गुरुवार, 27 मई 2021

अभूतपूर्व वैश्विक सहायता भारत के वैश्विक साख और सम्मान का प्रमाण

अवधेश कुमार

जिस तरह विश्व समुदाय ने भारत के लिए खुले दिल से सहयोग और सहायता का हाथ बढ़ाया है वह अभूतपूर्व है। आपदाओं में वैश्विक सहायता पर काम करने वालों का मानना है कि इस तरह का सहयोग पहले किसी एक देश को नहीं मिला था। भारत तक जल्दी आवश्यक सहायता सामग्रियां पहुंचे इसके लिए सैन्य संसाधनों तक का इस्तेमाल किया जा रहा है। अभी तक40से ज्यादा देशों से सहायता सामग्रियां भारत पहुंच चुकीं हैं। हम अपने देश की सरकार और उसकी नीतियों की जितनी आलोचना करें इस प्रश्न का उत्तर देना ही होगा कि इतने सारे देश इस तरह अभूतपूर्व तरीके से भारत के साथ क्यों खड़े हुए हैं?ध्यान रखिए, भारत ने किसी देश से सहायता मांगी नहीं है।  सभी देश और संस्थाएं अपनी ओर से ऐसा कर रहीं हैं। इसका अर्थ निष्पक्षता से ढूंढिए तो यही कहा जाएगा कि भारत की वैश्विक छवि और इसका प्रभाव विश्व समुदाय पर कायम है।

जो सामग्रियां आ रहीं हैं उनमें स्वाभाविक ही ऑक्सीजन उत्पादक संयंत्र,ऑक्सीजन सांद्रक, छोटे और बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर, टेस्ट किटों के अलावा कोरोना मरीजों के लिए आवश्यक औषधियों में रेमडेसिविर,टोसिलिज़ुमैब, फेवीपिरवीर,कोरोनावीर आदि हैं। अमेरिका से सबसे ज्यादा सामग्रियां आईं हैं। ह्वाइट हाउस प्रवक्ता का बयान है कि हम दिन रात काम कर रहे हैं जिससे भारत को आवश्यक सामग्रियां मिलती रहे. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि हम एक मित्र और भागीदार के रूप में भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भारत के लिए एक फेसबुक पोस्ट लिखा। इसमें उन्होंने भारत भेजे जाने वाली सामग्रियों का जिक्र करते हुए भारत के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता जताई। हम जानते हैं कि भारत एक मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। फ्रांस और भारत हमेशा एकजुट रहे हैं। ऐसे ही बयान कई देशों की ओर से आए हैं। भारत में रूस के राजदूत निकोले कुदाशेव के अनुसार रूस से दो तत्काल उड़ानें भारत में20टन के भार का मेडिकल कार्गो लेकर आ चुकी हैं। स्वयं महामारी से जूझने वाले स्पेन ने भीसामग्रियां भेजीं हैं। 

सच कहें तो भारत को मदद देने की वैश्विक मुहिम व्यापक हो चुकी है। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि भारत के लिए विश्व समुदाय इस तरह दिल खोलकर साथ देने आएगा। इसके उदाहरण कम ही होंगे जब सहायता के लिए एक देश दूसरे देश को आवश्यक सहयोग कर रहे हैं जिससे आसानी से सामग्रियां पहुंच सके। उदाहरण के लिए फ्रांस ने खाड़ी स्थित अपने देश की एक गैस निर्माता कंपनी से दो क्रायोजेनिक टैंकर भारत को पहुंचाने की इच्छा जताई तो कतर ने उसे तत्काल स्वीकृति दी। इजरायल के नई दिल्ली स्थित राजदूत रॉन मलका ने कहा कि भारत के साथ अपने संबंधों को देखते हुए उनकी सरकार ने एक टास्क फोर्स गठित किया है ताकि भारत को तेजी से मदद पहुंचाई जा सके। इजरायल की कई निजी कंपनियां, एनजीओ और वहां की आम जनता भारत को मदद देने लिए आगे आई हैं। इसे लिखे जाने तक इजरायल की मदद का चौथा जहाज भारत पहुंच चुका था।   केवल देश औरसंस्थाएं ही भारत की सहायता नहीं कर रहीं, अनेक देशों के नागरिक तथा विश्व भर के भारतवंशी भी इस समय हरसंभव योगदान करने के लिए आगे आ रहे हैं। जापान, इजरायल के स्थानीय नागरिक सामग्रियां भेज रहे हैं। कई यूरोपीय देशों में स्थानीय एनजीओ की कोशिशों से काफी बड़े पैमाने पर चिकित्सा सामग्रियां जुटाई जा रही है, जो भारत पहुंचने लगी हैं। विदेशी नागरिक अपने पैसे से आक्सीजन कंसंट्रेटर्स खरीद कर भारतीय मिशनों को भेज रहे हैं। सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर जैसे खाड़ी के क्षेत्र में रहने वाले प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई सामग्रियां पहुंच रहीं हैं। कई देशों में भारतीय मूल के डॉक्टरों ने भी आनलाइन मेडिकल परामर्श मुफ्त में देने का अभियान चलाया हुआ है। सिंगापुर में रहने वाले भारतीयों ने वहां की सरकार के माध्यम से बड़ी खेप भारत भेजी है। 

