शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

यमुना में जहर डालने के आरोप की राजनीति डरावनी

अवधेश कुमार

जब दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि यमुना से हमको वोट नहीं मिलता यह मैं समझ गया हूं तब उन्हें इसका आभास नहीं रहा होगा कि यमुना का पानी भी दिल्ली विधानसभा चुनाव का बड़ा मुद्दा हो सकता है। स्वयं उन्हीं के अकल्पनीय वक्तव्य से दिल्ली में यमुना का पानी इस समय बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है। उन्हें अपने भयावह वक्तव्य के वर्तमान परिणतियों की भी आशंका नहीं रही होगी। भाजपा द्वारा शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने उनसे नोटिस जारी कर विस्तृत विवरण मांगा और उनके उत्तर से स्वाभाविक ही संतुष्ट होने का कोई कारण नहीं था तो फिर दोबारा नोटिस भेजा गया है। इनमें अनेक प्रश्नों का उत्तर उनके लिए देना कठिन है। चुनाव आयोग ने साफ-साफ कहा है कि गोलमोलल जवाब देने की बजाय सीधे-सीधे उत्तर दें अन्यथा उन्हें पता है कि उनके विरुद्ध क्या कार्रवाई हो सकती है। इसी तरह हरियाणा में भीउनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया है। केजरीवाल और उनकी पार्टी चुनाव आयोग भाजपा कांग्रेस को ही कह रही है कि वह अमोनिया वाला पानी पीकर दिखाएं मानो दिल्ली में यमुना पानी की उनकी नहीं , इन सबकी जिम्मेवारी है । निश्चित रूप से उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज हो सकता है। मुकदमे की परिणति जो भी हो उन्होंने जिस तरह की बातें कीं वैसा स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी भी नेता ने नहीं किया। इस आरोप से कि दिल्ली में आने वाले यमुना के पानी में हरियाणा सरकार ने जहर मिला दिया है पूरे देश में सनसनी फैल गई। उन्होंने डिजिटल पेनिट्रेशन और उनके पार्टी ने इसे बायोलॉजिकल वीपन या जैव हथियारों से तुलना करते हुए जल आतंकवाद तक कह दिया।

राजनीति में नेता और पार्टियां एक दूसरे के विरुद्ध आरोप लगाते हैं, नेताओं की आपसी दुश्मनी भी हुई किंतु कभी ऐसा आरोप नहीं लगा कि एक प्रदेश की सरकार दूसरे प्रदेश में चुनाव न जीतने के कारण पानी में जहर मिलाकर वहां के लोगों को मारना चाहती है। बाद में भले आम आदमी पार्टी और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतीशी ने पानी में अमोनिया की अधिकता की बात की, लेकर केजरीवाल के वक्तव्य में अमोनिया का नाम तक नहीं था। अगर वे कहते कि हरियाणा से दिल्ली आ रहे पानी में अमोनिया की मात्रा ज्यादा है और उनसे जानलेवा भयानक बीमारियां दिल्ली के लोगों को हो सकती है तो इसका उत्तर दूसरे तरीके से दिया जा सकता था। दिल्ली जल बोर्ड की ओर से इसका खंडन करते हुए बताया गया कि यमुना में इस मौसम में अमोनिया की मात्रा हमेशा ज्यादा रही है। चूंकि यहां उसके शोध की क्षमता नहीं है इसलिए पानी को दिल्ली आने से रोका जाता है। पहले आप की ओर से कहा गया कि जल बोर्ड ने राज्यपाल के दबाव में इस तरह खंडन किया है। अचानक उनकी रणनीति बदली और आप के नेता और प्रवक्ता जल बोर्ड के खंडन को ही अपने पक्ष में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करने लगे। तर्क यह दिया गया कि देखो अरविंद केजरीवाल जी ने गलत तो कुछ कहा नहीं है जल बोर्ड भी वही कह रहा है जबकि जल बोर्ड ने इस समय हरियाणा द्वारा जहर डालने और उसके कारण पानी की कमी के आरोपों का खंडन किया था।

