गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

आप सरकार गिराने की साजिश का आरोप

अवधेश कुमार

आम आदमी पार्टी का आरोप है कि भाजपा उसकी सरकार को गिराने की साजिश कर रही है। पार्टी ने तो पत्रकार वार्ता में बाजाब्ता नरेन्द्र मोदी, अरुण जेटली एवं डॉ. हर्षवर्धन का नाम तक ले लिया। उसके बाद जिस तरह अरुण जेटली के घर आक्रामक प्रदर्शन हुआ उससे साफ लगता है कि आप एक रणनीति के तहत काम कर रही है। पार्टी प्रवक्ता आशुतोष ने तो यहां तक कहा कि अरुण जेटली के मीडिया में बैठे लोग सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। आशुतोष एक पत्रकार हैं और यह मानना चाहिए कि वे जो आरोप लगा रहे हैं वे तार्किक भी हांेगे और उसके कुछ साक्ष्य भी उनके पास होंगे। हां यह तो जरुरी नहीं है कि वे साक्ष्य ठोस रुप में प्रदर्शित करने योग्य भी हों। लेकिन दोनों नेता संजय सिंह और आशुतोष ने पत्रकारों से कहा कि वे किसी का प्रमाण नहीं दे सकते। संयोग देखिए, कांग्रेस के नेता शकील अहमद ने ट्वीट किया है कि क्या आम आदमी पार्टी के विधायक खरीदे जा रहे हैं? बीजेपी पैसे देकर इ्स्तीफे करा रही है? शकील अहमद के इस ट्वीट एवं आम आदमी पार्टी के आरोपों के बीच समानता को देखते हुए हमारा आपका क्या निष्कर्ष हो सकता है?

आम आदमी पार्टी ने अपना पक्ष मजबूत करने के लिए कस्तूरबा नगर से विधायक मदनलाल को सामने लाया है जिनका आरोप है कि सात दिसंबर को रात में उन्हें एक आईएसडी कॉल आई। बड़ी विचित्र स्थिति है। चुनाव परिणाम आए 8 दिसंबर को और फोन आ गया 7 दिसंबर को! ऐसे अंतर्यामी अगर भाजपा में हैं तो फिर वे राजनीति में अपना वर्चस्व आसानी से स्थापित कर सकते हैं। मदनलाल के अनुसार उसके बाद फिर तीन बार उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई। खुद को नरेंद्र मोदी का करीबी बताने वाले उस शख्स ने भाजपा नेता अरुण जेटली से बात करवाने के लिए कहा। बकौल, मदनलाल उन्हें आम आदमी पार्टी के नौ विधायक तोड़ने के लिए कहा गया और इसकी एवज में उन्हें मुख्यमंत्री पद और बीस करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव भी दिया गया। मुख्य प्रश्न तो यही उठता है कि क्या भाजपा वाकई आम आदमी पार्टी की सरकार गिराने की साजिश रच सकती है? ऐन लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा को इससे राजनीतिक लाभ क्या हो सकता है? आम आदमी पार्टी अपने को शहीद बताकर जनता के बीच जाएगी, भाजपा को खलनायक साबित करेगी और भाजपा के लिए जवाब देना मुश्किल होगा। यानी कुल मिलाकर इसका लाभ आम आदमी पार्टी को ही मिलेगा। तो भाजपा अपने पैरों कुल्हाड़ी क्यों मारेगी? स्वयं नरेन्द्र मोदी के लिए पूरे चुनाव में इसका जवाब देना कठिन हो जाएगा। हम राजनीति में किसी पार्टी को प्रमाण पत्र नहीं दे सकते, पर राजनीतिक व्यावहारिकता का तकाजा भी इस आरोप की पुष्टि नहीं करता। इसी प्रकार किसी नेता को भी ईमानदारी का प्रमाण पत्र नहीं दिया जा सकता, पर अरुण जेटली का कभी साजिश रचने का रिकॉर्ड नहीं रहा है। दिल्ली विधानसभा में भाजपा के नेता डॉ. हर्षवर्धन का चरित्र भी अभी तक निष्कलंक है।