लेकिन इसके समानांतर देसी-विदेशी मीडिया का एक धड़ा, एनजीओ आदि अपने व्यापक संपर्कों का प्रयोग कर कई प्रकार का दुष्प्रचार कर रहे हैं। मसलन, विदेशी सहायता सामग्रियां तो वहां जरुरतमंदों तक पहुंच ही नहीं रही.... सामग्रियां कहां जा रहीं हैं किसी को नहीं पता......आने वाली सामग्रियां तो सप्ताह-सप्ताह भर हवाई अड्डों पर ही पड़ी रहती हैं आदि आदि। आपको सैंकड़ों बयान मिल जाएंगे जिससे आपके अंदर यह तस्वीर बनेगी कि कोहराम से परेशान होते हुए भी भारत सरकार इतनी गैर जिम्मेवार है कि वह इनका वितरण तक नहीं कर रही या गोपनीय तरीके से इनका दुरुपयोग कर रही है।  अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक ब्रीफ़िंग में भी यह मुद्दा उठाया गया। एक पत्रकार ने पूछा कि भारत को भेजे जा रहे अमेरिकी करदाताओं के पैसे की जवाबदेही कौन लेगा? क्या अमेरिकी सरकार यह पता कर रही है कि भारत को भेजी जा रही मेडिकल मदद कहाँ जा रही है? यह बात अलग है कि उन्हें टका सा उत्तर मिला। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हम आपको यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि अमेरिका इस संकट के दौरान अपने साझेदार भारत का ख्याल रहने के लिए प्रतिबद्ध है। बीबीसी के एक संवाददाता ने इस मुद्दे पर ब्रिटेन के फ़ॉरेन कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफ़िस एफसीडीओ तक से बात की। उसने पूछा कि क्या उसके पास इस बात की कोई जानकारी है कि ब्रिटेन की ओर से भेजे गए वेंटिलेंटर्स समेत तमाम मेडिकल मदद भारत में कहाँ बाँटी गई? यहां भी उत्तर उसी तरह।  फ़ॉरन कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस ने कहा कि भारत को भेजे जा रहे मेडिकल उपकरणों को यथासंभव कारगर तरीक़े से पहुँचाने के लिए ब्रिटेन इंडियन रेड क्रॉस और भारत सरकार के साथ काम करता आ रहा है। यह भारत सरकार तय करेगी कि ब्रिटेन की ओर से दी जा रही मेडिकल मदद कहाँ भेजी जाएगी और इसे बाँटे जाने की प्रक्रिया क्या होगी। ये दो उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि एक ओर महाअपादा से जूझते देश में जिससे जितना बन पड़ रहा है कर रहा है और दूसरी ओर किस तरह का माहौल भारत के खिलाफ बनाने के कुत्सित प्रयास हो रहे हैं। केंद्र सरकार को इस कारण सफाई देनी पड़ी। जो जानकारी है उसके अनुसार सरकार ने सामग्रियों के आने के पूर्व से ही इसकी तैयारी कर दी थी। सीमाशुल्क विभाग को त्वरित गति से क्लियरेंस देने, कार्गों से सामग्रियों को तेजी से बाहर निकालने आदि के लिए एक टीम बन गई। स्वास्थ्य मंत्रालय ने26अप्रैल से वितरण की तैयारी शुरू कर दी थी। मदद कैसे बाँटी जाए इसके लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर यानी एसओपी2मई को जारी की गई।  राहत सामग्री वाल विमान भारत पहुँचते ही इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के हाथ आ जाता है। सीमाशुल्क विभाग से क्लियरेंस मिलन के बाद मदद की यह खेप एक दूसरी एजेंसी एचएलएल लाइफ़केयर के हवाले की जाती है। यह एजेंसी सामानों को देश भर में भेजती है। कहां कितना किस रुप में आपूर्ति करनी है इसलिए सारी सामग्रियों को खोलकर उनकी नए सिरे से गंतव्य स्थानों के लिए पैकिंग करना होता है।  सामान कई देशों से आ रहे हैं और उनकी मात्रा भी अलग.अलग हैं। वो अलग-अलग समय में अलग-अलग संख्या में आती है। कई बार तो सामग्रियां उनके साथ आई सूची से भी मेल नहीं खातीं। इन सबके होते हुए भी सामग्रियां सब जगह व्यवस्थित तरीके से पहुंच रहीं है।