सच है कि केजरीवाल के आरोपों और दिल्ली के यमुना जल में अमोनिया की उपलब्धता की कोई तुलना नहीं है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने इसकी आलोचना करते हुए आपराधिक मानहानि के मुकदमे के कारण भी दांव उल्टा पड़ा है। वैसे इसे अच्छा ही मनाना चाहिए कि लोगों के बीच यमुना जल की स्वच्छता निर्मलता आदि पर इसके कारण बहस चल रही है और लोग उसमें भाग ले रहे हैं। नायब सिंह सैनी ने पहले चुनौती दी कि मैं यमुना का जल पी कर दिखाऊंगा, केजरीवाल दिल्ली के यमुना जल को पीकर दिखाएं। सैनी ने पिया। आम आदमी पार्टी ने आधा वीडियो निकाल कर बताना शुरू किया कि ये तो मुंह में डालकर फेंक रहे हैं। पूरा वीडियो देखने वाले बता सकते हैं कि पहले पानी को उन्होंने कुल्ला किया और उसके बाद पीकर शरीर पर छिड़का है। कोई भी नेता दिल्ली के यमुना जल को मुंह में भी डालने का साहस नहीं दिखा सकता।यह कहना गलत नहीं होगा कि अरविंद केजरीवाल जैसे चालाक और क्षण में हावभाव बदलकर हर विषय को अपने प्रति सहानुभूति में बदलने में माहिर केजरीवाल को इस समय लेने के देने पड़ते दिख रहे हैं।

 विधानसभा चुनाव में किसकी जीत या हार होगी यह अलग विषय है। पर क्या इस तरह के जघन्य और घृणित आरोपों की राजनीति होनी चाहिए? क्या कोई भी पार्टी या सरकार इस कारण किसी राज्य की जनता को मारना चाहेगी कि उनका बहुमत उसे वोट नहीं दे रहा? इसी दिल्ली की जनता ने लोकसभा चुनाव में सभी सातों सीट भाजपा को दिया है। अगर दिल्ली की जनता को जहर दिया जाएगा तो उसमें बीजेपी के सदस्य, नेता और कार्यकर्ता भी मरेंगे। दिल्ली में हरियाणा के लोग भी भारी संख्या में होंगे। केजरीवाल की शैली ऐसी है कि वह जो बोलेंगे तो कुछ ऐसे लोग हैं जो उनकी बातों पर विश्वास कर लेते हैं। दुखद सच है कि अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को काम करना नहीं आता। जब आपको काम करना नहीं आता तो आप अपने दायित्व से पल्ला झाड़ने के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं। आरोप लगाते हैं कि उपराज्यपाल काम करने नहीं देता, केंद्र काम करने नहीं देता, हमारे पैसे नहीं देते, हमको झूठे मुकदनों में फंसा कर जेल में डालती है आदि -आदि। अभी कह रहे हैं कि चुनाव आयोग भी अब हमको जेल में डालने वाला है। समूची दिल्ली की सड़कें गड्ढों में बदल चुकी है। लूटियन दिल्ली को छोड़ दें तो शायद ही दिल्ली में कोई सड़क हो जहां आपकी गाड़ी या सवारी सरपट चल सके। इस कारण ट्रैफिक जाम से लेकर गाड़ी के मेंटेनेंस के खर्च पड़ रहा है एवं प्रदूषण वृद्धि में भी इसका योगदान है। पानी की हालत यह है कि बहुत बड़ा वर्ग पानी खरीद कर पी रहा है।  झोपड़ियां तक पानी के बड़े-बड़े कैन आ रहे हैं। 10 वर्ष के कार्यकाल में दिल्ली में किसी एक फ्लाईओवर और फुट ओवर ब्रिज की मरम्मत तो छोड़िए पेंटिंग भी नहीं हुई है। 

