गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

केरला भवन विवाद का कोई औचित्य नहीं है

 

अवधेश कुमार

केरला भवन का मामला इतने बड़े विवाद का कारण बन जाएगा यह कल्पना किसी विवेकशील व्यक्ति ने नहीं की होगी। वास्तव में मामला ऐसा था ही नहीं जिस पर इतना बड़ा बावेला विरोधी पार्टियों की ओर से खड़ा किया जाना चाहिए। मामला इतना ही था कि एक व्यक्ति या संगठन को यह सूचना मिलती है कि केरला भवन के कैंटिन में बीफ बेचा जा रहा है, उसने पुलिस को सूचना दी और पुलिस वहां पहुंची। पुलिस ने केरला भवन के न किसी कर्मचारी को पकड़ा, न कैंटिन को बंद कराया। वह वापस आ गई। राजनीतिक और कानूनी तौर पर बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए थी। लेकिन यह भारत है और भारत की राजनीति की जो दशा है उसमेें जो मुद्दा नहीं होना चाहिए वही मुद्दा बनता है और जिसे मुद्दा बनना चाहिए वह हाशिए में पड़ा रहता है। केरल के सांसदों ने मार्च निकाल दिया। केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को इसके खिलाफ पत्र लिख दिया। ऐसा माहौल बनाया गया मानो दिल्ली पुलिस का वहां जाना किसी दूसरे देश की सीमा में सेना के घुस जाने जैसा है। इसमें संघीय ढांचा का उल्लंघन हो गया, कोई क्या खाएगा नहीं खाएगा इसकी आजादी पर कुठाराघात हो गया और सबसे बढ़कर देश में फासीवाद आ गया....!!! वाहं रे भारत!

मजे की बात देखिए कि हिन्दू सेना के जिस नेता विष्णु गुप्ता के माध्यम से पुलिस को सूचना मिली उसे ही पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उससे घंटों पूछताछ हुई और उस पर मुकदमा चलेगा। यही नहीं स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसका संज्ञान लिया, दिल्ली पुलिस से इस बावत लिखित जानकारी मांगी। बावजूद इसके हमारे देश के मांस खाने को मानवाधिकार का मामला बनाने वालों को लगता है कि यह सब केन्द्र सरकार का किया धरा है। ये कह रहे हैं कि दिल्ली पुलिस गृहमंत्रालय के अधीन आता है तो बिना उसके आदेश के वह केरला भवन जा कैसे सकती है। कितना विचित्र तर्क है। किसी राज्य की पुलिस हर बार कहीं जाने या छापा मारने के लिए वहां के राजनीतिक नेतृत्व से आदेश लेती है क्या? क्या केरल की पुलिस किसी की शिकायत आने पर पहले वहां के गृहमंत्री से पूछती है और फिर आगे बढ़ती है या कानून के तहत कार्रवाई करती है? दिल्ली पुलिस के पास यदि फोन आएगा तो उसे जाना ही होगा। किसी प्रदेश का भवन हो वह दिल्ली प्रशासन के अंदर आता है और वहां पुलिस को जाने का पूरा अधिकार है। इसमें कोई कानूनी या प्रोटोकॉल की बाधा है ही नहीं। केरल हाउस या किसी प्रदेश का भवन किसी देश का दूतावास नहीं है कि किसी अपराध के बारे में सूचना मिलने पर पुलिस वहां नहीं जा सकती, क्योंकि वियना संधि के तहत वहं कानूनी कार्रवाई से आजाद है। मान लीजिए अपराध न हुआ, लेकिन पुलिस को सूचना मिली तो पहली ही नजर में बिना वहां गए पुलिस यह कैसे जान जाएगी कि अपराध हुआ या नहीं?

इसलिए यह तर्क बिल्कुल गलत और खतरनाक भी है कि पुलिस केरल भवन के अंदर क्यों गई। कल राजधानी दिल्ली स्थित किसी प्रदेश के भवन के अंदर कोई जघन्य अपराध हो जाए तो उसकी छानबीन दिल्ली पुलिस करेगी या फिर उस राज्य की पुलिस आएगी? यह शत प्रतिशत दिल्ली पुलिस के क्षेत्राधिकार का मामला है। इसे बिल्कुल गलत मोड़ दिया गया है। यह खतरनाक इसलिए है कि कल अगर किसी भवन में हत्या हो रही होगी या कोई और बड़ा अपराध हो रहा होगा तो फोन आने पर भी दिल्ली पुलिस वहां प्रवेश करने से पहले 100 बार सोचेगी। अगर दिल्ली पुलिस नहीं जाएगी, समय पर नहीं पहुंचेगी तो यही तथाकथित मानवाधिकार के लिए छाती पीटने वाले उसके खिलाफ खड़े हो जाएंगे। मान लीजिए दिल्ली पुलिस केरल भवन में बीफ की सूचना की अनदेखी कर देती, नहीं जाती तथा वहां कुछ अवांछित घटित हो जाता तो?