 हमें दुष्प्रचारकों के आरोपों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों और द्विपक्षीय संबंधों में जिस तरह की भूमिका निभाई है उसका विश्व समुदाय पर सकारात्मक असर है। भारत के प्रति सद्भावना और सम्मान है । आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा भी कि कठिन समय में भारत ने हमारी सहायता की और अब हमारी बारी है। इजरायल के राजदूत का यही बयान है कि महामारी के आरंभ में जब हमें जरुरत थी भारत आगे आया तो इस समय हम अपने दोस्त के लिए केवल अपनी जिम्मेवारी पूरी कर रहे हैं। यह स्वीकार करने में समस्या नहीं है कि कठिन समय में हमारी अपनी हैसियत, साख, सम्मान और हमारे प्रति अंतरराष्ट्रीय सद्भावना आसानी से दिखाई दे रही है। बिना मांगे इतने सारे देशों द्वारा व्यापक पैमाने पर सहयोग तथा इसके संबंध में दिए गए बयान इस बात के प्रमाण हैं कि भारत का सम्मान और साख विश्व स्तर पर कायम है।

अवधेश कुमारए ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्सए दिल्ली 110092, मोबाइलः9811027208, 8178547992

 

 

 

गुरुवार, 20 मई 2021

एक व्यक्ति को खलनायक बनाने का अभियान मानवता विरोधी है

अवधेश कुमार

माना जाता है कि आपदा बड़े से बड़े निष्ठुर ह्रदय वालों के अंदर भी मानवीय संवेदना पैदा कर देती है। प्रायः संकट के समय घोर शत्रु भी द्रवित होकर मानवीय भूमिका निभाने लगते हैं। भारत में बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, नेताओं, एनजीओवादियों, एक्टिविस्टों का एक समूह ऐसा है जिनका हृदय कोरोना महाआपदा में भी नहीं पिघला। आप अगर सोशल मीडिया पर लगातार नजर रख रहे हैं तो इन सबकी गतिविधियां तीन बिंदुओं तक सीमित हैं-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सारे संकट का महाखलनायक साबित करना, स्वयं को आपदा में बिना स्वार्थ के 24 घंटे सबकी यथासंभव सहायता, सहयोग और मदद करने वाला बताना और विपक्ष की कुछ सरकारों व नेताओं का समर्थन करना। कोरोना के वर्तमान प्रकोप का सामना करने में भारत की संपूर्ण व्यवस्था कमजोर पड़ी है इस दयनीय अवस्था को कोई नकार नहीं सकता। इसमें प्रधानमंत्री सहित उनकी सरकार की जितनी जिम्मेवारी है उसकी आलोचना निश्चित रूप से होनी चाहिए। ठोस तथ्यों और तर्कों से की गई ऐसी आलोचनाएं अपना प्रभाव दिखाती हैं तथा सरकारें इसके अनुसार कदम उठाने को भी विवश होती है। किंतु आप सारी समस्याओं के लिए प्रधानमंत्री मोदी को ही दोषी साबित करेंगे तो न इससे सरकार पर कोई असर होगा न उनके समर्थक इससे प्रभावित होंगे और न ही कोई सार्थक उद्देश्य हासिल हो सकता है। वैचारिक घृणा में की गई जा रही बेसिर पैर की आलोचनाएं, निंदा आदि स्वभाविक ही जनसमूह पर प्रभाव डालने में विफल होतीं हैं।

