शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

ताइवानी प्रतिनिधिमंडल के दौरे पर चीन का गुस्सा

 

अवधेश कुमार

ताइवान के एक प्रतिनिधिमंडल के भारत दौरे पर जिस तरह की तीखी प्रतिक्रिया चीन से आ रही है वह यकीनन दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन अनपेक्षित नहीं है। हालांकि भारत की ओर से साफ कह दिया गया है कि चीन को ताइवान के प्रतिनिनिधि दल के दौरे के राजनीतिक मायने नहीं निकालने चाहिए। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने स्पष्ट किया है कि यह गैर राजनीतिक दौरा था। वास्तव में ताइवान के अकादमिक क्षेत्र के कुछ नामचीन तथा करोबारियों के साथ कुछ सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भारत आया था। ऐसे समूह कई कारणों से दौरे करते रहते हैं। इनका कारण धार्मिक हो सकता है, अकादमिक आदान-प्रदान हो सकता है, पर्यटन हो सकता है..व्यापारिक हो सकता है.। ऐसे दौरों पर भी चीन यदि आपत्ति प्रकट करता है तो उसे क्या कहा जाए। विकास स्वरूप ने ठीक ही कहा कि मुझे लगता है कि वो चीन भी जाया करते हैं। इसमें कुछ भी नया नहीं है। सच यह है कि  पहले भी ताइवान के दल भारत की यात्रा पर आते रहे हैं। वे इस तरह की यात्रा पर चीन भी जाते हैं। लेकिन चीन हमेशा ताइवान को लेकर सशंकित रहता है और ऐसे कड़े बयान देता है जिससे कोई देश उसे मान्यता देने या उसकी आजादी को स्वीकारने की घोषणा न करे।

ताइवानी प्रतिनिधिमंडल के भारत दौरे पर चीन की प्रतिक्रियाओं को देखिए और निष्कर्ष निकालिए कि वह इससे कितना परेशान है। सबसे पहले बीजिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि भारत ताइपे से जुड़े मुद्दों में समझदारी बरते ताकि चीन-भारत रिश्ते बेहतर रखे जा सकें। गेंग ने कहा कि जिन लोगों ने भारत का दौरा किया वे ताइवान के कथित जनप्रतिनिधि हैं और बीजिंग ताइवान के किसी भी उस देश से किसी भी तरह के आधिकारिक संपर्कों का विरोध करता है, जिन देशों के साथ चीन के कूटनीतिक रिश्ते हैं। हमें उम्मीद है कि भारत हमारी वन चाइना पॉलिसी यानी एक चीन नीति का सम्मान करेगा। हम हमेशा से उन देशों का विरोध जताता रहे हैं, जो एक ही वक्त में चीन और ताइवान के साथ संबंध रख रहे हैं। देखा जाए तो इस बयान में आक्रामकता है, फिर भी इसे संयमित कहा जाएगा। लेकिन चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने इस पर विस्तार से लिखा। उसके लिखा कि भारत ताइवानी कार्ड खेलना बंद करे। इस मुद्दे को छेड़ना आग से खेलने जैसा होगा, जिसके गंभीर नतीजे होंगे। यह सीेधे-सीधे धमकी थी। अखबार में कहा गया है कि ताइवान भारत में स्टील, दूरसंचार और सूचना तकनीक क्षेत्र में निवेश कर मोदी के मेक इन इंडिया अभियान को मजबूत कर रहा है। ग्लोबल टाइम्स ने यह भी लिखा कि भारत-ताइवान के बीच उच्च स्तर की बातचीत हमेशा से नहीं रही। फिर भारत ने ताइवान के प्रतिनिधिमंडल को क्यों निमंत्रित किया? ग्लोबल टाइम्स एक जगह यह लिखता है कि...कुछ भारतीय रणनीतिकारों ने मोदी सरकार को ताइवान कार्ड खेलने की सलाह दी है ताकि एक चीन नीति के प्रति प्रतिबद्धता के बदले चीन भी एक भारत नीति पर चले। एक चीन नीति का अर्थ है कि चीन एक देश है और ताइवान उसका एक राज्य है। ध्यान रखिए जिसे हम चीन कहते है उसका नाम पीपुल्स पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है तो ताइवान भी अपने को रिपब्लिक ऑफ चाइना कहता है। यानी दोनों अपने को ची नही मानते हैं। एक चीन नीति का चीन की नजर मंे यह भी अर्थ है कि दुनिया के जो देश पीपुल्स रिपब्लिक से सबंध रखेंगे उन्हें रिपब्लिक से संबंध खत्म करने होंगे। 

