु भारत में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों के सुरक्षा प्रोटोकॉल निर्धारित हैं और सरकारों को उसी अनुसार व्यवस्था करनी पड़ती है। प्रश्न है कि पंजाब प्रशासन ने प्रधानमंत्री के प्रोटोकॉल के अनुरूप सुरक्षा व्यवस्था की थी या नहीं? 

कांग्रेस का दावा है कि उसने फिरोजपुर रैली का ध्यान रखते हुए 10 हजार पुलिस को सुरक्षा व्यवस्था में लगाया था। अगर इतनी पुलिस प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगी थी तो वह दिखनी भी चाहिए। पंजाब पहुंचने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बठिंडा में एयरफोर्स स्टेशन भिसियाना में उतरना था और वे वहीं उतरे। वहां से उन्हें हेलीकॉप्टर द्वारा आकाश मार्ग से हुसैनीवाला जाना था जहां वे शहीद स्मारक में शहीद भगत सिंह सहित अन्य शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते। वहीं से उन्हें रैली के लिए हेलीकॉप्टर से ही फिरोजपुर पहुंचना था। मौसम खराब होने के कारण हेलीकॉप्टर का उड़ना जोखिम भरा था ।इसलिए कुछ देर प्रतीक्षा के बाद सड़क मार्ग से जाने का निर्णय लिया गया। प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व की यात्रा में हमेशा वैकल्पिक मार्ग की भी सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। जैसा गृह मंत्रालय ने बताया है सड़क मार्ग से जाने का निर्णय पंजाब के पुलिस महानिदेशक एवं गृह सचिव के कहने पर लिया गया। स्वभाविक है एसपीजी ने सुरक्षा व्यवस्था के बारे में निश्चित गारंटी मिलने पर ही इसे स्वीकार किया होगा। 

प्रधानमंत्री का काफिला गुजरने का अर्थ था कि पुलिस को रास्ता साफ करिना चाहिए था। फिरोजपुर जिले के मुदकी के पास नेशनल हाईवे के एक फ्लाईओवर पर जिस तरह से प्रधानमंत्री का काफिला रूका था उस पर सहसा विश्वास करना कठिन है। पंजाब पुलिस का कहना है कि सुबह रिहर्सल किया गया था और 9 बजे तक सब कुछ ठीक था लेकिन अचानक लोग विरोध के लिए आने लगे। यह संभव नहीं कि विरोध करने वाले अचानक आ गए होंगे। जितनी संख्या में लोग थे और जिस तरह रास्ता जाम किये हुए थे उससे लगता था कि उनकी तैयारी पहले की थी। जाहिर है , पुलिस को इसका पता नहीं चला तो यह बड़ी खुफिया और सुरक्षा चूक है। अगर पता रहते हुए नजरअंदाज किया गया तो यह अपराध है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कह रहे हैं कि हम अपने प्रधानमंत्री से बहुत प्यार करते हैं किंतु साथ-साथ उनका यह भी कहना है कि हम पंजाब के लोगों पर लाठियां - गोलियां नहीं चला सकते। इसके क्या मायने हैं?

पंजाब सुरक्षा की दृष्टि से कितना जोखिम भरा प्रदेश है यह बताने की आवश्यकता नहीं। 600 किलोमीटर सीमा क्षेत्र पूरी तरह संवेदनशील है। जहां प्रधानमंत्री का काफिला रुका वह भारत पाक सीमा से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। यहां लगातार टिफिन बम और विस्फोटक मिलते रहे हैं। पठानकोट और लुधियाना में हुए बम विस्फोटों के बाद पूरा पंजाब आतंकवादी खतरे को लेकर हाई अलर्ट पर है। पांच महीने में पंजाब में छह विस्फोट हो चुके । 8 अगस्त 2021 को अमृतसर के अजनाला में तेल टैंकर विस्फोट हुआ। 7 नवंबर 2021 को नवांशहर के सीआईए दफ्तर में धमाका हुआ । 5 सितंबर 2021 को फिरोजपुर में टिफिन बम धमाका हुआ। 21 नवंबर 2021 को पठानकोट में मिलिट्री कंटोनमेंट के द्वार पर धमाका हुआ। 15 सितंबर 2021 को जलालाबाद में मोटरसाइकिल में विस्फोट हुआ तो 23 दिसंबर 2021 को लुधियाना न्यायालय परिसर में बम विस्फोट हुआ। जलालाबाद में विस्फोट के आरोप में गिरफ्तार गुरमुख सिंह रोड इसी क्षेत्र में पड़ने वाले मोगा जिले के रोडे गांव का रहने वाला है। गुरमुख ने पूछताछ में स्वीकार किया था कि उसने टिफिन बम की डिलीवरी फिरोजपुर क्षेत्र में भी की है । ध्यान रखिए ,यह जरनैल सिंह भिंडरावाले का जन्म स्थान है। भिंडरावाले का भतीजा लखबीर सिंह रोड पाकिस्तान में रहकर खालीस्तान के लिए हिंसा फैलाने की साजिश में लगा है वह भी इसी क्षेत्र का है। इसलिए सुरक्षा में चूक चिंता का कारण होना चाहिए। इस प्रश्न का भी उत्तर मिलना चाहिए की विरोध करने वालों के प्रधानमंत्री के वहां सड़क मार्ग से गुजरने की जानकारी कैसे मिली? कार्यक्रम के अनुसार उन्हें हवाई मार्ग से जाना था और अंतिम समय में सड़क मार्ग का निर्णय हुआ तो इसकी जानकारी वहां तक कैसे पहुंची? पंजाब सरकार और कांग्रेसी से राजनीतिक विवाद का विषय बनाने की बजाय पूरी समीक्षा करें। आत्मसमीक्षा भी करे।