वास्तव में संकट काल में जब एकजुट खड़ा होना चाहिए, आम जन की हौसला अफजाई करनी चाहिए, स्वयं सुरक्षित रहते हुए दूसरे को सुरक्षित करने तथा जो संक्रमण या किसी अन्य कारणों से पीड़ित हैं उनकी सहायता करने के लिए आगे आना चाहिए उस समय भी ये कुत्सित राजनीति से बाज नहीं आ रहे। जिस तरह ये लोग स्वयं को मसीहा साबित कर रहे हैं उसका सच भी वही नहीं है जो इनकी सोशल मीडिया अभिव्यक्तियों में दिखता है। उदाहरण के लिए इस अभियान की एक प्रमुख झंडाबरदार महिला सोशल मीडिया पर बता रही हैं कि उनके यहां लगातार लोगों के मैसेज, फोन आदि आ रहे हैं और वो ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर रहीं हैं। एक मित्र ने इसके परीक्षण के लिए उनको फोन किया। उनके साथ आधा घंटा से ज्यादा समय तक फोन पर बात होती रही। इस बीच कोई फोन नहीं आया न उन्होंने स्वयं कहा किमैसेज आ रहे हैं जरा एक बार देख लेती हूं, इमरजेंसी हो सकती है या ऐसा कोई संकेत उधर से नहीं आया कि वाकई वो सहायता करने में व्यस्त हैं। स्वयं के द्वारा जांचा गया यह एक उदाहरण बताने के लिए पर्याप्त है कि ये किस तरह लोगों की सहायता और सेवा का ढोंग कर रहे हैं। इस महाआपदा के काल में हजारों लोग, जिनमें पत्रकार, बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट, राजनेता, साधु-संत, मौलवी,उलेमा, पादरी, किसान, मजदूर, शिक्षक, नौकरशाह आदि सब शामिल है अनेक प्रकार से संक्रमित मरीज, उनके परिवार तथा उनसे प्रभावित होने वाले लोगों की जो भी संभव है सेवा-सहायता कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर सोशल मीडिया पर दिखावा नहीं करते। हां सोशल मीडिया का सेवा-सहायता के लिए उपयोग कर रहे हैं। अगर आप उनको फोन करेंगे तो थोड़ी देर में ही पता चल जाएगा कि वाकई उनके पास दूसरे फोन आ रहे हैं।

इनमें भी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो सरकार की आलोचना कर रहे हैं और यह वाजिब भी है। लेकिन वास्तविक सेवा-सहायता करने वाले अधिकतर एक ही व्यक्ति को महाखलनायक साबित करने की मानसिक व्याधि से पीड़ित नहीं हैं। मनुष्यता और इंसानियत की एकमात्र कसौटी यही है कि संकट के समय ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, दुश्मनी, वैचारिक मतभेद आदि का परित्याग कर एकजुटता के साथ काम किया जाए। देश के बड़े वर्ग ने ऐसा चरित्र पेश भी किया है। जिनको बहुत कुछ करना नहीं है और जिनका एकमात्र एजेंडा यही है कि किसी तरह नरेंद्र मोदीको बदनाम किया जाए उनके लिए इंसानियत या मनुष्यता की कसौटी के कोई मायने न पहले थे ना आज हैं ना आगे रहेंगे।  क्या इनके सोशल मीडिया दुष्प्रचार से आम जनता मान लेगी कि कोरोना क दूसरे विस्फोट के लिए मुख्य दोषी मोदी हीं हैं? क्या लोगों की समझ में यह नहीं आएगा कि स्वास्थ्य मुख्यतः राज्यों का विषय है? क्या लोगों के ध्यान में नहीं आएगा कि राज्यों में चलने वाली स्वास्थ्य सेवाएं, जिनमें सरकारी और निजी अस्पताल दोनों शामिल हैं राज्य सरकारों के नियंत्रण में? अगर यह समूह संतुलित रूप से केंद्रों के साथ राज्यों में सत्तारूढ़ संपूर्ण राजनीतिक प्रतिष्ठान की नाकामियों, उनके जनविरोधी कदमों को तथ्योें के साथ रखता तो इनका असर होता। कोरोना का वर्तमान विस्फोट कई सम्मिलित कारकों की संहारक परिणति है। इसमें प्रकृति, समय, कोरोनावायरस का चरित्र, हम सबका सामूहिक व्यवहार, कोराूना नियंत्रण करने के पहले के कदमों की आर्थिक कीमत से उत्पन्न परेशानियों का दबाव, केंद्र एवं राज्य सरकारों की लापरवाहियां तथा अनुभवों के आधार पर भविष्य के पूर्वोपाय न करने करने की विफलता जैसे कारक शामिल हैं। इस समय ऑक्सीजन एक बड़ा संकट है। क्या दिल्ली,महाराष्ट्र जैसे कोरोना से सबसे ज्यादा आघात झेलने वाले राज्य सरकारें और उनके स्वास्थ्य महकमे को इसका अनुभव नहीं हुआ था? आगे ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हो इसके लिए क्या किया? दिल्ली को राशि भी दी गई ताकि ऑक्सीजन प्लांट विकसित हो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या मोदी विरोधी समूह का यह दायित्व नहीं बनता है कि इनको भी सामने लाएं? उद्धव ठाकरे सरकार ने महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा कोरोना का दंश झेलने के बावजूद ऑक्सीजन प्लांट लगाने-लगवाने में किंचित रुचि नहीं दिखाई। क्या महाराष्ट्र में मचे वर्तमान हाहाकार के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सहित उनकी सरकार और उसमें शामिल राजनीतिक दलों, स्वास्थ्य महकमे व प्रशासन को खलनायक नहीं माना जाएगा? तो यह  समूह ये बातें क्यों नहीं उठाता? प्रश्न यह भी है कि जो निजी अस्पताल ऑक्सीजन ऑक्सीजन ऑक्सीजन की रट लगाते हुए न्यायालयों का दरवाजा खटखटा रहे हैं क्या उन्होंने अपने लिए ऑक्सीजन प्लांट लगाने की कोई कोशिश की? इन सबको खलनायक की श्रेणी में क्यों न खड़ा किया जाए?

