नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में बसन्त कुमार द्वारा लिखित प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक "मुसहर समाज का इतिहास" नामक पुस्तक का लोकार्पण भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य डॉ. सत्य नारायन जटिया द्वारा किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतीय बौद्ध संघ के अध्यक्ष डा. संघप्रिय राहुल भंते जी उपस्थित रहे। आवश्यक कार्य के कारण एमएसएमई मंत्री जतीन राम मांझी नहीं आ सके। उनका संदेश उनके निजी सचिव एसपी पंत ने पढ़ा। कार्यक्रम में अनेक बुद्धिजीवियों और मीडिया के लोगो ने भाग लिया और मुसहर समाज की आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक पिछड़े होने के कारणों और उनके उत्थान पर सार्थक चर्चा हुई।
बुधवार, 24 सितंबर 2025
आरक्षण सुधार: तीन पीढ़ियों के बाद नई नीति की आवश्यकता
ओंकार त्रिपाठी
देश को आज़ादी हुए 78 साल हो चुके हैं। इतने वर्षों में समाज में कई बदलाव आए, लेकिन कुछ पुरानी नीतियां अब समय की मांग के अनुरूप नहीं रह गई हैं। आरक्षण का मूल उद्देश्य पिछड़े और हाशिए पर खड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना था। लेकिन आज, तीन से चार पीढ़ियों के गुजर जाने के बाद, यह व्यवस्था कई जगह केवल जातिगत पहचान का प्रतीक बन गई है।
जातिगत आरक्षण से आर्थिक लाभ सबसे अधिक होता है। नौकरी, शिक्षा और सरकारी योजनाओं में आरक्षण मिलने से जीवन बदल जाता है। लेकिन समस्या यह है कि गरीब लोग, जो किसी पिछड़ी जाति से नहीं हैं, इसका लाभ नहीं पा रहे हैं। वहीं, आर्थिक रूप से सशक्त लोग जातिगत पहचान के कारण लगातार इसका लाभ ले रहे हैं।
अब समय आ गया है कि नीति केवल जाति पर आधारित न रहे। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले किसी भी जाति या धर्म के व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। ऐसा करने से वास्तविक जरूरतमंदों तक मदद पहुंचेगी और समाज में न्याय की भावना मजबूत होगी।
जातिगत आरक्षण कई बार समाज में भेदभाव और विभाजन को भी बढ़ाता है। आर्थिक आधार पर आरक्षण से मदद केवल जरूरत के अनुसार दी जाएगी, न कि जाति के आधार पर। इससे समाज में समान अवसर और विश्वास की भावना विकसित होगी।
आरक्षण केवल कानून और सरकारी योजना तक सीमित नहीं होना चाहिए। समाज को भी इस बदलाव के लिए तैयार होना होगा। शिक्षा, कौशल विकास, स्वास्थ्य और स्वरोजगार के अवसर बढ़ाए जाने चाहिए, ताकि गरीब और पिछड़े लोग अपने दम पर आर्थिक स्थिति सुधार सकें। आर्थिक आधार पर आरक्षण यह सुनिश्चित करेगा कि प्रयास और संसाधन वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुंचें।
आज जब हम समाज के आइने में खुद को देखते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जातिगत आरक्षण अब पर्याप्त नहीं है। गरीबी और वंचना हर जाति में हैं। उनके लिए मदद का आधार केवल जरूरत होना चाहिए। देश की प्रगति तभी संभव है जब समाज के प्रत्येक वर्ग—आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से—समान रूप से आगे बढ़े।
आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करना न केवल नीति सुधार होगा, बल्कि समाज में अवसर और न्याय की भावना को भी पुनर्जीवित करेगा। तीन पीढ़ियों तक लाभान्वित वर्गों को देखकर यह स्पष्ट है कि अब समय है कि नीति केवल जाति की पहचान पर न टिके। गरीबी और जरूरत को आधार बनाकर आरक्षण देना ही सच्चा मार्ग है—वास्तविक समानता और न्याय की दिशा में।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)
http://mohdriyaz9540.blogspot.com/
http://nilimapalm.blogspot.com/
musarrat-times.blogspot.com
http://nilimapalm.blogspot.com/
musarrat-times.blogspot.com
http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