कहने की आवश्यकता नहीं कि चीन इस दौरे को लेकर तथा भारत के साथ ताइवान के संभावित रिश्ते को ध्यान में रखकर आगबबूला है। वह इस तरह दबाव कायम करना चाहता है कि भारत ताइवान के साथ रिश्ते को आगे न बढ़ाए। इस लेख में तो यह भी कहा गया है भारत लंबे समय से चीन से जुड़े ताइवान मुद्दे, दक्षिण चीन सागर और दलाई लामा के मसले को हवा देता रहा है। भारत का ताइवान कार्ड खेलने का उद्देश्य चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा को घेरना है। हाल के वर्षों में गलियारा के काम में काफी तेजी आई है। लेकिन भारत को चीन की तरक्की देखकर चिंता सता रही है। हम बताना चाहते हैं कि वन बेल्ट-वन रोड की यह परियोजना भारत समेत क्षेत्र के सभी देशों को फायदा पहुंचाएगा। चीन की यह प्रतिक्रिया केवल भारत के साथ नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले दिसंबर में ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन से फोन पर बात की थी, जिस पर चीन ने एतराज जताया था। चीन को यह डर लग रहा है कि है कि कहीं ट्रम्प एक चीन की नीति पर अमेरिका के रुख में कोई परिवर्तन न कर दें। चीन ने उस समय ट्रम्प को चेतावनी दी थी कि वह वन चाइना पॉलिसी यानी एक चीन नीति पर अमेरिका के रुख को बदलने की कोशिश न करें। हालांकि, ट्रम्प ने पिछले हफ्ते चीन की वन चाइना पॉलिसी को स्वीकारने की बात की है।

वास्तव में ताइवान चीन के गले की हड्डी है। ताइवान के लोग लगातार अपने यहां स्वतंत्र चुनाव से सरकार का गठन कर रहे हैं और वे स्वयं को आजाद देश ही नहीं मानते, कुछ पार्टियां वहां ऐसी हैं जो मानती हैं कि चीन का उन पर नहीं उनका दावा पूरे चीन पर बनता है। यह बात सच है कि ताइवान का मामला अभी अंतरराष्ट्रीय पटल अनिर्णित है। एक समय चीन के में जरुर उसे संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता दी गई, लेकिन बाद मंें उसकी जगह चीन को लिया गया एवं तबसे उसके बारे मंे कोई निर्णय नहीं हुआ। किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि ताइवान दुनिया में अलग-थलग पड़ा देश है। उसके आर्थिक ही नहीं रक्षा संबंध भी अनेक देशों से है। भारत ने चीन की कम्युनिस्ट सरकार यानी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को 1950 में मान्यता दिया एवं ताइवान के साथ उसके संबंध नहीं रहे। लेकिन 1995 में नरसिंह राव सरकार ने बदली अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के मद्देनजर इंडिया ताइपाई एसोसिएशन का गठन कर ताइवान के साथ एक अनौपचारिक संबंध बनाया। दोनों देशों के बीच दोहरे कराधान को समाप्त करने सहित कई समझौते हुए हैं। 2014 में भारत और ताइवान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 5.9 अरब डॉलर का था। ताइवानी कंपनी फॉक्सकौन्न, जो कि विश्व की बड़ी हार्डवेयर निर्माता कंपनियों में शुमार है, भारत में 5 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है। ताइवान की कई कंपनियां इसी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया योजना मंे निवेश करने आ रहीं हैं। दोनों देशों के बीच विज्ञान, तकनीक और संस्कृति के क्षेत्र में भी सहयोग कर रहे हैं। ताइवान अनेक चीनी पााठ्यक्रमों के लिए शिक्षक भेज रहा है।

चीन के कहने भर से तो हम सारे संबंध खत्म नहीं कर सकते। ताइवान वैसे भी हार्डवेयर में दुनिया का अग्रणी देश है और भारत सॉफ्टवेयर में। इस नाते दोनों के व्यापारिक संबंध एक दूसरे के हित में होंगे। स्वयं चीन ने ताइवान के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंध कायम किए हैं। इसलिए उसे किसी प्रतिनिनिधिमंडल के दौरे पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया करने से बचना चाहिए था। अभी तक भारत ने राजनीतिक रुप से ताइवान के साथ संबंध नहीं बनाया है। हालांकि जिस ढंग से चीन पाक अधिकृत कश्मीर में कारगुजारी कर रहा है उसे याद करें तो फिर निष्कर्ष कुछ और ही आएगा। तब भी भारत की नीति चीन के साथ टकराव मोल न लेने की है। ताइवान की स्थिति का फैसला पूरे विश्व समुदाय को करना है। किंतु चीन के भय से ताइवान से किसी प्रकार का संबंध बनाया ही नहीं जाए,उसे अलग-थलग रखा जाए, उसकी विशेषज्ञता का लाभ विश्व और भारत का मिले ही नहीं यह नहीं हो सकता। तइवान की वर्तमान राष्ट्रपति श्रीमती साइ इंग वेन ने जनवरी 2016 मंे अपनी विजय के साथ ही कहा कि भारत के साथ संबंध उनकी प्राथमिकता में है। भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए। इससे चीन को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

 

 

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