आश्चर्य देखिए कि यह समूह इन लूटेरे अस्पतालों को हीरो बना रहा है क्योंकि ये सरकार के विरुद्ध न्यायालय चले गए या बोल रहे है। कोई निजी अस्पताल अपने आईसीयू के लिए जितने बिस्तर रखता है उन सबके लिए सभी उपयुक्त संसाधन उसके पास होना चाहिए जिसमें ऑक्सीजन भी शामिल है। अगर इन्होंने नहीं किया तो ये अपराधी हैं। समूह इन आपराधिक सच्चाइयों को उजागर नहीं करता। चुनाव प्रचार के लिए क्या केवल मोदी, अमित शाह और भाजपा दोषी हैं? केरल में कांग्रेस, वामपंथी पार्टियां, मुस्लिम लीग चुनाव प्रचार नहीं कर रही थी? मुख्यमंत्री पी विजयन के कोरोना संक्रमित होने के बावजूद वहां चुनाव अभियान चल रहे थे। भाजपा वहां छोटी पार्टी है इसलिए इसका चुनाव अभियान इन दलों से छोटा रहा। फिर भी आप केरल कोरोना संकट के लिए मोदी को ही दोषी साबित कर रहे हैं। तमिलनाडु में भी भाजपा छोटी पार्टी है। ऐसी कौन पार्टी है, जो मतदान होने तक वहां चुनाव प्रचार में संपूर्ण शक्ति के साथ नहीं लगी  थी? पश्चिम बंगाल में भी क्या भाजपा अकेले चुनाव प्रचार कर रही थी? ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की सभाओं में क्या लोग नहीं आ रहे थे? क्या वामपंथी पार्टियां, कांग्रेस और आईएसएफ की सभाएं बिना लोगों के हो रही थी? अगर कोरोना फैलाव में चुनावी सभाओं और रैलियों की भूमिका है तो इसके लिए सभी पार्टियां समान रूप से दोषी हैं और केरल तमिलनाडु जैसे राज्य में गैर भाजपा दल ज्यादा दोषी हैं। हालांकि यह कहना कठिन है कि उन राज्यों में चुनाव प्रचार नहीं होते तो कोरोना नहीं फैलता। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगना आदि राज्यों में कोरोना चुनावी राज्यों से पहले और ज्यादा भयावह रूप में फैला? यह अलग से विचार का विषय है।