अब यहां यह प्रश्न उठता है कि आखिर दिल्ली पुलिस ने विष्णु गुप्ता को क्यों गिरफ्तार किया? क्या वह अपराधी है? क्या उसने केरल भवन में कानून हाथ में लिया? वहां कोई तोड़फोड़ की? किसी के साथ मारपीट की? क्या केरल भवन के किसी कर्मचारी ने उसके या उसके संगठन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई? जब ऐसा हुआ ही नही ंतो फिर इस गिरफ्तारी का औचित्य और कानूनी आधार क्या है? जिस तरह से दिल्ली पुलिस के वहां जाने का विरोध अनौचित्यपूर्ण और बेवजह का बावेला है, जिस तरह उसके लिए नरेन्द्र मोदी सरकार पर आरोप लगाना हास्यास्पद है उसी तरह यह गिरफ्तारी भी समझ से परे है। दिल्ली पुलिस कह रही है कि उसने गोमांस का गलत प्रचार किया, पुलिस को गुमराह किया इसलिए गिरफ्तार किया गया है। हिन्दू सेना सही है गलत है, वह क्या करती है, उसके नेताओं-कार्यकर्ताओं की समाज में कैसी भूमिका है इस पर बहस हो सकती है लेकिन जब तक किसी के खिलाफ शिकायत नहीं हो तो केवल इस आधार पर कि उसने पुलिस बुला लिया उसे गिरफ्तार करना भी मानवाधिकार का उल्लंघन है। कई बार पुलिस को किसी अपराध की या अपराध होने की आशंका की सूचना मिलती है, पुलिस जाती है और वहां कुछ नहीं होता तो क्या वह अपनी खीझ मिटाने के लिए किसी को गिरफ्तार कर लेगी? आखिर क्यों केरला भवन की कैंटिन में बीफ मलयालम में लिखा था जबकि शेष सामग्रियां अंग्रेजी में? बीफ का अर्थ गाय और उसके वंशज का मांस भी होता है और भैंस के मांस के लिए भी यही शब्द उपयोग किया जाता है। अगर कोई बीफ का अर्थ गाय या बैल का मांस समझ गया तो क्या उसे आप सजा दे देंगे? वहां कोष्टक में भैंस का मांस तो लिखा नहीं था। अब लिखा गया है।

पुलिस का यह रवैया इसलिए खतरनाक है क्योंकि इसके बाद यदि गाय या बैल के मारे जाने की सूचना होगी वह भी डर से कोई पुलिस तक पहुंचाने से हिचकेगा। दिल्ली में किसी प्रकार के गोवंश की हत्या प्रतिबंधित है। वैसे नीति-निर्देशक सिद्धांत के अनुसार राज्यों को और नागरिक दायित्व प्रावधान के अनुसार नागरिकों को दूधारु पशुओं को हत्या से बचाने के लिए काम करने को कहा गया है। मादा भैंस दुधारु पशु में आती है। फिर भी यहां भैंस की हत्या और उसके मांस खाने पर प्रतिबंध नहीं है, इसलिए कानूनी तौर पर उसे रोका नहीं जा सकता है। लेकिन सामाजिक तौर पर अहिंसक और नैतिक मान्यताओं से उसे हतोत्साहित करना हम सब का दायित्व है। खाने के निजी अधिकार की आवाज में यह महत्वपूर्ण पहलू ओझल हो रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कहते हैं कि कोई अपने घर में क्या खाएगा यह भी प्रधानमंत्री मोदी तय करेंगे। इस पंक्ति का हम आप क्या अर्थ लगाएं? राजनीतिक तौर पर आप मोदी सरकार का विरोध करिए, समर्थन करिए यह आपका अधिकार है, लेकिन अनर्गल बातें एक मुख्यमंत्री बोले यह किस अधिकार के तहत आता है?

आवश्यकता पड़ने पर घर में भी छानबीन होती है और आगे भी होगी। अगर गोहत्या कहीं प्रतिबंधित है और कोई घर में कहीं से लाकर गोमांस खा रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। इस आधार पर कार्रवाई से वह छूट नहीं पा सकता कि अपने घर में क्या खा रहे हैं यह हमारा अधिकार है। कोई अपने घर में बलात्कार करे तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी की नहीं? क्या उसका यह तर्क मान्य होगा कि मैं अपने घर में कुछ करुं यह मेरा अधिकार है? नहीं न। कानून कहीं भी टूटे वह घर के अंदर हो या बाहर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी। इसलिए इस प्रकार का तर्क गैर वाजिब एवं भविष्य के लिए खतरनाक संकेत वाला है। कुल मिलाकर देखा जाए तो केरल भवन की एक सामान्य घटना को इतना बड़ा बना दिया गया मानो कुछ ऐसा बड़ा घटित हो गया जो कभी न हुआ न आगे होगा। यह हमारे राजनीति के पतन का नमूना है। दुर्भाग्यवश पुलिस भी इसके दबाव में आकर जहां कार्रवाई की आवश्यकता नहीं थी वहां कार्रवाई कर रही है। यह उचित नहीं है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

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