यह तो नहीं माना जा सकता हरियाणा या उत्तर प्रदेश या पंजाब की नदियां पूरी तरह स्वच्छ व निर्मल हैं । हरियाणा के यमुना जल में कारखाने से निकलने वाले कचरे नहीं गिरते हैं यह भी नहीं कह सकते, पर दिल्ली जैसी यमुना में सड़ांध कहीं नहीं है। दिल्ली में पूरी यमुना की लंबाई का 2% है लेकिन इसके प्रदूषण का 80% अंशदान इसी का होता है। इसके लिए हम किसी दूसरे सरकार को जिम्मेदार नहीं मान सकते। यमुना शुद्धिकरण की योजना पर तरीके से काम नहीं किया गया। यमुना स्वच्छता से लेकर नमामि गंगे आदि के तहत दिल्ली सरकार को पूरे पैसे और सहयोग मिले हैं।  यहां निर्धारित 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट निर्मित होकर चालू नहीं हुए। इसके लिए किसे दोषी माना जाएगा? जहां के जल का मुख्य स्रोत यमुना नदी हो वहां किस तरह का पीने का पानी और वातावरण मिल रहा होगा इसकी कल्पना करिए। उन्होंने कुछ दिन पहले ही दिल्ली की सड़कों और यमुना के पानी को स्वच्छ करने के अपने वायदे को पूरा न करने के लिए लोगों से क्षमा याचना का बयान दिया था। उनको लगता था कि यह मुद्दा बन रहा है, इसलिए  माफी मांग कर मुद्दे को कमजोर करने की रणनीति अपनाई। किसी परिस्थिति में दूसरी पार्टी और सरकार को पूरे राज्य की जनता की हत्या की कोशिश करने बाला बता देना क्षमा योग्य राजनीति नहीं है। इससे हिंसा हो सकती है। आम लोग भाजपा के कार्यकर्ताओं के वृद्धि हिंसा कर सकते हैं, हरियाणा के लोगों पर हमले हो सकते हैं और हिंसक अराजकता का माहौल बन सकता है।

चुनाव आयोग निश्चित रूप से इस मामले को जांच के लिए देगा और हरियाणा में भी मुकदमा चलेगा। अगर आपने आरोप लगाया है तो आपको प्रमाण देना होगा किस स्थान पर कहां कितना जहर मिलाया गया और जहर मिलाने वाले कौन हैं? यमुना को पूरी तरह सड़ा देने की अपनी जिम्मेवारी को दूसरे के सिर डालकर वोट पाने की राजनीति किसी भी तरह स्वीकार नहीं हो सकती। इससे ऐसी घातक राजनीति के दौड़ की शुरुआत होगी जिसका अंत भयावह होगा। नदी के पानी में लोगों को मारने के साजिश के तहत जहर डालने जैसे आरोपों की राजनीति की हर स्तर से निंदा तथा इसके विरुद्ध सभी संभव कानूनी कार्रवाई होनी ही चाहिए।

 अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092 , मोबाइल -98110 2720

मानव जनित वैश्विक त्रासदी है भगदड़

तनवीर जाफरी

गत 28 जनवरी की देर रात 1:30 बजे के क़रीब संगम तट पर भगदड़ की घटनायें हुईं। इस दुर्भाग्यपूर्ण भगदड़ को लेकर कई अलग अलग दावे किये जा रहे हैं। स्वयं को प्रत्यक्षदर्शी बताने वाले कुछ लोगों का दावा है कि उस रात एक नहीं बल्कि 3 स्थानों पर भगदड़ हुईं। इनमें दो जगहें संगम मेला क्षेत्र में थीं और एक भगदड़ जी टी रोड पर भी हुई बताई जा रही है। इसी तरह मृतकों के आंकड़ों को लेकर भी अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं है। सैकड़ों लोग अपने बिछड़े परिजनों को तलाश रहे हैं। हज़ारों लोगों के जुते चप्पल व अन्य सामान लावारिस पड़े दिखाई दे रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जिनकी फ़ोटो योग गुरु रामदेव के साथ भगदड़ से दो दिन पहले ही नृत्यासन जैसी मुद्रा में वायरल हो रही थी, भगदड़ के बाद भी कई वेबसाईट व अख़बारों ने उसी फ़ोटो को प्रकाशित किया गया है। दरअसल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को इस भगदड़ को लेकर इसलिये भी आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है क्योंकि सरकार इस पूरे महाकुंभ आयोजन को अपनी सरकार की सफलता के रूप में काफ़ी बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रही थी। ज़ाहिर है जो सरकार अपनी सफलता के लिये अपनी पीठ स्वयं थपथपाने में माहिर हो कम से कम उसकी कमियों को उजागर करने का काम ईमानदार मीडिया व आलोचकों को तो करना ही चाहिये?
जबकि भगदड़ न तो कुंभ मेले में पहली बार हुई है न ही केवल कुंभ में ही भगदड़ होती है। और ऐसा भी नहीं है कि केवल भारत में ही भगदड़ होती हो। सऊदी अरब के मक्का में 1990 में हज यात्रा के दौरान एक बड़ी भगदड़ मचने से लगभग 1,400 लोगों की मौत हो गई थी। यह हादसा तब हुआ जब एक तंग मार्ग पर भीड़ जमा हो गई थी और लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे थे। इसी तरह सऊदी अरब में ही 2006 में हज के दौरान बड़ी भगदड़ में लगभग 360 हज यात्रियों की मौत हो गई थी। 
इसी तरह 2015 के हज में हुई बड़ी भगदड़ हज यात्रा के दौरान का अब तक का सबसे बड़ा हादसा था जिसमें लगभग 2,300 लोगों की जान चली गई थी। यह हादसा भीड़ की असंतुलित स्थिति के कारण हुआ था, जब हज यात्रियों का एक समूह शैतान पर पत्थर फेंकने के लिए इकट्ठा हो रहा था। इसी तरह कुंभ मेलों के दौरान भी भगदड़ मचने के पूर्व में इससे भी बड़े व भयानक हादसे हुए हैं। कई देशों में फ़ुटबाल मैच या अन्य खेल अथवा मनोरंजक आयोजनों के दौरान भगदड़ मचने की घटनायें हो चुकी हैं।
दरअसल भीड़ को कम कर या उसे विभिन्न क्षत्रों में विभाजित कर ऐसे हादसों को टाला जा सकता है। परन्तु सरकार तो स्वयं भीड़ के आंकड़ों को बढ़ा चढ़ाकर पेश करती है। ऐसे में जो श्रद्धालु रोज़ाना करोड़ों श्रद्धालुओं के संगम तट पर पहुँचने की ख़बर घर बैठे सुनता रहता है और मीडिया के माध्यम से वहां उपलब्ध 'सुविधाओं ' के सब्ज़ बाग़ देखता रहता है वह ज़रूर सोचता होगा कि कहीं वही इस पावन अवसर पर पुण्य कमाने से महरूम न रह जाये। और यह सोचकर आम भक्तजन तरह तरह की दुःख तकलीफ़ उठाते हुये भी चल पड़ते हैं। परन्तु जब वह ऐसे विशाल आयोजनों में पहुँचते हैं फिर उन्हें पता चलता है कि गोदी मीडिया द्वारा टी वी पर किया जाने वाला प्रचार या विज्ञापनों से पटे पड़े अख़बार केवल सरकार द्वारा प्रचारित उजले पक्ष को ही रखते हैं। और इसतरह का हादसा हो जाने के बाद केवल लाशों की संख्या छुपाने या कम बताने की बात तो पूर्व में भी होती ही रही है। परन्तु यह पहली बार सुनने में आ रहा है कि इस बार तो सरकार पूरी भगदड़ पर ही पर्दा डालने की कोशिश कर रहे है। अन्यथा क्या कारण है कि अलग अलग सूत्रों से प्राप्त होने वाली तीन अलग अलग भगदड़ की ख़बरों के बीच सरकार अभी तक यह क्यों नहीं बता पाई कि 28 जनवरी को प्रयागराज कुंभ में भगदड़ के हादसों की वास्तविक संख्या क्या थी। भगदड़ के अतिरिक्त आगज़नी की भी कई घटनायें इसी मेला क्षेत्र में हो चुकी हैं। कभी साधुओं व कल्पवासियों के टेंट जल गये तो कभी गीता प्रेस के 180 टेंट कॉटेज जलकर राख हो गये।
ऐसे हादसों से क्या हम वास्तव में कोई सबक़ लेने को तैयार भी हैं? क्या भीड़ को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करने वाली सरकारें अपने इस आमंत्रित 'वोट बैंक' की जान व माल की सुरक्षा की गारंटी भी ऐसे आयोजनों में दे सकती हैं ? क्या वजह है कि ऐसी भगदड़ों में प्रायः वही लोग अपने जान माल से हाथ धो बैठते हैं जो सरकार की 'लाभार्थियों' की सूची में शामिल हैं। जबकि सत्ता व शासन-प्रशासन के निकटस्थ या फिर सम्पन्न व विशिष्ट लोग ऐसे हादसों में मरते कुचलते नहीं सुनाई देते। क्योंकि ऐसे विशिष्ट लोग अपने धन या प्रोटोकाल की बदौलत स्वयं को कहीं भी सुरक्षित कर लेते हैं जबकि आम आदमी के तो नसीब में ही भीड़ और भगदड़ का शिकार होना लिखा है। कई जगहों पर वी आई पी की आवाजाही के चलते भी भगदड़ जैसे हादसे होते रहे हैं। 
गत 28 जनवरी के हादसे को भी कथित तौर पर वी आई पी मूवमेंट से जोड़कर देखा जा रहा है। शायद यही वजह थी कि इस घटना के फ़ौरन बाद ही सभी वी आई पी पास निरस्त कर दिए गये। बताया जाता है कि 3 फ़रवरी, 1954 को भी इलाहबाद में लगे कुंभ मेले में मौनी अमावस्या के लिए लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। यहाँ कुछ अफ़वाहें फैलने के बाद भगदड़ मच गई। 45 मिनट तक चली इस भगदड़ में लगभग 800 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। बताया जाता है कि उस कुंभ में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी आए थे। इसी तरह सऊदी अरब में हज के दौरान जहां टेंटों में आग लगने व हाजियों के ज़िंदा जलने की ख़बरें आ चुकी हैं वहीँ कहीं शैतान पर पत्थर फेंकने या तंग रास्ते में अत्याधिक लोगों के इकठ्ठा होने के कारण भी भगदड़ मच चुकी है। वहीं हज के दौरान सऊदी किंग के आवागमन व उनके प्रोटोकाल पर अमल करने के कारण भी भगदड़ के हादसे हो चुके हैं। कहा जा सकता है कि भगदड़ एक मानव जनित वैश्विक त्रासदी है और जब जब जहाँ जहाँ इसतरह की अनियंत्रित भीड़ इकट्ठी होती रहेगी ऐसे हादसों की संभावना हमेशा बनी रहेगी।