ये सारे ऐसे प्रश्न हैं जिनका निष्पक्ष उत्तर दिया जाना चाहिए? जब निष्पक्षता और मनुष्यता यहीं तक सीमित हो कि सारी समस्या के लिए एक व्यक्ति को खलनायक बनाकर उसकी छवि को लांछित किया जाए  जिससे उसके और पार्टी के प्रति लोगों में नाराजगी पैदा हो और वह सत्ता से बाहर हो जाए तो फिर सच के साथ खड़े नहीं हो सकते। यही यह समूह कर रहा है। इससे दुर्भाग्यपूर्ण और दिल दहलाने वाला व्यवहार कुछ नहीं हो सकता। संकट की घरी में जानी दुश्मन भी अपनी दुश्मनी को परे रखकर सेवा और सहयोग में लग जाते हैं। इस समूह के लोगों से भी इतना अनुरोध तो किया ही जाएगा कि कुछ समय के लिए इंसानियत और मानवीयता के नाते एक व्यक्ति से घृणा की मानसिकता से बाहर आएंझ यह विकट काल है जो हम सबसे एक संवेदनशील भूमिका की मांग कर रहा है। जो इससे चूक कर राजनीतिक विरोधी और घृणा अभियान में लगे रहेंगे उनके साथ भी प्रकृति और इतिहास न्याय करेगा। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208, 8178547992

शुक्रवार, 14 मई 2021

महाआपदा में निःस्वार्थ सहायता का आचरण उम्मीद पैदा करता है

अवधेश कुमार 

कोरोना महाआपदा में नकारात्मक सूचनाओं का ऐसा अंबार है कि हमारे चारों ओर घट रहीं सकारात्मक घटनायें उनमें दब गईं हैं। वास्तव में चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं और उनसे उत्पन्न डर और हताशा के बीच ऐसे समाचार और दृश्य सामने आ रहे हैं जो फिर यह उम्मीद पैदा करते हैं कि विकट परिस्थितियों में देश के लोगों, संस्थाओं संगठनों आदि का बड़ा समूह भारी जोखिम उठाकर भी समर्पण और संकल्प के साथ सेवा भाव से काम करने को तत्पर है। कोई भी आपदा अकेले केवल सरकारों के लिए चुनौतियां खड़ी नहीं करती, समाज के लिए भी करती है। अगर समाज का बड़ा समूह इसे समझता है तो वह अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार खड़ा होता है, आगे आता है और उन चुनौतियों को दूर करने या कम करने की यथासंभव कोशिश करता है। एक संवेदनशील सतर्क और सक्रिय समाज का यही लक्षण है। तमाम हाहाकार और कोहराम के बीच हमारे सामने मने ऐसी खबरें लगातार आ रहीं है जिसमें धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सेवा संगठन-समूह या कुछ निजी लोग भी अपने-अपने तरीकों से पीड़ित व प्रभावित लोगों की सहायता कर रहे हैं। गाजियाबाद से एक समाचार ने पूरे देश का ध्यान खींचा जहां एक गुरुद्वारे ने घोषणा की कि कोई भी मरीज अगर ऑक्सीजन के बिना छटापटा रहा है तो आप हमारे पास ले आइए, हम उनको तब तक ऑक्सीजन देते रहेंगे जब तक या तो किसरी अस्पताल में उनको जगह नहीं मिल जाती या वे इस स्थिति में नहीं आ जाते कि घर लौटक आइसोलेट होकर चिकित्सा करा सकें। लगातार कोरना पीड़ित वहां जा रहे हैं, उनको ऑक्सीजन मिल रहा है। वहां पर अस्पतालों को फोन किया जा रहा है और अनेक मरीज कुछ घंटे  ऑक्सीजन के बाद स्थिति सुधरने पर अपने घर वापस आ गए। 