अगर आप पीछे लौटें तो सरकार बनने के पूर्व भी आप के नेताओं ने आरोप लगाया था कि उनके विधायकों को भाजपा तोड़ने की कोशिश कर रही है, उन्हें पद और पैसे के ऑफर दिए जा रहे हैं। यह बात अलग है कि उस समय न किसी का नाम लिया गया और न किसी विधायक को आरोप के साथ सामने लाया गया। प्रश्न है कि जिस नंबर से मदनपाल को कॉल आए उसे आप सामने क्यों नहीं लाती? मदनपाल ऐसी पार्टी के विधायक हैं जो तकनीकों के प्रयोग में आज की पार्टियों में सबसे ऊपर है। तो उन आवाजों को टेप क्यों नहीं किया? नेताओं की सलाह पर उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों का आराम से स्टिंग किया जा सकता है? जाहिर है, जो आरोप लगाए जा रहे हैं उन पर एकाएक विश्वास करना कठिन है। इसके पूर्व पहले स्वयं अरविन्द केजरीवाल ने जिन नेताओं को भ्रष्ट बताया और बाद मंें उसमें और नाम जोड़कर पार्टी ने जो सूची जारी की उसके पीछे भी उनने कोई प्रमाण नहीं दिया। उनमे कुछ नाम तो हैं जिन पर न्यायालय मंे मामला है, पर अन्यों के साथ ऐसा नहीं है। आप की यही शैली है। आरोप लगाओ, उसे जोर-जोर से प्रचारित करो और सामने वाले को अपनी रक्षा करने के लिए मजबूर करो। इससे तात्कालिक लोकप्रियता भी मिलती है, पर विवेकशील लोगों के अंदर इससे वितृष्णा पैदा होती है। 

फिर घटनाए क्या बतातीं हैं? भाजपा और अकाली दल को मिलाकर 32 विधायक हैं। सरकार बनाने के लिए उन्हें चारः विधायक चाहिए थे। पर्दे के पीछे अगर कुछ हुआ तो इसके बारे में वही बता सकता है जो होने से जुड़ा था। हो सकता है कि भाजपा के कुछ स्थानीय नेताओं ने आप विधायकों से संपर्क भी किया हो, लेकिन कम से कम पार्टी की ओर से सुनियोजित संगठित कोशिश का कोई संकेत नहीं मिला था। याद करिए जब विनोद कुमार बिन्नी ने विद्रोह किया तो भी आप के नेता योगेन्द्र यादव ने कहा कि वह वक्तव्य ऐसा था मानो डॉ. हर्षवर्धन पढ़ रहे हों। इस प्रकार भाजपा पर उनके विधायकों को तोड़ने की कोशिशों का आरोप आप की ओर से लगातार लगाया जाता रहा है। वैसे वर्तमान राजनीति में नैतिकता का तत्व जिस तरह निःशेष हुआ है और स्वयं आप भी आज उसी दौर में पहुंच चुकी है उसमें कुछ भी हो सकता है, पर मंत्रिमंडल गठन के समय ही बिन्नी का विद्रोह, फिर उनको मनाना, फिर विद्रोह ....के पीछे किसी पार्टी या नेता की जगह आप का आंतरिक द्वंद्व ही मुख्य कारण नजर आता था। विनोद बिन्नी, सरकार को समर्थन दे रहे विधायक शोएब इकबाल और निर्दलीय विधायक रामबीर शौकीन और अकाली दल के विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा के बीच दिल्ली के इंपीरियल होटल में जिस मुलाकात की खबरें आईं उनके पीछे कौन थे? मनजिंदर सिंह ने यह स्वीकार किया कि बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई कि केजरीवाल सरकार पर कैसे दबाव बनाया जाए। साथ ही उन्होंने कहा कि बैठक में केवल वह ही नहीं बल्कि कई अन्य विधायक भी मौजूद थे। ये अन्य विधायक भी आप के ही थे।  शोएब इकबाल और रामबीर शौकीन यदि सरकार के खिलाफ बयान दे रहे थे तो वह भी मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एवं उनके सहयोगियों द्वारा अपना साथ दे रहे विधायकों को संभाल पाने की अक्षमता की ही परिणति थी। शोएब तो बार-बार कह रहे थे कि वे किसी कीमत पर भाजपा की सरकार नहीं बनने देंगे। 