गाजियाबाद में गैस सिलेंडर से भरे ट्रक में लगी भीषण आग, धमाकों से दहला इलाका

असलम अल्वी

गाज़ियाबाद। लोनी के भोपुरा चौक के पास गैस सिलेंडरों से भरे एक ट्रक में भीषण आग  लग गई. आग इतनी भयावह थी कि सिलेंडर एक के बाद एक धमाके के साथ फटने लगे, जिसकी गूंज कई किलोमीटर तक सुनाई दी. सूचना मिलते ही दमकल विभाग की टीमें मौके पर पहुंचीं. लगातार हो रहे विस्फोट के कारण आग बुझाने में कठिनाई हो रही है.
एजेंसी के अनुसार, यह घटना भोपुरा चौक के पास दिल्ली-वजीराबाद रोड पर स्थित टीला मोड़ थाना क्षेत्र में हुई. यहां ट्रक में भीषण आग लग गई. ट्रक में बड़ी संख्या में गैस सिलेंडर भरे हुए थे. देखते ही देखते आग ने भयावह रूप ले लिया और सिलेंडरों में धमाके होने लगे. धमाकों की आवाज कई किलोमीटर दूर तक सुनी गई. इस टना से इलाके में अफरातफरी मच गई और स्थानीय लोग दहशत में आ गए.
मुख्य अग्निशमन अधिकारी (CFO) राहुल कुमार के अनुसार, घटना की सूचना मिलने के बाद दमकल की कई गाड़ियां मौके पर पहुंचीं और आग बुझाने का काम शुरू किया. उन्होंने कहा कि लगातार हो रहे धमाकों की वजह से आग बुझाने में परेशानी का सामना करना पड़ा. दमकलकर्मियों को ट्रक के पास जाने में खतरा था, जिसकी वजह से आग पर काबू पाने में मुश्किल हो रही है.
ट्रक में आग लगने का कारण अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है. इस बारे में जांच पड़ताल के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर घटना की स्थिति का जायजा लिया. आग पर नियंत्रण पाने की कोशिशें की जा रही हैं.
घटना की वजह से स्थानीय लोगों में दहशत है. आग इतनी भीषण थी कि इसकी लपटें दूर से ही नजर आ रही थीं. दमकल विभाग के अधिकारी स्थिति पर पूरी नजर बनाए हुए हैं और आग पर काबू पाने के लिए कई घंटे से प्रयास कर रहे हैं. घटना में अब तक किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है. प्रशासन ने लोगों से घटनास्थल से दूर रहने की अपील की है.

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