ऐसे कुछ और समाचारों पर नजर डालेंगे तो इनके विस्तार और प्रभाव का अहसास हो जाएगा। जोधपुर से खबर आई कि वहां के कुछ व्यापारियों ने मिलकर ऑक्सीजन बैंक शुरू किया है। ब्लड बैंक की तर्ज पर चलने वाला यह ऑक्सीजन बैंक केवल कोरोना में ही नहीं हर विकट परिस्थिति में स्थायी रुप से अस्पतालों को, व्यक्तियों को ऑक्सीजन मुहैया कराएगा। शायद हममें से किसी को आश्चर्य हो कि दो-तीन दिनों के अंदर ही करोड़ों रुपए इसके लिए इकट्ठे हो गए और ऑक्सीजन बैंक चालू होने की स्थिति में है। हम उन औद्योगिक घरानों की चर्चा नहीं करेंगे जो भारी मात्रा में ऑक्सीजन के साथ अन्य सहायता के साथ आगे आएं हैं। हालांकि आने वाले कुछ दिनों में ऑक्सीजन की आपूर्ति मांग के अनुरूप हो जाएगी लेकिन विकट परिस्थिति में जब चारों ओर हाहाकार हो तब इस ढंग की संस्थाएं उम्मीद जगातीं है। ये दों तो केवल उदाहरण हैंए देशभर में अलग-अलग न जाने कितनी संस्थाओं, गुरुद्वारों, मंदिरों, व्यापारिक समूहों, राजनीतिक दलों तथा निजी लोगों ने अपनी ओर से ऑक्सीजन मुहैया कराना शुरु किया और जितना संभव है करा रहे हैं। हमारे देश के बुद्धिजीवियों में धार्मिक संस्थाओं की आलोचना करने का फैशन है। वे भी आगे आकर काम कर रहे हैं।  धार्मिक संस्थाओं की ओर से देश भर में कोविड केयर सेंटर बनाए गए हैं और बनाए जा रहे हैं। निरंकारी मिशन, राधास्स्वामी सत्संग, सावन कृपाल रूहानी मिशन, चिन्मय मिशन, स्वामीनारायण मंदिर, रामकृष्ण मिशन आदि तो वो नाम हैं जिनके कोविड केयर केन्द्रों के समाचार और तस्वीरें राष्ट्रीय मीडिया में स्थान पा रहीं हैं। क्षेत्रीय स्थानीय मीडिया में छोटी - बड़ी धार्मिक संस्थाओं की कोरोना मरीजों के उपचार, उनकी देखभाल तथा अन्य गतिविधियों के समाचार प्रतिदिन आ रहे हैं। सच यह है कि जिस धार्मिक संस्था की भी थोड़ी क्षमता है वो किसी न किसी रुप में सेवा कर रहा है। यहां तक कि मंदिर, मठ, गुरुद्वारे और मस्जिदों ने भी कोविड केयर के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। आरंभ में मुंबई के एक जैन मंदिर को चिकित्सा की सभी व्यवस्था के साथ कोविड केयर सेंटर में तब्दील करने की खबर आई। उसके बाद देशभर से ऐसी खबरें आने लगीं। इसी तरह पहले वडोदरा की जहांगीरपुरा मस्जिद द्वारा कोरोना मरीजों के लिए अपने परिसर में बेड का इंतजाम करने की खबर आई। उसके बाद कई जगहों से मस्जिद परिसर में कोरोना मरीजों के इलाज के इंतजाम किए जाने की सूचना आ रही है। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने व्यवस्थित तरीके से सेवा अभियान चलाने के लिए सभी राज्यों के प्रभारियों की नियुक्ति कर दी। उससे जुड़े संगठन अपनी क्षमता के अनुसार कई तरीकों से काम कर रहे हैं। जगह-जगह पूरे देश में इनका कार्यक्रम चल रहा है।  कुछ संगठन से जुड़ कर कर रहे हैं तो निजी स्तर पर भी, सेवा भारती, वनवासी कल्याण केंद्र, विश्व हिंदू परिषद, मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद आदि के कार्यकर्ता अपने-अपने स्थानों पर छोटे-बड़े समूह बनाकर कई तरीकों से सहायता  कर रहे हैं। कोई टीकाकरण अभियान में सहयोग कर रहा है, छोटे-बड़े कोविड केयर या आइसोलेशन सेंटर बनाए गए हैं, एंबुलेंस की व्यवस्था कर रहे हैं, दवाइयां और ऑक्सीजन की उपलब्धता में भी लगे हैं.. मरीज को भर्ती करानने में सहयोग  कर रहे हैं, भोजन उपलब्ध करा रहे हैं...। इन सबके लिए नंबर भी जारी किए है।ं कई जगह हेल्प सेंटर बने हैं । कहीं-कहीं निश्चित समय पर फोन नंबर पर डॉक्टर डॉक्टर उपलब्ध कराए गए हैं जो बचाव या कोविड-19 संक्रमितों के इलाज के लिए सुझाव देते हैं।