यह कहना कि रैली में लोग नहीं आने वाले थे इसलिए उन्होंने रद्द कर दिया आसानी से गले नहीं उतरता। प्रधानमंत्री को पहले से पता तो था नहीं कि यह हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर पाएगा, उन्हें सड़क मार्ग से जाना पड़ेगा, वहां विरोध पैदा होगा और उसके आधार पर वे रैली रद्द कर देंगे। फिरोजपुर में भाजपा पहले से मजबूत है । यहां विधानसभा में वह दो - तीन सीटें जीती रही है ।  फिरोजपुर शहरी, अबोहर एवं फाजिल्का में भाजपा बहुत बड़ी ताकत है । यही नहीं फिरोजपुर के गुरुहरसहाय से वर्तमान विधायक राणा गुरमीत सोढ़ी कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इस जिले के एक प्रभावी अकाली नेता गुरतेज सिंह घुड़ियाना भी भाजपा में जा चुके हैं। इन दोनों के समर्थक भी काफी संख्या में भाजपा में गए हैं। इसलिए केवल 700 संख्या फिरोजपुर रैली में आने से हास्यास्पद बात कुछ नहीं हो सकती। हां ,कई ऐसे वीडियो दिखाई दे रहे हैं जहां रैली में जा रहे भाजपा कार्यकर्ताओं के बसों को रोका जा रहा है, पुलिस की लाठियां चलते देखी गई ,कुछ जगह कृषि कानूनों के नाम पर विरोध भी देखा गया। तरनतारन के एक गांव सरहाली के पास करीब दो दर्जन बसों का काफिला रोका गया। यहां कृषि कानून के नाम पर रोकने वाले एवं भाजपा कार्यकर्ताओं में बहस होती दिख रही है। पुलिस ढंग से कार्रवाई करती नहीं दिख रही है। स्वयं पुलिस द्वारा भी कई जगह रैलियों में जाते लोगों को यह कह कर रोकते देखा गया कि आगे किसान विरोध कर रहे हैं मत जाओ। कई जगह पुलिस ने इन पर लाठीचार्ज भी किया। यह बताता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए रैली में जाने के रास्ते को सुगम बनाने की कोई कोशिश नहीं थी। कैप्टन अमरिंदर सिंह के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस वहां ज्यादा आक्रामक है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी तथा कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को शांति से विचार करना चाहिए कि क्या वह टकराव की राजनीति से चुनाव में उतरना चाहती है? इस तरह की राजनीति पंजाब के लिए ज्यादा खतरनाक होगी। 

कृषि कानून के विरोध करने वाले संगठनों और नेताओं को भी जवाब देना होगा कि आखिर अब उनके पास भाजपा के विरुद्ध आक्रामक होकर मोर्चाबंदी करने के लिए कौन सा मुद्दा है? बिजली शुल्क से लेकर पराली तक का मामला भी सरकार हल कर चुकी है। इससे इस आरोप की पुष्टि होती है कि कृषि कानून विरोध के नाम पर आंदोलन में ऐसे तत्व शामिल थे जिनका इरादा कुछ और था। ये तत्व किसी न किसी तरह गलतफहमी फैलाकर टकराव की स्थिति पैदा करना चाहते हैं। किसी भी तर्क की कसौटी पर प्रधानमंत्री के रास्ते को आक्रामक तरीके से बाधित करने का कोई कारण नजर नहीं आता। उन संगठनों के द्वारा भाजपा के लोगों को रैली में जाने से रोकने का क्या मतलब है? आम राजनीति में राजनीतिक दलों के बीच भी इस तरह का व्यवहार मान्य नहीं है। पंजाब में इस तरह टकराव की स्थिति पैदा करने वालों के पहचान जरूरी है।

अवधेश कुमार, ई 30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स ,दिल्ली-110092,मोबाइल-9811027208



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