वस्तुतः आप के नेता जो भी आरोप लगाएं, उनकी सरकार के अंदर समस्या के कारण वे स्वयं हैं। उनका आंतरिक प्रबंधन कमजोर है जिसे वे अपने प्रचार प्रबंधन से ढंकने की जुग्गत करते रहते हैं। हालांकि उनने कई काम अच्छे किए हैं, मसलन, दिल्ली में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का निषेध कर दिया, कैग द्वारा बिजली कंपनियों का अंकेक्षण आरंभ करा दिया.......लेकिन उनका मुख्य जोर छोटे से छोटे कदमों को अति प्रचार द्वारा क्रांतिकारी परिवर्तन साबित करने और स्वयं को पूरी राजनीति में महा नैतिक, महा पवित्र और महा परिवर्तनकारी साबित करने पर रहता है। दरअसल, इसी प्रचार प्रबंधन कला ने उन्हें लाभ पहुंचाया है। दिल्ली में होने के कारण उनको मीडिया का व्यापक कवरेज प्राप्त हो जाता है। अगर ये किसी दूरस्थ राज्य में होते तो कभी इस तरह राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां इन्हें प्राप्त नहीं होतीं। इतना प्रचार मिलने के बावजूद आशुतोष कहते हैं कि मीडिया संस्थानों में बैठे मोदी के कुछ लोग आप को निशाना बना रहे हैं। मीडिया मेें अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा के लोग हैं और वे अपने विचारों के अनुसार ही मत व्यक्त करेंगे। आशुतोष एक पत्रकार हैं और वे स्वयं ऐसा करते रहे हैं। तो फिर दूसरे ऐसा क्यंों नहीं करेंगे? यदि मीडिया के अंदर कोई मोदी समर्थक है तो वह आप का विरोध करेगा। वे यह क्यों सोचते हैं कि सभी आप का समर्थन ही करेंगे। आप वाले अपनी पार्टी एवं सरकार को ईमानदार व नैतिक मानते होंगे, लेकिन हमारा हक है कि हम उसे वैसा न माने। आप अपनी बात कहे और दूसरों को अपनी बात कहने दे। पता नहीं ये यह क्यों भूल रहे हैं कि हम भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा.... आदि पार्टियों की कितनी तीखी आलोचना करते रहते हैं और वे झेलते भी हैं...कई बार झल्लाकर कुछ नेता मीडिया की भी आलोचना करते रहते हैं, पर इस ढंग से तो कोई पेश नहीं आता। लोकतंत्र सहमति-असहमति के संतुलन से चलता है। सहमति-असहमति सामान्य, असामान्य, सतही-गहरी कुछ भी हो सकती है। इसे इसी रुप में लेना चाहिए। किंतु आम आदमी पार्टी पता नहीं क्यों अपनी आलोचना के साथ सामान्य नहीं रह पाती और प्रतिक्रिया में आरोप लगाने के साथ तीखी निंदा करने लगती है। बिना किसी सबूत के किसी नेता के घर इस प्रकार उग्र प्रदर्शन एवं हाय हाय का नारा आम आदमी पार्टी को शायद तात्कालिक रुप से संगठित बनाए रखे, लेकिन दूरगामी दृष्टि से उसके लिए भी घातक ही साबित होगा। 

अवधेश कुमार, ई.30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/