 इसी तरह राजनीतिक दलों में भी अकेले भाजपा नहीं, कांग्रेस और दूसरे दल भी अपने-अपने क्षेत्रों में सेवा सहायता में लगे हैं। दिल्ली में ही युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने मिलकर भोजनालय शुरू किया है जिससे अस्पतालों में मरीजों के रिश्तेदारों को भोजन कराया जा रहा है।   व्हाट्सएप से लेकर सोशल मीडिया पर अनेक लोगों के नंबर आपको मिले हैं जहां फोन करने पर आपको भोजन उपलब्ध हो सकता है। कोरोना आपदा के समय खासकर लॉकडाउन में केवल अस्पतालों और मरीज वाले परिवारों में ही नहीं, अनेक घरों में भी ंखाने की समस्याएं पैदा होतीं हैं। आप फोन पर बताते हैं और उतनी संख्या में भोजन के पैकेट आप तक पहुंच जाते हैं। गुरुद्वारों, मंदिरों और धार्मिक संस्थाओं से लेकर अनेक सेवा संस्थाएं, एनजीओ, निजी समूह आदि दिन रात इसमें लगे हैं। कहीं-कहीं भोजन यान चल रहा है जो बिना पूर्व सूचना के लोगों तक घूम-घूमकर भोजन पहुंचा रहे हैं। राजधानी दिल्ली के इर्द-गिर्द कई जगहों से खबर आई कि सोसायटी के लोगों ने अपने अपार्टमेंट के अंदर के कम्युनिटी हॉल, क्लब रूम आदि को ही कोविड-19 सेंटर में बदल दिया। वहां सामान्य तौर पर आवश्यकता पड़ने वाली औषधियों से लेकर डॉक्टर और नर्स तक की व्यवस्था है। कुछ लोगों ने भी समूह बनाए हैं जिनके व्हाट्सएप नंबरों पर मेसेज से आपकी कई समस्याएं हल हो जातीं हैं। मसलन, कुछ समूह दवा उपलब्ध कराता है। आपने किसी दवा की मांग की तो उनका समूह यह पता करता है कि दवा कहां उपलब्ध है और वहां से वो मंगाकर पहुंचा रहे हैं। 

वास्तव में इस तरह की गतिविधियों को आप लिखने लगें तो पन्ने भरते जाएंगे लेकिन सिलसिला खत्म नहीं होगा।यही भाव और आचरण उम्मीद पैदा करतीहै कि चाहे संकट कितना भी बड़ा हो हम उसका सफलतापूर्वक सामना करेंगे और विजीत भी होंगे। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे देश और समाज की जैसी निराशाजनक तस्वीरें बनाई जा रहीं वैसा है नहीं। वाकई सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। लोगों के अंदर आज भी बिना सरकारी सहायता के निस्वार्थ भाव से अपना खर्च करके दुखी-पीड़ित लोगों की सेवा व हरसंभव सहायता करते हुए संकट का मुकाबला करने का जज्बा कायम है। जिस देश में धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व गैर राजनीतिक संगठन ही नहीं राजनीतिक दल और निजी लोग संकट में अपने संसाधनों के साथ हाथ बंटाने निकल जाएंगे उस देश का भविष्य कभी भी अंधकारमय नहीं हो सकता। इससे यह भी साबित हुआ है कि हमारे राजनीतिक वैचारिक मतभेद जितने गहरे हों, एक दूसरे की हम भले जितनी आलोचना करें, अंततः आपदा का सामना करने के लिए सब काम करेंगे। ऐसे भाव और व्यवहार वाले जनसमूह का सरकारी-गैर सरकारी तंत्रों पर प्रभाव भी पड़ता है। आखिर 2-3 दिनों में ऑक्सीजन पैदा करने वाले प्लांट इसी देश में तैयार हो रहे हैं। जिस तंत्र की हम आलोचना करते हैं और सही करते हैं वही इस काम को भी अंजाम दे रहा है। सामाजिक दूरी और अपनी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए लोगों द्वारा उसमें भी यथासंभव सहयोग करने की तस्वीरें आ रहीं हैं। तो कामना करिए और उम्मीद भी रखिए कि इसी तरह का सामूहिक आचरण देश का बना रहेगा। हां, ऐसे व्यवहार केवल आपदा, विपत्ति और संकट के समय तक ही सीमित न रहे, सामान्य दिनों में भी दिखे। पहले आपदा से निपटें और फिर इस चरित्र को स्थाई भाव बनाने के लिए काम करें।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः11009, मोबाइलः9811027208, 8178547992

 

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